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शनिवार, मई 11, 2024

सोयाबीन के कीट एवं रोगों की पहचान तथा निदान

सोयाबीन के कीट एवं रोगों की पहचान तथा निदान

ताना छेदक कीट

ताना मक्खी (मेलेनेग्रोमइजा फैजियोलाई)

पहचान : मादा मक्खी आकर में 2 मि.मि. लम्बी होती है | मक्खी का रंग पहले भूरा तथा बाद में चमकदार काला हो जाता है | मादा मक्खी अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है जो की हलके पीले सफेद रंग के होते है | इल्ली हमेशा ताने के अंदर रहती है तथा बिना पैरों वाली एवं हल्के पीले सफेद रंग की होती है शंखी भरे रंग की एवं ताने के अंदर ही पाई जाती है |

प्रकोप : प्रारंभिक अवस्था में प्रकोपित पौधे मर जाते हैं | बीज पत्रों में प्रकोप के कारण टेड़ी- मेढ़ी लकीरे बनती है | इल्ली पट्टी के शिरे से डंठल को अन्दर से खातें हुए ताने में प्रवेश करती है | कीट प्रकोप से प्रारंभिक वृद्धि अवस्था (दो से तिन पत्ती ) में 20 – 30% पौधे प्रकोपित होते है | इल्ली का प्रकोप फसल कटाई तक होता है | फसल में कीट प्रकोप से 25 – 30 % उपज की हानि होती है |

जीवन चक्र : मादा मक्खी शंखी से निकलने के पश्चात् पत्ती अ बीज पत्रों के बीच 14 से 64 अण्डे देती है | अण्डकाल 2 – 3 दिनों का होता है | इल्ली काल 7 – 12 दिनों का होता है | इल्ली अपना एल्लिकल पूर्ण करने के पूर्व ताने में एक निकासी छिद्र बनाकर शंखी में बदलती है | शंखी 5 –9 दिनों में वयस्क कीट में बदलती है | कीट की साल भर में 8 –9 पीढ़ियां होती है |

पोषक पौधे : रबी मौसम में मटर,सेम,और गर्मियो में उड़द , मूंग आदि |

नियंत्रण

कृषिगत नियंत्रण : समय पर बुवाई करें | देर से बुवाई करने से पौधे में कीट प्रकोप बढ़ जाता है |बुआई हेतु अनुशंसित बीज दर का उपयोग करें |प्रकोपित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें |

रसायनिक नियंत्रण : थायोमेथाक्सम 70 डब्ल्यू.एस.3 ग्राम/किलो ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.कब्रोफ्यूरान 3 जी का 30 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से बोआई के समय करें | एक या दो छिडकाव डायमिथोएट 30 ई.सी. 700 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 200मि.ली. अथवा थायोमेथाक्सम 25 डब्ल्यू. जी. का 100ग्राम प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करें | हमेशा होलोकोन नोजल का उपयोग छिडकाव हेतु करें |

चक्र भृंग (ओबेरिया ब्रेविस)

पहचान : वयस्क भृंग 7 – 10मि.मि.लम्बा, 2 से 4 मि.मि.चौरा तथा मादा नर की अपेछा बड़ी होती है | भृंग का सिर  एवं वक्ष नारंगी रंग का होता है  |पंख वक्ष से जुड़ा होता है | पंख का रंग गहरा भूरा – काला ,श्रृंगिकाएं कलि तथा शारीर से बड़ी होती है | अण्डे पीले रंग के लम्बे गोलाकार होते है , पूर्ण विकसित इल्ली पीले रंग की 19 – 22 मि.मि. लम्बी तथा शारीर खंडो में विभाजित व सिर भूरा रंग का होता है |

प्रकोप : पौधों में जहां पर्णवृन्त,टहनी या ताने पर चक्र बनाए जाते है , उसके ऊपर का भाग कुम्ल्हा कर सुख जाता है | मुख्य रूप से ग्रब (इल्ली) द्वारा नुकसान होता है | इल्ली पौधे के तने को अन्दर से खाकर खोखला कर देता है | पूर्ण विकसित इल्ली फसल पकने के समय पौधों को 15से 25 से.मि. ऊचाई से काटकर निचे गिरा देती है जिससे अपरिपक्व फल्लियाँ उपयोग लायक नही होती है | प्रकोपित फसल में अधिक नुकसान होने पर करीब 50% तक हनी होती है |

जीवन चक्र : चक्र भृंग कीट का स्किरोये समय जुलाई से अक्टूबर माह तथा अगस्त से सितंबर माह में अधिक नुकसान होता है | मादा कीट अण्डे देने के लिए पौधे के पत्ती, टहनी अ ताने के डंठल पर मुखंगो द्वारा दो चक्र 6- 15 मि.मि. की दुरी पर बनती है | मादा कीट संपूर्ण जीवन कल में 10 – 70 अण्डे देती है अण्डो से 8 दिनों में झिल्लियाँ निकलती है | जुलाई माह में दिये अण्डो से निकली इल्ली का इल्ली – कल 32 से 65 दिनों का होता है | तद्पश्चात इल्ली शंखी में परिवर्तित हो जाती है |

फसल काटने से पहल इल्लियाँ पौधों को भूमि के ऊपर से कट देती है तथा स्वंय उपरी कटे हुए पौधे के अन्दर रह जाती है | कुछ दिनों पश्चात इल्लियाँ पुन: ऊपरीकटे हुए पौधों में से एक टुकड़ा 18 से 25 मि.मि. लम्बा काटती है | फिर ये इल्लियाँ इस टुकड़े में आ जाती है तथा भूमि दरारों में विशेषकर मेड़ों के पास जमीं के अन्दर टुकड़े का दूसरा छोर भी कुतरने से बंद कर सुसुप्तावस्था (248-308 दिनों हेतु) में इल्ली जीवन चक्र शुरू करती है | शंखी से वयस्क कीट 8 – 11 दिनों में निकलते है |

पोषक पौधे : मूंग,उड़द एवं खरपतवार, जंगली जूट, बुरवडा आदि |

नियंत्रण :

कृषिगत नियंत्रण : जिन क्षेत्रों में कीट प्रकोप प्रतिवर्ष होता है वहां पर ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करें | मेढ़ों की सफाई करें तथा समय से खरपतवार नियंत्रण करे |फसल की बुआई समय से (जुलाई) करें | समय से पूर्व बुआई करने से कीट प्रकोप ज्यादा होता है | बुआई हेतु 70 – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेर बीज दर का उपयोग करें | फसल में उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा समय से डालें विशेषकर पोटाश की मात्रा जरुर डाले | अन्त्र्वार्तीय फसल ज्वार या मक्का के साथ बुआई न करें |

यांत्रिक नियंत्रण : प्रभावित पोधे के भाग को चक्र के नीचे से तोड़ कर नष्ट कर दें |

रसायनिक नियंत्रण : फसल पर कीट के अण्डे देने की शुरुआत पर निम्न में से किसी एक कीटनाशक का छिड़काव कीट नियंत्रण हेतु करे | ट्रायाजोफांस 40ई.सी. 800 मि.ली. अथवा इथोफेनप्राक्स10 ई.सी.1000 मि.ली. प्रति हेक्टेयर |

पत्तियाँ खाने वाले कीट

हर्री अर्द्धकुण्डलाकार इल्ली (क्रायासोड़ेंकसीस एकयुटा)

पहचान : शलभ के अग्र पंखो पर दो छोटे चमकीले सफेद रंग के धब्बे होते है | जो की अत्यंत पास होने के कारण अंग्रेजी के अंक आठ (8) के आकर के दिखते हैं | अण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़. जाते है | एल्लियादिन में समान्त: पत्तियों के निचे बैठी रहती है | पूर्ण विकसित इल्ली 37 से 40 मि.मी. लम्बी होती है | एवं पश्च भाग मोटा होता है | इल्लियों के पृष्ट भाग पर एक लम्बवत पिली तथा शारीर के दोनों ओर एक – एक सफेद धारी होती है इल्लियों के पृष्ठ भाग पर एक लम्बवत पीली तथा शारीर के दोनों ओर एक – एक सफेद धारी होती है | शंख प्रारंभ में हलके पीले रंग की तथा कालान्तर में भूरे रंग की होती है शंखी 19 मि.मी.लम्बी तथा 7 मि.मी. चौड़ी होती है |

प्रकोप : इल्लियाँ पत्तियों, फूलों एवं फल्लियों को खा कर क्षति पहुँचती है | बड़ी इल्लियाँ छोटी विकसित होती हुई फल्लियों को कुतर – कुतर कर खाती है तथा बड़ी फल्लियों में छेद कर बढ़ते हुए दानों को खाती है | अधिक प्रकोप होने पर करीब 30% फल्लियाँ अविकसित रह जाती है तथा उनमे डेन नहीं भरते |

जीवन चक्र : मादा शलभ अपने जीवन कल में 40 से 200 अण्डे देती है अत्यधिक ज्यादा प्रकोप होने पर पत्ती डंठल या तानों पर भी अण्डे देती है | अण्डे हलके पीले रंग के एवं गोल होते है जो की इल्लियों के निकलने के पहले काले पड़ जाते है | अण्डकाल 3 से 5 दिनों का होता है | इल्ली कल 14 – 15 दिनों का होता है | शंखी से वयस्क 5 – 7 दिनों में निकलते है | कीट अपना एक जीवन चक्र 24 – 26 दिनों में पूर्ण करता है |

पोषक पौधे : मटर, मूली, सरसों, मूंगफली, पत्तागोभी, आलू, कददूवर्गीय पौधे, करडी, बरसीम आदि |

नियंत्रण :

हरी अर्द्धकुण्डलाकार इल्ली (डायक्रीसिया ओरिचैलिशया)

पहचान : वयस्क शलभ मध्यम आकर एवं सुनहरा पीले रंग की होती है | अग्र पंखों का रंग भूरा जिस पर बड़ा सुनहरा तिकोन धब्बा होता है | अण्डे पीले रंग के एवं गोल होते है नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है | पूर्ण विकसित इल्ली 4 मि.मी. लम्बी होती है | शंख का रंग भूरा होता है |

प्रकोप :अण्डो से निकलकर छोटी – छोटी इल्लियाँ सोयाबीन के कोमल पत्तियाँ को खुरच कर खाती है तथा बड़ी इल्लियाँ पत्तियों को खाकर नुकसान करती है | अत्यधिक प्रकोप पर पौधा पर्ण विहीन हो जाता है | ये बदली के मौसम में छोटी फल्लियों को खा जाती है तथा बड़ी फल्ल्यों के बढ़ते दानों को फली में छेदकर खाती है |

जीवन चक्र : मादा शलभ साधारणत: पत्ती की निचली सतह पर एक – एक कर अण्डे देती है पर प्रकोप ज्यादा होने की दशा में पत्तियों के डंठल, शाखा एवं ताने पर भी अण्डे देती है | अण्डकाल 3 – 4 दिनों का वयस्क शलभ 2 – 7 दिनों तक जीवित रहती है | जीवन चक्र 27 – 30 दिनों में पूर्ण होता है |

पोषक पौधे : मटर, फूलगोभी, मूली, आलू, अलसी आदि

हरी अर्द्धकुण्डलाकार इल्ली (गिसोनिया गेमा)

पहचान : शलभ की लम्बाई 7.3 मि.मी. तथा पंख फैलाव पर 19.4 मि.मी. होती है | शलभ पिली भूरी रंग की होती है जिसके अगले पंख पर तिन लहरदार गहरे भूरी पट्टियांएवं पिछले पंख झिल्लीनुमा गहरे भरे रंग के होते है |अण्डे दुधिया सफेद, गोलाकार पर ऊपरी छोर पर कुछ अन्दर दबा हुआ तथा ऊपर से निचे धारियों तथा आकार में 0.32 मि.मी. के होते हैं | नवजात इल्ली अर्धप्रदर्शी, दुधिया सफेद तथा 0.17 मि.मी. आकर में.होती है | पूर्ण विकसित इल्ली 19 मि.मी. लम्बी तथा 2 मि.मी. चौडाई की होती है तथा पृष्ट भाग पर लम्बवत शरीर के दोनो ओर एक – एक सफेद धारी होती है | शंखी 7 मि.मी. लम्बी तथा 2.5 मि.मी. चौडाई होती है |

जीवन चक्र : मादा शलभ एक – एक करके अण्डे पत्ती की उपरी सतह पर देती है | मादा शलभ अपने जीवन कल में 160 अण्डे देती है | सम्पूर्ण इल्ली अवस्था 11 दिनों की तथा शंखी अवस्था 5 – 9 दिनों की होती है | इल्लीकाल पूर्ण कर सफेद रेशों एवं पत्ती से मिश्रित बने कोए में शंखी में परिवर्तित हो जाती है | पूर्ण जीवन चक्र 26 – 27 दिनों का होता है |

पोषक पौधे : मूंग एवं उड़द आदि |

प्रकोप : यह कीट सोअबिं पर अगस्त के प्रथम सप्ताह से सितंबर के तृतीये सप्ताह तक सक्रिय रहता है | इल्ली अवस्था फसल की पत्तियाँ खाकर नुकसान पहुँचती है | जिससे पत्तियों पर छोटे – छोटे छिद्र बनते है | तृतीय अवस्था की इल्ली द्वारा पत्तियो में छोटे – छोटे छेद् बनाकर खाती है जबकी  बड़ी इल्लियाँ पत्तियोंपर बड़े एवं अनियमित छेद करती है अधिक प्रकोप अवस्था में फसल की पत्तियों के केवल शिराएँ बची रह जाती है |

साधारण : कीट इल्लियों द्वारा फूल एवं फल्लियाँ खाकर नष्ट करती है |

नियंत्रण : निरंतर फसल की निगरानी करते रहें | जब कीट की संख्या आर्थिक क्षति स्तर (तिन इल्ली/मी. कतार फूल अवस्था) से ऊपर होने सिफारिस अनुसार ही कीटनाशक का छिड़काव करें |

भूरी धारीदार अर्धकुण्डलक इल्ली (मोसिस अनडाटा)

पहचान : वयस्क शलभ काले भूरे रंग के एवं आकर में अन्य अर्धकुण्डलक शलभ से बड़ी होती है | जिसका पंख फैलाव 35 – 45 मि.मी. होता है | अग्र पंखों पर तीन धूये के रंग की पट्टियां पाई जाती है | अण्डे हलके हरे रंग के गोल होते है | नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है | जिनके शारीर पर छोटे छोटे रोंये पाये जाते है |तथा सिर भूरे रंग का होता है | पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40 – 50 मि.मी. लम्बी, भूरे – काले रंग की तथा शरीर पर भूरी पिली या नारंगी लम्बवत धारियाँ होती है | शंखी भूरे रंग की एवं की एवं सफेद धागों तथा पत्तियाँ के मिश्रण से बने कोये में पाई जाती है |

जीवन चक्र : मादा अपने जीवन काल में 50 – 200 अण्डे देती है | जिसमे से 3 – 5 दिनों में नवजात इल्लियाँ निकलती है | इल्लियाँ 6 – 7 बार त्वचा निमोर्चन कर 17 – 22 दिनों में अपना ईल्लिकाल पूर्ण कर सफेद रेशो एवं पत्ती से मिश्रित बने कोये में शंखी में परिर्वतित हो जाती है | शंखी कल 8 – 17 दिनों का होता है | वयस्क कीट 7 – 20 दिनों तक जीवित रहते है | कीट का जीवन चक्र सितंबर में 31 – 35 दिनों का जबकि अक्टूबर से दिसम्बर में 38 – 43 दिनों का होता है |

पोषक पौधे : मूंग एवं सेम आदि |

प्रकोप : इसका कीट प्रकोप कम वर्षा सूखे की दशा में ज्यादा होता है | यह कीट इल्ली अवस्था में अगस्त से अक्टूबर माह में सोयाबीन में नुकसान पहुंचाती है | प्रकोप ज्यादा होने की दशा में कीट पौधों को पत्ती विहीन कर देता है जिससे फल्लियाँ कम बनती है |

नियंत्रण हेतु : निरंतर फसल की निगरानी करते रहें | यदि कीट की संख्या कम होने पर कीटनाशक का छिडकाव न करें | कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर सिफारिस अनुसार कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करें

तम्बाकू की इल्ली (स्पोड़ोपटेरा लिटूरा)

पहचान : वयस्क शलभ जिसका रंग मटमैला भूरा होता है | अग्र पंख सुनहरे – भूरे रंग के सिरों पर टेड़ी – मेढ़ी धारियां तथा धब्बे होते है | पश्च – पंख सफेद तथा भरे किनारो वाले होते है | नवजात इल्लियाँ मटमैले – हरे रंग की होती है पूर्ण विकसित इल्लियाँ हरे, भूरे या कत्थाई रंग होती है शरीर के प्रतेक खंड के दोनों तरफ काले तिकोन धब्बे इसकी विशेष पहचान है | इसके उदर के प्रथम एवं अंतिम खंडों पर काले धब्बे एवं शारीर पर हरी – पिली गहरी नारंगी धारियाँ होती है | पूर्ण विकसित इल्लियाँ 35 – 40 मि.मी. लम्बी होती है |

प्रकोप : यह कीट सामान्यत: अगस्त से सितंबर तक नुकसान करती है | नवजात इल्लियाँ समूह में रहकर पत्तियों का पर्ण हरित खुरचकर खाती है जिससे ग्रसित पत्तियाँ जालीदार हो जाती है जो की दूर से ही देख कर पहचानी जा सकती है | पूर्ण विकसित इल्ली पत्ती, कलि एवं फली तक को नुकसान करती है |

जीवन चक्र : मादा शलभ द्वारा 1000 – 2000 तक अण्डे अपने जीवन कल में देती है तथा 50 – 300 अण्डे प्रति अण्डा – गुच्छ में पत्तियों की निचली सतह पर दी जाते है |अण्डा – गुच्छों को मादा अपने शरीर के भूरे बालों द्वारा ढक देती है | अंडा अवस्था 3 – 7 दिनों का होती है |अण्डो से 2 – 3 दिनों में इल्लियाँ निकलती है | नवजात इल्लियाँ पीले – हरे रंग की होती है जो 4 – 5 दिनों तक पत्ती की निचली सतह पर ही समूह में रह पर्ण – हरित खुरच – खुरच कर जाती है | पूर्ण विकसित इल्ली 30 – 40 मि.मी. लम्बी होती है तथा 20 – 22 दिनों में शंखी में बदली जाती है | शंखी भूमि के भीतर कोये में पाई जाती है | शंखी में से 8 – 10 दिनों बाद वयस्क शलभ निकलते है | सोयाबीन फसल पर इस कीट का पूरा जीवन चक्र 30 – 37 दिनों का होता है | यह सर्वभक्षी कीट है |

पौषक पोधे : कपास तम्बाकू, टमाटर, गोभी, गाजर, बैगन, सूर्यमुखी, अरन्डी, उड़द, मुंगफली आदि |

आर्थिक क्षति स्तर : 10 इल्ली प्रति मीटर कतार |

नियंत्रण

कृषिगत नियंत्रण : बुआई हेतु अनुशंसित (70 – 100 कि.) बीज दर का उपयोग करें | नियमित फसल चक्र अपनाये |

यांत्रिक नियंत्रण : फिरोमोन ट्रेप 10 – 12 / हेक्टेयर लगाकर कीट प्रकोप का आंकलन एवं उनकी संख्या कम करें | अण्डे व इल्लियों के समूह को इक्कठा कर नष्ट कर दें | 40 – 50 / हे, खूंटी लगायें |

रासानिक नियंत्रण :    

बिहार कम्बलिया कीट (स्पोईलोसोमा ओबलीकुआ)

पहचान :शलभ का सर, वक्ष और शारीर का निचला हिस्सा हल्का पिला एवं उपरी भाग गुलाबी रंग का श्रृंगिकाये व आँखे काली तथा पंख हलके पीले जिन पर छोटे – छोटे काले धब्बे पाये जाते है | शलभ पंख फैलाव पर करीब 40 – 60 मि.मी. होता है | अण्डे पहले हरे तथा परिपक होने पर काले हो जाट है |नवजात इल्लियाँ पिली तथा शरीर पर रोएं हो जाते है | इल्ली की तीसरी अवस्था लगभग 20 – 25 मि.मी. लम्बी होती है जो की इधर उधर घूम कर अधिक नुकसान करती है पूर्ण विकसित इल्लियाँ 40 – 45 मि.मी. तक लम्बी होती है तथा भूरे लाल रंग की एवं बड़े रोए वाली होती है | पूर्ण विकसित इल्लियाँ अपने शरीर के बालों को लार से मिलाकर कोय (भांखी कवच) बनती है | भांखी गहरे भरे रंग की होती है |

प्रकोप : नवजात इल्लियाँ अण्ड – गुच्छों से निकलकर एक ही पत्ती पर ही झुण्ड में रहकर पर्ण हरित खुरच कर खाती है | नवजात इल्लियाँ 5 – 7 दिनों तक झुण्ड में रहने के पश्चात् पहले उसी पौधे पर्येवाम बाद में अन्य पोधों पर फेल कर पूर्ण पत्तियाँ खाती है | जिससे पत्तियाँ पूर्णत: पर्ण हरित विहीन जालीनुमा हो जाती है | इल्लियों द्वारा खाने पर बनी जालीनुमा पत्तियों को दूर से ही देख कर पहचाना जा सकता है |

जीवन चक्र : मादा शलभ अपने जीवन काल में 3 – 5 अण्ड गुच्छों में 500 से 1300 अण्डे पत्तियों की निचली सतह पर देती है |अण्डकाल 3 से 15 दिनों का होता है | शंखी से 9 – 15 दिनों में शलभ निकलती है | कीट 35 – 42 दिनों में एक जीवन चक्र पूर्ण करता है | कीट की साल भर में 8 पीढ़ियां होती है |

पोषक पौधे : मूंग, उड़द, सूर्यमुखी, अलसी, तिल, अरण्डी, पत्तागोभी आदि |

आर्थिक क्षति स्तर : 10 इल्लियाँ / मीटर कतार |

नियंत्रण : इल्ली के प्रारंभिक अवस्था के झुंड को इक्कठा कर नष्ट कर दें | आर्थिक क्षति स्तर से अधिक कीट प्रकोप होने पर कीटनाशक दवाई का छिड़काव करे |

सोयाबीन का फसल छेदक (हेलिकोवरपा आमीर्जेरा)

पहचान : वयस्क शलभ मटमैला भूरा या हल्के कत्थाई रंग की जिसके अगले पंखों पर बादामी रंग की आड़ी – तिरछी रेखायें होती है | जबकि पिछले पंख रंग में सफेद तथा बहरी किनारों पर चौड़े काले (यकृति जैसे) धब्बे होते है | वयस्क शलभ दिन में पत्तियों में छिपी रहती है तथा रात में फसल पर भ्रमक करती है |  अण्डे गोलाकार तथा चमकदार हरे – सफेद रंग के होते हैं अण्डों की सतह पर तिरछी धारियाँ पायी जाती है | अण्डे शुरू में चमकिले हरे – सफेद रंग के होते हैं जो इल्लियों के निकलने के एक दिन पहले काले हो जाते है | नवजात इल्लियाँ हरे रंग की होती है | पूर्ण विकसित इल्ली करीब 3.5 – 4 मि.मी. लम्बी होती है जिनके शरीर के बगल में गहरे पीले रंग की टूटी धारी होती है | सर हल्का भूरा होता है इल्ली का रंग अलग – अलग होता है |

प्रकोप : नवजात इल्लियाँ कली, फूल एवं फल्लियों को खाकर नष्ट करती है पर फल्लियों में दाने पड़ने के पश्चात इल्लियाँ फलली में छेद कर दाने खाकर आर्थिक रूप से हानी पहुँचती है | फलली के समय 3 – 6 इल्लियां प्रति मीटर होने पर सोयाबीन की पैदावार में 15 -90 प्रतिशत तक हानी होती है |

जीवन चक्र : मादा शलभ रात्री में पत्तियों की निचली सतह पर एक एक कर 1200 से 1500 तकअण्डे देती है | अण्डाकाल 3 – 4 एवं इल्ली – काल 20 – 25 दिनों का होता है | पूर्ण विकसित इल्ली भूमि में गहराई में जाकर मिटटी में शंखी में परिवर्तित हो जाती है | शंख में परिवर्तित हो जाती है | शंखी कल 9 – 13 दिनों का होता है | कीट अपना एक जीवन चक्र 31 – 35 दिनों में पूर्ण करता है |

पोषक पौधे : कपास, चना, मटर, अरहर, तम्बाकू, टमाटर, अन्य सब्जियाँ एवं जंगली पौधे

नियंत्रण: ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई कर इल्ली व शंखी को इक्कठा कर नष्ट करें (चने के इल्ली हेतु) फसल में 50 अंग्रेजी के टी (T) अथवा दोफनी आकर की खूंटियां (3 – 5 फीट ऊँची) पक्षियों के बैठने हेतु फसल की शुरआत से ही लगाये | जिन पर पक्षी बैठ कर इल्लियाँ खा सके | कीट दिखाई देने पर 12 फिरोमोन ट्रेप/ हे. के हिसाब से लगा दें |

रसायनिक नियंत्रण पत्ती खाने वाली एवं फली छेदक इल्लियों के लिए : अदि आर्तिक क्षति स्तर से अधिक नुकसान होता है , तो कीटनाशक दवाई का उपयोग करें |अचयनित दवाओं का उपयोग न करें | कीट बृद्धि नियंत्रण (आई.जी.आर.) जैसे डायलूबेंजुरान 25 डब्लू.पी. 350 ग्राम/ हे. या नोवेल्युरान 10 ई.सी. 375मि.ली.या लेफेयुरान 10 ई.सी. 500 मि.ली./ हे. अथवा जैविक कीट नाभाक, एन.पी.व्ही. 250 एल.ई./हे. अथवा डायपेल, वायोबिट या हाल्ट 1 किलो ग्राम / हे. या बयोरिन या लावोसेल 1 किलोग्राम/ हे. अथवा रासायनिक कीट नाभाक जैसे क्लोरापेरिफास 20 ई.सी. 1.5 ली. अ प्रोफेनोफाम 50 ई.सी. 1.2 ली. अ रायनेक्सीपार 10 एस.पी.100 मि.ली. या इमामेकिटन बेंजोएट 5 एस.जी. 180 ग्राम या मिथोमिल 40 एस.जी. 1000 मि.ली. या प्रोफेनेफास 500 ई. सी. 1.25 ली. अ लेम्बड़ा सायलोहेर्थिन 5 ई.सी. 300 मि.ली. या इनडोक्सकर्ब 14.8एस.एल. 300 मि.ली./ हे. के हिसाब से उपयोग करें | चूर्ण जैसे फैनवेलरेट 0.4 प्रतिशत 25 किलोग्राम/हे. के हिसाब से उपयोग करें |

रस चूषक कीट

पहचान : वयस्क कीट लगभग 1 मि.मी. लम्बा होता है | जिसके पंख सफेद – पीले रंग के होते है, जो मोमयुक्त पर्तदार पंखो वाली मक्खी होती है | अण्डे करीब 0.2 मि.मी. लम्बे, नाशपाती आकार के होते है, शंखी कलि नाशपाती आकार की होती है | अण्डो का रंग सफेद होता है | लेकिन निकलने के पहले ये भूरे या काले रंग के हो जाते है | निम्फ (भिभा) नाभापाती आकार के हलके पीले रंग के होते है | दूसरी एवं चौथी अवस्था में यह चल नही सकते है |

प्रकोप का तरीका : इसका प्रकोप पौधे के एक पत्ती अवस्था से ही प्रारंभ हो जाता है | जो की फसल की हरी अवस्था तक प्रकोप करता रहता है | शिशुयेवाम वयस्क पौधे से रस चूसते हैं | यह पीला विषाणु रोग फैलता है, जो कि फसल की मुख्य समस्या है |

जीवन चक्र : मादा मक्खी अपने जीवनकाल में 40 – 100 तक अण्डे देती है | जिसके रंग पीला एवं पत्तियों के निचली सतह पर देती है | शिशु अवस्था 7 – 14 दिनों की होती है वयस्क 8 – 14 दिनों में निकलते हैं | कीट का एक जीवन चक्र 13 – 62 दिनों तक होता है |

नियंत्रण : पीला विषाणु रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दें | बोनी के पहले बीज को थायोमेथाकसम 70 डब्लू.एस. 3 ग्राम/किलोग्राम या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. 5 मि.ली./किलोग्राम की दर से बीजोपचार कर बोनी करें | फसल पर कीट का आक्रमण होने पर निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक दवा का छिड़काव करें | ट्रायाजोफांस 40 ई.सी. 800 – 1000 एम.एल. या थायमेथेक्जेम 25 डब्ल्यू.जी. 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल. 200 मि.ली. या मेथाइल डेमेटान 25 ई.सी. 800मि.ली./हे. |

लाल मकड़ी (टेट्रानिक्स टेलारीयस)

पहचान : माइट या मकड़ी के वयस्क अंडाकार आकार के लाल या हरे रंग के 0.4 से 0.5 मि.मी. लम्बे बालों वाले एवं आठ टांगो वाले होते है | प्रथम अवस्था में 3 जोड़ी पैर होते है तथा रंग गुलाबी होता है | दिवतीय तथा तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते है | सभी अवस्था येपत्तीओं की निचली सतह पर सफेद महीन पारदशी झिल्ली के निचे पाई जाती है | अण्डे आकार में गोले,सफेद रंग तथा 0.1 मि.मी. की गोलाई लिये होते है |

प्रकोप : इसका प्रकोप सोया बीन फसल पर सामान्यत सितम्बर से अक्टूबर माह में विभोष कर कम वर्षा की स्थिति में ज्यादातर देखने को मिलता है | वयस्क तथा शिशु दोनों अवस्थाएं पौधों के तना, शाखा, फ्ल्लियां तथा पत्तियों का रस चूसकर हानी पहुंचाते है | प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है | रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद – क्त्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियां प्रकोप के कारण मुरझा जाती है | प्रकोपित पौधों की ऊपज में 15 प्रतिशत तक कमी होती है | ग्रसित पौधे के दाने सिकुड़ जाते है तथा उनकी अंकुरण क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है |

जीवन चक्र : मादा अलग – अलग करके पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60 – 65 अण्डे देती है | 4 – 7 दिनों में अण्डों से शिशु निकलते है | और पौधों का रस चूसने लगते है | 6 – 10 दिनों के बाद शिशु से वयस्क बनते है | शिशु और वयस्क  एक महीन पारदर्शक जले से ढकी रहती है |

पोषक पौधे : मूंग, उड़द, टमाटर, भिन्डी, कपास आदि |

नियंत्रण : खड़ी फसल पर अत्याधिक प्रकोप होने पर ही निम्नलिखित कोई एक कीट नाभाक जैसे इथियान 50% ई.सी. 1.5 ली. या प्रोफेनोफास 50% ई.सी., या ट्रायाजोफांस 40 ई.सी. 800 मि.ली. या डायाफेनिथायूरान 50 डब्ल्यू.पी. 500 ग्राम प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें |

सफेद सुण्डी (व्हाइट ग्रब) (होलोट्रोकिया कानसेगूंनिया)

पहचान : भृंग का आकार में 7 मि.मी. चौड़ा तथा 18 मि.मी. लम्बा होता है | वयस्क भृंग नवविकसित अवस्था में पीले रंग का जो बाद में चमकदार तांबे जैसा हो जाता है | इल्ली या ग्रब (लट) अवस्था का रंग सफेद होता है | पूर्ण विकसित इल्ली का शरीर मोटा, रंग मटमैला – सफेद तथा आकार अंग्रेजी के “सी” अक्षर के समान मुदा होता है | जिनका सिर गहरे भरे रंग का तथा मुखांग मजबूत होता है |

प्रकोप का तरीका : कीट के लट(इल्ली) एवं वयस्क दोनों अवस्था हानि पहुँचती है पर इल्ली अवस्था में फसलों को ज्यादा नुकसान पहुँचती है | वयस्क भृंग विभिन्न पौधों एवं कुछ झाड़ीनुमा वृक्षों की पत्तियाँ खाते है जबकि अण्डों से निकली नवजात इल्लियाँ शुरू में भूमि के अंदर पौधों की छोटी – छोटी जड़ों को खाती है तथा बड़ी होने पर मुख्य जड़ो को तेजी से काटती है | परिणामस्वरूप प्रकोपित पौधे पहले मुरझाते है फिर सुख कर नष्ट हो जाते है | जिससे खेतों में जगह – जगह घेरे बन जाते है | इल्ली एवं शंखी भूमि में पाई जाती है |

जीवन चक्र : व्यस्क भृंग वर्षा ऋतू की शुरुआत में jun – जुलाई में भारी वर्षा होने पर अपनी सुसुप्तावस्था तोड़कर भूमि से बाहर एक साथ काफी संख्या में निकलते है | मद कीट भूरभूरी और नमी युक्त मृदा में 1 से 6 इंच की गहराई में पौधे के पास अण्डे देती है | अण्डे लगभग 30 – 50 दिन में उचित तापमान होने पर फूटते है | इल्ली (कोया) बनाकर भूमि के ऊपरी सतह पर सुसुप्तावस्था में रहते है | कीट वर्ष में अपना एक जीवन चक्र पूर्ण करता है |

कृषिगत नियंत्रण : गर्मी में खेतों की गहरी जुताई एवं सफाई कर कीट की सुसुप्तावस्था तोड़ दें |

यांत्रिक नियंत्रण : प्रकाश प्रपंच की सहायता से प्रौढ़ कीट को इक्कठा कर नष्ट कर दें |

जैविक नियंत्रण :बेबोरीया बेसीयाना और मेटारहिजीयम एनिसोपली 5 किलो ग्राम को गोबर की खाद या केचुए की खाद (2.5 कि.) के साथ मिश्रित कर खेत में फैला दें |

रासायनिक नियंत्रण : भूमि में फोरेट 10 जी 25 किलो ग्राम / हे. के हिसाब से बुवाई के समय खेत मिला दें

पौधे रोग

फफूंद द्वारा होने वाले रोग

एरियल ब्लाइट

रोगजनक : राइजोकटोनिया सोलेनाई

लक्षण:

  1. इस बीमारी के लक्षण सर्वप्रथम घनी बोयी गयी फसल में, पौधे के निचले हिस्सों दिखाई देते है |
  2. रोगग्रस्त पौधे पर्णदाग, पत्ती झुलसन अथवा पत्तियों का गिरना आदि लक्षण प्रदर्शित करते है | (चित्र क्र. 1अ, ब.)
  3. पर्णदाग असामान्य पनीले धब्बों के रूप में दिखाई देते है, जो की बाद में भूरे या काले रंग में परिवर्तित हो जाते है एवं संपूर्ण पत्ती झुलस जाती है |
  4. अधिक नमी की उपस्थिति में पत्तियां येसे प्रतीत होते है जैसे पानी में उबली गई हो | (चित्र क्र.- 1 स)
  5. पर्णवृंत, तना फली पर भी भूरे धब्बे दिखाई देते है |
  6. फली एवं तानों के ऊतक संक्रमण पश्चात भूरे अथवा काले रंग के होकर सिकुड़ जाते है |
  7. पौधों के रोगग्रस्त भागों पर नमी की उपस्थिति में सफेद और भूरे रंग की संरचनाए (स्क्लेरोशिया) दिखाई देती है (चित्र क्र. – 1 द)

अनुकूल परिस्थितियाँ

पुष्पनकाल के दौरान लंबे समय तक अधिक नमी एवं काम तापमान रहना, पास – पास बोयी गयी फसल, पौधों के जमीं पर गिर जाने पर, लगातार वर्षा की अवस्था तथा खराब जल निकास होना संक्रमण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं |

प्रबंधन :

  1. गर्मी में गहरी जुताई करें |
  2. बीज उपचार द्वारा फसल को प्रारंभिक में रोगग्रस्त होने से बचाया जा सकता है |बीज उपचार थायरम + काब्रेंन्डाजिम (2:1) 2.5 – 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें |
  3. जल निकास अच्छा रखें |
  4. फसल की बुवाई अनुशंसित दुरी पर करें तथा ध्यान रहे खेत में पौध संख्या भी अत्यधिक नही होना चाहिये |
  5. पर्णीय छिड़काव के रूप में काब्रेंन्डाजिम का उपयोग 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से बुवाई के 45 से 60 दिन पर करें |

 

 

पशुओं के लिए यूरिया अमोनियाकृत नीम की खली

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पशुओं के लिए यूरिया अमोनियाकृत नीम की खली

नीम की खली, नीम तेल उधोग का एक प्रोटीन से भरपूर उपोत्पाद है और आसानी से उपलब्ध है | अभी तक इसका केवल उर्वरक एवं कीटनाशी के रूप में उपयोग किया जाता रहा है | खली में कडुए एवं विषाक्त ट्राइटरपीनायड्स की उपस्थिति के कारण खली का इस रूप में पशुओं को खिलाने में उपयोग नहीं किया जाता था | इसके साथ ही जब भी कभी नीम की खली खिलाई जाती है ,यह खाने में अप्रिये होने के अतिरिक्त पशुओं के लिए हानिकारक भी होती है | यह उनकी वृद्धि ,नर पशुओं के जनन अंग तथा उनकी समग्र कार्य क्षमता को प्रभावित करती है | भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर ने खली को उर्वरक श्रेणी की यूरिया से उपचारित करने और पशुओं की विभिन्न प्रजातियों के लिए सन्द्रिक मिश्रण के रूप में पारम्परिक खली को पौष्टिक विकल्प के रूप में परिवर्तित करने की प्रौधोगिकी विकसित की है  |

आवश्यक सामग्री

  • उर्वरक श्रेणी का यूरिया
  • नीम की खली

तैयार करने की प्रक्रिया

  • 5 कि.ग्रा./ किवंटल निम् की खली की दर से उर्वरक श्रेणी यूरिया लें |
  • उर्वरक श्रेणी की यूरिया के घोल (2.5% w/w) से युकत एक वायुरोधी बर्तन में, नीम की खली को 5 से 6 दिन तक भिगोंए (1 भाग नीम की खली : 1.2 भाग यूरिया का घोल) और बीच – बीच में इसे हिलाते रहें |
  • भीगी हुई खली को धूप में सुखएं और विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के लिए सान्द्रित मिश्रण में मिलाने के लिए इसे पिसें |
  • लाभ यूरिया अमोनिया, धूप में सुखाकर पीसी गयी निम् की खली गोपशुओं और भैंस के बछड़ों, बढ़ते मेमनों और ब्रायलर मुर्गियों तथा खरगोशों के लिए उपयुक्त आहार है और इसमे कोई हानिकारक प्रभाव भी नहीं होते हैं |
  • यूरिया अमोनियाकृत नीम की खली, पशुओं के आहार के लिए महंगे तथा कम सुलभ सब्जी प्रोटीन आहार के स्थान पर पौष्टिक प्रोटीन युकत आहार प्रदान करती है |

आर्थिकी

पशुओं के लिए सान्द्रिक मिश्रण में प्रयुक्त पारम्परिक खली की लागत 30 से 45 % तक कम करने के अतिरिक्त, यह प्रोटीन युकत आहार की कमी को दूर करके दुर्लभ और महंगे खली की मांग और आपूर्ति की समस्या पर काबू पाने में सहायक है |

मधुमक्खी पालन को अतरिक्त आय का मध्यम बनायें किसान, जानें सम्पुर्ण जानकारी

मधुमक्खी पालन को अतरिक्त आय का मध्यम बनायें किसान, जानें सम्पुर्ण जानकारी

परिचय

देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संसाधन व विपुल संभवनाएं विद्यमान हैं, जिनका सदुपयोग करके आर्थिक विकास की त्वरित गति प्राप्त की जा सकती है। दूसरी तरफ बढ़ते जनसंख्या दबाव ने देश में बेरोजगारी की समस्या को और भी गहरा दिया है। इससे आवश्यक हो गया है कि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध मानव संसाधन को स्वउद्यम सो जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाये। ग्रामीण तथा कुटीर उद्योग के अंर्तगत मधुमक्खी पालन से स्वरोजगार के क्षेत्र में अच्छे अवसर विकसित होने की संभवनाएं हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार से प्रयोजित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमवृत्ति विकास (स्टेड) परियोजना, भारतीययम उद्यमिता विकास केंद्र, अलवर द्वारा मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में कई सक्रिय कदम उठाये गये हैं। परियोजना द्वारा पिछले दो वर्षों से मधुमक्खी पालन पर प्रशिक्षण एवम् प्रदर्शन कार्यक्रमों से प्रशिक्षण प्राप्त कर सफलतापूर्वक मधुमक्खी पाल व्यवसाय कर रहें हैं।

नवम्बर से फरवरी तक सरसों की पैदावार बहुतायत में होती है व यह समय इन क्षेत्रों में मधुमक्खीपालन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है। ग्रामीण संसाधनों का पूर्ण उपयोग कर आर्थिक विकास को गति देने के लिए तत्पर स्टेड परियोजना ने उन शिविरों में ग्रामीण लोगों में मधुमक्खी–पालन व्यवसाय के प्रति जागरूकता उत्पन्न की। परियोजना द्वारा मधुमक्खी पालन आयोजित कार्यक्रमों में सैधांतिक प्रशिक्षण के अलावा प्रौद्योगिकी प्रदर्शन भी किया गया। प्रशिक्षण के दौरान परियोजना द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय को प्रारंभ करने के लिए ऋण में मिलने वाले विभिन्न अनुदानों संबंधी जानकारी प्रदान की गई। उसके अलावा इच्छुक व्यक्तियों को बाक्स की खरीद के लिए भी पर्याप्त सहायता परियोजना द्वारा उपलब्ध कराई गई।मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम में यह आवश्यक है कि प्रशिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय का तकनीकी प्रदर्शन भी उपलब्ध कराया जाए, जिससे इस व्यवसाय से जुड़ने के इच्छुक व्यक्तियों की समस्त शंकाओं का निवारण किया जा सके। परियोजना का गत वर्षों से यह प्रयास रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक व्यक्ति इस व्यवसाय से जुड़कर क्रांतिकारी परिवर्तन उत्पन्न करें। यहाँ मधुमक्खी पालन एवं मीन गृहप्रबंध संबंधी संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।

ग्रामीण क्षेत्र व कृषि के संदर्भ में मधुमक्खी पालन की उपयोगिता 

  • पूर्ण कुशलता व विशेषज्ञता के साथ व्यक्तियों को लाभप्रद स्वरोजगार का अवसर प्रदान करता है।
  • स्थानीय संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग कर लाभार्जन कराता है।
  • अन्य उद्योगों की अपेक्षाकृत इस व्यवसाय में कम निवेश की आवश्यकता होती है।
  • मधु, मोम व मौनवंश में वृद्धि कर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
  • मधुमक्खी पालन से न केवल शहद व मोम ही प्राप्त होता है। वरन रॉयल नामक पदार्थ भी प्राप्त होता है जिसकी विदेशों में अत्यधिक मांग है।
  • विभिन्न फसलें, सब्जियों, फलोद्यान व औषिधीय पौधे प्रति वर्ष फल बीज के अतिरिक्त पुष्प-रस और पराग को धारण करते हैं, परन्तु दोहन के अभाव में ये, धूप, वर्षा व ओलों के कारण नष्ट हो जाते हैं। मधुमक्खी पालन द्वारा इनका उचित उपयोग संभव हो पाता है।
  • जिन फसलों तथा फलदार वृक्षों पर परागण कीटों द्वारा सम्पन्न होता है, मधुमक्खियों की उपस्थिति में उन की पैदावार में बेतहाशा वृद्धि होती है। सामान्य तथा परागण वाली फसलों की पैदवार 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है की मधुमक्खियाँ यदि एक रूपए का लाभ मधुमक्खी पालक को पहुँचाती हैं तो वह 15-20 रूपए का लभ उन काश्तकारों व बागवानों को पहुँचाती हैं, जिनके खेतों या बागों में यह परागण व मधु संग्रहण हेतु जाती हैं।इस प्रकार यह स्पष्ट है की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि इस व्यवसाय का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तृत प्रचार-प्रसार किया जाए।

मधुमक्खी की प्राप्त प्रजातियाँ

हमारे देश में मधुमक्खी की पांच प्रजातियाँ पाई जाती हैं –

  • एपीस डोंरसेटा
  • एपीस फलेरिया
  • एपीस इंडिका
  • एपीस मैलिफेटा

इनमें प्रथम चार प्रजातियों को पालन हेतु प्रयोग किया जाता है। मैलापोना ट्राईगोना प्रजाति की मधुमक्खी का कोई आर्थिक महत्व नहीं होता है, वह मात्र 20-30 ग्राम शहद ही एकत्रित कर पाती है।

  • एपीस डोंरसेटा- यह स्थानीय क्षेत्रों में पहाड़ी मधुमक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मक्खी लगभग 1200 मी. की ऊँचाई तक पायी जाती है व बड़े वृक्षों, पुरानी इमारतों इत्यादि पर ही छत्ता निर्मित करती हैं।अपने भयानक स्वभाव व तेज डंक के कारण इसका पालना मुश्किल होता है। इसमें वर्षभर में 30-40 किलो तक शहद प्राप्त हो जाता है।
  • एपीस फ्लोरिय- यह सबसे छोटे आकार की मधुमक्खी होती है व स्थानीय भाषा में छोटी या लडट मक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मैदानों में झाड़ियों में, छत के कोनो इत्यादि में छत्ता बनाती है। अपनी छोटी आकृति के कारण ये केवल 200 ग्राम से 2 किलो तक शहद एकत्रित कर पाती है।
  • एपीस इंडिका- यह भारतीय मूल की ही प्रजाति है व पहाड़ी व मैदानी जगहों में पाई जाती हैं।इसकी आकृति एपीस डोरसेटा व एपीस फ्लोरिया के मध्य की होती है। यह बंद घरों में, गोफओं में या छुपी हुई जगहों पर घर बनाना अधिक पसंद करती है। इस प्रजाति की मधुमक्खियों को प्रकाश नापसंद होता है।एक वर्ष में इनके छत्ते से 2-5 कि. ग्रा. तक शहद प्राप्त होता है।
  • एपीस मैलीफेटा- इसे इटेलियन मधुमक्खी भी कहते हैं, यह आकार व स्वभाव में भारतीय महाद्वीपीय प्रजाति है। इसका रंग भूरा, अधिक परिश्रमी आदत होने के कारण यह पालन के लिए सर्वोत्तम प्रजाति मानी जाती है। इसमें भगछूट की आदत कम होती है व यह पराग व मधु प्राप्ति हेतु 2-2.5 किमी की दूरी भी तय कर लेती है। मधुमक्खी के इस वंश से वर्षभर में औसतन 50-60 किग्रा. शहद प्राप्त हो जाता है।

इटेलियन मधुमक्खी

इटेलियन मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त मौन गृह में लगभग 40-80 हजार तक मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें एक रानी मक्खी, कुछ सौ नर व शेष मधुमक्खियाँ होती हैं।

रानी मक्खी

यह लम्बे उदर व सुनहरे रंग की मधुमक्खी होती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है।इसका जीवन काल लगभग तीन वर्ष का होता है।सम्पूर्ण मौन परिवार में एक ही रानी होती है जो अंडे देने का कार्य करती है, जिनकी संख्या 2500 से 3000 प्रतिदिन होती है।यह दो प्रकार के अंडे देटी है, गर्भित व अगर्भित अंडे।इसके गर्भित अंडे से मादा व अगर्भित अंडे से नर मधुमक्खी विकसित होती है।युवा रानी, रानीकोष व विकसित होती हैं जिसमें 15-16 दिन का समय लगता है।

नर मधुमक्खी या ड्रोंस

नर मधुमक्खी गोल, काले उदर युक्त व डंक रहित होती हैं।यह प्रजनन कार्य सम्पन्न करती है व इस काल में बहुतायत में होती है। रानी मधुमक्खी से प्रजननोप्रांत नर मधुमक्खी मर जाती है, यह नपशियत फ़्लाइट कहलाता है। इसके तीन दिन पश्चात् रानी अंडे देने का कार्य प्रारंभ कर देती है।

मादा मधुमक्खी या श्रमिक

पूर्णतया विकसित डंक वाली श्रमिक मक्खी मौनगृह के समस्त के संचालित करती है।इनका जीवनकाल 40-45 दिन का होता है।श्रमिक मक्खी कोष से पैदा होने के तीसरे दिन से कार्य करना प्रारंभ कर देती है।मोम उत्पादित करना, रॉयल जेली श्रावित करना, छत्ता बनाना, छत्ते की सफाई करना, छत्ते का तापक्रम बनाए रखना, कोषों की सफाई करना, वातायन करना, भोजन के स्रोत की खोज करना, पुष्प- रस को मधु रूप में परिवर्तित कर संचित करना, प्रवेश द्वार पर चौकीदारी करना इत्यादि कार्य मादा मधुमक्खी द्वारा किए जाते हैं।

मौन गृह

प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी अपना छत्ता पेड़ के खोखले, दिवार के कोनों, पुराने खंडहरों आदि में लगाती हैं।इनमें शहद प्राप्ति हेतु इन्हें काटकर निचोड़ा जाता है, परन्तु इस क्रियाविधि में अंडा लार्वा व प्यूपा आदि का रस भी शहद में मिल जाता है साथ ही मौनवंश भी नष्ट हो जाता है।प्राचीन काल में जब मधुमक्खी पालन व्यवसाय का तकनीकी विकास नहीं हुआ था तब यही प्रक्रिया शहद प्राप्ति हेतु अपनाई जाती थी।इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों ने पूर्ण अध्ययन व विभिन्न शोधों के उपरांत मधुमक्खी पालन हेतु मौनगृह व मधु निष्कासन यंत्र का आविष्कार किया।

मौनगृह लकड़ी का एक विशेष प्रकार से बना बक्सा होता है।यह मधुमक्खी पालन में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है।मौनगृह कामधुमक्खी पालन 1 सबसे निचला भाग तलपट कहलाता है, यह लगभग 381+2 मि.मी. लम्बे, 266+2 मि.मी. चौड़ाई व 50 मि. मी. ऊँचाई वाले लकड़ी के पट्टे का बना होता है।तलपट के ठीक ऊपर वाला भाग शिशु खंड कहलाता है।इसकी बाहरी माप 286 +2 मि.मी. लम्बी, 266+2 मि.मी. चौड़ी व 50 मि.मी. ऊँची होती है।शिशु खंड की आन्तरिक माप 240 मि.मी. लम्बी, 320 मी. चौड़ी व 173 मि. मी. ऊँची होती है।शिशु खंड में अंडा, लार्वा, प्यूपा पाया जाता है।व मौन वंश के तीनों सदस्य श्रमिक रानी व नर रहते हैं।मौन गृह के दस भाग में 10 फ्रेम होते हैं श्रमिक मधुमक्खी द्वारा शहद का भंडारण इसी कक्ष में किया जाता है।इसके अलावा मौनगृह में दो ढक्कन होते हैं – आन्तरिक व बाह्य ढक्कन।आन्तरिक ढक्कन एक पट्टी जैसी आकृति का होता है व इसके बिल्कुल मध्य में एक छिद्र होता है।जब मधुमक्खियाँ शिशु खंड में हो तो आन्तरिक ढक्कन शिशुखंड पर रखकर फिर बाह्य ढक्कन ढंका जाता है।यह ढक्कन के ऊपर एक टिन की चादर लगी रहती है जो वर्षा ऋतू में पानी के अंदर प्रवेश से मौनगृह की रक्षा करती है।

मौनगृह को लोहे के एक चौकोर स्टैंड पर स्थापित किया जाता है।स्टैंड के चारों पायों के नीचे पानी से भरी प्यालियाँ रखी जाती हैं।जिसके फलस्वरूप चीटियाँ मौगगृह में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।

मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त अन्य सहायक उपकरण

मुंह रक्षक जाली

इसके प्रयोग से मौन पालक का चेहरा पूर्णत: ढका रहता है।मौनवंश निरीक्षण, शहद निष्कासन एवं मौनवंश निरीक्षण, शहद निष्कासन मौनवंश वृद्धि आदि कार्यों को करते समय श्रमिक के डंक मारने का खतरा बना रहता है, इससे बचाव के लिए इस जाली का प्रयोग किया जाता है।

मौमी छत्तादार

यह प्राकृतिक मोम से बना हुआ पट्टीनुमा आकृति का होता है।मधुमक्खी पालन में होता है।मधुमक्खी पालन में जब नए छत्तों का निर्माण कराया जाता है तो इसे चौखट में बनी झिरी में फिट करके तार का आधार दे देते हैं।इस पर बने छत्ते अधिक मजबूत होते हैं व मधु निष्कासन के समय टूटते नहीं हैं।मौमी छत्तादार में प्रयुक्त मोम का शुद्ध होना भी अत्यावश्यक है, अन्यथा मधुमक्खियाँ उस पर सही प्रकार से छत्ते नहीं बनाती हैं।इसका प्रयोग साफ पानी से धोकर ही करना चाहिए।प्रयोग न होने की अवस्था में छ्त्ताधारों को कागज में लपेटकर सुरक्षित रख देना चाहिए।

कृत्रिम भोजन पात्र

यह आयताकार लोहे का बना हुआ पात्र होता है सांयकाल पराग व मकरंद प्रचुर मात्रा में न मिलने की अवस्था में छ्त्ताधारों को कागज में लपेटकर सुरक्षित रख देना चाहिए।

दस्ताना

दस्ताना कपड़े या रबड़ दोनों के बने हो सकते हैं।यह हाथ को कोहनी तक ढके रखते हैं ताकि मधुमक्खियों का प्रकोप हाथों पर न हो।

भागछूट थैला

यह कपड़े का बना एक विशेष प्रकार का थैला होता है, जिसका एक सिरा बंद होता है व दूसरा रस्सी द्वारा खींचने पर बंद हो जाता है।मौनवंश के भागछूट समूह को पकड़ने के लिए उसे इस थैले के अंदर की ओर करके  रानी सहित समस्त समूह को झाड़कर उल्टा करके नीचे की ओर मुंह को रस्सी कसी संकरा कर देते हैं इससे भागछूट समूह इस थैले में प्रवेश कर जाता है और पुन: इसे मौनगृह में बसा देते हैं।मौनगृह में बसा देते हैं।मौनगृह उपलब्ध न होने की दशा भागछूट को एक दो दिन तक इस थैले में भी रखा जा सकता है।

रानी मक्खी रोकद्वार

  • कूइन गेट भी कहलाता है।इसे वर्ष ऋतू में रानी मक्खी को भागने से रोकने के लिए मौनगृह के द्वार पर लगा देते हैं।इससे श्रमिक मक्खियों को आवागमन तो मौन गृह में जारी रहता है परंतु रानी मक्खी पर रोक लग जाती है।
  • धुंवाधार यह एक टीन का बना हुआ डिब्बा होता है।इसके अंदर एक टाट या कपड़े का टूकड़ा रखकर जलाया जाता है, जिसके एक कोने से धुंवा निकलता है।जब मधुमक्खियाँ काबू से बाहर होती हैं तो धुवांधार द्वारा उन पर धुवाँ छोड़ा जाता है जिसे मधुमक्खियाँ शांत हो जाती हैं।
  • शहद निष्कासन यंत्र जस्ती चादर बने ड्रमनुमा आकृति का यह यंत्र मधुमक्खी पालन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।इसके बिल्कुल मध्य में एक छड़ व जाली लगी होती है व ऊपर की ओर एक हैंडल को मध्य से घुमाने पर जाली सहित छड़ वृत्ताकार परिधि में घूमती है।शहद निष्कासन के लिए मधुखंड की चौखट को जाली के अंदर रखकर घुमाते हैं, जिससे समस्त मधु चौखट से बाहर आ जाता है।

पोषण प्रबंध

मधुमक्खी पालन व्यवसाय प्रारम्भ करने से पूर्व यह आवश्यक है की मधुमक्खी पालन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।इसके बिल्कुल मध्य में एक छड़ व जाली वर्षभर का योजना प्रारूप तैयार किया जाए।मधुमक्खियों के पोषण पराग व मकरंद द्वारा होता है, जो ये विभीन्न फूलों से प्राप्त करती हैं।अत: मधुमक्खीपालक को चाहिए कि वो व्यवसाय आरम्भ करने से पूर्व ये सुनिश्चित कर ले किस माह में किस वनस्पति या फसल से पूरे वर्ष पराग व मकरंद प्राप्त होते रहेंगे।इमली, नीमसफेदा कचनार, रोहिड़ा लिसोड़ा, अडूसा, रीठा आदि वृक्षों से, नींबू, अमरुद, आम अंगूर,अनार आदि फलों की फसलों से, मिर्च, बैंगन, टमाटर, चना मेथी, लौकी, करेला, तुराई ककड़ी, कटेला आदि सब्जियों से, सरसों कपास, सूरजमुखी, तारामीरा आदि फसलों से पराग व मकरंद मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में मिल जाता है।पराग व मकरंद प्राप्ति का मासिक योजना प्रारूप तैयार करने से मौनगृहों के स्थानांतरण की सूविधा हो जाती है।

पराग व मकरंद प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होने की दशा में मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन की भी व्यवस्था की जाती है।कृत्रिम भोजन के रूप में उन्हें चीनी का घोल दिया जाता है।यह घोल एक पात्र में लेकर उसे मौनगृह में रख देते हैं।इसके अलावा मधुमक्खियों का कृत्रिम भोजन उड़द से भी बनाया जा सकता हैं।इसे असप्लिमेंट कहते हैं।इसे बनाने के लिए लगभग एक सौ ग्राम साबुत उड़द अंकुरित करके उसे पीसा जाता है।इस पीसी हुई डाल में दो चम्मच मिलाकर एक समांग मिश्रण तैयार कर लेते हैं।यह मिश्रण भोजन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।इससे मधुमक्खियों को थोड़े समय तक फूलों से प्राप्त होने वाला भोजन हो जाता है।

मधुमक्खी पालन के लिए स्थान निर्धारण

  • ऐसे स्थान का चयन आवश्यक है जिसके चारों तरफ 2-3 किमी. के क्षेत्र में पेड़-पौधे बहुतायत में, हों जिनसे पराग व मकरंद अधिक समय तक उपलब्ध हो सके।
  • बॉक्स स्थापना हेतु स्थान समतल व पानी का उचित निकास होना चाहिए।

स्थान के पास का बाग़ या फलौद्यान अधिक घना नहीं होना चाहिए ताकि गर्मी के मौसम में हवा का आवागमन सुचारू हो सके।

  • जहाँ मौनगृह स्थापित होना है, वह स्थान छायादार होना चाहिए।
  • वह स्थान दीमक व चीटियों से नियंतित्र होना आवश्यक है।
  • दो मौनगृह के मध्य चार से पांच मीटर का फासला होना आवश्यक है, उन्हें पंक्ति में नहीं लगाकर बिखरे रूप में लगाना चाहिए।एक स्थान पर 50 से 100 मौनगृह स्थापित किये जा सकते हैं।
  • हर बॉक्स के सामने पहचान के लिए कोई खास पेड़ या निशानी लगनी चाहिए ताकि मधुमक्खी अपने ही मौनगृह में प्रवेश करें।
  • मौनगृह को मोमी पतंगे के प्रकोप से बचाने के उपाय किए जाने चाहिए।
  • निरीक्षण के सयम यह ध्यान देना चाहिए कि मौनगृह में नमी तो नहीं है अन्यथा उसे धुप दिखाकर सुखा देना चाहिए।
  • मधुमक्खी पालन व मौनगृह प्रबंध
  • यहाँ मधुमक्खी पालन व मौनगृह प्रबंध के ऊपर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।

मौन प्रबंध

मौनगृह का निरीक्षण हर 9-10 दिनों के पश्चात करना अति आवश्यक है।निरीक्षण के दौरान मुंह रक्षक जाली व दास्तानी का प्रयोग किया जाता है।उस समय हल्का धुआं भी करते हैं।जिसमें मधुमक्खियाँ, शांत बनी रहती हैं।इसमें मौनगृह के दोनों भागों का पृथक – पृथक निरीक्षण किया जाता है-

मधुमक्खी निरीक्षण

मधुखंड के निरीक्षण के समय यह देखते हैं कि किन- किन फ्रेम (चौखटों) में शहद है।जिन चौखटों में शहद 75-80 प्रतिशत तक जमा है, उस फ्रेम को निकाल कर उसकी मधुमक्खियाँ खंड में ही झाड़ देते हैं।इसके पश्चात जमा शहद को चाकू से खरोंच कर मधुनिष्कासन मशीन द्वारा परिशोषित मधु प्राप्त करते हैं व खाली फ्रेम को पुन: मधुखण्ड में स्थापित कर देते हैं।

शिशुखंड निरीक्षण

शिशुखंड निरीक्षण में सर्वप्रथम रानी मक्खी को पहचान कर उसकी अवस्था का जायजा लिया जाता है।यदि रानी बूढ़ी हो गई हो या चोटिल हो तो उसके स्थान पर नई रानी मक्खी प्रवेश कराई जाती है।नर मधुमक्खी का रंग काला होता है, यह केवल प्रजनन के काम आती है इसलिए इनके निरिक्षण की विशेष आवश्यकता नहीं होती है।चौखटों के मध्य भाग में पराग व मकरंद होता है।

स्थान परिवर्तन व पेकिंग निरीक्षण

फसल चक्र में परिवर्तन के साथ मधुमक्खियों को पराग व मकरंद का आभाव होने लगता है।इस स्थिति में मौनगृहों  का स्थानांतरण ऐसे स्थानों पर किया जाता है जहाँ विभिन्न फूलों व फलों वाली फसलें प्रचुरता में उपलब्ध हों।स्थानांतरण हेतु पैकिंग कार्य के शाम के समय किया जाता है, जिससे सभी श्रमिक मक्खियाँ अपने मौनगृह में वापस आ जाएँ।निरीक्षण के दौरान यह देखा जाना चाहिए कि वहाँ पराग व मकरंद उपयुक्त मात्रा में है या नहीं, इसमें कमी होने पर चीनी व घोल प्रदान किया जाता है।

पर्याप्त मात्रा में पराग व मकरंद प्राप्त होने पर मौनवंश में भी वृद्धि अधिक होती है।इस पराक्र हुई वंश वृद्धि की व्यवस्था दो प्रकार से की जाती है।मौनवंश से नए छत्ते बनवाकर व मौनवंश का विभाजन करके।

शहद निष्कासन

मधुखंड में स्थित चौखटों में जब 75 से 80 प्रतिशत तक तक शहद जमा हो जाए तो उस शहद का निष्कासन किया जाता है।इसके लिए सबसे पहले चौखटों से मधुमक्खियाँ झाड़कर मधु खंड में डाल देते हैं इसके पश्चात चाकू से या तेज गर्म पानी डालकर छत्ते से मोम की ऊपरी परत उतारते हैं।फिर इस चौखट को शहद निष्कासन यंत्र में रखकर हैंडिल द्वारा घुमाते हैं, इसमें अपकेन्द्रिय बल द्वारा शहद बाहर निकल जाता है व छत्ते की संरचना को भी कोई नुकसान नहीं पहूंचता।इस चौखट को पुन: मधुखंड में स्थापित कर दिया जाता है एवं मधुमक्खियाँ छत्ते के टूटे हुए भागों को ठीक करके पुन: शहद भरना प्रारंभ कर देती हैं।इस प्रकार प्राप्त शहद को मशीन से निकाल कर एक टंकी में 48-50 घंटे तक डाल देते हैं, ऐसा करने से शहद में मिले हवा के बूलबूले, मोम आदि शहद की ऊपरी सतह पर व अन्य मैली वस्तुएँ नीचे सतह पर बह जाती है।शहद को बारीक़ कपड़े से छानकर व प्रोसेसिंग के उपरांत स्वच्छ व सूखी बोतलों में भरकर बाजार में बेचा जा सकता है।इस प्रकार न तो छत्ते और न ही लार्वा, प्यूपा आदि नष्ट होते हैं और शहद भी शुद्ध प्राप्त होता है।

मधुमक्खी पालन में व्याधियाँ

मधुमक्खी पालन में आने वाली व्याधियाँ की जानकारी यहाँ दी गयी है।

  1. माइट – यह चार पैरों वाला, मधुमक्खी पर परजीवी कीट है।इससे बचाव के लिए संक्रमण की स्थिति 10-15 दिन के अन्तराल पर सल्फर चूर्ण का छिड़काव चौखट की लकड़ी पर व प्रवेश द्वार पर करना चाहिए।
  2. सैक ब्रूड वायरस-  यह एक वायरस जनित व्याधि है।इटेलियन मधुमक्खियों में इस व्याधि के लिए प्रतिरोधक क्षमता अन्य से अधिक होती है।
  3. भगछूट – मधुमक्खियों को अपने आवास से बड़ा लगाव होता है परंतु कई बार इनके सम्मुख ऐसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं कि इन्हें अपना आवास छोड़ना पड़ता है।इस स्थिति में भगछूट थैले में पकड़ का पुन: मौनगृह में स्थापित कर देते हैं।
  4. मोमी पतंगा – यह मधुमक्खी का शत्रु होता है।निरीक्षण के दौरान इसे मारकर नष्ट का देना चाहिए।

राजस्थान सरकार ने किसानों के ऋण पर 50 प्रतिशत ब्याज माफ किया

राजस्थान सरकार ने किसानों के ऋण पर 50 प्रतिशत ब्याज माफ किया

सहकारिता मंत्री श्री अजय सिंह किलक ने शुक्रवार को बताया कि प्रदेश के जिन किसानों का ऋण अवधिपार हो चुका है, ऎसे किसानों को सरकार ने राहत प्रदान करते हुए 31 मार्च, 2018 तक ऋण का चुकारा करने पर 50 प्रतिशत तक ब्याज माफ किया है।

श्री किलक ने बताया कि मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे किसानों के प्रति संवेदनशील है और मुख्यमंत्री ने 15 अगस्त, 2017 को किसानों को राहत देने के लिए सहकारी भूमि विकास बैंकों के अवधिपार ऋणियों का 50 प्रतिशत तक ब्याज माफ करने की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि ज्यादा से ज्यादा किसानों को फायदा मिले इसके लिए एक जुलाई से जिन किसानों ने ऋण का चुकारा कर दिया है उनकों भी योजना का लाभ मिलेगा।

सहकारिता मंत्री ने बताया कि यह योजना प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों के सभी प्रकार के कृषि एवं अकृषि ऋणों पर लागू होगी, जो एक जुलाई, 2017 को अवधिपार हो चुके हैं। मुख्यमंत्री श्रीमती राजे ने किसानों को ऋण का चुकारा करने में हो रही परेशानियों के मद्देनजर राहत देने की घोषणा की थी।

श्री किलक ने बताया कि इस योजना में ऋणी किसानों का दण्डनीय ब्याज एवं वसूली खर्च की राशि को 100 प्रतिशत माफ किया गया है। सहकारिता मंत्री ने बताया कि ऎसे अवधिपार ऋणी किसान जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनके परिवार को किसान की मृत्यु तिथि से सम्पूर्ण बकाया ब्याज, दण्डनीय ब्याज एवं वसूली खर्च को पूर्णतया माफ कर राहत दी गई है। उन्होंने प्रदेश के किसानों का आह्वान किया है कि योजना की तय अवधि में ऋण जमा कराकर छूट का फायदा उठाएं।

एसएलडीबी के प्रबंध निदेशक श्री विजय शर्मा ने बताया कि इस योजना का फायदा 36 प्राथमिक भूमि विकास बैंकों एवं उनकी 133 शाखाओं के माध्यम से ऋण लेने वाले किसानाें को मिलेगा।उन्होंने बताया कि एक अप्रेल, 2014 के पश्चात् वितरित किए गए दीर्घकालीन कृषि ऋणों के अवधिपार ऋणियों को योजना में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि उन्हें ऋणों का समय पर चुकारा करने पर 5 प्रतिशत ब्याज अनुदान मिल रहा है।

भावान्तर भुगतान योजना एक सितम्बर से लागू जानें कब किस फसल का होगा पंजीयन 

मध्यप्रदेश में खरीफ-2017 के लिये भावान्तर भुगतान योजना एक सितम्बर से लागू जानें कब किस फसल का होगा पंजीयन 

मध्यप्रदेश में किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने ने के लिये पायलेट आधार पर खरीफ-2017 के लिये किसान-कल्याण एवं कृषि विभाग ने भावान्तर भुगतान योजना लागू की है। इस योजना में किसान द्वारा अधिसूचित कृषि उपज मण्डी प्रांगण में चिन्हित फसल उपज का विक्रय किये जाने पर राज्य शासन ने घोषित मॉडल विक्रय कर एवं भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर की राशि किसानों को भुगतान करने का निर्णय लिया है।

जानें कब किस फसल का होगा पंजीयन 

खरीफ-2017 में सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द एवं तुअर की फसलें ली गयी हैं। इन फसलों के लिये किसानों का योजना में एक सितम्बर-2017 से 30 सितम्बर-2017 तक भावान्तर भुगतान योजना के पोर्टल में पंजीयन किया जायेगा।

भावान्तर भुगतान योजना में पंजीकृत किसानों की फसलों के मण्डी में विक्रय अवधि तुअर के लिये एक फरवरी-2018 से 30 अप्रैल-2018 तक तथा सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग और उड़द के लिये 16 अक्टूबर-2017 से 15 दिसम्बर-2017 तक मॉडल विक्रय दर की गणना मध्यप्रदेश तथा दो अन्य राज्यों की मॉडल विक्रय दर का औसत होगा। योजना का लाभ पंजीकृत किसानों द्वारा मध्यप्रदेश में उत्पादित कृषि उत्पाद का विक्रय अधिसूचित मण्डी परिसर में किये जाने पर मिल सकेगा। योजना का लाभ जिले में विगत वर्षों की फसल कटाई प्रयोगों पर आधारित औसत उत्पादकता के आधार पर उत्पाद की सीमा तक ही देय होगा।

किसानों को देय राशि

प्रदेश के किसानों को देय राशि की गणना में प्रावधान किया गया है कि यदि किसान द्वारा मण्डी समिति परिसर में विक्रय की गयी अधिसूचित फसल की विक्रय दर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम किन्तु राज्य शासन द्वारा घोषित मॉडल विक्रय दर से अधिक हुई तो न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा किसान द्वारा विक्रय मूल्य के अंतर की राशि किसान के खाते में ट्रांसफर की जायेगी। यदि किसान द्वारा मण्डी समिति परिसर में विक्रय की गयी अधिसूचित फसल की विक्रय दर राज्य शासन द्वारा घोषित मॉडल विक्रय दर से कम हुई तो न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा मॉडल विक्रय दर के अंतर की राशि ही किसान के खाते में ट्रांसफर की जायेगी।

भावान्तर भुगतान योजना में मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ/मध्यप्रदेश स्टेट सिविल सप्लाईज कॉर्पोरेशन द्वारा पात्र किसानों को भुगतान किया जायेगा। भावान्तर भुगतान योजना में निर्धारित विक्रय अवधि के बाद विक्रय अवसर प्रदान करने के लिये भावान्तर भुगतान योजना में निर्धारित विक्रय अवधि के बाद तुअर के लिये एक मई-2018 से 30 अगस्त-2018 और सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द एक जनवरी-2018 से 30 अप्रैल-2018 तक किसान द्वारा लायसेंसयुक्त गोदाम में अपने कृषि उत्पाद रखे जाने के लिये गोदाम क्रय राशि किसानों को दिये जाने का भी निर्णय लिया गया है।

भावांतर भुगतान योजना के लिये विक्रय की अवधि

यह राशि निर्धारित भण्डारण अवधि में मॉडल विक्रय दर, न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम रहने की स्थिति में 7 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह अथवा जो वास्तविक भुगतान किया गया है, दोनों में से जो भी कम हो, की दर से ऐसे किसानों के बैंक खाते में राशि जमा करवायी जायेगी।

भावान्तर भुगतान योजना के संबंध में नीतिगत निर्णय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में कृषि केबिनेट द्वारा लिये जायेंगे। क्रियान्वयन प्रगति एवं समीक्षा के लिये राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय क्रियान्वयन समिति तथा जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला स्तरीय क्रियान्वयन समिति द्वारा दिये जाने का निर्णय लिया गया है।

फसलभावांतर भुगतान योजना के लिये विक्रय की अवधिमॉडल विक्रय दर गणना के लिये राज्य
तिलहन फसलें
सोयाबीन16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकमहाराष्ट्र, राजस्थान
मूंगफली16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकगुजरात, राजस्थान
तिल16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकउड़ीसा, छत्तीसगढ़
रामतिल16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकपश्चिम बंगाल, राजस्थान
खाद्यान्न फसलें
मक्का16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तककर्नाटक, महाराष्ट्र
दलहनी फसलें
मूंग16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकराजस्थान, महाराष्ट्र
उड़द16 अक्टूबर से 15 दिसम्बर तकराजस्थान, उत्तरप्रदेश
तुअर1 फरवरी से 30 अप्रैल तकमहाराष्ट्र, गुजरात

उत्तरप्रदेश में निःशुल्क बोरिंग योजना, गहरी बोरिंग योजना हेतु राशि स्वीकृत

उत्तरप्रदेश में निःशुल्क बोरिंग योजना, गहरी बोरिंग योजना हेतु राशि स्वीकृत

निःशुल्क बोरिंग योजना हेतु 2265.35 लाख रुपये स्वीकृत

उत्तर प्रदेश शासन ने लघु एवं सीमान्त कृषकों को कृषि उत्पादन हेतु सहायता (निःशुल्क बोरिंग योजना) के अन्तर्गत सामान्य कृषकों के लिए 22 करोड़ 65 लाख 35 हजार रुपये की धनराशि स्वीकृत की है। इस धनराशि का उपयोग योजनान्तर्गत पात्र कृषकों को अनुदान की सुविधा उपलब्ध कराकर व तकनीकी मार्गदर्शन देकर निजी लघु सिंचाई संसाधन उपलब्ध कराने में किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस योजना हेतु 38.83 करोड़ रुपये की धनराशि का प्राविधान किया गया है।
इस सम्बंध में लघु सिंचाई एवं भूगर्भ जल विभाग द्वारा जारी शासनादेश में अधिशासी अभियंता लघु सिंचाई सम्बंधित प्रखण्ड को निर्देशित किया गया है कि जनपदों की वास्तविक आवश्यकता को आंकलन करते हुए निर्धारित भौतिक लक्ष्यों के सापेक्ष नियमानुसार बजट प्राविधान की सीमा के अधीन वित्तीय स्वीकृतियां जारी की जाएं।

गहरी बोरिंग योजना हेतु 184.28 लाख रुपये स्वीकृत

उत्तर प्रदेश शासन ने बुन्देलखण्ड तथा प्रदेश के पठारी जटिल एवं बहुत नीचे गहरे स्ट्रेटा वाले क्षेत्रों में रिंग मशीनों से गहरी बोरिंग कराने की योजना के तहत चालू वित्तीय वर्ष में 01 करोड़ 84 लाख 28 हजार रुपये की धनराशि स्वीकृत की है। उल्लेखनीय है कि इस योजना के लिए 623.64 लाख रुपये की धनराशि का प्राविधान किया गया है।
राज्य सरकार ने गहरी बोरिंग योजना के तहत यह धनराशि मथुरा, मैनपुरी, बरेली, बदायूं, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, फर्रुखाबाद, कन्नौज, इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर, झांसी, जालौन, ललितपुर तथा चित्रकूट जनपदों के लिए जारी की है।
इस सम्बन्ध में लघु सिंचाई एवं भूगर्भ जल विभाग द्वारा जारी शासनादेश में अधिशासी अभियंता लघु सिंचई, सम्बंधित प्रखण्ड को निर्देशित किया गया है कि जनपदों की वास्तविक आवश्यकता का आंकलन करते हुए निर्धारित भौतिक लक्ष्यों के सापेक्ष नियमानुसार बजट प्राविधान की सीमा के अधीन वित्तीय स्वीकृतियां जारी की जाएं।

 

मध्यप्रदेश में किसानों के लिये भावान्तर भुगतान योजना लागू करने का निर्णय

मध्यप्रदेश में किसानों के लिये भावान्तर भुगतान योजना लागू करने का निर्णय

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आज हुई मंत्रि-परिषद की बैठक में प्रदेश में किसानों के हित संरक्षण के लिये भावान्तर भुगतान योजना लागू करने का निर्णय लिया गया। यह योजना किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिये पायलेट आधार पर खरीफ 2017 के लिये लागू की गई है। इस निर्णय के अंतर्गत प्रदेश में किसान द्वारा अधिसूचित कृषि उपज मण्डी समिति प्रांगण में फसल विक्रय करने पर राज्य शासन द्वारा निहित प्रक्रिया अनुरूप घोषित मॉडल विक्रय कर एवं भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर की राशि का किसानों को भुगतान किया जायेगा। भावान्तर भुगतान योजना में खरीफ 2017 की सोयाबीन, मूंगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूंग, उड़द और तुअर की फसलें ली गई हैं। योजना में किसानों को एक से 30 सितंबर 2017 तक पोर्टल पर अपना पंजीयन कराना होगा।

किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने की महत्वाकांक्षी योजना

प्रदेश के किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिये राज्य सरकार द्वारा भावान्तर भुगतान योजना लागू की जा रही है। योजना का उद्देश्य किसानों को कृषि उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना सुनिश्चित करना तथा मण्डी दरों में गिरावट से किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान करना है। इस योजना में किसान द्वारा प्रदेश में अधिसूचित कृषि उपज मण्डी प्रांगण में चिन्हित फसल उपज बेचने पर राज्य सरकार द्वारा घोषित मॉडल विक्रय दर और केन्द्र द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर की राशि किसानों को भुगतान की जायेगी।

किसानों का पंजीयन एक से 30 सितम्बर तक

भावान्तर भुगतान योजना खरीफ 2017 के लिये पायलट योजना के रूप में लागू की जा रही है। योजना में सोयाबीन, मूँगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूँग, उड़द और तुअर की फसलें ली गई हैं। इसके लिये किसानों का पंजीयन एक सितम्बर 2017 से 30 सितम्बर 2017 तक भावान्तर भुगतान योजना पोर्टल पर किया जायेगा। पंजीयन के समय आधार कार्ड नम्बर, बैंक खाते की जानकारी और मोबाईल नम्बर देना होगा। पंजीयन के बाद किसान को यूनिक आईडी नम्बर प्रदान किया जायेगा। योजना के अंतर्गत सोयाबीन, मूँगफली, तिल, रामतिल, मक्का, मूँग और उड़द के लिये विक्रय की अवधि 16 अक्टूबर 2017 से 15 दिसम्बर 2017 तक रहेगी। तुअर के लिये विक्रय की अवधि 1 फरवरी 2018 से 30 अप्रैल 2018 तक रहेगी।

मॉडल विक्रय दर मध्यप्रदेश और दो अन्य राज्यों की मॉडल दर का औसत

मॉडल विक्रय दर की गणना मध्यप्रदेश तथा दो अन्य राज्यों की मॉडल दर का औसत रहेगा। सोयाबीन के लिये दो अन्य राज्य महाराष्ट्र और राजस्थान, मूँगफली के लिये गुजरात और राजस्थान, तिल के लिये उड़ीसा और छत्तीसगढ़, रामतिल के लिये पश्चिम बंगाल और राजस्थान, मक्का के लिये कर्नाटक और महाराष्ट्र, मूँग के लिये राजस्थान और महाराष्ट्र, उड़द के लिये राजस्थान और उत्तरप्रदेश तथा तुअर के लिये महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों की मॉडल विक्रय दर ली जायेगी।

योजना का लाभ पंजीकृत किसानों को मध्यप्रदेश में उत्पादित कृषि उत्पाद का विक्रय अधिसूचित मण्डी परिसर में करने पर ही मिलेगा। योजना का लाभ जिले में विगत वर्षों की फसल कटाई प्रयोगों पर आधारित औसत उत्पादकता के आधार पर उत्पादन के सीमा तक दिया जायेगा। योजना में मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ और मध्यप्रदेश राज्य नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा पात्र किसानों को भुगतान किया जायेगा।

मॉडल विक्रय दर की गणना

योजना में किसानों को देय राशि की गणना का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार यदि किसान द्वारा मण्डी समिति परिसर में बेची गई अधिसूचित फसल की विक्रय दर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम परंतु राज्य शासन द्वारा घोषित मॉडल विक्रय दर से अधिक हुई तो न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा किसान द्वारा विक्रय मूल्य के अंतर की राशि किसान के खाते में अंतरित की जायेगी। इसी तरह यदि किसान द्वारा मण्डी समिति परिसर में विक्रय की गई अधिसूचित फसल की विक्रय दर राज्य शासन द्वारा घोषित मॉडल विक्रय दर से कम हुई तो न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा मॉडल विक्रय दर की अंतर की राशि किसान के खाते में अंतरित की जायेगी।

लाइसेंसी गोदाम में उपज रखने पर अनुदान

योजना में पंजीकृत किसानों को उपयुक्त बाजार भाव पर उनकी उपज के विक्रय अवसर प्रदान करने और उचित समय पर फसल बेचने को प्रोत्साहित करने के लिये लाइसेंसी प्राप्त गोदाम में कृषि उपज रखने के लिये किसान को अनुदान दिया जायेगा। राज्य शासन ने निर्णय लिया है कि भावान्तर भुगतान योजना में निर्धारित विक्रय अवधि के बाद तुअर के लिये एक मई से 30 अगस्त 2018 तक तथा सोयाबीन, मूँगफली, रामतिल, मक्का, मूँग और उड़द के लिये एक जनवरी से 30 अप्रैल 2018 तक अनुज्ञप्तिधारी गोदाम में कृषि उत्पाद रखे जाने पर गोदाम किराया किसानों को दिया जायेगा। योजना के क्रियान्वयन की मॉनीटरिंग के लिये राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तथा जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में समिति गठित की जायेगी।

मण्डी में विक्रय के बाद जारी किये जाने वाले अनुबंध पर्ची, तौल पर्ची और भुगतान पत्रक पर किसान का पंजीयन क्रमांक इंद्राज किया जायेगा। प्राप्त जानकारी भावान्तर भुगतान योजना के पोर्टल पर मण्डी समिति द्वारा दर्ज की जायेगी। सौदा पत्रक के माध्यम से क्रय-विक्रय किये गये कृषि उत्पाद योजना में पात्र नहीं होंगे।

किसान क्रेडिट कार्ड पर ऋण भुगतान कैसे करें

किसान क्रेडिट कार्ड पर किसान को ऋण का भुगतान किस प्रकार करना होता है, उस राशि पर लगने वाला ब्याज कीतना होगा जानें

देश के सभी राज्यों किसान कृषि कार्य के लिए लोन लेते है , यह लोन वार्षिक , अर्धवार्षिक या फसल के अनुसार लेते है | जिसे सरकारी या राष्ट्रीय बैक किसान को लोन देता है | लेकिन ज्यादा तर किसान को यह मालूम नहीं है की लोन पर ब्याज किस आधार पर लिया जाता है | आज आप सभी किसान भाई को लोन और उस पर ब्याज के बारे में पूरी जानकारी दिया जायेगा |

मान लेते है की देश के किसी भी राज्य के कोई भी किसान किसान क्रेडिट कार्ड से 5 लाख रूपये का कर्ज किसी भी राष्ट्रीय बैंक से लेता है | तो अब यह जानना होगा की वह किसान एक साल में कितना रुपया बैंक को लौटना पड़ेगा | इस पर किसान को दो तरह का ब्याज लगेगा | एक 3 लाख रूपये तक के लोन पर 7 प्रतिशत तथा 2 लाख लोन पर 9 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | अगर वह किसान जिस तारीख से लोन लिया है अगर उसी तारीख को लोन वापस कर देता है तो 3 लाख रूपये पर 3 प्रतिशत का सब्सिडी मिलेगा | बाकि 2 लाख रूपये पर 9 प्रतिशत का ही ब्याज लगेगा |

ब्याज कितना देना होगा

अब यह जानना होगा की किसान को एक साल में कितना रुपया बैंक को वापस करना होगा | जैसा की ऊपर बताया की एक साल में लौटने पर 3 लाख रूपये पर 3 प्रतिशत का सब्सिडी मिलेगा | इसका मतलब यह हुआ की 3 लाख रूपये पर 4 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | 12000 रुपया 3 लाख पर एक साल का ब्याज होगा | बचे हुए 2 लाख पर 9 प्रतिशत का ब्याज लगेगा | 18000 रुपया 2 लाख रूपये का ब्याज होगा | कुल एक साल में किसान को ब्याज सहित रुपया होगा

(3 लाख लोन + 12000 ब्याज ) + (2 लाख लोन + 18000 ब्याज ) = 5 लाख 30 हजार रुपया |

इसके बाद केंद्र सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा लागू किया था , जिसमें यह नियम है की देश के कोई भी किसान अगर किसान क्रेडिट कार्ड या किसी और माध्यम से भी फसल के लिए कर्ज लेता है तो लिए हुए कर्ज का 2 प्रतिशत प्रधान मंत्री फसल बीमा के लिए काटा जायेगा |

इसका मतलब यह हुआ की किसान ने 5 लाख रूपये का कर्ज लिया था तो उसका राशि का 2 प्रतिशत काट लिया जायेगा | 5 लाख रूपये का 2 प्रतिशत 10,000 रुपया होता है | इसमें आप को ध्यान देने वाली बात यह है की किसान लोन तो 5 लाख रूपये का लेगा लेकिन उसे 2 प्रतिशत काट कर 4 लाख 90,000 रुपया ही मिलेगा | लेकिन ब्याज 5 लाख रूपये पर लगेगा |तो किसान को एक साल में 5 लाख रूपये लोन लेने पर 4 लाख 90,000 रुपया मिलेगा और 5 लाख 30,000 रुपया एक साल में लौटान पड़ेगा |

अब यह जानते है की किसान ने किसी कारण से एक साल में बैंक को पैसा नहीं लौटा पाया तो किसान पर कितना कर्ज रहेगा ?

अगर किसान 5 लाख रुपया लेकर किसी कारण से एक साल में कर्ज नहीं लौटा पाया तो किसान को मिलने वाला 3 प्रतिशत की सब्सिडी नहीं मिलेगी | इसका मतलब यह हुआ की 3 लाख पर 7 प्रतिशत का ही ब्याज चलेगा | किसान जितना देर करेगा किसान पर बोझ उतना ही बढेगा |

यह योजना पिछले 10 साल से लागू है प्रतेक साल मार्च महीने में इसकी समय पूरा हो जाता है , सरकार प्रतेक साल इस योजना को अगले साल के लिए बढ़ा देती है | इस वर्ष देर से लेकिन 14 जून को इस योजना को वर्ष 2017 – 18 के लिए लागू किया गया है | इसके लिए केंद्र सरकार 20339 कड़ोर रुपया स्वीकृत किया है | जिसका आप लोग लाभ उठा सकते है |

अब आप सभी किसान भाई अगर कर्ज लिए हैं या लेने के बारे में सोच रहे हैं तो अपनी कर्ज पर लगने वाला ब्याज को आप इस नियम से जोड़ सकते है |

उधारकर्ताओं के ऋणों की अदला-बदली की योजना

उधारकर्ताओं के ऋणों की अदला-बदली की योजना

उद्देश्य

किसानों द्वारा गैर-संस्थागत उधारदाताओं (उदा. साहूकार) से लिए गए ऋणों की चुकौती के लिए ऋण उपलब्ध कराना तथा विपत्ति में फँसे ऐसे किसानों को उनकी फसल उत्पादन आवश्यवकताओं को पूरा करने में मदद करना।

पात्र व्यक्ति

सभी वर्तमान किसान उधारकर्ता तथा शाखा के परिचालन क्षेत्र में आने वाले सभी किसान

ऋण राशि

यह योजना वर्तमान या संभावित भू-स्वामित्व वाले किसानों के लिए होगी। अगर खेती या कृषि कार्यकलाप के लिए ऋण लिया जा रहा है तो ऋण की मात्रा 100% होगी, जिसकी अधिकतम राशि रु 1,00,000/- होगी। इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड के अधीन फसल उत्पादन के लिए ऋण स्वीकृत किया जाएगा।

आप द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले दस्तावेज़

क) बैंक प्रारूप के अनुसार स्टांपित एवं नोटरी करवाया हुआ एफिडेविट
ख) वचन-पत्र में उल्लिखित तथ्यों के समर्थन में उधारदाता से पत्र

प्रतिभूति

बैंक के पास उपलब्ध सभी वर्तमान प्रतिभूति को प्रस्तावित योजना के अधीन ऋण को कवर करने के लिए माना जाएगा। साहूकारों/गैर-संस्थागत उधारदाताओं की देयताओं को चुकाने के बाद साहूकारों , गैर-संस्थागत उधारदाताओं के पास गिरवी रखे/बंधक दस्तावेजों एवं संपत्तियों पर प्रभार दर्ज करना। इस ऋण के लिए कृषि संपत्ति पर बंधक/प्रभार द्वारा संपार्श्विक प्रतिभूति ली जाए।

ऋण कैसे चुकाएं?

ऋण की चुकौती छमाही/वार्षिक किस्तों में 3-5 वर्षों में की जाए।

इस ऋण के लिए आवेदन कैसे करें?

आप हमारी नजदीकी शाखा से संपर्क कर सकते हैं या आपके गांव में आने वाले हमारे विपणन अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।

स्त्रोत: स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया

उतरप्रदेश में कृषि मशीनों पर मिलने वाली सहायता 

उतरप्रदेश में कृषि मशीनों पर मिलने वाली सहायता 

ट्रेक्टर (40 H.P. तक)      निर्धारित मूल्य का 25 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 45000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषकउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
पावर टिलर (8 H.P. या उससे अधिक)निर्धारित मूल्य का 40 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 45000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
पम्पसेट (7.5 H.P.तक)  निर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 10000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
जीरोटिल सीड ड्रिल, सुगर केन कटर प्लांटर,रीपर, बाइंडर    निर्धारित मूल्य का 40 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 20000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
पावर थ्रेशर     निर्धारित मूल्य का 25 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 12000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
विनोइंग फैन, चेफ कटर(मानवचालित)      निर्धारित मूल्य का 25 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 2000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
ट्रेक्टर माउंटेड स्प्रेयर      निर्धारित मूल्य का 25 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 4000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
ऐरो ब्लास्ट स्प्रेयर      निर्धारित मूल्य का 25 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 25000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
रोटावेटरनिर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 30000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
सीडड्रिल/ जीरोटिल सीडड्रिल/ मल्टी क्राफ्ट प्लांटर/ रिज फरो प्लांटर निर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 15000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
नैपसैक स्प्रेयर/ फुट स्प्रेयर/ पावर स्प्रेयर      निर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 3000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
लेजर लैण्ड लेवलर      निर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 150000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
पम्प सेट      निर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 10000 जो भी कम हो।चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक
स्प्रिंकलर सेटनिर्धारित मूल्य का 50 प्रतिशत अथवा अधिकतम रू0 75000 जो भी कम हो। बुन्देलखण्ड क्षेत्र 90%चयनित जनपद के कृषक लाभार्थीउ.स.कृ.प.अधि./उ. कृ. निदेशक

 

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