अधिक उत्पादन के लिए पॉलीहाउस में खेती करना हुआ आसन, वैज्ञानिकों ने विकसित की नई पॉलीहाउस तकनीक

नई पॉलीहाउस तकनीक

किसानों को अत्यधिक या अपर्याप्त ठंड, गर्मी, बारिश, हवा, और अपर्याप्त वाष्पोत्सर्जन एवं कीट रोगों के चलते फसल का काफी नुकसान उठाना पड़ता है | इसके आलवा खुले वातावरण में किसान सभी तरह की फसलों की खेती नहीं कर सकते हैं | इससे बचाव के लिए पॉलीहाउस में किसी भी मौसम में बाजार की मांग के अनुसार खेती की जा सकती हैं | जिससे फसलों के अच्छे दाम मिलते हैं और अधिक मुनाफा होता है | परन्तु पारंपरिक पॉलीहाउस में कई कमियां हैं जिन्हें दूर करने के लिए नए तरह के पालीहाउस तकनीक को विकसित किया गया है |

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमईआरआई), दुर्गापुर के निदेशक डॉ. (प्रो.) हरीश हिरानी ने पंजाब के लुधियाना में “नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस फैसिलिटी” का उद्घाटन किया और “रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस” की आधारशिला रखी।

अभी के पारंपरिक पालीहाउस में क्या है कमियाँ

प्रोफेसर हिरानी ने प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि किसानों को अत्यधिक या अपर्याप्त ठंड, गर्मी, बारिश, हवा, और अपर्याप्त वाष्पोत्सर्जन से जुड़े अन्य कारकों जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और साथ ही भारत में कीटों के कारण भी वर्तमान में लगभग 15 प्रतिशत फसल का नुकसान होता है तथा यह नुकसान बढ़ सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन कीटों के खिलाफ पौधों की रक्षा प्रणाली को कम करता है। पारंपरिक पॉलीहाउस से कुछ हद तक इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है।

पारंपरिक पॉलीहाउस में मौसम की विसंगतियों और कीटों के प्रभाव को कम करने के लिए एक स्थिर छत होती है। छत को ढंकने के अब भी नुकसान हैं जो कभी-कभी अत्यधिक गर्मी और अपर्याप्त प्रकाश का कारण बनते हैं। इसके अलावा, वे कार्बन डाईऑक्साइड, वाष्पोत्सर्जन और जल तनाव के अपर्याप्त स्तर के लिहाज से भी संदेवनशील होते हैं। खुले क्षेत्र की स्थितियों और पारंपरिक पॉलीहाउस स्थितियों का संयोजन भविष्य में जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिहाज से एक ज्यादा बेहतर तरीका है।

क्या है रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमईआरआई) एक्सटेंशन सेंटर लुधियाना में एक “रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी” स्थापित कर रहा है। हर मौसम में काम करने के लिहाज से उपयुक्त इस प्रतिष्ठान में ऑटोमैटिक रिट्रैक्टेबल रूफ (स्वचालित रूप से खुलने-बंद होने वाली छत) होगी जो पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डेटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों के आधार पर संचालित होगी। इस प्रौद्योगिकी से किसानों को मौसमी और गैर-मौसम वाली दोनों ही तरह की फसलों की खेती करने में मदद मिलेगी। यह पारंपरिक खुले मैदानी सुरंगों और प्राकृतिक रूप से हवादार पॉली हाउस की तुलना में इष्टतम इनडोर सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों का निर्माण करके उच्च उपज, मजबूत और उच्च शेल्फ-लाइफ उपज प्राप्त कर सकता है, और साथ ही यह जैविक खेती के लिए व्यवहार्य प्रौद्योगिकी भी है।

इस प्रौद्योगिकी के विकास में लगे अनुसंधान दल का नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री जगदीश माणिकराव ने बताया कि रिट्रैक्टेबल रूफ का उपयोग सूर्य के प्रकाश की मात्रा, गुणवत्ता एवं अवधि, जल तनाव, आर्द्रता, कार्बन डाई-ऑक्साइड और फसल एवं मिट्टी के तापमान के स्तर को बदलने के लिए किया जाएगा। यह मौसम की जरूरतों और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) पर आधारित होगा तथा सक्षम किसान अनुकूल यूजर इंटरफेस प्रदान करेगा।

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80 प्रतिशत की सब्सिडी पर कृषि यंत्र बैंक की स्थापना हेतु आवेदन करें

अनुदान पर कृषि यंत्र बैंक की स्थापना हेतु आवेदन

कृषि में लागत राशि कम करने तथा कम समय में एक से अधिक काम करने के लिए कृषि यंत्रों की उपयोगिता बढती जा रही है | इसमें फसलों की बुआई के तैयारी से लेकर फसल कटाई एवं फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्र शामिल है | पर देश में कृषि का रकबा छोटा होने के कारण सभी किसानों के लिए कृषि यंत्रों को खरीद पाना संभव नहीं है | ऐसे में सरकार ने सभी किसानों तक कृषि यंत्र पहुँचाने के लिए कृषि यंत्र बैंक की स्थापन हेतु सब्सिडी दे रही है जिससे सभी किसान कृषि यंत्र का उपयोग कर सकें |

बिहार जैसे अधिक घनत्व वाले राज्य में कृषि रकबा छोटा है | इसलिए यहाँ पर सभी किसानों को कृषि यंत्र खरीदना संभव नहीं है | इसको ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने राज्य के किसानों के लिए सब्सिडी पर कृषि यंत्र उपलब्ध करा रही है | यह कृषि यंत्र, कृषि बैंक की स्थापना के लिए है | जिससे किसान अपनी खेती कर सकते हैं तथा किराये पर दुसरे किसानों को भी देकर रोजगारों का सृजन कर सकते हैं |

कृषि यंत्र बैंक योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी

बिहार सरकार राज्य के 13 जिलों के 164 प्रखंडों में कृषि बैंक की स्थापना करने के लिए सब्सिडी उपलब्ध करा रही है | इस योजना के तहत लाभार्थी को 80 प्रतिशत की सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है | इस योजना के तहत लाभार्थी अधिकतम 10 लाख रूपये तक के कृषि यंत्र खरीद सकते है तथा इस पर राज्य सरकार 80 प्रतिशत की सब्सिडी उपलब्ध करा रही है | यानि लाभार्थी को अधिकतम 8 लाख रूपये की सब्सिडी दी जाएगी | इससे ज्यादा के कृषि यंत्र खरीदने पर भी अधिकतम 8 लाख रूपये तक का ही अनुदान प्राप्त होगा |

इन जिलों के किसान कर सकते हैं योजना के तहत आवेदन

बिहार में कृषि बैंक स्थापना के लिए 13 जिलों का चयन किया गया है | इन 13 जिलों के किसान समूह तथा अन्य समूह आवेदन कर सकते हैं | यह 13 जिले इस प्रकार हैं :- अररिया, औरंगाबाद, बाँका, बेगुसराय, गया, जमुई, कटिहार, खगड़िया, मुज्जफरपुर, नवादा, पूर्णिया, शेखपुरा एवं सीतामढ़ी | इन जिलों के 164 प्रखंडों में योजना लागू किया गया है |

योजना के तहत पात्रता

बिहार में छोटे भूमि वाले किसान हैं | यहाँ पर लघु तथा सीमांत किसानों की संख्या ज्यादा है इसलिए इस योजना का लाभ किसी एक किसान को नहीं दिया जा रहा है | योजना के लिए जीविका के समूह / ग्राम संगठन / क्लस्टर फेडरेशन, आत्मा से सम्बद्ध फार्मर्स इंट्रेस्ट ग्रुप (FIG), नाबार्ड / राष्ट्रीयकृत बैंक से संबद्ध किसान क्लब, farmer, producer organization (FAP) एवं स्वयं सहायता समूह को कृषि यंत्र बैंक स्थापित करने के लिए पात्र हैं |

ग्रामों का चयन (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 से अधिक जनसंख्या वाले ग्राम) पिछडापन के आधार पर जिला प्रशासन द्वारा किया जाना है |

किसान अनुदान पर कृषि यंत्र लेने के लिए कब कर सकते हैं आवेदन

कृषि यंत्र बैंक की स्थापना के लिए ऑनलाइन आवेदन 2 अगस्त 2021 से आवेदन शुरू हो रहें है | किसान समूह तथा अन्य प्रकार के समूह / संगठन इस योजना के लिए 31 अगस्त 2021 तक आवेदन कर सकते हैं |

सब्सिडी पर कृषि यंत्र बैंक की स्थापना आवेदन कहाँ से करें ?

बिहार में कृषि यंत्र अनुदान हेतु ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया है इसके लिए किसान को पहले बिहार सरकार के कृषि विभाग के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण DBT पर पंजीकरण होना अनिवार्य है | पंजीकरण के बाद किसानों को जो पंजीकरण संख्या प्राप्त होगी उसकी मदद से किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं | कृषि यंत्रों पर अनुदान प्राप्त करने के लिए आवेदन कृषि विभाग के वेबसाईट http://farmech.bih.nic.in/FMNEW/Homenew.aspx पर कर सकते हैं | इस योजना से जुडी विशेष जानकारी के लिए संबंधित जिले के सहायक निदेशक (कृषि अभियंत्रण)/ जिला कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर सकते हैं |

कृषि यंत्र बैंक स्थापना हेतु ऑनलाइन आवेदन के लिए क्लिक करें

इस तरह करें कपास की चित्तीदार सूंडियों की पहचान एवं नियंत्रण

कपास की चित्तीदार सूंडियों की पहचान एवं नियंत्रण

भारत में कपास की खेती मुख्यतः नगदी फसल के रूप में की जाती है | देश में मुख्यतः देसी एवं अमेरिकन कपास की बुआई की जाती है | अमेरिकन कपास में ज्यादातर बीटी हाइब्रिड का प्रयोग होता है जो की कपास की टिंडे की सूंडियों के प्रति सहनशील होती है जबकि देसी कपास में सूंडियों का प्रकोप अधिक होता है | इन सूंडियों में सबसे अधिक अमेरिकन सूंडी, चित्तीदार सूंडी एवं गुलाबी सूंडी का प्रकोप सबसे अधिक होता है | इन सूंडियों का प्रकोप को सही समय पर नियंत्रण न किया जाये तो कपास की फसल को काफी नुकसान पहुँचता है | किसान समाधान चित्तीदार सूंडियों को कैसे नियंत्रित किया जाये इसकी जानकारी लेकर आया है |

ऐसे पहचानें चित्तीदार सूंडी को

सुबह-सुबह अपने खेत का निरिक्षण करें तथा खेत में 4–5 जगह से नीचे गिरी 100 फूल ड़ोंडियां उठाकर देखें | यदि इन फुल डोंडियों पर छेद व सूंडी का मल दिखाई पड़ता है, तो फसल में चित्तीदार सूंडी का आक्रमण हो सकता है |

कपास में चित्तीदार सूंडी के लक्षण

चित्तीदार सूंडी कपास, भिंडी, गुड़हल के अलावा कुछ अन्य फसलों पर अपना जीवनचक्र पूरा करती है | उत्तर भारत में इसकी दो प्रजातियों में से “इरियास इंसुलाना” ज्यादा प्रबल है | दोनों प्रजातियों के नुकसान का तरीका एक जैसा है | चित्तीदार सूंडी का प्रयोग फसल की बिजाई के 3 सप्ताह बाद ही शुरू हो जाता है | फल–फूल आने से पहले चित्तीदार सूंडी तने के उपरी भाग पर आक्रमण करके उसमें छिद्र कर देती है |

पौधे के उपरी हिस्सों को नुकसान होने के कारण कई बार पौधा ऊपर से सूख जाता है | इसके द्वारा नुकसान की गई फूल डोंडियाँ दूर से ही पहचानी जा सकती हैं | फूल बनने से पहले ही उनकी पंखुड़िया फैली हुई नजर आ जाती हैं | कपास में चित्तीदार सूंडी के प्रकोप से फूल ड़ोंडिया अपने आप को एक ही टिंडे/फूल/कली तक सिमित न रखते हुए एक से ज्यादा टिंडे/फूल/कली को नुकसान पहुँचाती हैं | नुकसान किये गए टिंडे/कली पर इसका मलमूत्र साफ़ दिखाई पड़ता है | टिंडा दुसरे कीटाणुओं के आक्रमण का शिकार हो जाता है| देसी कपास में चित्तीदार सूंडी के प्रकोप से फूल डोंडियों से टिंडे पुरे बड़े आकार के नहीं बनते और टिंडे लगातार नीचे गिरते रहते हैं | इसके कारण फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है |

कपास में चित्तीदार सूंडी का नियंत्रण

खेत में नीचे गिरी 100 फूल डोंडियों में से 5 फूल डोंडियों पर चित्तीदार सूंडी का प्रकोप हो, तो इसकी रोकथाम के लिए छिडकाव करने की जरूरत है | सूंडी के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों का छिडकाव करें :-

  1. चित्तीदार सूंडी के निरीक्षण के लिए खेत में स्लीव या मोथ कैच 2 फेरोमोन ट्रैप प्रति हैक्टेयर लगाने चाहिए, ताकि किसान, सूंडियों के प्रकोप को समय पर पहचान लें | अगर नुकसान के लक्ष्ण दिखाई देते हैं, तो एक या दो छिड़काव नीम आधारित कीटनाशक जैसे कि निम्बेसिडिन 1.0 लीटर + 1 ग्राम डिटर्जेंट पाउडर प्रति लीटर पानी की दर से 200 लीटर पानी का घोल बनाकर एक एकड में करने चाहिए | ये सभी रस चूसकर कीट व सूंडियों की संख्या कम करने में सहायक होते हैं |
  2. जब भी फसल में 10 प्रतिशत पौधों पर फूल डोडी व फूल दिखाई देने लग जाएं या जुलाई के पहले सप्ताह में बचाव के टूर पर सिंथेटिक पायरीथ्राइड जैसे–फेनप्रोपेथरीन 10 ई.सी./300 एम.एल या डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई.सी./160 एम.एल या फेनवलरेट 20 प्रतिशत ई.सी./100 एम.एल. या साइपरमेथरीन 25 प्रतिशत ई.सी./80 एम.एल. प्रति एकड़ की दर से छिडकाव कर देना चाहिए |
  3. इसके बाद भी सूंडी का प्रकोप रहता है तो ही अगला छिडकाव करें | जैसे – स्पाइनोसेड 48 एस.सी./75 एम.एल. या फ्लूबेंडीयामाइड 480 एस.सी./ 40 एम.एल. या इडोक्साकार्ब 15 प्रतिशत ई.सी./ 200 एम.एल. प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें | इसके अलावा प्रोफेनोफाँस 50 ई.सी./500 एम.एल. या इथियोन 50 ई.सी. / 800 एम.एल. प्रति एकड़ की दर से छिडकाव कर सकते हैं | इससे चित्तीदार सूंडी के साथ–साथ सफेद मच्छर व मिलीबग नियंत्रण करने में सहायता मिलती है |

सावधानियां

  • एक ही कीटनाशक का छिडकाव बार–बार नहीं करना चाहिए | देसी कपास में चित्तीदार सूंडी के लिए सिंथेटिक पायरीथ्राइड का प्रयोग करना उचित है | नाँन बीटी अमेरिकन कपास में इसका प्रयोग सफेद मच्छर के प्रकोप को ध्यान में रख कर करें |
  • छिडकाव करने के 24 घंटे के अंदर वर्षा होने पर छिड़काव दोबारा करें |
  • कपास की फसल 2–4 डी के प्रति बहुत संवेदनशील है | इसलिए 2 – 4 डी के छिडकाव करने में काम में लिए गए छिडकाव यंत्रों का प्रयोग करें | कीटनाशकों के मिश्रण का प्रयोग करने से बचें |

10 लाख रुपये तक की सब्सिडी पर कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना हेतु किसान अब 6 अगस्त तक कर सकेंगे आवेदन

कस्टम हायरिंग सेंटर सब्सिडी हेतु आवेदन लास्ट डेट

निजी कस्टम हायरिंग सेण्टर

सभी किसानों को सुगमता पूर्वक सभी प्रकार के कृषि यंत्रों का लाभ मिल सके इसके लिए सरकार द्वारा ट्रेक्टर सहित अन्य सभी प्रकार के कृषि यंत्रों के लिए कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना की जा रही है | योजना के तहत निजी क्षेत्र में सब्सिडी पर कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना हेतु मध्यप्रदेश सरकार ने ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किये हैं | योजना के तहत अधिक से अधिक किसान आवेदन कर सकें इसके लिए सरकार ने अंतिम तिथि को 7 दिन आगे बढ़ा दिया है |

कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापना के लिए कब तक कर सकेगें आवेदन ?

वर्ष 2021-22 के लिये निजी क्षेत्र में कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना हेतु ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि दिनांक 30 जुलाई 21 थी। योजनान्तर्गत अब ऑनलाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि को 7 दिन आगे बढ़ा दिया गया है जिससे इच्छुक व्यक्ति जो अभी तक आवेदन नहीं कर सकें वह किसान अब 06 अगस्त 2021 ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं |

क्या है कस्टम हायरिंग केंद्र योजना (CHC)

CHC योजना के तहत कुल लागत 25 लाख रूपये रखी गई है | योजना के तहत कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने के लिए किसानों को 40 प्रतिशत अधिकतम 10 लाख तक का “क्रेडिट लिंक्ड बेक एंडेड” अनुदान दिया जा रहा है | अनुदान की गणना सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मेकेनाइजेशन योजना में प्रत्येक यंत्र हेतु दिए गए प्रावधान के अनुसार दिया जायेगा | इसके अलावा इस योजना पर 3 प्रतिशत का अतिरिक्त ब्याज अनुदान भी लाभार्थी किसानों को दिया जायेगा |

कस्टम हायरिंग केंद्र योजना की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें

कस्टम हायरिंग सेंटर हेतु जिलेवार लक्ष्य

वित्त वर्ष 2021–22 के लिए कस्टम हायरिंग योजना प्रदेश के सभी जिलों के लिए लागू की गई है | इस वर्ष प्रदेश में सभी वर्गों को मिलाकर 416 कस्टम हायरिंग सेंटर बनाएं जाएंगे | जिले के अनुसार सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए अलग–अलग लक्ष्य जारी किये गए है | प्रदेश के सभी जिलों के लिए सामान्य वर्ग के लिए 6, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए 1–1 कस्टम हायरिंग सेंटर का लक्ष्य रखा गया है |

कस्टम हायरिंग सेंटर अनुदान हेतु आवेदन कहाँ करें ? 

शासन द्वारा राज्य के किसानों से कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना के लिए ऑनलाइन आवेदन पात्र संचनालय कृषि अभियांत्रिकी के पोर्टल www.chc.mpdage.org के माध्यम से कर सकते हैं | किसान योजना से जुडी अन्य जानकारी अपने संभाग या जिले के कृषि यंत्री या कृषि विभाग से ले सकते हैं | इसके आलवा इच्छुक व्यक्ति मध्यप्रदेश के कृषि अभियांत्रिकी संचनालय के फोन नम्बर  0755-4935001 पर भी कॉल कर सकते हैं |

सब्सिडी पर कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापना हेतु आवेदन करने के लिए क्लिक करें

2 लाख मीट्रिक टन ग्रीष्मकालीन मूंग की फिर से शुरू होगी समर्थन मूल्य पर खरीद

ग्रीष्मकालीन मूंग की MSP पर खरीद

ग्रीष्मकालीन फसलों में मूंग की खेती सबसे ज्यादा होती है | मध्यप्रदेश में इस वर्ष जायद मूंग का उत्पादन बहुत अधिक हुआ है | इस वर्ष किसानों ने राज्य में 6 लाख 82 हजार हैक्टेयर भूमि में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती की थी | जिसमें 12 लाख 16 हजार मीट्रिक टन मूंग का उत्पादन हुआ है | किसानों को उचित मूल्य मिल सके इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी करने का फैसला किया था | जिसके तहत राज्य के 2 लाख 32 हजार किसानों ने पंजीयन किया है |  

किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल ने कहा है कि केंद्र सरकार ने राज्य में 1 लाख 34 हजार मीट्रिक टन मूंग की खरीदी की अनुमति ही दी थी जबकि राजस्व विभाग द्वारा किये गये सर्वे अनुसार प्रदेश में 12 लाख 16 हजार मूंग का उत्पादन हुआ है। जिससे राज्य के ज्यादातर किसान MSP पर मूंग बेचने से वंचित रह गए है |

2 लाख मीट्रिक टन की और खरीदी के लिए मांगी गई अनुमति

राज्य के अधिक से अधिक किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की उपज बेच सके इसको लेकर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के पास 2 लाख मीट्रिक टन मूंग खरीदने की अनुमति मांगी है | ताकि अधिकांश किसान अपनी मूंग समर्थन मूल्य पर बेच सकें | कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी के लिये सभी आवश्यक उपाय किये जायेंगे।

30 जिलों के किसानों को होगा लाभ

अगर मूंग की खरीदी शुरू होती है तो राज्य के 30 जिलों के किसानों को लाभ मिलेगा | भारत द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर ग्रीष्मकालीन मूंग को पहले 27 जिलों के किसान बेच सकते थे लेकिन बाद में इसमें भोपाल, बुरहानपुर तथा श्योपुरकला जिलों को भी अब जोड़ दिया गया है | जिससे जिलों की संख्या 30 हो जाती है | यदि केंद्र सरकार अधिक मूंग खरीदी की अनुमति देती है तो इन जिलों के किसानों को लाभ मिलेगा |

क्या है मूंग का समर्थन मूल्य भाव

मध्य प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है | ग्रीष्मकालीन मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7196 रूपये प्रति क्विंटल है |

5 लाख रुपये तक का गोपाल रत्न पुरस्कार प्राप्त करने के लिए अभी आवेदन करें

गोपाल रत्न पुरस्कार हेतु आवेदन

कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र में अच्छा कार्य करने वाले किसानों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से किसानों को विभिन्न योजना के तहत पुरस्कार दिया जाता है | यह पुरस्कार राज्यों में विभन्न स्तरों एवं राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाता है | केन्द्रीय पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा पशुपालक एवं डेयरी किसानों को यह पुरस्कार देने के लिए “राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना चलाई जा रही है | जिसके तहत देश में डेयरी किसानों को नवाचार करने के लिए पुरस्कृत किया जाता है |इससे किसानों का पशुपालन के प्रति उत्साह बना रहता है |

इस वर्ष भी किसानों को दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कृत्रिम गर्भधान तकनीशियनों को 100 प्रतिशत एआई कवरेज लेने तथा सहकारी एवं दुग्ध उत्पादक कंपनियों के मध्य प्रतिस्पर्धा भावना पैदा करने के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है | इस योजना से जुडी सभी प्रकार की जानकारी किसान समाधान लेकर आया है |

तीन श्रेणियों में दिए जाएंगे पुरस्कार

योजना के तहत पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र में तीन श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाने हेतु आवेदन आमंत्रित किये गए हैं | यह श्रेणियां इस प्रकार है:-

  1. सर्वश्रेष्ठ डेयरी किसान जो देसी गायों का पालन करते हैं,
  2. कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन (AI),
  3. डेयरी सहकारिता/ दुग्ध उत्पादक कंपनी/ डेयरी किसान उत्पादक संगठन |

गोपाल रत्न पुरस्कार हेतु पात्रता

इस योजना का लाभ राज्य के डेयरी किसानों, सर्वश्रेष्ठ कृत्रिम गर्भधान तकनीशियन और सहकारी एवं दुग्ध उत्पादक कंपनियों के द्वारा प्रमाणित 50 नस्लों के गाय अथवा 17 देशी प्रमाणित नस्लों में से किसी एक का पालन कर डेयरी करने वाले किसान इसके लिए पात्र होंगे |

इसी प्रकार सर्वश्रेठ कृत्रिम गर्भधान तकनीशियन पुरस्कार के लिए 90 दिन का प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए राज्य पशुधन विकास बोर्ड, दुग्ध फेडरेशन, गैर सरकारी संगठन एवं निजी क्षेत्र के कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन पात्र होंगे |

दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सहकारी एवं कंपनी अधिनियम के तहत ग्राम स्तर पर स्थापित कम से कम 50 किसान सदस्यों एवं प्रतिदिन 100 लीटर दूध का उत्पादन करने वाली सहकारी समिति, एमपीसी, एफपीओ एवं दुग्ध उत्पादक कम्पनी पात्र होंगे |

कितना पुरस्कार दिया जायेगा ?

देश के पशुपालकों को राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के तहत “गोपाल रत्न पुरस्कार दिया जा रहा है | इसके तहत राज्य के पशुपालकों को तीन श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाएंगे | प्रथम पुरस्कार में 5 लाख रूपये, दिव्तीय पुरस्कार में 3 लाख रूपये,  तृतीये पुरस्कार में 2 लाख रूपये दिये जाएंगे |

गोपाल रत्न पुरस्कार योजना के तहत कब आवेदन करें ?

योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन मांगे गए हैं | देश के किसान इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए 15 सितम्बर शाम 5 बजे तक आवेदन कर सकते हैं | योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन अभी चल रहें हैं | पात्र व्यक्ति अभी ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं | योजना के तहत चयनित पशुपालकों को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर 26 नवम्बर को समारोह आयोजित कर पुरस्कार प्रदान करेगी |

गोपाल रत्न योजना के तहत आवेदन कहाँ करें

राष्ट्रीय गोकुल मिशन एक देशव्यापी योजना है, योजना के तहत देश के सभी राज्यों के व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं | योजना के लिए आवेदन केंद्रीय पशुपालन एवं डेयरी विभाग के द्वारा आमंत्रित किये गए हैं | किसी भी राज्य के इच्छुक कृत्रिम गर्भधान तकनीशियन और सहकारी एवं दुग्ध उत्पादक कम्पनियां www.dahd.nic.in पर जाकर आवेदन कर सकते हैं | इच्छुक व्यक्ति अधिक जानकारी के लिए मंत्रालय के टोल फ्री नंबर  011-23383479 पर कॉल कर सकते हैं |

गोपाल रत्न पुरस्कार हेतु आवेदन करने के लिए क्लिक करें

40 प्रतिशत के अनुदान पर लगायें बायो गैस प्लांट

बायोगैस प्लान्ट स्थापित करने के लिए अनुदान

बायोगैस के पर्यावरण के लिए किसी भी प्रकार का नुकसान देय नहीं रहने तथा गंधहीन, और धुँआ रहित के कारण इसकी उपयोगिता बढ़ गई है | इस गैस से 55 से 70 प्रतिशत तक मीथेन गैस निकलती है जो ज्यादा ज्वलनशील है | इसको ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार राज्य में बायोगैस को बढ़ावा देने के लिए अनुदान दे रही है | इसके तहत डेयरी किसान तथा गौशाला संचालक बायोगैस प्लांट बनाकर बायोगैस तथा जैविक खाद का उत्पादन कर सकते हैं |

बायो गैस/ गोबर गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी

हरियाणा के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग एवं हरेडा ने गोशालाओं व डेयरियों में संस्थागत बायोगैस प्लान्ट लगाने के लिए सब्सिडी दे रही है | इसके तहत पांच प्रकार के बायोगैस प्लांट को शामिल किया गया है | जिसके तहत 25 क्यूबिक मीटर, 35 क्यूबिक मीटर, 45 क्यूबिक मीटर, 60 क्यूबिक मीटर व 85 क्यूबिक मीटर क्षमता तक के संस्थागत बायोगैस प्लान्ट स्थापित करने पर सरकार द्वारा 40 प्रतिशत का अनुदान उपलब्ध करवाया जा रहा है।

योजना का लाभ लेने के लिए कहाँ आवेदन करें ?

इस योजना के लिए राज्य के गौशाला व डेयरी का संचालक आवेदन कर लाभ उठा सकते हैं | आवेदक योजना के लिए जिला के अतिरिक्त उपयुक्त कार्यालय में आवेदन कर सकते हैं | योजना का लाभ “पहले आव – पहले पाँव” के आधार पर दिया जाएगा |

बायो गैस से लाभ

प्रदूषण मुक्त तथा गंध तथा धुंआ रहित गैस के रूप में बायो गैस उपयुक्त है | इससे गैस के साथ ही जैविक खाद भी प्राप्त होता है | बायोगैस बनाने के लिए हरियाणा उपयुक्त राज्य है | हरियाणा में लगभग 7.6 लाख पशु है, जिनसे 3.8 लाख क्यूबिक मीटर बायोगैस उत्पन्न कर सकते हैं | इस 3.8 लाख क्यूबिक मीटर बायोगैस से 300 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है | 100 पशुओं से लगभग 10 क्विंटल गोबर प्राप्त होता है, जिससे लगभग 50 क्यूबिक मीटर गैस प्राप्त हो सकती है |

किसानों को अदरक, प्याज, लहसुन आदि मसाला फसलों के उन्नत किस्मों के बीजों को उपलब्ध करवाया जायेगा

फसलों के उन्नत बीज की खरीद

किसानों की आय दुगना करने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा वर्ष 2020 में “एक जिला-एक उत्पाद कार्यक्रम” की शुरुआत की गई है | इसके तहत किसानों को एक जिले में एक तरह की फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है | इस योजना के तहत सब्जियों, मसाला तथा फलों की खेती तथा भंडारण और प्रोसेसिंग पर बल दिया जा रहा है | मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों की आय बढ़ाने के लिए एक जिला एक उत्पाद के तहत जिलों का चयन कर लिया है |

किसानों को इन फसलों के उन्नत बीज उपलब्ध करवाने के लिए उद्यानिकी विभाग फल, सब्जी और मसाला फसलों की उन्नत किस्म के बीजों को खरीदेगा और किसानों को उपलब्ध करवाएगा। उद्यानिकी एवं खाद्य प्र-संस्करण (स्वतंत्र प्रभार) राज्य मंत्री श्री भारत सिंह कुशवाह ने 17 जिलों के सब्जी, फल मसाला फसलों के उत्पादक किसानों से वर्चुअली संवाद करने के बाद अधिकारियों को यह निर्देश दिये।

यहाँ से ख़रीदे जाएंगे उन्नत किस्मों के बीज

प्रदेश के 52 जिलों में जिन जिलों को मसाला खेती, सब्जी खेती और फल की खेती के लिये चुना गया है। मसाला फसलों के उत्पादक किसानों ने कहा कि केरल, असम और अन्य राज्यों में उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध रहते है। इस पर राज्यमंत्री श्री कुशवाह ने कहा कि किसानों को जिस प्रजाति और किस्म का बीज चाहिए है । वह उपलब्ध कराया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि इन राज्यों से मसाला फसलों और सब्जी के बीजों को विभाग खरीदे और किसानों को उपलब्ध करायें।

एक जिला एक उत्पाद के तहत इन मसालों तथा फलों को पंजीयन किया गया है

केंद्र सरकार के द्वारा शुरू की गई योजना “एक जिला एक उत्पाद” के तहत मध्य प्रदेश के जिलों के अनुसार इन सभी फल, सब्जी और मसाला फसलों की उन्नत किस्म को पंजीयन किया गया है |

  1. अदरक – बड़वानी, टीकमगढ़, निवाड़ी
  2. लहसुन – मंदसौर, रतलाम
  3. हरी मिर्च – खरगौन
  4. हल्दी – रीवा एवं शहडोल
  5. धनिया – गुना और नीमच
  6. सीताफल – अलीराजपुर, धार, सिवनी
  7. आम – अनुपपुर, बैतूल, सीधी, सिंगरौली एवं उमरिया
  8. अमरुद – भोपाल, होशंगाबाद, सीहोर, श्योपुर
  9. केला – बहरानपुर
  10. संतरा – आगरा – मालवा, राजगढ़
  11. आंवला – पन्ना
  12. प्याज – हरदा, खण्डवा, शाजापुर, विदिशा और उज्जैन

उल्लेखनीय है कि राज्य में कस्टम प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना के लिए मध्य प्रदेश सरकार किसानों को भारी सब्सिडी भी दे रही है | किसानों से तथा किसान समूहों से 4 अगस्त तक ऑनलाइन आवेदन मांगे गए है | योजना के तहत किसानों तथा किसान समूहों को 10 लाख रूपये तक की सब्सिडी दी जा रही है |

गन्ने की खेती का आदर्श मॉडल अपनाने वाले किसान ‘उत्तम गन्ना कृषक’ की उपाधि से होंगे सम्मानित

गन्ने की खेती का आदर्श मॉडल

किसानों की आमदनी दूगना करने के लिए यह जरुरी है कि कृषि लागत को कम किया जाए और फसल के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जाए इसके अतिरिक्त किसानों को उपज का सही मूल्य मिले | फसल उत्पाद का मूल्य बहुत कुछ बाजार पर निर्भर करता है | ऐसे में यह जरुरी बन जाता है की किसान कृषि लागत को कम करे | कृषि में उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरुरी है कि किसान फसल उत्पादन की नई तकनीकों को अपनाएं जैसे- सहफसली खेती, सिंचाई की नवीनतम तकनीक आदि |

उत्तरप्रदेश राज्य सरकार ने किसानों को कृषि की नई तकनीके अपनाने एवं कृषि लागत को कम करने वाले किसानों को सम्मानित करने का फैसला लिया है | जिसके तहत ऐसे किसान जो आदर्श तरीके से नई तकनीक को अपनाकर गन्ने की खेती करेंगे उन्हें सम्मानित किया जायेगा |

गन्ने की खेती के लिए पंचामृत नाम से नई तकनीक की शुरुआत

राज्य के गन्ना विकास विभाग ने अनेक कदम उठाने जा रही है | सरकार ने गन्ने की खेती के लिए नई तकनीकों को समन्वित कर खेती करने के लिए योजना शुरू की है इन तकनीकों “पंचामृत” का नाम दिया गया है | गन्ने की खेती के लिए समन्वित रूप से ट्रैंच प्लांटिंग, सहफसली खेती, रैटून मेनेजमेंट, ट्रैश मल्चिंग एवं ड्रिप सिंचाई जैसी नवीन तकनीकों को अपनाया जायेगा | इस प्रकार समन्वित प्रबन्धन करते हुए पंचामृत पद्धत्तियों के माध्यम से जिन प्लाटों पर खेती की जाएगी उन्हें “आदर्श माँडल” के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा |

आधुनिक पद्धतियों से गन्ने की खेती करने से होने वाले लाभ

गन्ने की खेती में आधुनिक तकनीकी पद्धतियों को समन्वित रूप से अपनाने से गन्ने की उत्पादन लागत में कमी आएगी तथा गन्ने की उपज में बढ़ोत्तरी के साथ–साथ पानी की बचत, भूमि की उर्वरता शक्ति में वृद्धि एवं बाजार तथा घरेलू मांग के अनुसार खाद्धान्न, दलहन, तिलहन, शाक–भाजी आदि फसलों का उत्पादन जैसे अनेक लाभ होंगे |

किसानों को “उत्तम गन्ना कृषक” उपाधि से किया जायेगा सम्मानित

ऐसे किसान जो अपने गन्ने के खेतों में ट्रेंच विधि से बुवाई, सफसली खेती एवं ड्रिप के प्रयोग एक ही खेत पर शुरू करेंगे उन सफल कृषकों को विभागीय योजनाओं तथा कार्यक्रमों के अंतर्गत उपज बढ़ोत्तरी में प्राथमिकता तथा “उत्तम गण कृषक” का प्रमाण–पत्र भी दिया जाएगा |

आदर्श मॉडल कार्यक्रम काम कैसे करेगा ?

इस कार्यक्रम की शुरुआत हेतु शरदकालीन बुवाई का समय महत्वपूर्ण है तथा इस बुआई के अंतर्गत प्रारम्भिक तौर पर प्रदेश में कुल 1,555 कृषकों का चयन कर गन्ना खेती के आदर्श मांडल प्लाट का न्यूनतम क्षेत्रफल 0.5 हेक्टेयर होगा तथा मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रत्येक गन्ना विकास परिषदों में न्यूनतम 10 एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश की गन्ना विकास परिषद में न्यूनतम 05 आदर्श मांडल का चयन किया जाना अनिवार्य होगा |

शरदकालीन बुवाई 2021–22 के अंतर्गत ट्रेंच विधि से बुवाई का लक्ष्य 2,20,000 हेक्टेयर गन्ने के साथ सहफसली खेती का लक्ष्य 2,20,000 हेक्टेयर एवं ड्रिप सिंचाई के आच्छादन का लक्ष्य 777 हेक्टेयर भी निर्धारित किया गया है |

सोयाबीन के भाव में रिकॉर्ड तेजी, मंडियों में सोयाबीन का भाव पहुंचा 10,000 रुपये प्रति क्विंटल से भी ऊपर

सोयाबीन के भाव में रिकॉर्ड तेजी

पिछले कुछ दिनों से सोयाबीन के मंडी भाव में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है | इस सप्ताह सोयाबीन के भाव में आई तेजी से पिछले सभी रिकार्ड टूट गये हैं | इस सप्ताह सोयाबीन के भाव सरसों और रायडा से आगे निकल गया है | पिछले कुछ दिनों से मध्य प्रदेश के मालवा अंचल में सोयाबीन का भाव 10,000 रूपये प्रति क्विंटल के भाव से आगे निकल गया है | सोयाबीन के भाव में आई तेजी से किसानों को काफी फायदा हो रहा है |

सोयाबीन का भाव वर्तमान समय में मंडी खुलते ही पिछले सभी रिकार्ड को तोडकर नए रिकॉर्ड बना रहा है | इस भाव से व्यापारी तथा किसान दोनों हैरान है | देश में सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,950 रूपये प्रति क्विंटल है जबकि अभी खुले बाजार में इसकी कीमत 3 गुना तक बढ़ गई है | सोयाबीन 11,000 रूपये से भी ज्यादा भाव किसानों को मिल रहा है |

राज्य की कुछ मंडियों में सोयाबीन का भाव इस प्रकार रहा:-
  • उज्जैन मंडी में – 9,711 रूपये प्रति क्विंटल
  • आलोट मंडी में – 11,111 रूपये प्रति क्विंटल
  • सैलाना मंडी – 10,111 रूपये प्रति क्विंटल
  • दलौदा मंडी – 10,001 रूपये प्रति क्विंटल
  • नीमच मंडी – 10,025 रूपये प्रति क्विंटल

लेकिन अधिकांश किसानों के द्वारा सोयाबीन को पहले ही बेच दिए जाने से ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है | मौजूदा समय में कुछ ही किसान हैं जिनको सोयाबीन के बढ़े हुए दम का लाभ मिल रहा है | अब देखना यह होगा की आने वाले खरीफ सीजन के समय सोयाबीन का भाव क्या रहता है | कहीं आवक बढने से सोयाबीन का मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे न चला जाए |

क्या कारण है सोयाबीन के भाव में तेजी के ?

सोयाबीन के मौजूदा भाव को देखकर सभी लोग हैरान है | इसका मुख्य कारण नेपाल तथा अन्य देशों से सोयाबीन के आयात में आई कमी तथा सोयाबीन से बनने वाले विभिन्न प्रकार के खाद्ध पदार्थ में तेजी है | वहीँ देश में सोयाबीन की नई फसल आने में अभी 2 महीने का वक्त है ऐसे में किसानों, तेल संयंत्रों और व्यापारियों के पास सोयाबीन का नहीं के बराबर स्टॉक है जिसके कारण वायदा कारोबार में सोयाबीन के लिए ऊंची बोली लगाई जा रही हैं |

इस वर्ष सोयाबीन के बुआई के रकबे में कमी

देश में सोयाबीन की बुवाई में कमी देखी गई है | इसका कारण किसानों को सोयाबीन का बीज उपलब्ध नहीं होने तथा मौसम का साथ नहीं देना एवं सोयाबीन का बीज महंगा मिलना आदि है | जिसका सीधा असर सोयाबीन के बुआई के रकबे पर पड़ा है |

9 जुलाई 2021 तक देश में सोयाबीन की 8.2 मिलियन हेक्टेयर भूमि में बुवाई की गई है जो पिछले वर्ष के मुकाबले 11.1 प्रतिशत कम है | मध्य प्रदेश में 9 जुलाई 2021 तक 3.7 मिलियन हैक्टेयर भूमि में सोयाबीन की बुआई की गई है जो पिछले वर्ष से 9 प्रतिशत कम है |