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मंगलवार, अप्रैल 16, 2024
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बायो गैस और गोबर गैस में कौन बेहतर है ?

बायो गैस और गोबर गैस

अक्सर एक सवाल रहता है की बायोगैस तथा गोबर गैस में क्या अंतर है कौन सी गैस किसानों के लिए अधिक बेहतर है | बायोगैस तथा गोबर गैस की प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं है | बायोगैस बनाने के किसी भी कार्बनिक पदार्थ का उपयोग किया जा सकता है जबकि गोबर गैस में केवल गोबर का प्रयोग किया जाता है | यह अंतर बहुत छोटा होने के कारण बोलचाल की भाषा में बायोगैस को गोबर गैस तथा गोबर गैस को बायोगैस कहा जाता है |

यह परम्परा भारत में बहुत पुरानी है इसके बाबजूद भारत में केवल 2 प्रतिशत जनसँख्या ही उपयोग करती है  जबकि गोबर गैस से इंधन के अलावा जैविक खाद भी प्राप्त होता है | बायो गैस से खाना बनाने पर कम धुँआ होता है जिससे स्वास्थ पर कोई असर नहीं पड़ता है | इस गैस को स्टोर भी किया जा सकता है जिससे आगे भी उपयोग कर सकते है |

बायो गैस एवं गोबर गैस

  1. गोबर आधारित बायोगैस प्रौद्योगिकी बहुत खर्चीली है | इसके जगह 1 किलो गोबर से तैयार उपले (गोईठा) से 4,000 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होता है जबकि 1 किलो गोबर से प्राप्त गैस से केवल 200 किलो कैलोरी ऊर्जा मिलती है जो उपले के मुकाबले केवल 20 प्रतिशत ही ऊर्जा मिल पाती है |
  2. उपले आसानी से विक्रय हो जाते है जबकि गोबर से प्राप्त गैस बेचना मुश्किल है |
  3. घरेलू बायोगैस में रोजाना 20 किलो गोबर का उपयोग होता है लेकिन इससे तैयार उपले को बेचा जाता है तो लगभग 50 रुपया प्राप्त हो जाता है जो पशुपालक के लिए एक आमदनी का जरिया है |
  4. एक गोबर गैस प्लांट के लिए 5 – 6 मवेशी की जरुरत होती है | अब इतने मवेशी एक किसान को पालना मुश्किल है जब खेती के लिए यंत्रों का उपयोग होने लगा है |
  5. गोबर गैस के लिए रोजाना 40 लीटर पानी की जरुरत पड़ती है और अभी भारत में पानी की बहुत कमी है |
  6. ग्रामीण भारत में भी अब LPG मिलने लगी है | एक परिवार को लगभग प्रतिदिन 500 ग्राम गैस की जरुरत होती है जो गोबर गैस से आधे कीमत पर मिल जाती है |
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भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा पशु है , बायोगैस के क्षेत्र में लगभग 40 वर्षों का अनुभव भी है | भारत की जलवायु गोबर गैस के लिए अनुकूल भी है | इसके बाबजूद भी भारत में केवल 70 लाख ही गोबर गैस प्लांट स्थापित है | इसमें भी 20 प्रतिशत बन्द पड़े हुये हैं | 2012 तक भारत में 45 लाख तक बायोगैस प्लांट थे | किसान भाई बायो गैस लगाकर अपनी उर्जा का प्रयोग कर साथ ही सिलेंडर में भरकर उसे बेच सकता है और यह कई किसानों द्वारा किया भी जा रहा है |

राष्ट्रीय बायोगैस एवं खाद प्रबंधन कार्यक्रम

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