सिंचाई के लिए नहरों में पानी देने के लिए जल संसाधन विभाग ने जारी की एसओपी, किसानों को इस समय मिलेगा पानी

बीते कुछ वर्षों से समय पर बारिश नहीं होने के चलते किसानों की खरीफ फसलों को काफी नुकसान हो रहा है। जिसको देखते हुए सरकार ने किसानों को नहरों से समय पर पानी देने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए जल संसाधन विभाग ने किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने के लिए मानक संचालन नियमावली (एसओपी) जारी की है। इसमें किसानों को गरमा, रबी और खरीफ सीजन में पानी दिया जाएगा।

बिहार सरकार ने इस साल राज्य में किसानों को सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता हर हाल में सुनिश्चित करने की सरकार के स्तर पर बड़ी पहल शुरू की है। इसके तहत किसानों को नहरों से पानी की उपलब्धता और सहज हो जाएगा। उन्हें जरूरत के अनुसार फसलों की सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। जल संसाधन विभाग ने इसके लिए मानक संचालन नियमावली (एसओपी) तैयार की है।

नहरों की रोजाना की जाएगी मॉनिटरिंग

जल संसाधन विभाग के द्वारा जारी एसओपी में अब नहरों की रोजाना मॉनिटरिंग की जाएगी। ख़ासकर सिंचाई अवधि में उससे पानी की आपूर्ति सहजता से नज़र रखी जा सकेगी। नये एसओपी में कनीय अभियंता से लेकर मुख्य अभियंता तक की जिम्मेदारी तय की गई है। कनीय अभियंता को बड़ी जिम्मेदारी सौपी गई है। उन्हें प्रतिदिन सभी नहरों और नहर संरचनाओं का निरीक्षण करना होगा। यही नहीं नहर संचालन और नियमित रख-रखाव की गतिविधियों को कार्यान्वयित भी करनी है।

नहर टूटने, सीपेज की स्थिति में भी वरीय अधिकारियों को सूचित करने के साथ-साथ नहरों की मरम्मत और उन्हें सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है। नहरों की साफ-सफाई व जल प्रवाह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं दी है। उनके ऊपर के इंजीनियर व अधिकारियों को भी नहरों की नियमित निगरानी करने को कहा गया है।

नहरों में कब दिया जाएगा पानी

जल संसाधन विभाग द्वारा प्रदेश की अलग-अलग नहर प्रणालियों के ज़रिए किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने की तारीखों का निर्धारण कर दिया है। जो इस प्रकार है:

  • किसानों को सोन नहर से खरीफ सीजन की फसलों की सिंचाई के लिए 1 जून से 31 अक्टूबर एवं रबी फसलों की सिंचाई के लिए 20 दिसंबर से 31 मार्च तक पानी दिया जाएगा।
  • वहीं कोसी-गंडक नहर प्रणाली से किसानों को गरमा और खरीफ सीजन के लिए 25 अप्रैल से 25 अक्टूबर और रबी सीजन के लिए 20 दिसंबर से 25 मार्च तक सिंचाई के लिए पानी दिया जाएगा।

इन जिलों के किसानों को मिलेगा लाभ

कोसी नहर प्रणाली से सुपौल, सहरसा, खगड़िया, पूर्णिया, अररिया, कटिहार, मधेपुरा व दरभंगा जिले को सिंचाई के लिए पानी मिलता है। वहीं गंडक नहर से पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, वैशाली, गोपालगंज, सीवान और सारण जिले को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। इसके अलावा सोन नहर से औरंगाबाद, गया, अरवल, पटना, रोहतास, कैमूर, बक्सर व भोजपुर जिले के सिंचाई के लिए पानी मिलता है।

दरअसल सूबे में 25 अप्रैल से कोसी-गंडक नहर प्रणाली से नहरों से सिंचाई शुरू हो गई है। यहीं नहीं 1 जून से सोन नदी से सिंचाई के लिए पानी देने की प्रक्रिया शुरू होनी है। इसलिए विभाग अपने स्तर से सिंचाई को लेकर विस्तृत कार्य योजना बनाने में जुटा है।

तेज गर्मी और लू में गौवंश की देखभाल के लिए गोपालन विभाग ने जारी की एडवाइजरी

अभी देश में तेज गर्मी और लू का दौर चल रहा है। जिसका असर मानव स्वास्थ्य के साथ ही पशुओं पर भी पड़ता है। ऐसे में पशुओं को सुरक्षित रखने के लिए गोपालन विभाग की ओर से एडवाइज़री जारी की गई है। गोपालन विभाग राजस्थान गर्मी तथा लू के प्रकोप से गौशालाओं में संधारित गौवंश को बचाने के लिए विभाग की ओर से विस्तृत एडवाइजरी जारी की गई है, जिसमें विशेष रूप से पशुओं के लिए स्वच्छ जल की व्यवस्था किए जाने हेतु निर्देश जारी किए गए हैं।

बता दें कि राज्य में संचालित गौशालाओं में संधारित गौवंश के संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं और इनके संचालन के लिए इन्हें अनुदान भी दिया जाता है। इन गौशालाओं का संचालन स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा दानदाताओं, भामाशाहों और जनसहयोग के माध्यम से किया जाता है।

गौवंश की देखभाल के लिए जारी की गई है एडवाजरी

गोपालन विभाग की निदेशक डॉ. शालिनी शर्मा ने बताया कि बदलते हुए मौसम में हर बार गौशालाओं को इस तरह के दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं। अभी गर्मी के मौसम में बढ़ते हुए तापमान और संभावित लू के प्रकोप से गौवंश को बचाने के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की जिसमें गौवंश के लिए पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी, चारा, भूसा एवं अन्य पशु आहार, गौवंश को ताप एवं लू से बचाने के लिए छाया आदि की समुचित व्यवस्था करने के निर्देश गौशालाओं को जारी किए गए हैं।

साथ ही उन्हें बीमार, अशक्त एवं गर्भवती गौवंश की उचित देखभाल एवं आवश्यकता पड़ने पर चिकित्सकीय उपचार की व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि मृत गौवंश के शव का निस्तारण यथाशीघ्र सुरक्षित एवं सम्मानजनक तरीके से किया जाना अत्यंत आवश्यक है जिससे गर्मी के कारण बीमारी का खतरा न हो इसके लिए भी गौशालाओं को लिखा गया है।

इन किसानों को नहीं मिलेगा सरकारी योजनाओं का लाभ, रजिस्ट्रेशन किए जा रहे हैं ब्लॉक

फसल अवशेष या पराली जलाने से होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए प्रशासन द्वारा पराली जलाने को प्रतिबंधित किया गया है। ऐसे में जो भी किसान फ़सल अवशेष या पराली जला रहे है उनके खिलाफ कार्यवाही की जा रही है। बिहार में पराली जलाने वाले गया जिले के 21 किसानों के रजिस्ट्रेशन ब्लॉक कर दिए गए है। अब इन किसानों को सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। वहीं दूसरी तरफ अपने कार्य में लापरवाही बरतने वाले 4 कृषि समन्वयकों और एक सहायक तकनीकी प्रबंधन के वेतन पर भी रोक लगा दी गई है।

पराली नहीं जलाने के लिए सभी प्रखंडों में फ्लैक्स बैनर/होर्डिंग लगाया गया है। बार-बार जिला पदाधिकारी, की ओर से भी निर्देश जारी किया जा रहा है। इस कड़ी में कुल 21 किसानों के विरुद्ध पराली जलाने की सूचना प्राप्त हुई और इन पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया गया। वहीं बिना जिला प्रशासक की अनुमति पत्र (पास) के कंबाइन हार्वेस्टर चलाने वाले लोगों पर मालिक के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्देश दिया गया है।

वहीं, कार्य में लापरवाही बरतने वाले 4 कृषि समन्वयक, 1 सहायक तकनीकी प्रबंधक का वेतन अवरुद्ध किया गया है। यह भी कहा गया है कि जिन पंचायतों में फसल अवशेष पराली जलाने की घटना होगी वहाँ के संबंधित पंचायत के कृषि कर्मियों के विरुद्ध आरोप गठित कर विभागीय कार्यवाही की जाएगी।

किसानों को नहीं मिलेगा योजनाओं का लाभ

पराली जलाने वाले किसानों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ भी नहीं दिया जाएगा। किसान अपने पंजीकरण संख्या की सहायता से ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, कृषि इनपुट अनुदान, बीज अनुदान, कृषि यंत्रों पर अनुदान ले सकते हैं। इसके अलावा पैक्सों को धान/गेहूं आदि की बिक्री हेतु ऑनलाइन सिर्फ वे किसान कर सकते हैं जिन्हें किसान पंजीकरण संख्या सरकार द्वारा दी गई है। फसल अवशेष जलाने के कारण जिन किसानों का पंजीकरण अवरुद्ध कर दिया गया वे अब इन योजनाओं का लाभ नहीं ले पाएंगे।

खेत की मिट्टी को होता है नुकसान

ज़िला कृषि अधिकारी ने कहा कि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद कुछ किसान फ़सल अवशेष जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। फसल अवशेष जलाने से मिट्टी, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हमारी मिट्टी में पहले से ही जैविक कॉर्बन कम है। फसल अवशेष जलाने से जैविक कॉर्बन भी जलकर नष्ट हो जाती है। जिन खेतों में फसल अवशेष जलाया जाता है उन खेतों में मौजूद सभी लाभदायक सूक्ष्मजीव भी मर जाते हैं। फसल अवशेष जलाने से सांस लेने में तकलीफ, आँखों में जलन तथा नाक एवं गले की समस्या बढ़ती है। ऐसे में बार-बार किसानों को जागरूक करने के बाद भी फसल अवशेष जलाने वाले किसानों की पंजीकरण संख्या ब्लॉक कर दी गई है।

तरबूज की खेती से किसान कमा रहे हैं लाखों रुपये का मुनाफा

गर्मी के दिनों में लोगों द्वारा तरबूज और खरबूज खूब पसंद किया जाता है। तरबूज की माँग को देखते हुए आजकल किसानों द्वारा भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है क्योंकि किसानों के लिए कम समय में अच्छी कमाई का एक ज़रिया है। इस कड़ी में राजस्थान के दौसा जिले के किसान तरबूज, खरबूजा सहित विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियों की खेती करके लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं।

तीन से चार महीने में तैयार हो जाती है फ़सल

मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने के लिए भी किसान तरबूज की खेती करते हैं। इसकी खेती के लिए लगभग 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान और रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। तरबूज की फसल रोपाई के तीन चार महीने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी फसल कम समय और कम खाद और कम पानी से ही तैयार हो जाती है। किसानों को केवल समय-समय पर कीट रोगों से बचाव के लिए दवाओं का छिड़काव करना होता है। दौसा के कृषि अधिकारी अशोक कुमार मीना ने बताया कि इस वर्ष जिले में लगभग 250 बीघा भूमि पर तरबूज, खरबूजा और सब्जियों की खेती की जा रही है। फसल चक्र के रूप में भी बागवानी फसलों की खेती करना किसानों के लिए फायदेमंद है।

प्रति बीघा दो लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं किसान

जिले के किसानों ने जानकारी देते हुए बताया कि अप्रैल महीने में आने वाले तरबूज की खेती जनवरी-फरवरी में शुरू हो जाती है। लो-टनल एवं सरकण्डे लगाकर पौधों को कड़ाके की ठंड से बचाया जाता है। इसके अलावा पानी की बचत करने के लिए ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जाती है। इससे उन्हें एक बीघा में लगभग 2 लाख रुपये तक की आय प्राप्त हो जाती है।

मोबाइल पर किसानों को दिया जा रहा है मृदा स्वास्थ्य कार्ड, योजना में बिहार ने मारी बाजी

मिट्टी की सेहत के प्रति किसानों को जागरूक करने और उसके अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना चलाई जा रही है। योजना के अंर्तगत किसानों के खेतों की मिट्टी के नमूनों की जाँच की जाती है। जिसके बाद किसानों को उनके खेत की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की जानकारी के साथ ही फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के छिड़काव की अनुशंसा की जाती है।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना में इस वर्ष बिहार सरकार ने बाजी मार ली है। बिहार के कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने बताया कि यह गौरव का विषय है कि राष्ट्रीय स्तर पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के द्वारा बिहार को वित्तीय वर्ष 2023-24 अन्तर्गत मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना के तहत सभी राज्यों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है।

किसानों को मोबाइल पर भेजा जा रहा है मृदा स्वास्थ्य कार्ड

कृषि विभाग के सचिव ने बताया कि केंद्र प्रायोजित मृदा स्वास्थ्य कार्ड एवं उर्वरता योजना वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिहार राज्य में 2 लाख मिट्टी नमूनों का संग्रहण, जाँच और मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण का लक्ष्य रखा था जिसके विरुद्ध कृषि विभाग द्वारा शत प्रतिशत मिट्टी नमूना संग्रहण, जाँच तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया गया। उन्होंने बताया कि साल 2023-24 से बिहार के किसानों को उनके व्हाट्सएप पर अनुशंसा भेजी जा रही है।

ऑनलाइन मृदा स्वास्थ्य कार्ड में 100 से अधिक फसलों का चयन का विकल्प दिया गया है। इसके अतिरिक्त मृदा स्वास्थ्य कार्ड पर क्यूआर कोड भी उपलब्ध कराया गया जिसमें मोबाइल फोन से स्कैन करते ही संबंधित कृषक तथा उनके खेत की मिट्टी की सारी सूचनाएँ मिल जाती है।

सभी जिलों में हैं मिट्टी जाँच प्रयोगशालाएँ

कृषि सचिव ने जानकारी देते हुए बताया कि बिहार के सभी 38 जिलों में स्थापित जिलास्तरीय मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं का एनबीएल से मान्यता प्राप्त करने के क्रम में सभी मिट्टी जाँच प्रयोगशालाओं के द्वारा प्रोफ़िशियेंसी टेस्ट में उत्तीर्णता प्राप्त की गई है। जामबंदी नक्शा की तैयारी के क्रम में भी राज्य के उपलब्धि की सराहना की गई है। इस योजना अंतर्गत वर्ष 2023-24 में सहरसा, भागलपुर एवं मुजफ्फरपुर में एक-एक उर्वरक गुण नियंत्रण प्रयोगशाला की स्थापना की गई है। इसके अतिरिक्त मुंगेर जिला अन्तर्गत तारापुर अनुमंडल, गया जिला अन्तर्गत बोधगया तथा भागलपुर जिला अंर्तगत नवगछिया अनुमंडल में एक-एक अनुमंडलीय स्तरीय मिट्टी जाँच प्रयोगशाला भी स्थापित की गई हैं।

फसल उपयुक्तता का मैप किया जा रहा है तैयार

बिहार कृषि विभाग द्वारा मिट्टी जाँच नमूनों के आधार पर कैडेस्टल मैप पर विभिन्न प्रकार के मिट्टी के पेरामीटर के आधार पर डिजिटलीकरण मृदा फर्टिलिटी मैप तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही फसल उपयुक्तता मैप तैयार किया जा रहा है। फसल उपयुक्तता मैप के उपयोग से क्षेत्र विशेष के लिए उपयुक्त फसलों का निर्धारण फसल उत्पादन की क्षमता आदि का निर्धारण किया जाएगा।

इस साल 5 लाख मिट्टी नमूनों की जाँच करेगा विभाग

इस वर्ष के लिए कृषि विभाग की ओर से मिट्टी की जाँच के लिए लक्ष्य निर्धारित कर लिया गया है। वर्ष 2024-25 में सभी पंचायतों के प्रत्येक राजस्व ग्राम से कुल 5 लाख मिट्टी नमूनों का संग्रहण, जाँच तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया जाएगा। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सभी जिलों में कार्य तेजी से हो रहा है। साथ ही योजना अंतर्गत राज्य के 35,000 सरकारी विद्यालयों में अंकुरण परियोजना के तहत 35,000 मिट्टी नमूना संग्रहित किया जा रहा है। साथ ही छात्र-छात्राओं को भी मृदा स्वास्थ्य के संबंध में जागरूक किया जा रहा है।

किसानों को जैविक फसलों की मिल रही है अच्छी कीमत, जैविक प्रमाणीकरण के लिए बढ़ा किसानों का रुझान

बीते कुछ वर्षों में देश और दुनिया में जैविक उत्पादों की माँग बढ़ी है जिससे जैविक तरीके से खेती करने वाले किसानों को इसकी अच्छी कीमत मिल जाती है। हालाकीं जैविक खेती करने में तो किसानों की रुचि बढ़ी है पर फिर भी अभी बहुत से किसानों ने इसका पंजीकरण नहीं कराया है जिसके चलते किसानों को उनकी उपज का अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है। जिसको देखते हुए किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा किसानों को जैविक प्रमाणीकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

एमपी के जबलपुर में किसान अब जैविक खेती अपनाने के साथ-साथ उसका प्रमाणीकरण भी कराने लगे हैं। जैविक खेती कर रहे किसानों को अब यह बात समझ में आने लगी है कि बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुये उनके उत्पादों की स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच बनाने के लिये तथा अच्छी कीमत प्राप्त करने के लिये उनकी कृषि भूमि का जैविक प्रमाणीकरण होना जरूरी है।

1700 से अधिक किसान कर रहे हैं जैविक खेती

आत्मा के परियोजना संचालन डॉ. एस.के. निगम के मुताबिक जबलपुर जिले में कई किसान प्राकृतिक जैविक खेती कर रहे हैं किन्तु अभी तक उनकी रुचि अपनी कृषि भूमि के जैविक प्रमाणीकरण में नहीं थी। कृषि अधिकारियों द्वारा जैविक खेती कर रहे किसानों को जैविक प्रमाणीकरण से होने वाले फायदों की जानकारी दिये जाने पर उनका रुझान अब इस ओर बढ़ने लगा है।

परियोजना संचालक ने बताया कि जिले में फिलहाल 1 हजार 780 किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इनमें से 9 किसान अपनी कृषि भूमि का जैविक प्रमाणीकरण करा भी चुके हैं । इन किसानों के उत्पादों को मिल रही अच्छी कीमत को देखते हुये पिछले वर्ष दो तथा इस वर्ष तीन और किसानों ने जैविक प्रमाणीकरण के लिये आवेदन दिया है।

इस तरह होता है जैविक प्रमाणीकरण

परियोजना संचालक आत्मा डॉ. निगम के मुताबिक कृषि भूमि के जैविक प्रमाणीकरण की प्रक्रिया तीन वर्ष में पूर्ण होती है। इस दौरान यह देखा जाता है कि जैविक खेती में प्रतिबंधित आदानों का तथा प्रतिबंधित प्रक्रिया का इस्तेमाल तो नहीं किया गया है। इसके साथ ही उत्पादन, प्रसंस्करण और भंडारण आदि का भी तय मानकों के आधार पर प्रतिवर्ष निरीक्षण किया जाता है और इन सब पर खरे उतरने के बाद ही जैविक कृषि कर रहे किसान को उसकी कृषि भूमि का जैविक प्रमाण-पत्र जारी किया जाता है।

डॉ. निगम ने बताया कि जैविक प्रमाणीकरण के बाद किसान अपने जैविक उत्पादों पर मध्यप्रदेश जैविक प्रमाणन संस्थान द्वारा जारी रजिस्ट्रेशन नम्बर और “mpsoca” लोगो का इस्तेमाल कर सकता है। यह मार्क जैविक उत्पादों की शुद्धता की गारंटी होता है।

जैविक प्रमाणीकरण के लिए किसान यहाँ करें संपर्क

परियोजना संचालक आत्मा के मुताबिक जैविक प्रमाणीकरण के लिये शुक्रवार को हृदय नगर के कृषक जयराम केवट के खेत का अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन, डॉ. इंदिरा त्रिपाठी द्वारा किये गये निरीक्षण के दौरान अनुविभागीय अधिकारी कृषि सिहोरा मनीषा पटेल, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी जे.एस. राठौर, कृषि विकास अधिकारी बृषभान अहिरवार भी उपस्थित रहे। उन्होंने बताया कि जैविक प्रमाणीकरण हेतु इच्छुक कृषक अपने से संबंधित विकासखंड के आत्मा कार्यालय, अनुविभागीय अधिकारी कृषि कार्यालय अथवा वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय में संपर्क कर प्रक्रिया जान सकते हैं।

इफको ने युवाओं को दिये ड्रोन और इलेक्ट्रिक व्हीकल, किसान 300 रुपये देकर करा सकेंगे दवाओं का छिड़काव

फसलों की पैदावार के साथ ही किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा ड्रोन से उर्वरक और कीटनाशकों के छिड़काव को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में अधिक से अधिक किसान आसानी से इनका इस्तेमाल कर सकें इसके लिए युवाओं और महिलाओं को ड्रोन उड़ाने के प्रशिक्षण के साथ ही अनुदान पर ड्रोन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इस क्रम में इफ़को द्वारा एमपी के जबलपुर जिले के युवाओं को ड्रोन और इलेक्ट्रिक व्हीकल दिये गये।

इफको द्वारा जिले के दो युवा कृषि उद्यमियों नीलेश पटेल एवं हरिकृष्ण लोधी को एक-एक ड्रोन एवं एक-एक इलेक्ट्रिक व्हीकल उपलब्ध कराया गया है। ड्रोन और इलेक्ट्रिक व्हीकल का इस्तेमाल फसलों पर उर्वरक और कीटनाशकों के छिड़काव के लिये किया जायेगा। निर्धारित शुल्क चुकाकर किसान इनका इस्तेमाल अपने खेतों में कर सकेंगे।

युवाओं को ड्रोन सहित दी गई 15 लाख रुपये की सामग्री

दोनों कृषि उद्यमियों को ड्रोन के साथ 25 हजार एमएएच बैटरी सेट, फ्लैट जेट का एक सेट, ड्रोन बॉक्स के साथ सेंट्रीफ्यूगल नोजल का एक सेट, डीसीएस रिमोट, एक बैटरी चार्जर और दो फास्ट चार्जिंग हब तथा मैनुअल एवं लॉग के साथ एनीमोमीटर और पीएच मीटर के साथ टूल बॉक्स भी प्रदान किये गये हैं। इनके अलावा 25 हजार एमएएच के तीन अतिरिक्त बैटरी सेट, एक अतिरिक्त डुअल चैनल फास्ट बैटरी चार्जर, छह पोर्ट के साथ एक अतिरिक्त बैटरी चार्जर हब, एक अतिरिक्त प्रोपेलर प्रति सेट भी दिया गया है।

इफको द्वारा युवा कृषि उद्यमियों को दिये गये ड्रोन, इलेक्ट्रिक व्हीकल के प्रत्येक सेट की कीमत 14 से 15 लाख बताई गई है। इसमें करीब 8 लाख का ड्रोन, लगभग 5 लाख का इलेक्ट्रिक व्हीकल और 2 लाख रुपये के अन्य उपकरण शामिल हैं। कृषि में ड्रोन तकनीकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने उद्देश्य से दोनों कृषि उद्यमियों को ये निःशुल्क उपलब्ध कराए गये हैं।

किसान मात्र 300 रुपये देकर करा सकेंगे दवाओं का छिड़काव

उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास आम्रवंशी ने बताया कि ड्रोन द्वारा नैनो यूरिया एवं डीएपी का अपने खेत में छिड़काव करने के लिए किसानों को 300 रुपये प्रति एकड़ शुल्क देना होगा। छिड़काव के लिये नैनो यूरिया एवं डीएपी किसान को स्वयं क्रय कर उपलब्ध कराना होगा।

किसानों को अपने खेतों में उर्वरक और कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए गूगल प्ले स्टोर से “इफको किसान उदय” एप डाउनलोड करना होगा। इस मोबाइल एप के माध्यम से किसानों को उनके क्षेत्र के पास उपलब्धता के आधार पर ड्रोन छिड़काव हेतु उपलब्ध कराया जायेगा। इस एप के माध्यम से नैनो उर्वरकों के छिड़काव हेतु ड्रोन तकनीक का उपयोग कर किसान समय, श्रम, पानी एवं लागत में कमी कर उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

मौसम चेतावनी: 26 से 27 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

Weather Update: 26 से 27 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान 

देश के कई राज्यों में इन दिनों भीषण गर्मी के साथ ही लू चल रही है। इस बीच मौसम विभाग की ओर से राहत भरी खबर आई है। आज और कल यानि की 26 और 27 अप्रैल के दिन देश के कई राज्यों में तेज हवाओं के साथ बारिश और ओलावृष्टि हो सकती है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार वर्तमान में एक पश्चिमी विक्षोभ चक्रवातीय परिसंचरण के रूप में पछुआ पवनों के बीच दक्षिणी ईरान के ऊपर बना हुआ है वहीं एक और चक्रवातीय परिसंचरण मराठवाड़ा और मध्य महाराष्ट्र के ऊपर सक्रिय है। जिसके प्रभाव से उत्तर भारत के साथ ही मध्य भारत में कई स्थानों पर बारिश और ओलावृष्टि हो सकती है।

मौसम विभाग के मुताबिक जम्मू कश्मीर लद्दाख, गिलगित, बाल्टिस्तान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड में 26 से 29 अप्रैल के दौरान तो वहीं पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, चंडीगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ राज्यों में 26 से 27 अप्रैल के दौरान कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश और ओलावृष्टि हो सकती है।

मध्य प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 26 से 27 अप्रैल के दौरान राज्य के भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ, धार, इंदौर, रतलाम, उज्जैन,  देवास, शाजापुर, आगर–मालवा, मंदसौर, नीमच, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, श्योंपुर कला, सिंगरौली, सीधी, रीवा, मऊगंज, सतना, अनुपपुर, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बालाघाट, पन्ना, दमोह, सागर, छत्तरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, मैहर एवं पांडुरना जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कई इलाकों में ओलावृष्टि होने की भी संभावना है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 26 अप्रैल के दिन अजमेर, अलवर, बाँसवाड़ा, बारां, भरतपुर, भीलवाड़ा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, डूंगरपुर, जयपुर, झालावाड़, झुंझुनू, करौली, कोटा, प्रतापगढ़, राजसमंद, सवाई–माधोपुर, सीकर, उदयपुर, टोंक, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़, नागौर एवं श्रीगंगानगर जिलों में कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ वर्षा होने की संभावना है। वहीं इस दौरान कई स्थानों पर ओला वृष्टि की भी हो सकती है।

छत्तीसगढ़ के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के रायपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 26 से 27 अप्रैल के दौरान कोरिया, पेंड्रा रोड, बिलासपुर, मूंगेली, रायपुर, बलोदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, दुर्ग, बालोद, बेमतारा, कबीरधाम, राजनंदगाँव, बस्तर, कोंडागाँव, दंतेवाड़ा, कांकेर, बीजापुर एवं नारायणपुर जिलों में अनेक स्थानों पर गरज–चमक एवं तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 26 से 27 अप्रैल के दौरान राज्य के पालघर, थाने, धुले, नंदूरबार, जलगाँव, नासिक, अहमदनगर, पुणे, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, शोलापुर, औरंगाबाद, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, अकोला, अमरावती, भंडारा, बुलढाना, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान कुछ हिस्सों में ओले गिरने की भी संभावना है।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी पूर्वानुमान के अनुसार 26 अप्रैल के दिन आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, हाथरस, झाँसी, ललितपुर, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, अमरोहा, संभल, सहारनपुर, मुज्जफरनगर और शामली ज़िलों में अनेक स्थानों पर तेज हवा आंधी के साथ वर्षा हो सकती है वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की संभावना है।

पंजाब और हरियाणा राज्य के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 26 से 28 अप्रैल के दौरान पंजाब राज्य के पठानकोट, गुरुदासपुर, अमृतसर, तरण-तारण, होशियारपुर, नवाँशहर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फाजिल्का, फरीदकोट, मुक्तसर, मोगा, भटिंडा, लुधियाना, बरनाला, मनसा, संगरूर, मलेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब, रूपनगर, पटियाला एवं सास नगर जिलों में अधिकांश स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

वहीं हरियाणा राज्य में 26 से 28 अप्रैल के दौरान चंडीगढ़, पंचकुला, अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, महेंद्रगढ़, रेवारी, झज्जर, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, फरीदाबाद, रोहतक, सोनीपत, पानीपत, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जिंद, भिवानी, चरखी दादरी जिलों में अनेक स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश एवं ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

बिहार के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के पटना केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 27 अप्रैल के दिन राज्य के पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण रोहतास एवं भभुआ जिलों में कुछ स्थानों पर गरज-चमक एवं तेज हवाओं के साथ हल्की से मध्यम वर्षा हो सकती है।

अच्छी पैदावार के लिए किसान अमेरिकन कपास नरमा की इन किस्मों की बुआई करें

कपास की बुआई का समय शुरू हो गया है, ऐसे में किसान कम लागत में इसकी अच्छी पैदावार ले सकें इसके लिए कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार किसान हित में सलाह जारी की जा रही है, साथ ही अलग-अलग पंचायतों में किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इस बार कृषि विभाग द्वारा किसानों को कपास की बुआई का काम 20 मई तक पूरा करने की सलाह दी जा रही है ताकि फसल पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप ना हो।

इस कड़ी में राजस्थान के कृषि विभाग द्वारा किसानों को कपास की अनुशंसित उन्नत किस्में लगाने की सलाह दी गई है। साथ ही बीजों की बुआई, बीज की मात्रा आदि के बारे में भी किसानों को जानकारी दी जा रही है। इसमें अमेरिकन कपास या नरमा की खेती करने वाले किसानों को इसकी बुआई का काम शुरू करने की भी सलाह दी गई है।

अमेरिकन कपास/ नरमा की उन्नत किस्में

कृषि विभाग की ओर से इस वर्ष किसानों को नरमा की उन्नत किस्में जैसे आरएस 2814, आरएस 2818, आरएस 2827, बीकानेरी नरमा, आरएसटी 9, आरएस 875, आरएस 81, आरएस 2013 लगाने की सलाह दी गई है। किसान इन किस्मों की खेती के लिए 4 किलो प्रति बीघा की दर से बीज की बुआई करें। वहीं बुआई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 67.50 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी लगभग 30 सेंटीमीटर रखें। वैसे तो नरमा की बुआई के लिए उपयुक्त समय 15 अप्रैल से 15 मई तक है परंतु बुआई मई माह के अंत तक भी की जा सकती है।

नरमा में सिंचाई और खाद कब डालें?

किसान नरमा की क़िस्म आरएसटी में पहली सिंचाई बुआई के 50 दिन बाद भी कर सकते हैं। इसके अलावा अन्य किस्मों में पहली सिंचाई 30 से 35 दिनों बाद करनी चाहिए। अगर किसान नाइट्रोजन की पहली मात्रा बुआई के समय नहीं दे सके तो यह प्रथम सिंचाई के समय भाखड़ा क्षेत्र में 12.5 किलो नाइट्रोजन प्रति बीघा एवं गंगानगर क्षेत्र में 10 किलो नाइट्रोजन प्रति बीघा दी जानी चाहिए।

पहली सिंचाई के समय बुआई के 30 से 40 दिन के मध्य आवश्यकता से अधिक पौधे उखाड़ते हुए पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखें एवं क़िस्म आरएस 875 में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर बनाये रखें।

नरमा में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

किसान पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर कसिये से निराई गुड़ाई का काम करें। इसके बाद आवश्यकतानुसार एक या दो बार त्रिफाली चलायें। रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडामेथालिन ( 30 ई.सी.) के 833 मिली या ट्राईफ्लूरालीन 48 ई.सी. 780 मिली को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति बीघा की दर से फ़्लेट फेन नोजल से उपचार करने से नरमें की फसल प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार विहीन रहती है। इनका प्रयोग बिजाई से पहले मिट्टी पर छिड़काव अच्छे से मिलाकर करें।

किसान इस समय करें खेतों की जुताई, मिलेंगे कई फायदे

देश में रबी फसलों की कटाई का काम पूरा हो गया है, ऐसे में अब खरीफ फसलों की बुआई तक खेत खाली रहेंगे। इस बीच किसान कई ऐसे काम कर सकते हैं जिससे अगली यानि की खरीफ फसलों से अधिक उत्पादन लिया जा सके। इसमें खेतों की मिट्टी की जाँच, मृदा सौरीकरण, गहरी जुताई आदि शामिल है। इसमें किसान खेत की जुताई का काम तो फसलों की बुआई से पहले करते ही हैं लेकिन किसान गर्मी में यह काम करके अधिक फायदा ले सकते हैं।

फसलों में लगने वाले कीट-व्याधियों की रोकथाम की दृष्टि से बुआई के समय की गई जुताई ज्यादा फायदेमंद नहीं रहती जबकि गर्मी में की गई गहरी जुताई करके खेत को खाली छोड़ देने से ज्यादा लाभ मिलता है। गर्मी में गहरी जुताई करने से भूमि का तापमान बढ़ जाता है जिससे कीटों के अंडे, शंकु और लट ख़त्म हो जाती है और इनका प्रकोप खरीफ फसलों पर नहीं पड़ता।

गर्मी में जुताई के फायदे

किसानों को फसलों की अच्छी उपज के लिए रबी की फसल कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करके गर्मी में ख़ाली छोड़ देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से कीटों के अंडे, प्यूपा और लार्वा खत्म होने से खरीफ के मौसम में धान, बाजरा, दलहन और सब्जियों में लगने वाले कीट रोगों का प्रकोप कम हो जाता है। अतः गर्मी में गहरी जुताई से कीड़े-बीमारियों से एक सीमा तक छुटकारा पाया जा सकता है।

  • इसके अलावा सूर्य की तेज किरणों के भूमि के अंदर प्रवेश करने से फसलों में लगने वाले उखटा, जड़ गलन आदि रोगों के रोगाणु एवं सब्जियों की जड़ों में गाँठ बनाने वाले सूत्रकृमि भी नष्ट हो जाती है।
  • खेत की मिट्टी में ढेले बन जाने से वर्षा जल सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। जिससे खेतों में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती है।
  • गहरी जुताई से दूब, कांस, मौथा, वायुसूरी आदि जटिल खरपतावारों से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
  • गर्मी की जुताई से गोबर की खाद और खेत में उपलब्ध अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में भली-भाँति मिल जाते हैं। जिससे पोषक तत्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं।
  • ग्रीष्मकालीन खेतों की जुताई से पानी द्वारा किए जाने वाले भूमि कटाव में काफी कमी आती है।

किसान कब एवं कैसे करें खेतों की जुताई

किसान गर्मी के सीजन में खेतों की जुताई रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद कर दें क्योंकि फसल कटने के बाद भी मिट्टी में थोड़ी नमी रहती है जिससे जुताई में आसानी होती है। गर्मी की जुताई 20 से 30 सेंटीमीटर गहराई वाले किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानी की ढलान काटते हुए करनी चाहिए। जिससे वर्षा का पानी एवं मिट्टी ना बह पाये। ट्रैक्टर से चलने वाले तवेदार मोल्ड बोर्ड हल भी गर्मी की जुताई के लिए उपयुक्त है।

सावधानियाँ

  • किसानों को ज्यादा रेतीलें इलाक़ों में गर्मी की जुताई नहीं करनी चाहिए।
  • किसान जुताई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जुताई के समय मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले रहे तथा मिट्टी भुरभुरी ना हो पाए, क्योंकि गर्मी में हवा द्वारा मिट्टी के कटाव की समस्या हो सकती है।

गहरी जुताई करने वाले यंत्र

  1. एमबी प्लाऊ,
  2. सब-सॉयलर,
  3. कल्टीवेटर,
  4. डिस्क प्लाऊ
  5. पशु चालित उन्नत बक्खर।