केसीसी पर किसानों को कृषि, पशुपालन एवं मछली पालन के लिए दिया जा रहा है ऋण

किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण

वर्ष 1998 से कृषि कार्यों के लिए देश के किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड पर कम ब्याज दरों पर ऋण दिया जा रहा है | योजना की शुरुआत से लेकर अभी तक किसान हित में कई परिवर्तन किए गए हैं | अभी हाल के वर्षों में पशुपालन एवं मछली पालन को भी किसान क्रेडिट कार्ड से जोड़ दिया गया है, जिससे किसान इन कार्यों के लिए भी किसान क्रेडिट कार्ड पर बैंक से लोन ले सकते हैं| जिससे उन सभी किसानों को फायदा होगा जिनके पास कम भूमि है लेकिन कृषि के अलावा अन्य कार्य करना चाहते हैं | अब किसान क्रेडिट कार्ड से 1.6 लाख रूपये तक का कर्ज बिना किसी गारंटी के लाभार्थी को दिया जाता है |

2 लाख से अधिक किसानों के केसीसी ऋण स्वीकृत

झारखंड सरकार ने राज्य के किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड से कृषि, पशुपालन तथा मत्स्य पालन के लिए लोन दे रही है | राज्य सरकार की तरफ से जारी प्रेस नोट में बताया गया है कि राज्य के 24 जिलों में 2 लाख 1 हजार 687 किसानों को बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड बनाए गए हैं | इन सभी किसानों को 68,516 करोड़ रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया है |

इसी तरह मत्स्य पालन के लिए 1,359 लाभुकों को किसान क्रेडिट कार्ड से 7.345 करोड़ रूपये का ऋण दिया गया है | इसके अलावा दुग्ध उत्पादकों को डेयरी डेवलपमेंट के माध्यम से 2,452 लाभुकों के आवेदन स्वीकार कर बैंकों द्वारा 15.451 करोड़ रूपये का ऋण स्वीकृत किया गया है | झारखंड स्टेट मिल्क फेडरेशन की ओर से 2,701 लाभुकों का 6.629 करोड़ रूपये का ऋण बैंक के द्वारा स्वीकृत हुआ है |

केसीसी योजना पर लगने वाला ब्याज

किसान क्रेडिट कार्ड योजना पर वैसे तो ऋण लेने पर 9 प्रतिशत की ब्याज दर रहती है परन्तु भारत सरकार इस पर 2 प्रतिशत की सब्सिडी देती है और समय पर ऋण चुकाने वाले किसानों को अतरिक्त 3 प्रतिशत की प्रोत्साहन छूट देती है। इस तरह केसीसी पर सालाना ब्याज़ दर 4 प्रतिशत की आती है। सरकार ने 2019 में केसीसी में ब्याज़ दर में आर्थिक सहायता का प्रावधान शामिल करते हुए इसका लाभ डेयरी उद्योग समेत पशुपालकों और मछ्ली पालकों को भी देने की व्यवस्था की है। साथ ही बिना किसी गारंटी के दिये जाने वाले केसीसी ऋण की सीमा को 1 लाख से बढ़ाकर 1.60 लाख कर दिया है।

26 अक्टूबर से शुरू होंगी राज्य की सहकारी चीनी मिलें

गन्ना पिराई सीजन के लिए सहकारी चीनी मिलों की शुरुआत

देश में कई राज्यों में अब गन्ने की कटाई का काम शुरू होने वाला है, इसके बाद किसान गन्ना बेचने के लिए चीनी मिलों में ले जाएंगे | इस वर्ष केंद्र एवं कुछ राज्य सरकारों ने गन्ने के मूल्य में वृद्धि की है जिसका लाभ किसानों को इस पिराई सीजन से मिलेगा | किसानों से गन्ना समय पर खरीदी की जा सके इसके लिए राज्य सरकारों ने जल्द ही चीनी मिलों को शुरू करने जा रही हैं |

हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा कि आने वाले गन्ना पिराई सीजन के तहत राज्य की सभी सहकारी चीनी मिलों को अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के दूसरे सप्ताह के दौरान चालू कर दिया जाएगा ताकि गन्ना किसानों को किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े।

कब कौन सी चीनी मिल शुरू की जाएगी

हरियाणा के सहकारिता मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने कहा कि अक्टूबर माह से चीनी मिल को शुरू किया जाएगा | जिसमें पंचकूला में राज्य सहकारी चीनी मिल को आगामी 26 अक्टूबर, पानीपत–करनाल–शाहाबाद की सहकारी चीनी मिलों को आगामी 9 नवंबर, रोहतक की सहकारी चीनी मिल को 10 नवम्बर, सोनीपत–जींद-महम-गोहाना की सहकारी चीनी मिलों को 11 नवंबर और कैथल सहकारी चीनी मिल तथा असंध की चीनी मिल को आगामी 12 नवम्बर को गन्ना पिराई के लिए चालू कर दिया जाएगा |

जनवरी 2022 से शुरू होगा नया संयंत्र

सहकारिता मंत्री ने बताया कि जनवरी 2022 के प्रथम सप्ताह के दौरान पानीपत की सहकारी चीनी के नए संयंत्र को भी चालु कर दिया जाएगा | इस पर सहकारिता मंत्री ने संबंधित अधिकारी को निर्देश दिए कि वे पहली जनवरी 2022 तक नए संयंत्र को चालू करने के संबंध में सभी कार्यों को पूरा कर लें |

हरियाणा में इस वर्ष किस भाव पर खरीदा जाएगा गन्ना

हरियाणा सरकार ने राज्य के किसानों के लिए इस वर्ष गन्ने के मूल्य में वृद्धि की है | यह मूल्य वृद्धि 12 रूपये से लेकर 15 रूपये तक है | अगेती किस्म के गन्ने के मूल्य में वर्ष 2021–22 में 12 रूपये की वृद्धि करते हुए 362 रूपये प्रति क्विंटल कर दिया है | वहीँ पिछेती गन्ने के मूल्य में वर्ष 2021–22 के लिए 15 रूपये की वृद्धि करते हुए 355 रूपये प्रति क्विंटल कर दिया है |

20 अक्टूबर से शुरू होंगे समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, सोयाबीन एवं मूंगफली बेचने के लिए किसान पंजीयन

मूंग, उड़द, सोयाबीन एवं मूंगफली बेचने के लिए किसान पंजीयन

खरीफ फसल की कटाई देश भर में जोरों पर चल रही है, कुछ राज्यों में खरीफ फसल की कटाई अंतिम चरण में तो कुछ राज्यों में अभी शुरुआत ही हुई है | किसान को उपज का बाजिव मूल्य मिल सके इसके लिए सरकार द्वारा फसलों की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जाती है | केंद्र सरकार के द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर राज्य सरकारों के द्वारा राज्य में उत्पादन के अनुसार फसलों की खरीदी की जाती है |

राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों से खरीफ फसल खरीदी की समय सारणी जारी कर दी है | यहाँ पर यह जानना जरुरी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी पंजीकृत किसानों से ही की जाएगी | राजस्थान में राज्य के किसान समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने के लिए 20 अक्टूबर से पंजीकरण करा सकेंगे |

कब से शुरू होगी मूंग उड़द, सोयाबीन एवं मूंगफली की MSP पर खरीद एवं पंजीयन

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, सोयाबीन तथा मूंगफली को बेचने के लिए पंजीयन कराना अनिवार्य है | प्रदेश में समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, सोयाबीन एवं मूंगफली की खरीद के लिये ऑनलाइन पंजीकरण बुधवार 20 अक्टूबर से शुरू किए जा रहे हैं । किसान ई-मित्र से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं | पंजीयन ई–मित्र से सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक किया जा सकेंगे | 868 से अधिक खरीद केन्द्रों पर मूंग, उड़द एवं सोयाबीन की 1 नवम्बर से तथा 18 नवम्बर से मूंगफली की खरीद की जाएगी।

कितने खरीदी केंद्र बनाए गये हैं ?

राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों की सहायता के लिए अलग–अलग फसलों के लिए खरीदी केंद्र जिलों में फसल उत्पादन के अनुसार बनाएं हैं | मूंग के लिए 357, उड़द के लिए 168, मूंगफली के 257 एवं सोयबीन के लिए 86 खरीद केन्द्र बनाए गए हैं। किसानों को अपनी उपज बेचने में किसी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए खरीद केन्द्रों पर आवश्यकतानुसार तौल-कांटें लगाये जायेंगे एवं पर्याप्त मात्रा में बारदाना उपलब्ध कराया जाएगा।

कुल कितनी उपज खरीदी जाएगी ?

सरकार को मूंग की 3.61 लाख मीट्रिक टन, उडद की 61807 मीट्रिक टन, सोयाबीन 2.93 लाख तथा मूंगफली 4.27 लाख मीट्रिक टन की खरीद के लक्ष्य की स्वीकृति भारत सरकार ने दी है।

किसान पंजीयन के लिए आवश्यक दस्तावेज

किसानों को उपज बेचने के लिए ई-मित्र से पंजीयन करना जरुरी है | ई-मित्र से पंजीयन कराने के लिए विभिन्न प्रकार का दस्तावेज जैसे जनाधार कार्ड नम्बर, खसरा, गिरदावरी की प्रति एवं बैंक पासबुक की प्रति पंजीयन फार्म के साथ अपलोड करनी होगी | जिस किसान द्वारा बिना गिरदावरी के अपना पंजीयन करवाया जायेगा, उसका पंजीयन समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए मान्य नहीं होगा | एक जनाधार कार्ड से एक ही पंजीयन किया जा सकता है | इसके साथ ही जिस तहसील में कृषि भूमि है उसी तहसील में पंजीयन करना जरुरी होगा |

मूंग, उड़द, सोयाबीन तथा मूंगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य कितना है ?

प्रत्येक वर्ष केंद्र सरकार 23 रबी एवं खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है | यह मूल्य देश भर में एक समान रूप से लागू होते हैं | वर्ष 2021–22 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य इस प्रकार है:-

  • मूंग – 7275 रूपये प्रति क्विंटल
  • उड़द – 6300 रूपये प्रति क्विंटल
  • मूंगफली – 5550 रूपये प्रति क्विंटल
  • सोयाबीन – 3950 रूपये प्रति क्विंटल

किसी भी समस्या के लिए इस नंबर पर संपर्क करें

किसानों की समस्या के समाधान हेतु राजफैड स्तर पर ट्रोल फ्री हेल्पलाईन नंबर 1800-180-6001 पर प्रात: 9 से 7 बजे तक किसान अपनी समस्याओं को हेल्पलाईन नंबर पर दर्ज करा सकते हैं | यह टोल फ्री नम्बर 20 अक्टूबर से कार्य करना प्रारंभ कर देगा | अथवा अपनी शिकायत/समस्या को लिखित में राजफैड मुख्यालय में स्थापित काल सेंटर पर [email protected] पर मेल भेज सकते हैं |

मछली पालन के लिए निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए आवेदन करें

मत्स्य पालन के लिए प्रशिक्षण हेतु आवेदन

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन एवं किसानों की आय की आय में वृद्धि के लिए सरकार द्वारा परंपरागत खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी को बढ़ावा दे रही है | इसके लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं साथ ही इच्छुक व्यक्तियों को समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जाता है | बिहार राज्य में मछली पालन को बढ़ावा देने एवं राज्य में उत्पादकता बढ़ाने के लिए बिहार सरकार ने राज्य के इच्छुक व्यक्तियों से प्रशिक्षण हेतु आवेदन आमंत्रित किए हैं |

सरकार द्वारा मछली पालकों को मत्स्य पालन की नई तकनीक के प्रशिक्षण हेतु राज्य में एवं राज्य के बाहर दोनों जगहों पर प्रशिक्षण दिलाने के लिए आवेदन मांगे गए हैं | यह प्रशिक्षण पूरी तरह निःशुल्क है | प्रशिक्षण योजना का लाभ लेकर मछली उत्पादन में गुणात्मक वृद्धि एवं आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं |

मत्स्य पालन के इन विषयों पर दिया जाएगा प्रशिक्षण

राज्य में मछली पालन को बढ़ावा देने एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा राज्य के मछली पालकों को बायोफ्लॉक तकनीक से मत्स्य पालन, मत्स्य बीज हैचरी का कुशल संचालन एवं प्रबंधन, अलंकारी मछलियों का पालन एवं प्रबंधन, एक्वेरियम निर्माण की तकनीक, एक्वेरियम में मछलियों का रख–रखाव एवं प्रबंधन, रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम आदि विषयों पर दिया जाएगा |

मछली पालन हेतु प्रशिक्षण (Training) कहाँ दिया जायेगा ?

मत्स्य पालकों को मछली पालने के संबंध में राज्य के अंदर तथा राज्य से बाहर प्रशिक्षण दिए जाने की योजना है | प्रशिक्षण के लिए संस्थान का चयन कर लिया गया है |

राज्य के अंतर्गत मछली पालन के लिए किसान यहाँ प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे:-
  • मत्स्य प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र, मीठापुर पटना,
  • आई.सी.ए.आर. पटना केंद्र,
  • कॉलेज ऑफ़ फिशरीज, ढोली मुजफ्फरपुर,
  • कॉलेज ऑफ़ फिशरीज किशनगंज |
राज्य के बाहर यहाँ पर प्रशिक्षण दिया जाएगा  
  • केन्द्रीय मत्स्यिकी शिक्षा संस्थान, (काकीनाडा),
  • केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान साल्टेक,(कोलकाता),
  • केन्द्रीय अंतरस्थलीय मात्सियकी अनुसंधान संस्थान बैरकपुर, (कोलकता),
  • केन्द्रीय मात्सियकी शिक्षा संस्थान, (पावरखेडा),
  • कॉलेज ऑफ़ फिशरीज पंतनगर,
  • केन्द्रीय मिठाजल जीवनयापन अनुसंधान संस्थान कौशल्यागंगा, (भुवनेश्वर) |

प्रशिक्षणार्थियों को क्या-क्या सुविधाएँ दी जाएँगी ?

योजना के तहत राज्य तथा राज्य के बाहर नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है | इसके अंतर्गत प्रशिक्षण हेतु बस/रेलगाड़ी का किराया, प्रशिक्षण शुल्क, आवासन, भोजन आदि का भुगतान राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा | राज्य के बाहर प्रशिक्षण हेतु मार्ग व्यय भी देय है |

प्रशिक्षण के लिए चयन हेतु पात्रता

बिहार के मत्स्यपालक के लिए राज्य के अंदर तथा राज्य के बाहर प्रशिक्षण दिया जाना है | इसके लिए राज्य के निजी/ सरकारी जलकर / तालाब में मत्स्य पालन करने वाले मत्स्य कृषक / मछुआ, मत्स्यपालक मात्स्यिकी विकास के विभिन्न अवयव / योजनाओं के लाभुक / आवेदक / मात्स्यिकी से जुड़े व्यवसायी पात्र हैं | इसके अलावा प्रखंड स्तरीय मत्स्यजीवी सहयोग समिति के सक्रिय सदस्य योजना का लाभ उठा सकते हैं |

मछली पालन हेतु प्रशिक्षण प्राप्त हेतु आवेदन कहाँ करें ?

यह योजना बिहार के मछली पालन विभाग के द्वारा चलाई जा रही है अतः इच्छुक व्यक्ति अपने प्रखंड या जिले के मछली विभाग से सम्पर्क कर योजना के विषय में अधिक जानकारी ले सकते हैं | इसके अलावा http://fisheries.ahdbihar.in/ पोर्टल भी जानकारी देख सकते हैं | इच्छुक व्यक्ति मत्स्य निदेशालय बिहार के टोल फ्री नंबर 1800-345-6185 पर भी कॉल कर सकते हैं | मत्स्य पालकों / मछुओं के लिए नि:शुल्क प्रशिक्षण के लिए आवेदन शुरू किए जा चुके हैं, इच्छुक व्यक्ति योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन 09/11/2021 तक कर सकते हैं |

मछली पालन हेतु प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु आवेदन करने के लिए क्लिक करें  

साथी परियोजना से बढ़ेगी राज्य के किसानों की आमदनी

साथी परियोजना

देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई नई योजना शुरू की जा रही है | इस कड़ी में मध्यप्रदेश सरकार ”साथी (सस्टेनेबल एग्रिकल्चर थ्रू होलिस्टिक इन्टीग्रेशन) परियोजना” लागू करने जा रही है | योजना के तहत राज्य में चयनित जिलों में बाजार, वेयर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, ग्रेडिंग यूनिट एवं कृषि उत्पाद प्रसंस्करण इकाइयाँ स्थापित की जाएँगी, जिसक लाभ सीधे किसानों को मिलेगा | यह योजना प्रारंभ में पाइलेट प्रोजेक्ट के रूप में प्रदेश के 5 जिलों के 10 विकासखण्डों में लागू होगी।

मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया ने कहा है कि मध्य प्रदेश ”साथी (सस्टेनेबल एग्रिकल्चर थ्रू होलिस्टिक इन्टीग्रेशन) परियोजना” लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा। यह परियोजना के किसानों की आय को दोगुना करने के सरकार के लक्ष्य की पूर्ति में कारगर सिद्ध होगी |

क्या है साथी योजना

”साथी” योजना के 5 घटक साथी कृषक समूह, साथी प्र-संस्करण केन्द्र, साथी उद्योग, साथी बाजार तथा कॉमन फेसिलिटी सेंटर होंगे। गाँवों में एक समान उत्पादन करने वाले किसानों के समूह बनाए जाएंगे। उत्पादों के भंडारण एवं प्राथमिक मूल्य संवर्धन का कार्य पंचायत स्तर पर साथी प्र-संस्करण केन्द्र करेंगे। विकास खण्ड स्तर पर स्थानीय उत्पादों पर आधारित छोटे उद्योग लगाए जाएंगे। विपणन के लिए विकासखण्ड स्तर पर साथी बाजार बनाए जाएंगे। उत्पादों के प्र-संस्करण, पैकेजिंग, अनुसंधान, प्रशिक्षण आदि के लिए संभाग स्तर पर कॉमन फेसिलिटी सेंटर बनाए जाएंगे।

विकासखण्ड स्तर पर स्थापित किए जाने वाले साथी बाजार आधुनिक रिटेल आउटलेट होंगे, जिन्हें 4 हजार वर्ग फीट पर बनाया जाएगा। इनमें वेअर हाउस, कोल्ड स्टोरेज, ट्रेनिंग सेंटर, होस्टल, दुकानें, बैंक, फूड कोर्ट, डेयरी, गेम जोन आदि बनाए जाएंगे।

26 जिलों के 100 विकासखण्डों में लागू की जाएगी योजना

योजना संबंधी प्रस्तुतिकरण में नाफेड के श्री मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि प्रथम चरण में यह योजना प्रदेश के 26 जिलों  गुना,  सतना,  अशोकनगर,  ग्वालियर,  रीवा,  मुरैना,   अलीराजपुर,  बालाघाट, बड़वानी, छतरपुर, धार, पन्ना, राजगढ़, श्योपुर, शहडोल, शिवपुरी, टीकमगढ़, झाबुआ, सीहोर,  कटनी, रायसेन, अनूपपुर, सिवनी, देवास, उमरिया सहित दमोह के 100 विकासखण्डों के लिए बनाई गई है। योजना के अंतर्गत 100  साथी बाजार, 7319 वेअर हाउस, 2133 कोल्ड स्टोरेज, 405 ग्रेडिंग यूनिट तथा 2126 कृषि उत्पाद प्र-संस्करण इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी। इन पर लगभग 3 हजार 380 करोड़ रूपये का अनुमानित व्यय होगा।

किसान तिलहनी फसलों में डीएपी की जगह एसएसपी का यूरिया के साथ करें छिड़काव

तिलहनी फसलों में खाद का उपयोग

खरीफ फसलों की कटाई के बाद कई क्षेत्रों में किसानों ने रबी फसलों की बुआई का कार्य शुरू कर दिया है | अच्छी उपज के लिए जरुरी है कि किसान सही मात्रा में खाद एवं बीज का उपयोग करें | ऐसे में राजस्थान के जयपुर जिले कृषि अधिकारियों ने तिलहनी फसलों में डाली जाने वाली खाद को लेकर किसानों को खास सलाह दी है ताकि किसानों को अच्छी पैदावार मिल सके | कृषि विभाग ने किसानों से सरसों एवं अन्य तिलहन फसलों में डीएपी के स्थान पर एसएसपी का यूरिया के साथ प्रयोग करने की सलाह दी है।

किसान तिलहनी फसलो में नाइट्रोजन व फास्फोरस पोषक तत्व की पूर्ति के लिए सामान्य तौर पर डीएपी एवं यूरिया उर्वरकों का प्रयोग करते हैं | जबकि तिलहनी फसलों में उत्पादन व उत्पाद गुणवत्ता में वृद्धि के लिए नाइट्रोजन व फास्फोरस के साथ-साथ गन्धक तत्व की भी आवश्यकता होती है | चूंकि एसएसपी में फास्फोरस के साथ गन्धक भी पाया जाता है, इसलिए कृषि अधिकारीयों ने किसानों से ऐसी अपील की है |

तिलहनी फसलों में एसएसपी खाद के छिड़काव से लाभ

तिलहनी फसलों में फास्फोरस का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट SSP के रूप में अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है। यदि सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग न किया जाए तो गंधक की उपलबधता को सुनिश्चित करने के लिए गंधक का प्रयोग किसानों को अलग से करने की सलाह दी जाती है |

SSP यानी सिंगल सुपर फास्फेट को यूरिया के साथ प्रयोग करें तो तिलहनी फसलों में डीएपी से बेहतर होता है क्योंकि एसएसपी में नाईट्रोजन की उपलब्धता यूरिया से हो जाती है | साथ ही इसमें पहले से सल्फर, कैल्शियम मौजूद है जो कि डीएपी में नहीं है | तिलहनी फसलों में फास्फोरस का प्रयोग सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है क्योंकि इससे सल्फर (गंधक) की उपलब्धता भी हो जाती है।

क्या होती है एसएसपी SSP खाद

SSP का पूरा नाम सिंगल सुपर फास्फेट है | इसमें फसलों के लिए आवश्यक मुख्य पोषक तत्व फास्फोरस, सल्फर और कैल्शियम मौजूद होते हैं | यह सख्त दानेदार, भूरा काला बादामी रंगों से युक्त तथा नाखूनों से आसानी से न टूटने वाला उर्वरक है। यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है। इस दानेदार उर्वरक की मिलावट बहुधा डी.ए.पी. व एन.पी.के. मिक्चर उर्वरकों के साथ किया जाता है |

सरकार की अपील: सिंचाई के लिए पानी कम होने के चलते कम सिंचाई वाली फसलें लगाएं किसान

कम पानी वाली फसलें बोने की अपील

इस वर्ष मानसून सीजन में कई क्षेत्रों में अधिक तो कहीं कम बारिश हुई है | राजस्थान राज्य में इस बार कई जलाशय एवं डेम में कम पानी होने से किसानों की समस्या बढ़ गई है | किसानों को जलाशय से रबी फसल की सिंचाई के लिए पानी तभी दिया जाता है जब पीने के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहता है | राज्य में पानी की समस्या को देखते हुए सरकार ने किसानों से कम पानी वाली फसलें लगाने की अपील की है |

राजस्थान के कृषि मंत्री श्री लालचन्द कटारिया ने बताया कि जल संसाधन विभाग के अनुसार इस साल पौंग, रणजीत सागर एवं भाखड़ा नांगल डेम में गत वर्षों की तुलना में पानी की कम उपलब्धता है | इसे देखते हुए पेयजल के लिए पानी आरक्षित करने के बाद सिंचाई के लिए सीमित पानी की उपलब्धता रहेगी | 21 सितम्बर को इंदिरागांधी नहर परियोजना की जल परामर्शदात्री समिति की बैठक में 23 सितम्बर 2021 से 3 जनवरी 2021 तक तय किये गये सिंचाई विनियमन कार्यक्रम अनुसार केवल 3 बारीज में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध होगा |

पानी की उपलब्धता का पूरा आंकलन कर दिया जायेगा पानी

जलदाय मंत्री तथा श्रीगंगानगर जिले के प्रभारी मंत्री डॉ. बी. डी कल्ला ने कहा कि इंदिरा गांधी नहर परियोजना के प्रथम चरण के किसानों के हितों को लेकर राज्य सरकार पूरी तरह संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि किसानों को पानी देने के लिए उपलब्ध मात्रा का पूरा आंकलन कर बंटवारा किया जाएगा।

गेहूं तथा जौ की जगह चना तथा सरसों की करें खेती

कृषि मंत्री ने बीकानेर एवं श्रीगंगानगर कृषि खण्ड के संयुक्त निदेशक को क्षेत्र के किसानों के लिए सिंचाई के लिए नहरी पानी की सीमित उपलब्धता से अधिकतम फसल उत्पादन लेने के लिए सम्बद्ध विभागों से समन्वय स्थापित कर गेहूं एवं जौ जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों के बजाय कम पानी की जरूरत वाली सरसों एवं चना जैसी फसलों को प्राथमिकता देते हुए संभाव्य कृषि कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए है |

ऋणी किसान अलग फसल बोने की सुचना सम्बन्धित बैंक को अवश्य दें 

कृषि मंत्री ने किसानों से कहा है कि बैंक से जिस फसल के लिए ऋण लिया है, उससे अलग फसल बोने पर 15 दिसम्बर तक उसकी लिखित में सूचना सम्बन्धित बैंक को आवश्य दें | इससे बीमा उसी फसल का होगा जो वास्तव में बोई गई है, जिससे बीमा क्लेम मिलने में कोई दिक्कत नहीं होगी | उन्होंने कहा कि बीमित फसल और वास्तविक बोई गई फसल में फर्क होने पर बीमा क्लेम नहीं मिल पाएगा |

किसानों को फूल, मशरूम, सब्जी, स्ट्राबेरी एवं अन्य उद्यानिकी फसलों के उत्पादन हेतु दिया जायेगा प्रशिक्षण

उद्यानिकी फसलों के उत्पादन हेतु प्रशिक्षण

किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कृषि के साथ-साथ पशुपालन एवं बागवानी को भी बढ़ावा दिया जा रहा है | किसानों को उद्यानिकी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने एवं प्रशिक्षण देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है | देश के केंद्रीय कृषि एवं राज्य स्तरीय कृषि विश्वविद्यालयों एवं सभी जिले के कृषि विज्ञान केन्द्रों में समय-समय पर किसानों को अलग-अलग विषयों पर इसके लिए प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं | झारखंड राज्य सरकार ने कृषि के चौमुखी विकास पर फोकस कर लोगों को रोजगार देने और उनकी आय बढ़ाने एवं उद्यानिकी को स्वरोजगार का आधार बनाने की कवायद शुरू की है। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार की ओर से बजट भी निर्धारित किया गया है।

किसानों, युवाओं और महिलाओं को उद्यानिकी से जुड़ी योजनाओं के तहत विभिन्न तरह के प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम हैं। योजना का उद्देश्य उद्यानिकी फसलों का बहुमुखी विकास एवं कृषकों की आय में वृद्धि करना है। साथ ही उद्यानिकी के लिए अनुकूल झारखण्ड के मौसम, मिट्टी और पारिस्थितिकी का लाभ राज्यवासियों को देना है।

दिया जाएगा 5 दिनों का प्रशिक्षण

राज्य के सभी जिलों में उद्यानिकी फसलों के बहुमुखी विकास हेतु पंचायत स्तर पर चयनित बागवानी मित्रों, प्रखंड स्तर पर कार्यरत उद्यान मित्रों और कृषकों को उद्यानिकी फसलों की तकनीकी खेती से संबंधित जानकारी के लिए पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा। इसमें प्रशिक्षण के दौरान मिलने वाला भत्ता, भोजन, आने-जाने, ठहरने व प्रमाणपत्र देने की व्यवस्था राज्य सरकार करेगी।

शहरों में भी युवाओं को दिया जाएगा निःशुल्क माली का प्रशिक्षण

योजना के तहत शहरी क्षेत्रों के युवाओं को माली का प्रशिक्षण भी दिया जाना है। इससे जहां शहरी क्षेत्रों में बागों, पार्कों के सौंदर्यीकरण को बढ़ावा मिलेगा, वहीं युवा आत्मनिर्भर भी होंगे। यह प्रशिक्षण राज्य सरकार और भारत सरकार के चिह्नित संस्थानों या एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त संस्थानों के माध्यम से होगा। माली का निःशुल्क प्रशिक्षण 25 दिन का होगा।

मशरूम और मिर्च की खेती के लिए भी दिया जाएगा प्रशिक्षण

मिर्च व मशरूम की खेती को बढ़ावा देना भी पहल का हिस्सा है। जनजातीय क्षेत्रीय उपयोजना के तहत 13 जिलों रांची, खूंटी, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, दुमका, पाकुड़, लातेहार के 420 हेक्टेयर, क्षेत्रीय योजना के तहत हजारीबाग, रामगढ़, देवघर, गोड्ड़ा, चतरा, धनबाद, पलामू एवं बोकारो सहित 11 जिलों के 210 हेक्टेयर एवं अनुसूचित जातियों के लिए विशेष घटक योजना के अन्तर्गत हजारीबाग, रामगढ़, देवघर, गोड्डा, गिरिडीह, चतरा, बोकारो, कोडरमा, गढ़वा, धनबाद पलामू एवं बोकारो सहित 11 जिलों में 700 हेक्टेयर क्षेत्र में मिर्च की खेती को बढ़ावा देने की योजना है। साथ ही मशरूम उत्पादन के लिए सभी जिलों के कृषकों को नई तकनीक पर आधारित पांच दिवसीय प्रशिक्षण दिया जायेगा।

फूल और पपीता की खेती को दिया जाएगा बढ़ावा

राज्य के सभी जिलों में चयनित स्थलों पर फूल की खेती की जायेगी। राज्य में कुल 1000 हेक्टेयर क्षेत्र में फूल की खेती को बढ़ावा दिया जायेगा। पपीता को पौष्टिक फलों की श्रेणी में रखा गया है। पपीता की खेती को सरकार प्रोत्साहित कर रही है। इससे जहां किसानों की आय में वृद्धि होगी, वहीं ग्रामीणों को भी पौष्टिक फल सुलभ होगा। सरकार ने राज्य के विभिन्न जिलों में वित्तीय वर्ष 2021-22 में करीब आठ लाख पपीते के पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है। पपीता पौध उत्पादकों के माध्यम से पौधा उपलब्ध कराया जायेगा। जो किसान खुद पपीते का पौधा तैयार करेंगे, उन्हें भी सरकार विशेष अनुदान राशि देगी।

इसके अतिरिक्त सरकार किसानों को टिश्यू कल्चर, स्ट्राबेरी, प़ॉली हाउस निर्माण, सब्जी की खेती,  गृह वाटिका की स्थापना आदि को भी प्रशिक्षण से जोड़ने की योजना है। इस प्रशिक्षण से युवाओं और कृषकों को काफी लाभ होगा। जहां एक ओर वे आधुनिक तरीके से उद्यानिकी के बारे जानेंगे, वहीं राज्य भी फलों, सब्जियों के मामले में और अधिक आत्मनिर्भर होगा।

प्रशासन गांवों के संग अभियान में पशुपालकों से जुड़ी समस्याओं का होगा समाधान

पशुपालकों के लिए शिविरों का आयोजन

किसानों एवं पशुपालकों की समस्याओं के समाधान के लिए समय-समय पर राज्य सरकारों के द्वारा शिविरों का आयोजन किया जाता है | जहाँ लोगों को आ रही समस्याओं का समाधान एवं योजनाओं के विषय में जानकारी दी जाती है | राजस्थान सरकार की ओर से प्रदेश में 2 अक्टूबर से “प्रशासन गांवों के संग अभियान 2021” का आयोजन किया जा रहा है | अभियान के तहत आयोजित किये जाने वाले शिविरों में राज्य के पशुपालकों को विभिन्न विभागीय जानकारियां उपलब्ध कराकर लाभान्वित किया जायेगा साथ ही किसान इन योजनाओं के लिए आवेदन भी कर सकते हैं।

कृषि एवं पशुपालन मंत्री श्री लालचन्द कटारिया ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से किसानों एवं ग्रामीण क्षेत्र की जनता की समस्याओं का मौके पर ही समाधान करने के लिए 2 अक्टूबर गांधी जयंती से प्रशासन गांवों के संग अभियान-2021 शुरू किया जा रहा है। इस अभियान से जुड़े विभागीय अधिकारी एवं कार्मिक पूरी तैयारी, गंभीरता एवं सेवा भाव के साथ लोगों के कामों को पूरा करें | उन्होंने कहा कि शिविरों में आने वाले हर फरियादी की समस्या को अधिकारी पूरी संवेदनशीलता से सुनें और उन्हें तत्काल राहत पहुंचाएं।

पशुपालन से जुडी योजनाओं की दी जाएगी जानकारी

इन शिविरों के माध्यम से पशुपालकों को विभागीय कार्यक्रमों/योजनाओ की जानकारी देने के साथ-साथ संक्रामक बीमारियों के बचाव हेतु टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, बंधियाकरण, रोगी एवं अस्थाई रूप से बांझ पशुओं का उपचार तथा पशु परजीवी रोगों की रोकथाम के लिए कृमिनाशक दवा दी जायेगी। डेयरी, भेड़-बकरी एवं मुर्गीपालन के लिए पशुपालक किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आवर्ति लागत जिसमें श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान, पशुओं के लिए चारा व दाना खरीदने, बिजली व पानी, पशु चिकित्सा एवं पशु बीमा हेतु अल्पकालीन ऋण सुविधा उपलब्ध करवाये जाने के लिए पशुपालकों के आवेदन पत्र भी तैयार किये जायेंगे।

11,341 ग्राम पंचायतों में लगाए जाएंगे शिविर

2 अक्टूबर से 17 दिसम्बर 2021 तक चलने वाले प्रशासन गांवों के संग अभियान के तहत प्रदेश की 352 पंचायत समितियों में कुल 11,341 ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर शिविर आयोजित होंगे। प्रशासन गांवों के संग अभियान के दौरान 21 विभागों द्वारा आमजन से जुड़े विभिन्न कार्य सम्पादित किए जाएंगे।

अब किसानों से गोबर खरीदकर किया जाएगा बिजली का उत्पादन

गोबर से बिजली उत्पादन

अभी तक गोबर का उपयोग उपले बनाने, जैविक खाद एवं गोबर गैस बनाने में होता आ रहा है परन्तु पहली बार गोबर से बिजली बनाई जाएगी, जिसके जरिये बिजली से चलने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरण चलाये जाएंगे साथ ही जो खाद बनेगी उसे भी किसानों को कम दरों पर उपलब्ध करवाई जाएगी | सबसे बड़ी बात यह है कि यह काम एक राज्य सरकार करने जा रही है |

छत्तीसगढ़ सरकार गोधन न्याय योजना के तहत गोठानो के जरिये किसानों और पशुपालकों से गोबर खरीद कर वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट खाद पहले से बना रही है | अब उसी गोबर से बिजली तैयार करने की शुरुआत भी 2 अक्टूबर से की जा चुकी है| गौठानों में स्थापित रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को तैयार करने के लिए लगी मशीनें भी गोबर की बिजली से चलेंगी।

गोबर से बिजली उत्पादन का हुआ शुभारम्भ

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 2 अक्टूबर के दिन बेमेतरा जिला मुख्यालय के बेसिक स्कूल ग्राउंड में आयोजित किसान सम्मेलन के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के गौठानों में गोबर से बिजली उत्पादन की परियोजना का वर्चुअल शुभारंभ किया | मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय था जब विद्युत उत्पादन का काम सरकार और बड़े उद्योगपति किया करते थे। अब हमारे राज्य में गांव के ग्रामीण टेटकू, बैशाखू, सुखमती, सुकवारा भी बिजली बनाएंगे और बेचेंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर खरीदी का मजाक उड़ाने वाले लोग अब इसकी महत्ता को देख लें।

गोठानों में गोबर से कितनी बिजली बनाई जाएगी 

छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार एक यूनिट से 85 क्यूबिक घनमीटर गैस बनेगी | चूँकि एक क्यूबिक घन मीटर से 1.8 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होता है | इससे एक यूनिट में 153 किलोवाट विद्धुत का उत्पादन होगा | इस प्रकार उक्त तीनों गौठानों में स्थापित बायो गैस जेनसेट इकाईयों से लगभग 460 किलोवाट विद्धुत का उत्पादन होगा, जिससे गौठानों में प्रकाश व्यवस्था के साथ–साथ वहां स्थापित मशीनों का संचालन हो सकेगा |

इस यूनिट से बिजली उत्पादन के बाद शेष स्लरी के पानी का उपयोग बाड़ी और चारागाह में सिंचाई के लिए होगा तथा बाकी अवशेष से जैविक खाद तैयार होगी। इस तरह से देखा जाए तो गोबर से पहले विद्युत उत्पादन और उसके बाद शत-प्रतिशत मात्रा में जैविक खाद प्राप्त होगी। इससे गौठान समितियों और महिला समूहों को दोहरा लाभ मिलेगा।

गोठानों के माध्यम से की जाती है गोबर की खरीद

छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गाँव योजना के तहत गांवों में पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से 10 हजार 112 गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है | जिसमें से 6,112 गौठान पूर्ण रूप से निर्मित एवं संचालित है | गौठानों में अब तक 51 लाख क्विंटल से अधिक गोबर खरीदी की जा चुकी है | जिसके एवज में किसानों को 102 करोड़ रूपये का भुगतान किया जा चूका है | गोबर गौठानों में अब तक 12 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट खाद का उत्पादन एवं विक्रय किया जा चुका है |

गोधन न्याय योजना के तहत 2 रुपए प्रति किलोग्राम पर ग्रमीणों, किसानों और पशुपालकों से गोबर खरीदी की जा रही है। वहीँ गोठानों में उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट किसानों को 10 रुपये प्रति किलो के दर से दी जाती है |