4 लाख 42 हजार किसानों को किया गया प्रधानमंत्री फसल बीमा दावा का भुगतान

प्रधानमंत्री फसल बीमा दावा का भुगतान

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना देश में वर्ष 2016 से चलाई जा रही है, योजना के तहत बीमित फसलों को प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति की पूर्ति किसानों को की जाती है | अभी छतीसगढ़ सरकार ने राज्य के बीमित किसानों को, पिछले वर्ष खरीफ फसलों को जो नुकसान हुआ था उन दावों का भुगतान कर दिया है | राज्य में 13 लाख 95 हजार 143 किसानों ने खरीफ 2020 में फसलों का बीमा करवाया था उनमें से काफी किसानों की फसलों (धान और सोयाबीन एवं अन्य खरीफ) को  प्राकृतिक कारणों से काफी नुकसान हुआ था उन किसानों को फसल नुकसान की भरपाई बीमा राशि से कर दी गई है |

प्रदेश में दो कंपनियों द्वारा बीमा किया गया है

छत्तीसगढ़ राज्य में खरीफ 2020 में दो कंपनियों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा किया था | एग्रीकल्चर कम्पनी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड 20 जिलों में तथा बजाज एलायंस जनरल एंश्योरेंस कम्पनी द्वारा 8 जिलों में खरीफ 2020 में फसल बीमा किया गया था | राज्य में खरीफ सीजन 2020 में ज्यादातर धान तथा सोयाबीन फसलों का बीमा किया गया था |

किसानों को भुगतान किये गए बीमा दावा में से 491 करोड़ 58 लाख 50 हजार रूपये का भुगतान एग्रीकल्चर कम्पनी आँफ इंडिया लिमिटेड तथा 36 करोड़ 82 लाख 88 हजार रूपये के भुगतान किसानों को बजाज एलायंज जनरल एंश्योरेंस कम्पनी द्वारा किया गया है |

किस जिलें में किया गया फसल बीमा दावों का भुगतान

राज्य के सभी जिलों में किसानों को फसल क्षति के अनुसार फसल बीमा दावों का भुगतान किया गया है | यह संख्या इस प्रकार है :-

  • राजनंदगांव जिले के 97,462 किसानों को 149.24 करोड़ रूपये
  • महासमुन्द जिला के 38,557 किसानों को 65.55 करोड़ रूपये
  • बालोद जिला के 31,418 किसानों को 28.83 करोड़ रूपये
  • बलौदाबाजार जिला के 19,964 किसानों को 12.77 करोड़ रूपये
  • बस्तर जिला के 41,138 किसानों को 36.60 करोड़ रूपये
  • बिलासपुर जिला के 12,815 किसानों को 1.93 करोड़ रूपये
  • दंतेवाडा जिला के 4954 किसानों को 6.77 करोड़ रूपये
  • धमतरी जिला के 41138 किसानों को 36.60 करोड़ रूपये
  • दुर्ग जिला के 18229 किसानों को 12.21 करोड़ रूपये
  • गरियाबंद जिला के 7492 किसानों को 7.29 करोड़ रूपये
  • जांजगीर चांपा जिला के 21745 किसानों को 13.11 करोड़ रूपये
  • कबीरधाम जिला के 9338 किसानों को 19.65 करोड़ रूपये
  • कोंडागांव जिला के 7907 किसानों को 6.98 करोड़ रूपये
  • कोरिया जिला के 1744 किसानों के 89.57 लाख रूपये
  • रायगढ़ जिला के किसानों को 99.79 लाख रूपये
  • रायपुर जिला के 22864 किसानों को 4.05 करोड़ रूपये
  • सरगुजा जिला के 1815 किसानों को 85.05 लाख रूपये
  • कंकर जिला के 39871 किसानों को 87.38 करोड़ रूपये
  • बेमेतरा जिला के 10993 किसानों को 25.71 करोड़ रूपये
  • कोरबा जिला के 7080 किसानों को 12.99 करोड़ रूपये
  • मुंगेली जिला के 4312 किसानों को 3.28 करोड़ रूपये
  • सुकमा जिला के 5330 किसानों को 18.57 करोड़ रूपये
  • सूरजपुर जिला के 2962 किसानों को 1.62 करोड़ रूपये
  • जशपुर जिला के 1094 किसानों को 18.25 लाख रुपया
  • बलरामपुर जिला के 203 किसानों को 5.24 लाख रूपये
  • गौरेला जिला – पेंड्रा – मरवाही जिला के 6386 किसानों को 2.63 करोड़ रूपये,
  • बीजापुर जिला के 1998 किसानों को 1.22 करोड़ रूपये
  • नारायणपुर जिला के 521 किसानों को 35.82 लाख रुपये

खरीफ सीजन में लगभग 14 लाख किसानों ने किया था पंजीकरण

फसलों के बीमा के लिए क्षेत्रवार फसलें अधिसूचित की जाती है। अधिसूचित फसलों का योजना के तहत किसान बीमा कराते हैं। कृषकों को दावा भुगतान थ्रेसहोल्ड उपज एवं फसल कटाई प्रयोग से प्राप्त वास्तविक उपज में कमी के आधार पर दिया जाता है। राज्य में वर्ष 2020 खरीफ सीजन में 13 लाख 95 हजार 143 किसानों ने पंजीयन कराया था जिसमें से 4 लाख 41 हजार 260 किसानों को वास्तविक उपज में कमी के आधार पर अब तक 528 करोड़ 41 लाख रूपये की बीमा दावा राशि का भुगतान किया जा चूका है |

20.81 लाख हेक्टेयर भूमि का किया गया था बीमा

राज्य सरकार के द्वारा 13 लाख 95 हजार 143 किसानों ने खरीफ 2020 में फसल बीमा कराया था लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा कि वेबसाईट पर 13 लाख 13 हजार 109 किसानों ने 2 फसल बीमा कंपनियों से 20 लाख 81 हजार 355 हेक्टेयर भूमि में 81,08,13,32,177 रूपये का फसल बीमा कराया था |

इसके लिए कुल 1222.46 करोड़ रूपये का कुल प्रीमियम किसान राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार के द्वारा दिया गया था | जिसमें 530.15 करोड़ रूपये केंद्र सरकार, 530.15 करोड़ रुपया राज्य सरकार तथा 162.16 करोड़ रुपये किसानों के द्वारा प्रीमियम के रूप में जमा किया गया था |

जानिए इस वर्ष किसानों को विभिन्न उर्वरकों पर कितनी सब्सिडी दी जाएगी

वर्ष 2021–22 में उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी

अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में पी-एंड-के उर्वरक के भाव लगातार बढ़ रहे हैं, जिसके कारण भारत में भी पी-एंड-के आधारित उर्वरकों के भाव में वृद्धि कर दी गई थी | केंद्र सरकार ने किसानों को बढ़ते उर्वरकों के दामों को नियंत्रित करने और किसानों को कम दरों पर उपलब्ध करवाने के लिए विभिन्न पी-एंड-के उर्वरकों पर पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी तय कर दी है | यह सब्सिडी अभी सिर्फ खरीफ सीजन के लिए ही है | जिससे फिलहाल तो किसानों को बढे हुए उर्वरकों के दामों में राहत मिल गई है |

भारत सरकार उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करती है, खासतौर से यूरिया और 22 ग्रेड वाले पी-एंड-के उर्वरकों की, जिसमें डीएपी भी शामिल है। ये उर्वरक किसानों को सब्सिडी के आधार पर उर्वरक निर्माताओं/आयातकों को दिए जाते हैं | पी-एंड-के उर्वरकों पर सब्सिडी एनबीएस योजना के आधार पर दी जाती है | यह सब्सिडी एनबीएस दरों पर उर्वरक कंपनियों को जारी की जायेगी जिससे किसानों को सस्ती कीमत पर उर्वरक मिल सके।

सरकार इस वर्ष कितनी सब्सिडी देगी ?

केंद्र सरकार ने पहले ही डीएपी उर्वरक पर 1200 रूपये प्रति 50 किलोग्राम के पैकेट पर सब्सिडी दे रही है, जो प्रति किलोग्राम 24 रुपये है | अब सरकार ने वर्ष 2021–22 के लिए अन्य रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी तय कर दी है |अतिरिक्त सब्सिडी की इस व्यवस्था से लगभग 14,775 करोड़ रुपये के बोझ का अनुमान है। यह सब्सिडी इस प्रकार है :-

  • नाईट्रोजन N – 18.789 रुपये प्रति किलोग्राम
  • फास्फोरस P– 45.323 रुपये प्रति किलोग्राम
  • पोटाश K– 10.116 रूपये प्रति किलोग्राम
  • सल्फर S – 2.374 रूपये प्रति किलोग्राम

देश में उर्वरकों की आवश्यकता एवं उत्पादन

फसलों के उत्पादन बढ़ाने तथा मिट्टी में पोषक तत्वों कि मात्रा बढ़ाने के लिए नाईट्रोजन, पोटाश तथा फास्फोरस की जरूरत होती है | इसके लिए किसानों को सरकार जरूरत के हिसाब से उर्वरक उपलब्ध कराती है | केन्द्रीय रसायन तथा उर्वरक मंत्री के द्वारा संसद में 16 मार्च 2021 को एक सवाल के जवाब देते हुए बतायें कि देश में वर्ष 2019–20 में कितनी उर्वरक की खपत तथा उत्पादन होता है इसकी जानकारी दी थी जिसके अनुसार-

वर्ष 2019 में यूरिया कि मांग 33.526 मिलियन मैट्रिक टन है | इसी प्रकार डीएपी 10.330 मिलियन मैट्रिक टन, एनपीके 10.482 मिलियन मैट्रिक टन तथा एमओपी 3.812 मिलियन मैट्रिक टन की आवश्यकता है | मांग के अनुसार उत्पादन कम होने के चलते केंद्र सरकार विभिन्न प्रकार के उर्वरक का आयात करता है |

उर्वरकों का उत्पादन और आयात

वर्ष 2019–20 में यूरिया का कुल उत्पादन 24.455 मिलियन मैट्रिक टन था, जबकि डीएपी का उत्पादन 4.550 मिलियन मैट्रिक टन रहा | इसी प्रकार एनपीके का उत्पादन 9.334 मिलियन मैट्रिक टन रहा है | इसकी पूर्ती करने के लिए सरकार ने यूरिया का आयात 9.123 मिलियन मैट्रिक टन तथा डीएपी का आयात 4.87 मिलियन मैट्रिक टन किया था | इसी प्रकार एनपीके का आयात 0.746 मिलियन मैट्रिक टन तथा एमओपी का आयात 3.67 मिलियन मैट्रिक टन किया गया था |

समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द बेचने के लिए 20 जून तक करायें पंजीकरण

MSP पर मूंग एवं उड़द बेचने के लिए पंजीयन

ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की कटाई पूरी हो गई है, किसान अब इसे बेचकर जल्द से जल्द खरीफ फसलों की तैयारी करना चाहते हैं | जायद मूंग एवं उड़द को प्रोत्साहन देने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द की खरीदी 15 जून से शुरू कर दी है | इसके लिए पंजीयन 8 जून से शुरू कर दिए गए थे, जो 16 जून तक किया जाना था | लेकिन इस अवधि में बहुत से किसानों के पंजीयन से वंचित रह जाने के कारण पंजीकरण की अंतिम तिथि को बढाकर 20 जून कर दिया है | अब किसान 20 जून तक समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द लगाने के लिए पंजीकरण करवा सकते हैं |

ग्रीष्मकालीन उड़द तथा मूंग बेचने के लिए मध्य प्रदेश के किसान 20 जून तक पंजीयन करा सकते हैं | पहले पंजीयन का डेट 8 जून से 16 जून तक निर्धारित था जिसे बढाकर 20 जून कर दिया गया है |

30 जिलों के किसान बेच सकेगें MSP पर मूंग

राज्य के किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल ने बताया कि भारत द्वारा घोषित समर्थन मूल्य पर ग्रीष्मकालीन मूंग को पहले 27 जिलों के किसान बेच सकते थे लेकिन इसमें भोपाल, बुरहानपुर तथा श्योपुरकला को भी अब जोड़ दिया गया है | जिससे जिलों की संख्या 30 हो जाती है | इन जिलों के किसान समर्थन मूल्य पर अपना पंजीकरण कर उपज मंडी में बेच सकते हैं |

2 लाख 32 हजार किसान अभी तक करवा चुके हैं पंजीयन

कृषि मंत्री ने बताया कि प्रदेश में 6 लाख 82 हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में मूंग लगाई गई है | अब तक 2 लाख 32 हजार किसानों ने 15 जून 2021 तक पंजीयन करा लिया है | सबसे अधिक पंजीयन राज्य के पांच जिलों होशंगाबाद, हरदा, नरसिंहपुर, सीहोर और के किसानों ने करवाया है | समर्थन मूल्य पर खरीदी 15 सितम्बर तक की जाएगी |

समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द बेचने के लिए कहाँ करें पंजीकरण

किसान ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए 8 जून से पंजीकरण चल रहे हैं | किसान सोसाइटी के माध्यम से अथवा ई-उपार्जन पोर्टल से पंजीयन करवा सकते हैं | इसके अतिरिक्त किसान एम.पी.किसान एप, ई-उपार्जन मोबाईल पंजीयन, कॉमन सर्विस सेण्टर, लोक सेवा केंद्र और ई–उपार्जन केन्द्रों या समिति स्तर पर स्थापित पंजीयन केंद्र पर जाकर अपनी उपज का पंजीकरण करवा सकते हैं |

किसानों को अनिवार्य रुप से समिति स्तर पर पंजीयन हेतु आधार नंबर, बैंक खाता नंबर, मोबाइल नंबर की जानकारी उपलब्ध करवाना होगा | किसानों को पंजीयन करवाते समय कृषक का नाम, समग्र आई डी नम्बर, ऋण पुस्तिका, आधार नम्बर, बैंक खाता नम्बर, बैंक का आईएफएससी कोड, मोबाइल नम्बर की सही जानकारी देना होगा |

किसान अब 22 जून तक MSP पर बेच सकेंगे गेहूं

MSP पर गेहूं खरीद

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रबी फसलों की खरीदी का अंतिम दौर चल रहा है | इसके बाबजूद भी अभी कई किसान ऐसे हैं जो अपनी उपज समर्थन मूल्य पर बेच नहीं पाए हैं |  ऐसे में किसानों के द्वारा मांग की जा रही थी कि गेहूं खरीदी की अंतिम तिथि को आगे बढाया जाए | जिसे देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने गेहूं खरीदी की अंतिम तारीख को आगे बढ़ा दिया है | राज्य में इस वर्ष गेहूं की सरकारी खरीदी उच्चतम स्तर पर है इसके बाद भी सरकारी खरीद को आगे बढ़ा दिया गया है |

22 जून तक की जाएगी गेहूं की खरीदी

उत्तर प्रदेश में गेहूं कि खरीदी 15 जून तक किया जाना था जिसे राज्य सरकार ने 22 जून तक आगे बढ़ा दिया है | सभी ऐसे किसान जो पहले ही गेहूं समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए पंजीकरण करवा चुके हैं परन्तु अभी तक गेहूं नहीं बेच पाए हैं वह किसान 22 जून तक MSP पर गेहूं की उपज बेच सकते हैं |

उत्तर प्रदेश के खाद्य आयुक्त ने बताया कि इस बार 16,10,637 किसानों ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया था , जबकि पिछले वर्ष 7,94,484 किसानों ने पंजीयन कराया था | राज्य में 12,30,024 किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचा है | यानि इस बार 5,66,214 अधिक किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ प्राप्त हुआ है |

राज्य में इस वर्ष 54.25 लाख मीट्रिक टन की गई गेहूं खरीदी

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों से वर्ष 2020–21 के रबी सीजन में 54.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा है | इससे पहले 2018–19 में 52.92 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी | वर्ष 2019–20 में 37.04 लाख मीट्रिक टन और 2020–21 में 35.76 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी | पिछले वर्ष की तुलना में इस बार 18.49 लाख मीट्रिक टन गेहूं अधिक खरीदा गया है |

किसान बुआई पहले जरुर करें बीज अंकुरण परिक्षण एवं बीजोपचार

बीज बुआई के लिए बीजोपचार एवं बीज अंकुरण परिक्षण

देश के कई राज्यों के जिलों में मानसून पहुँचने के साथ ही अच्छी बारिश भी हो चुकी है, ऐसे में किसान खरीफ की बुआई की आवश्यक तैयारी में लग गए हैं | खेती में बीज की महत्ता बहुत ही अधिक है क्योंकि बीज पर पूरा कृषि कार्य निर्भर करता है ,बीज अगर स्वस्थ होगा तो पौधे स्वस्थ होंगे | बीज अच्छा होने पर उसमें कीट-रोग लगने की सम्भावना कम होती ही है जिससे फसल की लागत कम होने के साथ ही उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है |

यदि बीज अच्छा नहीं है तो बीज का अंकुरण अच्छा नहीं होगा, प्रति इकाई क्षेत्र में पौध संख्या कम होगी और यदि अंकुरित हो जाता है तो पौधे अस्वस्थ एवं कीड़े बामारी का प्रकोप बढ़ जाने से रोकथाम हेतु फसल औषधि का अधिक उपयोग करने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है | इसलिए किसानों को बीज की बुआई से पहले उसका परिक्षण एवं बीजोपचार करना जरुरी है |

इस तरह करें बीज अंकुरण परीक्षण

बुआई से पहले अंकुरण परीक्षण करना बहुत ही जरूरी है | इस हेतु बीज की बोरी से बीज साफ-सफाई कर छोटे एवं अस्वस्थ दानें अलग कर लें तथा बिना छांटे 100 बीज गिनकर गीली बोरी में कतार में रखकर लपेट कर रख दें। साथ ही बोरे में हल्की नमी बनाये रखें, तीन चार दिनों में बीज अंकुरण होने के बाद अंकुरित बीज की संख्या के गिन ले क्योंकि यही आपके बीज अंकुरण का प्रतिशत होगा।

विभिन्न बीजों के माध्यम से उचित अंकुरण क्षमता के मापदंड अलग-अलग होते हैं, जैसे धान 80-85 प्रतिशत, उड़द 75 प्रतिशत, सोयाबीन 70-75 प्रतिशत है। अंकुरण परीक्षण में उपरोक्त मापदण्ड से थोड़ा अंतर होने पर बीज की मात्रा बढ़ाकर ही बुआई करनी चाहिए | यदि बीज का अंकुरण प्रतिशत मापदण्ड से बहुत कम है तो उस बीज की बुआई न करें तथा बीज जहाँ से लिया है वहां वापस कर दें  |

इस तरह करें बीजों का उपचार

कई बार ऐसा होता है की की बुआई के कुछ दिन पश्चात अंकुरण दिखता है लेकिन बाद में पौध संख्या कम हो जाती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जो बीज खेत में बोया गया है वह रोग या कीट से प्रभावित होता है, यह पोधे अंकुरण के कुछ दिन बाद ही मर जाते हैं | कीड़े से प्रभावित बीज में पौध को जड़ के विकसित होने तक भोजन नहीं मिल पाता है। इसलिये स्वस्थ बीज का बोआई करना बहुत जरूरी है।

धान के बीजों का उपचार

खरीफ सीजन की सबसे मुख्य फसल धान का बीजोपचार कर स्वस्थ्य बीज प्राप्त करने के लिये 17 प्रतिशत नमक घोल धान बीज का उपचार करें इसके लिये 10 लीटर पानी में 1 किलो 700 ग्राम नमक को घोले या ग्राम स्तर पर एक आलू या एक अण्डे की व्यवस्था करें पहले टब या बाल्टी में पानी ले फिर उसमें आलू या अण्डा डाले आलू एवं अण्डा बर्तन के तल में बैठ जाएगी, लेकिन जैसे-जैसे नमक डालकर घोलते जायेंगे। उपर आते जायेगा और 17 प्रतिशत घोल तैयार हो जायेगा तब अण्डा या आलू पानी के उपरी सतह पर तैरने लगेगा। इसके बाद अण्डा या आलू को पानी से निकाल कर बीज को इस घोल में डाले और हाथ से हिलाये एवं 30 सेकण्ड के लिये छोड़ दें।

ऐसा करने से धान का बदरा, मटबदरा, कटकरहा धान, खरपतवार के बीज तथा कीड़े से प्रभावित बीज पानी के उपर तैरने लगेंगे। उसे अलग बर्तन में रखे और जो बीज बर्तन के नीचे तल में बैठ गया है उसे अलग कर साफ पानी से धोये तत्पश्चात् तुंरत बुआई करें | ऐसा करने से स्वस्थ बीज प्राप्त होगा। कटकरहा, बदरा,मटबदरा, कीट से प्रभावित बीज एवं खरपतवार के बीज आसानी से अलग हो जाते हैं। इसके साथ ही कुछ अन्य फफूँद नाशक दवाई से जैसे थाईरम,बाविस्तीन के दो ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से दवा का उपयोग करने से तैयार होने वाले पौधा स्वस्थ्य होगा। जिससे पौधा रोग के प्रति लड़ने के लिए सक्षम होगा।

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10 जुलाई तक किया जायेगा गन्ना किसानों को बकाया राशि का भुगतान

गन्ना किसानों को बकाया राशि का भुगतान

गन्ने की खेती करने वाले किसानों को अक्सर इस बात से शिकायत रहती है कि न तो उन्हें गन्ने के उचित दाम मिलते हैं और न ही उन्हें समय पर भुगतान किया जाता है | उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं हरियाणा राज्यों के किसान यह शिकायत करते रहते हैं की चीनी मीलों के द्वारा समय पर भुगतान नहीं किया जा रहा है | ऐसे में हरियाणा सरकार ने गन्ना किसानों को 10 जुलाई तक सभी बकाया राशि का भुगतान करने का निर्णय लिया है | हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा कि गन्ना किसानों की बकाया राशि का भुगतान आगामी 10 जुलाई, 2021 तक शत-प्रतिशत कर दिया जाएगा।

पिराई सीजन 2020-2021 का किया जायेगा भुगतान

डॉ बनवारी लाल ने बताया कि हाल ही के पिराई सीजन 2020-2021 के दौरान सहकारी चीनी मिलों ने 429.35 लाख क्विंटल गन्ने की खरीद की है जिसकी कुल राशि 1500.83 करोड़ बनती है जिसमें से 1082.16 करोड़ रूपए की राशि गन्ना किसानों को दी जा चुकी है तथा शेष राशि आगामी 10 जुलाई तक अदा कर दी जाएगी । पिराई सीजन 2020-21 में 429.17 लाख क्विंटल गन्ने की पिराई की गई जबकि पिराई सीजन 2019-20 में 371.86 लाख क्विंटल गन्ने की पिराई की गई थी।

वहीँ पिराई सीजन 2020-21 में 41.97 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया जबकि पिराई सीजन 2019-20 में 37.41 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया था। सहकारिता मंत्री ने बताया कि पिराई सीजन 2020-21 में 87.59 प्रतिशत क्षमता उपयोग किया गया जबकि पिराई सीजन 2019-20 में 86.13 प्रतिशत क्षमता उपयोग किया गया था। ऐसे ही पिराई सीजन 2020-21 में 36.08 करोड़ रूपए की 7.53 करोड़ यूनिट बिजली बेची गई जबकि पिराई सीजन 2019-20 में 32.19 करोड़ रूपए की 6.83 करोड़ यूनिट बिजली बेची गई थी। 

किसान खरीफ सीजन में अधिक पैदावार के लिए लगाए मक्का की यह नई उन्नत किस्में

मक्का की नई उन्नत किस्में

मक्का की खेती का नम्बर देश में धान तथा गेहूं के बाद तीसरे नंबर पर आता है | इसकी खेती वर्ष में दो बार होने के कारण उत्पादन काफी अधिक होता है | मक्के के अधिक उत्पादन के लिए यह जरुरी रहता है की मक्के का बीज तथा बुआई का सही समय होना चाहिए | खरीफ मक्के की बुआई के लिए जून का पहला पखवाडा उचित माना जाता है | इसके बाद की गई मक्के की बुआई में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है | रबी मक्का अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से 15 नवंबर तक एवं जायद मक्का के लिए मार्च के प्रथम पखवाडा में बोने के लिए उपयुक्त है |

किसानों को अधिक उत्पादन एवं आय के लिए मक्का की उन्नत किस्मों की खेती करना चाहिए | उन्नत किस्मों की खेती से न केवल अधिक उत्पादन होता है बल्कि कीट-रोग प्रतिरोधी होने के कारण लागत में भी कमी आती है | भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के अनुसार मक्का की कई किस्में विकसित की गई है जिनकी जानकारी किसान समाधान आपके लिए लेकर आया है |

खरीफ सीजन हेतु मक्का की उन्नत किस्में एवं पैदावार

यह वर्ष में दो बार किये जाने वाली फसल है | दोनों मौसम में बीज की प्रजातियाँ अलग – अलग होती है इसके साथ ही उत्पादन भी | नीचे दिये हुई सभी प्रजाति खरीफ मौसम के लिए है |

एचक्यूपीएम – 1 :-

मक्के की यह किस्म 88 से 90 दिन में तैयार हो जाता है | इसका उत्पादन 60 से 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हैं | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का होता है |

एचक्यूपीएम – 5 :-

मक्के की यह प्रजाति उच्च उत्पादन के लिए जाना जाता है | 90 दिनों में तैयार होने वाली मक्के का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का पीला होता है |

एचएम – 5 :-

मक्के की इस प्रजाति के बीज का रंग सफेद होता है | यह 90 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन क्षमता 60 से 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

केएमएच – 3426 :-

मक्के की यह प्रजाति 90 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | इसका उत्पादन क्षमता 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का पीला होता है |

विवेकक्यूपीएम – 9 :-

मक्का की यह किस्म सबसे कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग पीला होता है |

डीएचएम – 117 :-

मक्के की यह प्रजाति सबसे ज्यादा दिनों में तैयार होने वाली है | यह किस्म 95 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के का बीज हल्का पीला होता है |

मक्का बुआई के लिए बीज दर

मक्के की बुआई सीडड्रिल से करना चाहिए जिससे मक्का एक कतार में रहता है | इससे मक्के की निराई तथा खरपतवार निकासी करने में आसानी होती है | 8–10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज के लिए उपयुक्त होता है | बुआई में पौधे से पौधे की दूरी 20 से.मी. तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60–70 से.मी. रखनी चाहिए |

मक्का की खेती के लिए खाद (उर्वरक) की आवश्यकता

खरीफ मक्का की 50 से 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पैदावार लेने के लिए 150 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है | स्फुर तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाईट्रोजन का 10–15 प्रतिशत बुआई के समय दें तथा बची हुई नाईट्रोजन का 25, 45 तथा 60 दिनों के बाद उपयुक्त मात्रा का छिडकाव करें |

खरपतवार प्रबंधन

खरीफ मक्का की कम पैदावार का सबसे प्रमुख कारण खरपतवार हैं तथा मक्का के लिए रासायनिक खरपतवार नाशक भारत में बहुत कम उपलब्ध हैं | इस मौसम में मुख्य खरपतवार मोथ तथा कुछ चौड़ी व संकरी पत्ती के खरपतवार हैं | खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्न विधियां अपनायी जा सकती हैं |

स्टेल सीड बड़े तकनीक

इस विधि में फसल बोने से पहले खरपतवारों को उगाया जाता है तथा बाद में ग्लाइफोसेट 15 मि.ली. / लीटर पानी तथा 2–4 डी. 2 मि.ली. / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जाता है | स्टेल सीड bed तकनीक में सामन्य तौर पर मई में खेत में मेड बनाकर छोड़ दी जाती है, जिससे कि पूर्व मानसून वर्षा से खरपतवार उग जाएं | इसके बाद खेत को बिना जोते ही मक्का की बुआई कर दी जाए | इस विधि का प्रयोग करने से खरपतवारों की संख्या काफी हद तक कम हो जाती है |

मेड के ऊपर मक्का की बुआई करने के दो–तीन दिन के अंदर पेंडीमेथिलिन + एट्राजीन (1 लीटर + 600 ग्राम) प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करने पर खरपतवारों का जमाव कम होता है | बुआई के 20 से 30 दिनों बाद एट्राजीन + 2, 4 डी. (600 + 400 ग्राम/एकड़) का छिडकाव करने से खरपतवारों का काफी हद तक नियंत्रण हो जाता है |

रोग तथा कीटों का प्रबंधन

खरीफ मक्का की शुरूआती अवस्था में पत्तीछेदक कीट आते हैं | इनको क्लोरोपायरिफास और सायपरेंथेलिन 2 मि.ली./ लीटर पानी में मिलाकर छिडकने से कीटों के आक्रमण को रोका जा सकता है | तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए फ्यूराडान 30 से 50 दिनों के मक्का में एक – एक चुटकी गाभा में डालने से इसका प्रकोप कम होता है | तनाछेदक कीट का प्रकोप अधिक होने पर फ्लूबेंडीअमाइड (फेम) 75 मि.ली./हैक्टेयर या कलोरएंट्राएनिलप्रोल (कोरजेब) 75 मि.ली./हैक्टेयर या एमिना मेक्टिनबेन्जोयेड (प्रोक्लेम) 12.5 मि.ली./हैक्टेयर का प्रयोग करें |

किसान आज से बेच सकेंगे MSP पर मूंग एवं उड़द, अभी करें पंजीयन

समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द की खरीद

मध्यप्रदेश में इस वर्ष 4.77 लाख हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन मूँग की फसल की बोवनी की गई है, जिससे 6.56 लाख मीट्रिक टन मूँग का उत्पादन होना संभावित है किन्तु बाजार में इसके गिरते भाव को देखते हुए किसान चिंतित हैं | इसको देखते हुए जायद में किसानों द्वारा लगाई गई मूंग को प्रोत्साहित करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने जायद मूंग को समर्थन मूल्य पर खरीदने का फैसला लिया है | सरकार ने 15 जून से मूंग एवं उड़द की खरीदी शुरू करने के लिए 8 जून से ही किसानों के पंजीकरण की व्यवस्था शुरू कर दी है |

कब से कब तक होगी मूंग एवं उड़द की MSP पर खरीद

राज्य में 15 जून 2021 से ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की खरीदी शुरू की जा रही है, यह खरीदी 90 दिनों तक चलेगी | राज्य के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल ने जानकारी दी कि प्रदेश के 25 जिलों में 4 लाख 77 हजार हेक्टेयर में ग्रीष्म–कालीन मूंग होती है | इस वर्ष 6 लाख 56 हजार मीट्रिक टन मूंग उत्पादन संभावित है | इसमें हरदा तथा होशंगाबाद जिले में 3 लाख 33 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में 3 हजार 500 करोड़ रूपये की मूंग का उत्पादन होने की संभावना है |

समर्थन मूल्य पर मूंग एवं उड़द बेचने के लिए कहाँ करें पंजीकरण

किसान ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए 8 जून से पंजीकरण चल रहे हैं | किसान सोसाइटी के माध्यम से अथवा ई-उपार्जन पोर्टल से पंजीयन करवा सकते हैं | इसके अतिरिक्त किसान एम.पी.किसान एप, ई-उपार्जन मोबाईल पंजीयन, कॉमन सर्विस सेण्टर, लोक सेवा केंद्र और ई–उपार्जन केन्द्रों या समिति स्तर पर स्थापित पंजीयन केंद्र पर जाकर अपनी उपज का पंजीकरण करवा सकते हैं |

पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेज

किसानों को अनिवार्य रुप से समिति स्तर पर पंजीयन हेतु आधार नंबर, बैंक खाता नंबर, मोबाइल नंबर की जानकारी उपलब्ध करवाना होगा | किसानों को पंजीयन करवाते समय कृषक का नाम, समग्र आई डी नम्बर, ऋण पुस्तिका, आधार नम्बर, बैंक खाता नम्बर, बैंक का आईएफएससी कोड, मोबाइल नम्बर की सही जानकारी देना होगा |

किस भाव पर होगी मूंग एवं उड़द की खरीद

मध्य प्रदेश में मूंग एवं उड़द की सरकारी खरीदी केंद्र सरकार के द्वारा वर्ष 2020–21 के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाएगी | मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7196 रूपये प्रति क्विंटल है एवं उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6000 रुपये प्रति क्विंटल है |

किसान अधिक लाभ के लिए करें सिर्फ नीम लेपित यूरिया का ही उपयोग

नीम लेपित यूरिया के लाभ

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है परन्तु इसके परिणाम स्वरूप मृदा संरचना एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | इससे मृदा में जल अधिग्रहण क्षमता, वायु संरचना और कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में कमी आती है | इन दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर कृषि वैज्ञानिकों ने नीम लेपित यूरिया का विकास किया है | इस नीम लेपित यूरिया के प्रयोग से किसानों तथा कृषि की बहुत सी समस्याओं को कम किया जा सकता है | इसके फसलों में नाईट्रोजन कि पूर्ति करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी प्रभावी है |

क्या है नीम लेपित यूरिया

नीम लेपित यूरिया में एक साधारण यूरिया को नीम के तेल से आवरित किया जाता है| इससे नाईट्रोजन, मृदा में धीरे–धीरे समावेशित होती है | साधारण यूरिया का अधिकांश भाग पौधों द्वारा उपयोग किये बिना ही नष्ट हो जाता है | सर्वप्रथम भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद– भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और उनकी टीम ने नीम लेपित यूरिया तैयार किया था | सबसे पहले धान की फसल में इसका प्रयोग कर फसल की वृद्धि और उत्पादन में बढ़ोतरी दर्ज की थी |

सामान्यत: नाइट्रापायरिन, सल्फाथायाजोल आदि की लागत अधिक होने के कारण अब इनका प्रयोग यूरिया के लेपन में नहीं किया जा रहा है | ऐसे में नीम लेपित यूरिया एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरा है | उम्मीद है कि आने वाले समय में हमारे किसान नीम लेपित यूरिया का उपयोग कर मृदा स्वास्थ्य के साथ–साथ अधिक फसलोत्पादन प्राप्त करने में मदद मिलेगी | इससे भूमिगत जल में नाईट्रोजन की मात्रा में कमी आएगी | परिणामस्वरूप मानव स्वास्थ्य की भी रक्षा होगी |

क्यों जरुरी है नीम लेपित यूरिया

जब किसान सामान्य यूरिया का प्रयोग करते हैं, तो नाईट्रोजन की लगभग आधी मात्रा ही पौधों द्वारा ग्रहण की जाती है तथा शेष मात्रा की विभिन्न रूपों में क्षति हो जाती ही है | यूरिया के जलीयकरण और नाईट्रोजन द्वारा क्षति भी एक गंभीर समस्या है | इस समय से बचाने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय नीम लेपित यूरिया है, जो नाईट्रोजन निरोधी के रूप में कार्य करता है |

इसके प्रयोग से नाईट्रीकरण की प्रक्रिया मंद गति से होने लगती है, जिससे नाईट्रोजन के लीचिंग व वाष्पीकरण द्वारा ह्रास में कमी आ जाती है | नाईट्रोजन अधिक समय तक मृदा में रहने से पौधे इसे लंबे समय तक ग्रहण कर सकते हैं | इससे यूरिया की कम मात्रा में प्रयोग कर उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, जिससे लागत में कमी आयेगी | इसके साथ ही नीम को एक अच्छा कीटनाशक और बैक्टीरियारोधी भी माना जाता है, जिससे विभिन्न फसलीय रोगों एवं कीटों के प्रकोप को कम किया जा सकता है |

कैसे काम करता है नीम लेपित यूरिया

नीम लेपित यूरिया नीम के तेल की परत से ढका होता है | इससे यह मृदा में नमी के सम्पर्क में आने पर धीरे–धीरे घुलता रहता है और पौधों को नाईट्रोजन की उपलब्धता लंबे समय तक बनी रहती है | यह फसलों की वृद्धि, विकास और उपज बढ़ोतरी में सहायक होता है | इस प्रकार से मृदा में नाईट्रोजन की हानि को काफी हद तक कम किया जा सकता है |

नीम लेपित यूरिया के लाभ एवं पैदावार में वृद्धि

इसके प्रयोग से जहाँ कृषि लागत में कमी आती है वहीँ मिट्टी में नाईट्रोजन की उपलब्धता लम्बे समय तक रहती है | इसके प्रयोग से मिट्टी की सेहत तो सुधरती ही है वहीँ प्रदुषण भी कम होता है | विभिन्न प्रयोगों के माध्यम से यह देखा गया है कि इसके प्रयोग से धान के पैदावार  में 5.79 प्रतिशत, गेहूं के पैदावार में 12.07 प्रतिशत, गन्ना की पैदावार में 17.5 प्रतिशत, मक्का की पैदावार में 7.14 प्रतिशत, अरहर की पैदावार 10.08 प्रतिशत, सोयाबीन की पैदावार में 16.88 प्रतिशत, आलू एवं कपास की पैदावार में 5.21 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है |

कम पानी एवं कम समय में धान की खेती के लिए किसान करें डीएसआर मशीन से रोपाई

धान की डीएसआर मशीन से बिजाई

खेती-किसानी कार्यों में कृषि यंत्रों का महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है, कृषि यंत्रों की मदद से जहाँ कार्य कम समय में हो जाता है वहीँ इससे लागत भी कम आती है | ऐसा ही कृषि यंत्र धान की खेती करने वाले किसानों के लिए तैयार किया गया है जिसकी मदद से किसान सीधे धान की बिजाई कर सकते हैं | हरियाणा सरकार ने धान उत्पादक किसानों को डीएसआर मशीन द्वारा धान रोपाई की सलाह दी है, इससे जहां पानी की बचत होती है वहीं फसल भी लगभग 10 दिन पहले पककर तैयार होती है।

आमतौर पर धान के सीजन में 15 जून से किसान पारम्परिक विधि से धान की पौध तैयार करके अपने-अपने खेतों में रोपाई करते हैं । इस विधि में खेत में पानी भरकर रोपाई की जाती है व रोपाई के बाद भी खेत में पानी बनाए रखना पड़ता है। इस समय तापमान अधिक होने के कारण पानी का वाष्पीकरण बहुत अधिक मात्रा में होता है और इसमें मेहनत भी ज्यादा लगती है।

डीएसआर मशीन से धान रोपाई के लाभ

धान की सीधी बिजाई डीएसआर मशीन द्वारा करने से भू-जल, लेबर व समय की बचत होती है | इस विधि से पहले खेत में लेजर लेवलर द्वारा समतल किया जाना जरूरी है और इसके बाद पानी से तर-बतर अवस्था में धान की सीधी बिजाई की जा सकती है। उन्होंने इस विधि के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि इस विधि से बिजाई करने में 15 से 20 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है।

इस मशीन द्वारा किसान रेतीली जमीनों में बिजाइ न करें व केवल उन्हीं खेतों में बिजाई करे जिसमें किसान पहले से ही धान की फसल ले रहे है।  धान की सीधी बिजाई वाली विधि से जहां एक ओर पैदावार रोपाई करके लगाई गई धान की फसल के बराबर होती है वहीं दूसरी ओर फसल 7 से 10 दिन पहले पक कर तैयार हो जाती है। जिस कारण धान की पराली सम्भालने व गेहूं अथवा सब्जियों की बिजाई करने के लिए अधिक समय मिल जाता है।

बिजाई मशीन पर सरकार द्वारा दिया जाने वाला अनुदान

हरियाणा सरकार के प्रवक्ता ने यह भी बताया कि जो किसान धान की खेती को छोडक़र मक्का की खेती करना चाहते हैं वे मेज पलान्टर द्वारा मेढ़ों पर मक्का की बिजाई भी कर सकते हैं। इससे पानी की अत्यधिक बचत होती है। इन दोनों कृषि यंत्रों को खरीदने पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा समय-समय पर अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त विभाग के पास डीएसआर मशीन होती है, वह किसानों को ‘पहले आओ-पहले पाओ’ के आधार पर बुक की जाती है। उन्होंने कहा कि मक्का बिजाई मशीन फ्री में उपलब्ध करवाई जाएगी तथा इसके लिए किसान अपना आधार-कार्ड कार्यालय में जमा करवाकर मशीनों का लाभ उठा सकते हैं ।