मटर की नई उन्नत किस्में
देश में सरकार द्वारा दलहन एवं तिलहन फसलों के उत्पदान पर जोर दिया जा रहा है, इतना ही नहीं दलहन फसलों के बाजार भाव अधिक होने से किसानों को इनसे आमदनी भी अच्छी होती है | मटर विश्व में उगाई जाने वाली तीसरी प्रमुख दलहनी फसल है | भारत में चना एवं मसूर के बाद यह रबी सीजन में उगाई जाने वाली प्रमुख तीसरी दलहनी फसल है | जो किसान रबी सीजन में मटर की खेती करना चाहते हैं उन्हें अधिक पैदावार के लिए अभी से बीजों का चयन कर बीज की व्यवस्था करना होगा |
मटर की अधिक पैदावार के लिए आवश्यक है कि किसान अपने क्षेत्र के अनुसार उन्नत किस्मों का चयन करें ताकि कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके | प्रजातियों एवं क्षेत्र के अनुसार बीज उत्पदान के लिए बुआई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक सर्वोत्तम रहता है | नीचे अलग-अलग राज्यों के लिए मटर की किस्में उनकी उत्पादन क्षमता एवं उनकी विशेषताएं दी गई हैं |
मटर की उन्नत किस्में, उनकी उत्पदान क्षमता एवं विशेषताएं
किस्म का नाम |
उपयुक्त राज्य |
उत्पादन क्विंटल / हेक्टेयर |
किस्म की विशेषताएं |
केशवानन्द मटर–1, (आरपीएफ-4)
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राजस्थान |
– |
मटर की यह किस्म 110 से 115 दिन में उत्पादन देती है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है | |
आईपीएफ 6–3 |
उत्तर प्रदेश |
15 से 18 |
मटर की यह किस्म 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है | यह बौनी किस्म की प्रजाति है, पाउडरी मिल्ड्यू के प्रतिरोधी है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है | |
इन्दिरा मटर–4 |
छत्तीसगढ़ |
15–18 |
मटर की यह किस्म 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा माध्यम बौनी प्रजाति है | |
पूसा मुक्ता (डीडीआर -55) |
एनसीआर, दिल्ली |
25 |
मटर की यह प्रजाति 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी रोग प्रतिरोधक है | इसके दाने बड़े होते हैं | |
आईपीएफजे –10-12 |
उत्तर प्रदेश |
18–20 |
मटर की यह प्रजाति 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी रोग के प्रति प्रतिरोधक है तथा यह बौनी प्रजाति का मटर है | |
एचएफपी – 529 |
उत्तर प्रदेश मैदानी क्षेत्र |
22–25 |
यह प्रजाति 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाता है | यह किस्म बौनी प्रजाति का है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू रोग प्रतिरोधक है | |
टीआरसीपी – 8, (गोमती) |
उत्तर–पूर्वी राज्य |
22–25 |
मटर की यह किस्म 139 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए फलीछेदक के प्रति सहनशील है | |
वीएल मटर–47 |
उत्तराखंड |
14 |
मटर की यह प्रजाति 142 से 162 दिनों में पककर तैयार होती है | यह रोग उकठा, रतुआ तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है |
आईपीएफ 4–9 |
सिंचित क्षेत्र |
17 |
मटर की यह प्रजाति 129 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह पाउडरी रोग प्रतिरोधक है तथा फली छेदक कीट के प्रति मध्य प्रतिरोधक है | |
आईपीएफ 5–19 (अमन) |
उत्तर – पश्चिमी मैदानी क्षेत्र |
22 |
मटर की यह प्रजाति 124 से 137 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधक है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है | इसके साथ ही फली छेदक के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है | |
पंत पी–42 |
उत्तरपश्चिमी मैदानी क्षेत्र |
22 |
मटर की यह किस्म 113 से 149 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधक, फली छेदक तथा स्टेन फ्लाई की मध्यम प्रतिरोधी है | |
एचएफपी – 9426 |
हरियाणा के सिंचित क्षेत्र |
20 |
मटर की यह प्रजाति 135 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी, जडगलन तथा निमेटोड की माध्यम प्रतिरोधी है | |
पंत पी–25 |
उत्तराखंड |
18–22 |
मटर की यह किस्म 125 से 128 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है | |
वीएल मटर–42 |
उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
20 |
मटर की यह किस्म 108 से 155 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है | |
एचएफपी–9007बी |
उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
17–20 |
मटर की यह किस्म 128 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रतिरोधी है तथा रतुआ रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है | |
आईपीएफडी (1- 10) (प्रकाश) |
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, गुजरात, बुन्देलखण्ड |
21 |
मटर की यह किस्म 94 से 121 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है तथा रतुआ के प्रति सहनशील है | |
पारस |
छत्तीसगढ़ |
18–24 |
मटर की यह किस्म 94 से 119 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं | यह किस्म में पाउडरी रोग के प्रति रोगप्रतिरोधक है | |
पंत पी–14 |
उत्तराखंड |
15–22 |
यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू तथा रतुआ रोग के प्रति रोगप्रतिरोधक है |
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आईपीएफडी – 99–13 (विकास) |
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, गुजरात, बुन्देलखण्ड |
23 |
यह किस्म 102 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है | |
आईपीएफडी – 99–25 (आदर्श) |
मध्य क्षेत्र |
23 |
मटर की यह किस्म 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
केपीएमआर – 400 (इंदिरा) |
मध्य क्षेत्र |
20 |
मटर की यह किस्म 105 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
केपीएमआर – 522 (जय) |
उत्तर – पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
23 |
मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
डीडीआर – 27 (पूसा पन्ना) |
उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
18 |
मटर की यह किस्म 100 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह प्रजाति अगेती है | इसके साथ पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
डीडीआर – 23 (पूसा प्रभाव) |
उत्तर – पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
15 |
मटर की यह किस्म 95 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह प्रजाति अगेती है | इसके साथ पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
अंबिका |
मध्य क्षेत्र |
18 – 19 |
मटर की यह प्रजाति 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | इसके दाने गोले तथा चिकने होते हैं | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
केएफपीडी–24 (स्वाति) |
उत्तर प्रदेश |
25.30 |
मटर की यह किस्म 110 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है तथा रतुआ रोग के प्रति सहनशील है | |
मालवीय मटर–15 (एचयूडीपी – 15) |
उत्तर – पूर्वी मैदानी क्षेत्र |
25–30 |
मटर की यह प्रजाति 110 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म रतुआ तथा पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
एच एफ पी – 8712 (जयंती) |
हरियाणा |
20–25 |
मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस किस्म की मटर दाने बड़े होते हैं | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
सपना |
उत्तर प्रदेश |
20–25 |
मटर की यह किस्म 115 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रति रोधक है | |
एचएफपी–8909 |
उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
20–25 |
मटर की यह किस्म 120 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | यह किस्म बौनी प्रजाति की है तथा यह पाउडरी मिल्ड्यू के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
डीएमआर–7 (अलंकार) |
उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
20–25 |
मटर की यह किस्म 115 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
केएफपी–103 (शिखा) |
उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र |
15–20 |
मटर की यह किस्म 130 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह किस्म पाउडरी मिल्ड्यू रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक है | |
बीज की मात्रा
दाने के आकार तथा प्रजातियों की बढ़वार के आधार पर सामन्यतः 60-75 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर, जिसकी अंकुरण क्षमता 85 प्रतिशत हो पर्याप्त रहता है | किसानों को बुआई से पूर्व बीजोपचार जरुर करना चाहिए जिससे फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है एवं बीज के अंकुरण में भी सहायता मिलती है | इससे बीज की गुणवत्ता तथा उत्पदकता में वृद्धि होती है |
बीजों का उपचार
बीजोपचार के लिए कवकनाशी जैसे थीरम,कैप्टान या बाविस्टीन 2.5 किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के 6 घंटे बाद दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफास 2 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करके 12 घंटे छाया में सुखाना चाहिए|
जैविक बीजोपचार के लिए 200 ग्राम गुड़ एक लीटर पानी में उबालकर ठंडा होने के बाद 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर के दो पैकेट को इस गुड़ के घोल में अच्छी प्रकार मिलाएं तथा इसके बाद इस कल्चर के घोल को 60-75 किलोग्राम मटर में अच्छी तरह मिलकर छाया में सुखाने के बाद बुआई करनी चाहिए |