मक्का की खेती
खेत की तैयारी –
भूमि का चयन एवं भूमि की तैयारी –
बलूई दुमट मिट्टी जिसमें उत्तम जल निकासी वाली भूमि मक्का उत्पादन के लिए उपयुक्त है।
उपयोग किए जाने वाले कृषि यंत्र –
हल, बख्खर, पाटा, डोरा, मक्का बुवाई एवं कटाई यंत्र।
उपयुक्त किस्में
कृषि जलवायु क्षेत्र-
वर्षा: 800-1000 मिमि , तापमान:11-18 डि.से. (रात में) एवं 30-32 डि.से. (दिन में)
क्र. | अवधि | किस्में | जारी करने वाली संस्थान का नाम |
1 | शीघ्र पकने वाली(अवधि 85 दिन से कम) औसत उत्पादन क्षमता 40 से 50 क्वि./हेक्टर | डी.एच.एम.-107 एवं 109 पीला रंग दाना | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद |
2 | पी.ई.एच.एम.-1 एवं पी.ई.एच.एम.-2 नारंगी रंग दाना | भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नईदिल्ली | |
3 | प्रकाश पीला रंग दाना, पी.एम.एच.-5 नारंगी दाना | पंजाब कृषि वि.वि. लुधियाना | |
4 | प्रो.368 | प्रो.एग्रो | |
5 | एक्स -3342 | पायोनियर | |
6 | डी.के.सी.- 7074 पीला, नारंगी दाना | मोन्सेन्टो | |
7 | जे.के.एम.एच. – 175 पीला एवं नारंगी दाना | जे.के.सीड्स | |
8 | बायो – 9637 | बायो सीड्स | |
9 | के.एच. – 5991 | कंचनगंगा | |
10 | मध्यम अवधि(95 दिन से 85 दिन) औसत उत्पादन क्षमता 50 से 70 क्वि./हेक्टर | एच.एम.-4 नारंगी दाना, एच.एम.-10 पीला दाना, | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार |
11 | एच.एम.-10 पीला दाना, | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
12 | एच.क्यू.पी.एम.-1 पीला दाना | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
13 | एच.क्यू.पी.एम.-4 पीला दाना | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
14 | एच.क्यू.पी.एम.-5 नारंगी दाना | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
15 | पी.- 3441 नारंगी दाना | पायोनियर सीड्स | |
16 | एन.के.-21 नारंगी | सिन्जैन्टा इंडिया | |
17 | के.एम.एच. – 3426 नारंगी | कावेरी सीड्स | |
18 | के.एम.एच. – 3712 पीला | कावेरी सीड्स | |
19 | एम.एन.एच. – 803 पीला | नुजीवीडु सीड्स | |
20 | बिस्को – 2418 पीला | बिस्को सीड्स | |
21 | बिस्को – 111 नारंगी | बिस्को सीड्स | |
देरी से पकने वाली (95 दिन से अधिक) औसत उत्पादन क्षमता 60 से 80 क्वि./हेक्टर | |||
22 | एच.एम. – 11 | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
23 | डेक्कन – 105 पीला | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद | |
24 | गंगा – 11 पीला | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद | |
25 | डेक्कन – 103 पीला | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद | |
26 | डेक्कन – 101 पीला | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद | |
27 | एच.क्यू.पी.एम. -4 पीला | चैधरी चरणसिंह हरियाणा कृ.वि.वि. हिसार | |
28 | त्रीशुलता पीला, नारंगी दाना | एन.जी.रंगा कृ.वि.वि. हैदराबाद | |
29 | बिस्को – 855 पीला, नारंगी | बिस्को सीड्स | |
30 | एन.के. – 6240 पाला, नारंगी दाना | सिंजैन्टा | |
31 | एस.एम.एच.-3904 पीला | शक्ति सीड्स | |
32 | प्रो – 311 | प्रो.एग्रो | |
33 | बायो – 9681 | बायो सीड्स | |
34 | सीड्टैक – 740 | सीड्टैक | |
35 | सीड्टैक – 2324 | सीड्टैक |
बुवाई प्रबंधन
(क) बोनी का उपयुक्त समय:-
बुआई हेतु 15-30 जून खरीफ मौसम मे एवं रबी मौसम मे अक्टुम्बर माह मे उपयुक्त होगा। जायद के लिये फसल बुआई का समय निश्चित करते समय यह ध्यान रखे की फुल की अवस्था के समय तापमान 35 से.ग्रे. से अधिक न हो
(ख) कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी –
क्र . | विवरण | कतार से कतार की दूरी से.मी. | पौधे से पौधे की दूरी से.मी. | प्रति हैक्टर पौधो की संख्या |
1 | जल्दी पकने वाली | 60 | 20 | 80000 |
2 | मध्यम अवधि | 60 | 22 | 75000 |
3 | देर से पकने वाली | 75 | 20 | 65000 |
(ग) बोने की गहराई –
3 से 5 सेमी
(घ) बुवाई का तरीका –
रिज बेड में कतार से बुवाई
बीजोपचार
बीजोपचार का लाभ –बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है एवं बीज जनित फंफूंदजन्य बीमारियों से सुरक्षा होती है।
फंफूंदनाशक दवा का नाम एवं मात्रा – बीमारी के बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम एवं थायरम 2 ग्राम/किग्रा बीज अथवा वीटावेक्स पावर 1 ग्राम/किग्रा की दर से उपचार करे। कीट प्रबंध के लिये एमीडाक्लोप्रीड 70 (डब्ल्यू एस) 5 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करे जिससे पौधे 30 दिन तक सुरक्षित होगें।
दवा उपयोग करने का तरीका – बीजों को पहले चिपचिपे पदार्थ से भिगोकर दवा मिला दें फिर छाया में सुखाएं और 2 घंटे बाद बोनी करें।
जैव उर्वरक का उपयोग
(क) जैव उर्वरकों के उपयोग से लाभ – ये पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं।
(ख) जैव उर्वरकों का उपयोग – 3 कि.ग्रा. पी.एस.वी. एवं 3 कि.ग्रा. एजोटोबेक्टर को लगभग 100-150कि.ग्रा.गोबर की खाद में मिलकार बुवाई के पहले छिडकाव करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं ।
पोषक तत्व प्रबंधन
(क) गोबर की खाद/कम्पोस्ट की मात्रा एवं उपयोग – सामान्यतः 6 से 8 टन प्रति हे. की दर से कम्पोस्ट अथवा केंचुआ खाद का प्रयोग बोनी के पूर्व करना चाहिए।
(ख) मिट्टी परीक्षण के लाभ-पोषक तत्वों का पूर्वानुमान कर संतुलित खाद दी जा सकती है।
(ग) संतुलित उर्वरकों को देने का समय –
वधि पकने के अनुसार | पोषक तत्व (कि./हे.) | विकल्प – 1 | विकल्प – 2 | विकल्प – 3 | ||||||||
उर्वरक (कि./हे.) | उर्वरक (कि./हे.) | उर्वरक (कि./हे.) | ||||||||||
नत्रजन | स्फुर | पोटाश | यूरिया | सुपर फास्फेट | म्यूरेट ऑफ़ पोटाश | यूरिया | सुपर फास्फेट | म्यूरेट ऑफ़ पोटाश | यूरिया | सुपर फास्फेट | म्यूरेट ऑफ़ पोटाश | |
शीघ्र | 90 | 40 | 30 | 200 | 250 | 50 | 161 | 87 | 50 | 163 | 125 | 17 |
मध्यम | 120 | 50 | 30 | 270 | 312 | 50 | 217 | 109 | 50 | 219 | 156 | 50 |
देरी | 180 | 60 | 40 | 400 | 375 | 50 | 340 | 130 | 66 | 342 | 188 | 66 |
रासायनिक उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण परिणाम के आधार पर देना अधिक लाभप्रद होगा। नत्रजन की एक तिहाई मात्रा एवं स्फुर तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुआई करते समय सरते से कतारों में दें।शेष दो तिहाई में सें एक तिहाई नत्रजन 25-30 दिन पर एवं एक तिहाई 45-50 दिन पर खड़ी फसल में दे।खेत में पानी भरने की स्थिति में एवं निंदाई गुड़ाई में देरी होने पर नत्रजन 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से निश्चित रूप से दें।खड़ी फसल में नत्रजन का प्रयोग निंदाई उपरान्त ही करें।
(घ) संतुलित उर्वरकों के उपयोग में सावधनियां:-
समय पर संतुलित खाद उचित विधि से दें एवं अधिक खाद का प्रयोग न करें।
(ड़) सूक्ष्म तत्वों की उपयोगिता, मात्रा एवं प्रयोग का तरीका: –
25 किग्रा/हेक्टेर जिन्क सल्फेट बोने से पहले छिटकवा विधी से देना चाहिये।
नींदा प्रबंधन
मक्का फसल को शुरूवाती अवस्था मे नींदा रहित होना चाहिये अन्यथा उत्पादन मे कमी आती है। मक्का की फसल में एट्राजीन 1किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद परन्तु उगने के पूर्व उपयोग करे । अन्तरवर्ती (मक्का / दलहन/तिलहन) फसल व्यवस्था में पेंडीमिथिलिन 1.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर बोनी के तुरंत बाद किंतु अंकुरण के पूर्व नींदानाशकों का उपयोग करें। मक्का फसल में चैड़ी पत्तीवालें खरपतवारों की अधिकता होनें पर 30-35 दिन पर 2,4-डी का 1.0 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उगे हुये खरपतवारों पर छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है
रोग प्रबंधन
क्र. | रोग का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुशंशित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. | उपयोग करने का समय एवं विधि |
1. | पर्ण अंगमारी | छोटे गोला/अण्डाकार भूरे कत्थाई रंग के धब्बे बनते है। | ज़िनेम/ मिनेब | 2.5 – 4 ग्रा./ली. | 8 – 10 दिन के अंतराल पर |
2 | भूरी चित्ती | पत्तियां तने तथा भुट्टे के बाहरी छिलके पर हल्के पीले रंग के 1.5 मिलीमीटर व्यास के गोलाकार /अंडकार धब्बे बनते जाते है। | डाइथेन एम 45 | 2 – 2.5 ग्रा./ली. | बीमारी के शुरूआत होने पर |
3 | मृदूरोमिल आसिता (डाउनी मिल्डयू) | प्रारंभ में निचली पत्तियों पर लम्बवत 3 मिली मीटर चैड़ी पीले रंग की धारियां समानान्तर रूप में बनती है। बाद में ये धारियां भूरे रंग में बदल जाती है। | एप्रोन 35 डब्ल्यू. एस. (फंफूंदनाशक) | 2.5 ग्रा./किग्रा बीज | बीजोपचार |
कीट प्रबंधन
क्र . | कीट का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुशंशित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. | उपयोग करने का समय एवं विधि |
1 | तना छेदक मक्खी | इसके प्रकोप से पौधे का मुख्य प्ररोह कट जाने से मृत केन्द्र (डेड हार्ट) बन जाता है तथा पौधा मर जाता है। | फोरेट 10जी | 10 किग्रा/हे. | बोनी पूर्व |
2 | तना छेदक कीट | इल्लीयां पहले पत्ती को खुरच -खुरच कर खाती है, जिससे मृत केन्द्र (डेड हार्ट) बन जाता है। | कार्बोफयूरान 3जी | 10 किग्रा/हे. | 15 दिन की अवस्था में पौधे की पोंगली में डाले। |
जिस समय इल्ली पत्ति को खुरच कर खाती है । | क्लोरोपाईरीफास 20 ई.सी. | 2 मिली/लीटर |
कटाई एवं गहाई
साधारण थ्रेशर में थोड़ा परिवर्तन करते हुयें मक्का की गहाई आसानी से की जा सकती है। इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। सीधे भुट्टे सूखे होने पर थे्रशर में डालकर गहाई की जा सकती है। तथा साथ ही दानें का कटाव भी नही होता है। कडबी एवं भुट्टे खेत में काफी सूख जाते है। इस दशा में सीधे कडबी सहित थ्रेशर में डालने से भी दाने आसानी से निकाले जा सकते है। एवं कडबी का भूसा जानवरों के खाने योग्य बन जाता है।
उपज एवं भंडारण क्षमता
(क) उपज – खरीफ: 45 – 55 क्विं./हे. एवं रबी: 75 – 80 क्विं./हे.
(ख) भंडारण क्षमता – बीजों को 8-9 प्रतिशत नमी रहने तक सुखाकर भण्डारित करें
अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिंदु :-
(क) उचित जल निकास वाली भूमि का चयन करें।
(ख) भूमि की उपयुक्तता के अनुसार प्रजाती का चुनाव करें।
(ग) संतुलित एवं अनुशंसित खाद की मात्रा का प्रयोग करें।
(घ) बीज, कीटनाशक, दवाओं आदि की अनुशंसित मात्रा का ही प्रयोग
(ड़) अधिक उत्पादन देने वाली संकर किस्मों का प्रयोग करें।
(च) नींदा नियंत्रण हेतु आरंभिक अवस्था में खरपतवार प्रबंधन करें।
(छ) कीट व्याधि से बचाव के लिए प्रबंधन करें।