मटर उत्पादन की उन्नत तकनीक
भूमि का चुनाव:
मटर की खेती सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है परंतु अधिक उत्पादन हेतु दोमट और बलुई भूमि जिसका पी.एच.मान. 6-7.5 हो तो अधिक उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारी:
खरीफ फसल की कटाई के पश्चात एक गहरी जुताई कर पाटा चलाकर उसके बाद दो जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर से कर खेत को समतल और भुरभुरा तैयार कर लें । दीमक, तना मक्खी एवं लीफ माइनर की समस्या होने पर अंतिम जुताई के समय फोरेट 10जी 10-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में मिलाकर बुवाई करें ।
उपयुक्त किस्में
क्र. | प्रजाति का नाम | विमोचित वर्ष | अवधि (दिन) | उपज(क्वि./हे.) | विशेषता |
1 | जे.एम.-6 | – | 118-120 | 20-22 | पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
2 | प्रकाश | 2007 | 115-120 | 20-25 | पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
3 | के.पी.एम.आर. 400 | 2001 | 110-115 | 20-22 | बौनी किस्म एवं पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
4 | आई.पी.एफ.डी.-99-13 | 2005 | 100-105 | 20-25 | बौनी किस्म एवं पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
5 | आई.पी.एफ.डी.1-10 | 2006 | 110-115 | 20-22 | बौनी किस्म एवं पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
6 | आई.पी.एफ.डी.-99-25 | 2000 | 110-115 | 20-25 | लम्बे किस्म की प्रजाति एवं पाउडरीमिल्डयू के प्रति प्रतिरोधी एवं वर्षा आधारित क्षेत्र के लिये उपयुक्त |
बीज की मात्रा:-
उंचाई वाली किस्म 70-80 कि.ग्रा./हे.
बौनी किस्म 100 कि.ग्रा./हे.
बोनी का उपयुक्त समय:-
15 अक्टुबर से 15 नवम्बर
कतार से कतार एवं पौधों से पौधों की दूरी:-
उंचाई वाली किस्म 30 X10 से.मी.
बौनी किस्म 22.5 X 10 से.मी.
बोने की गहराई:-
4 से 5 से.मी.
बुआई का तरीका:-
बुवाई कतार में नारी हल, सीडड्रिल, सीडकमफर्टीड्रिल से करें।
बीजोपचार
बीज जनित रोगो से बचाव हेतु फफूंदनाशक दवा थायरम + कार्बनडाजिम (2$1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज और रस चूसक कीटों से बचाव हेतु थायोमिथाक्जाम 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचार करें उसके बाद वायुमण्डलीय नत्रजन के स्थिरीकरण के लिये राइजोवियम लेग्यूमीनोसोरम और भूमि में अघुलशील फास्फोरस को घुलनशील अवस्था में परिवर्तन करने हेतु पी.एस.वी. कल्चर 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें । जैव उर्वरकों को 50 ग्राम गुड को आधा लीटर पानी में गुनगुना कर ठंडा कर मिलाकर बीज उपचारित करें ।
उर्वरक की मात्रा
उर्वरक की मात्रा कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर | ||||
किस्म के लक्षण | नत्रजन | फासफोरस | पोटास | सल्फर |
उंचाई वाली किस्म | 20 | 40 | 40 | 20 |
बोनी किस्म | 20 | 50 | 50 | 20 |
सूक्ष्म तत्वों की उपयोगिता, मात्रा एवं प्रयोग का तरीका
मटर फसल मे सूक्ष्म पोषक तत्व अमोनियम हेप्टामोलिब्डेट 1 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीज उपचार कर बुवाई करें।
सिंचाई :-
स्प्रिकंलर से शखा बनते समय और फूल आने से पूर्व हल्की सिंचाई करे।
नींदा प्रबंधन
फसल में निंदा की समस्या होने पर व्हील हो या हेण्ड हो द्वारा नींदाई करे जिससे फसल की जड़ क्षेत्र मे वायु संचार बढ़ जाता है और खरपतवार नियंत्रित होने से पौधे में शाखाऐं और उत्पादन में वृद्धि होती है।
रसायनिक नींदानाषक:-
क्र. | दवा का नाम | दवा की व्यापारिक मात्रा/हेक्टेयर | उपयोग का समय | उपयोग करने की विधि |
1 | पेण्डीमैथलीन | 3 लीटर /हे. | बुवाई से 1 से 3 दिन के अंदर छिड़काव या फिर | 500 ली. पानी/हे. की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। |
2 | मेट्रीव्यूजोन | 250 ग्रा/हे. | बुवाई के 15-20 दिनं बाद छिडकाव करें । |
रोग प्रबंधन
- रोग प्रबंधन की विभिन्न विधियां:- मृदा उपचार, बीज उपचार एवं पर्णी छिड़काव
(2) रोग प्रबंधन हेतु अनुषंसाऐं:-
क्र. | रोग का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुषंसित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा | उपयोग करने का समय एवं विधि |
1 | भभूतिया रोग (पावडरी मिल्डयू) | पत्तियों एवं शखाओं पर सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ | बीजोपचार थायरम एवं कर्बेन्डिजिम और घुलनषील सल्फर या मेंकोजब का पर्णीय छिड़काव | 2+1 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से बीजोपचार और1 से 1.5 ग्राम/लीटर या 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिड़काव करे। | बुवाई के समय बीजोपचार द्वारा औरखड़ी फसल मे रोग के लक्षण परिलक्षित होने पर 500 ली. पानी/हे. की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। |
कीट प्रबंधन
क्र. | रोग का नाम | लक्षण | नियंत्रण हेतु अनुषंसित दवा | दवा की व्यापारिक मात्रा | उपयोग करने का समय एवं विधि |
1 | माहू | पत्ती , फूल एवं फलियों से रस चूसते है। | इमिडाक्लोरो प्रिड 17.8 एस.एल. | 0.5 मि.ली./ली. पानी की दर से छिड़काव करे। | कीट प्रकोप होने पर 500 ली. पानी/हे. की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। |
2 | स्टेम फ्लाई एवं लीफ माइनर | तना एवं पत्ती का रस चूस लेते है | फोरेट 10 जी | मृदा उपचार 10 कि.ग्रा./हे. | खेत की तैयारी के समय |
3 | फलीछेदक | फली मे छेद कर हानि पहुंचाते है | प्रोफेनोफॉस 50: ई.सी. | 1.5 मि.ली./ली. पानी की दर से छिड़काव करे। | कीट प्रकोप होने पर 500 ली. पानी/हे. की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। |
कटाई एवं गहाई:-
मटर की कटाई का कार्य फसल की परिपक्वता के पष्चात् करें। जब बीज मे 15 प्रतिषत तक नमी रहे उस स्थिति मे गहाई कार्य करना चाहिऐ।
उपज एवं भण्डारण क्षमता:-
मटर के बीज को अच्छे तरह से सूखाकर जब उसमे नमी 8-10 प्रतिषत रह जाये। तब बीज का भण्डारण सुरक्षित स्थान पर करें। मटर के बीज का भण्डार 1 से 2 वर्ष तक असानी से कर बुवाई हेतु उपयोग कर सकते है।
उपज:-
उन्नत तकनीक से खेती करने से 20-22 क्विं. प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो सकती है ।
अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख पांच बिन्दु
- बीजोपचार – थायरम + कार्बेण्डाजिम (2+1) 3 ग्राम/कि.ग्रा.बीज और थायोमिथोक्जाम 3 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें उसके बाद राइजोबियम एवं पी.एस.बी. कल्चर 5-10 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर तुरंत बोवाइ करें।
- फसल की उत्पादकता बढाने के लिय पोटाश 60 कि.ग्रा. और सल्फर 20 कि.ग्रा./हे. बुवाई के समय प्रयोग करे।
- फसल में शाखा बनते समय और फूल आने के पूर्व स्पिंकलर से हल्की सिंचाई करें ।
- पाला से फसल को बचाने के लिये घुलनशील सल्फर 80 डब्लू पी 2ग्राम/लीटर + बोरोन 1 ग्राम/लीटर का घोल बनाकर छिडकाव करे। (1)मटर का भभूतिया रोग निरोधक अन्नत किस्में -प्रकाष, आई.पी.एफ.डी.99-13, आई.पी.एफ.डी.1-10, जी.एम.- 6, मालवीय -13, 15, के.पी.एम.आर. 400 किस्मों का चुनाव करें ।
- भभूतिया रोग के प्रबंधन हेतु फफूंद नाशक दवा से बीजोपचार करें और खड़ी फसल में रोग आने पर घुलनशील सल्फर 1-1.5 ग्राम प्रति ली. या मेंकेजेब 5 ग्राम प्रति ली. की दर से 500 ली. प्रति हे0 पानी में घोल बना कर छिड़काव करें ।
Source :किसान कल्याण तथा किसान विकास विभाग मध्यप्रदेश