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2600 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं बेचने के लिए किसान 30 अप्रैल तक करें स्लॉट बुक

न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी की MSP पर गेहूं खरीदी का अंतिम दौर चल रहा है। इस साल मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर गेहूँ की खरीदी की जा रही है। जिसके लिए राज्य के लगभग 15 लाख से अधिक किसानों ने अपना पंजीयन कराया है। जिसमें अब तक राज्य के विभिन्न जिलों से लगभग 6 लाख से अधिक किसानों से गेहूं की खरीद की गई है। मध्य प्रदेश में 5 मई 2025 तक गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद की जाएगी। ऐसे में जिन किसानों ने अब तक गेहूं नहीं बेचा है वे किसान 30 अप्रैल तक स्लॉट बुक कराकर अपना गेहूं बेच सकते हैं।

एमपी के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत ने बताया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर प्रदेश में अभी तक 6 लाख 44 हजार 878 किसानों से 56 लाख 85 हजार 477 मीट्रिक टन गेहूँ का उपार्जन किया जा चुका है। किसानों को उपार्जित गेहूँ का भुगतान भी लगातार किया जा रहा है। अभी तक लगभग 4000 करोड़ रुपये का भुगतान किसानों को किया जा चुका है। गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपये प्रति क्विंटल है और राज्य सरकार द्वारा 175 रुपए प्रति क्विंटल बोनस दिया जा रहा है। इस तरह से गेहूँ की खरीदी 2600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से की जा रही है। किसान गेहूँ उपार्जन के लिये 30 अप्रैल तक स्लॉट बुक करा सकते हैं।

5 मई तक किया जाएगा गेहूं उपार्जन का काम

23 अप्रैल के दिन मंत्रालय में हुई खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता अधिकार संरक्षण विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने प्रदेश में चल रही गेहूं उपार्जन व्यवस्था पर विशेष ध्यान देने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि गेहूं की खरीदी प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता का पालन किया जाए और किसानों को गेहूं उपार्जन का भुगतान कम से कम समय में कर दिया जाए। किसी भी स्तर पर लापरवाही न हो, यह सुनिश्चित किया जाए। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने विभागीय अधिकारियों से कहा कि गेहूं उपार्जन के लिए स्लॉट बुकिंग की अवधि 30 अप्रैल तक करें। इस अवधि तक बुकिंग कराने वाले सभी किसानों से गेहूं उपार्जन का समस्त कार्य 5 मई 2025 तक हर हाल में पूरा किया जाए।

किसान यहां से करें स्लॉट बुक

जिन किसानों ने समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण करा लिया है वे किसान खरीद केंद्र पर उपज बेचने के लिए स्वयं के मोबाइल, एमपी ऑनलाइन, सीएससी, ग्राम पंचायत, लोकसेवा केन्द्र, इंटरनेट कैफे एवं उपार्जन केन्द्र से स्लॉट बुकिंग करा सकते हैं। स्लॉट बुकिंग के लिए किसान के ई-उपार्जन पोर्टल पर पंजीकृत मोबाईल पर ओटीपी भेजा जाएगा। जिसे पोर्टल पर दर्ज करना होगा। कृषक द्वारा विक्रय की जाने वाली संपूर्ण उपज की स्लॉट बुकिंग एक समय में ही करना होगी।

अब कृषि यंत्रों पर इस तरह दिया जाएगा अनुदान, कृषि यांत्रिकरण योजना की होगी समीक्षा

देश में किसान आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग कर अपनी आमदनी बढ़ा सकें इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इस कड़ी में बिहार सरकार द्वारा राज्य में कृषि यांत्रिकरण योजना चलाई जा रही है। योजना के तहत अधिक से अधिक किसानों को लाभ मिल सके इसके लिए सरकार द्वारा योजना में कई संशोधन किए जाएँगे।

बिहार के उप मुख्यमंत्री सह कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत अनुदान भुगतान की प्रक्रिया की समीक्षा कर आवश्यक संशोधन किया जाएगा। सीतामढ़ी और बक्सर में आयोजित किसान कल्याण संवाद एवं युवा किसान सम्मान समारोह के अवसर पर किसानों से सीधा संवाद के दौरान किसानों ने कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की नीतियों से जुड़े सुझाव और समस्याएं साझा की, जिन पर उप मुख्यमंत्री ने गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया।

सीधे विक्रेताओं को किया जाएगा अनुदान का भुगतान

कार्यक्रम में उपस्थित कृषि यंत्र विक्रेताओं ने अनुरोध किया कि कृषि यंत्रों के क्रय पर अनुदान का भुगतान वर्तमान में निर्माता को ना कर, सीधे विक्रेताओं को कराया जाए। इससे प्रक्रिया अधिक सरल और त्वरित होगी तथा किसानों को यंत्र प्राप्त करने में सुविधा होगी। इस पर उप मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मांग पर विभागीय स्तर पर विचार किया जाएगा और समीक्षा के बाद आवश्यक सुधार किए जाएँगे ताकि किसानों को किसी भी स्तर पर कठिनाई ना हो।

कृषि मंत्री ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2015-16 तक कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत विक्रेताओं को सीधे अनुदान का भुगतान किया जाता था। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2019-20 तक किसानों के बैंक खाते में सीधे अनुदान राशि का भुगतान किया जाने लगा। फिर वित्तीय वर्ष 2020-21 से किसानों को अनुदान राशि काटकर केवल कृषि यंत्र क्रय करने की व्यवस्था लागू की गई, जिसमें सत्यापन के बाद शेष अनुदान राशि का भुगतान निर्माता को किया जाता है। इन सभी प्रक्रियाओं का उद्देश्य किसानों को पारदर्शी और सरल सुविधा प्रदान करना रहा है।

किसानों को किराए पर कृषि यंत्र उपलब्ध कराने के लिए अनुदान पर की जाएगी कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना

आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग कर किसान कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त कर सकें इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को विभिन्न योजनाओं के तहत कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इस कड़ी में बिहार के उप मुख्यमंत्री सह कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा कृषि रोड मैप के अंतर्गत राज्य के प्रत्येक पंचायत में कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) की स्थापना की जाएगी।

कृषि मंत्री ने बताया कि कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना का उद्देश्य लघु एवं सीमांत किसानों को आधुनिक कृषि यंत्रों की सुविधा उपलब्ध कराना है, ताकि वे समय पर खेती से जुड़ी सभी आवश्यक क्रियाएँ पूरी कर सकें। इससे खेती की लागत घटेगी, श्रम की बचत होगी और कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होगी।

किसानों को किराए पर मिलेंगे कृषि यंत्र

कृषि मंत्री ने कहा कि कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना से किसानों को ट्रैक्टर चालित या स्वचालित यंत्र जैसे जुताई, बुआई, रोपाई, हार्वेस्टिंग और थ्रेसिंग के लिए उपकरण किराए पर मिलेंगे। इससे किसान बिना भारी निवेश किए आधुनिक तकनीकों का लाभ उठा सकेंगे। इन केंद्रों से विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे, जो अब तक संसाधनों के अभाव में आधुनिक खेती से वंचित रह जाते थे।

कस्टम हायरिंग केंद्र के लिए मिलेगा अनुदान

उपमुख्यमंत्री सह कृषि मंत्री ने कहा कि कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना हेतु अधिकतम 10 लाख रुपये की लागत निर्धारित की गई है। इस परियोजना में स्थानीय फसल चक्र के अनुसार प्रत्येक आवश्यक कृषि क्रिया के लिए कम से कम एक यंत्र लेना अनिवार्य है। राज्य सरकार इस लागत पर 40 प्रतिशत या अधिकतम 4 लाख रुपये का अनुदान देगी। जिससे किसानों और किसान समूहों को आर्थिक सहायता मिलेगी और वे सुगमता से इस योजना से जुड़ सकेंगे।

कृषि मंत्री ने कहा कि इस योजना का लाभ प्रगतिशील कृषक, जीविका समूह, ग्राम संगठन, क्लस्टर फेडरेशन, आत्मा से संबद्ध फार्मर इंटरेस्ट ग्रुप, नाबार्ड या राष्ट्रीयकृत बैंकों से संबद्ध किसान क्लब, किसान उत्पादक संगठन (FPO), किसान उत्पादक कंपनी, स्वयं सहायता समूह (SHG) और पैक्स द्वारा लिया जा सकता है।

गन्ना किसानों को करना होगा यह काम, सरकार ने जारी की गन्ना सर्वेक्षण नीति 2025

गन्ने की खेती करने वाले किसानों के सही आंकड़े प्राप्त करने के साथ ही उन्हें पारदर्शिता से सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके इसके लिए गन्ने की खेती करने वाले किसानों और लगाए गए गन्ने के क्षेत्र का सर्वे किया जाएगा। इसके लिए उत्तर प्रदेश गन्ना एवं चीनी मिल विभाग द्वारा वर्ष 2025-26 के लिए गन्ना सर्वेक्षण नीति जारी कर दी गई है।

उत्तर प्रदेश के गन्ना एवं चीनी के आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया की पेराई सत्र 2025-26 के लिए गन्ना सर्वेक्षण नीति जारी कर दी गई है। सर्वेक्षण कार्य 1 मई 2025 से प्रारम्भ किया जाएगा। गन्ना उत्पादन के सही आंकलन के लिए सर्वेक्षण कार्य में शुद्धता, पारदर्शिता और गन्ना किसानों की समस्याओं के निस्तारण के लिए गन्ना सूचना प्रणाली एवं स्मार्ट गन्ना किसान प्रोजेक्ट के अंतर्गत हैंड हेल्ड कंप्यूटर के माध्यम से जीपीएस सर्वे कराया जाएगा।

किसानों को देना होगा घोषणा पत्र

गन्ना किसानों द्वारा बोए गए गन्ना क्षेत्रफल में enquiry.caneup.in की वेबसाइट पर गन्ना किसानों के लिए घोषणा पत्र उपलब्ध रहेंगे। संबंधित किसानों को अपना घोषणा पत्र स्वयं ऑनलाइन भरना होगा। जिन किसानों के द्वारा ऑनलाइन घोषणा पत्र उपलब्ध नहीं कराए जाएँगे उन किसानों का सट्टा आगामी पेराई सत्र 2025-26 में विभाग द्वारा कभी भी बंद किया जा सकता है।

किसानों को दी जाएगी सूचना

सर्वे नीति के अनुसार सर्वे टीम खेत पर पहुँचने की तिथि, सर्वे टीम के इंचार्ज के नाम और मोबाइल नंबर की सूचना संबंधित टीम द्वारा एस.एम.एस. के माध्यम से 3 दिन पहले ही किसानों को दे दी जाएगी। गन्ना सर्वेक्षण कार्य संयुक्त टीम के माध्यम से पूरा किया जाएगा,  इस टीम में राजकीय गन्ना पर्यवेक्षक, चीनी मिल कार्मिक के साथ-साथ संबंधित सर्किल के किसान की उपस्थिति अनिवार्य होगी। जिन परिषदों में गन्ना सर्वेक्षण हेतु बनाई गई अस्थाई सर्किलों के सापेक्ष राजकीय गन्ना पर्यवेक्षकों की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होगी केवल उन्हीं परिषदों में राजकीय गन्ना पर्यवेक्षकों की कमी के सापेक्ष उतनी संख्या में समिति कर्मचारी लगाये जा सकेंगे। प्रत्येक सर्किल हेतु एक सर्किल इंचार्ज नियुक्त किया जाएगा।

सर्वे में दर्ज किया जाएगा यह विवरण

गन्ना सर्वेक्षण में जीपीएस का प्रयोग करते समय द्वितीय पेड़ी एवं तृतीय पेड़ी का सत्यापन कम्प्यूटरीकृत केन सर्वे रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा तथा कंप्यूटरीकृत गश्ती केन रजिस्टर के प्रत्येक पृष्ठ पर सर्वे टीम द्वारा हस्ताक्षर भी किए जाएँगे। मानसून गन्ना बुआई, शरदकालीन गन्ना बुआई, बसंत कालीन गन्ना बुआई वाले खेतों और ड्रिप इरीगेशन वाले क्षेत्रों तथा सहफसली खेती भी यदि गन्ने के साथ की गई है तो उसका विवरण भी दर्ज किया जाएगा। इसी के साथ आदर्श मॉडल प्लॉट के अंतर्गत प्रत्येक गन्ना विकास परिषद में चयनित उत्तम किसानों का विवरण भी अलग से दर्ज किया जाएगा।

30 जून तक चलेगा सर्वे का काम

गन्ना आयुक्त ने बताया कि गन्ना सर्वेक्षण का काम 1 मई 2025 से लेकर 30 जून 2025 तक चलेगा। सर्वेक्षण के बाद कम्प्यूटरीकृत गश्ती केन सर्वे रजिस्टर में गन्ना क्षेत्रफल का सारांश तैयार करते हुए कम्प्यूटरीकृत गश्ती केन सर्वे रजिस्टर के अंतिम पृष्ठ पर संबंधित चीनी मिल के सर्वे कर्मी, विभागीय गन्ना पर्यवेक्षक, समिति कार्मिक, संबंधित ब्लॉक इंचार्ज, ज्येष्ठ गन्ना विकास निरीक्षक एवं चीनी मिल के महाप्रबंधक (गन्ना) के संयुक्त हस्ताक्षर के बाद सर्वे आंकड़े अंतिम रूप से दिए जाएँगे। इसके साथ ही गन्ना सर्वेक्षण कार्य का समय-समय पर अधिकारियों द्वारा औचक निरीक्षण भी किया जाएगा।

3 मई को आयोजित किया जाएगा एग्रीकल्चर कॉनक्लेव, आधुनिक कृषि तकनीकों और उपकरणों की लगाई जाएगी प्रदर्शनी

किसानों को कृषि क्षेत्रों की आधुनिक तकनीकों से अवगत कराने के साथ ही उन्हें खेती-किसानी में आ रही समस्याओं के समाधान के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर किसान मेलों का आयोजन किया जाता है। इस कड़ी में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के सभी संभागों में एग्रीकल्चर कॉनक्लेव यानी की किसान मेलों का आयोजन किया जाएगा। इसमें सबसे पहला किसान मेला 3 मई को मंदसौर जिले में आयोजित किया जाएगा।

किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना ने कहा है कि मालवांचल सहित प्रदेश में कृषि और किसानों की समृद्धि के लिए कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है। सरकार द्वारा उन्नत फसलों और पशुपालन से किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। राज्य सरकार किसानों को सोलर पंप प्रदान कर बिजली के बिल के बोझ से मुक्त करने के लिए भी कार्य कर रही है। किसान, खेती की नई तकनीकों की जानकारी प्राप्त करें और नवाचारों से प्रेरणा लें। इस उद्देश्य से कृषि पर केन्द्रित कॉन्क्लेव आयोजित किए जा रहे है।

एग्रीकल्चर कॉनक्लेव में यह रहेगा खास

कृषि मंत्री ने बताया कि एग्रीकल्चर कॉन्क्लेव में आधुनिक कृषि तकनीकों व उपकरणों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। कृषि के साथ खाद्य प्र-संस्करण, उद्यानिकी और पशुपालन से संबंधित जानकारी मिलेगी। इन मेलों का उद्देश्य किसानों को कृषि, खाद्य प्र-संस्करण, उद्यानिकी और पशुपालन से संबंधित नवीनतम जानकारी और तकनीक से अवगत कराना है। साथ ही उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं की जानकारी भी प्रदान की जाएगी और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा। राज्य सरकार ने अगले तीन साल में प्रत्येक साल में 10 लाख सोलर पंप लगाने का लक्ष्य रखा है, जिससे किसानों को ऊर्जादाता बनने में मदद मिलेगी। सरकार ने इसके लिए अभियान शुरू कर दिया है और किसानों से आवेदन आमंत्रित किए जा रहे हैं।

सरकार ने शुरू किया कृषक कल्याण मिशन

किसान कल्याण तथा कृषि मंत्री ने बताया कि मंत्रि-परिषद द्वारा मध्यप्रदेश कृषक कल्याण मिशन को सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है। मध्यप्रदेश कृषक कल्याण मिशन में अब कृषि से जुड़े विभागों की योजनाएं एक मंच पर समन्वित रूप से क्रियान्वित होंगी। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश कृषि आधारित राज्य है और इस क्षेत्र में यहां अपार संभावनाएं हैं। किसानों की आय, कृषि उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य पालन में वृद्धि के साथ खाद्य प्र-संस्करण और कृषि से उत्पादित कच्चे माल पर आधारित औद्योगिक इकाई स्थापित करने जैसे हरसंभव प्रयास जारी हैं। किसानों और गौ-पालकों की आय बढ़ाने के साथ कुपोषण दूर करने की दिशा में सरकार योजनाबद्ध तरीके से पूरी ऊर्जा के साथ कार्य कर रही है।

कलेक्टर ने खेत में चलाया रोटावेटर, किसानों को नरवाई नहीं जलाने का दिया संदेश

रबी फसलों की कटाई के बाद किसानों द्वारा खेतों में शेष रह गए अवशेषों यानि की नरवाई को जलाने से रोकने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं। एक तरफ नरवाई जलाने वाले किसानों पर अर्थदंड लगाया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार ने नरवाई जलाने वाले किसानों को अब सरकारी योजनाओं से वंचित करने का भी फैसला लिया है। ऐसे में किसान खेतों में शेष रह गए अवशेषों का उचित तरह से प्रबंधन कर सकें इसके लिए शासन द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं।

किसान फसल अवशेष (नरवाई) ना जलाएं इसके लिए शासन द्वारा चौतरफा प्रबंध सुनिश्चित किए जा रहे है। जिसमें व्यापक प्रचार-प्रसार के साथ-साथ ग्राम स्तरों पर चौपालों व कार्यशालाओं का आयोजन कर किसानों को नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा रहा है। इस कड़ी विदिशा जिले के कलेक्टर अंशुल गुप्ता ने स्वयं नरवाई को जैविक खाद में बदलने के लिए रोटावेटर चलाकर नरवाई नहीं जलाने का संदेश दिया।

किसानों को बताए गए नरवाई नहीं जलाने के फायदे

कलेक्टर गुप्ता ने विदिशा की तहसील के ग्राम वन में प्रगतिशील किसान के खेत में पहुँचकर गेंहू की फसल की कटाई के उपरांत खेतों में खड़ी नरवाई को देखा और खेतों में आग नहीं लगाने का संदेश किसानों को दिया। इसके बाद ट्रैक्टर में सवार होकर खेत में ट्रैक्टर चलाया और पीछे लगे रोटावेटर से नरवाई को हटाने का कार्य तकनीकी रूप से किया। इस दौरान कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को नरवाई मिट्टी में मिलाने से होने वाले फायदों के बारे में बताया।

विदिशा जिले के कलेक्टर अंशुल गुप्ता ने जिले के सभी किसानों से अपील की है कि नरवाई जलाएं नहीं, नरवाई जलाने से होने वाले दुष्परिणामों से बचने के लिए नरवाई वाले खेतों में कल्टीवेटर के माध्यम से नरवाई प्रबंधन के लिए कृषि विभाग के माध्यम से क्रियान्वित योजनाओं का लाभ उठाएं।

नरवाई जलाने वाले किसानों को नहीं मिलेगा इन सरकारी योजनाओं का लाभ

फसल अवशेष यानि की नरवाई जलाने से ना केवल वायु प्रदूषण होता है बल्कि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को भी नुकसान पहुंचता है। जिसको देखते हुए सरकार द्वारा फसल अवशेष यानि की नरवाई जलाने वाले किसानों पर जुर्माना लगाया जा रहा है। इस कड़ी में मध्य प्रदेश सरकार ने अब नरवाई जलाने वाले किसानों को सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं से भी वंचित करने का भी निर्णय लिया है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि मध्यप्रदेश कृषि आधारित राज्य है। फसल कटाई के बाद खेतों में नरवाई जलाने के मामलों में वृद्धि होने से वायु प्रदूषण सहित कई प्रकार से पर्यावरण को बेहद नुकसान हो रहा है। खेत में आग लगाने से जमीन में उपलब्ध पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और भूमि की उर्वरक क्षमता में भी गिरावट आती है। इसके निदान के लिये राज्य सरकार पहले ही नरवाई जलाने को प्रतिबंधित कर चुकी है।

किसानों को नहीं मिलेगा इन योजनाओं का लाभ

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि प्रतिबंध लगाने के बाद भी यदि कोई किसान अपने खेत में नरवाई जलाता है तो उसे मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना का लाभ नहीं दिया जाएगा। इसके अलावा नरवाई जलाने पर संबंधित किसान से अगले साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल उपार्जन भी नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने 24 अप्रैल के दिन हुई राजस्व विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को यह निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि पर्यावरण, मृदा संरक्षण एवं भूमि की उत्पादकता बनाए रखने के मद्देनजर राज्य सरकार का यह निर्णय एक मई से लागू होगा।

85 लाख किसानों को मिल रहा है सम्मान निधि योजना का लाभ

राज्य सरकार ने फरवरी 2019 के बाद नए भू-धारकों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया है। इस योजना में केंद्र सरकार हर वर्ष पात्र किसानों को 6 हजार रुपए की आर्थिक सहायता उनके बैंक खातों में ट्रांसफर करती है। मार्च 2025 तक प्रदेश के 85 लाख से अधिक हितग्राहियों को 28 हजार 800 करोड़ रुपए राशि वितरित की जा चुकी है। साथ ही राज्य सरकार की ओर से भी पात्र मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना में किसानों को 6 हजार रुपए की सहायता प्रदान की जा रही है। वर्ष 2020 से लागू इस योजना में अब तक प्रदेश के 85 लाख से अधिक हितग्राहियों को 17 हजार 500 करोड़ रुपए राशि अंतरित की गई है।

अब तक बनाई गई 80 लाख फार्मर आईडी

बैठक में बताया गया कि राजस्व विभाग के नवाचारी प्रयासों के तहत तैयार की गई स्वामित्व योजना एवं फार्मर रजिस्ट्री के मामले में मध्यप्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है। बताया गया कि स्वामित्व योजना में प्रदेश में ग्रामीण आबादी में निजी लक्षित सम्पत्तियों की संख्या लगभग 45.60 लाख है। इनमें से लगभग 39.63 लाख निजी सम्पत्तियों का अधिकार अभिलेख वितरित कर दिया गया है, योजना का 88 प्रतिशत कार्य पूर्ण कर लिया गया है। जून 2025 तक यह कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा। साथ ही फार्मर रजिस्ट्री के लिए विशेष कैंप एवं स्थानीय युवाओं का सहयोग लिया जा रहा है। प्रदेश में अब तक 80 लाख फार्मर आईडी बनाई जा चुकी हैं, यह कार्य भी जून 2025 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है।

राजस्व विभाग ने गिरदावरी के लिए वर्ष 2024 से फसलों का डिजिटल सर्वे कार्य शुरू किया है। इसमें 60 हजार से अधिक ग्रामीण युवाओं द्वारा खेत और फसलों का सर्वे कार्य पूर्ण किया जा रहा है। प्रदेश में 190 तरह की फसलों की खेती हो रही है।

गायों को कर्रा रोग से बचाने के लिए पशुपालन मंत्री ने दिए निर्देश

इन दिनों कई स्थानों पर भीषण गर्मी और हरे चारे के अभाव के चलते पशुओं में कर्रा रोग देखने को मिल रहा है। जिसके चलते कई पशुओं की मृत्यु भी हुई है। जिसको देखते हुए राजस्थान के पशुपालन एवं डेयरी मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि मरुस्थलीय जिला जैसलमेर में भीषण गर्मी से गायों में फैल रहे कर्रा रोग की रोकथाम एवं बचाव उपायों को लेकर राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन संवेदनशीलता एवं प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि कर्रा रोग की वर्तमान में कोई दवाई एवं वैक्सीन नहीं है। इसलिये उन्होंने सभी पशुपालकों से अपील की है कि वे अपनी गायों को खुले में नहीं छोड़े एवं संबंधित विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया कि कर्रा रोग से गौवंश की रक्षा के लिए योजनाबद्ध रुप से कार्य करें।

पशुपालन एवं डेयरी मंत्री की अध्यक्षता में 24 अप्रैल के दिन जैसलमेर कलेक्ट्रेट सभागार में गायों में फैल रहे कर्रा रोग की रोकथाम एवं पानी-बिजली की निर्बाध आपूर्ति की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। इस अवसर पर उन्होंने पशुपालन विभाग के अधिकारियों को बीमारी की प्रभावी रोकथाम के लिए हर संभव प्रयास करने के निर्देश दिए। साथ ही उन्होंने संबंधित अधिकारियों को योजनाबद्ध रुप से कार्य करने के निर्देश दिए। जिससे इस रोग से कम से कम गायों की हानि हो।

पशुओं को रोग से बचाने के लिए किया जाए जागरूक

डेयरी मंत्री ने कहा कि इस बीमारी के प्रति लोगों में अधिकाधिक जागरूकता के लिए पंचायत स्तर पर विकास अधिकारी इस कार्य की प्रभावी मॉनिटरिंग करें। साथ ही उन्होंने कहा कि विज्ञापन, होर्डिंग, एलइडी वॉल, सोशल मीडिया ग्रुप्स सहित अन्य प्रचार माध्यमों से इस रोग से पशुओं को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरुक करने के निर्देश दिए। गौ-वंश को कर्रा रोग से बचाव करना ही उपचार है।

क्या होता है कर्रा रोग

पशुओं में कर्रा रोग मुख्य रूप से पशु आहार में हरे चारे तथा कैल्शियम एवं फास्फोरस की कमी के कारण होता है। इसके कारण पशु मृत पशुओं की हड्डियों को खाने लगते हैं और इससे मृत पशुओं की हड्डियों से बोचुलिजम रोग के कीटाणु इन पशुओं में आ जाते हैं और रोग के फैलाव की स्थिति उत्पन्न होती है। पशुओं को कर्रा रोग से बचाने के लिए पशुपालकों को अपने पशुओं को कैल्शियम और फॉस्फोरस युक्त आहार खिलाना चाहिए।

खरीफ फसलों की तैयारी को लेकर आयोजित की गई कार्यशाला, कृषि मंत्री ने दिए यह निर्देश

खरीफ फसलों की बुआई का समय नजदीक आ गया है, जिसको देखते हुए कृषि विभाग द्वारा तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही की अध्यक्षता में प्री-खरीफ 2025 की कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में लखनऊ, कानपुर, अयोध्या, देवीपाटन, बस्ती एवं गोरखपुर के मंडल स्तरीय अधिकारी एवं जनपद के उप कृषि निदेशक तथा जिला कृषि अधिकारी द्वारा प्रतिभाग कर जनपदीय उप कृषि निदेशक द्वारा खरीफ 2025 की जनपद रणनीति का प्रस्तुतीकरण दिया गया।

कार्यशाला में कृषि मंत्री ने अहम बिंदुओं पर जोर देते हुए संबंधित अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि अधिकारी जनपदों का नियमित रूप से भ्रमण करें तथा जनपदों में संचालित योजनाओं एवं प्रदर्शनों का सत्यापन कर जनपदीय फसलों के आच्छादन, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने की रणनीति तैयार करें।

15 मई तक करें धान की नर्सरी तैयार

कृषि मंत्री ने अधिकारियों को ढैंचा एवं जिप्सम की जनपदों को आपूर्ति सुनिश्चित कराते हुए कृषकों को उसके उपयोग के संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करने के निर्देश दिए। कृषि मंत्री ने कहा कि जनपदीय और मंडलीय अधिकारी जनपद के लिए आवश्यक फसलों की सामान्य व संकर प्रजातियों की सूचना अपर कृषि निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) को उपलब्ध कराई जाए। प्रत्येक दशा में धान की नर्सरी 15 अप्रैल तक पूर्ण कराते हुए रोपाई का काम 15 जून तक संपन्न करा लिए जाए। प्रक्षेत्र के समस्त खण्डों एवं योजना के अंतर्गत आयोजित किए जाने वाले प्रदर्शनों के प्लॉट का शत प्रतिशत मृदा प्रशिक्षण कराया जाए तथा उर्वरकों का प्रयोग संस्तुति के आधार पर किया जाए।

प्रदर्शनों पर बोर्ड लगाते हुए निर्धारित सूचनाएं अंकित कराते हुए शत-प्रतिशत सत्यापन किया जाए। प्रदर्शनों में दलहनी एवं तिलहनी फसलों को प्राथमिकता दी जाए तथा एक विजिटर रजिस्टर रखा जाए जिसमें उस प्रदर्शन का भ्रमण करने वाले प्रत्येक किसान का विवरण अंकित किया जाए। धान एवं गेहूं के रकबा को कम कर दलहनी, तिलहनी एवं मोटे अनाज का रकबा बढ़ाने का प्रयास किया जाए। जनपदों में आयोजित होने वाली क्रॉप कटिंग में अधिकारी और कर्मचारी शत प्रतिशत प्रतिभाग कर उनके परिणामों का अंकन किया जाए। गन्ने एवं मक्के के साथ यथा संभव अंतः फसली खेती को बढ़ावा दिया जाए।

सिंचाई के लिए स्मार्ट इरिगेशन तकनीक को दी जाए प्राथमिकता: जल संसाधन मंत्री

किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट ने विभाग की कार्य-योजना में स्मार्ट इरिगेशन इनोवेशन को प्राथमिकता से सम्मिलित करने को कहा है। जिससे भू-जल संवर्धन को बढ़ावा मिले। जल संसाधन मंत्री ने कहा कि अटल भू-जल योजना की गाइड लाइन अनुसार सिंचाई स्त्रोतों से जल दोहन की मात्रा नियंत्रित करने और फसलों की अच्छी उत्पादकता के लिए फसल अनुसार मिट्टी में आवश्यक नमी होनी चाहिए। इसके लिए कंट्रोल्ड स्मार्ट इरिगेशन आवश्यक है।

जल संसाधन मंत्री ने कहा कि प्रदेश के निवाड़ी एवं सागर जिलों में कुछ स्थानों पर डेमो उपकरण स्थापित किए गए हैं। इसके अच्छे परिणाम सामने आये हैं। इस प्रणाली से भू-जल दोहन में कमी होगी, विद्युत व्यय एवं पम्प रखरखाव में कमी आएगी तथा मोबाइल आधारित सिंचाई नियंत्रण की सुविधा अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। जल संसाधन मंत्री ने अटल भू-जल योजना की प्रगति की समीक्षा बैठक में यह बात कही।

भू-जल स्रोत में सुधार के लिए चलाई जा रही है अटल भू-जल योजना

जल संसाधन मंत्री ने कहा कि केन्द्रीय जलशक्ति मंत्रालय द्वारा विश्व बैंक के सहयोग से अटल भू-जल योजना चलाई जा रही है, जिसका उद्देश्य भू-जल स्तर में सुधार, जल प्रदाय के लिए टिकाऊ जल स्त्रोत और कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है। उन्होंने कहा कि योजना के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जनभागीदारी से निर्मित जल सुरक्षा योजना में सप्लाई एवं डिमांड अनुसार राज्य एवं केन्द्र शासन की प्रचलित योजनाओं के अभिसरण से कार्य कर बेहतर जल प्रबंधन सुनिश्चित करें।

1500 किसानों को सिंचाई के लिए दिए गए ड्रिप और स्प्रिंकलर

बैठक में बताया गया कि योजना में बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 6 जिले जिसमें सागर, दमोह, छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना एवं निवाड़ी शामिल है के साथ 9 विकासखंडों जिसमें सागर, पथरिया, छतरपुर, नौगांव, राजनगर, पलेरा, बल्देवगढ़, अजयगढ़ एवं निवाड़ी शामिल है। इनकी 670 ग्राम पंचायतों में 303 करोड़ रुपए की राशि से 3834 जल संरक्षण एवं संवर्धन संरचनाओं का निर्माण कर 92.60 मिलियन क्यूबिक जल संरक्षित किया गया है। साथ ही 163 ग्राम पंचायतों में भू-जल स्तर में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। विकासखण्ड निवाड़ी सेमीक्रिटिकल श्रेणी में था, जो सुधार होकर संरक्षित श्रेणी में आंकलित किया गया है।

हितग्राही मूलक योजनाओं में 7 लाख से अधिक हितग्राही लाभान्वित हुए हैं। सूक्ष्म सिंचाई हेतु 1500 से अधिक हितग्राहियों को ड्रिप, स्प्रिंक्लर आदि उपकरणों के वितरण पर 54 करोड़ से अधिक की राशि व्यय की जाकर 2000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई युक्त विकसित किया गया है। योजना के अंतर्गत जल संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति जागरूकता लाने के लिए 18 चरण के प्रशिक्षण कार्यक्रमों से 2.70 लाख लोग प्रशिक्षित किये गये, जिसमें महिलाओं की सहभागिता 45 प्रतिशत से अधिक रही।