29 मई से 12 जून 2025 तक देश भर में 15 दिवसीय विकसित कृषि संकल्प अभियान चलाया गया। इस अभियान के दौरान वैज्ञानिकों, अधिकारियों व कृषि विशेषज्ञों की 2170 टीमों ने देशभर में 1.42 लाख से अधिक गाँव में पहुंचकर 1.34 करोड़ से ज्यादा किसानों से सीधा संवाद किया। इस विषय में जानकारी देते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि देशभर में विकसित कृषि संकल्प अभियान बहुत सफल हुआ है लेकिन ये अभियान थमेगा नहीं, हम लगातार किसानों के बीच खेतों में जाकर खेती को उन्नत और किसानों को समृद्ध बनाने का प्रयत्न करते रहेंगे।
कृषि मंत्री ने मीडिया से चर्चा में कहा कि कुछ चीजें हम तत्काल करेंगे, इनमें ज्ञान, अनुसंधान व क्षमताओं का जो गैप है उस गैप को पाटने की कोशिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, इसलिए केवीके को एक टीम के रूप में नोडल एजेंसी हर जिले के लिए बनाई जाएगी, जो किसानों के हित में कॉर्डिनेट करेगी।
किसानों के खेतों में जाएँगे कृषि वैज्ञानिक
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि अब KVK के वैज्ञानिक अनिवार्य रूप से सप्ताह में तीन दिन खेतों में किसानों के बीच जाएंगे, साथ ही कृषि मंत्री के रूप में वह भी स्वयं सप्ताह में दो दिन खेतों में किसानों के बीच जाएँगे। कृषि मंत्री ने कहा कि अफसरों को निर्देश दिए गए हैं की दफ्तर में बैठकर सारी चीजें नहीं समझ सकते, इसलिए खेतों में जाएँ। राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय करने के लिए, विकसित खेती और समृद्ध किसान के लिए काम करने वाली जितनी भी संस्थाएं हैं, उनका एक दिशा में चलना अनिवार्य हैं, और इसलिए इसके समन्वय की भी चर्चा कर निश्चित तौर पर व्यवस्था करेंगे।
अब राज्यवार कृषि के लिए आईसीएआर की तरफ से एक नोडल अफसर तय किया जाएगा जो उस राज्य में सारे वैज्ञानिक प्रयोगों को समस्याओं को, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखकर सलाह और सुझाव देगा, राज्य सरकार से संवाद और संपर्क करेगा और मंत्री के रूप में भी अपने अधिकारियों के साथ अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ चर्चा करेंगे ताकि उनकी जरूरतों को पूरा कर सकें।
अभियान में सामने आई यह बातें
कृषि मंत्री ने कहा कि अभियान में दो चीज़ें बहुत प्रमुखता से उभर कर आई हैं, जिन पर काम करने की जरूरत है। एक तो अमानक बीज, दूसरा अमानक पेस्टीसाइड। इनके संबंध में शिकायतें आई हैं इसलिए सीड एक्ट को और कड़ा बनाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। सिस्टम इतना मजबूत बनाएंगे कि गुणवत्ता युक्त बीज किसानों तक पहुंचें। इस अभियान का उद्देश्य था कि कैसे विज्ञान और किसान को जोड़ें, काम बहुत अच्छा हो रहा है, लेकिन कहीं कमी है तो उत्पादन बढ़ाएं, लागत घटाएं व किसान को और समृद्ध बनाने का प्रयास हम कर सकें, इसके लिए अभियान बहुत सफल हुआ है। इसके लिए उन्होंने कृषि विभाग, विशेषकर आईसीएआर को बधाई दी।
रबी सीजन में भी चलेगा अभियान
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि अभियान थमेगा नहीं, रबी की फसल के लिए विकसित कृषि संकल्प अभियान फिर से चलेगा। अभियान चलेंगे ही, इसके अतिरिक्त हम लगातार किसानों के बीच खेतों में जाकर कोशिश करेंगे कि खेती को कैसे उन्नत करें और किसानों को कैसे समृद्ध करें। उन्होंने बताया कि हमने कुछ फसलों को तय किया है, जैसे एक फॉलोअप प्लान सोयाबीन के लिए है। सोयाबीन संबंधी समस्या के समाधान के लिए 26 जून को इंदौर में किसान, वैज्ञानिक व सम्बद्ध पक्षों के साथ मिलकर विचार करेंगे। उसके बाद हम काम करने वाले हैं कपास पर कपास मिशन के लिए, फिर गन्ने पर, फिर दलहन मिशन, फिर तिलहन मिशन, इस तरह अभियान रुकेगा नहीं, अलग-अलग फसलों के लिए भी जारी रहेगा।
24 जून को पूसा संस्थान में सारे वैज्ञानिक व कृषि अधिकारी, राज्यों के कृषि मंत्री आदि सभी हाईब्रिड मोड में जुड़ेंगे। अभियान के नोडल अफसर रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। समेकित रूप से नोडल अफसर राज्यवार कृषि की स्थिति का प्रस्तुतिकरण करेंगे, जिसके आधार पर राज्यों के साथ मिलकर केंद्र को क्या-क्या और करना चाहिए, वो भी करेंगे, शोध के विषयों, बाकी मुद्दों पर भी काम करेंगे।
इसलिए शुरू किया गया अभियान
कृषि मंत्री ने कहा कि काम तो बहुत हो रहा है, लेकिन अलग-अलग संस्थाएं, अलग-अलग कामों में लगी हुई है। आईसीएआर व केवीके में वैज्ञानिक लगे हुए हैं, अलग-अलग रिसर्च करते हैं। किसान खेतों में काम करते हैं तो एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी अलग काम करती है, और केंद्र व राज्य सरकार के विभाग अपने-अपने काम कर रहे हैं। सभी विकसित खेती और समृद्ध किसान के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग काम कर रहें हैं तो इन सभी को एक साथ जोड़ दिया जाए और तभी वन नेशन-वन एग्रीकल्टर-वन टीम का विचार आया। एक ऐसी टीम बनाई जाएं कि सभी मिलकर एक दिशा में काम करें, जिनमें किसान भी शामिल हों और इस समग्र विचार को लेकर हमने विकसित कृषि संकल्प अभियान की रूपरेखा बनाई, इसे चलाया।
विकसित कृषि संकल्प अभियान में यह रहा खास
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि हमने कोशिश की कि ये अभियान सर्वव्यापी हो, इसलिए ट्राइबल डिस्ट्रिक्ट्स पर भी विशेष ध्यान दिया। ऐसे 177 जिलों के 1024 विकासखंडों में साढ़े 8 हजार से ज्यादा कार्यक्रम आयोजित हुए और लगभग 18 लाख किसानों तक हम पहुंचे। 112 आकांक्षी जिलों में 802 ब्लॉक्स में टीमें लगभग 6800 गांवों में पहुंची और 15 लाख किसानों से वैज्ञानिकों का संवाद हुआ। एक और फोकस हमने वाईब्रेंट विलेज पर भी किया था, वो जिले भी लगभग 100 हैं, तो उनमें भी हमने कोशिश की है कि हर जिले का कोई न कोई एक सीमावर्ती गांव लिया जाएं, सुदूर के गांवों में भी हमारे वैज्ञानिक पहुंचे।
अभियान में सबसे बड़ी सफलता रही हमारी किसान चौपाल, जहां किसानों से सार्थक चर्चा हुई। इनमें वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के बारे में चर्चा की, उस क्षेत्र की एग्रोक्लाइमेट कंडिशन देखते हुए कौन-से बीज, कौन-सी किस्म उपयुक्त रहेगी, इसके बारे में चर्चा की। मिट्टी के पोषक तत्वों व कीट प्रकोप के बारे में भी चर्चा की। इनमें दो चीजें उभरकर सामने आई। पहली कि, कई बार हम रिसर्च के मुद्दे दिल्ली में बैठकर तय करते हैं, लेकिन जमीन पर जिस तरह की समस्याएं हैं, उसके लिए भी रिसर्च की जरूरत है। किसानों ने कई चीज़ें ऐसी बताई है कि इन पर रिसर्च किया जाना चाहिए, तो आईसीएआर को दिशा मिली कि रिसर्च केवल दिल्ली से ही तय नहीं होना है।
किसान हैं बड़े वैज्ञानिक
कृषि मंत्री ने कहा कि अभियान के तहत यह सामने आया कि किसान बड़ा वैज्ञानिक हैं, कई किसानों ने इतने इनोवेशन किए हैं कि वैज्ञानिक भी हैरान थे कि किसानों ने स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से सोचकर अच्छे उत्पादन के लिए नए प्रयोग किए हैं। इसके साथ ही कुछ मुद्दे भी उभरकर सामने आए हैं, किसानों ने बताया कि ये दिक्कतें हैं, इन पर काम होना चाहिए। अब जो रिसर्च करेंगे उनमें उन मुद्दों को ध्यान में रखेंगे। इन चीज़ों को देखकर अगर योजनाओं के स्वरूप में कोई परिवर्तन करना है, तो वो किए जाएंगे। वहीं, इस पर भी ध्यान दिया जाएगा कि किसानों ने जो इनोवेशन किया, उसे कैसे वैज्ञानिक दृष्टि से और बेहतर किया जा सकता है।
केंद्रीय मंत्री चौहान ने बताया कि कुछ नीतिगत मामले भी किसानों ने बताए, क्लाइमेट चेंज में कैसे समेकित कार्य-योजना बनाएं, जैविक उत्पादन की बात करते हैं, लेकिन सर्टिफिकेशन में दिक्कतें आती हैं, उसकी प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। चारे के बारे में नई नीति बननी चाहिए, जिससे पशुपालन ठीक ढंग से कर सकें। एफपीओ को व्यवहारिक बनाने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं। ऐसे अनेक उपयोगी सुझाव किसानों की तरफ से आए है। योजनाएं और नीतियां बनाते समय हम कोशिश करेंगे कि उन सुझावों को ध्यान में रखा जाएं। अंत में उन्होंने वैज्ञानिकों, अधिकारियों, राज्य सरकारों को इस अभियान को सफल बनाने के लिए बधाई दी। साथ ही सूचना प्रवाह में मीडिया की भूमिका की भी सराहना की।