कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए तैयार किये 42 उन्नत किस्मों के 21 हजार क्विंटल प्रजनक बीज

42 उन्नत किस्मों के बीज का उत्पादन

कम लागत में अधिक उत्पादन हेतु एवं किसानों की आय में वृद्धि के लिए लिए कृषि विश्वालयों एवं वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं | पिछले एक वर्ष से देश कविड–19 से देश जूझ रहा है | इस स्थिति में देश में जहाँ सभी कार्य बंद है वहीं कृषि के क्षेत्र को इन पाबंदियों से दूर रखा गया है | ताजा उदहारण जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविध्यालय का है | देश में बीज उत्पादन में अहम योगदान देने वाली संस्था ने देश के लिए कई बीजों का उत्पादन किया है | यह सभी बीज रबी फसल के हैं एवं खरीफ फसलों के बीजों का उत्पादन भी किया जा रहा है | विश्वविध्यालय के द्वारा विकसित सभी किस्में नई प्रजाति के है, जो आने वाले दिनों में किसानों को उपलब्ध करवाए जाएंगे |

कुलपति डॉ. प्रदीप कुमार बिसेन के निर्देशन और मार्गदर्शन में विश्वविध्यालय के 28 अनुसंधान केन्द्रों और प्रक्षेत्रों पर लगभग 666 हेक्टेयर क्षेत्र में उत्पादन किया है | उत्पादित किये गये बीज रबी सीजन की अलग-अलग फसलों के लिए है | किसान समाधान कृषि विश्वविध्यालय के द्वारा विकसित किये गये बीजों की जानकारी लेकर आया है |

किस फसल के कितने नई प्रजातियां विकसित किया गया है ?

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविध्यालय (जबलपुर) ने रबी 2020–21 सीजन में प्रजनक बीज उत्पादन कार्यक्रम विवि के 28 प्रक्षेत्रों पर लगभग 666 हेक्टेयर क्षेत्र में लिया था | इसके अंतर्गत विभिन्न फसलों की कई किस्में विकसित की गई हैं | यह सभी नई फसलें इस प्रकार है :-

किसान कब ले सकेंगे उन्नत किस्मों के बीज

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविध्यालय के द्वारा अलग-अलग फसलों की 42 नई प्रजातियां विकसित बीजों का उत्पादन किया है | इन सभी प्रजातियों की कटाई हो चुकी है, जिसका उत्पादन कुल 21 हजार क्विंटल है | उत्पादित प्रजनक बीजों की उन्नतशील प्रजातियों को रबी 2020–21 में भारत सरकार, मध्यप्रदेश शासन के विभिन्न शासकीय संस्थानों, एन.जी.ओ. बीज उत्पादन सहकारी समितियों, प्रगतिशील किसानों एवं अन्य को उपलब्ध करवाए जाएंगे |

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविध्यालय 15% बीज का उत्पादन करता है ?

जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविध्यालय विगत डेढ़ दशकों से प्रजनक बीज उत्पादन के क्षेत्र में प्रथम स्थान पर है | देश में कुल बीज उत्पादन का 15% बीज इस विश्वविध्यालय के द्वारा किया जा रहा है | अभी विश्वविध्यालय में कुलपति डॉ.प्रदीप कुमार बिसेन के नेतृत्व में प्रजनक, बीज उत्पादन, वितरण तथा कृषि से जुड़े अन्य सभी कार्य चल रहा है |

राज्य सरकार ने MSP पर गेहूं खरीदी का लक्ष्य 1 लाख टन से बढ़ाकर किया 7 लाख टन

MSP पर गेहूं खरीदी का लक्ष्य बढाकर किया गया 7 लाख टन

बिहार में चल रही गेहूं की सरकारी खरीदी को लेकर मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में समीक्षा बैठक हुई | इस बैठक में वर्ष 2020–21 के रबी सीजन में किये जा रहे गेहूं खरीद को लेकर कई बड़े निर्देश दिये हैं | मुख्यमंत्री ने कहा की प्रदेश में गेहूं का उत्पादन इस वर्ष अच्छा हुआ है, इसलिए गेहूं की ज्यादा से ज्यादा सरकारी खरीदी की जाए | पैक्स के माध्यम से किये जा रहे गेहूं की खरीदी की डेट बढ़ाने तथा गेहूं खरीदी का लक्ष्य बढ़ाने का भी निर्देश दिये हैं |

31 मई तक की जाएगी गेहूं की सरकारी खरीद

बिहार के मुख्यमंत्री ने समीक्षा बैठक के बाद निर्देश दिये हैं कि गेहूं की खरीदी 31 मई तक की जाये | जिससे राज्य के ज्यादा से ज्यादा किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ प्राप्त कर सके |

राज्य में गेहूं खरीदी का लक्ष्य क्या है ?

गेहूं की सरकारी खरीदी के लिए पहले 1 लाख टन का लक्ष्य रखा गया था जिसे मुख्यमंत्री ने समीक्षा बैठ के बाद लक्ष्य को बढ़ा दिया है | उन्होंने राज्य में गेहूं की सरकारी खरीदी 1 लाख टन से बढ़कर 7 लाख टन कर दी है  | इस बढे हुए लक्ष्य से राज्य के किसानों को ज्यादा से जायदा लाभ मिलेगा |

एक किसान अधिकतम कितना गेहूं बेच सकता है ?

बिहार में गेहूं बेचने के लिए प्रति किसान सीमा तय की गई है | इस तय सीमा के अंतर्गत ही किसान गेहूं को पैक्स में बेच सकते हैं | जिस किसान के पास खुद की भूमि है और वह अपनी भूमि पर गेहूं की खेती कर रहे हैं तो वैसे किसान पैक्स के माध्यम से 150 क्विंटल गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच सकते हैं | जबकि लीज या बटाई पर खेती करने वाले किसान पैक्स के माध्यम से 50 क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच सकते हैं |

कितने केन्द्रों पर गेहूं की खरीदी किया जा रहा है ?

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी राज्य के सभी जिलों में सरकारी एजेंसियों के द्वारा की जा रही है | पैक्स ने इस वर्ष गेहूं खरीदी के लिए 6400 खरीदी केंद्र बनाएं हैं | इन सभी खरीदी केन्द्रों पर 20 अप्रैल से गेहूं की खरीदी का कार्य किया जा रहा है |

किसान अपने साथ यह कागज लेकर जाएं

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पैक्स के माध्यम से गेहूं बेचने के लिए राज्य सरकार ने किसानों के लिए कुछ दस्तावेज मांगे हैं | किसान को गेहूं बेचने के लिए यह सभी दस्तावेज साथ लेकर जाना होगा |

  • फोटो पहचान पत्र (आधार कार्ड / वोटर पहचान पत्र)
  • बैंक पास बुक की छाया प्रति
  • भूमि संबंधित दस्तावेज

किसी भी समस्या के लिए इस नंबर पर फोन करें

बिहार सरकार ने राज्य के किसानों के लिए दो हेल्पलाईन नंबर जारी किये है | किसान गेहूं की सरकारी खरीद की जानकारी एवं समस्या के समाधान के लिए इन नम्बर पर कॉल कर सकते हैं |

  • 0612-2200693
  • 1800-345-6290

किसान अधिक पैदावार के लिए लगाएं सोयाबीन की नई विकसित किस्म MACS 1407

सोयाबीन की नई विकसित किस्म MACS (एमएसीएस) 1407

देश में किसानों की आय बढ़ाने एवं कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों के विकास हेतु भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ICAR के विभिन्न संस्थानों की सहायता से फसलों की नई-नई किस्में विकसित करता है | इस कड़ी में भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक अधिक उपज देने वाली और कीट प्रतिरोधी किस्म विकसित की है जिसका नाम है “MACS (एमएसीएस) 1407” | यह किस्म सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है साथ ही इस किस्म की उत्पादकता एवं कीट प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने से देश में सोयाबीन के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी |

इस किस्म को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान एमएसीएस – अग्रहार रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के सहयोग से सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली किस्मों और सोयाबीन की खेती के उन्नत तरीकों को विकसित किया है। उन्होंने पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करके एमएसीएस 1407 किस्म को विकसित किया है |

सोयाबीन MACS 1407 किस्म की विशेषताएं

MACS (एमएसीएस)1407 किस्म की कीट प्रतिरोधक क्षमता आधिक है | सोयाबीन की इस किस्म में गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों की प्रतिरोधी है | जिससे इन कीट पतंगों का प्रभाव इस किस्म पर नहीं पड़ता जिससे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता ही है साथ ही किसानों के कीटनाशक के पैसों को बचाकर इसकी लागत कम करने में भी सहायक है |

इसका मोटा तना, जमीन से ऊपर (7 सेमी) फली सम्मिलन और फली बिखरने का प्रतिरोधी होना इसे यांत्रिक कटाई के लिए भी उपयुक्त बनाता है। यह पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।

सोयाबीन MACS 1407 किस्म की खेती की जानकारी

एमएसीएस 1407 नाम की यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है | सोयाबीन की यह किस्म बिना किसी उपज हानि के 20 जून से 5 जुलाई के दौरान बुआई के लिए अत्यधिक अनुकूल है। यह इसे अन्य किस्मों की तुलना में मानसून की अनिश्चितताओं का अधिक प्रतिरोधी बनाता है।

MACS 1407 को 50 प्रतिशत फूलों के कुसुमित होने के लिए औसतन 43 दिनों की जरूरत होती है और इसे परिपक्व होने में बुआई की तारीख से 104 दिन लगते हैं। इसमें सफेद रंग के फूल, पीले रंग के बीज और काले हिलम होते हैं। इसके बीजों में 19.81 प्रतिशत तेल की मात्रा, 41 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है और इसकी अच्छी अंकुरण क्षमता भी अधिक है | यह किस्म अधिक उपज, कीट प्रतिरोधी, कम पानी और उर्वरक की जरूरत वाली और यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त है |

सोयाबीन MACS (एमएसीएस)1407 किस्म से होने वाली पैदावार

MACS (एमएसीएस)1407 प्रति हेक्टेयर में 39 क्विंटल की पैदावार देती है जो सोयाबीन की इस किस्म को अधिक उपज देने वाली किस्मों में शामिल करता है | इस अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले एआरआई के वैज्ञानिक श्री संतोष जयभाई ने कहा कि ‘एमएसीएस 1407’ ने सबसे अच्छी जांच किस्म की तुलना में उपज में 17 प्रतिशत की वृद्धि की और योग्य किस्मों के मुकाबले 14 से 19 प्रतिशत अधिक उपज लाभ दिया है |

किसानों को कब उपलब्ध होगी सोयाबीन MACS 1407 किस्म

सोयाबीन की इस किस्म को हाल ही में भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली फसल मानकों से जुड़ी केन्द्रीय उप–समिति, कृषि फ़सलों की किस्मों की अधिसूचना और विज्ञप्ति द्वारा जारी किया गया है और इसे बीज उत्पादन और खेती के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके बीज वर्ष 2022 के खरीफ के मौसम के दौरान सभी किसानों को बुवाई के लिए उपलब्ध करवा दिए जाएंगे |

पहली बार इलेक्ट्रिक से चलने वाले ट्रैक्टर का किया गया परिक्षण, किसानों को मिलेगी डीजल से राहत

इलेक्ट्रिक से चलने वाला ट्रैक्टर Electric Tractor

डीजल की कीमतें देश में लगातार बढती जा रही हैं, ऐसे में किसानों के फसल उत्पादन की लागत में भी लगातार वृद्धि हो रही है | डीजल के बढ़ते दामों से परेशान किसानों के लिए राहत भरी खबर है | सेंट्रल फार्म मशीनरी ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग इंस्टीट्यूट, बुदनी (मध्यप्रदेश) ने संस्थान में पहली बार इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर का परीक्षण किया है। संस्थान ने शुरू में गोपनीय परीक्षण के तहत एक इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर के लिए आवेदन प्राप्त हुआ था जिसके बाद यह प्रशिक्षण किया गया |अगर इलेक्ट्रिक कारों की तरह यह ट्रैक्टर का परीक्षण कामयाब रहा तो यह खेती-किसानी के कार्यों की लागत को कम करने में काफी मददगार साबित होगा |

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार संसथान ने शुरू में गोपनीय परीक्षण के तहत एक इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर के लिए आवेदन प्राप्त किया। उसके बाद संस्थान ने ट्रैक्टर का परीक्षण किया और फरवरी, 2021 में ड्राफ्ट टेस्ट रिपोर्ट जारी की । ड्राफ्ट टेस्ट रिपोर्ट जारी होने के बाद, निर्माता ने परीक्षण की प्रकृति को “गोपनीय से वाणिज्यिक” में बदलने का अनुरोध किया और सक्षम प्राधिकारण ने विनिर्माता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है | 18 पैरामीटरों पर ट्रैक्टर की टेस्टिंग की जाती है, हालांकि अभी तक ट्रैक्टर की परफोर्मेंस कैसी है, बेट्री कितनी चलती है, चार्ज कैसे होगा इसके विषय में अभी कोई जानकारी नहीं दी गई है | इसके आलवा यह भी एक बड़ा सवाल रहेगा की इस पर किसानों को इलेक्ट्रिक ट्रेक्टर पर सब्सिडी कितनी दी जाएगी ? यह सभी सवालों के जबाब तो ट्रैक्टर के बाजार में आने के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा |

देश का पहला CNG से चलने वाला ट्रैक्टर भी हो चूका है लांच

इस वर्ष की शुरुआत में केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने CNG से चलने वाला ट्रेक्टर भी लांच किया था | रामैट टेक्नो सल्यूशन और टोमासेटो अचीले इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से डीजल की जगह CNG गैस से चलने वाला इंजन विकसित किया है | डीजल इंजन को ही तकनीक के माध्यम से परिवर्तित कर CNG गैस से चलने वाले इंजन के रूप में परिवर्तित किया गया है | इस प्रकार CNG से चलने वाला यह देश का पहला ट्रेक्टर है तथा यह अभी पायलेट प्रोजेक्ट के तहत विकसित किया गया है | आने वाले दिनों में किसी भी ट्रेक्टर में एक नई कीट लगाकर CNG से चलने वाला बनाया जा सकता है |

 

अधिक आय के लिए किसान गन्ने साथ करें इन फसलों की खेती

गन्ने के साथ सह फसलीय खेती

गन्ने की खेती देश में बहुत लम्बे समय से की जा रही है | देश गन्ने के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है परन्तु गन्ना किसानों की आय में वृद्धि नहीं होने के चलते बहुत से किसान गन्ने की खेती को छोड़ दूसरी फसलों की ओर मुड़ने को मजबूर है | गन्ने के किसान जिस खेत में गन्ने की खेती करते हैं उस खेत से दूसरी फसल नहीं लेते हैं परन्तु किसान भाई अधिक आय के लिए गन्ने की सह-फसली खेती भी कर सकते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त हो सकती है | देश में वैज्ञानिकों के द्वारा गन्ने के साथ कई अन्य फसलों के उत्पदान के लिए प्रयोग किये गए हैं जिससे पता चलता है कि यह पद्धति किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी है |

नई पद्धति से गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में खेती किया जा रहा है, इससे किसानों को गन्ने के साथ अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है | अलग–अलग समय में गन्ने के साथ अलग– अलग फसलों की खेती की जा सकती है | किसान समाधान गन्ने के साथ वर्ष भर सहायक फसल के रूप में अलग–अलग फसलों की खेती की जानकारी लेकर आया है |

सहफसली खेती क्या होती है ?

एक ही खेत में एक साथ, एक ही मौसम में दो या दो से अधिक फसलों को वैज्ञानिक विधि से इस प्रकार लगाया जाये ताकि प्रति इकाई क्षेत्रफल से कम लागत में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके |

गन्ने के साथ सहफसली खेती करने से होने वाले लाभ

सहफसली से विभिन्न प्रकार के लाभ होता है जो इस प्रकार है :-

  • प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर आमदनी को बढ़ाया जा सकता है |
  • गन्ने में प्रारम्भिक अवस्था में लगने वाली लगत को मुख्य फसल के तैयार होने से पहले ही सहायक फसल से निकला जा सकता है |
  • इस फसल प्रणाली में गन्ने के साथ दलहनी फसलों को उगाकर मृदा स्वास्थ्य को बनाये रखा जा सकता है |
  • मृदा से नमी, पोषक तत्व, प्रकाश एवं खली स्थान का समुचित उपयोग किया जा सकता है |
  • श्रम, पूंजी, पानी, उर्वरक इत्यादि को बचाकर लागत को कम किया जा सकता है |

बसंत एवं शरद ऋतू में गन्ने के साथ प्रमुख फसलें

हमारे देश में गन्ने की बुआई एक वर्ष में दो बार (बसंत एवं शरद) की जाती है | बसंत ऋतू में गन्ने के साथ मूंग, उड़द, लोबिया, भिंडी, करेला, लौकी, कददू, प्याज, गेहूं, चना, मसूर, मटर एवं आलू इत्यादि फसलों को लगाया जा सकता है |

गन्ना + मूंग / उड़द / लोबिया / भिंडी

गन्ना एक लंबी अवधि की फसल है और इसकी प्रारम्भिक वृद्धि धीमी गति से होती है, जबकि मूंग/उड़द/लोबिया/भिंडी फसलें कम अवधि में होती है | ये लगभग 60 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | लोबिया एवं भिंडी को बाजार में अच्छे दामों पर बेचकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है |

गन्ने की फसल के साथ मूंग उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

किसान गन्ने के साथ मूंग की फसल सहायक फसल के रूप में लगया जा सकता है | सहयक फसल के रूप में मूंग की 15 से 18 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए | गन्ने के साथ सहायक फसल के रुप में मूंग फसल की उन्नत किस्म इस प्रकार है :- एसएमएल – 668, आईपीएम 2 – 3, मालवीय – 16, सम्राट

गन्ने की फसल के साथ भिन्डी उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

सहायक फसल के रूप में भिंडी को लगाया जा सकता है | गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में भिंडी लगाने की दर 8 से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए | गन्ने के साथ भिंडी फसल को सहायक फसल के रूप में लगाने के लिए उन्नत किस्म इस प्रकार है :-वी.आर.ओ. – 6, अर्का अनामिका, अर्का अभय

गन्ना + प्याज

ट्रेंच विधि से गन्ने की बुआई करने पर इसके साथ प्याज को सफलतापुर्वक लगाया जा सकता है, क्योंकि ट्रेंच विधि में बनने वाली मेड पर प्याज का विकास अच्छा होता है | प्याज कम अवधि की फसल होने के करण कम समय में अच्छा मुनाफा दे सकती है |

गन्ने की फसल के साथ प्याज उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ना के साथ सहायक फसल के रूप में प्याज को लगा सकते हैं | गन्ने के साथ प्याज लगाने का दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है तथा गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में प्याज लगाने के लिए उन्नत किस्म इस प्रकार है :-  एग्री फाउंड लाइट रेड, पूसा रेड, पूसा रतनार, पंजाब 48 इत्यादि

गन्ना + कद्दूवर्गीय सब्जियां

कददूवर्गीय सब्जियों को वसन्तकालीन गन्ना के साथ लगाकर अधिक से अधिक लाभ कमाया जा सकता है | इन सब्जियों में मुख्य रूप से लौकी, कददू एवं खीरे को आसानी से उगाया जा सकता है |

गन्ना + सरसों / तोरिया / राई / अलसी

गन्ने की वानस्पतिक वृद्धि शरद ऋतू के अंतिम पड़ाव से ही आरम्भ होती है, तब तक सरसों / तोरियाँ / राई / अलसी फसलों की कटाई का समय हो जाता है | गन्ना एवं इन फसलों में पोषक तत्व, पानी, प्रकाश एवं हवा के लिए भी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है |

गन्ने की फसल के साथ सरसों उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में सरसों को लगाया जा सकता है | गन्ने के सहायक फसल के रूप में सरसों फसल की लगाने की दर 2 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है | गन्ने के सहायक फसल के रूप में सरसों की उन्नत किस इस प्रकार है :- पूसा तार्क, पूसा मस्टर्ड 26, पूसा मस्टर्ड – 27, पूसा इत्यादि

गन्ने की फसल के साथ तोरिया उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में तोरी फसल को लगया जा सकता है | गन्ने के सहायक फसल के रूप में तोरी फसल की दर 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है | गन्ने की सहायक फसल के रूप में तोरी की मुख्य प्रजातियां इस प्रकार है :-पीटी – 30, टी – 9, पीटी – 303, भवानी इत्यादि |

गन्ने की फसल के साथ राई उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के साथ राई की फसल बोई जा सकती है | गन्ने के साथ राई की फसल बोने के लिए 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए | गन्ने के सहायक फसल के रूप में राई की मुख्य प्रजातियां इस प्रकार है :- वरुण, रोहिणी, नरेंद्र राई इत्यादि |

गन्ना+चना / मसूर / मटर

शरद ऋतू में गन्ने की वृद्धि बहुत धीमी गति से होती है | इसकी वृद्धि मुख्य रूप से शरद ऋतू के अंतिम से आरम्भ होती है | तब तक चना / मसूर / मटर फसलें लगभग पककर तैयार होने की अवस्था में पहुँच जाती हैं | दलहनी फसलें मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मददगार होती है |

गन्ने की फसल के साथ चना एवं मसूर की खेती के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के खेती के साथ सहायक फसल के रूप में मसूर की खेती किया जा सकता है | गन्ने के सहायक फसल के रूप में मसूर की 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करना चाहिए | गन्ने के साथ मसूर की यह उन्नत किस्म का उपयोग करना चाहिए | नरेंद्र मसूर, पीएल – 8, शिवालिक, पीएल 639, पीएल 406 आदि सहायक फसल के रूप में चना की खेती कर सकते हैं | गन्ने के साथ चने की खेती करने के लिए 50 से 55 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करें | गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में चने की उन्नत किस्म इस प्रकार है :-जीजे 14, जीजी 1582, पूसा आदि

गन्ने की फसल के साथ मटर की खेती के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में मटर की फसल ली जा सकती है | गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में मटर की 60 से 70 किलोग्राम बीज का उपयोग करना चाहिए | गन्ने के साथ सब्जी मटर की उन्नत किस्म इस प्रकार है :- काशी उदय, काशी अमन आदि

गन्ना + गेहूं

इस प्रणाली में मुख्य एवं सहायक दोनों ही फसलों को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पोषक तत्वों का प्रयोग संतुलित मात्रा में हो ताकि दोनों ही फसलों के उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े | इस सफसली प्रणाली में गेहूं का उत्पादन लगभग 30 से 35 क्विंटल/हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है |

गन्ने की फसल के साथ गेहूं उत्पदान के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ने के साथ गेहूं की पैदावार ली जा सकती है | गन्ने के सहायक फसल के रूप में गेहूं की 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग करना चाहिए | गन्ने के साथ सहायक फसल क रूप में गेहूं की इन प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए- यूपी 2338, पीबीडब्ल्यू 343 इत्यादि

गन्ना + धनिया

धनिया, मसाले वाली फसल है | इसका उपयोग हरी पत्तियों या पकने के बाद दाने के रूप में किया जाता है | धनिया लगभग प्रत्येक घर में उपयोग होता है | शरदकालीन गन्ने की बुआई के बाद दो पंक्तियों के मध्य रिक्त स्थान में धनिया को लगाया जा सकता है |

गन्ना + लहसुन

लहसुन की बुआई भी उसी समय की जाती है, जब शरदकालीन गन्ने की बुआई की जाती है | गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य रिक्त स्थान को लहसुन लगाकर भरा जा सकता है | इससे किसान को मुख्य फसल गन्ना की आय के अतिरिक्त एक और फसल प्राप्त हो जाती है |

गन्ना + पालक / मूली

ट्रेंच विधि से बुआई करने पर गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य रिक्त स्थान में पालक या मूली को श्फ्सली प्रणाली में उगाया जा सकता है, ताकि समय एवं खाली पड़े स्थान का सही उपयोग हो सके |

गन्ना + आलू

गन्ने की बुआई ट्रेंच विधि से की जाती है तो आलू को सहफसली प्रणाली में आसानी से लगाया जा सकता है | इस विधि में बनने वाली मेड पर दो कतरने आलू की लगाई जा सकती हैं | आलू कम अवधि की फसल होने के कारण कम समय में अच्छा मुनाफा दे सकती है |

गन्ने के साथ आलू की खेती के लिए बीजदर एवं किस्में

गन्ना के साथ सहायक फसल के रूप में आलू का पैदावार लिया जा सकता है | गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में आलू की 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है | गन्ने के साथ सहायक फसल के रूप में आलू की उन्नत ककिस्म इस प्रकार है :- कुफरी अशोकम कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी बहार, कुफरी, कुफरी ज्योति इत्यादि

गन्ना उत्पादन करने वाले किसान एक योजनाबद्ध तरीके से उपरोक्त तकनीकियों का प्रयोग गन्ने के साथ करते हैं, तो निश्चित तौर पर प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिक आमदनी प्राप्त होगी | इसके साथ – साथ मृदा स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को भी स्वस्थ्य बनाए रखा जा सकता है | किसान भाई सहफसलीय खेती के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण भी ले सकते हैं | 

गन्ना उत्पदान करने वाले किसान मई के महीने में क्या करें

गन्ना फसल में मई माह में किये जाने वाले कार्य

गन्ने का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए यह जरुरी रहता है कि गन्ने की समय–समय पर नियमित देख-रेख की जाए | जिससे गन्ने की फसल को सही समय पर पोषक तत्व की आपूर्ति की जा सके, साथ ही फसल में लगने वाले खरपतवार तथा कीट और रोगों को समय पर नियंत्रित किया जा सके | इसके अतिरिक्त फसलों में कई कीट एवं रोग विशेष मौसम में लगते हैं जिनका उपाय किसान भाई समय पर ही कर सकते हैं और होने वाले आर्थिक नुकसान को कम कर सकते हैं | किसान समाधान गन्ने की फसल में मई माह में किये जाने वाले कार्य की जानकारी लेकर आया है |

गन्ने की फसल हेतु मई माह में किये जाने वाले कार्य

  1. गन्ने की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा अधिक पानी देने से बचें | प्रत्येक सिंचाई के बाद निंदाई-गुडाई अवश्य करें | नाईट्रोजन की संस्तुत मात्रा से ज्यादा का प्रयोग न करें |
  2. लाल सडन :- नई निकलने वाली पत्ती पीली पड़ने लगती है तथा पृष्ठ भाग के मध्य शिरा पर काले धब्बे दिखाई देने लगेंगे | आगामी 10-15 दिनों में ग्रसित पौधा सूखने लगता है |
  3. कंडुआ :- गन्ने के सिरे पर काली चाबुक जैसी संरचना दिखाई देने लगती है |
  4. पर्णदाह :- नवजनित पत्तियों में मध्य शिरा के समानांतर सफेद धारियां दिखाई देंगी, पत्तियां बाद में सूखने लगेंगी |
  5. घासी प्ररोह :- पौधा घास जैसा दिखाई देगा एवं सभी पत्तियां सफेद हो जाती हैं |

मई के प्रथम सप्ताह में खेत में पायरिला दिखाई देने लगेगा | इसके नियंत्रण के लिए निचली पत्तियों के पृष्ठ भाग में धवन सफेद अंड समूह दिखाई देंगे | ऐसी पत्तियों को काटकर किसान भाई नष्ट कर दें | इसी माह पेडी फसल में काला चिकता (ब्लैक बग) का प्रकोप होता है | इससे फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगती है | ऐसी अवस्था में 3 प्रतिशत यूरिया एवं क्लोरोपाइफाँस एक लीटर सक्रिय तत्व को 1,600 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों की गोफ में डालें |

गेहूं की कटाई के बाद गन्ने की बुआई

गर्मी में गेहूं कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन गन्ने की बुआई शीघ्रतिशीघ्र कर दें | इसके लिए पंक्तियों की दुरी घटाकर 60 से.मी. अथवा 90:30 से.मी. की दोहरी पंक्तियों में बुआई करें | देर से बुआई की दशा में फसल को ब्यांत हेतु कम समय मिल पाता है | अत: इसके लिए संस्तुत प्रजातियों की ही बुआई करें | गन्ने के अधिक व त्वरित जमाव के लिए गन्ना बीज के टुकड़ों को पानी में 4–6 घंटे तक डुबोकर बुआई करें |बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना अति आवश्यक है | बुआई के बाद पाटा आवश्य लगाएं | पेडी गन्ने में अधिक ब्यांत की अवस्था में गन्ने की पंक्तियों में मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है | मिट्टी ,ट्रैक्टर चालित यंत्रों से भी चढाई जा सकती है |

किसान खेत से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए अपने खेतों की करें गहरी जुताई

गर्मी में खेतों की गहरी जुताई से लाभ

गर्मी के मौसम में जब रबी फसलों की कटाई हो जाती है तब खेत तीन माह के लिए खाली रहती है | इस समय तेज गर्मी के साथ काफी धुप भी रहती है, ऐसे में किसानों को देसी हल या कृषि यंत्रों से खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, जिससे खेत में मौजूद हानिकारक कीट तथा खरपतवार नष्ट हो जाएँ | किसानों को गहरी जुताई करने के लिए सरकारों के द्वारा प्रोत्साहित भी किया जाता है जिसके तहत किसानों को अनुदान दिया जाता है | किसान समाधान ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से होने वाले लाभ की संपूर्ण जानकारी लेकर आया है |

खेतों में गहरी जुताई कब करें ?

रबी फसल की कटाई के बाद तथा बारिश शुरू होने से पहले खेतों को गहरी जुताई करना चाहिए | ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई का उचित समय अप्रैल से जून माह रहता है | इस समय में किसान अपने खेतों की मिट्टी का सौरीकरण भी कर सकते हैं | यह एक बहुत ही सरल एवं प्रभावी विधि है साथ ही यह खरपतवारों को नष्ट करने, मृदा स्वास्थ्य को अच्छा करने और पादपों को जरूरी खनिज तत्व उपलब्ध कराने में भी मददगार है।

गर्मी में गहरी जुताई से क्या लाभ है ?

ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई एक ऐसा काम है, जिसमें अनेक लाभ समाहित है | ऐसा करने से मृदा का सूर्य ऊर्जा उपचार होता है, जिससे कीट व पौध रोग कारक नष्ट हो जाते है | जल का अपवाह रुकता है, खरपतवार नियंत्रण होता है और जड़ों की अच्छी वृद्धि होती है | ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के लाभ होते हैं |

गहराई जुताई का मृदा के भौतिक गुणों पर प्रभाव

खेत में गहरी जुताई करने से मृदा के बहुत से भौतिक गुणों में सुधार होता है | इससे मृदा में जल की मात्रा तथा स्तर बढ़ता है और यह फसल को लंबे समय तक नमी उपलब्ध करवाता है | मृदा की प्रवेश प्रतिरोध क्षमता को कम करता है | इससे जड़ों की पूर्ण बढवार होती है तथा मृदा में अधिक गहराई तक जाती है | फलत: फसल को जल तनाव का सामना नहीं करना पड़ता है |

हानिकारक कीटों से बचाव

गर्मी की जुताई से रबी या जायद की फसलों पर लगे हुए हानिकारक कीटों के अंडे व लार्वा, जो जमीन की दरारों में छिपे होते हैं, मई–जून की तेज धुप से नष्ट हो जाते हैं | इससे खेत, कीट–पतंगों से सुरक्षित हो जाता है और अगली फसल में कीटों के हमले की आशंका कम हो जाती है |

खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार, फसल उत्पादन को लगभग 20–90 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं | कुछ बहुवर्षीय खरपतवार जैसे – कांस, मोथा, दूध घांस आदि की जड़े काफी गहराई तक जाती है | इनके नियंत्रण का एक कारगर उपाय ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई है, जिसके करने से उक्त खरपतवारों की जड़े, राइजोम आदि वानस्पतिक भाग उपरी सतह पर आ जाते हैं, जो बाद में तेज गर्मी में सुखकर नष्ट हो जाते हैं | बाकी बचे एकवर्षीय खरपतवार प्रत्यक्ष रूप से मर जाते हैं या उनके बीज ज्यादा गहराई में पहुँच जाने से उनका अंकुरण नहीं हो पाता है | नतीजतन खेत को खरपतवार से निजात मिल जाती है |

मृदा वायु संरचना में बढ़ोतरी

बार–बार ट्रेक्टर जैसे भारी वाहनों से जुताई करने से मृदा के कणों के बीच का खाली स्थान कम हो जाता है, यानी खेत का मृदा घनत्व बढ़ जाता है | इससे मृदा में हवा का आवागमन बंद हो जाता है | गहरी जुताई में मृदा काफी उल्ट–पलट होती है, जिससे वायु के संरचना के लिए रंध्र बन जाते हैं |

जल अवशोषण दर में वृद्धि

गर्मी की जुताई से खेत में मृदा के सुराख़ खुल जाने से बारिश का पानी जमीन द्वारा सोख लिया जाता है | इससे मृदा की जल अवशोषण दर बढ़ जाती है व नमी काफी मात्रा में लंबे समय तक खेत में मौजूद रहती है | यह नमी खरीफ की फसल के उत्पादन में काम आती है |

जड़ विकास में सहायक

बार–बार एक ही गहराई पर जुताई करने से उस गहराई पर एक कठोर तह का निर्माण हो जाता है | खेत की इस कठोर तह को तोड़कर मृदा को जड़ों के विकास के अनुकूल बनाने में ग्रीष्मकालीन जुटाए लाभदायक होती है |

मृदा संरक्षण में सहायक

इसके द्वारा वायु तथा जल से होने वाले मृदा के कटाव को रोकने में मदद मिलती है | ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मृदा कटाव में भारी कमी होती है | अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की गहरी जुताई करने से भूमि के कटवा में 66.5 प्रतिशत तक की कमी आती है | फलत: पोषक तत्वों का बहाव भी रुकता है |

पीड़कनाशियों के अवशेष प्रभाव से मुक्ति

रबी फसलों में इस्तेमाल किए गए कीटनाशकों व खरपतवारों अवशेष प्रभाव काफी लंबे समय तक रहता है | यह खरीफ में बुआई की जाने वाली फसल के अंकुरण व वृद्धि को प्रभावित कर सकता है | गर्मी में जुताई कर देने से खेत में उनका प्रभाव खत्म हो जाता है | तेज धुप से ये जहरीले रसायन विघटित हो जाते हैं और उनका खेत में असर नहीं रह जाता है |

गहरी जुताई से उपज में होने वाली वृद्धि

अनुसंधानों द्वारा देखा गया है कि गहरी जुताई से फसल उत्पादन में भी वृद्धि होती है |

जीवांश खाद की प्राप्ति

गर्मी के समय में रबी व जायद की फसल कट जाने के बाद खेत की जुताई करने से फसल के अवशेष, डंठल व पत्तियां आदि मृदा में दब जाते हैं, जो बारिश के मौसम में सड़कर जमीन को जीवांश पदार्थ मुहैया करवाते हैं |

रासायनिक उर्वरकों का खनिजीकरण

खेत में इस्तेमाल किए गए रासायनिक उर्वरकों का काफी बड़ा हिस्सा (लगभग 50–60 प्रतिशत) अघुलनशील हालत में खेत में पड़ा रह जाता है | गर्मी की जुताई से सूर्य की तेज धुप से ये रसायन विघटित होकर घुलनशील उर्वरकों में बदल जाते हैं और अगली फसल को पोषण देते हैं |

नाइट्रोजन का मृदा में संग्रहण :

गहरी जुताई वाले खेत पहली बरसात (जिसमें वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन की गैस जल में घुली होती है) का संपूर्ण पानी सोख लेते है, जिससे अधिकतम वायुमंडलीय नाइट्रोजन इन खेतों में अनायास ही आ जाती है |

खरपतवारों में शाकनाशी प्रतिरोधकता विकास में बाधक

कुछ ऐसे शाकनाशी हैं, जो कि समान समूह और एक ही तरह की क्रिया (मोड आँफ एक्शन) द्वारा खरपतवारों को नियंत्रित करते हैं | ऐसे शक्नाशियों का बार–बार एक ही खेत में प्रयोग करने से वहां केवल प्रतिरोधक खरपतवार ही बच जाते हैं | खरपतवार काफी संख्या में बीज बनाते है, तो कुछ ही समय में सम्पूर्ण खेत शाकनाशी के प्रतिरोधक खरपतवारों से भर जाते हैं | गहरी जुताई से प्रतिरोधक खरपतवार नष्ट हो जाते हैं, जिस कारण शाकनाशी के प्रति रोधाकता विकास को टाला जा सकता है |

कैसे करें ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई 

खेतों की जुताई कब और कैसे करे यह जानना बहुत ही जरुरी है | जिससे किसान को कम लागत में अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है |

  • ग्रीष्मकालीन जुताई हर तीन वर्ष में एक बार जरुर करनी चाहिए, ग्रीष्मकालीन जुताई प्रत्येक वर्ष पुरे खेत में करें या आवश्यक नहीं है | इसका एक साल उपाय है कि सम्पूर्ण खेत को 3 भागों में विभाजित कर लें और प्रत्येक वर्ष 1 भाग की गहरी जुताई होती रहेगी तथा जुताई का खर्च भी तीन भागों में बंट जायेगा |
  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई लगभग 9–12 इंच गहरी करनी चाहिए, अधिकांश किसान एक निश्चित गहराई पर (6–7 इंच) जुताई करते हैं, जिससे वर्षा के कुछ समय बाद जल का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है |
  • गर्मी के समय में खेत की जुताई खेत की ढाल की विपरीत दिशा में करें |
  • फसल की कटाई के बाद खेत में जुताई के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिए, अर्थात फसल कटाई के तुरंत बाद जुताई करें | इससे जुताई अच्छी तरह से होती है, ईंधन की खपत कम होती है | ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करते समय खेत की मृदा के बड़े – बड़े धेले बनाने चाहिए | इन ढेलों से वर्षा जल का अंत:सरण अधिक मात्रा में होता है, जिससे भूजलस्तर में भी वृद्धि होती है |
  • हल्की व रेतीली जमीन में ज्यादा जुताई न करें | इससे मृदा भुरभुरी हो जाती है और हवा व बरसात से मृदा का कटाव बढ़ जाता है | जुताई के बाद खेत के चारों ओर एक ऊँची मेड बनाने से वायु तथा जल द्वारा मृदा के क्षरण की यदि कोई आशंका हो, तो वह भी समाप्त हो जाती है तथा खेत वर्षा जल सोख लेता है |

ICAR-IISR के वैज्ञानिकों ने प्राप्त की बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने वाली बीजावरण संरचना प्रौद्योगिकी

बीजावरण संरचना प्रौद्योगिकी

देश भर के कृषि अनुसंधान संस्थान समय–समय पर विभिन्न प्रकार की खोज करते रहते हैं | जिसमें बीज, कीटनाशक, उर्वरक, तथा अन्य प्रकार के अनुसंधान शामिल है | इसके तहत भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान कोझिकोड (केरल) के तीन कृषि वैज्ञानिकों ने बीजावरण संरचना (सीड कोटिंग कंपोजीशन) और इसकी तैयारियों के लिए एकस्व अधिकार (350698) प्राप्त किया है | संस्थान ने बीजों के लिए पीजीपीआर/लाभकारी रोगाणुओं के बीजावरण प्रौद्योगिक का सफलतापूर्वक विकास, क्षेत्र–परीक्षण और व्यवसायीकरण किया है |

बीजावरण संरचना प्रौद्योगिकी क्या है और कैसे काम करती है ?

यह सक्रिय यौगिक, अर्थात पौधों के विकास के नियामकों, सूक्ष्म पौषक तत्वों और सूक्ष्मजीव प्रतिरक्षा सीरम (माइक्रोबियल इनोक्युलेंट्स) के वितरण में सुधार करने के उद्देश्य से बीजों की सतह पर बहिर्जात सामग्रियों का एक अनुप्रयोग है जो अंकुरण और पौधे के विकास को बढ़ा सकता है | राइजोबैक्टीरिया को बढ़ावा देने वाले पौधे के विकास का उपयोग करने वाला यह आविष्कार एवं इसकी तैयारी बीजों की व्यवहार्यता को संग्रहित करने और एक मध्यवर्ती राज्य में लेपित जीवों को बनाए रखने में भी मदद करता है |

यह प्रक्रिया बीज की कमी को रोकती है और पर्यावरण तनाव से सुरक्षा सुनिश्चित करती है | यह भंडारण कीटों के खिलाफ बीज की रक्षा भी करता है, जो बीजों की दीर्घायु को बढ़ता है, जो कि अंकुरण को सुनिश्चित करता है और उभरते हुए बीजों को बीजों पर मौजूद जीवों की मदद से स्थापित करने में मदद करता है | आवश्यक बीज की बढ़ी हुई व्यवहार्यता मात्रा के कारण कम होता है जबकि बढ़ी हुई प्राथमिक वृद्धि के परिणामों से खरपतवार की वृद्धि कम हो जाती है |

इससे क्या लाभ होगा ?

यह भंडारण के दौरान व्यवहार्यता एवं बीज की गुणवत्ता को बढ़ता है और भंडारण कीट घटना से बीजों की रक्षा करता है | बीज के अंकुरण और शक्ति को बढ़ाने के साथ–साथ, यह उपज को 15% से 30% तक सुधारने में मदद करता है | यह बीज दर की आवश्यकता को कम करने में भी सहायक है | सब्जियों सहित सभी प्रकार के बीजों के लिए उपयुक्त होने की वजह से इसका उपयोग जैविक खेती में भी किया जा सकता है |

इन वैज्ञानिकों ने दिया योगदान

भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, कोझिकोड के डॉ. एम. आनंदराज, डॉ.वाई.के.बिनी और डॉ.ए.के.जानी की टीम ने इस प्रौद्योगिक को विकसित किया है |

केले की खेती करने वाले किसानों के लिए शुरू किया गया एंड्राइड एप

केला उत्पदान की जानकारी के लिए एंड्राइड एप

भारत केले के उत्पादन में विश्व में 2.75 करोड़ टन के साथ पहला स्थान रखता है | इसके बाद चीन का स्थान आता है जो 1.2 करोड़ टन के साथ दुसरे स्थान पर है | भारत में केले के उपभोगता अधिक रहने के कारण निर्यात में बहुत पीछे हैं | विश्व में केले का निर्यात सबसे ज्यादा फीलिपंस करता है | इसका एक कारण यह भी है की केले के उत्पादक किसानों को केले की अच्छी प्रजाति का उपलब्ध नहीं होने के साथ में वैज्ञानिक तरह से केले की खेती न करना है | केले की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर न केवल उत्पादकता को बढाया जा सकता है बल्कि केला उत्पादक किसानों की आय में भी वृद्धि की जा सकती है | 

इसको ध्यान में रखते हुए भरतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) और राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र के द्वारा देश के केला उत्पादक किसानों के लिए एक मोबाईल एप शुरू की गई है | इस एप के जरिये किसानों को केले से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी | सेंटर फाँर डेवेलपमेंट आँफ एडवांस कंप्यूटिंग, हैदराबाद द्वारा बनाए गये इस मोबाइल एप का नाम “बनाना प्रोडक्शन टेक्नोलांजी (केला–उत्पादन प्रोद्धोगिकी)” है |

यह एप कितने भाषाओँ में शुरू किया गया है 

केले उत्पादक किसानों को ध्यान में रखकर बनाया गया यह ऐप फ़िलहाल तीन भाषाओँ में उपलब्ध है | आगे इसे ओर भाषाओँ में लाया जायेगा, यह तीन भाषा इस प्रकार है :- हिंदी, अंग्रेजी तथा तमिल |

बनाना प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी एप पर उपलब्ध जानकारी

केला किसानों को केले की खेती के अलावा अन्य प्रकार की जानकारी उपलब्ध भी उपलब्ध करवाई जाएगी | इस एप के जरिये किसान जलवायु, मृदा, पौधा रोपण सामग्री, रोपाई, जल प्रबन्धन, पोषक तत्व प्रबन्धन, उर्वरक समायोजन समीकरण, संबंधित जानकारी उपलब्ध कराया जा रहा है | इसके अलावा किसनों को फलों का परिपक्व होना और फल गुच्छों की कटाई की जानकारी दी जाएगी |

कहाँ से डाउनलोड करें

बनाना प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी (केला – उत्पादन प्रोद्धोगिकी) को गूगल प्ले स्टोर से डाऊनलोड किया जा सकता है | अपनी भाषा के अनुसार किसान एप में भाषा का चयन कर सकते हैं |

बनाना प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी एंड्राइड एप डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें

कोरोना महामारी के बीच ग्रीष्म कालीन (जायद) फसलों की बुवाई में हुई 21.5 प्रतिशत की वृद्धि

ग्रीष्म कालीन (जायद) फसलों की बुवाई

कोरोना महामारी अभी अपने चरम पर है, कई जगहों पर लॉकडाउन जैसी स्थिति बनी हुई है | इसके बाबजूद भी सभी राज्यों में रबी फसलों का उपार्जन का कार्य चल रहा है | रबी फसल के बाद 3 माह के लिए किसान का खेत या तो खली रहता है या फिर उसमें ग्रीष्मकालीन (जायद) फसलों की बुवाई की जाती है | कविड-19 काल में ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई का कार्य एक चुनौती पूर्ण कार्य था इसके बाद भी किसान की मेहनत ने अभी तक के ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई में रिकार्ड कायम किया है | पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 13.9 लाख हेक्टेयर भूमि में ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई की गई है |

ग्रीष्मकालीन फसलों में मुख्यत: दलहनी, तेलहनी, पोषक अनाज तथा मोटे अनाज शामिल है | फसलों की बुआई में वृद्धि सभी राज्यों के किसानों के उत्साह के साथ मेहनत का ही नतीजा है की कोरोना काल में ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई में वृद्धि हो पाई है | 23 अप्रैल 2021 तक देश में ग्रीष्मकालीन बुआई पिछले साल इस अवधि में हुई इस तरह की बुआई की तुलना में 2.15 प्रतिशत अधिक है | इसी अवधि के दौरान एक साल पहले 60.67 लाख हेक्टेयर से कुल ग्रीष्मकालीन फसल क्षेत्र बढ़कर 73.76 लाख हेक्टेयर हो गया |

दलहन फसलों की जायद में कुल बुआई

दलों के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है | 23 अप्रैल 2021 तक दलहन के तहत बोया जाने वाला क्षेत्र 6.45 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 12.75 लाख हेक्टेयर हो गया, जो लगभग शत – प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है | बढ़ा हुआ क्षेत्र मुख्य रूप से तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों से होने की जानकारी है |

तिलहन फसलों की जायद में कुल बुआई

तिलहन फसलों का क्षेत्र 9.03 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 10.45 लाख हेक्टेयर हो गया जो लगभग 16 प्रतिशत की वृद्धि है | पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, आदि राज्यों में रबी चावल का फसल क्षेत्र बढ़ा है |

धान फसल की जायद में कुल बुआई 

धान की रोपाई का क्षेत्र 33.82 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 39.10 लाख हेक्टेयर हो गया है जो लगभग 16 प्रतिशत की वृद्धि है | पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, असम, आंध्र प्रदेश, ओड़िसा छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, बिहार आदि राज्यों में रबी चावल का फसल क्षेत्र बढ़ा है |

अभी और बढेगा बुआई का रकबा

ग्रीष्म ऋतू में फसलों की बुवाई मई के प्रथम सप्ताह तक चलती है इसलिए बुआई में अभी भी लगभग 15 दिन है | इसको देखते हुए यह उम्मीद की जा रही है कि ग्रीष्मकालीन फसलों की बुवाई का रकबा अभी और बढ़ सकता है |

ग्रीष्म कालीन खेती से किसानों को न केवल अतिरिक्त आर्थिक लाभ होता है बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है | इसका कारण यह है कि ग्रीष्मकालीन खेती में दलहन की बुवाई ज्यादा होती है, दलहन के जड़ों में राजोबियम पाया जाता है जिसके कारण मिट्टी में नाईट्रोजन की मात्रा में वृद्धि होती है साथ ही पशुओं को हरा चारा भी प्राप्त होता है |