कृषि बजट 2022-23: राज्य सरकार ने जारी किया बजट, किसानों को मिली यह सौग़ातें

झारखंड कृषि बजट 2022-23

1 फरवरी को केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 बजट पेश किया, इसके बाद अब कई राज्य सरकारों के द्वारा भी इस वित्त वर्ष के लिए बजट पेश किए जा रहे हैं। राजस्थान, बिहार के बाद अब झारखंड सरकार ने भी राज्य का बजट पेश कर दिया है। इस वर्ष के बजट में सरकार ने किसानों के लिए कई नई योजनाएँ शुरू करने की घोषणा की है वही पहले से चली आ रही किसान कर्ज माफी योजना पर भी ज़ोर दिया। झारखंड विधानसभा में वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव वित्त वर्ष 2022–23 का बजट विधानसभा में पेश किया है। राज्य का कुल बजट 1.111 लाख करोड़ रूपये का है। 

राज्य सरकार ने पिछले वर्ष की तुलना में किसानों के लिए बजट में 5.92 प्रतिशत बढ़ा दिया है जिसमें राज्य के किसानों के लिए योजनाओं तथा कृषि संबंधित अन्य पर कुल 4,091.37 करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे| इस बजट में राज्य सरकार ने किसानों के लिए कुछ नई योजना की शुरुआत करने की घोषणा की गई है।

2 लाख से अधिक किसानों का किया गया कृषि ऋण माफ

झारखंड सरकार ने बजट पेश करते हुए बताया कि राज्य के किसानों को कोरोना के मुश्किल समय में कृषि ऋण माफ़ किया है। राज्य में किसानों को राहत देने के लिए “झारखंड कृषि ऋण माफी योजना” चलाई जा रही है। जिसके तहत अभी तक राज्य के 2 लाख 11 हजार 05 सौ 30 किसानों के बैंक खातों में 836 करोड़ रूपये हस्तांतरित किए गए हैं।

जल निधि योजना 

राज्य सरकार इस वित्त वर्ष में “जलनिधि योजना” के तहत राज्य के सभी जिलों में विशेष सिंचाई सुविधा अंतर्गत 01 हजार 07 सौ 66 डीप बोरिंग का कार्य एवं 01 हजार 09 सौ 63 परकोलेशन टैंक निर्माण करने की योजना है |

100 गाँवों में लागू की जाएगी एग्री स्मार्ट ग्राम योजना

इस वित्त वर्ष में राज्य सरकार वर्ष 2022–23 में विधायकों की अनुशंसा पर चयनित 100 गाँवों में “एग्री स्मार्ट ग्राम योजना” बनाने की अनुशंसा पर किया जायेगा। इन चयनित गाँवों का Gap Analysis कर विभिन्न योजनाओं से Convergence करते हुए इन गाँव का समग्र विकास किया जायेगा।

किसानों से गोबर ख़रीदने के लिए शुरू होगी गोधन न्याय योजना

राज्य में पशुपालकों की आय में बढ़ोतरी तथा पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए “गो–धान न्याय योजना” की शुरुआत की जाएगी। इस योजना के तहत किसानों तथा पशुपालकों से उचित मूल्य पर गोबर खरीदी की जाएगी तथा उससे बायोगैस बनाने के साथ–साथ जैविक खाद तैयार करने का कार्य किया जायेगा |

40 हजार किसानों को वितरित किए जाएँगे पशुधन

राज्य सरकार किसानों को इस वित्त वर्ष में स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए पशुधन वितरित करने जा रही है | साथ ही राज्य में दुग्ध की बढ़ोतरी की जाएगी| राज्य में अभी 80 लाख लीटर प्रतिदिन दुग्ध का उत्पादन किया जा रहा है, जिसे बढ़कर 85 लाख लीटर करने की योजना है। इसके तहत राज्य के 40 हजार लाभुकों को पशुधन वितरित करने की योजना है |

अनाज भंडारण पर 30 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएँगे

कृषि उत्पादनों को बढ़ावा देने के लिए तथा शीतगृह के निर्माण के लिए बजट में प्रवधान किया गया है | राज्य सरकार वर्ष 2022–23 वित्त में 05 हजार मीट्रिक टन क्षमता के मॉडल शीतगृह का निर्माण करने जा रही है | इसके लिए बजट में 30 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है |

फसल नुकसानी पर मुआवजा देने के लिए 25 करोड़ रुपए का प्रावधान

झारखंड सरकार ने राज्य से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अपने आप को बहार कर लिया है, इसलिए राज्य में प्राकृतिक आपदा होने पर फसल क्षति भरपाई के लिए राज्य सरकार ने एक कोष Crop Fund Create का निर्माण किया है। इसके लिए राज्य सरकार ने इस वित्त वर्ष में 25 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है |

100 यूनिट तक बिजली दी जाएगी मुफ़्त

गरीब ओर किसानों पर बिजली का बोझ कम करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा ऐसे प्रत्येक परिवार को मासिक 100 यूनिट बिजली मुफ़्त दिए जाने का निर्णय लिया है। साथ ही सोलर पॉवर प्लांट एवं सोलर आधारित उद्योगों पर सरकार अनुदान भी देगी।

गर्मी में मूंग की खेती के लिए इस दिन से दिया जायेगा नहरों में पानी

ग्रीष्मकालीन मूँग के लिए सिंचाई हेतु नहर से पानी

देश के कई क्षेत्रों रबी फसलों की कटाई के बाद ऐसे किसान जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है वह किसान गर्मी (जायद) में मूँग, उड़द, तरबूज़ एवं अन्य फसलें लगाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में अधिक वर्षा के कारण खरीफ फसलों के खराब हो जाने के कारण किसान एवं सरकार दोनो ही गर्मी में अतिरिक्त फसल लेने पर ज़ोर दिया जा रहा हैं जिससे लगातार जायद में मूँग एवं रबी फसलों का रक़बा बढ़ता जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने इसको ध्यान में रखते हुए समय पर नहरों में समय पर पानी देने का फैसला लिया है जिससे किसान समय पर मूँग की खेती कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकें।

मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम संभाग में किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती बड़े उत्साह से की जा रही है। पिछले 2 वर्षों से राज्य में जायद मूँग का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, जिसके बाद राज्य सरकार भी किसानों से समर्थन मूल्य पर मूँग की ख़रीदी करती है जिससे किसानों को अच्छी आमदनी प्राप्त हो रही है। राज्य में इस वर्ष भी सरकार मूंग की खेती को बढ़ावा देने के लिए तवा डेम से पानी देने जा रही है। राज्य सरकार पिछले वर्ष मूंग के उत्पादन को देखते हुए इस बार पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा पानी दिया जाएगा |

25 मार्च से दिया जायेगा जायद मूँग के लिए पानी

जल–संसाधन मंत्री श्री सिलावट ने हरदा और नर्मदापुरम जिले के किसानों के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल के लिए 25 मार्च से तवा डेम से नहरों में पानी छोड़ने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। मंत्री के अनुसार इस बार किसानों को मूंग के लिए और अधिक पानी दिया जाएगा।

कृषि मंत्री श्री पटेल ने कहा कि दो दिवसीय तवा उत्सव समारोहपूर्वक मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि कोरोना काल के दौरान भी हमारी सरकार ने हरदा और नर्मदापुरम जिले के किसानों को तवा डैम से सिंचाई के लिये पानी दिया गया था। इससे ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल का रिकार्ड उत्पादन हुआ और किसानों की आर्थिक स्थिति में सकारात्मक सुधार आया। 

6.82 लाख हेक्टेयर भूमि में की गई थी मूँग की खेती

वर्ष 2021–22 में मध्य प्रदेश में 6 लाख 82 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की खेती की गई थी| इससे 12  लाख 16 हजार मीट्रिक टन मूंग का उत्पादन किया गया था | राज्य सरकार ने राज्य में मूंग की उत्पादन को देखते हुए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ दिया गया था। राज्य के किसानों से 1 लाख 34 हजार मीट्रिक टन मूंग की खरीदी की गई थी। 

खेती से निकलने वाले कचरे से किसान कैसे अपनी आमदनी बढ़ायें एवं अन्य नई तकनीकों की जानकारी के लिए किसान आयें इस कृषि मेले में

कृषि अपशिष्ट से उद्यमिता विषय पर होगा मेले का आयोजन

कोरोना काल के बाद फिर से जन-जीवन सामान्य हो रहा है, ऐसे में अलग-अलग कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा आयोजित किए जाने वाले कृषि मेलों की भी शुरुआत हो चूकी है। सालाना आयोजित होने वाले इन कृषि मेलों में किसान जहां खेती में उपयोग की जा रही नई तकनीकों की जानकारी ले सकते हैं वहीं किस तरह इन तकनीकों का उपयोग कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं इसका ज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं। नई दिल्ली में आयोजित होने वाले पूसा कृषि विज्ञान मेले के बाद अब बिहार राज्य के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय ने भी इस वर्ष के कृषि मेले के लिए तारीखों एवं उसमें किसानों को दी जाने वाली सुविधाओं का ऐलान कर दिया है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय बिहार में 12 मार्च से 14 मार्च के दौरान कृषि मेले का आयोजन किया जायेगा। आयोजित होने वाले इस तीन दिवसीय क्षेत्रीय कृषि मेले कृषि अपशिष्ट के मुद्रीकरण द्वारा उद्यमिता विकास विषय पर होगा। किसान इस मेले में बिना किसी शुल्क के भाग ले सकते हैं। मेले में मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, कृषि यंत्रों, जैविक खेती, किसान गोष्ठी, आधुनिक सिंचाई प्रणाली आदि विषयों पर प्रदर्शनी एवं जानकारी भी किसान प्राप्त कर सकेंगे।

कृषि मेले के लक्ष्य एवं उद्देश्य क्या है 

  • उत्पन्न कृषि अपशिष्ट को मानव, कृषि भूमि उपयोग एवं पशुओं के लिए उत्पाद में परिवर्तित करना।
  • राजकोषीय गतिविधि को बढाने के लिए अपेक्षाकृत नए क्षेत्र में आजीविका सृजन के अवसर प्रदान करना।
  • कृषि अपशिष्ट को आर्थिक उपयोग में लाना जिससे पर्यावरण पर दबाव कम हो।
  • व्यवसायिक उद्धम सृजित करने के लिए विभिन्न हितधारकों को आकर्षित करना।
  • योजनागत आर्थिक और समाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए गांवो को समृद्ध बनाना।
  • सामाजिक परिवर्तन के लिए संबद्ध कृषि गतिविधियों जैसे मधुमक्खी पालन, मशरूम उत्पन, वर्मीकम्पोस्टिंग आदि को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण के तकनीकी कौशल का पता लगाना और उनका पोषण करना ताकि उच्च स्तर के कौशल और कलात्मक प्रतिभा के साथ मानव शक्ति की कोई कमी न हो।
  • खेती की लागत कम करने और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए कृषि प्रौधोगिकी और कृषि मशीनरी की प्रदर्शनी।
  • सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के साथ कृषि आधारित लघु एवं मध्यम उद्यमियों के सहयोग से नए क्षितिज को तलाशना।
  • संगोष्ठी/किसान गोष्ठी के माध्यम से नवीनतम कृषि प्रौधोगिकियों पर किसानों और वैज्ञानिकों के बीच बातचीत और ज्ञान साझा करना।
  • खाद्ध और पोषण सुरक्षा के लिए छोटे जोत वाले किसानों को मशरूम उत्पादन एवं प्रसंस्करण पर प्रदर्शनी।
  • प्रति बूंद अधिक फसल के लिए जल संरक्षण तकनीक और भूजल पुनर्भरण के लिए जल संचयन संरचना का प्रदर्शन।
  • ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत, सौर ऊर्जा वृक्षों, सौर पंपों और नाव पर लगे सौर सिंचाई प्रणाली की प्रदर्शनी।

किस दिन क्या कार्यक्रम रहेगा ?

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय में क्षेत्रीय कृषि मेला 2022 का आयोजना किया जा रहा है। यह कृषि मेला 12 से 14 मार्च 2022 तक आयोजित किया जाएगा। इस मेले में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं | जो इस प्रकार है :-

  • 12 मार्च 2022 (शनिवार) पंजीकरण, उद्घाटन एवं प्रदर्शनी 
  • 13 मार्च, 2022 (रविवार) पंजीकरण, प्रदर्शनी, गोष्ठी, सेमीनार, प्रक्षेत्र – भ्रमण 
  • 14 मार्च, 2022 (सोमवार) पंजीकरण, प्रदर्शनी, गोष्ठी, मुल्यांकन, समापन समारोह 

विश्वविद्यालय द्वारा कृषि अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विकसित की गई प्रौद्योगिकियां

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा हाल ही में कृषि अपशिष्ट को लेकर कई नई प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं । जिनमें 

  • ग्रामीण एवं कृषि अपशिष्ट को वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन के लिए “सुखेत मॉडल”,
  • केले के रेशे से विभिन्न सजावटी एवं अन्य उत्पाद बनाने की तकनीक,
  • मक्का के गोले से डिस्पोज़ल प्लेट्स बनाना,
  • अरहर डंठल से पर्यावरण अनुकूल तबले स्टैंड, कटलरी सेट, कैलेंडर स्टैंड आदि बनाने की तकनीक,
  • लीची के बीज से मछलियों का आहार,
  • हल्दी के फसल अवशेषों से आवश्यक तेल निकालने की तकनीक शामिल है ।

किसान कैसे पहुँचे इस कृषि मेले में?

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर बिहार के परिसर में इस तीन दिवसीय क्षेत्रीय मेले का आयोजन किया जायेगा। विश्वविद्यालय का यह परिसर समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से 20 कीलोमीटर दूरी पर स्थित है, वहीं सबसे नज़दीकी स्टेशन खुदीराम बोस पूसा रेलवे स्टेशन से मात्र 0.9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा कृषि विश्वविद्यालय का या परिसर मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे स्टेशन से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अधिक जानकारी के लिए किसान कृषि विश्वविद्यालय की वेबसाइट https://www.rpcau.ac.in पर देख सकते हैं।

6214 हेक्टेयर में बांस की रोपाई के लिये किसानों को दिया जायेगा अनुदान

बांस की खेती के लिए अनुदान

देश में बांस की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रही है | केंद्र सरकार बांस की कटाई पर रोक पहले ही हटा चुकी है जिससे किसानों के लिए बांस की खेती व्यापारिक उद्देश्यों के साथ की जा सकती है। बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए देशभर में राष्ट्रीय बांस मिशन चलाया जा रहा है जिसके तहत सरकार द्वारा किसानों को अनुदान दिया जाता है। बांस की खेती किसी भी भूमि पर की जा सकती है, ख़ासकर अनुपाजाऊ भूमि पर। जिससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकती है।

अक्सर किसान इसकी खेती उन भूमि पर करते हैं जहाँ पर दुसरे फसलों की खेती नहीं की जा सकती है | इसको देखते हुए राज्य सरकारें भी बांस की खेती के लिए ऐसी भूमि का चिन्हित करने लगी है | मध्यप्रदेश सरकार ने राज्य में बांस की खेती के लिए जिलों का चयन कर लिया है | इन जिलों में बांस की बड़े पैमाने पर रोपाई की जाएगी तथा इसके लिए किसानों को अनुदान भी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है |

बांस की रोपाई के लिए इन जिलों का किया गया है चयन

मध्य प्रदेश सरकार ने “एक जिला-एक उत्पाद योजना” के तहत राज्य के तीन जिलों का चयन बांस उत्पादन के लिए किया गया है। वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह ने कहा है कि प्रदेश में बांस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए राज्य बांस मिशन में हरदा, देवास और रीवा जिले का चयन कर 5 साल का रोडमैप तैयार किया गया है। 

किसानों को दिया जायेगा प्रशिक्षण एवं अनुदान

वन मंत्री डॉ. शाह ने बताया कि “एक जिला-एक उत्पाद” योजना में इन तीनों जिलों में 12 हजार 324 हेक्टेयर क्षेत्र में बांस-रोपण के साथ साढ़े तीन हजार किसान और बांस शिल्पियों को कौशल उन्नयन का प्रशिक्षण दिलाया जाएगा। साथ ही इन जिलों में बांस प्र-संस्करण की 11 इकाइयाँ लगाई जाकर बांस के विपणन में सहयोग दिलाया जाएगा। 

तीनों जिलों में किसानों को प्रोत्साहित कर अनुपाजाऊ निजी भूमि पर 5 वर्ष में 6214 हेक्टेयर में बांस-रोपण के लिये अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा। इससे उनके आर्थिक स्तर में वृद्धि हो सकेगी। उन्होंने कहा कि बांस उत्पादों को बेहतर कीमत उपलब्ध कराने के लिए बांस बाजार और एम्पोरियम की मदद भी ली जाएगी। वन विभाग द्वारा वन क्षेत्रों में किए जा रहे पौध-रोपण क्षेत्र की फेंसिंग के लिए अब सीमेंट पोल के स्थान पर बांस के पोल्स लगाने का निर्णय लिया गया है। 

बांस की खेती पर दिया जाने वाला अनुदान

राष्ट्रीय बाँस मिशन के तहत प्रदेश के किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर उन्नत गुणवत्ता वाले बाँस के पौधे उपलब्ध कराये जाते हैं। प्रति पौधा 240 रूपये लागत वाला यह पौधा किसानों को 120 रूपये में मिलता है। राशि अनुदान का वितरण तीन वर्षो तक किया जाता है। पहले साल में 60 रूपये प्रति पौधा, दूसरे में 36 रूपये और तीसरे साल में किसानों को 24 रूपये प्रति पौधा अनुदान दिया जाता है। पहले वर्ष में रोपित सभी पौधों पर अनुदान दिया जायेगा। दूसरे साल 80 प्रतिशत पौधों की जीवितता पर (मृत पौधा बदलाव सहित) और तीसरे साल शत-प्रतिशत पौधों की जीवितता (मृत पौधा बदलाव सहित) सुनिश्चित करने पर अनुदान दिया जायेगा।

खेती की तकनीकी जानकारी एवं उन्नत बीज प्राप्त करने के लिए इस मेले में आएँ किसान

पूसा कृषि विज्ञान मेला 2022

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा द्वारा प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले कृषि मेले के लिए इस वर्ष की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। नई दिल्ली में आयोजित होने वाले इस कृषि मेले का इंतज़ार देशभर के किसानों को रहता है। इस वर्ष आयोजित होने वाले इस कृषि विज्ञान मेले में किसानों को स्मार्ट खेती, हाइड्रोपोनिक खेती, ड्रोन तकनीक, विश्वविद्यालय द्वारा विकसित फसलों के उन्नत बीज एवं जैविक खेती जैसे आधुनिक विषयों पर जानकारी दी जाएगी साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान भी किया जायेगा।

कब एवं कहाँ होगा आयोजित किया जाएगा कृषि मेला

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा द्वारा इस मेले का आयोजन नई दिल्ली में 9 मार्च से 11 मार्च के दौरान किया जाएगा। 9 मार्च को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा इस मेले का शुभारम्भ किया जाएगा। इस तीन दिवसीय मेले का आयोजन संस्थान के मेला ग्राउंड, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली में किया जायेगा। 

मेले का मुख्य आकर्षक क्या रहेगा ?

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किए जाने वाले इस मेले  की मुख्य थीम “तकनीकी ज्ञान से आत्मनिर्भर किसान” है। इस मेले में किसानों को कृषि क्षेत्र की नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी। नीचे दिए गए 5 विषयों पर केंद्रित रहेगा मेला:-

  • स्मार्ट खेती मॉडल
  • संरक्षित खेती / हाईड्रोपोनिक / एरोपोनिक / वर्टिकल खेती 
  • कृषि उत्पादों के निर्यात प्रोत्साहन 
  • एग्री. स्टार्टप एवं किसान उत्पादक संगठन (एफ.पी.ओ.)
  • जैविक तथा प्राकृतिक खेती 

तकनीकी ज्ञान से आत्मनिर्भर किसान पर केंद्रित होगा मेला

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि मेले की थीम “तकनीकी ज्ञान से आत्मनिर्भर किसान” होगी। मेले में किसान स्मार्ट एग्रीकल्चर डिजिटल एग्रीकल्चर एवं ड्रोन के उपयोग आदि की जानकारी ले पाएंगे। किसान उत्पादक संगठन कैसे किसानों की आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं इसे भी किसान जान पाएंगे। प्राकृतिक और जैविक खेती से किसान कैसे सामंजस्य बनाएं और उसका जो उत्पादन होता है उसे बाजार से जोड़ करके किस प्रकार ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सकता है, इन सब पहलुओं पर विशेषज्ञ विस्तार से चर्चा करेंगे।

उन्नत बीज भी ख़रीद सकेंगे किसान 

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी किसान इस मेले से विकसित एवं उन्नत बीज ख़रीद सकेंगे। डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि इस मौके पर पूसा में तैयार कई फसलों के उन्नत बीजों की बिक्री भी होगी। किसान मिट्टी व पानी की जांच करवा पाएंगे । किसान संगोष्ठी एवं किसानों की कृषि संबंधी समस्याओं का वैज्ञानिकों द्वारा समाधान किया जाएगा। 

बांस के चारकोल निर्यात से बढ़ेगी देश के किसानों की आमदनी

बांस के चारकोल का निर्यात

भारत में बांस की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है, साथ ही इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा “राष्ट्रीय बांस मिशन योजना” चलाई जा रही है। बांस का उपयोग फर्नीचर, अगरबत्ती तथा छड़ी बनाने में किया जाता है | भारत में बांस का उपयोग अधिकांशतः अगरबत्ती के निर्माण में किया जाता है, जिसमें अधिकतम 16 प्रतिशत अर्थात बांस के ऊपरी परतों का उपयोग बांस की छड़ियों के निर्माण के लिए किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस पूरी तरह से बेकार हो जाता है | जिसके परिणामस्वरूप गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस इनपुट लागत 25,000 रूपये से 40,000 रूपये प्रति मीट्रिक टन के बीच आती है।

क्या देश में बांस लागत

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि अगरबत्ती और बांस शिल्प उद्योगों में उत्पन्न बांस अपशिष्ट का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण गोल बांस की छड़ियों के लिए बांस इनपुट लागत 25,000 रुपये से 40,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीचब आती है, जबकि बांस की औसत लागत 4,000 रुपये से 5,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन के बीच में है। इसकी तुलना में, चीन में बांस की कीमत 8,000 रुपये से 10,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है, लेकिन 100 प्रतिशत अपशिष्ट उपयोग के कारण उनकी इनपुट लागत 12,000 रुपये से 15,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है।

बांस के निर्यात से रोक हटाए सरकार 

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने कहा कि बांस का कोयला बनाकर बांस के अपशिष्ट का सबसे अच्छा उपयोग किया जा सकता है, यद्यपि घरेलू बाजार में इसका सिमित उपयोग है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी अत्यधिक मांग है। लेकिन भारत सरकार बांस की निर्यात मनाही रहने के कारण अवसर का लाभ नहीं उठा पा रहा है | केवीआईसी ने सरकार से बांस की कोयला बनाकर निर्यात पर रोक को हटाने की मांग की है। इससे देश को एक बाजार मिलेगा तथा बांस के किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है, साथ ही बांस उद्योगों को भी काफ़ी लाभ मिलेगा।

अंतराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ रही है माँग

बांस चारकोल की विश्व आयात मांग 1.5 से 2 मिलियन अमरीकी डालर के दायरे में है और हाल के वर्षों में 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है | अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बारबेक्यू के लिए बांस का कोयला लगभग 21,000 रूपये से 25,000 रूपये प्रति टन के हिसाब से बिकता है | इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग मिट्टी के पोषण के लिए और सक्रिय चारकोल के निर्माण के लिए कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। जिससे कई देशों में इसके आयात पर शुल्क बहुत कम है।

पूर्व में बांस आधारित उद्योगों, विशेष रूप से अगरबत्ती उद्योग में अधिक रोजगार सृजन करने के लिए केवीआईसी ने 2019 में, कच्ची अगरबत्ती के आयात किए जाने वाले गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क में नीतिगत बदलाव से अनुरोध किया था। इसके बाद सितम्बर 2019 में वाणिज्य मंत्रालय ने कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और जून 2020 में वित्त मंत्रालय ने गोल बांस की छड़ियों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया | 

यह उल्लेख करना उचित है कि एचएस कोड 141100 के तहत बांस उत्पादों के लिए निर्यात नीति में एक संशोधन 2017 में किया गया था, जिसमें सभी बांस उत्पादों के निर्यात को ओजीएल श्रेणी में रखा गया था और ये निर्यात के लिए “मुक्त” थे। हालांकि, बैम्बू चारकोल, बैम्बू पल्प और अनप्रोसेस्ड शूट्स के निर्यात को अभी भी प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है।

मधुमक्खी पालन एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगाने पर सरकार देगी अनुदान

खाद्य प्रसंस्करण यूनिट एवं मधुमक्खी पालन हेतु अनुदान

किसानों की आमदनी बढ़ाने एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इसमें केंद्र सरकार द्वारा चलाया जा रहा “एक जिला-एक उत्पाद” मिशन शामिल है, जिसमें अलग-अलग राज्यों के ज़िलों को विशेष फसलों के अनुसार बाँटा गया है। जिसके तहत Food Processing Unit (खाद्य प्रसंस्करण उद्योग) लगाने के लिए सरकार द्वारा भारी सब्सिडी एवं अन्य सुविधाएँ दी जाती है।

राजस्थान सरकार ने भी इस वर्ष अपने बजट में राज्य में कृषि जिंसों के बढ़ते हुए उत्पादन, मूल्य संवर्धन एवं निर्यात प्रोत्साहन करने के लिए “राजस्थान खाद्य प्रसंस्करण मिशन” शुरू करने का प्रावधान किया है। जिसके तहत इस वर्ष खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करने वाले लाभार्थियों को 50 प्रतिशत अनुदान देने की घोषणा की है।

एक जिला एक उत्पाद के तहत इन फसलों को किया गया है शामिल

उद्योग लगाने हेतु चयनित फसलें
शामिल जिले

लहसुन

प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, कोटा एवं बारां

अनार

बाड़मेर एवं जालोर

संतरा 

झालावाड़ एवं भीलवाड़ा

टमाटर व आँवला

जयपुर

सरसों

अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली एवं सवाई माधोपुर

जीरा व ईसबगोल (निर्यात आधारित)

जोधपुर संभाग के ज़िले

प्रॉसेसिंग यूनिट लगाने पर कितना अनुदान दिया जाएगा

ऊपर दी गई फसलों के अनुसार चयनित ज़िलों के किसान उद्यमियों को अनुदान देने के लिए सरकार ने बजट में प्रावधान किया है। इसके अनुसार प्रॉसेसिंग यूनिट लगाने पर लाभार्थी व्यक्तियों को 50 प्रतिशत ( अधिकतम 1 करोड़ रुपए तक) का अनुदान दिया जाना प्रस्तावित है। वहीं जोधपुर संभाग में जीरा व इसबगोल की निर्यात आधारित प्रथम 10 प्रसंस्करण इकाइयों को पूँजीगत अनुदान में लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 2 करोड़ रुपए की सहायता दी जाएगी।

मधुमक्खी पालन पर भी दिया जाएगा अनुदान

बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने राज्य में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा ददेने के लिए भी किसानों को अनुदान देने की घोषणा की है। राज्य सरकार मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने हेतु अनुदान के लिए 50 करोड़ रुपए का प्रावधान करते हुए 5 हजार किसानों को लाभान्वित करेगी। साथ ही भरतपुर में 7 करोड़ 50 लाख रुपए की लागत से Centre of Excellence for Apiculture की स्थापना की जाएगी एवं शहद की गुणवत्ता परीक्षण के लिए मोबाइल लैब भी संचालित की जाएगी। इसके अतिरिक्त श्री गंगानगर ज़िले में शहद परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की जाएगी। 

बागवानी महोत्सव में 400 से अधिक किसानों को दिए गए पुरस्कार

बागवानी किसानों को पुरस्कार

फल, फूल एवं सब्जी आदि बागवानी फसलों को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार प्रत्येक वर्ष बागवानी महोत्सव का आयोजन करती है | इसके तहत राज्य में उत्पादित सभी प्रकार की बागवानी फसलों की प्रदर्शनी लगाई जाती है, जिससे अधिक से अधिक किसानों को इनके विषय में जागरूक कर प्रोत्साहित किया जा सके। इस प्रदर्शनी में राज्य के किसान निःशुल्क भाग ले सकते हैं एवं चयनित किसानों को सरकार द्वारा ईनाम दिया जाता है।

इस वर्ष भी राज्य के पटना जिले में बागवानी महोत्सव–सह–प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था| 2 दिवसीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए राज्य के हजारों प्रतिभागीयों ने ऑनलाइन पंजीयन कराया था | 26 एवं 27 फरवरी,2022 को आयोजित किए गए इस बागवानी महोत्सव–सह–प्रतियोगिता में सैंकड़ों किसानों को पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

कितने किसानों ने आवेदन किये थे ?

कृषि विभाग के सचिव डॉ. एन.सरवण कुमार ने कहा कि 854 कृषकों/गार्डनर/पुष्प प्रेमियों के द्वारा ऑनलाइन पंजीयन कराया गया था | इस बागवानी महोत्सव में कुल 18 वर्ग चिन्हित किये गये थे | इन सभी वर्गों के लिए कुल 6,860 प्रादर्शों का प्रदर्शन किया गया | पटना के वीर कुवर सिंह पार्क में आयोजित इस महोत्सव में 10,000 किसानों एवं आमजनों द्वारा इस दो दिवसीय महोत्सव का भ्रमण किया गया।

कितने किसानों को पुरस्कार दिया गया ?

सभी वर्गों के लिए प्रतिभागी के प्रदर्शन को देखने के लिए वैज्ञानिकों की कमिटी द्वारा की गई एवं प्रत्येक वर्ग के प्रत्येक शाखा में तीन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले कृषकों एवं कलाकारों को पुरस्कृत किया गया है| विजेता के लिए चयनित 144 प्रतिभागियों को प्रथम, 133 प्रतिभागियों को द्वितीय एवं 144 प्रतिभागियों को तृतीय अर्थात कुल 431 चयनित प्रतिभागियों को प्रमाण–पत्र के साथ क्रमश: 5,000 रूपये, 4,000 रूपये एवं 3,000 रूपये पारितोषिक दिया गया तथा विभिन्न श्रेणियों में 37 पुरस्कार पाने वाले श्री पवन कुमार सर्राफ को बागवानी महोत्सव में आयोजित प्रतियोगिता से सर्वश्रेठ बागवान घोषित किया गया एवं उन्हें प्रमाण–पत्र, मोमेंटो के साथ 10,000 रूपये का विशिष्ट पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया |

इन फसलों की हुई खूब बिक्री

इस वर्ष बागवानी महोत्सव–सह प्रतियोगिता में फसलों की प्रदर्शनी के अलावा विभिन्न प्रकार के फसलों का बीज भी बेचे गए हैं| सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस, चंडी द्वारा उत्पादित उच्च गुणवत्तापूर्ण विभिन्न सब्जियों (खीरा, नेनुआ, झींगा, करेला, कददू, खरबुज, तरबुज, मिर्च,बैंगन इत्यादि) के 10,000 बीचडा की बिक्री इस महोत्सव में की गई है| साथ ही सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस, देसरी में उत्पादित आम, लीची, कागजी नींबु के हजारों पौध सामग्री की भी बिक्री की गई |

दोनों सेंटरों में उपजाए गये विदेशी सब्जियों एवं फलों यथा हरा, पीला लाल शिमला मिर्च, पीला पर्पल तथा सफेद फूलगोभी, बीज रहित खीरा, लेट्युस, चेरी टमाटर, स्ट्राबेरी की भी बिक्री की गयी | कुल मिलाकर दोनों सेंटरों द्वारा दो दिनों में 60,000 रूपये के पौध सामग्री की बिक्री की गई |

राज्य में सेब उत्पादन के लिए दिया जा रहा है प्रशिक्षण

बिहार में अब सेब की खेती भी की जा रही है इसके लिए राज्य के उधानिकी निदेशालय द्वारा किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसके अलावा किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए उपयुक्त प्रजाति के पौधे का वितरण भी किया गया है। इसके लिए हिमाचल प्रदेश के सेब के प्रसिद्ध किसान श्री हरिमन शर्मा द्वारा इस महोत्सव में किसानों को सेब की खेती करने हेतु प्रशिक्षण भी दिया गया है।

पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए 35 हजार से अधिक किसानों को दिया जाएगा तारबंदी पर अनुदान

तारबंदी Fencing पर अनुदान

आवारा पशुओं से फसलों की सुरक्षा किसानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बनते जा रही है | आवारा पशु के साथ-साथ जंगली पशुओं से सुरक्षा के लिए किसानों को खेत पर पहरेदारी करना पड़ता है, जो बहुत ही जोखिम भरा काम भी है| ऐसे में फसलों की सुरक्षा का एक मात्र ऊपाए तारबंदी है परंतु इसमें अधिक खर्च आने के चलते सभी किसान अपने खेतों पर तार फेंसिंग नहीं करा सकते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा किसानों को अनुदान देकर खेतों में तारबंदी का काम कराया जा सकता है।

राजस्थान सरकार पिछले कई वर्षों से किसानों को तार फेंसिंग के लिए सब्सिडी उपलब्ध करा रही है। इस योजना को सरकार ने आगे भी जारी रखने का फैसला लिए है साथ ही योजना के कुछ नियमों में बदलाव भी किए हैं जिससे अधिक से अधिक किसान योजना का लाभ ले सकें। राज्य के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने बजट पेश करते हुए “राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन” के लिए 100 करोड़ रुपए का बजट जारी करने की घोषणा की है।

35 हजार से अधिक किसानों को दिया जायेगा तार बंदी पर अनुदान

बजट पेश करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री ने बताया कि नीलगाय व आवारा पशुओं से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव व रोकथाम के लिए राज्य में “राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन” शुरू किया जा रहा है। जिसके तहत आगामी 2 वर्षों में 1 करोड़ 25 लाख मीटर तारबंदी पर 100 करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाएगा | जिससे इस योजना से अगले 2 वर्षों में 35 हजार से अधिक किसान लाभान्वित होंगे |

राज्य सरकार ने राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन योजना के नियमों में भी बदलाव करने की घोषणा की है | तारबंदी योजना में 3 किसानों को एक यूनिट मानने की शर्त को समाप्त कर एक अकेले किसान को लाभ देने व न्यूनतम क्षेत्रफल की सीमा को 1.5 हेक्टेयर किये जाने का प्रावधान भी करने की घोषणा अपने बजट में की है।

तारबंदी योजना पर किसानों को दिया जाता है 50 प्रतिशत का अनुदान

राजस्थान सरकार राज्य के किसानों के लिए राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन योजना चला रही है | तारबंदी हेतु पेरीफरी (परिधि) कृषकों को लागत का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम राशि रू- 40,000/- जो भी कम हो प्रति कृषक 400 रनिंग मीटर तक अनुदान दिया जाता है।

शुरू हुआ ‘मेरी पॉलिसी-मेरे हाथ’ अभियान, किसानों को घर जाकर दी जाएगी फसल बीमा पॉलिसी

फसल बीमा पॉलिसी का वितरण

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को शुरू हुए 6 साल पूरे हो गए हैं, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 18 फरवरी, 2016 को मध्य प्रदेश के सीहोर ज़िले से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) की शुरूआत की गई थी। योजना के सातवें वर्ष में किसानों को योजना के प्रति जागरूक करने एवं योजना की विस्तृत जानकारी देने के लिए सरकार ने ‘मेरी पॉलिसी-मेरे हाथ’ अभियान शुरू किया है। अभियान के तहत किसानों को घर पर जाकर फसल बीमा पॉलिसी की हार्ड कॉपी भी दी जाएगी।

26 फरवरी, 2022 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने इंदौर से ‘मेरी पॉलिसी-मेरे हाथ’ अभियान की शुरुआत की। कार्यक्रम में किसानों को फसल बीमा योजना की पॉलिसी वितरित की गईं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इस अवसर पर कहा कि प्रदेश में इस अभियान में गाँव-गाँव शिविर लगाए जाएंगे और किसानों को उनके घर पर ही बीमा पॉलिसी उनके हाथ में पहुँचाई जाएगी।

अभियान के तहत किसानों को फसल बीमा योजना के तहत किया जाएगा जागरूक

सरकार के द्वारा शुरू किए गए इस देशव्यापी अभियान के तहत प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में नामांकित किसानों को ग्राम पंचायत/ग्राम स्तर पर विशेष शिविरों के माध्यम से फसल बीमा पॉलिसी की हार्ड कॉपी वितरित की जाएगी। अभियान का उद्देश्य योजना में नामांकित सभी ऋणी और गैर-ऋणी किसानों तक पहुँचना एवं उन्हें फसल बीमा के बारे में जागरूक करना भी है। अभियान के तहत किसानों को उनकी फसल के लिए काटा गया प्रीमियम और फसल बीमा की पूर्ण जानकारी मिल जाएगी, जिससे फसल नुकसानी के समय दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

36 करोड़ से अधिक किसानों का किया गया फसल बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना केंद्र सरकार की एक फ़्लैगशीप योजना है। इसका उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली फसल के नुकसान/क्षति से पीड़ित किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। पीएमएफबीवाई के तहत शुरुआत से अभी तक 36 करोड़ से अधिक आवेदनों में किसानों का बीमा किया गया है। 4 फरवरी, 2022 तक इस योजना के तहत 1,07,059 करोड़ रुपये से अधिक के दावों का भुगतान किया जा चुका है। हालाँकि इसके बाबजूद भी कई राज्य सरकारों ने अपने आप को इस योजना से बाहार कर लिया है।