समस्या समाधान

फसलों में खरपतवार, कीट एवं रोग लगना आम बात है और यह फसलों को अक्सर काफी क्षति पहुंचतें हैं जिससे फसलों की उत्पादकता कम होती है | नीचे किसान भाइयों के लिए फसलों में लगने वाले सामान्य खरपतवार, कीट एवं रोग के नियंत्रण के लिए सुझाव दिए गए हैं |

आम की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवारो का नियंत्रण किस प्रकार करे?

आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा बागो में वर्ष में दो बार जुताई कर देना चाहिए इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते है इसके साथ ही साथ समय समय पर घास निकलते रहना चाहिए |

आम की फसल में लगने वाले रोग और उनका निवारण ?

आम के रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते है | जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्ड्यू यह एक बीमारी लगती है इसी प्रकार से खर्रा या दहिया रोग भी लगता है इनसे बचाने के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमार्फ़ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिडकाव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिडकाव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिडकाव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए आम की फसल को एन्थ्रक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तरालपर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिडकाव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिडकाव करना चाहिएI जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोइ परेशानी न होI इसी प्रकार से आम में गुम्मा विकार या माल्फर्मेशन भी बीमारी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागो में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दे एवम अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी. पी. एम्. रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिडकाव करना चहियेI इसके साथ ही साथ आम के बागो में कोयलिया रोग भी लगता है | जिसको की किसान भाई सभी आप लोग जानते है इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिडकाव फल लगने पर तथा दूसरा छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए जिससे की कोयलिया रोग से हमारे फल ख़राब न हो सके |

आम मै लगने वाले किट और उनका नियंत्रण किस प्रकार होना चाहिए?

आम में भुनगा फुदका कीट, गुझिया कीट, आम के छल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट, आम में डासी मक्खी ये कीट है | आम की फसल को फुदका कीट से बचाव के लिए एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिडकाव फूल खिलने से पहले करते हैI दूसरा छिडकाव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाये, तब कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिडकाव करना चाहिएI इसी प्रकार से आम की फसल को गुझिया कीट से बचाव के लिए दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में आम के तने के चारो ऒर गहरी जुताई करे, तथा क्लोरोपईरीफ़ास चूर्ण 200 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारो बुरक दे, यदि कीट पेड़ पर चढ़ गए हो तो एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 2 छिडकाव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए तथा आम के छाल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 0.5 प्रतिशत रसायन के घोल में रूई को भिगोकर तने में किये गए छेद में डालकर छेद बंद कर देना चाहिएI एस प्रकार से ये सुंडी ख़त्म हो जाती हैI आम की डासी मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग प्लाई लकड़ी के टुकडे को अल्कोहल मिथाईल एवम मैलाथियान के छः अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में घोल में 48 घंटे डुबोने के पश्चात पेड़ पर लटकाए ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दे तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल दे |

अमरूद के पौधे की कटाई, छाटाई और सघाई कब और किस प्रकार करे?

अमरुद के उत्पादन में प्रारम्भ में सघाई क्रिया पेड़ो की वृद्धि सुन्दर और मजबूत ढाचा बनाने के लिए की जाती है शुरू में मुख्य तना में जमीन से 90 सेमी० की उचाई तक कोई शाखा नहीं निकलने देना चाहिए इसके पश्चात तीन या चार शाखाये बढ़ने दी जाती है इसके पश्चात प्रति दूसरे या तीसरे साल ऊपर से टहनियों को काटते रहना चाहिए जिससे की पेड़ो की उचाई अधिक न हो सके यदि जड़ से कोइ फुटाव या किल्ला निकले तो उसे भी काट देना चाहिए | उचाई अधिक न हो सके यदि जड़ से कोइ फुटाव या किल्ला निकले तो उसे भी काट देना चाहिए |

अमरूद की फसल में लगने वाले रोग और उनका नियंत्रण किस प्रकार करना चाहिए?

अमरूद में उकठा रोग तथा श्याम वर्ण ,फल गलन या टहनी मार लगते है नियंत्रण के लिए उकठा रोग हेतु खेत साफ सुथरा रखना चाहिए अधिक पानी न लगे ,कर्वानिक खादों का प्रयोग तथा ऐसे पेड़ो को उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए अन्य रोगो हेतु रोग ग्रस्त डालियों को काटकर 0.3% का कापर आक्सीक्लोराईड के घोल का छिडकाव दो या तीन 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए |

अमरूद मै लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण ?

अमरूद की फसल मख्खियां तथा छाल खाने वाली सुडी लगाती है मख्खियां नियंत्रण हेतु ग्रसित फल प्रति दिन इकठा करके नष्ट कर देना चाहिए सम्भव हो तो बरसात की फसल न ले तथा 500 मिली लीटर मेलाथियान 50 ई. सी. के साथ 5 किलो ग्राम गुड या चीनी को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिडकाव करे यह 7 से 10 दिन के अन्तराल पर पर दुबारा करें सुडी के लिए सितम्बर अक्टूबर में 10 मिली लीटर मोनोक्रोटोफास या 10 मिली लीटर मेटासिड (मिथाइल पैराथियान ) को 10 लीटर पानी में मिलाकर तना की छाल के सूराखो के चारो ओर छाल पर लगाना चाहिए जिससे की कीट प्रभाव न करे |

केला की खेती में निराई गुड़ाई का सही समय और किस प्रकार करनी चाहिए ?

केले की फसल के खेत को स्वच्छ रखने के लिए आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए पौधों को हवा एवं धूप आदि अच्छी तरह से निराई गुड़ाई करने पर मिलता रहता है जिससे फसल अच्छी तरह से चलती है और फल अच्छे आते है |

केले की खेती में मल्चिंग कब और किस प्रकार करनी चाहिए ?

केले के खेत में प्रयाप्त नमी बनी रहनी चाहिए, केले के थाले में पुवाल अथवा गन्ने की पत्ती की 8 से 10 सेमी० मोटी पर्त बिछा देनी चाहिए इससे सिचाई कम करनी पड़ती है खरपतवार भी कम या नहीं उगते है भूमि की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है साथ ही साथ उपज भी बढ़ जाती है तथा फूल एवं फल एक साथ आ जाते है |

केले की कटाई छटाई और सहारा देना कब शुरू करना चाहिए और कैसे करना चाहिए?

केले के रोपण के दो माह के अन्दर ही बगल से नई पुत्तियाँ निकल आती है इन पुत्तियों को समय – समय पर काटकर निकलते रहना चाहिए रोपण के दो माह बाद मिट्टी से 30 सेमी० व्यास की 25 सेमी० ऊँचा चबूतरा नुमा आकृति बना देनी चाहिए इससे पौधे को सहारा मिल जाता है साथ ही बांसों को कैची बना कर पौधों को दोनों तरफ से सहारा देना चाहिए जिससे की पौधे गिर न सके |

केले की खेती में रोगों का नियंत्रण और इसमे कौन कौन से रोग लगने की संभावना रहती है?

केले की फसल में कई रोग कवक एवं विषाणु के द्वारा लगते है जैसे पर्ण चित्ती या लीफ स्पॉट,गुच्छा शीर्ष या बन्ची टाप,एन्थ्रक्नोज एवं तनागलन हर्टराट आदि लगते है नियंत्रण के लिए ताम्र युक्त रसायन जैसे कापर आक्सीक्लोराइट 0.3% का छिडकाव करना चाहिए या मोनोक्रोटोफास 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ छिडकाव करना चाहिए |

केले की खेती में लगने वाले कीट और उसका नियंत्रण हम किस प्रकार करे?

केले में कई कीट लगते है जैसे केले का पत्ती बीटिल (बनाना बीटिल),तना बीटिल आदि लगते है नियंत्रण के लिए मिथाइल ओ -डीमेटान 25 ई सी 1.25 मिली० प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिएI या कारबोफ्युरान अथवा फोरेट या थिमेट 10 जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा 25 ग्राम प्रयोग करना चाहिए |

पपीते क़ी फसल में निराई और गुड़ाई ?

लगातार सिचाई करते रहने से खेत के गढ़ढ़ो क़ी मिट्टी बहुत कड़ी हो जाती है | जिससे पौधे क़ी वृद्धि पर कुप्रभाव पड़ता है अत: हर 2-3 सिचाई के बाद थालो क़ी हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए, जिससे भूमि में हवा एवं पानी का अच्छा संचार बना रहे |

पपीते क़ी फसल के रोग और उनका नियंत्रण ?

पपीते के पौधों में मुजैक,लीफ कर्ल ,डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट, जड़ एवं तना सडन ,एन्थ्रेक्नोज एवं कली तथा पुष्प वृंत का सड़ना आदि रोग लगते हैI इनके नियंत्रण में वोर्डोमिक्सचर 5:5:20 के अनुपात का पेड़ो पर सडन गलन को खरोचकर लेप करना चाहिए अन्य रोग के लिए व्लाईटाक्स 3 ग्राम या डाईथेन एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर अथवा मैन्कोजेब या जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए अथवा कापर आक्सीक्लोराइट 3 ग्राम या व्रासीकाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए |

पपीते की खेती मै लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण

पपीते के पौधों को कीटो से कम नुकसान पहुचता है फिर भी कुछ कीड़े लगते है जैसे माहू, रेड स्पाईडर माईट, निमेटोड आदि है | नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5 मिली लीटर या फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से माहू आदि का नियंत्रण होता है |

आवंला की फसल में कौन कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण किस प्रकार करे ?

आवंला में उतक क्षय रोग तथा रस्ट बीमारी लगती हैI इनके नियंत्रण के लिए 0.4 -0.5 % बोरेक्स का छिडकाव प्रथम अप्रैल में द्वितीय जुलाई एवं तृतीय सितम्बर में उतक क्षय हेतु करना चाहिए तथा रस्ट नियंत्रण हेतु 0.2% डाईथेन जेड 78 या मैनकोजेब का छिडकाव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए |

आंवला की फसल में लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण ?

आंवला में छाल खाने वाले पत्ती खाने वाले तथा शूटगाल मेकर कीट प्रमुख हैI इनके नियंत्रण हेतु छाल वाले कीट के लिए मेटासिसटाक्स या डाईमिथोएट तथा 10 भाग मिटटी का तेल मिलकर रुई भोगोकर तना के छिद्रों में डालकर चिकनी मिटटी से बन्द कर देना चाहिएI पत्ती कीट हेतु 0.5 मिली लीटर फ़स्फ़ोमिडान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिएI तथा शूटगाल मेकर हेतु 1.25 मिली० मोनोक्रोटोफास या 0.6 मिली० फ़स्फ़ोमिडान प्रति लीटर पानी मिलकर छिडकाव करना चाहिए |

गुलाब के पौधों की कटाई छटाई यानी कि प्रूनिंग किस प्रकार करे ?

जब वर्षा न हो तब पौधे में तीन से पांच मुख्य टहनियों को 30 से 40 सेंटीमीटर रखकर कटाई की जाती हैI यह ध्यान रखना चाहिए कि जहाँ आँख हो वहाँ से 5 सेंटीमीटर ऊपर से कटाई करनी चाहिएI कटे हुए भाग को कवकनाशी दवाओ से जैसे कि कापर आक्सीक्लोराइड, कार्बेन्डाजिम, ब्रोडोमिश्रण या चौबटिया पेस्ट का लेप लगना आवश्यक होता है |

गुलाब के फूलो में कौन-कौन से रोग लगने की सम्भावना रहती है और उसकी रोकथाम ?

गुलाब में पाउडरी मिल्ड्यू या खर्रा रोग, उलटा सूखा रोग लगते हैI खर्रा रोग को रोकने हेतु गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में या डायनोकॉप एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में या ट्राइकोडर्मा एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव दवा अदल-बदल कर करना चाहिएI सूखा रोग की रोकथाम हेतु 50 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए जिससे सूखा रोग न लग सके |

गुलाब की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है और उनका नियंत्रण ?

गुलाब में माहू, दीमक एवं सल्क कीट लगते हैI माहू तथा सल्क कीट के दिखाई देने पर तुरंत डाई मिथोएट 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में या मोनोक्रोटोफास 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 -3 छिड़काव करना चाहिए | दीमक के नियंत्रण हेतु सिंचाई करनी चाहिए तथा फोरेट 10 जी. 3 से 4 ग्राम या फ़ालीडाल 2% धुल 10 से 15 ग्राम प्रति पौधा गुड़ाई करके भूमि में अच्छी तरह मिला देना चाहिए |

मिर्च मे खरपतवार का निराकरण कैसे करे?

रोपाई करने के बाद एक हप्ते बाद सिचाई करते है, ओट आने के बाद निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए, जिससे की खरपतवार हमारी फसल में न रहे और आवश्यकता पड़ने पर 15 से 20 दिन पर निराई गुड़ाई करके खेत को खरपतवार से साफ रखना चाहिए |

मिर्च की फसल में रोग उत्पन हो जाते है या कीट लग जाते है उनकी सुरक्षा किस प्रकार से करे?

मिर्च की फसल में मोजेक बहुत ज्यादा लगता है , जिसे हम लीफ कर्ल के नाम से पुकारते है ,यह मोजेक वाइट फलाई सफ़ेद मख्खी से फैलता है ,इसके नियंत्रण के डाइथेनियम ४५ अथवा  डाइथेनियम जेड ७८ तथा मेटा सिसटक १ लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से खड़ी फसल  में छिडकाव करना चाहिए इसके बचाव के लिए लगातार १० से १५ दिन पर छिडकाव करते रहना चाहिए जिससे की हमारी फसल अच्छी पैदावार दे सके |

गन्ने की फसल में निराई एवं गुड़ाई और खरपतवार का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें?

गन्ने के पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध करने हेतु तथा खरपतवार नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए ग्रीष्म काल में प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई फावड़ा, कस्सी या कल्टीवेटर से करना लाभदायक होता है, इसके साथ-साथ खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद या एक या दो दिन बाद पैंडेमेथीलीन 30 ईसी की 3.3 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 700-800 लीटर  पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए जिससे कि खरपतवार गन्ने के खेत में उग ही ना सकें |

गन्ने की फसल को गिरने से बचाने हेतु मिटटी कब और कैसे चढाई जाती है?

गन्ने के पौधों या थान की जगह जड़ पर जून माह के अंत में हल्की मिटटी चढ़ानी चाहिए, इसके बाद जब फसल थोड़ी और बढवार कर चुके तब जुलाई के अंत में दुबारा पर्याप्त मिटटी और चढ़ा देना चाहिए, जिससे की वर्षा होने पर फसल गिर ना सके |