back to top
रविवार, अप्रैल 28, 2024
होम ब्लॉग पेज 360

सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना में पंजीकरण 31 अगस्त तक

राजस्थान में चल रही सोलर पंप कृषि कनेक्शन योजना में किसानों को कृषि कनेक्शन हेतु, 3 व 5 एच.पी. के कृषि पम्प सेटों  के लिए  पंजीकरण की अवधि बढ़ा दी गई है। इस योजना से किसानों को दिन में बिजली मिलेगी और विद्युत बिल भी नही देना पड़ेगा।

सोलर पम्प कृषि कनेक्शन योजना  में पंजीकरण के लिए, वर्ष 2018-19 में परिवर्तन किया गया है | पिछले वर्ष यह योजना जयपुर डिस्कॉम विभाग के अंतर्गत थी परन्तु इस वर्ष यह योजना उद्यानिकी विभाग के अंतर्गत कर दी गई है |  साथ ही इसके लाभ लेने के लिए प्रक्रिया में भी परिवर्तन कर दिया गया है |

मान्य कृषि कनेक्शन आवेदक अपना आवेदन विद्युत निगम के सम्बन्धित सहायक अभियन्ता (पवस) कार्यालय में रुपये 1000 जमा कर सकते हैं। इसके साथ ही मांग के अनुसार स्वेच्छा से 3 एच.पी. पत्रावली को 5 एच.पी. विद्युत भार के लिए भी बदल सकते है।

सभी राज्यों की सोलार पम्प योजनायें जानने के लिए क्लिक करें 

योजना में आवेदन करने के पश्चात् कृषि कनेक्शन आवेदक की सौर ऊर्जा पम्प सेट स्थापित होने तक मूल प्राथमिकता निगम कार्यालय मे अप्रभावित रहेगीं। सौर ऊर्जा कृषि कनेक्शन जारी होने के बाद कृषि कनेक्शन आवेदन की वरीयता के अनुसार दी जाएगी| अन्य आवेदन निरस्त कर दिए जाएंगे। योजना में सरकार द्वारा 60 प्रतिशत राशि वहन की जावेगी एवं शेष 40 प्रतिशत राशि ही आवेदक द्वारा देय होगी।

आवेदक की निगम में निर्धारित मूल वरीयता अनुसार ही सौर ऊर्जा पम्प सेट स्थापित किये जावेंगे | सौर ऊर्जा पम्प सेटों का रख-रखाव 7 वर्ष तक निःशुल्क निर्माता अथवा आपूर्तिकर्ता कम्पनी द्वारा किया जावेगा | जिसके लिए कंपनी द्वारा कॉल सेन्टर की भी व्यवस्था की जावेगी | जिस पर उपभोक्ता अपनी शिकायत दर्ज करा कर उसका त्वरित समाधान करा सकेंगे। सौर ऊर्जा पम्प सेटों का 7 वर्ष तक निःशुल्क बीमा आपूर्तिकर्ता/निर्माता कंपनी द्वारा किया जावेगा।

वर्ष 2018-19 के लिए योजना का लाभ लेने के लिए क्लिक करें 

मूंगफली की अच्छी उपज के लिए किसान भाई करें यह उपाय

मूंगफली  में किस उर्वरक की आवश्यकता होती है और किस तरह उसका प्रयोग किया जाये?

अच्छी पैदावार लेने के लिए उर्वरकों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। यह उचित होगा कि उर्वरकों का प्रयोग भूमि परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाय। यदि परीक्षण नही कराया गया है तो नत्रजन २० किग्रा, फास्फोरस ३० किग्रा, पोटाश ४५ किग्रा (तत्व के रूप में ) जिप्सम २०० किग्रा एंव बोरेक्स ४ किग्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग किया जाये।

फास्फेट का प्रयोग सिंगिल एंव बोरेक्स ४ किलोग्राम प्रति हे. की दर से प्रयोग किया जाय।  फास्फोरस की निर्धारित मात्रा सिंगिल सुपर फास्फेट के रूप में प्रयोग किया जाय तो अच्छा रहता है। यदि फास्फोरस की निर्धारित मात्र सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में प्रयोग की जाये तो पृथक रूप से जिप्सम के प्रयोग की आवश्यकता नही रहती है।

नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश खादों की सम्पूर्ण मात्रा तथा जिप्सम की आधी मात्रा कूडों में नाई अथवा चोंगे द्वारा बुवाई के समय बीज से करीब २-३ सेमी. गहरा डालना चाहियें। जिप्सम की शेष आधी मात्रा तथा बोरेक्स की सम्पूर्ण मात्रा फसल की ३ सप्ताह की अवस्था पर टाप ड्रेसिंग के रूप में बिखेर कर प्रयोग करें तथा हल्की गुडाई करके ३-४ सेमी गहराई तक मिट्‌टी में भली प्रकार मिला दें।

जीवाणु खाद जो बाजरा में वृक्ष मित्र के नाम से जानी जाती है। इसकी १६ किग्रा. मात्रा प्रति हे. डालना अच्छा रहेगा क्योकि इसके प्रयोग से फलियों के उत्पादन मं वृद्घि के साथ साथ गुच्द्देदार प्रजातियों में फलियाँ एक साथ पकते देखी गई है।

खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के १५ से २० दिन के बाद पहली निकाई गुडाई एवं बुवाई के ३० से ३५ दिन के बाद दूसरी निकाई गुडाई अवश्य करें । खूंटियां (पेगिंग) बनते समय निकाई गुडाई न की जाये।

रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेन्डीमेथालीन ३० ई.सी. की ३.३ ली/हे० अथवा एलाक्लोर ५० ई.सी. की ४ली/हे. अथवा आक्सीलोरफेन २३.५ ई.सी. की ४२० मिली ली. मात्रा बाद तक द्दिडकाव करना चाहियें। इस छिडकाव से मौसमी घास एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार का जमाव ही नही होता है।

मूंगफली में साधारणतया कोन से रोग लगते हैं, उनकी पहचान किस प्रकार करें एवं रोग का उपचार किस प्रकार करें?

मूंगफली क्राउन राट
पहचान :

अंकुरित हो रही मूंगफली इस रोग से प्रभावित होती है। प्रभावित हिस्से पर काली फफूंदी उग जाती है जो स्पष्ट दिखाई देती है।

उपचार:

इसके लिए बीज शोधन करना चाहिये।

डाईरूट राट या चारकोल राट

पहचान :

नमी की कमी तथा तापक्रम अधिक होने पर यह बीमारी जडो मे लगती है। जडे भूरी होने लगती है। और पौधा सूख जाता है।

उपचार:

बीज शोधन करे। खेत में नमी बनाये रखे। लम्बा फसल चक्र अपनाये।

बड नेक्रोसिस

पहचान :

शीर्ष कलियां सूख जाती है। बडवार रूक जाती है। बीमार पौधों में नई पत्तियां छोटी बनती हैं और गुच्छे में निकलती है। प्रायः अंत तक पौधा हरा बना रहता है। फूल-फल नही बनते।

उपचार :
  • जून के चौथे सप्ताह से पूर्व बुवाई न की जाय। थ्रिप्स कीट जो रोग का वाहक है का नियंत्रण निम्न कीटनाशाक दवा से करें।
  • डाइमथोएट ३० ई.सी. एक लीटर प्रति हेक्टर की दर से ।

मूंगफली का टिक्का रोग (पत्रदाग)

पहचान :

पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के गोल धब्बे बन जाते है जिनके चारों तरफ निचली सतह पर पीले घेरे होते है। उग्र प्रकोप से तने तथा पुष्प शाखाओं पर भी धब्बे बन जाते है।

उपचार:

खड़ी फसल पर जिंक मैग्नीज कार्बामेट २ किग्रा. या जिनेब ७५ प्रतिशत घुलनशील चूर्ण २.५ किग्रा. अथवा जीरम २७ प्रतिशत तरल के ३ लीटर अथवा ८० प्रतिशत के २ किग्रा के २-३ द्दिडकाव १० दिन के अन्तर पर करना चाहिये।

मूंगफली में लगने वाले कीट कोन-कोन से हैं एवं उनपर नियंत्रण किस प्रकार किया जाये ?

मुगफली की सफेद गिडार

पहचान

इसकी गिडारे पौधों की जडें खाकर पूरे पौधो को सूखा देती है। गिडार पीलापन लिए हुए सफेद रंग की होती है जिनका सिर भूरा कत्थई या लाल रंग का होता है। ये छूने पर गेन्डुल कें समान मुडकर गोल हो जाती है। इसका प्रौढ़ कीट  मूंगफली को हानि नही करता है। यह प्रथम वर्षा के बाद आसपास के पेडों पर आकर मैथुन क्रिया करते हैं। पुनः ३-४ दिन बाद खेती में जाकर अण्डे देते हैं। यदि प्रौढ़ को पेड़ो पर ही मार दिया जाय तो इनकी संख्या में काफी कमी हो जायेगी।

उपचार
  • मानसून के प्रारम्भ पर २-३ दिन के अन्दर पोषक पेड़ो जैसे नीम गूलर आदि पर प्रौढ़ कीट को नष्ट करने के लिए कार्बराइल ०.२ प्रतिशत या मोनोक्रोटोफास ०.०५ प्रतिशत या फेन्थोएट ०.०३ प्रतिशत या क्लोरपाइरीफास ०.०३ प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिये।
  • बुवाई के ३-४ घन्टे पूर्व क्लोरोपायरीफास २० ई.सी. या क्यूनालफास २५ ई.सी. २५ मिली. प्रति खडी किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करें।
  • खडी फसल में प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफास या क्यूनालफास रसायन की ४ लीटर मात्रा प्रति हे. की दर से प्रयोग करे।
  • एनीसोल फैरेमोन का प्रयोग किया जाय।

दीमक

पहचान :

ये सूखे की स्थिति में जडो तथा फलियों को काटती है। जड कटने से पौधे सूख जाते है। फली के अन्दर गिरी के स्थान पर मिट्‌टी भर देती है।

उपचार :

सफेद गिडार के लिए किये गये बीजोपचार से दीमक प्रकोप को भी रोका जा सकता है।

हेयरी कैटरपीलर

जब फसल लगभग ४०-४५ दिन की हो जाती है। तो पत्तियों की निचली सतह पर प्रजनन करके असंख्या संख्यायें तैयार होकर पूरे खेत में फैल जाती है। पत्तियों को छोदकर छलनी कर देते है। फलस्वरूप पत्तियां भोजन बनाने के अक्षम हो जाती है।

रोकथाम:

मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत २५ किग्रा/हे. की छिडकाव करे । अन्य कीटनाशक दवाये जो दी गयी है उसमें किसी का भी प्रयोग कर इसकी रोकथाम कर सकते है।

डाउनलोड किसान समाधान एंड्राइड एप्प 

धान की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्ध

धान की फसल में एकीकृत कीट प्रबन्ध

  1. जल निकास का समुचित प्रबन्ध | खेत में पानी भरे रहने से गों गिडार, हिस्पा एवं फुदका कीट आदि का प्रकोप बढ़ सकता है|
  2. नत्रजन वाले उर्वरकों को आवश्यकता से अधिक न इस्तेमाल किया जाय | साधारणटीया अधिक नत्रजन से कीटों की वृद्धि तेजी से होती है|
  3. रोपाई के पहले पौध की चोटी काट दी जाय | इससे तना बेधक एवं हिस्पा आदि का प्रकोप कम होगा|
  4. यदि 10 हरे फुदके प्रति हिल एवं / या 8 – 10 भूरे फुदके प्रति हिल दिखाई पड़े तो निम्न में से किसी कीटनाशी का प्रयोग किया जाय किन्तु ध्यान रखें की छिडकाव तनों की ओर केन्द्रित रहे :

कीटनाशी

  • क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.5 ली./हे. |
  • थयोमिडान 25 ई.सी. 1.25 ली./हे. |
  • कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत 20 कि.ग्रा. प्रति हे.
  • फोरेट 10 जी 10 कि.ग्रा.प्रति हे. |
  • डाईक्लोरोवास 76 ई.सी.500 मि.ली. |
  1. यदि गोभी गिडार (व्हर्स मैगेट) से 20 प्रतिशत या एक पट्टी हिल ग्रसित हो तो क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.5 ली./हे. कीटनाशी का छिडकाव करें |
  2. वैसे तो हिस्पा प्रति वर्ष पाबन्दी से नहीं आता फिर भी यदि दो हिस्पा प्रौढ़ कीट या एक ग्रसित पत्तियां प्रति हिल दिखाई पड़े तो निम्न में से किसी एक का छिड़काव करें :-
  • इंडोस्लफास 35 ई.सी. 1 ली./हे.|
  • क्यूनालफास 25 ई.सी. 125 ली./हे.|
  1. फूल आने के बाद यदि औसतन हर हिल या दो तिन कीट प्रति हिल नजर आये तो निम्न कीटनाशी में से किसी एक का प्रयोग किया जाय :-
  • मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम / हे.|
  • मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 20 किलोग्राम / हे.|
  1. भूरे फुदके की संख्या यदि 10 प्रति हिल पाई जाय, तो हरे फुदके के लिय सस्तुत रसायन प्रयोग करें अथवा इसके लिये परजीवी मिरिड बग को खेतों में छोड़कर जैविक नियन्त्रण किया जाये |
  2. तना छेदक कीट के प्रकोप से बने 5 प्रतिशत मृतयोन अथवा एक अंड समूह या एक प्रौढ़ कीट प्रति वर्ग मीटर पाया जाय तो संस्तुत रसायनों का छिड़काव किया जाय या ट्राइकोग्राम के 2.5 कार्ड प्रयोग किये जाये |
  3. खेत को खरपतवारों से मुक्त रखा जाये तो कीड़ों को पनपने और बढ़ने का अवसर कम मिलेगा |
  4. बाली बन जाने पर यदि बाल काटने वाले कीट का औसतन धान में एक गिडार मिले तो निम्न कीटनाशियों में से किसी एक का सायंकाल प्रयोग किया जाये :-
  • कलोरपाइरीफास 20 ई.सी. का 1.5 ली./हे.|
  • क्यूनालफास 20 ई.सी. का 1.5 ली./हे.|
  • इंडोस्लफास 35 ई.सी. 1.25 ली./हे.|
  • मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धूल 25 कि. / हे.|
  • डाईक्लोरोवास 76 ई.सी.मि.ली./हे. , (छिड़काव दोपहर के बाद करें)|
  • फैनथोएट 2 प्रतिशत धूल 25 कि./हे.|
  • ट्राइकोग्राम परजीवी 50000 – 100000 प्यूपा / हे. की दर से रोपाई के 30 दिनों बाद छोड़े |
  1. धान की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई की जाये,अवशेषों को नष्ट कर दिया जाये ताकि उनमे उपस्थित कीटों की विभिन्न अवस्थायें नष्ट हो जायें और आने वाले मौसम में उनकी बढ़ोतरी रोकी जा सके|

मशरूम की खेती से जुड़े कुछ सवाल एवं उनके जबाव

मशरूम की खेती सवाल एवं उनके जबाब

समय समय पर किसान भाई मशरूम उत्पादन को लेकर कई सवाल करते हैं | किसानों के मन में मशरूम की खेती को लेकर कई शंकाएं रहती हैं जिन्हें दूर करने के लिए किसान समाधान किसानों के द्वारा पूछे गए सामान्य सवालों एवं उनके जबाब लेकर आया है | 

मशरूम की खेती कहाँ की जा सकती है ?

हां, मशरूम कहीं भी पैदा की जा सकती है बशर्ते वहां का तापमान तथा आर्द्रता जरूरत के अनुसार हो। मशरूम की अलग अलग किस्में होती हैं जिनकी खेती वर्ष भर की जा सकती है | मशरूम एक पौष्टिक गुणों से भरपूर प्राकृतिक प्रदत्त फसल है , जो बिना भूमि (उपजाऊ भूमि), कम रासायनिक खाद का उपयोग कर कम समय में कृषि अवशेषों पर उत्पादन किया जा सकता है | इसका उत्पदान एक कमरे / झोपडी में भी की जा सकती है | इसके अतिरिक्त मशरूम उत्पादन रोजगारोन्मुखी एवं प्रदूषण रहित है |

मशरूम के लिए कौन सी जलवायु उपयुक्त है?

मशरूम एक इंडोर फसल है। फसल के फलनकाय के समय तापमान 14-18°सेल्सियस व आर्द्रता 85 प्रतिशत रखी जाती है। तापक्रम के अनुसार मुख्यत: 03 प्रकार के मशरूम की खेती विभिन्न तापक्रमों पर उगाकर वर्ष भर भर मशरूम की खेती की जा सकती है | उदहारण स्वरूप ओयस्टर मशरूम (न्यूनतम 20 डिग्री एवं अधिकतम 30 डिग्री) | बटन मशरूम (न्यूनतम 15 डिग्री एवं अधिकतम 20 डिग्री फसल उत्पादन हेतु एवं बुआई के समय न्यूनतम 20 डिग्री एवं अधिकतम 25 डिग्री) तथा दुधिया मशरूम (न्यूनतम 30 डिग्री एवं अधिकतम 35 डिग्री) पर उगाया जा सकता है | 

उर्वरक की आवश्यकता ?

गेहूँ/पुआल की तूड़ी/मुर्गी की बीठ/गेहूँ की चैकर, यूरिया तथा जिप्सम का मिश्रण तैयार करके तैयार खाद पर मशरूम  उगाई जाती है। खुम्ब का बीज (स्पॅन) गेहूँ के दानों से तैयार किया जाता है।

मशरूम  की खेती के लिए कौन सी सामान्य आवष्यकता पड़ती है?

मशरूम  एक इंडोर फसल होने के कारण इसके लिए नियंत्रित तापमान और आर्द्रता की आवष्यता पड़ती है। (तापमान 14-18°सेल्सियस व आर्द्रता 85 प्रतिषत रखी जाती है। )

शाकाहारी अथवा मांसाहारी?

मशरूम एक शाकाहारी फसल है, मशरूम पौष्टिक होते हैं, प्रोटीन से भरपूर होते हैं, रेषा व फोलिक एसिड सामग्री होती है जो आमतौर पर सब्जियों व अमीनो एसिड में नहीं होती व मनुष्य के खाने योग्य अन्न में अनुपस्थित रहती है।

 बाजार क्षमता क्या है?

मशरूम की खेती विश्व के 100 से अधिक देशों में की जाती है | इसका उत्पादन विश्व में 40 मिलियन मीट्रिक टन का है | चीन मशरूम उत्पादक देश में 33 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ अग्रिम स्थान रखता है , जो विश्व के कुल उत्पादन के 80 प्रतिशत से भी अधिक है | भारत में मशरूम का उत्पादन 2.10 लाख मीट्रिक टन है | जो दुनियाभर में उत्पादन का बहुत ही कम है जिससे यह कहा जा सकता है की भारत में मशरूम की बाजार में सम्भावना बहुत अधिक है | मशरूम अब काफी लोकप्रिय हो गए हैं व अब इसकी बाजार संभावनाएं बढ़ गई है। श्वेत बटन खुम्ब ताजे व डिब्बा बंद अथवा इसके सूप और आचार इत्यादि उत्पाद तैयार कर बेचे जा सकते हैं। ढींगरी मशरूम सूखाकर भी बेचे जा सकते हैं।

क्या मशरूम में मक्खियों से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

आप स्क्रीनिंग जाल दरवाजे और कृत्रिम सांस के साथ नायलोन अथवा लोहे की जाली (35 से 40 आकार की जाली), पीले रंग का प्रकाष व मिलाथीन अथवा दीवारों पर साईपरमेथरीन की स्प्रे से मक्खियों छुटकारा पा सकते हैं।

प्रशिक्षण कहाँ मिलेगा ?

देश के राज्यों में कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से सरकार द्वारा प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है जिसमें अलग-अलग समय पर मशरूम उत्पादन सम्बंधित अलग-अलग विषयों पर विशेषज्ञों के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है | इसके आलवा इच्छुक व्यक्ति अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से भी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं | आप प्रशिक्षण के लिए देश भर में स्थित कृषि विश्वविद्यालयों की जानकारी दी गई लिंक पर देख सकते हैं | https://kisansamadhan.com/do-you-want-to-cultivate-mushrooms-if-yes-then-this-information-will-be-very-useful-for-you/

कौन-कौन से उत्पाद मशरूम से तैयार किए जा सकते हैं?

आप मशरूम से आचार, सूप पाउडर, केंडी, बिस्कुट, बड़िया, मुरब्बा इत्यादि उत्पाद तैयार कर सकते हैं। खाद्य प्रसंस्करण में मशरूम के उत्पाद तैयार करने के लिए व्यक्ति प्रशिक्षण ले सकते हैं | 

क्या सरकार मशरूम  उत्पादन इकाई लगाने के लिए वित्तीय सहायता/सब्सिडी प्रदान करती है?

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के माध्यम से सरकार के द्वारा मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए योजना चलाई जा रही है | जिसके तहत अलग-अलग राज्य सरकारों के द्वारा किसानों को मशरूम उत्पादन के लिए सब्सिडी दी जाती है | इच्छुक व्यक्ति अपने जिले के उधानिकी विभाग या कृषि विभाग से योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं |  बैंक मशरूम उत्पादन इकाई, स्पाॅन उत्पादन इकाई और खाद बनाने की इकाई लगाने के लिए ऋण भी प्रदान करते हैं।

खाने की मशरूम कितने प्रकार के होते है?

श्वेत बटन खुम्ब, ढींगरी खुम्ब, काला चनपड़ा मशरूम , स्ट्रोफेरिया खुम्ब, दुधिया मशरूम , षिटाके इत्यादि कुछ खाने की मषरूमें हैं जो कि कृत्रिम रूप से उगाई जा सकती है। खाने वाली गुच्छी मशरूम  हिमाचल प्रदेश , जम्मू व कश्मीर तथा उत्तराखंड के ऊँचें पहाड़ों से एकत्रित की जाती है ।

क्या मशरूम में बीमारियां लगती हैं?

हाँ, अन्य फसलों की तरह ही मशरूम की फसल में कई प्रकार के रोग लगते हैं | इसकी जानकारी मशरूम उत्पादक को होना जरुरी है | मशरूम में होने वाले रोग इस प्रकार है :-

  • गीला बुलबुला रोग
  • सुखा बुलबुला रोग
  • हरा फफूंद रोग
  • जाला रोग
  • जैतूनी हरा फफूंद
  • बैक्टीरियल ब्लोच रोग
प्रतिस्पर्धी फफूंद
  • आभासी ट्रफल
  • पीला फफूंद
  • भुरालेप फफूंद
  • इंक केप
मशरूम की मक्खियाँ और सूत्र कृमि
  • फोरिड मक्खी
  • सेसिड मक्खी
  • सियारिड मक्खी

मशरूम की खेती से कितनी आय प्राप्त की जा सकती है ? 

यदि 2000 वर्ग फीट में तीनों मशरूम की खेती साल भर की जाये तो 50 – 60 क्विंटल मशरूम प्राप्त करके 30 – 35 हजार रूपये प्रति माह आमदनी प्राप्त की जा सकती है | इसके अलावा एक तरफ मशरूम खाने से कुपोषण दूर होता है तथा दूसरी तरफ आय का प्रमुख स्त्रोत है | इसके अलावा शिटाके मशरूम एवं हेरेशियम मशरूम की प्रजातियों में विभिन्न औषधीय गुण भी पाये जाते हैं |

कृषि राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में किसानों के लिए चल रही योजनाओ की जानकारी दी ।

कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में किसानों के लिए चल रही योजनाओ की जानकारी दी ।

सॉयल हेल्थ कार्ड (एसएचसी) योजना

जिससे किसान अपनी मिट्टी में उपलब्ध बड़े और छोटे पोषक तत्वों का पता लगा सकते हैं। इससे उर्वरकों का उचित प्रयोग करने और मिट्टी की उर्वरता सुधारने में मदद मिलेगी।

नीम कोटिंग वाले यूरिया को बढ़ावा दिया गया है

ताकि यूरिया के इस्तेमाल को नियंत्रित किया जा सके, फसल के लिए इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके और उर्वरक की लागत कम की जा सके। घरेलू तौर पर निर्मित और आयातित यूरिया की संपूर्ण मात्रा अब नीम कोटिंग वाली है।

परंपरागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)

को लागू किया जा रहा है ताकि देश में जैव कृषि को बढ़ावा मिल सके। इससे मिट्टी की सेहत और जैव पदार्थ तत्वों को सुधारने तथा किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई (पीएमकेएसवाई) योजना

को लागू किया जा रहा है ताकि सिंचाई वाले क्षेत्र को बढ़ाया जा सके, जिसमें किसी भी सूरत में सिंचाई की व्यवस्था हो, पानी की बर्बादी कम हो, पानी का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके।

राष्ट्रीय कृषि विपणन योजना (ई-एनएएम)

की शुरूआत 04.2016 को की गई थी। इस योजना से राष्ट्रीय स्तर पर ई-विपणन मंच की शुरूआत हो सकेगी और ऐसा बुनियादी ढांचा तैयार होगा जिससे देश के 585 नियमित बाजारों में मार्च 2018 तक ई-विपणन की सुविधा हो सकेगी। अब तक 13 राज्यों के 455 बाजारों को ई-एनएएम से जोड़ा गया है। यह नवाचार विपणन प्रक्रिया बेहतर मूल्य दिलाने, पारदर्शिता लाने और प्रतिस्पर्धा कायम करने में मदद करेगी, जिससे किसानों को अपने उत्पादो के लिए बेहतर पारिश्रमिक मिल सकेगा और ‘एक राष्ट्र एक बाजार’ की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)

को खरीफ मौसम 2016 से लागू किया गया और यह कम प्रीमियम पर किसानों के लिए उपलब्ध है। इस योजना से कुछ मामलो में कटाई के बाद के जोखिमों सहित फसल चक्र के सभी चरणों के लिए बीमा सुरक्षा प्रदान की जाएगी।

सरकार 3 लाख रुपये तक के अल्प अवधि फसल

ऋण पर 3 प्रतिशत दर से ब्याज रियायत प्रदान करती है। वर्तमान में किसानों को 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर से ऋण उपलब्ध है जिसे तुरन्त भुगतान करने पर 4 प्रतिशत तक कम कर दिया जाता है। ब्याज रियायत योजना 2016-17 के अंतर्गत, प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में किसानों को राहत प्रदान करने के लिए 2 प्रतिशत की ब्याज रियायत पहले वर्ष के लिए बैंकों में उपलब्ध रहेगी। किसानों द्वारा मजबूरी में अपने उत्पाद बेचने को हतोत्साहित करने और उन्हें अपने उत्पाद भंडार गृहों की रसीद के साथ भंडार गृहों में रखने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे छोटे और मझौले किसानों को ब्याज रियायत का लाभ मिलेगा, जिनके पास फसल कटाई के बाद के 6 महीनों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड होंगे।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई)

को सरकार उनकी जरूरतों के मुताबिक राज्यों में लागू कर सकेगी, जिसके लिए राज्य में उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। राज्यों को उऩकी जरूरतों, प्राथमिकताओं और कृषि-जलवायु जरूरतों के अनुसार योजना के अंतर्गत परियोजनाओँ/कार्यक्रमों के चयन, योजना की मंजूरी और उऩ्हें अमल में लाने के लिए लचीलापन और स्वयत्ता प्रदान की गई है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम),

केन्द्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत 29 राज्यों के 638 जिलों में एनएफएसएम दाल, 25 राज्यों के 194 जिलों में एनएफएसएम चावल, 11 राज्यों के 126 जिलों में एनएफएसएम गेहूं और देश के 28 राज्यों के 265 जिलों में एनएफएसएम मोटा अनाज लागू की गई है ताकि चावल, गेहूं, दालों, मोटे अऩाजों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सके।

एनएफएसएम के अंतर्गत किसानों को बीजों के वितरण (एचवाईवी/हाईब्रिड), बीजों के उत्पादन (केवल दालों के), आईएनएम और आईपीएम तकनीकों, संसाधन संरक्षण प्रौद्योगिकीयों/उपकणों, प्रभावी जल प्रयोग साधन, फसल प्रणाली जो किसानों को प्रशिक्षण देने पर आधारित है, को लागू किया जा रहा है।

राष्ट्रीय तिलहन और तेल (एनएमओओपी) मिशन

कार्यक्रम 2014-15 से लागू है। इसका उद्देश्य खाद्य तेलों की घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए तिलहनों का उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है। इस मिशन की विभिन्न कार्यक्रमों को राज्य कृषि/बागवानी विभाग के जरिये लागू किया जा रहा है।

बागवानी के समन्वित विकास के लिए मिशन (एमआईडीएच),

केन्द्र प्रायोजित योजना फलों, सब्जियों के जड़ और कन्द फसलों, मशरूम, मसालों, फूलों, सुगंध वाले वनस्पति,नारियल, काजू, कोको और बांस सहित बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए 2014-15 से लागू है। इस मिशन में ऱाष्ट्रीय बागवानी मिशन, पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, नारियल विकास बोर्ड और बागवानी के लिए केन्द्रीय संस्थान, नागालैंड को शामिल कर दिया गया है।

किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए अऩ्य कदम इस प्रकार हैः

कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण)

अधिनियम 2017 को तैयार किया जिसे राज्यों के संबद्ध अधिनियमों के जरिये उनके द्वारा अपनाने के लिए 04.2017 को जारी कर दिया गया। यह अधिनियम निजी बाजारों, प्रत्यक्ष विपणन, किसान उपभोक्ता बाजारों, विशेष वस्तु बाजारों सहित वर्तमान एपीएमसी नियमित बाजार के अलावा वैकल्पिक बाजारों का विकल्प प्रदान करता है ताकि उत्पादक और खरीददार के बीच बिचौलियों की संख्या कम की जा सके और उपभोक्ता के रुपए में किसान का हिस्सा बढ़ सके।

सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत गेहूं और धान की खरीद

सरकार ने राज्यों/ संघ शासित प्रदेशों के अनुरोध पर कृषि और बागवानी से जुड़ी उन वस्तुओं की खरीद के लिए बाजार हस्ताक्षेप योजना लागू की है जो ऩ्यनतम समर्थन मूल्य योजना के अंतर्गत शामिल नहीं है। बाजार हस्ताक्षेप योजना इन फसलों की पैदावार करने वालों को संरक्षण प्रदान करने के लिए लागू की गई है ताकि वह अच्छी फसल होने पर मजबूरी में कम दाम पर अपनी फसलों को न बेचें।

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य खरीफ और रबी दोनों तरह की फसलों के लिए अधिसूचित होता है जो कृषि आयोग की लागत और मूल्यों के बारे में सिफारिशों पर आधारित होता है। आयोग फसलों की लागत के बारे में आंकडे एकत्र करके उनकी विश्लेषण करता है और न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करता है।
  • देश में दालों और तिलहनों की फसलों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के ऊपर खरीफ 2017-18 के लिए बोनस की घोषणा की है। सरकार ने पिछले वर्ष भी दालों और तिलहनों के मामले में न्यूनतम समर्थन मूल्य के ऊपर बोनस देने की पेशकश की थी।
  • सरकार के नेतृत्व में बाजार संबंधी अन्य हस्तक्षेप जैसे मूल्य स्थिरीकरण कोष और भारतीय खाद्य निगम का संचालन भी किसानों की आमदनी बढ़ाने का अतिरिक्त प्रयास है।
  • उपरोक्त के अलावा सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मधु मक्खियां रखने जैसे क्रियाकलापों पर ध्यान दे रही है।

कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री पुरूषोत्तम रूपाला ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।

बीमा कम्पनी फसल बीमा का निर्धारण कैसे करती है तथा किसान को प्रति हैक्टेयर रबी और खरीफ में कितना पैसा मिलेगा |

दावों का निर्धारण (व्यापक आपदाएँ)

किसान भाई आप लोग यह जानना चाहते होंगे की बीमा कम्पनी फसल बीमा की राशि कैसे निर्धारित करती है | आज आपको एक उदाहरण से यह बताते हैं की बीमा कंपनी बीमा का निर्धारण कैसे करती है | इस मध्यम से आप लोग अपने फसल की बीमा करवा सकते है |

पहले यह जानते है की बीमा राशि मिलता किसको है |

वास्तविक उपज विनिद्रिष्ट थ्रेशहोल्ड उपज के सापेक्ष कम पड़ती है तो परिभाषित क्षेत्र में उस फसल को उगाने वाले सभी बीमाकृत किसान उपज में उसी मात्रा की कमी से पीड़ित माने जाएँगे |

अब जानते हैं की किस प्रकार कम्पनी बीमा राशि की निर्धारण करती है |

( थ्रेशहोल्ड उपज – वास्तविक उपज ) ͟ ͟͟× बीमाकृत राशि

थ्रेशहोल्ड उपज                     

जंहा किसी अधिसूचित बीमा इकाई में फसल की थ्रेशहोल्ड उपज पिछले 7 वर्षों की औसत उपज (राज्य सरकार/केन्द्र शासित राज्य सरकार द्वारा यथा अधिसूचित अधिकतम 2 वर्षों को छोड़कर) एवं उस फसल के क्षतिपूर्ति स्तर से गुणा करने पर प्राप्त होगी |

उदाहरण :-

रबी 2014 – 15 फसल मौसम के लिए टीवाई से संबंधी एक्स संगणन बीमा इकाई क्षेत्र हेतु पिछले 7 वर्षों के लिए गेंहू की परिकल्पित उपज नीचे सरणी में दी गई है :-

वर्ष 2008 – 09 2009 – 10 2010 – 11 2011 – 12 2012 – 13 2013 – 14 2014 – 15
उपज (कि.ग्रा./हे. ) 4500 3750 20000 4250 1800 4300 1750

 

वर्ष 2010 – 11, 2012 -13 और 2014 – 15 को प्राकृतिक आपदा वर्ष घोषित किया गया था |

सात वर्षों की कुल उपज प्रति हैक्टेयर 22,350 कि.ग्रा. है और दो सर्वाधिक खराब आपदा वर्षों की प्रति हैक्टेयर 35 50 कि.ग्रा. अर्थात (1800+1750) कि.ग्रा. है | इस प्रकार , की गई व्यवस्था के अनुसार अधिकतम दो आपदा वर्षों को छोड़कर पिछले 7 वर्षों की औसत उपज 22350 – 3550 = 18,800 / 5 अर्थात 3760 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है | इस प्रकार, क्षतिपूर्ति स्तर 90 प्रतिशत, 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत के लिए थ्रेशहोल्ड उपज क्रमश: 3384, 3008 और 2632 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है |

नुकसान मूल्यांकन की समय सीमा और विवरण की प्रस्तुति

  1. सूचना प्राप्त होने की तारीख से 48 घंटों के भीतर नुकसान मूल्यांकन कर्ता की नियुकित |
  2. नुकसान मूल्यांकन कार्य को अगले 10 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा |
  3. किसान के दावों का निपटान / भुगतान का कार्य नुकसान मूल्यांकन विवरण की तारीख से अगले 15 दिनों के भीतर (बशर्ते प्रीमियम की प्राप्ति हो चुकी हो) के भीतर किया जाए |
  4. अधिसूचित बीमा इकाई में कुल बीमाकृत क्षेत्र का 25 प्रतिशत से अधिक होने पर अधिसूचित फसल के तहत प्रभावित क्षेत्र होने की स्थिति में सभी पात्र किसान (जिन्होंने अधिसूचित फसल के लिए बीमा लिया है और जो क्षतिग्रस्त हुआ है तथा विनिर्धारित समय के भीतर कृषिक्षेत्र में कोई आपदा के बारे में सूचना दी है) अधिसूचित बीमा इकाई में फसल कटाई उपरांत होने वाले नुकसान से ग्रस्त माने जाएँगे और उन्हें वित्तीय सहायता का पात्र मन जाएगा | नुकसान की प्रतिशतता बीमा कम्पनी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के नमूना सर्वेक्षण (यथा निर्धारित संयुक्त समिति द्वारा) की अपेक्षित प्रतिशतता द्वारा तय किया जाएगा |
  5. यदि क्षेत्र दृष्टिकोण आधारित (फसल कटाई प्रयोग पर आधारित) दावा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के दावों से अधिक है तो प्रभावित किसानों को विभिन्न दावों का अंतर देय होगा | यदि फसल कटाई के बाद का दावा अधिक है, तो प्रभावित किसानों से कोई भी वसूली आदि प्रक्रिया नहीं अपनाई जाएगी |

व्याख्या

  1. फसल के लिए बीमाकृत राशि = 50,000 रु.
  2. बीमा इकाई का प्रभावित क्षेत्र = 80 प्रतिशत (नमूना सर्वेक्षण का पात्र)
  3. बीमाकृत जोखिम के संचालन के कारण प्रभावित क्षेत्र / फील्डों में मूल्यांकन कृत नुकसान = 50 प्रतिशत
  4. फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के तहत देय दावे = 50,000 रु. × 50 प्रतिशत = 25,000 रु.
  5. मौसम के अंत तक विवरण कृत उपज में कमी = 60 प्रतिशत
  6. बीमा इकाई स्तर पर क्षेत्र दृष्टिकोण पपर आधरित अनुमानित दावा = 50,000 रु. × 60 प्रतिशत = 30,000 रु.
  7. मौसम के अंत में भुगतान योग्य शेष राशि = 30,000 रु. – 25,000 = 5,000 रु.

  नुकसान / दावों की विवरण का समय और पद्धति

  1. किसान सीधे बीमा कंपनी, संबंधित बैंक, स्थानीय कृषि विभाग, सरकारी / जिला पदाधिकारी अथवा नि:शुल्क दूरभाष संख्या वाले फोन के अनुसार बीमाकृत किसान द्वारा किसी को भी तत्काल रूप से सूचित किया जाए (48 घंटो के भीतर) |
  2. दी गई सूचना में सर्वेक्षणवार बीमाकृत फसल और प्रभावित रकबा का विवरण अवश्य होना चाहिए |
  3. किसान / बैंक द्वारा अगले 48 घंटों के भीतर प्रीमियम भुगतान सत्यापन की विवरण की जाए |

दावों का मूल्यांकन करने के लिए अपेक्षित दस्तावेज साक्ष्य

सभी दस्तावेज साक्ष्यों सहित विविधवत भरे गये दावों के भुगतान के प्रयोजनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा | तथापि, यदि सभी कालमों से संबंधित सूचना सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं है, तो अर्ध रूप में भरा गया प्रपत्र बीमा कम्पनी को भेज दिया जाएगा और बाद में नुकसान होने के 7 दिनों के भीतर पूर्णत: भरा हुआ प्रपत्र भेजा जा सकता है |

  • मोबाईल अनुप्रयोग यदि कोई है, के द्वारा तस्वीरें लेकर फसल नुकसान का साक्ष्य प्रस्तुत करना |
  • नुकसान और नुकसान की गहनता संबंधी घटना, यदि कोई है, को संपुष्ट करने के प्रयोजनार्थ स्थानीय अख़बार की खबर की प्रति और कोई अन्य उपलब्ध साक्ष्य प्रस्तुत किया जाएगा |

खरीब फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा करवाने  की आखरी तारीख 31 जुलाई तक ही हैI

स्त्रोत: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, भारत सरकार

कपास की फसल को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए किसान भाई करें यह उपाय

कपास की फसल को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए किसान भाई करें यह उपाय

 कपास की फसल में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग कैसे करे और कितनी मात्रा में करे?

खाद एवं उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करनी चाहिए यदि मृदा में कर्वानिक पदार्थो की कमी हो तो खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए इसके साथ साथ 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 30 किलो ग्राम फास्फोरस तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए तथा पोटाश की संस्तुत नहीं की गई है नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई पर करना चाहिए शेष नाइट्रोजन की मात्र का प्रयोग फूल प्रारम्भ होने पर व आधिक फूल आने पर जुलाई माह में दो बार में प्रयोग करना चाहिएI l

कपास की फसल में निराई गुड़ाई कब करे हमारे किसान भी और खरपतवारो पर किस प्रकार नियंत्रण करे?

पहली सूखी निराई गुड़ाई पहली सिचाई अर्थात 30 से 35 दिन से पहले करनी चाहिए इसके पश्चात फसल बढ़वार के समय कल्टीवेटर द्वारा तीन चार बार आड़े बेड़े गुड़ाई करनी चाहिए फूल व गूलर बनने पर कल्टीवेटर से गुड़ाई नहीं करनी चाहिए इन अवस्थाओ में खुर्पी द्वारा खरपतवार गुड़ाई करते हुए निकलना चाहिए जिससे की फूलो व गुलारो को गिरने से बचाया जा सकेIl

कपास की छटाई (प्रुनिग) कब और कैसे करनी चाहिए?

अत्यधिक व असामयिक वर्षा के कारण सामान्यता पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो 1.5 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पौधों की ऊपर वाली सभी शाखाओ की छटाई, सिकेटियर या  (कैची) के द्वारा कर देना चाहिए इस छटाई से कीटनाशको के छिडकाव में आसानी रहती है l

कपास की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हम किस प्रकार करे ?

कपास में शाकाणु झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट) तथा फफूंदी जनित रोग लगते है, इनके बचाव के लिए खड़ी फसल में वर्षा प्रारम्भ होने पर 1.25 ग्राम  कापरआक्सीक्लोराईड 50% घुलनशील चूर्ण व् 50 ग्राम एग्रीमाईसीन या 7.5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन प्रति हेक्टर  की दर से 600 -800 लीटर पानी में घोलकर दो छिडकाव 20 से 25 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए साथ ही उपचारित बीजो का ही बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिएI

खरपतवार नियंत्रण के लिए आधुनिक यंत्र

खरपतवार नियंत्रण के लिए आधुनिक यंत्र

खरपतवारों की रोकथाम से न केवल फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उसमें निहित प्रोटीन व अन्य लाभकारी तत्व एवं फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। प्राय: निंदाई करके इन्हें निकाल दिया जाता है। फसलों की निंदाई के लिए प्रयुक्त होने वाले कुछ यांत्रिक उपकरणों का विवरण दिया गया है-

स्वचालित रोटरी पावर वीडर

वीडर एक डीजल इंजन चालित यंत्र है। इंजन की पावर वी बेल्टदृपुली के द्वारा ग्राउंड व्हील को प्रेषित की जाती है। गहराई बनाए रखने के लिए इस यंत्र में पीछे एक पहिया लगाया गया है। रोटरी वीडींग अटेचमेंट द्वारा खरपतवार नष्ट करने की प्रक्रिया की जाती है।

रोटरी वीडर की विभिन्न पंक्तियों में प्रत्येक डिस्क पर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में घुमावदार ब्लेड लगे होते हैं। इन ब्लेड के घूमने से मिट्टी एवं घास आदि कटकर मिश्रित हो जाते हैं। रोटरी टिलर की 400 मि.मी. चौड़ाई में कार्य करने की क्षमता होती है तथा फसल क्षेत्र में मिट्टी एवं घास आदि को काटकर मिश्रित करने अथवा खरपतवार नष्ट करने हेतु गहराई आवश्यकतानुसार निर्धारित की जा सकती है।

इस यंत्र का प्रयोग गन्ना, मक्का, कपास, टमाटर, बैंगन और दलहन जैसी फसलें जिनमें पंक्तियों की बीच की दूरी 450 मि.मी. से ज्यादा है, में खरपतवार नियंत्रण हेतु किया जाता है। स्वीप ब्लेड, रिजर एवं ट्रॉली जैसे अटेचमेंट भी इस यंत्र के साथ लगाए जा सकते है। कार्य क्षमता 0.1-0.12 हे. प्रति घंटा है एवं इसकी कीमत रु. 60000 से रु. 80000 के बीच है।

कोनो वीडर

इस यंत्र में दो रोटर, फ्लोट, फ्रेम और हैंडल लगे होते है। रोटर त्रिशंकु आकार के होते हैं एवं इसकी सतह पर लंबाई मे चौरस दाँतेदार स्ट्रिप्स जुड़ी होती है। रोटर विपरीत अनुकूलनिय आगे-पीछे क्रम में लगे होते है। फ्लोट, रोटर और हैंडल फ्रेम के साथ जुड़े होते हैं।

फ्लोट कार्य की गहराई को नियंत्रित करते हैं तथा रोटर असेंबली को पोखर मिट्टी में धसने नहीं देते। कोनो वीडर दबाव प्रक्रिया से चालित किया जाता है। रोटर के अभिविन्यास मिट्टी के शीर्ष 3 से.मी. मे आगे पीछे संचालन करते है जिससे खरपतवार को जड़ से उखाडऩे मे मदद मिलती है। कोनो वीडर का प्रयोग पंक्तियुक्त धान की फसल में कुशलतापूर्वक खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है। यह आसानी से चलाया जा सकता है तथा यह पोखर मिट्टी मे नहीं धँसता। इस यंत्र की कार्य क्षमता लगभग 0.18 हेक्टेयर प्रतिदिन है।

ड्राईलैंड पेग वीडर

ड्राईलैंड वीडर (हुक टाईप) एक ऐसा हस्तचालित यंत्र है जो फसल की पंक्तियों के बीच खरपतवार को नष्ट करता है। इसमें एक रोलर होता है जिसमें लोहे की रॉड द्वारा फिट की गई दो डिस्क लगी होती है। रॉड पर छोटे समचतुर्भुज आकार के हुक कंपित (स्टेगर्ड) प्रकार से जुडे होते हंै। पूरी रोलर असेम्बली नरम लोहे से निर्मित होती है। रोलर असेम्बली के पीछे हैंडल के रॉड (भुजाएँ) पर ‘वीÓ आकारीय ब्लेड लगे होते है। कार्य की गहराई के अनुसार ब्लेड की ऊंचाई व्यवस्थित की जा सकती है। मशीन की भुजाएँ हैंडल के साथ जुड़ी होती है, जो पतले मजबूत पाईप से बनी होती है।

हैंडल की ऊंचाई भी चालक की आवश्यकतानुसार व्यवस्थित की जा सकती है। इस यंत्र को खरपतवार हटाने के लिए फसलों की पंक्तियों मे खड़ी हुई स्थिति में बार-बार धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित किया जाता है। समचतुर्भुजी आकारी हुक मिट्टी में गड़ाकर घुुमाव प्रक्रिया द्वारा मिट्टी को बारीक करते है। दबाने की स्थिति मे ब्लेड जमीन में घुसकर खरपतवार की जड़ों को काट देते हैं। इसका प्रयोग सब्जी, फलों के बागों मे तथा अंगूर उद्यानों मे खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है। यह भूमि की सख्त मिट्टी की परत को तोड़कर उसे उपजाऊ बनाने में भी सहायक है। इसकी कार्य क्षमता लगभग 0.05 हेक्टेयर प्रतिदिन होती है।

व्हील हैंड हो

‘व्हील हैंड हो’ एक व्यापक रूप में स्वीकार किया गया खरपतवार नियंत्रण का यंत्र है जो फसल की पंक्तियों के मध्य खरपतवार नियंत्रण हेतु उपयोग किया जाता है। यह एक लंबे हैंडल का यंत्र है जो आगे-पीछे धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित होता है। पहियों की संख्या एक या दो हो सकती है और पहियों का व्यास इसके डिजाईन के अनुसार होता है। इस यंत्र के फ्रेम में विभिन्न प्रकार की मिट्टी मे कार्य करने वाले पुर्जे जैसे: सीधे ब्लेड, प्रतिवर्ती ब्लेड, स्वीप, भी-ब्लेड, टाईन कल्टीवेटर, आयामी कुदाल, लघु आकारीय फरोअर, स्पाईक हैरो (रेक) आदि लगाने हेतु प्रावधान होता है।

यह यंत्र अकेले व्यक्ति द्वारा चालित होता है। इस औजार के सभी मिट्टी में कार्य करने वाले पुर्जे मध्यम कार्बन स्टील के बने होते हैं जो 40-45 एच.आर.सी. तक कठोर किए होते है।

मशीन के संचालन एवं कार्य की गहराई के लिए हैंडल की ऊंचाई को व्यवस्थित किया जाता है और व्हील को बार बार धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित किया जाता है जिससे मिट्टी में कार्य करने वाले पुर्जे फसलों की पंक्तियों की जमीन में धँसकर खरपतवार को कांटते या जड़ से उखाड़ते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा घास भी कटकर मिट्टी में दब जाती है। इसका प्रयोग पंक्तियुक्त सब्जी फसलों में तथा अन्य फसलों में निराई एवं खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है।

यदि आप एलोवेरा की कृषि करने का सोच रहें है तो पहले जानें यें महत्वपूर्ण बातें

एलोवेरा की कृषि के लिए महत्वपूर्ण बातें

वैसे तो एलोवेरा की खेती करना लाभकारी है बहुत से किसान एलोवेरा की खेती करके बहुत लाभ भी कमा रहें हैं, इसके बावजूद भी बहुत से किसान ऐसे हैं जो ऐलोवेरा की कृषि तो करना चाहते हैं पर कर नहीं पा रहें हैं क्योंकि भारत में एलोवेरा के विक्रय हेतु खुला बाजार उपलब्ध नहीं हैं | अनेक किसान फोन और मैसेज से एलोवेरा की कृषि एवं उसका विक्रय कंहा करे यह जानकारी मांगते हैं |

पिछले कुछ वर्षों में एलोवेरा के प्रोडक्ट की संख्या तेजी से बढ़ी है। कॉस्मेटिक, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने के हर्बल प्रोडक्ट और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी इसकी मांग बढ़ी है। यह तो सच हैं मांग तो बढ़ी है पर अभी तक किसानों को अच्छे से नहीं पता उसे बेचना किस प्रकार है और कैसे है |

तो आज हम आपको इस सम्बन्ध में कुछ जानकारी उपलब्ध कराते हैं |

किसान भाई एलोवेरा को दो प्रकार से बेच सकते हैं

  1. पत्तियां बेचकर
  2. पल्प बेचकर

अधिकांश किसान जो एलोवेरा की कृषि कर रहें है उन्होंने पहले से ही किसी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट कर लिया होता है उसके अनुसार उनकी उपज तैयार होने के बाद वो कंपनियां उनसे एलोवेरा की पत्तियां खरीद लेती हैं I कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगा ली है और वे स्वयं ही एलोवेरा का पल्प निकाल कर कंपनियों को कच्चे माल के रूप में बेच रहे हैं I

 जानें वो कोन सी कंपनियां हैं जिन्हें एलोवेरा की आवश्यकता होती है

  1. पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ, रिलायंस कई बड़ी कंपनियां हैं जिन्हें बड़ी मात्रा में एलोवेरा की जरुरत होती है एवं बहुत सी ऐसी छोटी कंपनियां है जो एलोवेरा की पत्ती से पल्प निकालकर अन्य बड़ी कंपनियों को बेचती है |
  2. आजकल हर्बल दवा बनाने वाली कंपनियों में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है |
  3. हेल्थकेयर, कॉस्मेटिक और टेक्सटाइल में भी एलोवेरा का इस्तेमाल किया जाता है |

शुरुआत में किसानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर खेती करना अधिक फायदेमंद होता है, कंपनियां किसानों से सीधे पल्प या पत्तियां दोनों में से किसी को भी खरीद सकती हैं यह किसान और कम्पनी के मध्य हुए कॉन्ट्रैक्ट पर निर्भर करता है |

वैसे यदि किसान भाई चाहें तो वे स्वयं ही पल्प निकालने या सीधे प्रोडक्ट बनाने का काम कर सकतें हैं I पल्प निकालकर बेचने पर 4 से 5 गुना ज्यादा मुनाफा होता है | एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान भी ट्रेनिंग देता है | एवं सम्बंधित राज्यों की विभिन्न एजेंसीयां भी समय समय पर ट्रेनिंग देती रहती हैं |

अनुमानित आय एवं व्यय

  • एक एकड़ में प्रथम वर्ष में 80 हजार से लेकर 1 लाख की अनुमानित लागत आती है
  • 4 से 7 रुपए किलो तक एलोवेरी की पत्तियां बिकती हैं यह दर किसान एवं कंपनी के मध्य हुए समझोते पर निर्भर करता है जबकि 3-4 रुपए प्रति पौधा मिलता है नर्सरी में एवं पल्प की अनुमानित कीमत 20-30 रुपए प्रति किलो है I
  • यदि खेती पूर्णतया वैज्ञानिक तरीके से की जाती है तो विशेषज्ञों के अनुसार एक एकड़ में करीब 15  हजार से 16 हज़ार तक पौधे लगते हैं।

 

मक्का की अधिक उपज के लिए किसान भाई करें यह उपाय

मक्का में किस उर्वरक की आवश्यकता होती है और किस तरह उसका प्रयोग किया जाये?

मात्रा:

मक्का की भरपूर उपज लेने के लिय संतुलित उर्वरकों क प्रयोग आवश्यक है। अतः कृषकों को मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहियें। यदि किसी कारणवंश मृदा परीक्षण न हुआ हो तो देर से पकने वाली संकर एवं संकुल प्रजातियां के लिये क्रमशः १२०: ६०:३०:३० नेत्रजन फास्फोरस एवं पोटाश  प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहियें। गोबर की खाद १० टन प्रति हे. प्रयोग करने पर २५% नत्रजन की मात्रा कम कर देनी चाहिये।

विधि:

बुवाई के एक तिहाई नत्रजन, पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश कूड़ों  में बीज के नीचे डालना चाहिये। अवशेष नत्रजन  दो बार मे बराबर-२ मात्रा में टापड्रेसिंग के रूप में करें। पहली टापड्रेसिंग बोने के २५-३० दिन बाद (निराई के तुरन्त बाद) एवं दूसरी नर मंजरी निकलते समय करें। यह अवस्था संकर मक्का मे बुवाई के ५०-६० दिन बाद एवं संकुल में ४५-५० दिन बाद आती है।

खरपतवार नियंत्रण

मक्का की खेती में निराई गुडाई का अधिक महत्व है। निराई-गुडाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है। जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ का एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के १५ दिन बाद कर देना चाहिये। और दूसरी नियंत्रण ३५-४० दिन बाद करनी चाहियें।

मक्का में खरपतवारों को नष्ट करने के लिये एट्रजीन (५०%- डब्लू.पी. १.५-२.० किग्रा.प्रति हें घुलनशील चूर्ण का ७००-८०० लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हे। एलाक्लोर ५० ई.सी. ४ से ५ लीटर बुवाई के तुरन्त बाद जमाव के पूर्व ७००-८०० लीटर पानी में मिलाकर भी प्रयोग किया जा सकता है। यदि मक्का के बाद की खेती करनी हो तो एट्राजीन का प्रयोग न करे।

मक्का में साधारणतया कोन से रोग लगते हैं, उनकी पहचान किस प्रकार करें एवं रोग का उपचार किस प्रकार करें?

तुलासिता रोग:

पहचान:

इस रोग में पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती है। पत्तियों के नीचे की सतह पर सफेद रूई के समान फफूंदी दिखाई देती है। ये ध्ब्बे बाद में गहरे अथवा लाल भूरे पड़ जाते है। रोगी पौधो में भुट्‌टे कम बनते है। या बनते ही नही है।

उपचार:

इनकी रोकथाम हेतु जिंक मैग्नीज कार्बमेट या जीरम ८० प्रतिशत २ किलोग्राम अथवा जीरम २७ प्रतिशत के ३ ली०/हे० की दर से द्दिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोलकर करना चाहिये।

पत्तियों का झुलसा रोग:

पहचान

इस रोग में पत्तियों पर बड़े लम्बे अथवा कुद्द अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। रोग के उग्र होने पर पत्तियों झुलस कर सूख जाती है।

उपचार:

इसकी रोकथाम हेतु जिनेब या जिंक मैगनीज कार्बमेट २ किलोग्राम अथवा जीरम ८० प्रतिशत २ ली० अथवा जीरम २७ प्रतिशत ३ लीटर/हे० की दर से  छिड़काव करना चाहिये।

सूत्र कृमियों की रोकथाम के लिये गर्मी की गहरी जुताई करें एवं बुवाई के एम सप्ताह पूर्व खेत में १० किग्रा० फोरट १० जी. फैलाकर मिला दें।

तना सडन

पहचान

यह रोग अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में लगता है। इसमें तने की पोरियों पर जलीय धब्बे दिखाई देते है। जो शीघ्र ही सड़ने लगते है। और उससे दुर्गन्ध आती है। पत्तियों पीली पड़कर सूख जाती है।

उपचार

रोग दिखाई देने पर १५ ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन अथवा ६० ग्राम एग्रोमाइसीन प्रति हे० की दर से छिड़काव  करने से अधिक लाभ होता है।

मक्का में लगने वाले कीट कोन-कोन से हैं एवं उनपर नियंत्रण किस प्रकार किया जाये ?

 तना छेद्क:

पहचान

इस कीट की सुड़ियाँ  तनों में द्देद करके अन्दर ही खाती रहती है। जिससे मृतभोग बनता है। और हवा चलने पर बीच से टूट जाता है।

उपचार

  • १. इसकी रोकथाम हेतु बुवाई के २० से २५ दिन बाद लिन्डेल ६ प्रतिशत गे्रन्यूल २० किलोग्राम अथवा कार्बोयूरान ३ प्रतिशत ग्रेन्यूल २० किलोग्राम अथवा (लिन्डेल + कार्बराइल) (सेवीडाल ४.४ जी.) २५.०० किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिये।
  • २. बुवाई के १५-२०  दिन  के बाद निम्न में से किसी एक रसायन का छिड़काव  करना चाहियें ।
  1. इमिडाक्लोप्रिड ६ मिली./किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें ।
  2. कार्बेरिल ५०% घुलनशील चूर्ण १.५ किग्रा./ हे. ।
  3. फेनिट्रोथियांन ५० ई .सी. ५००-७०० मिली./हे. ।
  4. क्यूनालफास २५ ई.सी. २ लीटर/हे.।
  5. इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.५ लीटर/हे.।
  6. ट्रइकोग्रामा परजीवी ५०००० प्रति हे. की दर से खेत मे अंकुरण के ८ दिन बाद ५-६ दिन के अंतर पर दुहरायें, खेत में द्दोड़ना चाहिये।

पत्ती लपेटक कीट

पहचान:

इस कीट की सुड़ियाँ  पत्ती के दोनो किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेटकर अंदर से खाती है।

उपचार:

उपयुक्त कीटनाशक रसायनों में  से किसी एक का प्रयोग करना करें ।

  1. इमिडाक्लोप्रिड ६ मिली./किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें ।
  2. कार्बेरिल ५०% घुलनशील चूर्ण १.५ किग्रा./ हे. ।
  3. फेनिट्रोथियांन ५० ई .सी. ५००-७०० मिली./हे. ।
  4. क्यूनालफास २५ ई.सी. २ लीटर/हे.।

टिड्‌डा :

पहचान:

इस कीट के शिशु तथा प्रौढ दोनो ही पत्तियों को खाकर हानि पहुंचाते है।

उपचारः

इसकी रोकथाम हेतु मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत २०-२५ किलोग्राम का बुरकाव प्रति हेक्टर करना चाहियें।

 भुड़ली (कमला कीट):

पहचान:

इस कीट की गिडारे पत्तियों को बहुत तेजी से खाती है। और फसल को काफी हानि पहुचाती है। इसके शरीर पर रोये होते है।

उपचार:

इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक रसायन का बुरकाव या छिड़काव  प्रति हेक्टर करना चाहियें।

  1. मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत चूर्ण २० किलोग्राम।
  2. इन्डोसल्फान ४ प्रतिशत धूल २० किलोग्राम।
  3. क्यूनालफास १.५ प्रतिशत धूल २० किलोग्राम।
  4. इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.२५ लीटर।
  5. डाइक्लोरवास ७० ई.सी. ६५० मि. लीटर।
  6. क्लोरपायरीफास २० ई.सी. १.० लीटर

किसान समाधान से जुड़े

217,837फैंसलाइक करें
0फॉलोवरफॉलो करें
878फॉलोवरफॉलो करें
53,600सब्सक्राइबर्ससब्सक्राइब करें
डाउनलोड एप