उन्नत किसानों को दिया जाएगा 50 हजार रुपये का पुरस्कार

किसान पुरस्कार 2020-21

कृषि एवं समबन्धित क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा कई प्रकार की योजनायें चलाई जाती हैं | जिससे किसान परमपरागत खेती को छोड़ कर नवाचार की ओर अग्रसर हो सके | नेशनल मिशन आंन एग्रीकल्चर एक्स्टेंशन एंड रिफार्म्स (आत्मा) योजना का क्रियान्वन देश भर में किया जा रहा है | योजना के तहत ऐसे किसान जो फसल उत्पदान, उद्यानिकी, पशुपालन, मछलीपालन, दलहन-तिलहन क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों को पुरस्कार दिया जाता है | इसका मुख्य उद्देश्य यह रहता है की अधिक से अधिक किसानों को नई तकनीक को बढ़ावा दिया जाए और किसान नवाचार करने के लिए प्रेरित हो |

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने एक्सटेंशन रिफार्म्स (आत्मा) योजना के तहत राज्य, जिला और विकासखण्ड तीनों स्तर के उन्नत कृषक पुरस्कार वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए आवेदन आमंत्रित किये गए है। इसके लिए आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि 1 अगस्त से 31 अगस्त 2020 तक निर्धारित की गई है। इच्छुक किसान दी गई अवधि में आवेदन जमा कर योजना में भाग ले सकते हैं |

योजना के तहत दिए जाने वाले पुरस्कार

एक्सटेंशन रिफार्म्स (आत्मा) योजनांतर्गत राज्य, जिला और विकासखण्ड तीनों स्तर पर उन्नत किसानों को वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए पुरस्कृत किया जायेगा | यह पुरस्कार कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में चयनित कृषकों को राज्य स्तर पर 50 हजार, जिलों में 25 हजार और विकासखण्ड में 10 हजार रूपए पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।

राज्य स्तर पर दिया जाने वाला पुरस्कार

एक्सटेंशन रिफार्म (आत्मा) के तहत यह पुरस्कार राज्य स्तर पर धान के लिए 2, दलहन, तिलहन हेतु 2, उद्यानिकी के क्षेत्र में 2, पशुपालन और मत्स्य पालन  के लिए 2-2 कृषकों का चयन किया जाएगा। चयनित कृषकों को प्रति कृषक 50 हजार रूपए एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाता है।

जिला स्तर पर दिया जाने वाला पुरस्कार

राज्य में जिला स्तर पर धान हेतु 2 दलहन-तिलहन के क्षेत्र में 2, उद्यानिकी के लिए 2 पशुपालन और मत्स्य पालन हेतु 2-2 चयनित कृषकों को प्रति कृषक 25 हजार रूपए एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।

विकासखंड स्तर पर दिया जाने वाला पुरस्कार

राज्य में विकासखण्ड स्तर पर धान के लिए 1 दलहन-तिलहन 1, उद्यानिकी 1, पशुपालन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में 1-1 चयनित कृषकों को प्रति कृषक 10 हजार रूपए एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा।

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राज्य के 1 लाख 12 हजार से अधिक किसानों को किया गया रबी फसल बीमा दावों का भुगतान

रबी फसल बीमा दावों का भुगतान

वर्ष 2019-20 में न केवल खरीफ फसलों का नुकसान हुआ था बल्कि असमय बारिश एवं ओलावृष्टि से रबी फसलों को भी काफी नुकसान पहुंचा था | फसल नुकसानी के चलते किसानों को काफी आर्थिक हानि हुई थी | ऐसे में जिन किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाया था वह अभी भी बीमा दावों के भुगतान की राह देख रहे हैं | अभी तक जहाँ कई राज्यों में खरीफ फसल के नुकसान की बीमा राशि भी किसानों को नहीं दी गई है वहीँ छतीसगढ़ राज्य में किसानों को रबी फसलों के फसल बीमा दावों का भुगतान किया जा चूका हैं |

राज्य के 1 लाख 12 हजार 805 किसानों को दिया गया फसल बीमा

छत्तीसगढ़ राज्य के 1 लाख 12 हजार 805 किसानों को प्रधानमंत्री बीमा योजनांतर्गत रबी फसलों की क्षतिपूर्ति के लिए 495 करोड़ 98 लाख रूपए की दावा राशि का भुगतान बीमा कम्पनियों द्वारा किया गया है। रबी फसलों के लिए राज्य के 25 जिलों के 1 लाख 12 हजार 805 किसानों को निर्धारित उपज से वास्तविक उपज कम प्राप्त होने तथा प्राकृतिक आपदा के कारण फसलों को हुए नुकसान के लिए यह दावा राशि भुगतान की गई है। रबी फसलों के बीमा के लिए बीमा कम्पनियों को 57 करोड़ 94 लाख रूपए का कुल प्रीमियम भुगतान किया गया था।

जिलेवार किसानों को किया गया कुल भुगतान

कृषि विभाग के संयुक्त संचालक श्री चंद्रवंशी ने बताया कि रबी फसलों की क्षतिपूर्ति एवज में बलरामपुर जिले के 279 कृषकों को 5.77 लाख रूपए, जांजगीर-चांपा जिले के 60 कृषकों को 1.67 लाख रूपए, जशपुर जिले के 22 कृषकों को 27 हजार रूपए, कबीरधाम जिले के 17,638 कृषकों को 59 करोड़ 27 हजार रूपए, मुंगेली के 1890 कृषकों को 303 करोड़ 9 लाख 57 हजार रूपए, बालोद के 2095 कृषकों को 5 करोड़ 13 लाख 20 हजार रूपए, बलौदाबाजार के 137 कृषकों को 22 लाख 69 हजार रूपए, बस्तर के 73 कृषकों को 3 लाख 59 हजार रूपए, बेमेतरा के 39740 कृषकों को 215 करोड़ 19 लाख 36 हजार रूपए, बिलासपुर के 849 कृषकों को 34 लाख 72 हजार रूपए की दावा राशि का भुगतान किया गया है।

वहीँ दंतेवाड़ा जिले के 32 कृषकों को 83 हजार रूपए, धमतरी के 202 कृषकों को 52 लाख 24 हजार रूपए, दुर्ग जिले के 11,105 कृषकों को 49 करोड़ 4 लाख 61 हजार रूपए, गरियाबंद के 15 कृषकों को एक लाख 53 हजार रूपए, कोण्डागांव के 12 कृषकों को एक लाख 62 हजार रूपए, कोरबा के 30 कृषकों को 8 हजार रूपए, कोरिया के 224 कृषकों को 16 लाख 4 हजार रूपए, रायगढ़ के 4 कृषकों को 43 हजार रूपए, रायपुर के 101 कृषकों को 17 लाख 9 हजार रूपए, राजनांदगांव के 37,293 कृषकों को 162 करोड़ 56 लाख 61 हजार रूपए, सुकमा के 10 कृषकों को 16 हजार रूपए, सूरजपुर के 178 कृषकों को 7 लाख 4 हजार रूपए, सरगुजा के 799 कृषकों को 29 लाख 32 हजार रूपए तथा कांकेर के 7 कृषकों को 15 हजार रूपए की दावा राशि का भुगतान किया गया है।

राज्य के किसान 15 जुलाई तक करवा सकते हैं खरीफ फसलों का बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत खरीफ वर्ष 2020 का लाभ लेने की अंतिम तिथि 15 जुलाई 2020 निर्धारित की गई है। इस योजना केे अंतर्गत धान सिंचित, धान असिंचित, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, मूंग एवं उड़द को बीमा के लिए बीमा ईकाई ग्राम पर अधिसूचित किया गया है। इसमें ऋणी और अऋणी किसान भू-धारक एवं बटाईदार सम्मिलित हो सकते है। इस संबंध में संचालक कृषि संचालनालय छत्तीसगढ़ रायपुर द्वारा आदेश जारी किया गया है। अधिसूचित फसल को बीमित कराने के लिए इच्छुक किसान फसल बीमा हेतु अंतिम तिथि 15 जुलाई तक नजदीकी बैंक, वित्तीय संस्था, लोकसेवा केन्द्रों में संपर्क कर अपनी फसल को बीमित करा सकते है।

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किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर दिए जाएंगे बाँस के उन्नत पौधे

अनुदान पर बांस के पौधे

केंद्र सरकार द्वारा किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए कई नई योजनाओं की शुरुआत की गई है | इसके तहत किसानों को बांस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम) योजना की शुरुआत की गई है | जिसमें किसानों को बांस की खेती करने पर अनुदान के रूप में प्रोत्साहन राशि दी जा रही है | योजना के तहत मध्यप्रदेश सरकार किसानों को अनुदान पर बांस के उन्नत पौधे देने जा रही है | योजना से प्रदेश में अच्छी गुणवत्ता वाले बाँस का उत्पादन बढ़ने के साथ ही किसानों को अच्छा मूल्य मिलने से अतिरिक्त आय होगी। बाँस आधारित शिल्पकारों और बाँस उद्योग को पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की आपूर्ति की जा सकेगी । किसान अपनी कृषि भूमि, मेड़ आदि पर अपनी इच्छा अनुसार बाँस की प्रजातियाँ लगाने के लिये स्वतंत्र रहेंगे।

वर्ष 2020 मध्यप्रदेश के वन विभाग द्वारा में 4000 हेक्टेयर क्षेत्र में बांस रोपण किये जाने का लक्ष्य रखा गया है | इसमें 2400 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 1600 हेक्टेयर कृषकों की निजी भूमि शामिल है | प्रदेश में इस वित्त वर्ष में 17 लाख 56 हजार बांस के पौधे लगाए जाएंगे, जिस पर करीब 25 करोड़ रूपये की राशी खर्च की जानी है |

योजना के तहत बांस के पौधे पर दिया जाने वाला अनुदान

राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत प्रदेश के किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर उन्नत गुणवत्ता वाले बाँस के पौधे उपलब्ध कराये जा रहे हैं। प्रति पौधा 240 रूपये लागत वाला यह पौधा किसानों को 120 रूपये में मिलेगा। राशि अनुदान का वितरण तीन वर्षो तक किया जायेगा। पहले साल में 60 रूपये प्रति पौधा, दूसरे में 36 रूपये और तीसरे साल में किसानों को 24 रूपये प्रति पौधा अनुदान मिलेगा। पहले वर्ष में रोपित सभी पौधों पर अनुदान दिया जायेगा। दूसरे साल 80 प्रतिशत पौधों की जीवितता पर (मृत पौधा बदलाव सहित) और तीसरे साल शत-प्रतिशत पौधों की जीवितता (मृत पौधा बदलाव सहित) सुनिश्चित करने पर अनुदान दिया जायेगा।

किसान कहाँ से बांस पौधे प्राप्त कर सकते है

योजना का लाभ लेने के इच्छुक किसान संबंधित वनमण्डलाधिकारी को आवेदन कर सकते हैं। अधिकारी बाँस मिशन द्वारा आवंटित भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों के सीमा के अनुसार हितग्राही का चयन करेंगे। चयन में अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला कृषको को प्राथमिकता दी जायेगी। न्यूनतम रोपण 375 से 450 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाने का प्रावधान है। पौधों का अन्तराल किसान खुद तय करेंगे। बाँस पौधो के बीच कृषि फसलों की अन्तरवर्ती फसलें भी ली जा सकेगी।

किसानों को यह पौधे मध्यप्रदेश राज्य बाँस मिशन द्वारा मान्यता प्राप्त रोपणियों या भारत सरकार के बायोटेक्नोलोजी विभाग से एन.सी.एस.-टी.सी.पी. प्रमाण पत्र प्राप्त टिश्यू कल्चर प्रयोगशालाओं से गुणवत्ता पूर्ण पौधों को क्रय कर लगाना होगा। पौधा क्रय का भुगतान किसान द्वारा रोपणी/लेब को किया जायेगा।

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किसानों तक योजनाओं का लाभ पहुँचाने के लिए सभी पंचायतों में खोले जा रहे हैं कृषि कार्यालय

पंचायत स्तर पर कृषि कार्यालय

किसानों के लिए देश भर में केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार के तरफ से बहुत से योजनाओं को संचालित कर रही है | इसमें कुछ योजनाओं को केंद्र सरकार अपने तरफ से चला रही है तो कुछ योजनाओं को राज्य सरकार के द्वारा संचालित किया जा रहा है | इसके अलावा देश के विभिन्न बैंकों के द्वारा भी कृषि संबंधित योजनाओं को संचालित किया जाता है | इसके बाबजूद भी देश के किसानों को बहुत सी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं होती और ना ही इस बात की जानकारी होती है की बे कहाँ से योजनाओं की जानकारी लेकर उनका लाभ प्राप्त कर सकें | इसके अतिरिक्त किसानों को दिन प्रतिदिन बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके समाधान के लिए वह कहाँ जाएँ इसकी जानकारी भी किसानों को नहीं होती है | इन्हीं कारणों से किसान योजनाओं का लाभ प्राप्त करने से किसान वंचित रह जाते हैं |

इसको ध्यान में रखते हुए बिहार राज्य सरकार ने किसनों के लिए एक नई पहल की शुरुआत की हैं | राज्य सरकार किसानों को योजनाओं संबंधित जानकारी के लिए पंचायत स्तर पर सुविधा देने जा रही है | इसके अंतर्गत किसानों कि सुविधा के लिए पंचायत स्तर पर कृषि कार्यालय खोले जा रहे हैं | जिसमें किसानों योजनाओं सम्बंधित जानकारी दी जाएगी |

8,402 पंचायतों में खोले गए कृषि कार्यालय

कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य में 8,402 पंचायतों में से 5,050 सरकारी भवनों में कृषि कार्यालयों की स्थापना कि गई हैं | इसके अतिरिक्त जिस पंचायत में पंचायत सरकार भवन का निर्माण नहीं हुआ है, उस पंचायत में किराये के कमरे लिये गये हैं तथा इसके लिए किराया उपलब्ध कराया जा रहा है | ऐसे 3,352 पंचायतों में कृषि कार्यालयों के लिए प्रति पंचायत अधिकतम 1,000 रूपये प्रति माह की दर से कुल 402.24 लाख रूपये इस वित्तीय वर्ष में किराये पर व्यय की जाएगी |

कृषि कार्यालय में यह सभी अधिकारी उपलब्ध रहेंगे

पंचायत कृषि कार्यालय में किसान सलाहकार नियमित रूप से उपस्थित रहेंगे, इसके अतिरिक्त कृषि समन्वयक भी हर सप्ताह में 3–3 दिन प्रत्येक पंचायत कृषि कार्यालय में उपस्थित रह कर अपने कार्यों का सम्पादन करेंगे | कृषि से जुडी सभी योजना तथा कृषि से जुडी अन्य जानकारी के लिए किसान इस कृषि कार्यालय में आ सकेंगे | किसान अपने ही पंचायत के कृषि कार्यालयों में कृषि समन्वयक तथा किसान सलाहकर द्वारा विभागीय योजनाओं का लाभ एवं कार्यक्रमों के बारे में सारी जानकारी उपलब्ध कराने के साथ  –साथ विभिन्न फसलों के बारे में तकनीकी ज्ञान भी प्राप्त कर सकेंगे |

किसानों को नहीं जाना होगा ब्लाक में

डॉ. प्रेम कुमार ने बताया कि पंचायतों में कृषि कार्यालय खुल जाने से राज्य के अन्नदाता किसान भाईयों एवं बहनों को कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रखण्ड अथवा जिला कृषि कार्यालय का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा | अब किसानों को 20–25 किलोमीटर की दुरी तय कर प्रखंड / जिला आने की आवश्यकता नहीं होगी | इससे किसानों का आर्थिक बोझ घटेगा साथ ही जरुरत पड़ने पर वह अपनी पंचायत से ही जानकारी प्राप्त कर सकेगें |

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पशुओं की संख्या के अनुसार दिया जायेगा पशु किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण

पशु किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण

जिस तरह किसानों को फसल उत्पादन के कार्यों के लिए जैसे-खाद, बीज एवं कीटनाशक आदि के लिए ऋण की आवश्यकता होती है उसी तरह पशुपालकों को भी पशु पालन के लिए लोन की आवश्यकता होती है | सरकार के द्वारा किसानों को कम ब्याज दर पर अधिक ऋण उपलब्ध करवाने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना (KCC) चलाई जा रही है | किसान क्रेडिट कार्ड पर अब न सिर्फ फसली ऋण दिया जाता है बल्कि पशुपालन एवं मछलीपालन पर भी ऋण दिया जाता है | हरियाणा राज्य सरकार ने पशु पालकों को ऋण उपलब्ध करवाने के लिए पशु किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत की गई है | हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने जिला रेवाड़ी के बावल में राजकीय पशु चिकित्सालय में पशु किसान क्रेडिट कार्ड योजना का शुभारंभ करने उपरांत उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए दी।

हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा कि खेती के साथ-साथ पशुधन व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति और ज्यादा मजबूत हो सके और इसी कड़ी में राज्य सरकार द्वारा पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया है, जिनमें पशु किसान क्रेडिट कार्ड योजना (पीकेसीसी) एक महत्वकांक्षी योजना है, जिससे किसान अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई पशु किसान क्रेडिट योजना पशुपालकों को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने पशुपालकों का आहवान करते हुए कहा कि वे इस योजना का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। योजना के तहत गाय-भैंस के अलावा भेड़-बकरी, सुअर व पोल्ट्री फार्म के लिए बगैर गारंटी के 1 लाख 60 हजार रुपए तक के ऋण का प्रावधान किया गया है ।

पशु किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत दिया जाने वाला ऋण

सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा कि पशु किसान क्रेडिट कार्ड पशुओं की संख्या के अनुसार जारी किया जाएगा और एक गाय के लिए 40,783 रूपए, भैंस के लिए 60,249 रुपए, भेड़-बकरी के लिए 4063, सुअर के लिए 16,337 रूपए, मुर्गी (अंडा देने वाली के लिए) 720 रूपए तथा मुर्गी ब्रायलर के लिए 161 रूपए का ऋण दिया जाएगा । योजना के तहत गाय-भैंस के अलावा भेड़-बकरी, सुअर व पोल्ट्री फार्म के लिए बगैर गारंटी के 1 लाख 60 हजार रुपए तक के ऋण का प्रावधान किया गया है । पशुपालकों को सुविधाजनक तरीके से योजना का लाभ देने के लिए बैंकों को निर्देश दिए गए हैं कि 1 लाख 60 हजार रूपये तक बिना गारंटी के तथा गांरटी के साथ तीन लाख रूपये तक ऋण मुहैया किया जायेगा |

पशुधन किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए आवशयक दस्तावेज

इच्छुक पशुपालक या किसानों को पशु किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए बैंक की तरफ से केवाईसी करवाना होगा जिसके लिए किसानों को निम्न दस्तावेज अपने साथ ले जाना होगा |

  • बैंक की तरफ से केवाईसी के लिए आधार कार्ड,
  • पैन कार्ड,
  • वोटर कार्ड,
  • नवीनतम पासपोर्ट साइज फोटो उपलब्ध कराने होंगे।

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किसान 15 जुलाई तक करवा सकते हैं मौसम आधारित उद्यानिकी फसलों का बीमा

मौसम आधारित फसलों का बीमा

किसानों को विपरित मौसम जैसे कम तापमान, अधिक तापमान, अधिक वर्षा, कम वर्षा, बेमौसम वर्षा, कीट एवं व्याधिक प्रकोप के अनुकूल मौसम, वायु गति से फसलों को होने वाली क्षति से फसल बीमा का लाभ प्राप्त होगा। स्थानीय आपदा के तहत खरीफ मौसम के केला, पपीता एवं मिर्च फसल हेतु ओलावृष्टि से बीमा सुरक्षा प्रदान करेगा तथा ओला वृष्टि/चक्रवाती हवाएं आदि से होने वाली क्षति की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चल रही है | जिसका एक घटक है मौसम आधारित फसल बीमा योजना |

खरीफ वर्ष 2020-21 अंतर्गत पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लागू की गई है । योजना के तहत ऋणी व अऋणी कृषक 15 जुलाई 2020 तक समस्त उद्यानिकी फसल टमाटर, बैगन, अमरूद, केला, पपीता, मिर्च एवं अदरक आदि फसलों का बीमा करवा सकते हैं |

मौसम आधारित फसल बीमा योजना

इस योजना में सभी अऋणी कृषक (भूधारक एवं बटाईदार) जो इस योजना में शामिल होने के इच्छुक है, ऐसे कृषकों को घोषणा पत्र के साथ फसल बुआई प्रमाण-पत्र अथवा प्रस्तावित फसल बोने के आशय का स्व-घोषणा पत्र सहित संबंधित अन्य अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत कर बीमा करा सकते हैं। चयनित उद्यानिकी फसलों का बीमा कराये जाने के लिये किसानों को उन फसलों के लिए निर्धारित ऋणमान का 5 प्रतिशत राशि देनी होगी, शेष प्रीमियम की राशि 50-50 प्रतिशत राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाएगा।

इन फसलों के लिए देनी होगी बीमा राशि

छत्तीसगढ़ राज्य में खरीफ मौसम अंतर्गत टमाटर के लिए बीमित राशि प्रति हेक्टेयर 1 लाख रुपये एवं कृषक अंश राशि प्रति हेक्टेयर 5 हजार रुपये निर्धारित की गई है। इसी तरह बैगन के लिए बीमित राशि 70 हजार रुपये एवं कृषक अंश राशि 3500 रुपये, अमरूद के लिए बीमित राशि 40 हजार रुपये एवं कृषक अंश राशि 2 हजार रुपये, केला के लिए बीमित राशि एक लाख 50 हजार रुपये एवं कृषक अंश राशि 7 हजार 500 रुपये, पपीता के लिए बीमित राशि एक लाख 10 हजार रुपये एवं कृषक अंश राशि 5 हजार 500 रुपये, मिर्च के लिए बीमित राशि 80 हजार रुपये एवं कृषक अंश राशि 4 हजार रुपये तथा अदरक के लिए बीमित राशि प्रति हेक्टेयर एक लाख 30 हजार रुपये तथा कृषक अंश राशि प्रति हेक्टेयर 6 हजार 500 रुपये निर्धारित है।

किसान कहाँ से करवाएं मौसम आधारित फसल बीमा

ऋणी व अऋणी कृषक 15 जुलाई 2020 तक लोक सेवा केन्द्र, बैंक शाखा, सहकारी समिति या फसल बीमा कंपनी टोल फ्री नम्बर पर कॉल कर या फसल बीमा कंपनी के प्रतिनिधि से संपर्क कर अपने उद्यानिकी फसलों का बीमा करवा सकते हैं।

मौसम आधारित फसल बीमा योजना ऑनलाइन आवेदन के लिए क्लिक करें

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धान की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग का नियंत्रण इस तरह करें

धान की फसल में लगने वाले कीट एवं रोग नियंत्रण

चावल दुनिया की आधी आबादी का मुख्य भोजन है और इसकी खेती वैश्विक स्तर पर की जाती है | विश्व में धान लगभग 148 मिलियन हेक्टेयर भूमि में उगाया जाता है, जिसका लगभग 90 प्रतिशत एशियाई देशों में होता है | वहीँ देश में किसानों के लिए धान की फसल आय का प्रमुख स्त्रोत है, इसलिए यह जरूरी है की किसान धान की फसल का कम लागत में अधिक उत्पादन कर अधिक आय प्राप्त कर सकें |

अधिक उत्पादन के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन एक व्यापक पारिस्थितिक दृष्टिकोण है, जिसमें सभी उपलब्ध तकनीकों जैसे कि कल्चरल, आनुवांशिक, यांत्रिक, जैविक एवं रासयनिक कीटनाशकों को एक सामंजस्यपूर्ण और संगतपूर्ण रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे फसल में लगने वाले कीटों की संख्या को आर्थिक चोट स्तर से नीचे रखा जा सके | एकीकृत कीट प्रबंधन का उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा के अलावा मानव और पशु स्वस्थ पर ध्यान देने के साथ फसल के नुकसान को कम किया जा सके |

धान की फसल में एकीकृत कीट प्रबंधन की प्रमुख तकनीकें :-

कल्चरल/संस्कृति तकनीक :-

यह आई.पी.एम की एक प्रमुख तकनीक है इसमें ग्रीष्मकालीन जुताई, स्वस्थ बीजों का चयन, समय पर रोपण, स्वस्थ नर्सरी की स्थापना, खेत से खरपतवार निकालना, उर्वरकों एवं रसायनों का संतुलित उपयोग इत्यादि तकनीकें आती है, जिनका उपयोग धान में कीट प्रबंधन के लिए किया जाता है |

यांत्रिक तकनीक :-

इसमें संक्रमित पौधों के हिस्सों को हटाना और नष्ट करना, धान की अंकुर युक्तियों की कतरन, अंडों एवं कीट के लार्वा को एकत्र कर नष्ट करना, जैविक ट्रेप, पीला ट्रेप इत्यादि का उपयोग कर कीटों को नियंत्रित किया जाता है |

जैविक नियंत्रण तकनीक :-

इसमें बायोकंट्रोल एजेंटों जैसे की – कोकिनेलीड्स, मक्खियों, मकड़ियों, ड्रेगनफलीज इत्यादि का प्रयोग एवं संरक्षण किया जाता है | अंडा परजीवों तथा ट्राइको–कार्ड इत्यादि का उपयोग भी इसी के अंतर्गत आता है |

व्यवहार पर नियंत्रण :-

इस तकनिक में धान की रोपाई के 10 दिन बाद पीला तना छेदक को फांसने के लिए फेरामोन ट्रैप, 20 ट्रैप / हेक्टेयर की दर से लगाए जाते हैं |

धान की फसल में रासायनिक नियंत्रण के उपाय :-

रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग आईपीएम में अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है | रासायनिक कीटनाशकों को उपयोग में लेने से पहले ईटीएल का निरिक्षण और प्राकृतिक वयोकंट्रोल एजेन्टों के संरक्षण को सुनिश्चित करना आवश्यक होता है |

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

झोंका/ब्लास्ट रोग :-

इस रोग का प्रकोप सामन्यत: असिंचित धान में अधिक देखा जाता है | इस रोग के प्रमुख लक्षण पौधों की पत्तियों, तना, गांठों, पेनिफ्ल व बालियों पर दिखाई देती है | इस रोग में पत्तियों पर आँख की आकृति अथवा सपिलाकार धब्बे दिखाई देते हैं, जो बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे रंग के होते हैं | तने की गांठो तथा पेनिफल का भाग आंशिक अथवा पूर्णत: काला पड़ जाता है तना सुकड कर गिर जाता है | इस रोग का प्रकोप जुलाई से  सितम्बर माह में अधिक होता है |

रोग नियंत्रण कैसे करें ?
  • इस रोग के नियंत्रण के लिए ट्राईसाइक्लेजोल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के लगायें तथा आवश्यकता पड़ने पर1% कार्बेन्डाजिम का छिडकाव पुष्पन की अवस्था में करें |
  • रोग प्रतिरोध प्रजातियों का उपयोग करें जैसे वी.एल. धान 206 , मझरा – 7, वी.एल.धान – 61 इत्यादि |
  • इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर बाली निकलने के दौरान आवश्यकतानुसार 10–12 दिन के अन्तराल पर कार्बेन्डाजिम 50% घुलनशील धूल की 15–20 ग्राम मात्र को 15 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें |

भूरी चित्ती रोग :-

इस रोग में छोटे–छोटे भूरे रंग के धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं तो अत्यधिक संक्रमण की अवस्था में आपस में मिलकर पत्तियों को सुखा देते हैं और बालियों पूर्ण रूप से बाहर नहीं निकल पाती | यह रोग कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में अधिक होता है |

 रोग नियंत्रण के लिए क्या करें  

  • नत्रजन, फास्फोरस व पाटास उर्वरकों का प्रयोग संतुलित मात्रा में करें |
  • थीरम5 ग्राम / किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर के बुवाई करें |
  • रोग लक्षण दिखाई देने पर25% मैंकोजेब का छिडकाव करें |

र्णच्छद अंगमारी शीथ ब्लाइट रोग :-

इस रोग के प्रमुख लक्षण पर्णच्छ्दों व पत्तियों पर दिखाई देते हैं | इसमें पर्णच्छद पर पत्ती की सतह के ऊपर 2-3 से.मी. लम्बे हरे–भूरे या पुआल के रंग के क्षत स्थल बन जाते हैं |

रोग प्रबंधन :-

  • फसल कटने के बाद अवशेषों को जला दें |
  • खेतों में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए तथा जल भराव नहीं होना चाहिए |
  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल 20 मि.ली. मात्रा को 15 – 20 ली. पानी में घोलकर प्रति नाली की दर से छिडकाव करें |

भासी कंड :-

इस रोग के लक्षण बाली निकलने के बाद ही स्पष्ट होते हैं | इसमें रोगग्रस्त दानें पीले अथवा संतरे के रंग के होते हैं जो बाद की अवस्था में जैतुनी काले रंग के गोले में बदल जाते हैं | इस रोग का प्रकोप अगस्त – सतम्बर माह में अधिक दिखाई देता है |

रोग प्रबंधन :-

  • संक्रमित पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर व जला कर नष्ट कर दें |
  • रोग ग्रसित क्षेत्रों में पुष्पन के दौरान3% कापर आक्सीक्लोराइड 50% एस.पी. का छिडकाव करें |

खैरा रोग :-

यह रोग मिट्टी में जिंक की कमी के कारण होता है | इस रोग में पत्तियों पर हल्के पीले रंग धब्बे बनते हैं जो बाद में कत्थई रंग के हो जाता है |

रोग प्रबंधन :-

  • जिंक सल्फेट+बुझा हुआ चूना (100 ग्राम + 50 ग्राम) प्रति नाली की दर से 15 – 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें |

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट

तना छेदक एवं गुलाबी तना बेधक

इस कीट की सूडी अवस्था आक्रमक तथा क्षतिकारी होती है | इसमें सूड़ियाँ मध्य कलिकाओं की पत्तियों को छेदकर अन्दर घुस जाती है तथा अन्दर ही अन्दर तने को खाती हुई गाँठ तक चली जाती है | अगर इस कीट का प्रकोप पौधे की बढ़कर अवस्था में अधिक होता है तो पौधों में बालियाँ नहीं निकलती है | यदि बाली अवस्था में प्रकोप हो तो बालियाँ सूखकर सफेद पड़ जाती है तथा दाने नहीं बनते | इस कीट का प्रकोप पर्वतीय क्षत्रों में असिंचित धान में तना छेदक की अपेक्षा अधिक पाया जाता है |

कीट प्रबंधन :-

  • फसल की कटाई जमीन की सतह से करें तथा अवशेष ठुठों को एकत्रित कर के जला दें
  • जिंक सल्फेट + बुझा हुआ चूना (100 ग्राम + 50 ग्राम) प्रति नाली की दर से 15 – 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें | यदि बुझा हुआ चूना ना हो तो 2% यूरिया का घोल उपयोग कर सकते हैं |
  • रोपाई करते समय पौधे के उपरी भाग को थोडा सा काटकर हटा दें जिससे इसमें उपस्थित तना छदक के अंडे नष्ट हो सके |
  • अंडा परजीवी ट्राइकार्ड (ट्राइकोग्राम जपोनिकम) 2000 अंडे / नाली, कीट का प्रकोप प्रारम्भ होने पर लगभग 6 बार प्रयोग करना चाहिए अथवा फोरामोन टप का प्रयोग 500 वर्ग मी. क्षेत्रफल में (2.5 नाली) एक ट्रेप की दर से प्रयोग करें | 15 – 20 दिन के अंतराल पर ट्रेप का ल्यार का बदलते रहना चाहिए |
  • 5 प्रतिशत सुखी बालियाँ दिखने पर केल्डान 4 जी अथवा पडान 4 जी दवा को 400 ग्राम / नाली की दर से प्रयोग करें |

धान का पत्ती लपेटक कीट :-

इस कीट की मादा पत्तियों की शिराओं के पास समूह में अंडे देती है जिनसे 6 से 8 दिन में सुंडियाँ निकलकर पहले मुलायम पत्तियों को खाती है तथा बाद में अपने लार द्वारा रेशमी धागा बनाकर पत्तियों के किनारों को मोड़ देती है | यह सुंडियों पत्तियों को अंदर ही अंदर खुरचकर खाती है , जिससे धान की पत्तियाँ सफेद व झुलसी हुई दिखाई देती है | इस कीट का प्रकोप अगस्त – सतम्बर माह में अधिक होता है |

रोकथाम कैसे करें :-

  • खेत व आस – पास की मेड़ों पर उगी हुई घास एवं खरपतवारों को निकालकर व जला कर नष्ट कर दें क्योंकि यह कीट पहले इन्हीं पर पनपता है |
  • इस कीट से बचाव के लिए मालाथियान 5 प्रतिशत विष धूल की 500 – 600 ग्राम मात्रा प्रति नाली की दर से छिडकाव करें |

धान का गूंधी बग :-

इस कीट का व्यस्क लम्बा, पतला व हरे रंग का उड़ने वाला होता है | इस कीट से आने वाले दुर्गन्ध से भी इस कीट की पहचान की जा सकती है | यह कीट दुधिया दानों को चूसकर क्षति पहुंचाता है , जिससे दानों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा दाने अंदर से खोखले हो जाते हैं |

गूंधी बग का कीट का नियंत्रण कैसे करें ?

  • खेत से एवं आसपास के मेड़ों से घास एवं अन्य खरपतवार को निकालकर और जलाकर नष्ट कर दें |
  • यदि एक या एक से ज्यादा कीट प्रति पौधा दिखाई दें तो मालाथियान 5% विष धूल की 500 – 600 ग्राम मात्रा प्रति नाली की दर से बुरकाव करें |
  • प्रकाश प्रपंच का प्रयोग भी कर सकते हैं |
  • अंडा परजीवी ट्राईकोग्रामा जापोनिकम का प्रयोग करें |
  • 10% पत्तियाँ क्षतिग्रस्त होने पर केल्डान 50% घुलनशील धूल का 2 ग्राम / ली. पानी का घोल बनाकर छिडकाव करने से भी इस कीट से होने वाली क्षति को नियंत्रित किया जा सकता है |

कुरमुला कीट :-

असिंचित धान में इस कीट का प्रकोप जुलाई – अगस्त माह में अधिक देखने को मिलता हैं | सिंचित धान में यह कीट क्षति नहीं पहुंचा पाता | यह कीट धान के पौधों की जड़ों को खाकर नष्ट करती है, जिससे पौधा पीला पड़ जाता है और बाद में सुखकर गिर जाता है | एसे संक्रमित पौधों को पकड़कर खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं |

कुरमुला कीट का नियंत्रण कैसे करें

  • फसल कटने के बाद खेतों की गहरी जुताई कर के छोड़ दें |
  • खेतों में सड़ी हुई गोबर खाद का प्रयोग करें |
  • मई – जून माह से ही प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें |
  • खड़ी फसल में क्लोरपाइरिफांस 20 EC की 80 मि.ली. को 1 किलोग्राम सूखी बालू / राख में मिलाकर मृदा के उपर बुरकाव करें |

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राज्य के 623 किसान अपनी भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाकर कर सकेंगे बिजली उत्पादन

सौर उर्जा सयंत्र से बिजली उत्पादन

केंद्र सरकार ने किसानों के लिए वर्ष 2018–19 के बजट में सौर उर्जा को बढ़ावा देने के लिए  करने के लिए किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान (कुसुम) योजना की घोषणा की गई थी | योजना के दो मुख्य कॉम्पोनेन्ट हैं, एक जिससे किसानों को सब्सिडी पर सोलर पम्प दिए जाते हैं वहीँ दुसरे के तहत किसान अपनी जमीन पर सौर उर्जा सयंत्र लगाकर बिजली उत्पादन कर सरकार को बिजली बेच सकते हैं | इस योजना के तहत किसानों को अपने भूमि में सोलर यूनिट की स्थापना कर बिजली उत्पादन कर सकते हैं | जिससे किसान अपनी ऊर्जा जरुरत को पूरा कर इसके बाद बची हुये बिजली को सरकार को बेच कर अतिरिक्त आय का प्रावधान है | राजस्थान सरकार ने किसानों से अपनी भूमि पर सौर उर्जा सयंत्र स्थापित करने के लिए आवेदन मांगे थे | जिसके तहत सरकार द्वारा आवेदनों का चयन कर अब उन्हें सौर उर्जा सयंत्र आवंटित किया जा रहा है |

कुसुम योजना के अंतर्गत किसानों द्वारा स्वयं की अनुपयोगी या बंजर भूमि पर 0.5 से 2 मेगावॉट क्षमता तक के सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना की जा सकती है। इससे किसानों को उनकी बंजर या अनुपयोगी भूमि से 25 वर्ष तक नियमित आय प्राप्त होगी। इसके साथ ही प्रदेश के किसानों को दिन के समय कृषि कार्य हेतु विद्युत आपूर्ति करने में बड़ी सफलता मिलेगी। इसके अतिरिक्त वितरण निगमों की विद्युत छीजत में तथा सिस्टम विस्तार पर होने वाले खर्च में भी कमी होगी।

623 किसानों को कुसुम योजना में आवंटित हुए 722 मेगावॉट के सौर ऊर्जा संयंत्र

राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम लिमिटेड द्वारा प्रधानमंत्री कुसुम योजना कंपोनेंट-ए के अन्तर्गत प्रदेश के 623 किसानों को 722 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने हेतु आवंटन पत्र जारी करने का निर्णय किया है। अक्षय ऊर्जा निगम के अध्यक्ष एवं प्रमुख शासन सचिव ऊर्जा श्री अजिताभ शर्मा ने बताया कि केन्द्र सरकार की कुसुम योजना में राजस्थान देश का पहला राज्य है जिसके द्वारा किसानों की चयन प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई है तथा देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा जहां कुसुम योजना में सर्वाधिक क्षमता के सौर संयंत्र स्थापित होंगे |

अक्षय ऊर्जा निगम द्वारा योजना के प्रथम चरण में वितरण निगमों के 33/11 के.वी. सब-स्टेशनों पर किसानों से विकेन्द्रीकृत सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने हेतु प्रस्ताव आमंत्रित किये गये थे, जिसके तहत राज्य के किसानों ने अभूतपूर्व उत्साह दिखाते हुये कुल 674 किसानों द्वारा 815 मेगावॉट क्षमता के आवेदन निगम में पंजीकृत करवाए गए, जिसमें से 623 किसानों को 722 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की प्रक्रिया में सम्बन्धित डिस्काम के साथ शीघ्र ही पॉवर परचेज एग्रीमेन्ट हस्ताक्षरित किये जायेगें।

3.14 रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदी जाएगी बिजली

किसानों के द्वारा स्थापित संयंत्रों से उत्पादित विद्युत डिस्कॉमस द्वारा 3.14 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली क्रय की जायेगी। चयनित किसानों एवं विकासकर्ताओं को संयंत्र स्थापित करने में किसी प्रकार की परेशानी ना हो इस हेतु राजस्थान अक्षय ऊर्जा निगम में एक विशेष सहायता प्रकोष्ठ स्थापित किया जायेगा। कोई भी चयनित किसान या विकासकर्ता इस सहायता प्रकोष्ठ से संपर्क कर अपनी समस्या का समाधान करा सकेंगे।

राज्य सरकार द्वारा किसानों के हित को ध्यान में रखते हुये बजट घोषणा 2019-20 में कुल 2600 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र किसानों की भूमि पर स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य आगामी तीन वर्ष में प्राप्त करना प्रस्तावित है। कुसुम योजना अन्तर्गत प्रथम चरण में 722 मेगावॉट के बाद शेष बची 1878 मेगावॉट क्षमता स्थापना हेतु अगले चरण की कार्यवाही शीघ्र प्रारम्भ कर राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग द्वारा निर्धारित विद्युत दर पर संयंत्र लगाने हेतु आवेदन पत्र आमंत्रित किये जायेंगे।

कुसुम योजना राजस्थान के तहत अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें

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राज्य में अगले तीन वर्षों में किसानों को सब्सिडी पर दिए जाएंगे 2 लाख सोलर पम्प

अनुदान पर दिए जाएंगे 2 लाख सोलर पम्प

किसानों को बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तथा पावर ग्रिड पर उपभोक्ता का भार कम करने के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा सौर उर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है | जहाँ सौर उर्जा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा जहाँ कुसुम योजना चलाई जा रही है वहीँ राज्य सरकार के द्व्रारा किसानों को अधिक लाभ मिल सकें इसके लिए किसानों को अधिक अनुदान पर सोलर पम्प उपलब्ध करवाने के लिए योजनायें चलाई जा रही हैं |

किसानों को सब्सिडी पर सोलर पम्प दिए जाते है | जिससे किसान सिंचाई में इसका उपयोग कर कम लागत में फसल उत्पादन कर सकें | इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना के अंतर्गत किसानों को विशेष अनुदान देकर सस्ती दरों पर सोलर पम्प उपलब्ध कराये जाएंगे | इस योजना का सरलीकरण किया जा रहा है | जिससे किसानों को सोलर पम्प लगाने में सुविधा होगी |

3 वर्षों में 2 लाख सोलर पंप लगाये जाएंगे

मध्य प्रदेश राज्य में अगले तीन वर्षों में 2 लाख सोलर पम्प लगाने का लक्ष्य है | सोलर पम्प से राज्य के किसानों को सिंचाई का भरपूर लाभ मिलेगा | प्रदेश में सोलर पम्प लगाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है | मुख्यमंत्री सोलर पम्प योजना के तहत किसानों के लिए अब तक 14 हजार 250 सोलर पम्प स्थापित किये जा चुके हैं |

अनुदान पर सोलर पम्प के लिए शर्तें

  • आवेदन केवल आवेदक की भूमि के लिए हैं |
  • सोलर पम्प संयंत्र का उपयोग केवल सिंचाई हेतु होगा तथा इसका विक्रय या हस्तांतरण नहीं होगा |
  • आवेदक के पास सिंचाई का स्थाई स्रोत हैं एवं सोलर पम्प हेतु आवश्यक जल भंडारण की आवश्यकता अनुसारर उपयोग करना होगा |
  • मापदण्ड अनुसार मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड से सोलर पम्प स्थापित करने के लिए सहमती प्रदान करना होगी |
  • राशि प्राप्त होने के पश्चात लगभग 120 दिवस में सोलर पम्पों की स्थापना का कार्य पूर्ण कर दिया जाएगा | विशेष परिस्थितियों में समयावधि बढाई जा सकती है | निर्धारित आवेदन के
  • साथ निर्धारित राशि रू. 5,000/- ‘‘मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड, भोपाल’’ के पक्ष में ऑनलाईन माध्यम से ‘‘मध्य प्रदेश ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड, भोपाल’’ को आवेदन के साथ प्राप्त होना अनिवार्य है, अन्यथा आवेदन निरस्त किया जा सकता है।
    |

किसान इन दामों पर ले सकेंगे सब्सिडी पर सोलर पम्प

मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने किसानों के लिए सोलर पम्प देने के लिए मूल्य निर्धारित किये है | 

क्र.
सोलर पंपिंग सिस्टम के प्रकार
हितग्राही किसान अंश (रु.)
डिस्चार्ज (लीटर प्रतिदिन )

1.

1 एच.पी.डी.सी. सबमर्सिबल

19,000 /-

30 मी. के लिए 45600 शट आँफ डायनेमिक हेड 45 मी.

2.

2  एच.पी.डी.सी. सरफेस

23,000 /-

10 मी. के लिए 198000 शट आँफ डायनेमिक हेड 12 मी.

3.

2 एच.पी.डी.सी. सबमर्सिबल

25,000 /-

30 मी. के लिए 68400 शट आँफ डायनेमिक हेड 45 मी.

4.

3 एच.पी.डी.सी. सबमर्सिबल

36,000 /-

30 मी. के लिए 114000 शट आँफ डायनेमिक हेड 45 मी.

50 मी. के लिए 69000 शट आँफ डायनेमिक हेड 70 मी.

70 मी. के लिए 45000 शट आँफ डायनेमिक हेड 100 मी.

5.

5 एच.पी.डी.सी. सबमर्सिबल

72,000 /-

50 मी. के लिए 110400 शट आँफ डायनेमिक हेड 70 मी.

70 मी. के लिए 72000 शट आँफ डायनेमिक हेड 100 मी.

100 मी. के लिए 50400 शट आँफ डायनेमिक हेड 150 मी.

6.

7.5 एच.पी.डी.सी. सबमर्सिबल

1,35,000 /-

50 मी. के लिए 155250 शट आँफ डायनेमिक हेड 70 मी.

70 मी. के लिए 101250शट आँफ डायनेमिक हेड 100 मी.

100 मी. के लिए 70875 शट आँफ डायनेमिक हेड 150 मी.

7.

7.5 एच.पी.ए.सी. सबमर्सिबल

1,35,000 /-

50 मी. के लिए 141750 शट आँफ डायनेमिक हेड 70 मी.

70 मी. के लिए 94500 शट आँफ डायनेमिक हेड 100 मी.

100 मी. के लिए 60750 शट आँफ डायनेमिक हेड 150 मी.

सोलर पम्प सब्सिडी हेतु आवेदन कहाँ से करें

अनुदानित दर पर सोलर पम्प लेने के लिए मध्यप्रदेश के  किसान किसी भी एम.पी. ऑनलाइन से कर सकते हैं | इसके अतरिक्त किसान https://cmsolarpump.mp.gov.in/ वेब पोर्टल पर भी किसान आवेदन कर सकते हैं |

सब्सिडी पर सोलर पम्प लेने हेतु आवेदन हेतु क्लिक करें

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मछली पालन हेतु इस वर्ष लगाए जाएंगे 2,000 प्रोजेक्ट एवं दी जाएगी 5,000 युवाओं को ट्रेनिंग

मत्स्य पालन हेतु प्रोजेक्ट एवं प्रशिक्षण

किसानों की आय बढ़ाने एवं ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए सरकार पशुपालन एवं मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है | मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों के द्वारा जिलेवार लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं | जिसका लाभ लेकर इच्छुक लाभार्थी प्रशिक्षण लेकर मछली पालन के लिए प्रोजेक्ट लगा सकते हैं |

इस वर्ष 2,000 प्रोजेक्ट लगाने एवं 5,000 युवाओं को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य

हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण, पशुपालन एवं डेयरिंग तथा मत्स्य विभाग के मंत्री श्री जयप्रकाश दलाल ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे चालू वित्त वर्ष में मत्स्य पालन के 2,000 प्रोजेक्ट और लगाएं तथा कम से कम 5,000 युवाओं को जिला स्तर पर ट्रेनिंग दें ताकि राज्य के युवा आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने प्रदेश में मत्स्य के क्षेत्र में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने तथा गुरूग्राम में फिश-एक्वेरियम के लिए प्रोजेक्ट लगाने की संभावनाओं को तलाशने के भी निर्देश दिए।

श्री दलाल ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि जलभराव वाले क्षेत्रों में मत्स्य पालन के अधिक से अधिक प्रोजेक्ट लगाने तथा खारा पानी में झींगा पालन के लिए युवाओं को प्रोत्साहित किया जाए। उन्होंने कहा कि अधिकारी परंपरागत प्रोजेक्ट पर तो कार्य करते रहें, साथ ही नए आइडिया के प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी बनाएं और जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार से उनको स्वीकृत करवाने के लिए अनुरोध किया जाएगा | अधिकारियों को विभाग की वैबसाइट अपडेट करने के निर्देश दिए ताकि मत्स्य पालन में रूचि रखने वाले युवाओं को विस्तृत जानकारी मिल सके। युवाओं को वितरित करने के लिए पंफलेट बनवाने के निर्देश दिए जिसमें विभाग की ताजा प्रोजेक्ट के मापदंड व नीतियों का विवरण दिया जा सके|

अधिकारियों को अधिक से अधिक युवाओं को मत्स्य पालन के लिए जिला स्तर पर प्रशिक्षण देने के निर्देश दिए। उन्होंने सुझाव दिया कि इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में विषय-विशेषज्ञों के अलावा मत्स्य पालन के क्षेत्र में सफल-किसान से रूबरू करवाना चाहिए ताकि प्रशिक्षणकर्ता प्रेरित होकर मत्स्य पालन की तरफ प्रोत्साहित हो सकें। किसी मत्स्य पालन प्रोजेक्ट का दौरा भी करवाया जाना चाहिए।

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