पपीता की खेती से किसान अपनी आमदनी बढायें

पपीते की खेती

पपीता देश का एक ऐसा फल है जो कम लागत में किसान आसानी से उत्पादन कर सकता है | इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली ज्यादा उपयुक्त है | उपोष्ण जलवायु जहां तापमान 10 – 26 डिग्री सेल्सियस तक रहता है तथा पाले की संभावना न हो , इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है | पपीते के लिए बाजार अस्थानीय स्तर पर उपलब्ध हो जाता है | किसान समाधान पपीते की पूरी जानकारी आसान भाषा में लेकर आया है |

जलवायु कैसी होनी चाहिए ?

पपीते की खेती गर्म तथा ठण्ड दोनों तरह के जलवायु में किया जा सकता है लेकिन तापमान 10 से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए | अधिक ठण्ड के कारण पपीता में आसानी से पला लग जाता है | जिससे फसल की काफी नुकसानी होती है | पपीते के बीजों के अंकुरण हेतु 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सर्वोतम होता है |

खेती के लिए मिट्टी का चयन 

इसकी खेती दोमट या हल्की दोमट मिटटी ज्यदा उपयुक्त होती है | मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7 होना अच्छा रहता है | पपीते की खेती अधिक पानी को सहन नहीं कर पाता है , इसलिए खेत में पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए |

पपीते की उन्नत किस्में

पीते की किस्मों का चुनाव खेती के उद्देश्य के अनुसार किया जाना चाहिए जैसे कि औद्योगिक रूप से महत्व की किस्में जिनके कच्चे फलों से पपेन निकाला जाता है, पपेन किस्में कहलाती हैं इस वर्ग में महत्वपूर्ण किस्में सी. ओ- 2 ए सी. ओ- 5 एवं सी. ओ- 7 है। इसके साथ दूसरा महत्वपूर्ण वर्ग है टेबिल वैरायटी या जिनको पकी अवस्था में काटकर खाया जाता है। इस वर्ग को पुनः दो भागों में बांटा गया है

पारम्परिक पपीते की किस्में

 पारंपरिक पपीते की किस्मों के अंतर्गत बड़वानी लाल, पीला, वाशिंगटन, मधुबिन्दु, हनीड्यू, कुर्ग हनीड्यू,, को 1, एवं 3 किस्में आती हैं। नई संकर किस्में उन्नत गाइनोडायोसियस /उभयलिंगी किस्में :- इसके अंतर्गत निम्न महत्वपूर्ण किस्में आती हैः- पूसा नन्हा, पूसा डेलिशियस, सी. ओ- 7 पूसा मैजेस्टी, सूर्या आदि।

बीज की क्या मात्रा एवं पौधा तैयार करने की विधि 

पपीते की पौध तैयारी क्यारियां एवं पालीथीन में करना चाहिए | पपीते के 1 हेक्टयर के लिए आवश्यक पौधों की संख्या तैयार करने के लिए परंपरागत किस्मों का 500 ग्राम बीज एवं उन्नत किस्मों का 300 ग्राम बीज की मात्रा की आवश्यकता होती है |

क्यारियों में पौधों को तैयार करने के लिए क्यारियों की लम्बाई 3 मीटर, चौडाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 20 सेमी रखें | प्लास्टिक की थैलियों में पौध तैयार करने के लिए 200 गज मोटी 20*15 सेमी आकार की थैली (जिनमें चरों तरफ एवं नीचे छेद किए गए हों) में वर्मी कम्पोष्ट , रेट, गोबर खाद तथा मिट्टी के 1:1:1 अनुपात का मिश्रण भरकर प्रत्येक थैली में 1 या 2 बीज बोएं |

खेत की तैयारी तथा रोपाई किस तरह करें ?

पौध रोपण पूर्व की तैयारी मिट्टी  पलटने वाले हल से जुताई कर 2 – 3 बार कल्टीवेटर या हैरो से जुताई करें तथा समतल कर लें | पूर्ण रूप से तैयार खेत में 45 × 45 × 45 सेमी आकार के गड्ढे 2 × 2 मीटर (पंक्ति – पंक्ति एवं पौध से पौध) की दुरी पर तैयार करें |

पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक 

पपीते की खेती के लिए 200 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा प्रतिवर्ष 3 – 4 बराबर भागों में बांटकर दें |

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण 

पपीता के पौधों की अच्छी वृद्धि तथा अच्छी गुणवत्तायुक्त फलोत्पादन हेतु मिटटी में सही नमी स्तर बनाए रखना बहुत जरुरी होता है | नमी कमी से पौधों की विकास तथा फलों की उत्पादन में कमी आती है | सामान्यत: शरद ऋतू में 10 – 15 दिन के अंतर से तथा ग्रीष्म ऋतू में 5- 7 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें | सिंचाई की आधुनिक विधि ड्रिप तकनीकी अपनाएं |

पौधों को कीटों से बचाव

एफिड :- कीट का वैज्ञानिक नाम एफिड गोसीपाई, माइजस, परसिकी है | इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं तथा पौधे में मौजेक रोग के वाहक का कार्य करते हैं |

प्रबंधन तकनीक :- मिथाईल डेमेटान या डायमिथोयेट की 2 मिली मात्रा / ली. पानी में मिलाकर पौध रोपण पश्चात् आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतर से पत्तियों पर छिड़काव करें |

लाल मकड़ी :- इसे वैज्ञानिक भाषा में टेट्रानायचस सिनोवेरिनस कहते है | यह पपीते का प्रमुख कीट है जिसके आक्रमण से फल खुरदुरे और काले रंग के हो जाते है तथा पत्तियां पर आक्रमण की स्थिति में फफूंद पिली पड़ जाती है |

प्रबंधन :- पौधे पर आक्रमण दीखते ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर दूर गड्ढे में दभएं | वेटेबल सल्फर 2.5 ग्राम / ली. या डाइकोफाल 18.5 ईसी की 2.5 मिली या ओमाइट 1.5 मिली मात्रा / ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करें |

डम्पिंग आफ (आर्द गलन) 

यह रोग पपीते में नर्सरी अवस्था में आता है जिसका कारण पिथियम एफिनडरमेटस, पी. अल्तिमस फाइतोफथोरा पामीबोरा तथा राइजोक्टोनिया स्पी. के कारण होता है |

लक्ष्ण :-रोग के कारण नर्सरी में पौधे नीचे (जमीन की साथ के पास से) से गलकर मरने लगते है |

प्रबंधन :-रोग से बचने के लिए पपीते के बीजों का उपचार बुवाई पूर्व सेरेसान या एग्रोसन जी एन से उपचारित करें तथा नर्सरी को फार्मेल्डिहाइड के 2.5 प्रतिशत घोल से ड्रेनचिंग करें या उपचारित करें |

रिंग स्पॉट वायरस 

इस रोग का कारण विषाणु है जो कि माहू द्वारा फैलता है | इस रोग के गंभीर आक्रमण की स्थिति में 50 – 60 प्रतिशत तक हानि हो जाती है | जिस कारण पत्तियों पर क्लोरोसिस दिखाई देता है पत्तियां कटी – कटी दिखाई देती है तथा पौधे की वृद्धि रुक जाती है |

लीफकर्ल :- यह रोग सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता है | जिस कारण पत्तियां मुद जाती है इस रोग से 70 से 80 प्रतिशत तक नुकसान हो जाता है | जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है |

रोग की रोकथाम :- पौधों की बुआई से पहले जाँच करें की पौधा स्वस्थय है कि नहीं | बुआई के बाद रोग ग्रस्त पौधों को खेत से निकाल कर फेक दें | सफ़ेद मक्खी की नियंत्रण के लिए उपयुक्त कीटनाशक का प्रयोग करें |

पपीते के फल एवं उत्पादन

पौधों की अच्छी बढवार तथा देखभाल करने से 40 – 50 किलो प्रति पौधा उत्पादन होता है | पपीते की प्रति हेक्टयर राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादकता 317 कि./हे. है |

उत्पादकता बढ़ाने के उपाय 

  1. पपीते की व्यवसायिक खेती में उभलिंगी किस्मों जैसे सूर्य (भारतीय अगवानी अनु.सं.बैंगलोर) सनराइज सोलो, रेडी लेडी – 786 के साथ किचिन गार्डन के लिए पूसा नन्हा, कुर्ग हनीड्यू, पूसा डवार्क, पंत पपीता 1,2 एवं 3 के चयन को प्राथमिकता दें |
  2. रसचूसक कीटों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में पपीते को अक्तूबर में रोपण करें तथा पौधों की नर्सरी कीट अवरोधी नेट हॉउस के भीतर तैयार करें |
  3. खाद व उर्वरक की संतुलित मात्रा 250 ग्राम नत्रजन, 250 ग्राम स्फुर तथा 250 – 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधा / वर्ष प्रयोग करें |
  4. सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई पद्धिति अपनायें |
  5. फसल में रसचूसक कीटों के नियंत्रण हेतु फ़रामोन ट्रेप, प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें तथा नीम सत्व 4 प्रतिशत का छिड़काव करें |
  6. पौधों को 30 से.मी. उठी मेड पर 2 गुणा 2 मीटर की दूरी पर रोपाई करें तथा अन्तवर्तीय फसल के रूप में मिर्च, टमाटर बैंगन न लगाएं |

फलों की तुडाई कब करें ?

पपीता के पूर्ण रूप से परिपक्व फलों को जबकि फल के शीर्ष भाग में पीलापन शुरू हो जाए तब डंठल सहित तुडाई करें | तुडाई के पश्चात् स्वस्थ, एक से आकार के फलों को अलग कर लें तथा गले फलों को अलग हटा दें |

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