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किसान इस साल धान के खेतों में डालें यह खाद, मिलेगी बंपर पैदावार

धान भारत की प्रमुख फसलों में से एक है, खरीफ सीजन में अधिकांश राज्यों के किसान इसकी खेती करते हैं। ऐसे में किसान कुछ नई उन्नत तकनीकों को अपनाकर धान की लागत में कमी करने के साथ ही बंपर पैदावार ले सकते हैं। इस साल किसान अपने खेतों में धान के साथ ही अजोला की खेती करके इसका उत्पादन बढ़ायें। किसान धान के खेतों में अजोला का इस्तेमाल हरी खाद के रूप में करें। जिससे धान की फसल को नाइट्रोजन सहित अन्य पोषक तत्व उपलब्ध हो जाएंगे और उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होगी।

धान की खेती में रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव को कम करने में अजोला किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। अजोला बहुत ही कम लागत और कम समय में तैयार होने वाली हरी खाद है। इसका इस्तेमाल करने से धान के पौधों का बेहतर विकास होता है।

धान के खेतों में कैसे करें अजोला का उपयोग

किसान धान के खेतों में अजोला का उपयोग सुगमता से कर सकते हैं। इसके लिए 2 से 4 इंच पानी से भरे खेत में किसान 10 टन ताजा अजोला को धान की रोपाई से पहले ही डाल दें। इसके साथ ही इसके ऊपर 30 से 40 किलोग्राम सुपर फास्फेट का छिड़काव करें। अजोला की वृद्धि के लिए 30 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान अत्यंत अनुकूल होता है। ख़ास बात यह है कि धान के खेत में अजोला छोटे-मोटे खरपतवारों को दवा देता है। वहीं इसके उपयोग से धान की फसल में 5 से 15 प्रतिशत तक की बढ़ जाती है।

अजोला की हरी खाद के फायदे क्या हैं?

अजोला वायुमण्डलीय कॉर्बनडाईऑक्साइड और नाइट्रोजन को कार्बोहाइड्रेट और अमोनिया में बदल सकता है। जब अजोला का अपघटन होता है तब यह फसल को नाइट्रोजन और मिट्टी को कॉर्बन सामग्री उपलब्ध कराता है। साथ ही यह मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों एवं पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में भी मदद करता है। यह धान के सिंचित खेत से वाष्पीकरण की दर को कम करता है जिससे पानी की बचत भी होती है। अजोला के उपयोग से पौधों को लगभग 20 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन खाद मिल जाती है। जिससे उपज और फसल की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।

अजोला की विशेषता क्या है?

अजोला की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि अनुकूल वातावरण में 5 से 6 दिनों में ही इसकी वृद्धि दोगुनी हो जाती है। यदि इसे पूरे साल बढ़ने दिया जाये तो यह 300-350 टन प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार दे सकता है। इसकी हरी खाद से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त होती है।

इसमें 3.3 से 3.5 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं और यह भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। अजोला किसानों को कम क़ीमत पर बेहतर जैविक खाद मुहैया कराता है। इसके साथ ही अजोला का उपयोग पशु आहार के रूप में भी किया जा सकता है जिससे पशुओं के दूध उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

किसान गर्मी में हरे चारे के लिये लगाएं लोबिया की यह उन्नत किस्में

गर्मी के दिनों में पशुओं के लिए हरे चारे की कमी अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में एक आम समस्या है। गर्मी में पशुओं को हरा चारा ना मिलने की वजह से न केवल पशुओं के दूध उत्पादन में कमी आती है बल्कि इसका असर उनकी सेहत पर भी पड़ता है। इसके समाधान के लिए किसान गर्मी के मौसम के दौरान अप्रैल में जहां सिंचाई की व्यवस्था है वहाँ हरे चारे की खेती कर सकते हैं। किसान इस समय प्रमुख हरे चारे में मक्का, लोबिया, ज्वार आदि फसलों की उन्नत किस्मों की बुआई कर सकते हैं।

हरे चारे में लोबिया पशुओं के लिए उत्तम पशु आहार है, लोबिया का बीज जहां मानव आहार में एक पौष्टिक घटक है वहीं पशुओं के लिए सस्ता पशु आहार है। लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और आयरन का अच्छा स्त्रोत है। लोबिया के बीज में उच्च मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें प्रोटीन 23-24 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 55 से 66 प्रतिशत, आयरन 0.005 प्रतिशत, कैल्शियम 0.08 से 0.11 प्रतिशत और आवश्यक अमीनो एसिड भी पाये जाते हैं।

पशु चारे के लिये लोबिया की उन्नत किस्में कौन सी है?

गर्मी के सीजन में चारे के लिये लोबिया की उन्नत किस्मों में बुंदेल लोबिया,  सी-20, सी. 30-558, सीओ.-5, ईसी- 4216, रशियन जायंट, एचएफसी. 42-1, यूपीसी- 5286, यू.पी.सी. 5287, यू.पी.सी. 287, एन.पी.-3 शामिल है। किसान इसकी खेती के लिए अच्छे प्रकार से खेत की तैयारी कर इनकी बुआई कर सकते हैं।

गर्मी में इसकी बुआई के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की आवश्यकता होती है। बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। किसान लोबिया की कटाई बुआई के 50-55 दिनों बाद कर सकते हैं।

गर्मियों में लगाई गई लोबिया की फसल में सिंचाई सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि मिट्टी में पानी की कमी रहती है। लोबिया के लिए 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। लोबिया को मुख्य रूप से वानस्पतिक वृद्धि, फूल और फली भरने के समय सबसे अधिक सिंचाई की ज़रूरत होती है।

किसान अभी खेत में लगा सकते हैं यह फसलें, वैज्ञानिकों ने जारी की सलाह

देश में अभी रबी फसलों की कटाई का काम लगभग पूरा हो गया है। ऐसे में किसान अभी गर्मी के सीजन में ख़ाली पड़े खेतों में विभिन्न फसलों को लगाकर अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। गर्मी के दिनों में किसान कम समय में तैयार होने वाली फसलों की खेती कर सकते हैं इसमें दलहन-तिलहन के साथ ही सब्जी फसलें शामिल है। इसके अलावा किसान पशुओं के चारे के लिये अथवा खेतों में हरी खाद तैयार करने के लिए विभिन्न उपयुक्त फसलों की खेती कर सकते हैं।

वर्तमान मौसम को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (पूसा) के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए सलाह जारी की है। जिसमें उन्होंने किसानों को इस समय लगाई जाने वाली फसलों और उनकी किस्मों के बारे में जानकारी दी है। इसमें दलहन-तिलहन के साथ ही सब्जी एवं चारा फसलें शामिल हैं।

किसान अभी कर सकते हैं जायद मूंग की बुआई

पूसा संस्थान द्वारा जारी सलाह में बताया गया है कि किसान अभी अपने खेतों में मूंग की बुआई कर सकते हैं। जिसके लिये किसान अभी पूसा विशाल, पूसा 672, पूसा 9351, पंजाब 668 आदि उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं। किसान बुआई के समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पर्याप्त नमी मौजूद हो। बुवाई से पहले किसान बीजों को फसल विशेष राईजोबीयम तथा फॉस्फोरस सोलूबलाईजिंग बेक्टीरिया से अवश्य उपचार करें।

किसान अभी कौन सी सब्जी लगायें

अपने साप्ताहिक बुलेटिन में संस्थान की ओर से बताया गया है कि अभी का तापमान फ्रेंच बीन, सब्जी लोबिया, चौलई, भिंण्डी, लौकी, खीरा, तुरई आदि तथा गर्मी के मौसम वाली मूली की सीधी बुवाई के लिए अनुकूल है। इन सब्जियों के बीजों के अंकुरण के लिए यह तापमान उपयुक्त होता है। किसान बुआई के समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में पर्याप्त नमी मौजूद हो। किसान उन्नत किस्म के बीजों को किसी प्रमाणित स्रोत से लेकर बुआई करें।

हरी खाद और चारे के लिये लगाएं यह फसलें

पूसा संस्थान की और से बताया गया है कि यदि रबी सीजन की फसलों की कटाई का काम पूरा हो गया है तो किसान अपने खेतों में हरी खाद के लिए ढ़ेचा, सनई अथवा लोबिया की बुवाई कर सकते हैं। इसके लिए किसान रबी फसलों की कटाई के बाद पलेवा करें। इन फसलों की बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखें।

वहीं किसान पशुओं के लिए हरे चारे हेतु ग्वार, मक्का, बाजरा, लोबिया आदि चारा फसलों की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। बीजों को 3-4 से.मी. गहराई पर डाले और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 से.मी. रखें।

इसके अलावा यदि किसान इस समय खेतों में कोई फसल लेना नहीं चाहते हैं तो वे रबी फसलों की कटाई के बाद खेतों की गहरी जुताई करके उसे खुला छोड़ दें ताकि सूर्य की तेज धूप से मिट्टी गर्म हो सके। मिट्टी के गर्म होने से उसमें छिपे कीड़े एवं उनके अंडे तथा घास नष्ट हो जाएगी जिससे अगली फसल पर कीट-रोगों का प्रकोप नहीं होगा।

मौसम चेतावनी: 18 से 20 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश

Weather Update: 18 से 20 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

देश में अभी जहां मौसम विभाग द्वारा तेज गर्मी और लू का अलर्ट जारी किया जा रहा है तो वहीं एक नया पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD ने कई राज्यों में आँधी और बारिश का अलर्ट भी जारी किया है। मौसम विभाग के अनुसार एक चक्रवाती परिसंचरण पूर्वी ईरान और उससे सटे अफगानिस्तान के ऊपर बना हुआ है जिसके चलते 18 से 20 अप्रैल के दौरान देश के उत्तर-पश्चिमी भारत के कई राज्यों में आँधी बारिश की गतिविधियाँ देखी जाएँगी।

मौसम विभाग के मुताबिक मौजूदा सिस्टम के चलते जम्मू कश्मीर, लद्दाख, गिलगित, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़, राजस्थान, छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र राज्यों में कई स्थानों पर तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की भी संभावना है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 18 से 19 अप्रैल के दौरान अलवर, दौसा, धौलपुर, जयपुर, झुंझुनू, सीकर, बाड़मेर, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर एवं श्रीगंगानगर जिलों में कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ वर्षा होने की संभावना है। वहीं इस दौरान कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि भी हो सकती है।

हरियाणा एवं पंजाब के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 18 से 20 अप्रैल के दौरान पंजाब राज्य के पठानकोट, गुरुदासपुर, अमृतसर, तरण-तारण, होशियारपुर, नवाँशहर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फरीदकोट, मोगा, लुधियाना, बरनाला, संगरूर, मलेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब, रूपनगर, पटियाला एवं सास नगर जिलों में अनेक स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

वहीं हरियाणा राज्य में 18 से 19 अप्रैल के दौरान चंडीगढ़, पंचकुला, अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, महेंद्र गढ़, रेवारी, झज्जर, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, फरीदाबाद, रोहतक, सोनीपत, पानीपत जिलों में अनेक स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश एवं ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी पूर्वानुमान के अनुसार 18 से 19 अप्रैल के दौरान आगरा, मथुरा, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, एटा, हाथरस, कासगंज, बरेली, बंदायू, पीलभीत, शाहजहांपुर, फ़र्रुखाबाद, लखीमपुर खीरी, हरदोई, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, अमरोहा, संभल, सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली ज़िलों में अनेक स्थानों पर तेज हवा आंधी के साथ वर्षा हो सकती है वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की संभावना है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 18 से 20 अप्रैल के दौरान राज्य के सिंधुदुर्ग, धुले, नन्दुरबार, जलगाँव, नासिक, अहमदनगर, पुणे, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, शोलापुर, छत्रपति संभाजीनगर, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, धारशिव, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, वर्धा एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश होने की संभावना है।

समर्थन मूल्य पर चना और सरसों खरीदने के लिए सरकार ने बढ़ाई पंजीयन सीमा, किसान जल्द करें पंजीयन

देश में चने के भाव में अचानक आई गिरावट से किसानों को नुकसान न हो इसके लिए सरकार ने कुछ राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चने की खरीद के लक्ष्य को बढ़ा दिया है। इस बीच राजस्थान में सरकार ने समर्थन मूल्य MSP पर चना और सरसों की खरीद के लिए किसानों की पंजीयन सीमा को बढ़ा दिया है। जिससे उन किसानों को लाभ मिल सकेगा जिन्होंने अभी तक एमएसपी पर चना और सरसों बेचने के लिए पंजीयन नहीं कराया था।

इस संबंध में राजफैड के प्रबंध निदेशक ने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य में चना और सरसों की खरीद के लिए कृषक पंजीयन की सीमा को 10 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। इस निर्णय से चने, सरसों के लिए कुल 68,386 किसानों को अतिरिक्त लाभ मिलेगा। बढ़ी हुई पंजीयन सीमा का लाभ किसान 18 अप्रैल से प्राप्त कर सकेंगे। बता दें कि इस बार केंद्र सरकार द्वारा सरसों का समर्थन मूल्य 5650 रुपये प्रति क्विंटल तो चने का समर्थन मूल्य 5440 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है।

अभी तक 5 लाख से अधिक किसानों ने कराया है पंजीयन

प्रबन्ध निदेशक राजफैड ने कहा कि इस साल राजस्थान में केंद्र सरकार द्वारा सरसों खरीद हेतु 14,61,028 मैट्रिक टन एवं चना खरीद हेतु 4,52,365 मैट्रिक टन के लक्ष्य स्वीकृत किये गये है। जिसके लिए राज्य के 5 लाख से अधिक किसानों ने पंजीयन कराया है। इसमें 16 अप्रैल तक राज्य में सरसों के 2 लाख 52 हजार 319 एवं चने के 33 हजार 282 कुल 2 लाख 85 हजार 601 पंजीयन हो चुके हैं।

वहीं अभी तक सरकार की ओर से कुल 66,424 किसानों को चना एवं सरसों की फसल बेचने के लिए दिनांक आवंटित किए जा चुके हैं। जिसमें सरसों की उपज बेचने के लिए 52,547 को एवं चना बेचने के लिए 13,877 किसान शामिल है। इसमें से 20,675 किसानों से लगभग 44,665 मैट्रिक टन सरसों-चना राशि 252 करोड़ रुपये का क्रय किया जा चुका है।

किसान चना सरसों बेचने के लिए कैसे करें अपना पंजीयन

किसानों को केंद्र सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP का लाभ लेने के लिए पंजीयन कराना होगा। किसान यह पंजीयन खरीद केंद्र या ई-मित्र केंद्र के माध्यम से करा सकते हैं। इसके लिए किसानों को गिरदावरी, बैंक पासबुक, जन-आधार कार्ड आदि दस्तावेजों की आवश्यकता होगी। वहीं राजफैड द्वारा किसानों से अपील की गई है कि किसान जल्द से जल्द अपना पंजीयन करा लें ताकि उन्हें जिन्स तुलाई हेतु प्राथमिकता पर दिनांक आवंटित की जा सके।

वहीं राजफैड की ओर से किसानों से अपील की गई है कि सभी पंजीकृत किसान फसल को सुखाकर अनुज्ञय मात्रा की नमी का साफ-सुथरा कर एफ.ए.क्यू. मापदण्डों के अनुरूप चना-सरसों तुलाई हेतु क्रय केन्द्रों पर लायें। किसानों की समस्या-समाधान के लिये किसान हेल्पलाइन नम्बर 18001806001 भी स्थापित किया हुआ है जहां किसान सम्पर्क कर अपनी समस्या का निराकरण प्राप्त कर सकते है।

फसल के अच्छे उत्पादन में सल्फर का महत्व और कमी के लक्षण, किसान कैसे दूर करें सल्फर की कमी को

फसल उत्पादन में खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का अत्यधिक महत्व है। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने पर न केवल फसलों की पैदावार में कमी आती है बल्कि फसलों में कई तरह के रोग लगने का भी खतरा रहता है। इन पोषक तत्वों में मुख्यतः नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, जिंक एवं बोरान आदि शामिल है। इनमें तिलहन फसलों जैसे सोयाबीन, सरसों, मूँगफली, तिल आदि फसलों के लिए सल्फर अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

अभी तक देश में संतुलित खाद-उर्वरकों के अंर्तगत केवल नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश के उपयोग पर ही सबसे अधिक बल दिया गया है। जिसके चलते देश के अधिकांश स्थानों पर मिट्टी में 40 प्रतिशत तक सल्फर की कमी पाई गई है। खासकर आज के समय में किसानों के द्वारा सल्फर रहित उर्वरकों जैसे यूरिया, डीएपी, एनपीके तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश आदि का उपयोग अधिक किया जा रहा है, जिसके चलते भी देश की मिट्टी में सल्फर की कमी आई है।

सल्फर की कमी से गिरता है फसलों का उत्पादन

कृषि भूमि में कार्बनिक रूप की तुलना में अकार्बनिक सल्फर की सांद्रता कम होती है। सल्फर की कमी से फसलों की पैदावार घटती है। खासकर बात की जाए सोयाबीन, सरसों, मूँगफली, तिल आदि जैसे तिलहनी फसलों की तो सल्फर की कमी से तिलहनी फसलों की गुणवत्ता और मात्रा में भी 40 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। यहाँ तक की सल्फर की कमी से फसलों से प्राप्त बीजों में तेल की मात्रा भी कम होती है।

फसल उत्पादन में सल्फर का क्या महत्व है?

  • सल्फर, क्लोरोफिल का अवयव नहीं है फिर भी यह इसके निर्माण में सहायता करता है। यह पौधे के हरे भाग की अच्छी वृद्धि करता है।
  • यह सल्फरयुक्त अमीनों अम्ल, सिस्टाइन, सिस्टीन और मिथियोनीन तथा प्रोटीन संश्लेषण में आवश्यक है।
  • सरसों के पौधों की विशिष्ट गंध को यह प्रभावित करती है। तिलहनी फसलों के पोषण में सल्फर का विशेष महत्व है साथ ही बीजों में तेल बनने की प्रक्रिया में इस तत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • तिलहनी फसलों में तैलीय पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करता है।
  • इसके प्रयोग से बीज बनने की प्रक्रियाओं में तेजी आती है।

किसान सल्फर की कमी को कैसे पहचानें

  • मिट्टी में सल्फर की कमी से पौधों की पूर्ण रूप से सामान्य बढ़ोतरी नहीं हो पाती तथा जड़ों का विकास भी कम होता है।
  • पौधों की ऊपरी पत्तियों (नयी पत्तियों) का रंग हल्का फीका व आकार में छोटा हो जाता है। पत्तियों की धारियों का रंग तो हरा रहता है, परन्तु बीच का भाग पीला हो जाता है।
  • पत्तियां कप के आकार की हो जाती है साथ ही इसकी निचली सतह एवं तने लाल हो जाते हैं।
  • पत्तियों के पीलेपन की वजह से पौधे पूरा आहार नहीं बना पाते, इससे उत्पादन में कमी आती है और तिलहन फसलों में तेल का प्रतिशत कम हो जाता है।
  • इसके अलावा जड़ों की वृद्धि कम हो जाती है साथ ही फसलों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
  • फसल की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है।

किसान इस तरह दूर करें मिट्टी में सल्फर की कमी को

देश में किसान उर्वरक के रूप में सल्फर का कम इस्तेमाल करते हैं जिसके चलते तिलहन फसलों की उत्पादकता में कमी आ जाती है। किसान तिलहनी फसलों में सल्फर की कमी को दूर करने के लिए सल्फर युक्त उर्वरकों का छिड़काव कर सकते हैं। इसमें किसान अमोनियम सल्फेट, एसएसपी, पोटेशियम सल्फेट आदि का छिड़काव कर सकते हैं। इसके अलावा किसान अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराकर फसलों के लिए अनुशंसित उर्वरकों का छिड़काव करें।

मिट्टी में सल्फर की कमी को दूर करने के लिए किसान निम्न सल्फर युक्त उर्वरकों का छिड़काव कर सकते हैं।

  1. सिंगल सुपर फास्फेट – सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) में 12 प्रतिशत सल्फर उपलब्ध होती है। किसान इस उर्वरक को बुआई के पहले बेसल ड्रेसिंग के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
  2. पोटेशियम सल्फेट – इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 18 प्रतिशत तक होती है। किसान इस उर्वरक को बुआई के पहले बेसल ड्रेसिंग के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
  3. अमोनियम सल्फेट  इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 24 प्रतिशत तक होती है। किसान इस उर्वरक को बुआई के पहले बेसल ड्रेसिंग के रूप में एवं खड़ी फसल में टॉप ड्रेसिंग के रूप में भी उपयोग कर सकते हैं।
  4. जिप्सम (शुद्ध)  इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 18 प्रतिशत तक होती है। किसान इसका उपयोग भूमि की सतह पर उचित नमी की दशा में बुआई से 3 से 4 सप्ताह पहले प्रयोग करना चाहिये। यह उसर मृदा के लिए ज्यादा उपयुक्त है।
  5. पाइराइट – इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 22 प्रतिशत तक होती है। किसान को इसका उपयोग भूमि की सतह पर उचित नमी की दशा में बुआई से 3 से 4 सप्ताह पहले करना चाहिये।
  6. जिंक सल्फेट – इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 18 प्रतिशत तक होती है। यह जस्ते की कमी वाली भूमि के लिए उपयुक्त है। इसका प्रयोग किसान भाई बुआई के 3 से 4 सप्ताह पहले या खड़ी फसल में पर्णीय छिड़काव के रूप में करें।
  7. बेंटोनाइट – इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 90 प्रतिशत तक होती है। इसका उपयोग किसान खेत की मिट्टी में उचित नमी होने पर बुआई के समय कर सकते हैं।
  8. तात्विक सल्फर – इस उर्वरक में सल्फर की मात्रा 95-100 प्रतिशत तक होती है। जिस मिट्टी में वायु का संचार अच्छा हो तथा चिकनी मिट्टी (भारी मृदा) के लिए उपयुक्त है। किसान बुआई के 3 से 4 सप्ताह पहले मिट्टी में उचित नमी की दशा में इसका उपयोग कर सकते हैं।

सरकार ने नैनो यूरिया के बाद अब नैनो यूरिया प्लस को भी दी मंजूरी, किसानों को मिलेगा यह फायदा

सरकार ने नैनो तरल यूरिया के बाद अब नैनो यूरिया प्लस को भी मंजूरी दे दी है। नैनो यूरिया प्लस, नैनो यूरिया का एक उन्नत संस्करण है जो पौधे के विकास के विभिन्न चरणों में नाइट्रोजन की बेहतर आपूर्ति और पोषण प्रदान करेगा। भारत सरकार द्वारा नैनो यूरिया प्लस को 3 वर्षों तक के लिए मंजूरी दी है। इस अधिसूचना के बाद किसानों को बाजार में नैनो यूरिया प्लस भी मिलने लगेगा।

देश की प्रमुख उर्वरक निर्माता कंपनी इंडियन फ़ॉर्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड IFFCO द्वारा नैनो यूरिया (तरल) के बाद अब नया प्रोडक्ट नैनो यूरिया प्लस बनाया गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इफ़को के नैनो यूरिया प्लस (तरल) को अगले तीन साल के लिए अधिसूचित किया है। नैनो यूरिया प्लस इफ़को के नैनो यूरिया का एक उन्नत संस्करण है।

नैनो यूरिया प्लस से उपज में होगी वृद्धि

इफ़को के एमडी एवं सीईओ डॉ. यू.एस. अवस्थी ने एक्स प्लेटफार्म पर जानकारी साझा करते हुए लिखा कि मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इफको के नैनो यूरिया प्लस (तरल) 16% एन w/w व जो 20% एन w/v के बराबर है, को भारत सरकार द्वारा 3 वर्ष की अवधि के लिए अधिसूचित किया गया है।”

उन्होंने आगे बताया कि इफको नैनो यूरिया प्लस, नैनो यूरिया का एक उन्नत संस्करण है जो पौधे के विकास के विभिन्न चरणों में नाइट्रोजन की बेहतर आपूर्ति और पोषण प्रदान करता है। मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक यूरिया और अन्य नाइट्रोजन उर्वरकों की जगह इसका प्रयोग किया जा सकता है। यह सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता और दक्षता को भी बढ़ाता है। यह क्लोरोफिल चार्ज करते हुए उपज वृद्धि और स्मार्ट खेती में मदद करता है।

Nano Urea Plus Usase Notification

बता दें कि इफ़को ने अभी नैनो यूरिया प्लस की क़ीमत में कोई वृद्धि नहीं की है। इसकी 500 मिली. की बॉटल 225 रुपये की दर से किसानों को मिलेगी। केंद्र सरकार दानेदार यूरिया की बजाय नैनो तरल यूरिया के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है। इसके लिये बीते दिनों रबी सीजन में देश में अनेक स्थानों पर ड्रोन की मदद से फसलों पर नैनो यूरिया का छिड़काव किया गया था।

मक्के की फसल में लगने वाले उत्तरी झुलसा रोग की पहचान और उसका उपचार कैसे करें

मक्का फसल में उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट रोग

भारत के कई राज्यों में रबी, खरीफ एवं जायद सीजन के दौरान मक्के की खेती प्रमुखता से की जाती है। मक्का फसल की आनुवंशिक उत्पादन संभावना सर्वाधिक होने के चलते मक्का को अनाज की रानी के रूप में भी जाना जाता है। मक्के की खेती करने वाले किसानों को बुआई से लेकर कटाई तक यानि की पूरे फसल चक्र के दौरान कई कीट रोगों का सामना करना पड़ता है। इन रोगों में उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट या टर्सिकम पत्ती अंगमारी रोग भी शामिल है। मक्के के इस रोग की वजह से फसल को 28 से 91 प्रतिशत तक का नुकसान होता है।

कवक रोगों की वजह से मक्का की फसल काफी प्रभावित होती है। इनमें से उत्तरी झुलसा या टर्सिकम लीफ ब्लाइट महत्वपूर्ण रोगों में से एक है। मक्के की फसल में इस रोग का संक्रमण 17 से 31 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान जब सापेक्षिक आद्रता (90– 100 प्रतिशत), गीली और आर्द्र अवधि के मौसम में अनुकूल होता है। यह रोग प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है। इसकी वजह से उपज में 28 से 91 प्रतिशत तक की कमी आती है।

उत्तरी झुलसा रोग की पहचान

फसल पर इस रोग का संक्रमण शुरू होने के लगभग 1 से 2 सप्ताह बाद, पहले छोटे हल्के हरे से भूरे रंग के धब्बे के रूप में लक्षण दिखाई देते हैं। अति संवेदनशील पत्तियों पर यह रोग सिगार के आकार का एक से छह इंच लंबे स्लेटी भूरे रंग के घाव जैसा होता है। जैसे –जैसे रोग विकसित होता है, घाव भूसी सहित सभी पत्तेदार संरचनाओं में फैल जाता है। इसके बाद गहरे भूरे रंग के बीजाणु उत्पन्न होते हैं। घाव काफी संख्या में हो सकते हैं, जिससे पत्ते नष्ट हो जाते हैं। इसके कारण किसानों को उपज का बड़ा नुकसान होता है।

उत्तरी झुलसा रोग का उपचार

  • किसान उत्तरी झुलसा रोग को नियंत्रित करने के लिए मक्के की प्रतिरोधी किस्मों का ही इस्तेमाल करें।
  • मक्का की समय पर बुआई करने से उत्तरी झुलसा (टीएलबी) रोग से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
  • मक्का के अवशेषों को नष्ट करने के बाद फसल को संक्रमित करने वाले उपलब्ध उत्तरी झुलसा (टीएलबी) रोगजनक की मात्रा घटती है।
  • एक से दो वर्ष का फसल चक्र अपनाने और जुताई द्वारा पुरानी मक्का फसल के अवशेष को नष्ट करने से रोग में कमी आती है।
  • खेतों में पोटेशियम क्लोराइड के रूप में पर्याप्त पोटेशियम का इस्तेमाल करने से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • कवकनाशी जैसे मैंकोजेब (0.25 प्रतिशत) और कार्बेन्डाजिम का नियमित रूप से उपयोग करने से रोगों की रोकथाम की जा सकती है।
  • एजोक्सिस्ट्रोबिन 18.2 प्रतिशत + डिफेंसकोनाजोल 11.4 प्रतिशत w/w एससी (एमिस्टर टॉप 325 एससी) 1 मिली/लीटर पानी में, लक्षण दिखने पर पत्तियों पर तुरंत छिड़काव करें।

इस साल मानसून सीजन में इन राज्यों में होगी अच्छी बारिश, मौसम विभाग ने जारी की किया पूर्वानुमान

Monsoon Update 2024: मानसून 2024 के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

सभी देशवासियों के लिए एक राहत भरी खबर आई है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD ने 15 अप्रैल के दिन इस साल के लिए मानसून का अपना पहला पूर्वानुमान जारी कर दिया है। खास बात यह है कि इस वर्ष मौसम विभाग ने देश में सामान्य से अधिक बारिश की भविष्यवाणी की है जो कि किसानों के साथ-साथ सभी देश वसियों के लिए राहत भरी खबर है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम. रविचंद्रन ने मीडिया को बताया कि जून से सितंबर 2024 में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान पूरे देश में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। इससे पहले स्काईमेट ने भी इस वर्ष देश में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की थी।

मौसम विभाग के मुताबिक जून से सितंबर तक पूरे देश में मानसूनी वर्षा लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) का 106 प्रतिशत होने की संभावना है। जिसमें ± 5 प्रतिशत की संभावित त्रुटि हो सकती है। यहाँ बता दें की वर्ष 1971 से 2020 तक की अवधि के लिए पूरे देश में दीर्घावधि औसत एलपीए 87 सेमी. है। यानि की इस वर्ष पूरे देश में 87 सेमी से अधिक वर्षा होने की संभावना है। इसके बाद मौसम विभाग मई 2024 के अंतिम सप्ताह में मानसून सीजन की बारिश के लिए अपना दूसरा पूर्वानुमान जारी करेगा।

इन राज्यों में होगी अच्छी बारिश

प्रेस वार्ता में मौसम विभाग की ओर से बताया गया कि उत्तर-पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, जहां सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है। देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश होने की प्रबल संभावना है जैसा कि नीचे चित्र में नीले रंगों से दर्शाया गया है। 

probability rainfall forecast for 2024 Monsoon season
जून से सितंबर महीने के लिए संभावित वर्षा का पूर्वानुमान, स्रोत:- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD.

मौसम विभाग के मुताबिक इस वर्ष देश के अधिकांश राज्यों में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। इनमें केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र , गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, प.बंगाल, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पुड्डुचेरी, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षदीप, दादरा और नगर हवेली, दमन-दीव शामिल है। वहीं शेष राज्यों जिनमें छत्तीसगढ़, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख शामिल है में सामान्य वर्षा एवं ओडिशा, असम, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा राज्यों में सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है।

मानसून पर अलनीनो और ला नीना का दिखेगा प्रभाव

आईएमडी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि वर्तमान में, भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में मध्यम अल नीनो प्रभाव की स्थिति बनी हुई है और जलवायु मॉडल के पूर्वानुमान मानसून सीजन के शुरुआत तक तटस्थ और मानसून के दूसरे भाग में ला नीना के प्रभाव का संकेत देते हैं।

वहीं पिछले तीन महीनों (जनवरी से मार्च 2024) के दौरान उत्तरी गोलार्द्ध में बर्फ का आवरण सामान्य से नीचे था, जो इस मानसून में अधिक वर्षा को दर्शाता है। सर्दी और वसंत में उत्तरी गोलार्द्ध के साथ-साथ यूरेशिया पर भी बर्फ कवर सीमा का आम तौर पर बाद के मानसून की वर्षा के साथ विपरीत संबंध है। आईएमडी मई 2024 के अंतिम सप्ताह में मानसून की बारिश का अद्यतन पूर्वानुमान जारी करेगा।

बाजार में 100 रुपये किलो तक बिक रही है गेहूं की यह किस्म, सरकार खेती के लिए दे रही है प्रोत्साहन

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में किसान कम लागत में गेहूं की अच्छी पैदावार ले सकें इसके लिए सरकार किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील किस्मों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस कड़ी में बिहार कृषि विभाग द्वारा गेहूं की पारंपरिक किस्मों जैसे- सोना-मोती, वंशी तथा टिपुआ किस्मों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

गेहूं की सोना मोती किस्म अत्यन्त प्राचीन है, गेहूं की इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं साथ ही यह किस्म लगभग शुगर फ्री होती है जिसके चलते किसानों को बाजार में इसके अच्छे भाव मिल जाते हैं। बिहार सरकार ने रबी सीजन 2023-24 में गेहूं के इन पारंपरिक प्रभेदों के संरक्षण एवं बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य के सभी जिलों में सोना मोती, वंशी तथा टीपुआ प्रभेद के गेहूं की खेती को प्रोत्साहित किया गया है। साथ ही दो बीज गुणन प्रक्षेत्रों जिनमें बेगुसराय जिला के कुंभी (8 हेक्टेयर) तथा जिला के खिरियामा (6 हेक्टेयर) प्रक्षेत्र में सोना मोती प्रभेद का बीज उत्पादन किया गया।

सोना मोती किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति है सहनशील

बिहार कृषि विभाग के सचिव अग्रवाल ने कहा कि सोना मोती किस्म के गेहूं एक पारंपरिक प्रभेद है और ऐसा माना जाता है कि यह प्रभेद हड़प्पा काल से उगाया जाता है। इस गेहूं की किस्म का दाना गोल, सुडौल तथा चमकीला होने की वजह से मोती की दानों जैसा दिखता है। उन्होंने कहा कि यह प्रभेद रोग प्रतिरोधकता के लिए अधिक प्राकृतिक होती है। गेहूं की यह किस्में प्राकृतिक रूप से पोषण और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।

क्या है गेहूं की इन किस्मों की खासियत

गेहूं की यह पारंपरिक किस्में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत होती है। पारंपरिक किस्में कम समय में पकती हैं और उच्च उत्पादकता देती हैं। ये किस्में जलवायु परिवर्तनों के प्रति सहनशील भी होती हैं। पारंपरिक किस्में अच्छी तरह से जल और पोषक तत्वों को तथा एक सामान्य औसत तापमान और मिट्टी की आवश्यकताओं को अच्छी तरह से संतुलित करती हैं। ये किस्में समय के साथ अपने पर्यावरण में अनुकूल हो गई हैं। पारंपरिक किस्में उच्च उत्पादकता के साथ भी प्राकृतिक तरीके से अपने क्षेत्र में संतुलन बनाये रखती हैं। इन किस्मों के उत्पादन में किसानों को कम खर्च और मेहनत की आवश्यकता होती हैं।

ये किस्में स्थानीय वाणिज्य और खाद्य संस्थानों को स्थानीय लोगों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति करने में मदद करती हैं। इन किस्मों की बढती मांग के कारण उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। ये किस्में बिमारियों और कीटों के प्रति प्रतिरोधशील होती हैं। पारंपरिक किस्में जीवाणु और जैविक उपचारों के बिना संरक्षित रूप से उगाई जा सकती हैं।

पारंपरिक प्रभेद स्वास्थ्य के लिए हैं लाभदायक

पारंपरिक गेहूँ के किस्म में ग्लूटेन और ग्लाइसिमिक सूचकांक कम होने के कारण यह डायबिटीज और हृदय रोग पीड़ितों के लिए काफी लाभकारी है। साथ ही, इसमें अन्य अनाजों की तुलना में कई गुना ज्यादा फोलिक एसिड नामक तत्व की मात्रा है जो रक्तचाप और हृदय रोगियों के लिए रामबाण साबित होता है। आज के इस दौर में खान–पान में गड़बड़ी और रासायनिक खाद, बीज के चलते मधुमेह और हृदय रोग से लोग ग्रसित हो रहे हैं।

किसानों को बीज सहित दी गई खेती की जानकारी

कृषि विभाग द्वारा जैविक विधि से विलुप्त होने के कगार पर पारंपरिक गेहूं की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए रबी मौसम वर्ष 2023–24 में प्रत्येक जिले में दो-दो गांवों में शुरुआत की गई। जिसमें किसानों को बीज सहित खेती के लिए आवश्यक अन्य सामग्री उपलब्ध कराई गई। सीतामढ़ी जिला में आत्मा योजना के माध्यम से प्रत्येक प्रखंड में सोना-मोती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक–एक किसान पाठशाला के माध्यम से किसानों को जानकारी दी गई। जिसमें किसानों को उपादान के रूप में बीज के अलावा एन.पी.के. क्नसोटियाँ, बोरान, माइक्रोन्यूट्रीयन्ट वर्मी कम्पोस्ट, ट्राईकोडर्मा इत्यादी उपलब्ध कराया गया।

किसानों को बीजोपचार से लेकर बुआई की जीरो टिलेज तकनीक के महत्व तथा समय–समय पर पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन तथा समेकित कीट प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण पहलुओं पर तकनीकी जानकारी प्रसार कर्मियों के माध्यम से उपलब्ध कराई गई।

किसानों को मिली बंपर पैदावार

अभी जबकि राज्य में गेहूं की कटाई जोरों पर चल रही है, ऐसे में गेहूं कटाई के प्रयोग से देखा गया है कि किसानों को इसकी बंपर पैदावार मिली है। जिसमें फसल जांच कटनी प्रयोग में सीतामढ़ी जिला के बथनाहा प्रखंड अंतर्गत ग्राम सोनमा में 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ है। तो वहीं सोना मोती प्रभेद का औसत उपज फसल जांच कटनी प्रयोग में औसतन 29 क्विंटल से लेकर 34 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ है। जिन किसानों ने सोना-मोती प्रभेद का उत्पादन किया है, वह इस उत्पादन से प्रोत्साहित है तथा गेहूं की इस पारम्परिक प्रभेद के क्षेत्र विस्तार में सहयोग के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है।

100 रुपये प्रति किलो तक मिल रही है गेहूं की क़ीमत

बिहार कृषि विभाग के मुताबिक़ सोना मोती गेहूं की बाजार में काफी मांग बढ़ रही है। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के चलते बाजार में इस किस्म की कीमत 50 रूपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा रही है। ऑनलाइन प्लेटफाँर्म्स पर भी इसकी काफी डिमांड बढ़ रही है तथा जो लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं, वह इसका आटा खाना पसंद कर रहे हैं। जिसको देखते हुए इन पारंपरिक किस्मों की खेती अगले सीजन में व्यापक पैमाने पर की जाएगी।