इफको की किसानों के लिए एक नई पहल “नीम लगाओ, पैसे कमाओ”
इफको ने किसानों के लिए एक नई पहल ‘नीम लगाओ, पैसे कमाओ’ की शुरूआत की है। देश के हर हिस्से में इफको ने ‘निमोरी केंद्र’ की शुरूआत की है जहां किसान जा कर अपने नीम के पौधे बेच सकते हैं और रुपये पंद्रह प्रति किलो कमा सकते हैं। इफको इसका इस्तेमाल इलाहाबाद के अपने संयंत्र में तेल निकालने के लिए करेगी। प्रति दिन 22 टन नीम के पौधों से दो टन नीम का तेल निकाला जाएगा। इन पौधों का इस्तेमाल यूरिया के उत्पादन के लिए भी किया जाएगा।
जाने किस तरह
नीम के पौधे लगाकर किसान अतिरिक्त आमदनी जुटा सकते हैं। किसान नीम का पौधा लगाकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। एक साधारण किसान नीम के पौधे लगाकर एक वर्ष में तीस से चालीस हजार रुपये कमा सकता है। इफको द्वारा वितरित किये जा रहे नीम के उन्नतशील पौधे पांच वर्ष में पेड़ बन जाएंगे। इनसे मिलने वाली नीम कौड़ी को इफको ही खरीदेगा और उससे नीम कोटेड यूरिया बनाएगा। नीम का पेड़ आर्थिक लाभ के साथ- साथ औषधि व पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
NPK का दाम घटाने के बाद फ़र्टिलाइज़र की सबसे बड़ी सहकारी कंपनी इफको , किसानों के लिए इस साल फिर एक बड़ी ख़ुशख़बरी लाई है। दरअसल इफ्को ने इस साल इलाहाबाद में नीम आधारित कारखाना लगाने की शुरुआत की है। इस कारखाने में नीम के निमोरियों से तेल निकाला जाएगा। इसमें रोज़ाना २२ टन निमोरियों से २ टन नीम का तेल निकाला जायेगा। इसके अतिरिक्त इन निमौलियों का उपयोग यूरिया उत्पादन में भी होगा। इफ्को ने नीम कारखाने में उपयोग में लाये जाने वाले निमोरियों को किसानों से ही खरीदने का फैसला किया है। इसके लिए इफ्को पूरे देश में कई स्थानों पर ‘निमोरी सेन्टर’ खोलेगी, जहाँ पर किसान १५ रुपये / किग्रा के दाम पर
मोती एक प्राकृतिक रत्न है जो सीप से पैदा होता है। भारत समेत हर जगह हालांकि मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनकी संख्या घटती जा रही है। अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार से हर साल मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर ने ताजा पानी के सीप से ताजा पानी का मोती बनाने की तकनीक विकसित कर ली है जो देशभर में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं।
तराशे हुए मोती
प्राकृतिक रूप से एक मोती का निर्माण तब होता है जब कोई बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के भीतर प्रवेश कर जाते हैं और सीप उन्हें बाहर नहीं निकाल पाता, बजाय उसके ऊपर चमकदार परतें जमा होती जाती हैं। इसी आसान तरीके को मोती उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है।
मोती सीप की भीतरी सतह के समान होता है जिसे मोती की सतह का स्रोत कहा जाता है और यह कैल्शियम कार्बोनेट, जैपिक पदार्थों व पानी से बना होता है। बाजार में मिलने वाले मोती नकली, प्राकृतिक या फिर उपजाए हुए हो सकते हैं। नकली मोती, मोती नहीं होता बल्कि उसके जैसी एक करीबी चीज होती है जिसका आधार गोल होता है और बाहर मोती जैसी परत होती है। प्राकृतिक मोतियों का केंद्र बहुत सूक्ष्म होता है जबकि बाहरी सतह मोटी होती है। यह आकार में छोटा होता और इसकी आकृति बराबर नहीं होती। पैदा किया हुआ मोती भी प्राकृतिक मोती की ही तरह होता है, बस अंतर इतना होता है कि उसमें मानवीय प्रयास शामिल होता है जिसमें इच्छित आकार, आकृति और रंग का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में आमतौर पर सीपों की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं- लैमेलिडेन्स मार्जिनालिस, एल.कोरियानस और पैरेसिया कोरुगाटा जिनसे अच्छी गुणवत्ता वाले मोती पैदा किए जा सकते हैं।
उत्पादन का तरीका
इसमें छह प्रमुख चरण होते हैं- सीपों को इकट्ठा करना, इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब में उपजाना और मोतियों का उत्पादन।
सीपों को इकट्ठा करना: तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा किया जाता है और पानी के बरतन या बाल्टियों में रखा जाता है। इसका आदर्श आकार 8 सेंटी मीटर से ज्यादा होता है।
इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना: इन्हें इस्तेमाल से पहले दो-तीन दिनों तक पुराने पानी में रखा जाता है जिससे इसकी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो।
सर्जरी: सर्जरी के स्थान के हिसाब से यह तीन तरह की होती है- सतह का केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी। इसमें इस्तेमाल में आनेवाली प्रमुख चीजों में बीड या न्यूक्लियाई होते हैं, जो सीप के खोल या अन्य कैल्शियम युक्त सामग्री से बनाए जाते हैं।
सतह के केंद्र की सर्जरी
इस प्रक्रिया में 4 से 6 मिली मीटर व्यास वाले डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध आदि के आकार वाले सीप के भीतर उसके दोनों खोलों को अलग कर डाला जाता है। इसमें सर्जिकल उपकरणों से सतह को अलग किया जाता है। कोशिश यह की जाती है कि डिजायन वाला हिस्सा सतह की ओर रहे। वहाँ रखने के बाद थोड़ी सी जगह छोड़कर सीप को बंद कर दिया जाता है।
सतह कोशिका की सर्जरी
यहाँ सीप को दो हिस्सों- दाता और प्राप्तकर्त्ता कौड़ी में बाँटा जाता है। इस प्रक्रिया के पहले कदम में उसके कलम (ढके कोशिका के छोटे-छोटे हिस्से) बनाने की तैयारी है। इसके लिए सीप के किनारों पर सतह की एक पट्टी बनाई जाती है जो दाता हिस्से की होती है। इसे 2/2 मिली मीटर के दो छोटे टुकड़ों में काटा जाता है जिसे प्राप्त करने वाले सीप के भीतर डिजायन डाले जाते हैं। यह दो किस्म का होता है- न्यूक्लीयस और बिना न्यूक्लीयस वाला। पहले में सिर्फ कटे हुए हिस्सों यानी ग्राफ्ट को डाला जाता है जबकि न्यूक्लीयस वाले में एक ग्राफ्ट हिस्सा और साथ ही दो मिली मीटर का एक छोटा न्यूक्लीयस भी डाला जाता है। इसमें ध्यान रखा जाता है कि कहीं ग्राफ्ट या न्यूक्लीयस बाहर न निकल आएँ।
प्रजनन अंगों की सर्जरी
इसमें भी कलम बनाने की उपर्युक्त प्रक्रिया अपनाई जाती है। सबसे पहले सीप के प्रजनन क्षेत्र के किनारे एक कट लगाया जाता है जिसके बाद एक कलम और 2-4 मिली मीटर का न्यूक्लीयस का इस तरह प्रवेश कराया जाता है कि न्यूक्लीयस और कलम दोनों आपस में जुड़े रह सकें। ध्यान रखा जाता है कि न्यूक्लीयस कलम के बाहरी हिस्से से स्पर्श करता रहे और सर्जरी के दौरान आँत को काटने की जरूरत न पड़े।
देखभाल
इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों और न्यूक्लीयस बाहर कर देने वाले सीपों को हटा लिया जाता है।
तालाब में पालन
ताजा पानी में सीपों का पालन देखभाल के चरण के बाद इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। इनका पालन प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप के मुताबिक किया जाता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। समय-समय पर सीपों का निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को अलग कर लिया जाता है। 12 से 18 माह की अवधि में इन बैगों को साफ करने की जरूरत पड़ती है।
मोती का उत्पादन
गोल मोतियों का संग्रहणपालन अवधि खत्म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। कोशिका या प्रजनन अंग से मोती निकाले जा सकते हैं, लेकिन यदि सतह वाला सर्जरी का तरीका अपनाया गया हो, तो सीपों को मारना पड़ता है। विभिन्न विधियों से प्राप्त मोती खोल से जुड़े होते हैं और आधे होते हैं; कोशिका वाली विधि में ये जुड़े नहीं होते और गोल होते हैं तथा आखिरी विधि से प्राप्त सीप काफी बड़े आकार के होते हैं।
ताजे पानी में मोती उत्पादन का खर्च
ध्यान रखें –
ये सभी अनुमान सीआईएफए में प्राप्त प्रायोगिक परिणामों पर आधारित हैं।
डिजायनदार या किसी आकृति वाला मोती अब बहुत पुराना हो चुका है, हालांकि सीआईएफए में पैदा किए जाने वाले डिजायनदार मोतियों का पर्याप्त बाजार मूल्य है क्योंकि घरेलू बाजार में बड़े पैमाने पर चीन से अर्द्ध-प्रसंस्कृत मोती का आयात किया जाता है। इस गणना में परामर्श और विपणन जैसे खर्चे नहीं जोड़े जाते।
कामकाजी विवरण
क्षेत्र : 0.4 हेक्टेयर
उत्पाद : डिजायनदार मोती
भंडारण की क्षमता : 25 हजार सीप प्रति 0.4 हेक्टेयर
पैदावार अवधि : डेढ़ साल
क्रम संख्या
सामग्री
राशि(लाख रुपये में)
I.
व्यय
क .
स्थायी पूँजी
1.
परिचालन छप्पर (12 मीटर x 5 मीटर)
1.00
2.
सीपों के टैंक (20 फेरो सीमेंट/एफआरपी टैंक 200 लीटर की क्षमता वाले प्रति डेढ़ हजार रुपये)
0.30
3.
उत्पादन इकाई (पीवीसी पाइप और फ्लोट)
1.50
4.
सर्जिकल सेट्स (प्रति सेट 5000 रुपये के हिसाब से 4 सेट)
0.20
5.
सर्जिकल सुविधाओं के लिए फर्नीचर (4 सेट)
0.10
कुल योग
3.10
ख .
परिचालन लागत
1.
तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्य (डेढ़ साल के फसल के लिए)
0.15
2.
सीप (25,000 प्रति 50 पैसे के हिसाब से)
0.125
3.
डिजायनदार मोती का खाँचा (50,000 प्रति 4 रुपये के हिसाब से)
2.00
4.
कुशल मजदूर (3 महीने के लिए तीन व्यक्ति 6000 प्रति व्यक्ति के हिसाब से)
0.54
5.
मजदूर (डेढ़ साल के लिए प्रबंधन और देखभाल के लिए दो व्यक्ति प्रति व्यक्ति 3000 रुपये प्रति महीने के हिसाब से
1.08
6.
उर्वरक, चूना और अन्य विविध लागत
0.30
7.
मोतियों का फसलोपरांत प्रसंस्करण (प्रति मोती 5 रुपये के हिसाब से 9000 रुपये)
0.45
कुल योग
4.645
ग.
कुल लागत
1.
कुल परिवर्तनीय लागत
4.645
2.
परिवर्तनीय लागत पर छह महीने के लिए 15 फीसदी के हिसाब से ब्याज
0.348
3.
स्थायी पूँजी पर गिरावट लागत (प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए)
0.465
4.
स्थायी पूँजी पर ब्याज (प्रतिवर्ष 15 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए
0.465
कुल योग
5.923
II.
कुल आय
1.
मोतियों की बिक्री पर रिटर्न (15,000 सीपों से निकले 30,000 मोती यह मानते हुए कि उनमें से 60 फीसदी बचे रहेंगे)
डिजायन मोती (ग्रेड ए) (कुल का 10 फीसदी) प्रति मोती 150 रुपये के हिसाब से 3000
4.50
डिजायन मोती (ग्रेड बी) (कुल का 20 फीसदी) प्रति मोती 60 रुपये के हिसाब से 6000
3.60
कुल रिटर्न
8.10
III.
शुद्ध आय (कुल आय- कुल लागत)
2.177
स्त्रोत:सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, उड़ीसा
जानें क्या है आर्गेनिक जैविक खाद बनाने का घरेलु तरीका
एक एकड़ भूमि के लिए कीट नियंत्रक बनाने के लिए हमें चाहिए 20 लीटर देसी गाय का गौ मूत्र 3 से 5 किलोग्राम ताजा हरा नीम कि पत्ती या निमोली , 2.500 किलो ग्राम ताजा हरा आंकड़ा के पत्ते , 2500 किलोग्राम भेल के पत्ते ताजा हरा , 2.500 ताजा हरा आडू के पत्ते इन सब पत्तो को कूट कर बारीक़ किलोग्राम पीसकर चटनी बनाकर उबाले और उसमे 20 गुना पानी मिलाकर किट नाशक या नियंत्रक तैयार करे इसको खड़ी फसल पर पम्प द्वारा तर बतर कर छिड़काव करे इससे जो भी कीड़े फसल को हानी पहुचाते है वह तो ख़त्म हो जायेंगे परन्तु फसल को किसी भी तरह का हानी नहीं होगा।
कीट नियंत्रण
देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर लें । इसमें 3 किलो नीम की पत्ती या 2 किलो नीम खली डालकर 40 दिन तक सड़ायें फिर 5 लीटर मात्रा को 150 से 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कने से एक एकड़ फसल पर इल्ली /रस चूसने वाले कीड़े नियंत्रित होंगे।
लहसुन 500 ग्राम, हरी मिर्च तीखी चिटपिटी 500 ग्राम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी में घोलकर कीट नियंत्रण हेतु छिड़कें ।
10 लीटर गौ मूत्र में 2 किलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 दिन सड़ाकर, इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालें फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 150 लीटर पानी में मिलाकर रसचूसक कीट /इल्ली नियंत्रण हेतु छिड़कें।
इन दवाओं का असर केवल 5 से 7 दिन तक रहता है । अत: एक बार और छिड़कें जिससे कीटों की दूसरी पीढ़ी भी नष्ट हो सके।
बेशरम के पत्ते 3 किलो एवं धतूरे के तीन फल फोड़कर 3 लिटर पानी में उबालें । आधा पानी शेष बचने पर इसे छान लें । इस छने काढ़े में 500 ग्राम चने डालकर उबालें। ये चने चूहों के बिलों के पास शाम के समय डाल दें। इससे चूहों से निजात मिल सकेगी।
जानें क्या है सब्जियों हेतु नर्सरी डालने का सही समय
सफलतापूर्वक फसल उगाने एवं अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उचित समय पर नर्सरी डालना चाहिए तथा पौधों का रोपण करना बहुत आवश्यक है। विभिन्न फसलों के लिये नर्सरी डालने का समय नीचे दर्शाया गया है
खरीफ में विभिन्न फसलों के लिये नर्सरी डालने का समय
किसान भाई अक्सर कीटनाशक दवाओं के नाम जानना चाहते हैं जिसे आसानी से वह बाजार से खरीद सकें, नीचे कुछ कीटनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम दिए गए हैं | किसानों को यह जानना जरुरी है की कौनसा कीटनाशक किस फसल के लिए उपयुक्त है तथा उस कीटनाशक से पौधों पर क्या असर पड़ेगा | किस कीटनाशक का उपयोग कितनी मात्रा में करना चाहिए | यह सभी जानने के बाद ही दवाओं का प्रयोग करें |
मध्यप्रदेश में कृषि यंत्रों के नये उत्पाद पर किसानों को मिलेगा फायदा
जीएसटी के बाद कृषि यंत्रों की दरों में भी कमी आयी है। किसान कल्याण विभाग ने बताया कि कीमतों में कमी का फायदा जल्द ही किसानों को मिलेगा। ट्रेक्टर पर जीएसटी की नई प्रस्तावित दर 12 प्रतिशत है। जीएसटी लगने से ट्रेक्टर की कीमत में एक से दो प्रतिशत की कमी आयी है। पूर्व में ट्रेक्टर पर 5 प्रतिशत वेट और स्पेयर पार्ट पर 12 से 24 प्रतिशत टैक्स लगा करता था।
प्रदेश में कीटनाशक व्यवसाय पर जीएसटी लगने से भी दामों में कमी आयी है। पूर्व में 18.5 प्रतिशत टैक्स लगता था। इसमें एक्साइज ड्यूटी 12.5 प्रतिशत, वेट टैक्स 5 प्रतिशत और एन्ट्री टैक्स एक प्रतिशत हुआ करता था। अब जीएसटी लागू होने के बाद कीटनाशक दवाओं पर 18 प्रतिशत टैक्स लग रहा है। जीएसटी लागू होने पर अब बिना देयक कीटनाशक परिवहन, वितरण और बिक्री संभव नहीं है। इसका फायदा किसानों को मिल रहा है। किसानों को अब गुणवत्तापूर्ण कीटनाशक मिल रहा है।
मध्यप्रदेश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लगने के बाद उर्वरक एवं कीट-नाशक की कीमतों में कमी आयी है। कीमतों की कमी से किसानों को आर्थिक रूप से मदद मिलेगी। किसान-कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने किसानों की सहूलियत के लिये नई कीमतें जारी की हैं l
उर्वरक व्यवसाय पर जीएसटी लगने से पूर्व कुल टैक्स लगभग 7 प्रतिशत लगता था। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स की दर 5 प्रतिशत रह गयी है।
खाद का नाम
जीएसटी लगने के पूर्व प्रति बोरी विक्रय दर (रुपये में)
जीएसटी लगने के बाद विक्रय दर प्रति बोरी (रुपये में)
टॉनिक के रूप में, अनिद्रा, रक्त चाप, मूर्छा चक्कर,सिरदर्द, तंत्रिका विकास,हृदय रोग, रक्त कोलेस्ट्रॉल कम करने में, गठिया को नष्ट करने में बच्चों के सूखा रोग में, क्षय नाशक, रोग प्रतिरोधक क्षमताबढ़ाने में, चर्म रोग, फेफड़ों के रोग में, अल्सर तथा मंदाग्नि के उपचार में, जोड़ों की सूजन तथा अस्थि क्षय के उपचार में, कमर दर्द, कूल्हे का दर्द दूर करने में, रूकी हुई पेशाब को ठीक से उतारने में।
लगाने कि दूरी
कतार व पौधे में अंतर : 50-60 सें.मी.
उन्नत किस्में
पेषिता, जे.ए. 20 , जे.ए. 134
मिट्टी एवं जलवायु
उष्ण से समशीतोष्ण, औसत तापमान 20-24 डिग्री सें. तथा वर्षा 100 से.मी. वार्षिक। बलुई मिट्टी। भूमि का जल निकास अच्छा हो एवं पी.एच. मान 6-7 तक
नर्सरी में बुआई : जून खेत में रोपाई : अगस्त –सितम्बर
सिंचाई
शीत ऋतु में 3-5 बार सिंचाई करें ।
खाद एवं उर्वरक
खाद व उर्वरक-सड़ी गोबर की खाद 15-20 टन/ प्रति हे.। बोनी के समय नेत्रजन 25 कि.ग्रा., स्फूर 30 कि.ग्रा. एवं पोटाश 30 कि.गा. प्रति हे.। १२.२५ कि.ग्रा. नेत्रजन पहली सिंचाई एवं 12.5 कि.ग्रा. दूसरी सिंचाइ के समय
तुड़ाई / खुदाई
पौधें की पत्तियां पीली और फल लाल होने पर पौधें को जड़ से उखाड़कर एवं जड़ों को काट कर सूखने के लिए दें