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किसान इस समय करें खेतों की जुताई, मिलेंगे कई फायदे

देश में रबी फसलों की कटाई का काम पूरा हो गया है, ऐसे में अब खरीफ फसलों की बुआई तक खेत खाली रहेंगे। इस बीच किसान कई ऐसे काम कर सकते हैं जिससे अगली यानि की खरीफ फसलों से अधिक उत्पादन लिया जा सके। इसमें खेतों की मिट्टी की जाँच, मृदा सौरीकरण, गहरी जुताई आदि शामिल है। इसमें किसान खेत की जुताई का काम तो फसलों की बुआई से पहले करते ही हैं लेकिन किसान गर्मी में यह काम करके अधिक फायदा ले सकते हैं।

फसलों में लगने वाले कीट-व्याधियों की रोकथाम की दृष्टि से बुआई के समय की गई जुताई ज्यादा फायदेमंद नहीं रहती जबकि गर्मी में की गई गहरी जुताई करके खेत को खाली छोड़ देने से ज्यादा लाभ मिलता है। गर्मी में गहरी जुताई करने से भूमि का तापमान बढ़ जाता है जिससे कीटों के अंडे, शंकु और लट ख़त्म हो जाती है और इनका प्रकोप खरीफ फसलों पर नहीं पड़ता।

गर्मी में जुताई के फायदे

किसानों को फसलों की अच्छी उपज के लिए रबी की फसल कटाई के तुरंत बाद गहरी जुताई करके गर्मी में ख़ाली छोड़ देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से कीटों के अंडे, प्यूपा और लार्वा खत्म होने से खरीफ के मौसम में धान, बाजरा, दलहन और सब्जियों में लगने वाले कीट रोगों का प्रकोप कम हो जाता है। अतः गर्मी में गहरी जुताई से कीड़े-बीमारियों से एक सीमा तक छुटकारा पाया जा सकता है।

  • इसके अलावा सूर्य की तेज किरणों के भूमि के अंदर प्रवेश करने से फसलों में लगने वाले उखटा, जड़ गलन आदि रोगों के रोगाणु एवं सब्जियों की जड़ों में गाँठ बनाने वाले सूत्रकृमि भी नष्ट हो जाती है।
  • खेत की मिट्टी में ढेले बन जाने से वर्षा जल सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। जिससे खेतों में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती है।
  • गहरी जुताई से दूब, कांस, मौथा, वायुसूरी आदि जटिल खरपतावारों से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
  • गर्मी की जुताई से गोबर की खाद और खेत में उपलब्ध अन्य कार्बनिक पदार्थ भूमि में भली-भाँति मिल जाते हैं। जिससे पोषक तत्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं।
  • ग्रीष्मकालीन खेतों की जुताई से पानी द्वारा किए जाने वाले भूमि कटाव में काफी कमी आती है।

किसान कब एवं कैसे करें खेतों की जुताई

किसान गर्मी के सीजन में खेतों की जुताई रबी फसलों की कटाई के तुरंत बाद कर दें क्योंकि फसल कटने के बाद भी मिट्टी में थोड़ी नमी रहती है जिससे जुताई में आसानी होती है। गर्मी की जुताई 20 से 30 सेंटीमीटर गहराई वाले किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम की तरफ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानी की ढलान काटते हुए करनी चाहिए। जिससे वर्षा का पानी एवं मिट्टी ना बह पाये। ट्रैक्टर से चलने वाले तवेदार मोल्ड बोर्ड हल भी गर्मी की जुताई के लिए उपयुक्त है।

सावधानियाँ

  • किसानों को ज्यादा रेतीलें इलाक़ों में गर्मी की जुताई नहीं करनी चाहिए।
  • किसान जुताई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जुताई के समय मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले रहे तथा मिट्टी भुरभुरी ना हो पाए, क्योंकि गर्मी में हवा द्वारा मिट्टी के कटाव की समस्या हो सकती है।

गहरी जुताई करने वाले यंत्र

  1. एमबी प्लाऊ,
  2. सब-सॉयलर,
  3. कल्टीवेटर,
  4. डिस्क प्लाऊ
  5. पशु चालित उन्नत बक्खर।

खेत में ही बनने लगेगा यूरिया, बस किसान हरी खाद के लिए इस तरह करें ढैंचा की खेती

आज के समय में किसान एक साल में कई फसलें लेने के साथ ही रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं जिससे दिन प्रति दिन मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती जा रही है। जिसका सीधा असर फसल के उत्पादन पर पड़ रहा है, इस कारण उपज क्षमता बढ़ने की बजाय घटते जा रही है। इसका मुख्य कारण मिट्टी में ऑर्गेनिक कॉर्बन की मात्रा में कमी होना है। किसान इस कमी को खेत में हरी खाद बनाकर पूरा कर सकते हैं।

हरी खाद क्या होती है?

हरी खाद उस फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मुख्य रूप से मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदार्थों की पूर्ति के उद्देश्य से की जाती है। इस प्रकार की फसल को फूल, आने को अवस्था में हल या रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है। जिससे मिट्टी में अपघटन बढ़ने के कारण जैविक गुणों में वृद्धि होती है और खेत की मिट्टी को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इसमें मिट्टी को फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश के साथ ही माइक्रोन्यूट्रिएंट्स भी प्राप्त होते हैं।

हरी खाद के लिए किसान लगायें ढैंचा की फसल

वैसे तो किसान गर्मी के दिनों में हरी खाद के लिए ढैंचा, सनई, उड़द, मूंग, लोबिया आदि लगा सकते हैं लेकिन इनमें सबसे अच्छा ढैंचा को माना जाता है। यह सबसे तेजी से मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करता है। यह सस्बेनिया कुल में आता है। इसके पौधे के तने में सिम्बायोटिक जीवाणु होते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का नाइट्रोजिनेज नामक एंजाइम की सहायता से मृदा में स्थिरीकरण करते हैं। ढैंचा की हरी खाद से खेत की मिट्टी को 80-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15-20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 10-12 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। जिससे अगली फसलों को रासायनिक खादों ख़ासकर यूरिया की बहुत ही कम आवश्यकता होती है।

इसके अलावा ढैंचा कार्बनिक अम्ल पैदा करता है, जो लवणीय और क्षारीय मृदा को भी उपजाऊ बना देता है। ढैंचा की विकसित जड़ें मृदा में वायुसंचार और आर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढाती है। मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीव इसे खाद्य पदार्थ के रूप में वृद्धि होने के साथ–साथ फसलों को आसानी से पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं। इससे फसल का उत्पादन तो बढ़ाता ही है, साथ ही मृदा के पोषक तत्वों में भी सुधार होता है।

40 से 50 दिनों में तैयार हो जाती है फसल

मिट्टी में घटते हुए पोषक तत्वों को संतुलित बनाए रखने के लिए ढैंचा की खेती एक बेहतरीन विकल्प है। ढैंचा को दो फसलों के बीच की अवधि में या उस समय लगाया जाता है, जब खेत खाली रहते हैं। 40 से 50 दिनों के बाद जब ढैंचा की फसल तैयार हो जाती है तब इसे मिट्टी में पलटकर दबा सकते हैं। जिससे मिट्टी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में वृद्धि होती है, इस तरह खड़ी फसल को मिट्टी में दबाने को ही हरी खाद के नाम से जाना जाता है।

ढैंचा की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

सामान्यतः ढैंचा की खेती से अधिक उपज लेने के लिये काली चिकनी मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है, जबकि हरी खाद के लिए किसी भी प्रकार की भूमि में इसे लगा सकते हैं। यहाँ तक कि इसका पौधा जल जमाव की स्थिति में भी आसानी से विकास कर लेता है। ढैंचा की हरी खाद लेने के लिए किसी ख़ास तरह की जलवायु की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन उत्तम पैदावार लेने के लिए खरीफ में लगाना सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

ढैंचा के पौधे पर गर्मी और सर्दी का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलता है। पौधे के अंकुरण के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। इसके बाद पौधे किसी भी तापमान पर आसानी से अपना विकास कर लेते हैं। जब सर्दी में तापमान 8 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाने लगता है, तब इस पर हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते हैं।

ढैंचा की खेती का समय

ढैंचा की बुआई के लिए मई के आखरी सप्ताह से लेकर जून के दुसरे सप्ताह तक का समय उपयुक्त माना जाता है। इसकी बुआई के लिए हल्की बारिश के बाद या हल्की सिंचाई करके खेत की जुताई कर बीज को छिड़ककर पाटा लगा दिया जाता है। हरी खाद के लिए ढैंचा के बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, जबकि बीज लेने के लिये 12–15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। फसल से बीज लेने के लिये पौधे से पौधे की दूरी 40-50 सेंटीमीटर सर्वोत्तम होती है।

ढैंचा की उन्नत किस्में

  • पंजाबी ढैंचा – इस किस्म की वृद्धि काफी तेजी से होती है,
  • सी एंड डी 137 – यह प्रजाति क्षारीय मृदा के लिए उपयुक्त है,
  • हिसार ढैंचा – यह किस्म जल जमाव वाले क्षेत्र के लिए उपयुक्त है,
  • पन्त ढैंचा – यह प्रजाति हरी खाद के लिये सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसका वानस्पतिक विकास काफी तेजी से होता है।

ढैंचा की फसल में कितना खाद डालें और कब सिंचाई करें

किसान ढैंचा की अच्छी बढ़वार के लिये बुआई के समय 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 किलोग्राम फॉस्फोरस का छिड़काव करें, जिससे जुताई करने के बाद इसका अपघटन तेजी से होता है। वहीं खरीफ के समय बोई गई ढैंचा के लिए बुआई के बाद अलग से पानी देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वर्षा ऋतू में वर्षा का पानी पर्याप्त होता है। यदि बारिश न हो, तो 4-5 सिंचाई में ढैंचा तैयार हो जाता है।

ढैंचा की फसल को खेत में किस समय पलटें

ढैंचा की फसल 40-50 दिनों की हो जाए या जब फूल आने लगे, तो रोटावेटर से जुताई करके मृदा में पलटकर मिला देना चाहिए। इस समय मृदा में नमी का होना आवश्यक होता है, ताकि जैव पदार्थ का अपघटन शीघ्र हो जाए। इस समय तक ढैंचा की फसल से 80–120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 15-20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 10–12 किलोग्राम पोटाश के साथ ही 20-25 क्विंटल जैव पदार्थ प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।

धान की रोपाई के लिए ढैंचा के पलटने के तुरंत बाद पानी भरकर रोपाई की जा सकती है। धान की फसल में भरा पानी ढैंचा के अपघटन में सहायक होता है। इस प्रकार धान की रोपाई के 5-7 दिनों बाद नाईट्रोजन का 50 प्रतिशत भाग अमोनिकल नाईट्रोजन के रूप में पौधों को उपलब्ध हो जाता है। ढैंचा की फसल 45 दिनों से अधिक की हो जाती है, तो अपघटन धीरे-धीरे होता है।

ढैंचा बीज के लिए फसल की कटाई कब करें

जून में बोई गई ढैंचा की फसल नवम्बर के प्रथम सप्ताह से तृतीय सप्ताह के बीच पककर तैयार हो जाती है। इससे 12-15 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाते हैं।

आम, अमरूद और लीची को कीटों से बचाने के लिए सरकार दवा छिड़कने के लिए देगी अनुदान

हर साल बेमौसम बारिश, हवा आँधी एवं कीट-रोगों के चलते आम, अमरूद और लीची की फसल को काफी नुकसान होता है। ऐसे में मंजर और पके आम को पेड़ से गिरने से रोकने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। बिहार सरकार आम के साथ ही लीची एवं अमरूद की देखभाल करने के लिए योजना शुरू करने जा रही है। इन फलों को मधुआ और दहिया कीट से काफी अधिक खतरा होता है, इन कीटों से फलों को बचाने के लिए सरकार कीटनाशी दवाओं का छिड़काव कराएगी।

कीट लगने के बाद पेड़ से मंजर और पके आम गिरने लगते हैं। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है इसे रोकने के लिए मंजर और इसके बाद वाली अवस्था वाले आम के पेड़ों पर कीटनाशी दवा का छिड़काव होगा। आम, लीची और अमरूद को कीटों से बचाने के लिए सरकार 8 करोड़ 54 लाख रुपये खर्च करेगी।

आम पर कीटनाशक छिड़कने के लिए कितना अनुदान मिलेगा

सामान्यतः आम के पेड़ों पर दो बार कीटनाशक दवाओं के छिड़काव की आवश्यकता होती है। पहली बार कीटनाशी छिड़काव पर किसानों को औसतन 76 रुपये का खर्च आता है इसमें सरकार किसानों को 57 रुपये का अनुदान देगी। वहीं दूसरी बार आम के वृक्षों पर दवा के छिड़काव पर 96 रुपये का खर्च आता है जिस पर सरकार किसान को 72 रुपये प्रति पेड़ अनुदान देगी। किसानों को यह अनुदान अधिकतम 112 पेड़ों पर छिड़काव के लिए ही दिया जाएगा।

अमरूद और लीची पर दवा छिड़काव के लिए कितना अनुदान मिलेगा?

योजना के तहत सरकार अमरूद और लीची की फसलों पर भी दो बार दवाओं के छिड़काव के लिए अनुदान देगी। इसमें किसानों को लीची के पेड़ों पर पहले छिड़काव में 316 रुपये का खर्च आता है जिस पर सरकार किसान को 162 रुपये का अनुदान देगी। वहीं लीची पर दूसरे छिड़काव के लिए 152 रुपये की लागत पर 114 रुपये की सब्सिडी दी जायेगी। किसानों अधिकतम लीची के 84 वृक्षों पर ही दवा के छिड़काव पर अनुदान दिया जाएगा।

वहीं बात करें अमरूद की तो सरकार इसके वृक्षों पर पहली बार कीटनाशक के छिड़काव पर 33 रुपये का अनुदान देगी एवं दूसरी बार कीटनाशकों का छिड़काव करने पर सरकार 45 रुपये प्रति पेड़ की दर से अनुदान देगी। सरकार किसानों को अमरूद के अधिकतम 56 पेड़ों के लिये ही अनुदान उपलब्ध कराएगी।

मूंग एवं उड़द में इल्ली एवं कीटों के नियंत्रण के लिए किसान सिर्फ एक बार करें इस दवा का छिड़काव

इस समय देश के कई क्षेत्रों में ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की खेती की जा रही है। इस समय मूंग एवं उड़द की फसलों में कई कीट एवं रोग लगते हैं जिनके नियंत्रण के लिए किसानों के द्वारा अत्यंत जहरीले कीटनाशक दवाओं को छिड़काव किया जाता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। जिसको देखते हुए जबलपुर कृषि महाविद्यालय के द्वारा किसानों के लिए कीटनाशकों के उचित प्रयोग के लिये सलाह जारी की गई है।

कृषि महाविद्यालय के कीटशास्त्र विभाग प्रमुख डॉ. एस.बी.दास एवं कोराजन निर्माता कंपनी द्वारा मूंग एवं उड़द में एक बार ही दवा का स्प्रे करने की सलाह दी है। किसान इसका छिड़काव मूंग एवं उड़द में फूल आने से फलिया बनने की अवस्था तक सिर्फ एक बार 0.15 मिलीलीटर कोराजन प्रतिलीटर पानी में मिलाकर करें।

अन्य कीट रोगों के नियंत्रण के लिए क्या करें?

कृषि महाविद्यालय द्वारा जारी सलाह में पत्ती खाने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए क्विनालफास की 1.5 मिली लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस की 750 मिली. दवा का छिड़काव करने को कहा गया है। वहीं हरा फुदका, माहू तथा सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए डायमिथोएट 1000 मिली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मिली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करने की सलाह दी गई है।

किसान कपास की बुआई कब और कैसे करें?

हर साल कपास की फसल में गुलाबी सुंडी एवं अन्य कीट-रोगों से काफी नुकसान हो रहा है, ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग द्वारा किसानों को लगातार समय पर कपास की बुआई करने की सलाह दी जा रही है। इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा किसानों को बीटी कपास की बुआई मई महीने के मध्य तक करने की सलाह दी गई है। साथ ही किसानों को बीटी कपास की बुआई जून महीने में बिल्कुल नहीं करने की सलाह भी दी है।

वहीं किसानों को कपास की बुआई करने से पहले गहरा पलेवा लगाने की सलाह दी गई है। किसानों को कपास की बुआई सुबह या शाम के समय करनी चाहिए। इसके अलावा किसान अधिक उत्पादन लेने के लिए कपास की बुआई पूर्व से पश्चिम दिशा की और करें।

अप्रैल में करें देसी कपास की बुआई

वहीं वे किसान जो देसी कपास की किस्में लगाना चाहते हैं वे किसान इसकी बिजाई अप्रैल महीने में ही कर लें। खेत की तैयारी सुबह या शाम को करें खरपतवार के लिये स्टोम्प  2 लीटर प्रति एकड़ का छिड़काव बिजाई के बाद एवं जमाव से पहले करें। बीटी कपास के दो कुंडों के बीच मूंग MH 421 के दो खुड लगा सकते हैं।

वहीं जो किसान भाई टपका विधि से बीटी कपास की बिजाई करना चाहते हैं वह जब तक जमाव नहीं होता तब तक रोज 10 से 15 मिनट सुबह शाम ड्रिप अवश्य चलाएँ एवं जमाव के बाद हर चौथे दिन लगभग 30 से 35 मिनट ड्रिप चलायें।

कपास में कितना खाद डालें

किसान भाई मिट्टी की जाँच अवश्य करवायें, मिट्टी की जाँच के आधार पर ही पोषक तत्व की मात्रा तय की जानी चाहिए। बीटी कपास की बिजाई के समय एक एकड़ में एक बैग यूरिया, एक बैग डी.ए.पी., 30 से 40 किलोग्राम पोटाश व 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत खेत की तैयारी के समय अवश्य डालें। वही देसी कपास की बिजाई के समय एक एकड़ में 15 किलोग्राम यूरिया एवं 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट अवश्य डालें।

देसी कपास की उन्नत किस्में

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित देसी कपास की उन्नत किस्में एचडी 123, एचडी 432 हैं। किसान भाई बीटी कपास का विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किया हुआ बीज ही लें। इसकी जानकारी के लिए किसान अपने ज़िले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। बीटी कपास का बीज प्रमाणित संस्था या अधिकृत विक्रेता से लें तथा इसका पक्का बिल अवश्य लें।

बीटी कपास के दो पैकेट प्रति एकड़ के हिसाब से ही बिजाई करें। कतार व पौधे से पौधे की दूरी 100*45 सेंटीमीटर या 67.5*60 सेंटीमीटर रखें।

किसान इस तरह करें कपास बीजों का उपचार

जो किसान अमेरिकन कपास ( नॉन बीटी) या देसी कपास की बिजाई करना चाहते हैं बढ़िया परिणाम के लिए बिजाई से पहले रोये वाले बीज 6 से 8 किलोग्राम का 6 से 8 घंटे तथा रोये उतारे गए बीज 5 से 6 किलोग्राम का केवल 2 घंटे तक एमिशन 5 ग्राम, स्ट्रेप्टोसाइक़्लीन-1 ग्राम, सक्सीनिक-1 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर उपचारित करें। इन दवाइयों से बीजों का उपचार करने से पौधे का बहुत से फफूँदों तथा जीवाणुओं से बचाव हो जाता है। यह उपचार फसल को 40 से 45 दिन तक ही बचा सकते हैं।

जिन क्षेत्रों में दीमक की समस्या है वहाँ उपयुक्त उपचार के बाद बीज को थोड़ा सुखाकर 10 मिली लीटर क्लोरपाइरीफ़ॉस 20 ईसी व 10 मिली लीटर पानी में प्रति किलो बीज की दर से मिलाकर थोड़ा-थोड़ा बीज पर छिड़कें व अच्छी तरह मिलाएँ तथा बाद में 30 से 40 मिनट बीज को छाया में सुखाकर बिजाई करें।

मौसम चेतावनी: 22 से 23 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

Weather Update: 22 से 23 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

देश के कई हिस्सों में जारी तेज तपिश और लू के बीच मौसम ने एक बार फिर से करवट ले ली है। बीते एक-दो दिनों में कई स्थानों पर बारिश एवं ओला वृष्टि दर्ज की गई है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार वर्तमान में पश्चिमी विक्षोभ चक्रवातीय परिसंचरण के रूप में अफ़गानिस्तान और उससे संलग्न पाकिस्तान के ऊपर बना हुआ है इसके साथ ही एक चक्रवातीय परिसंचरण मराठवाड़ा और उससे लगे पश्चिमी विदर्भ के ऊपर स्थित है।

मौसम विभाग के मुताबिक मौजूदा सिस्टम के चलते जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, असम, मेघालय, केरल, माहे, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कोंकण, गोवा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, तटीय आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं पुडुचेरी में कई स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश होने की संभावना है।

मध्य प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 22 से 23 अप्रैल के दौरान राज्य के भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, बड़वानी, अलीरजपुर, झबुआ, धार, इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर, रीवा, मऊगंज, सतना, अनुपपुर, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बालाघाट, पन्ना, दमोह, सागर, मैहर एवं पांडुरना जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ इलाकों में ओले गिरने की भी संभावना है।

छत्तीसगढ़ के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओला वृष्टि

मौसम विभाग के रायपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 22 से 23 अप्रैल के दौरान सरगुजा, जशपुर, कोरिया, पेंड्रा रोड, बिलासपुर, रायगढ़, मूंगेली, कोरबा, जाँजगीर, रायपुर, बलोदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, दुर्ग, बालोद, बेमतारा, कबीरधाम, राजनंदगाँव, कांकेर, बीजापुर एवं नारायणपुर जिलों में गरज–चमक एवं तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओलावृष्टि की भी संभावना है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओला वृष्टि

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 22 से 23 अप्रैल के दौरान राज्य के धुले, नन्दुरबार, जलगाँव, नासिक, अहमदनगर, पुणे, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, शोलापुर, औरंगाबाद, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, अकोला, अमरावती, भंडारा, बुलढाना, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा, वॉशिम एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान विदर्भ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ओले गिरने की भी संभावना है।

पंजाब एवं हरियाणा के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओला वृष्टि

भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 22 से 23 अप्रैल के दौरान पंजाब राज्य के पठानकोट, गुरुदासपुर, अमृतसर, तरण-तारण, होशियारपुर, नवाँशहर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर एवं रूपनगर नगर जिलों में अधिकांश स्थानों पर तेज तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

वहीं हरियाणा राज्य में 12 से 15 अप्रैल के दौरान महेंद्र गढ़, रेवारी, झज्जर, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, फरीदाबाद जिलों में कुछ स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश एवं ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी पूर्वानुमान के अनुसार 22 अप्रैल के दौरान राज्य के मेरठ, बागपत, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र, मुरादाबाद, बीजनौर, प्रयागराज, सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, वाराणसी एवं चंदौली ज़िलों में कुछ स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ बारिश हो सकती है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 22 अप्रैल के दिन राज्य के बारां, झालावाड़, झुंझुनू, सीकर, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़, जोधपुर, नागौर एवं श्री गंगानगर जिलों में कुछ स्थानों पर तेज हवाओं के साथ हल्की से मध्यम वर्षा हो सकती है।

किसानों को बारिश एवं ओला वृष्टि से हुए फसल नुकसान का जल्द मिलेगा मुआवजा, मुख्यमंत्री ने गिरदावरी के दिये आदेश

अप्रैल महीने में कई राज्यों में बारिश एवं ओला वृष्टि हुई है, जो अभी भी जारी है। ऐसे में ओलावृष्टि और बारिश के कारण हुए फसल नुकसान के कारण परेशानी झेल रहे हरियाणा के किसानों को जल्द राहत मिलने वाली है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रभावित किसानों को जल्द से जल्द मुआवजा देने के लिए काम शुरू करने की बात कही है। उन्होंने अधिकारियों को फसल नुकसान का आकलन करने के लिए गिरदावरी करने के निर्देश दिये हैं।

बता दें कि अभी राज्य में गेहूं सहित अन्य रबी फसलों की समर्थन मूल्य पर खरीदी का काम चल रहा है, यह फसलें मंडियों में बिकने के लिये रखी हुई है इसके अलावा कई किसान अभी फसलों की कटाई भी कर रहे हैं या कटाई के बाद खेत में सूखा रहे है। इस बीच कई इलाक़ों में तेज हवाओं के साथ हुई बारिश एवं ओला वृष्टि से किसानों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है।

मुख्यमंत्री ने दिये गिरदावरी के आदेश

शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा में कई जगहों पर ओलावृष्टि और तेज हवाओं के साथ बारिश हुई। इसके बाद मुख्यमंत्री ने शनिवार को करनाल के इंद्री में ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों का जायजा लिया। इंद्री का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री ने अपने अधिकारिक एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए कहा कि सभी अधिकारियों और पटवारियों को फसलों का जायजा लेने और जो भी नुकसान हुआ है उसकी तुरंत गिरदावरी कराने के निर्देश दिए गए हैं ताकि किसानों को जल्द से जल्द मुआवजा दिया जा सके। इंद्री इलाके में 15-20 तक जोरदार ओलावृष्टि हुई थी इसके कारण मंडियों में रखे गेहूं के बोरे के उपर बर्फ की सफेद चादर बिछ गई थी।

प्रभावित किसानों को जल्द मिलेगा मुआवजा

वहीं हरियाणा मुख्य सचिव श्री टीवीएसएन प्रसाद ने रबी-फ़सल की खरीद से संबंधित व्यवस्थाओं की समीक्षा-बैठक की अध्यक्षता करते हुए उपायुक्तों को निर्देश दिए कि ओलावृष्टि से खराब हुई फसलों का जल्द से जल्द सर्वे किया जाए, ताकि किसानों को समय पर खराब फसलों के नुकसान की भरपाई की जा सके।

यह है गोबर की खाद बनाने का सही तरीका, जिससे मिलेगा अधिक फायदा

गोबर की खाद बनाने की विधि

खेती की लागत कम करने के लिए सरकार द्वारा देश में जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि रासायनिक खादों के उपयोग से जहां खेती की लागत बढ़ती है तो वहीं इसके अनावश्यक और अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे कम होती है। वहीं यदि बात की जाए गोबर खाद जिसे “फार्म यार्ड मैन्योर” भी कहा जाता है। यह पशुओं के गोबर, मूत्र, छोड़ा हुआ तूडा आदि के सही गलने और सड़ने से बनती है यानि की बिना किसी खर्चे के तैयार हो जाती है।

गोबर खाद सस्ती होने के साथ-साथ यह मिट्टी में सभी प्रकार के मुख्य पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्निशियम, सल्फर के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे आयरन, मैंगनीज, कॉपर और जिंक जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं वह सभी उपलब्ध कराती है। इतना ही नहीं गोबर खाद मिट्टी की जल धारण क्षमता को भी बढ़ाती है।

किसान गोबर खाद कैसे बनाएँ?

अधिकांश किसान गोबर की खाद बनाते समय पशु मूत्र का प्रयोग बहुत ही कम करते हैं। जबकि पशु मूत्र में 1 प्रतिशत नाइट्रोजन और 1.35 प्रतिशत पोटेशियम होता है। मूत्र में उपस्थित नाइट्रोजन यूरिया के रूप में उपलब्ध होता है। ऐसे में पशु मूत्र से यूरिया हवा में उड़े नहीं या नीचे मिट्टी में ना चले जाए इसके लिए किसानों को एक ट्रेंच या गड्डा बना लेना चाहिए। जिसकी लंबाई लगभग 6 से 7 मीटर, चौड़ाई 1.5 से 2.0 मीटर और इसकी गहराई 1 मीटर तक रखनी चाहिए।

पशु मूत्र को सोखने के लिए तुड़ा, मिट्टी आदि को पशु मूत्र पर डालना चाहिए। अगले दिन इस मिश्रण को गोबर सहित ट्रेंच या गड्डे में डाल देना चाहिए। ऐसा रोजाना करते रहें जब यह भाग भूमि तल से 45 से 60 सेंटीमीटर ऊँचा हो जाये तो इस गोलाकार करके गाय के गोबर और मिट्टी के घोल से लीप दें। किसान ठीक इसी तरह एक गड्डा भर जाने के बाद दूसरा गड्डा बनाये और यही प्रक्रिया को दोहराएँ। इस तरह गोबर की खाद 4 से 5 महीने में बनकर तैयार हो जाएगी।

यदि किसान पशु मूत्र को पहले नहीं डाल पाएं हो तो वो किसान सीमेंट से बने गड्डे में बाद में भी मूत्र को मिला सकते हैं। मूत्र व यूरिया को बेकार जाने से रोकने के लिए इसमें रासायनिक परिरक्षक जैसे जिप्सम और सुपर फास्फेट मिला सकते हैं। इन्हें शेड के नीचे डाला जाता है।

किसान फसलों में कब डालें गोबर खाद

किसानों को तैयार गोबर खाद को तुड़ाई से 3-4 हफ्ते पहले खेत में डालना चाहिए। शेष जो खाद जो बच जाती है उसे बुआई के तुरंत पहले खेत में डालना चाहिए। सामान्यतः 10 से 20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डाली जाती है। चारा फसलों और सब्जियों में 20 टन प्रति हेक्टेयर से ज्यादा खाद की जरूरत होती है। आलू, टमाटर, शकरकंद, गाजर, मूली, प्याज आदि फसलों में गोबर की खाद डालने से पैदावार बढ़ती है। वहीं गन्ना, धान, नेपियर घास और बागवानी के फलदार पौधों जैसे संतरा केला आम नारियल आदि में गोबर खाद बहुत अधिक फायदेमंद है।

गोबर की खाद से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम तुरंत तो नहीं मिलते पर इससे 30 प्रतिशत नाइट्रोजन, 60 से 70 प्रतिशत फॉस्फोरस और 70 प्रतिशत पोटेशियम पहली फसल को मिल जाते हैं। इसके साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में धीरे-धीरे सुधार होता है जिससे रासायनिक खादों की आवश्यकता कम पड़ती है और खेती के खर्चे में कमी आती है।

गेहूं की किस्म करण शिवानी ने दिया अब तक का सबसे अधिक उत्पादन

गेहूं उन्नत किस्म करण शिवानी DBW 327

देश में अभी गेहूं की कटाई का काम जोरों पर चल रहा हैं। ऐसे में जिन किसानों ने हाल ही विकसित गेहूं की नई उन्नत किस्म करण शिवानी DBW 327 की खेती की थी उन्हें इसकी बंपर पैदावार मिल रही है। इतना ही नहीं गेहूं की इस किस्म ने अब तक का सबसे अधिक प्रति एकड़ की दर से पैदावार देने के रिकॉर्ड भी बना लिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ICAR से प्राप्त जानकारी के अनुसार करण शिवानी किस्म अब तक की सबसे अधिक पैदावार देने वाली किस्म बन गई है।

गेहूं की किस्म करण शिवानी DBW 327 (Karan Shivani) ने पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले एवं हरियाणा के पानीपत जिले में किसानों को रिकॉर्ड तोड़ पैदावार दी है। गेहूं की यह किस्म ICAR के गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल (ICARIIWBR) के द्वारा विकसित की गई है।

करण शिवानी DBW 327 किस्म की खासियत

गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल IIWBR के द्वारा विकसित यह किस्म जलवायु परिवर्तन के लिए सहनशील होने के साथ ही बायोफोर्टिफाइड भी है यानि की पोषक तत्वों से भरपूर है। गेहूं की इस किस्म में जिंक की मात्रा 40.6 ppm तक पाई जाती है। गेहूं की इस किस्म को खेती के लिए साल 2021 में उत्तर पश्चिमी भारत एवं 2023 में मध्य भारतीय क्षेत्रों के लिए अधिसूचित किया गया है। गेहूं की यह किस्म सिंचाई क्षेत्रों और अगेती बुआई के लिए अनुकूल है।

करण शिवानी किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर) और उत्तर प्रदेश (झाँसी डिवीजन को छोड़कर), जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले) हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी) और उत्तराखण्ड (तराई क्षेत्र) के लिए समय से बुआई के लिए उपयुक्त है।

करण शिवानी DBW 327 किस्म की उत्पादन क्षमता

गेहूं की करण शिवानी DBW 327 किस्म से अधिकतम 87.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं औसतन 79.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है। वहीं इस वर्ष पंजाब एवं हरियाणा के किसानों ने इस किस्म से बंपर पैदावार ली है।

पंजाब के फतेहगढ़ साहिब ज़िले के चियारथल ख़ुर्द गाँव के किसान दविंदर सिंह उर्फ ​​हरजीत सिंह ने गेहूं की इस किस्म की बुआई 8 नवम्बर 2023 को की थी। किसान को गेहूं की इस किस्म से 33.70 क्विंटल प्रति एकड़ यानि की 84 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त हुई।

वहीं हरियाणा के पानीपत जिले के बरौली गाँव के किसान सुरेश कुमार ने इस क़िस्म की बुआई 7 नवम्बर के दिन की थी किसान को 32.40 क्विंटल प्रति एकड़ यानि की 81 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त हुई।

किसानों को सशक्त बनाएगी गेहूं की उन्नत किस्में

आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर, करनाल के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह ने किसानों की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्नत फसल किस्मों को विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि डीबीडब्ल्यू 327 किस्म की सफलता अनुसंधान और विकास, किसानों को सशक्त बनाने और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। डीबीडब्ल्यू 327 (करण शिवानी) किस्म का उत्कृष्ट प्रदर्शन कृषि परिवर्तन को आगे बढ़ाने और किसानों को उच्च स्तर का गेहूं उत्पादन प्राप्त करने में सक्षम बनाने में अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।

इस साल कपास की अधिक पैदावार लेने के लिए किसान रखें यह 5 सावधानियाँ

कपास की खेती करने वाले किसानों को हर साल कीट-रोगों एवं प्राकृतिक आपदाओं के चलते काफी नुकसान होता हैं, यहाँ तक कि अब तो कई किसानों ने कपास की खेती करना ही छोड़ दिया है। ऐसे में किसान कम लागत में कपास की ज्यादा से ज्यादा पैदावार ले सकें इसके लिए कृषि विभाग एवं कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किसानों को प्रशिक्षण सहित जरुरी सलाह भी दी जा रही है। इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा किसानों को इस वर्ष कपास की खेती के लिए कुछ सावधानियाँ रखने को कहा गया है।

विश्वविद्यालय की ओर से जारी सलाह में कहा गया है कि राज्य के किसान बीटी कपास की बिजाई मध्य मई तक ही पूरी कर लें, जून महीने में कपास की बिजाई नहीं करें। साथ ही किसानों को कपास की बिजाई से पहले गहरा पलेवा लगाने के लिए भी सलाह दी गई है। किसान कपास की बिजाई सुबह या शाम के समय ही करें साथ ही पूर्व से पश्चिम की दिशा में कपास की बिजाई करना फायदेमंद रहता है।

कपास की खेती करने वाले किसान रखें यह सावधानियाँ

  1. अभी के समय में गुलाबी सुंडी के प्रति बीटी कपास का प्रतिरोधक बीज उपलब्ध नहीं है इसलिए किसान 3G, 4G एवं 5G के नाम से आने वाले बीजों से सावधान रहें।
  2. गुलाबी सुंडी बीटी नरमे के दो बीजों (बिनौले) को जोड़कर भंडारित लकड़ियों में रहती है, इसलिए किसान लकड़ी और बिनौले के भंडारण में सावधानी रखें।
  3. किसान भाई अपने खेत में या आसपास रखी गई पिछले साल की नरमा की लकड़ियों के टिंडे एवं पत्तों को झटका कर अलग कर दें एवं इकट्ठा हुए कचरे को नष्ट कर दें। इन लकड़ियों के टिंडों में गुलाबी सुंडी निवास करती है इसलिए यह काम जल्द कर लें।
  4. जिन किसानों ने अपने खेतों में बीटी नरमा की लकड़ियों को भंडारित करके रखा है या उनके खेतों के आसपास कपास की जिनिंग व बिनौले से तेल निकालने वाली मिल लगती है उन किसानों को अपने खेतों में विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इन किसानों के खेतों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप अधिक होता है।
  5. कपास की शुरुआती अवस्था में किसान ज्यादा जहरीले कीटनाशकों का उपयोग ना करें। ऐसा करने से मित्र कीटों की संख्या भी कम हो जाती है।