किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने शुरू की नई योजना

मधुमक्खी पालन नीति-2021

देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा खेती के आलवा पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी को बढ़ावा दिया जा रहा है | साथ ही किसानों को खेती के साथ अन्य कार्य जैसे मधुमक्खी पालन पर जोर दिया जा रहा है | विश्वभर में शहद की मांग जिस अनुपात में बढ़ रही है, उसकी तुलना में इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में शहद उत्पादन से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है | देश में किसानों को बड़े पैमाने पर मधुमक्खी पालन से जोड़ने के लिए “मीठी क्रांति “ की शुरुआत की गई है | इससे एक तरफ जहाँ किसानों की आमदनी बढ़ेगी, वहीँ इससे फसलों का उत्पदान भी 15 प्रतिशत तक बढ़ सकता है |

हरियाणा में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने हरियाणा मधुमक्खी पालन नीति-2021 और कार्ययोजना 2021-2030 का शुभारंभ किया। योजना के तहत वर्ष 2030 तक राज्य में शहद के उत्पादन को 10 गुना तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है |

क्या है मधुमक्खी पालन नीति हेतु कार्ययोजना

योजना के तहत किसानों को मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए प्रेरित किया जायेगा | इसके साथ ही, पहली बार मधुमक्खी पालन की पहल को अपनाने के लिए 5,000 नए किसानों को राज्य सरकार सहायता प्रदान करेगी। मधुमक्खी पालन के साथ-साथ किसानों को सूरजमुखी और सरसों जैसी वैकल्पिक फसलों की बुवाई के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा। शहद और इसके उत्पादों जैसे रॉयल जेली, बीवैक्स, प्रोपोलिस, मधुमक्खी पराग और मधुमक्खी विष की बिक्री से किसानों की आय को बढाया जायेगा |

निजी उद्यमियों को मधुमक्खी के बक्सों के निर्माण का व्यवसाय शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा और विभाग द्वारा इन बक्सों की गुणवत्ता की निगरानी की जाएगी | विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की जाएगी, जिसके अंतर्गत हनी ट्रेड सेंटर, विलेज ऑफ एक्सीलेंस, टेस्टिंग लैब आदि की स्थापना की जाएगी।

600 करोड़ रुपये के शहद का किया गया निर्यात

बागवानी विभाग के महानिदेशक डॉ. अर्जुन सिंह सैनी ने हरियाणा मधुमक्खी पालन नीति-2021 और कार्य योजना 2021-2030 पर विस्तृत प्रस्तुतिकरण दिया। प्रस्तुतिकरण के दौरान उन्होंने बताया कि हरियाणा देश में शहद उत्पादन में सातवें स्थान पर है। हरियाणा में 4800 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन होता है। वर्ष 2019-2020 में देश में लगभग 1 लाख मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ। देश में उत्पादित शहद का 60 प्रतिशत, जिसकी कीमत 600 करोड़ रुपये है, का निर्यात किया जाता है।

भूमि विकास बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों को मिलेगा 5 प्रतिशत अनुदान

बैंक ऋण पर ब्याज अनुदान

कृषि कार्यों के लिए किसानों को विभिन्न प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है | सरकार द्वारा यह ऋण किसानों को कम ब्याज दरों पर उपलब्ध करवाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं | इसमें किसान क्रेडिट कार्ड तथा अल्पकालीन फसली ऋण प्रमुख है | यह दोनों ऋण एक वर्ष के अंतर्गत लौटना निश्चित रहता है | कृषि क्षेत्र में ऐसे भी बहुत से कार्य हैं जिसके लिए बैंक से ऋण किसानों को लेना पड़ता है | किसानों को यह ऋण लंबी अवधि के लिए दिया जाता है इन्हें दीर्घकालीन ऋण कहते हैं, इन ऋण पर ब्याज दरें अधिक होती हैं |

राजस्थान में राज्य के किसानों को भूमि विकास बैंक से कृषि में विभिन्न कार्यों के लिए दीर्घकालीन ऋण दिया जाता है | यह ऋण 10 प्रतिशत के ब्याज दर पर किसानों को दिया जाता है परन्तु  ब्याज दर अधिक होने के कारण किसानों को चुकाने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है | इसको ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार राज्य के किसानों को भूमि विकास बैंक से लिए गये कर्ज के ब्याज पर 5 प्रतिशत का अनुदान दे रही है |

यह योजना कब से कब तक लागू है ?

राज्य के सहकारिता मंत्री ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने किसानों के हित में फैसला लेते हुए इसे 1 अप्रैल 2021 से लागू इस योजना के तहत किसान 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान पर ऋण ले सकते हैं | योजना का लाभ किसान 31 मार्च 2022 तक किसानों को दिया जायेगा |  समय पर ऋण चुकाने वाले किसानों को 5 प्रतिशत ब्याज दर से ऋण मिल सकेगा|

बैंक ऋण पर दिया जाने वाला ब्याज अनुदान

राजस्थान में भूमि विकास बैंक से लिए गए दीर्घकालीन ऋण के ब्याज में छुट दी जा रही है | भूमि विकास बैंक से राजस्थान में दीर्घकालीन ऋण 10 प्रतिशत की ब्याज पर दिया जाता है परन्तु इस वर्ष राज्य सरकार ने योजना के तहत समय पर ऋण चुकता करने वाले कृषकों को 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान देकर उन्हें राहत प्रदान की गई है।

किसान किन कार्यों के लिए ले सकते हैं ऋण

सहकारिता मंत्री श्री उदय लाल आंजना ने बताया कि किसान लघु सिंचाई के कार्य जैसे नवकूप/नलकूप, कूप गहरा करने, पम्पसैट, फव्वारा/ड्रिप सिंचाई, विद्युतीकरण, नाली निर्माण, डिग्गी/हौज निर्माण तथा कृषि यंत्रीकरण के कार्य जैसे ट्रेक्टर, कृषि यंत्र, थ्रेशर, कम्बाईन हार्वेस्टर आदि को क्रय करने के लिए दीर्घ कालीन अवधि के लिए ऋण ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि डेयरी, भूमि सुधार, भूमि समतलीकरण, कृषि भूमि क्रय, अनाज/प्याज गोदाम निर्माण, ग्रीन हाउस, कृषि कार्य हेतु सोलर प्लांट, कृषि योग्य भूमि की तारबंदी/बाउण्ड्रीवाल, पशुपालन, वर्मी कम्पोस्ट, भेड़/बकरी/सुअर/मुर्गी पालन, उद्यानीकरण, ऊंट/बैल गाड़ी क्रय जैसी कृषि संबद्ध गतिविधियों हेतु लिए गए दीर्घ कालीन ऋण भी इस योजना में कवर होंगे।

सब्जी, फल एवं मसाला फसलों के लिए शुरू की गई नई बागवानी बीमा योजना

मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तरह ही अब राज्य सरकारें अपने राज्य के किसानों के लिए फसल बीमा योजना लेकर आ रही है | पहले बिहार, झारखंड, गुजरात राज्य सरकारें राज्य के किसानों के लिए अलग से फसल बीमा योजना लेकर आई थी | अब नया नाम हरियाणा का जुड़ गया है | हरियाणा सरकार ने राज्य के सब्जी, मसाला तथा फलों की खेती करने वाले किसानों के लिए अलग से एक बागवानी बीमा योजना लेकर आई है |

हरियाणा सरकार ने राज्य के किसानों के लिए “मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना” शुरू की है | इस योजना के तहत प्राकृतिक कारणों से फसलों की नुकसानी होने पर किसान को नुकसानी के आधार पर बीमा राशि दी जाएगी | इस योजना के लिए पहले वर्ष में राज्य सरकार ने 10 करोड़ रूपये का बजट रखा है | यह योजना किसानों के लिए अनिवार्य नहीं होगी |

योजना के तहत किन फसलों को किया जायेगा कवर

मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना (एमबीबीवाई) के तहत कुल 21 सब्जी, फल एवं मसाला फसलों को कवर किया जायेगा | इसके लिए किसान की सहमती जरुरी है यानि किसान यदि इस योजना में पंजीकरण करवाना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए पंजीकरण करना होगा |

किसानों को मेरी फसल मेरा ब्योरा (एमएफएमबी) पोर्टल पर अपनी फसल और क्षेत्र का पंजीकरण करते समय इस योजना का विकल्प चुनना होगा। मौसमवार फसल पंजीकरण की अवधि समय-समय पर निर्धारित एवं अधिसूचित की जाएगी। यह योजना व्यक्तिगत क्षेत्र पर लागू की जाएगी अर्थात फसल हानि का आकलन व्यक्तिगत क्षेत्र स्तर पर किया जाएगा।

किन परिस्थितियों में दी जाएगी बीमा राशि

बागवानी किसानों के लिए प्रतिकूल मौसम और प्राकृतिक आपदाओं के कारण बागवानी फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई की जाएगी | प्राकृतिक कारणों में इस योजना के तहत ओलावृष्टि, पाला, वर्षा, बाढ़, आग आदि जैसे मापदंडों को लिया गया है जिससे फसल को नुकसान होता है।

कितनी बीमा राशि दी जाएगी ?

योजना के तहत प्राकृतिक कारणों से फसलों की नुकसानी पर किसानों को नुकसानी के आधार पर बीमा राशि दी जाएगी | दावा मुआवजा सर्वेक्षण और नुकसान की चार श्रेणियों 25, 50, 75 और 100 प्रतिशत की सीमा पर आधारित होगा। योजना के तहत सब्जी एवं मसाला फसलों की नुकसानी पर अधिकतम 30,000 रुपये प्रति हेक्टेयर और फलों की नुकसानी पर अधिकतम 40,000 रुपये दिए जाएंगे |

किसान को प्रीमियम कितना देना होगा ?

मुख्यमंत्री बागवानी बीमा योजना के तहत किसानों को फसलों का बीमा करवाना होगा | इसके लिए किसान को बीमा राशि का 2.5 प्रतिशत प्रीमियम देना होगा | योजना के अनुसार सब्जी तथा मसाला के लिए 750 रूपये प्रति हेक्टेयर तथा फलों के लिए 1,000 रूपये का प्रीमियम राशि देना होगा |

किसानों को बीज ग्राम योजना के तहत फ्री में दिए जाएंगे नई किस्मों के बीज

बीज ग्राम योजना के तहत बीज वितरण

कृषि क्षेत्र में दलहनी एवं तिलहनी फसलों के भाव में तेजी के चलते किसानों के बीच इन फसलों की खेती के लिए रुझान बढ़ा है | दलहनी तथा तिलहनी फसलों की बढ़ती मांग और देश में इन फसलों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा भी इन फसलों के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है | मध्यप्रदेश सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने एवं राज्य में पैदावार बढ़ाने के लिए बीज ग्राम योजना शुरू कर रही है | योजना के तहत किसानों को खाद्यान्न, दलहन एवं तिलहन फसलों की नवीन किस्मों के प्रमाणित एवं उन्नत बीज उपलब्ध कराये जायेंगे।

देश भर में लगभग 35 मिलियन टन तिलहन का उत्पादन होता है जो देश की कुल जरूरत का 40 प्रतिशत ही पूरा करता है | शेष तिलहन की आपूर्ति आयात करके की जाती है | देश में तिलहन का मूल्य 8 से 12 हजार रूपये क्विंटल तक चल रहा है ऐसे में किसानों को इसका लाभ मिल सके इसके सरकार द्वारा इन फसलों के उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है| दलहन एवं तिलहन की पैदावार बढ़ाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार राज्य के किसानों को दलहनी तथा तिलहनी फसलों का बीज नि:शुल्क वितरण करने जा रही है |

बीज ग्राम योजना के लिए अभी इन जिलों का किया गया चयन

मध्य प्रदेश कृषि विभाग के द्वारा बीज ग्रामों का शुभारंभ किया जा रहा है । इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति-जनजाति बहुल ग्रामों में विशेष कार्यक्रम आयोजित होंगे। इसमें प्रत्येक बीज ग्राम में 50 हितग्राही किसानों को खाद्यान्न, दलहन एवं तिलहन फसलों की नवीन किस्मों के प्रमाणित एवं उन्नत बीज उपलब्ध कराये जायेंगे। 10 जिलों के चयनित ग्राम इस प्रकार है:-

  • शाजापुर – 9 ग्राम
  • उज्जैन – 8 ग्राम
  • होशंगाबाद, सीहोर, विदिशा और सिवनी – 7 – 7 ग्राम
  • राजगढ़ और बड़वानी – 8 – 8 ग्राम
  • हरदा – 10 ग्राम

किस जिले में कौन सी फसल का बीज दिया जायेगा ?

कृषि मंत्री श्री पटेल ने बताया कि मुख्यमंत्री श्री चौहान राज्य-स्तरीय कार्यक्रम में किसानों को नि:शुल्क बीज मिनीकिट वितरण करेंगे। बीजों के मिनीकिट में सरसों समस्त जिलों में, मसूर 32 जिलों में और अलसी के बीज मिनीकिट 18 जिलों में वितरित किये जायेंगे। बीज मिनीकिट में उच्च उत्पादन किस्मों के बीज होंगे। इनसे कृषक नवीन किस्मों को अपनाये जाने के लिये प्रेरित होंगे। नवीन किस्मों के प्रमाणित बीज सीधे कृषकों तक पहुंचेंगे, जिसका लाभ किसानों को अधिक से अधिक होगा।

धान की फसल में अभी लग रहे हैं यह कीट एवं रोग, इस तरह करें नियंत्रण

धान की फसल में कीट एवं रोग

इस समय धान की फसल गभ्भा अवस्था में हैं एवं अगेती किस्मों में बालियाँ निकलने लगी हैं | जो धान अभी गभ्भा पर है उस धान की कटाई में 20 से 30 दिन की देरी है | इस अवस्था में धान की फसल पर विभिन्न प्रकार की रोग तथा कीट का प्रकोप बना रहता है | कुछ रोग तो इस तेजी से धान की फसल में फैलते हैं कि पूरी धान की फसल को ही ख़राब कर देते हैं |

अभी धान की फसल में शीथ ब्लाईट एवं पत्र अंगमारी रोग अधिकांश क्षेत्रों में देखा जा रहा है इसके अलावा तनाछेदक एवं गंधीबग कीट का प्रभाव भी खेतों में देखा गया है | किसान प्रारम्भिक अवस्था में इन कीट रोगों की पहचान कर इन कीट रोगों पर नियंत्रण कर धान की फसल को होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं | तेजी से फैलते इन कीट रोगों पर नियंत्रण के लिए कृषि विभाग द्वारा सलाह जारी की गई है |

शीथ ब्लाईट रोग

धान की फसल में शीथ ब्लाईट फफूंद से होने वाला रोग है, जिसमें पत्रवरण पर हरे–भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जो देखने में सर्प के केंचुल जैसा लगता है | इस रोग पर प्रबंधन/नियंत्रण के लिए खेत में जल निकासी का उत्तम प्रबंधन करना चाहिए | यूरिया की टॉप ड्रेसिंग सुधार होने तक बंद कर दें | कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें या भैलिडामाइसीन 3 एल.अथवा हेक्साकोनाजोन 5 प्रतिशत ई.सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने से बीमारी की रोकथाम हो जाती है |

पत्र अंगमारी रोग

धान में पत्र अंगमारी रोग जीवाणु से होने वाले रोग हैं, जिसमें पत्तियां शीर्ष से दोनों किनारे या एक किनारे से सूखती है | देखते–देखते पूरी पत्तियां सुख जाती है, जिससे फसल को नुकसान पहुँचता है | धान के पौधे में इस रोग के रोकथाम के लिए खेत से यथासंभव पानी को निकलने की सलाह दी जाती है | उर्वरक का संतुलित व्यवहार, नत्रजनीय उर्वरक का कम उपयोग एवं साथ ही, स्ट्रेप्टोसाईक्लिन 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए | पुन: एक सप्ताह पर दुबारा छिडकाव किया जाना चाहिए |

तना छेदक कीट

धान की फसल में तना छेदक कीट की पहचान बड़ी आसानी से की जा सकती है | इसके मादा कीट का आगे का पंख पीलापन लिये हुए होते हैं, जिसके मध्य भाग में एक कला धब्बा होता है | कीट के पिल्लू तना के अंदर घुसकर मुलायम भाग को खाता है, जिसके कारण गभ्भा सुख जाता है | बाद की अवस्था में आक्रांत होने पर बालियाँ सफेद हो जाती हैं, जिसे आसानी से खींचकर बाहर निकाला जा सकता है |

तना छेदक कीट पर नियन्त्रण करने के लिए खेत में 8 से 10 फेरोमोन ट्रैप प्रति हैक्टेयर एवं बर्ड पर्चर लगाने की सलाह दी जाती है | खेत में शाम के समय प्रकाश फंदा साथ ही, कार्बफ्युरान 3 जी दानेदार 25 किलोग्राम या फिप्रोनिल 0.3 जी 20 से 25 किलो अथवा कार्टाप हाइड्रोक्लोराईड 4 जी दानेदार 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से, खेत में नमी की स्थिति में व्यवहार किये जाने की सलाह दी जाती है तथा बिलम्ब की स्थिति में एसिफेट 75 प्रतिशत एस.पी. का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव किया जान चाहिए |

गंधी कीट

धान की फसल में लगने वाले गंधी कीट भूरे रंग का लम्बी टांग वाला दुर्गन्धयुक्त कीट है | शिशु एवं व्यस्क कीट दुग्धावस्था में धान के दानों में छेदकर उसका दूध चूस लेते हैं | जिससे धान खखडी में बदल जाता है | इस कीट पर नियंत्रण के लिए केकड़ा को सूती कपड़े की पोटली में बांधकर प्रति हेक्टेयर 10–20 जगह खेत के चारों तरफ फटती डंडा के सहारे लटका दें, जो फसल की ऊँचाई से लगभग एक फीट ऊपर हो | किसी रासायनिक उपचार की आवश्यकता नहीं होगी | साथ ही, क्लोरपाईरिफास 1.5 प्रतिशत धूल या मलाथियान 5 प्रतिशत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता है |

अब पंचायतों में की जाएगी फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना

फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना

किसानों को कृषि कार्यों एवं फसल अवशेष प्रबंधन के लिए आसानी से कम दरों पर कृषि यंत्र उपलब्ध हो सके इसके लिए सरकार द्वारा फार्म मशीनरी बैंक एवं कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना के लिए योजना चलाई जा रही है | इस वर्ष उत्तरप्रदेश में सब्सिडी पर फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना के लिए कृषक सहकारी समितियों, गन्ना समितियों एवं उद्यानिक समितियों हेतु लक्ष्य जारी किए गए थे | इन समितियों द्वारा लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ होने पर यह लक्ष्य अब ग्राम पंचायतों को दिए जाएंगे |

उत्तरप्रदेश सरकार ने समस्त जिलाधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि जनपदों में कृषक सहकारी, गन्ना समितियों एवं उद्यानिक समितियों द्वारा 5 लाख तक के फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थता व्यक्त करने पर समितियों के लक्ष्यों को उसी जनपद के पंचायतों के लक्ष्यों में परिवर्तित करते हुए कार्यवाही करने को कहा है |  

स्थापित किए जाएंगे 5 लाख रुपये तक के फार्म मशीनरी बैंक

विशेष सचिव कृषि, श्री शत्रुंजय कुमार सिंह की और से जारी शासनादेश में कहा गया है की माननीय उच्चत्तम न्यायालय तथा माननीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेशों के क्रम में कृषक सहकारी समितियों, गन्ना समितियों, औद्यानिक समितियों एवं पंचायतों को फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना हेतु फसल प्रबंधन के यंत्र उपलब्ध कराये जाने हेतु निर्देश जारी किए गए हैं | जारी आदेश के अनुसार 5 लाख रुपये तक के फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना हेतु जनपदवार कृषक सहकारी समितियों, गन्ना समितियों, औद्यानिक समितियों एवं पंचायतों के लिए निर्धारित किए गए हैं |

इस वर्ष खरीफ सीजन में धान सहित इन फसलों का होगा बम्पर उत्पादन

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खरीफ फसलों के उत्‍पादन के प्रथम अग्रिम अनुमान

कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय द्वारा 2021-22 के लिए मुख्‍य खरीफ फसलों के उत्‍पादन का प्रथम अग्रिम अनुमान जारी कर दिया गया है | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि खरीफ सीजन में 150.50 मिलियन टन रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान है | किसानों की अथक मेहनत, कृषि वैज्ञानिकों की कुशलता व केंद्र सरकार की किसान हितैषी नीतियों से बंपर पैदावार हो रही है |

मंत्रालय के मुताबिक 2021-22 के लिए प्रथम अग्रिम अनुमान (केवल खरीफ) के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्‍न उत्‍पादन रिकॉर्ड 150.50 मिलियन टन अनुमानित है, जो विगत पांच वर्षों (2015-16 से 2019-20 के औसत खाद्यान्‍न उत्‍पादन की तुलना में 12.71 मिलियन टन अधिक है | इस वर्ष खरीफ सीजन में खाद्यान्‍न फसलों का उत्पादन 150.50 मिलियन टन, तिलहन फसलों का उत्पादन 23.39 मिलियन टन, गन्ने का उत्पदान 419.25 मिलियन टन होने का अनुमान है |

मुख्‍य खरीफ फसलों के अनुमानित उत्‍पादन इस प्रकार है-

चावल – 107.04 मिलियन टन (रिकार्ड)

वर्ष 2021–22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 107.04 मिलियन टन अनुमानित है | यह विगत पांच वर्षों (2015–16 से 2019-20) के औसत उत्पादन 97.83 मिलियन टन की तुलना में 9.21 मिलियन टन अधिक है |

पोषक/मोटे अनाज – 34 मिलयन टन

इस वर्ष पोषक / मोटे अनाजों का उत्पादन 34 मिलियन टन अनुमानित है, जो कि 31.89 मिलियन टन औसत उत्पादन की तुलना में 2.11 मिलियन टन अधिक है |

मक्का – 21.24 मिलियन टन

इस वर्ष मक्का का उत्पादन में इस खरीफ सीजन में कमी आने का अनुमान है | वर्ष 2020–21 में खरीफ मक्का का उत्पादन 21.44 मिलियन टन था जो इस वर्ष के अग्रिम अनुमान के अनुसार 21.24 मिलियन टन रहने का अनुमान है |

दलहन – 9.45 मिलियन टन

वर्ष 2021–22 के दौरान कुल दलहन उत्पादन 9.45 मिलियन टन अनुमानित है | यह 8.06 मिलियन टन औसत खरीफ दलहन उत्पादन की तुलना में 1.39 मिलियन टन अधिक है |

तूर – 4.43 मिलियन टन

इस वर्ष तुअर का उत्पादन वर्ष 2020-21 में 4.28 मिलयन टन था जो वर्ष 2021–22 में बढ़कर 4.43 मिलियन टन होने का अनुमान है | वर्ष 2021–22 के दौरान कुल दलहन उत्पादन 9.45 मिलियन टन अनुमानित है | यह 8.06 मिलियन टन औसत खरीफ दलहन उत्पादन की तुलना में 1.39 मिलियन टन अधिक है |

तिलहन 23.39 मिलियन टन

तिलहन फसलों में मूंगफली का उत्पदान 8.25 मिलियन टन एवं सोयाबीन का उत्पादन 12.72 मिलियन टन होने का अनुमान है | वर्ष 2021–22 के दौरान कुल तिलहन उत्पादन 23.39 मिलियन टन अनुमानित है, जो कि 20.42 मिलियन टन औरसत तिलहन उत्पादन की तुलना में 2.96 मिलियन टन अधिक है |

कपास–36.22 मिलियन गांठें (प्रति 170 किलोग्राम)

इस वर्ष कपास का उत्पादन 36.22 मिलियन गांठें (प्रति 170 किलोग्राम की गांठे) एवं पटसन एवं मेस्ता का उत्पादन 9.61 मिलियन गांठे (प्रति 180 किलोग्राम की गांठे) उत्पादित होने का अनुमान है |

गन्ना – 419.25 मिलियन टन

वर्ष 2021–22 के दौरान देश में गन्ने का उत्पादन 419.25 मिलियन टन अनुमानित है | वर्ष 2021–22 के दौरान गन्ने का उत्पादन 362.07 मिलियन टन औसत गन्ना उत्पादन का तुलना में 57.18 मिलयन टन अधिक है |

किसान अधिक पैदावार के लिए लगाएं मटर की यह उन्नत किस्में

मटर की नई उन्नत किस्में

देश में सरकार द्वारा दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पदान पर जोर दिया जा रहा है, इतना ही नहीं दलहन फसलों के बाजार भाव अधिक होने से किसानों को इनसे आमदनी भी अच्छी होती है | मटर विश्व में उगाई जाने वाली तीसरी प्रमुख दलहनी फसल है | भारत में चना एवं मसूर के बाद यह रबी सीजन में उगाई जाने वाली प्रमुख तीसरी दलहनी फसल है | जो किसान रबी सीजन में मटर की खेती करना चाहते हैं उन्हें अधिक पैदावार के लिए अभी से बीजों का चयन कर बीज की व्यवस्था करना होगा |

मटर की अधिक पैदावार के लिए आवश्यक है कि किसान अपने क्षेत्र के अनुसार उन्नत किस्मों का चयन करें ताकि कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके | प्रजातियों एवं क्षेत्र के अनुसार बीज उत्पदान के लिए बुआई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक सर्वोत्तम रहता है | नीचे अलग-अलग राज्यों के लिए मटर की किस्में उनकी उत्पादन क्षमता एवं उनकी विशेषताएं दी गई हैं |

मटर की उन्नत किस्में, उनकी उत्पदान क्षमता एवं विशेषताएं

किस्म का नाम
 
उपयुक्त राज्य
उत्पादन क्विंटल / हेक्टेयर
किस्म की विशेषताएं

केशवानन्द मटर–1, (आरपीएफ-4)

 

राजस्थान

–     

मटर की यह किस्म 110 से 115 दिन में उत्पादन देती है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है |

आईपीएफ 6–3

उत्तर प्रदेश

15 से 18

मटर की यह किस्म 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है | यह बौनी किस्म की प्रजाति है, पाउडरी मिल्ड्यू के प्रतिरोधी है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है |

इन्दिरा मटर–4

छत्तीसगढ़

15–18

मटर की यह किस्म 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा माध्यम बौनी प्रजाति है |

पूसा मुक्ता (डीडीआर -55)

एनसीआर, दिल्ली

25

मटर की यह प्रजाति 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी रोग प्रतिरोधक है | इसके दाने बड़े होते हैं |

आईपीएफजे –10-12

उत्तर प्रदेश

18–20

मटर की यह प्रजाति 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी रोग के प्रति प्रतिरोधक है तथा यह बौनी प्रजाति का मटर है |

एचएफपी – 529

उत्तर प्रदेश मैदानी क्षेत्र

22–25

यह प्रजाति 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाता है | यह किस्म बौनी प्रजाति का है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू रोग प्रतिरोधक है |

टीआरसीपी – 8, (गोमती)

उत्तर–पूर्वी राज्य

22–25

मटर की यह किस्म 139 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए फलीछेदक के प्रति सहनशील है |

वीएल मटर–47

उत्तराखंड

14

मटर की यह प्रजाति 142 से 162 दिनों में पककर तैयार होती है | यह रोग उकठा, रतुआ तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है

आईपीएफ 4–9

सिंचित क्षेत्र

17

मटर की यह प्रजाति 129 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह पाउडरी रोग प्रतिरोधक है तथा फली छेदक कीट के प्रति मध्य प्रतिरोधक है |

आईपीएफ 5–19 (अमन)

उत्तर – पश्चिमी मैदानी क्षेत्र

22

मटर की यह प्रजाति 124 से 137 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधक है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है | इसके साथ ही फली छेदक के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है |

पंत पी–42

उत्तरपश्चिमी मैदानी क्षेत्र

22

मटर की यह किस्म 113 से 149 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधक, फली छेदक तथा स्टेन फ्लाई की मध्यम प्रतिरोधी है |

एचएफपी – 9426

हरियाणा के सिंचित क्षेत्र

20

मटर की यह प्रजाति 135 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी, जडगलन तथा निमेटोड की माध्यम प्रतिरोधी है |

पंत पी–25

उत्तराखंड

18–22

मटर की यह किस्म 125 से 128 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है |

वीएल मटर–42

उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र

20

मटर की यह किस्म 108 से 155 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है |

एचएफपी–9007बी

उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र

17–20

मटर की यह किस्म 128 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रतिरोधी है तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है |

आईपीएफडी  (1- 10) (प्रकाश)

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, गुजरात, बुन्देलखण्ड

21

मटर की यह किस्म 94 से 121 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है तथा रतुआ के प्रति सहनशील है |

पारस

छत्तीसगढ़

18–24

मटर की यह किस्म 94 से 119 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं | यह किस्म में पाउडरी रोग के प्रति रोगप्रतिरोधक है |

पंत पी–14

उत्तराखंड

15–22

यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू तथा रतुआ रोग के प्रति रोगप्रतिरोधक है |

 

आईपीएफडी – 99–13 (विकास)

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, गुजरात, बुन्देलखण्ड

23

यह किस्म 102 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है |

आईपीएफडी – 99–25 (आदर्श)

मध्य क्षेत्र

23

मटर की यह किस्म 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

केपीएमआर – 400 (इंदिरा)

मध्य क्षेत्र

20

मटर की यह किस्म 105 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

केपीएमआर – 522 (जय)

उत्तर – पश्चिम मैदानी  क्षेत्र

23

मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

डीडीआर – 27 (पूसा पन्ना)

उत्तर-पश्चिम  मैदानी क्षेत्र

18

मटर की यह किस्म 100 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह प्रजाति अगेती है | इसके साथ पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

डीडीआर – 23 (पूसा प्रभाव)

उत्तर – पश्चिम मैदानी क्षेत्र

15

मटर की यह किस्म 95 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह प्रजाति अगेती है | इसके साथ पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

अंबिका

मध्य क्षेत्र

18 – 19

मटर की यह प्रजाति 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | इसके दाने गोले तथा चिकने होते हैं | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

केएफपीडी–24 (स्वाति)

उत्तर प्रदेश

25.30

मटर की यह किस्म 110 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है |

मालवीय मटर–15 (एचयूडीपी – 15)

उत्तर – पूर्वी मैदानी क्षेत्र

25–30

मटर की यह प्रजाति 110 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म रतुआ तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

एच एफ पी – 8712 (जयंती)

हरियाणा

20–25

मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस किस्म की मटर दाने बड़े होते हैं | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

सपना

उत्तर प्रदेश

20–25

मटर की यह किस्म 115 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रति रोधक है |

एचएफपी–8909

उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र

20–25

मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

डीएमआर–7 (अलंकार)

उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र

20–25 

मटर की यह किस्म 115 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

केएफपी–103 (शिखा)

उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र

15–20

मटर की यह किस्म 130 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |

बीज की मात्रा

दाने के आकार तथा प्रजातियों की बढ़वार के आधार पर सामन्यतः 60-75 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर, जिसकी अंकुरण क्षमता 85 प्रतिशत हो पर्याप्त रहता है | किसानों को बुआई से पूर्व बीजोपचार जरुर करना चाहिए जिससे फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है एवं बीज के अंकुरण में भी सहायता मिलती है | इससे बीज की गुणवत्ता तथा उत्पदकता में वृद्धि होती है |

बीजों का उपचार

बीजोपचार के लिए कवकनाशी जैसे थीरम,कैप्टान या बाविस्टीन 2.5 किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के 6 घंटे बाद दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 2 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करके 12 घंटे छाया में सुखाना चाहिए|

जैविक बीजोपचार के लिए 200 ग्राम गुड़ एक लीटर पानी में उबालकर ठंडा होने के बाद 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर के दो पैकेट को इस गुड़ के घोल में अच्छी प्रकार मिलाएं तथा इसके बाद इस कल्चर के घोल को 60-75 किलोग्राम मटर में अच्छी तरह मिलकर छाया में सुखाने के बाद बुआई करनी चाहिए |

आने वाले दिनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित इन जगहों पर हो सकती है भारी बारिश

20 से 24 सितम्बर तक बारिश का पूर्वानुमान

पिछले कई दिनों से लगातार बारिश का सिलसिला जारी है, जो आने वाले दिनों में भी जारी रहने का अनुमान मौसम विभाग ने जारी किया है | मौसम विभाग के ताजा पूर्वानुमान के अनुसार अगले तीन दिन तक कई राज्यों में बारिश होने की संभावना है। मौसम विभाग ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड गुजरात समेत कई राज्यों में 23 सितंबर तक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है।

मध्यप्रदेश, राजस्थान, विदर्भ और छत्तीसगढ़ राज्यों में आने वाले 4 दिनों तक बारिश की गतिविधियाँ जारी रहेंगी |  कोंकण एवं गोवा, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाडा आदि क्षेत्रों में आने वाले 3 दिनों तक मध्यम से भारी बारिश की सम्भावना है | इसके अलावा गुजरात राज्य के जिलों में आने वाले 2 दिनों में भारी बारिश होने की सम्भावना है | उत्तराखंड राज्य में 20 से 24 सितम्बर तक अधिकांश जिलों में भारी बारिश होने की संभवना है | उड़ीसा, पश्चिम बंगाल राज्यों में 20 एवं 21 सितम्बर के दौरान भारी बारिश होने की सम्भावना है |

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग जयपुर केंद्र के अनुसार राजस्थान के अजमेर, बांसवाडा, बारान, भीलवाडा, बूंदी, चित्तोडगढ, डूंगरपुर, झालावार, प्रतापगढ़, राजसमन्द, सिरोही, उदयपुर, जालोर, जोधपुर, नागौर, पाली आदि जिलों में आने वाले 5 दिनों तक भारी बारिश होने की संभवना है |

मध्यप्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के भोपाल केंद्र की चेतावनी के अनुसार भोपाल, रायसेन, राजगढ़, विदिशा, सीहोर, धार, इंदौर, अलीराजपुर, बडवानी, बुरहानपुर, खंडवा,खरगोन, झाबुआ, देवास, आगर-मालवा, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर, उज्जैन, अशोक नगर, उमरिया, अनूपपुर, शाडोल, डिंडोरी, छिंदवाडा, बालाघाट, सिवनी, मंडला, रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, सागर, बैतूल, हरदा एवं होशंगाबाद जिलों में आने वाले 2-3 दिनों में मध्यम से लेकर भारी बारिश होने की संभवना है |

किसान अधिक उत्पादन के लिए लगाएं गेहूं की यह उन्नत किस्में

गेहूं की उन्नत किस्में

अक्टूबर महीने में किसान रबी फसलों की बुआई के लिए तैयारी शुरू कर देंगे | रबी में सबसे महत्वपूर्ण फसल गेहूं है जो देश के अधिकांश क्षेत्रों में लगाई जाती है | बुआई के लिए किसानों को गेहूं की किस्मों चयन पहले करना होगा ताकि किस्म के अनुसार गेहूं की खेती की तैयारी कर सकें | अच्छी आमदनी के लिए जरुरी है की किसान गेहूं की ऐसी किस्में लगाएं जिसकी रोगों के प्रति रोधक क्षमता अच्छी हो और साथ ही पैदावार अधिक प्राप्त की जा सके | गेहूं में एक ऐसी ही प्रजाति कठिया गेहूं की है | कठिया गेहूं भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण प्रजाति है |

देश में कठिया गेहूं की भी कई किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है | खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में कठिया गेहूं का प्रयोग होने के चलते इसकी मांग काफी बढ़ी है | कठिया गेहूं से सूजी, दलिया, डबल रोटी, फ्लेक्स, सेवइंया, पास्ता, केक, नूडल्स एवं अन्य बेकरी उत्पाद बनाये जाते हैं | उद्योगों में उपयोग होने के चलते किसानों को इस प्रजाति के अच्छे दाम मिल सकते हैं | किसानों की सुविधा के लिए किसान समाधान कठिया गेहूं की किस्मों के बारे में जानकारी लेकर आया है | किसान अपने क्षेत्र के अनुसार इन किस्मों का चयन कर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं |

गेहूं की उन्नत किस्में

भारत के मध्य क्षेत्र के लिए कठिया गेहूं कि प्रजातियाँ

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा एवं उदयपुर संभाग तथा उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र झाँसी एवं चित्रकूट संभाग के लिए उपयुक्त किस्में

गेहूं की किस्में
बिजाई की दशा
उपज (क्विंटल /हैक्टेयर)

 

 

औसत

क्षमता

एचआई 8713

सिंचित एवं समय पर बिजाई

52.30

68.20

एमपीओ 1215

सिंचित एवं समय पर बिजाई

48.60

65.30

एचआई 8759 (पूसा तेजस)

सिंचित एवं समय पर बिजाई

56.00

75.00

एचआई 8498 (मालव शक्ति)

सिंचित एवं समय पर बिजाई

44.00

73.00

डीडीडब्ल्यू 47

सीमित सिंचित एवं समय पर बिजाई

37.00

74.10

यूएएस 446

सीमित सिंचित एवं समय पर बिजाई

38.80

73.80

एचआई 8627

सीमित सिंचित एवं वर्षा आधारित, समय से बिजाई

29.8 / 20.1

46.8 / 38.8

एचडी 4672 (मालवा रत्ना)

वर्षा आधारित, समय से बिजाई

18.50

30

प्रायदिव्पीय क्षेत्र के लिए कठिया गेहूं की उन्नत किस्में:-

महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोवा एवं तमिलनाडु के मैदानी भाग, तमिलनाडू के निलगिरी एवं पलनी पर्वतीय क्षेत्र तथा केरल के वायनाड एवं इडुक्की जिलों को शामिल किया गया है |

प्रजातियां
 
बिजाई की दशा
उपज (क्विंटल/हैक्टेयर)
औसत
क्षमता

डीडीडब्ल्यू 48

सिंचित, समय से बिजाई

47.40

72.00

डब्ल्यूएचडी 948

सिंचित, समय से बिजाई

46.50

69.50

यूएएस 428

सिंचित, समय से बिजाई

48.00

58.80

एचआई 8663

सिंचित, समय से बिजाई

45.40

71.50

एनआईडीडब्ल्यू 1149

सीमित सिंचित, समय से बिजाई

29.73

36.80

एमएसीएस 4058

सीमित सिंचित, समय से बिजाई

29.60

37.10

जीडब्ल्यू 1346

सीमित सिंचित, समय से बिजाई

28.50

40.40

एचआई 8805

सीमित सिंचित, समय से बिजाई

30.40

35.40

एचआई 8802

सीमित सिंचित, समय से बिजाई

29.10

36.00

एमएसीएस 4028

सीमित सिंचित/वर्षा आधारित समय से बिजाई

19.30

28.70

यूएएस 466

सीमित सिंचित / वर्षा आधारित समय से बिजाई

18.30

24.40

         

गेहूं की इन किस्मों के लिए बुआई का सही समय

भारत में गेहूं की बुवाई का समय क्षेत्र के अनुसार एवं सिंचाई सुविधा के अनुसार अलग-अलग है | जिन क्षेत्रों में वर्षा आधारित बिजाई की जाती है वहां किसान दी गई किस्मों की बिजाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से कर सकते हैं | इसके अतिरिक्त सिंचित क्षेत्र एवं समय पर बिजाई करने वाली किस्मों के लिए उपयुक्त समय नवम्बर के प्रथम पखवाडा है |