कृषि विषय को लेकर पढ़ने वाली लड़कियों को दी जाएगी छात्रवृति, 30 नवम्बर तक यहाँ करना होगा आवेदन

छात्राओं को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन

कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके लिए महिलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु सरकार द्वारा कई योजनाओं के तहत उन्हें अनुदान दिया जाता है। इस कड़ी में अधिक से अधिक लड़कियाँ कृषि क्षेत्र में कार्य करें इसके लिए राजस्थान सरकार कृषि विषय में अध्ययन करने वाली लड़कियों को प्रोत्साहन स्वरूप छात्रवृति देती है।

राजस्थान सरकार ने कृषि विषय लेकर अध्ययन करने वाली छात्राओं के लिए प्रोत्साहन राशि के आवेदन पत्र मांगे हैं। योजना के तहत कृषि क्षेत्र में अध्ययनरत छात्राओं को 11वीं कक्षा से लेकर पी.एच.डी. तक के लिए छात्रवृत्ति देने का प्रावधान है। इसके लिए ‘‘राज किसान साथी‘‘ पोर्टल पर 30 नवम्बर तक जिले के उप निदेशक कृषि (विस्तार) जिला परिषद को आवेदन करना होगा।

प्रत्येक वर्ष दी जाएगी प्रोत्साहन राशि (छात्रवृत्ति)

योजना के तहत राजस्थान राज्य में कृषि विषय लेकर 11वीं एवं 12वीं कक्षाओं में अध्ययन कर रही छात्राओं को 5 हजार रूपये प्रतिवर्ष प्रोत्साहन राशि प्रदान की जायेगी। कृषि विज्ञान में स्नातक, उद्यानिकी, डेयरी, कृषि अभियांत्रिकी, खाद्य प्रसंस्करण आदि विषयों में अध्यनरत छात्राओं को 12 हजार रूपये प्रतिवर्ष दिये जायेंगे । कृषि स्नाकोत्तर शिक्षा में 2 वर्षीय पाठ्यक्रम के लिए 12 हजार रूपये प्रतिवर्ष प्रदान किये जायेंगे। कृषि विषय में पी.एच.डी. कर रही छात्राओं को 15 हजार रूपये प्रतिवर्ष 3 साल तक दिये जाने का प्रावधान है।

छात्रवृत्ति हेतु आवश्यक दस्तावेज 

आवेदन करते समय छात्राओं को कुछ दस्तावेज ऑनलाइन अपलोड करने होंगे जो इस प्रकार है:-

  • जन आधार कार्ड,
  • गत वर्ष की अंकतालिका,
  • मूल निवास प्रमाण पत्र,
  • संस्था प्रधान का ई-साइन प्रमाण पत्र,
  • नियमित विद्यार्थी होने का संस्था प्रधान का प्रमाण पत्र,
  • श्रेणी सुधार हेतु प्रवेश नहीं लेने का प्रमाण पत्र आदि।

प्रोत्साहन राशि हेतु यहाँ करें आवेदन

राज्य की इच्छुक छात्राएँ ई-मित्र के माध्यम से अथवा स्वयं की एस.एस.ओ. आई.डी. से राज किसान साथी पोर्टल पर प्रोत्साहन राशि के लिए आवेदन कर सकती है। इसके अलावा अधिक जानकारी के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर कृषि पर्यवेक्षक या पंचायत समिति स्तर पर सहायक कृषि अधिकारी या जिला स्तर पर उप निदेशक कृषि (विस्तार) से सम्पर्क कर सकते हैं।

किसान इस तरह करें लम्पी स्किन डिजीज रोग की पहचान एवं उसका नियंत्रण

पशु में लम्पी स्किन डिजीज LSD रोग

भारत दुनिया में सबसे बड़ा पशुपालक तथा दुग्ध उत्पादक देश है। 20वीं पशुगणना के अनुसार देश में गोधन की आबादी 18.25 करोड़ है, जबकि भैंसों की आबादी 10.98 करोड़ है। इस प्रकार दुनिया में भैसों की संख्या भारत में सर्वाधिक है। देश की एक बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी हुई है, यदि कोई भी रोग महामारी का रूप लेकर पशुओं को ग्रसित करता है तो इसका सीधा असर उनके उत्पादन पड़ता है, जिसका सीधा असर पशुपालकों की आय पर पड़ता है।

बारिश के मौसम में पशुओं में कई संक्रामक रोग फैलते हैं जिसमें लम्पी स्किन डिजीज भी एक है। लम्पी स्किन डिजीज (एलएसडी) या ढेलेदार त्वचा रोग वायरल रोग है, जो गाय-भैसों को संक्रमित करता है। इस रोग से कभी-कभी पशुओं की मौत भी हो सकती है। पिछले दो वर्षों में यह रोग तमिलनाडु, कर्नाटक, ओडिशा, केरल, असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में देखा गया है।

तेज़ी से फैलता है यह रोग

लम्पी स्किन डिजीज रोग को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे बहुत तेज़ी से फैलने वाले रोगों की सूची में रखा है। LSD वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे कीटों से आसानी से फैलता है। इसके साथ ही यह दूषित पानी, लार एवं चारे के माध्यम से भी पशुओं को संक्रमित करता है। गर्म एवं नमी वाला मौसम इस रोग को और ज़्यादा तीव्रता से फैलता है।ठंडा मौसम आने पर इस रोग की तीव्रता में कमी आ जाती है।

लम्पी स्किन डिजीज LSD रोग का फैलाव 

एलएसडी, क्रेप्रीपांक्स वायरस से फैलता है। अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दुसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। यह रोग मच्छरों–मक्खियों एवं चारे के जरिए फैलता है। भीषण गर्मी और पतझड़ के महीनों के दौरान संक्रमण बढ़ जाता है क्योंकि मक्खियाँ भी अधिक हो जाती है। वायरस दूध, नाक – स्राव, लार, रक्त और लेक्रिमल स्राव में भी स्रावित होता है, जो पशुओं को खिलाने और पानी देने वाले कुंडों में संक्रमण का अप्रत्यक्ष स्रोत बनता है | यह रोग गाय का दूध पीने से बछड़ों को भी संक्रमित कर सकता है। संक्रमण के 42 दिनों तक वीर्य में भी वायरस बना रहता है। इस रोग का वायरस मनुष्य के लिए संक्रमणीय नहीं है |

लम्पी स्किन डिजीज LSD रोग के लक्षण 

इस रोग से ग्रस्त पशु में 2–3 दिनों तक तेज बुखार रहता है। इसके साथ ही पूरे शरीर पर 2 से 3 से.मी. की सख्त गांठें उभर आती हैं। कई अन्य तरह के लक्षण जैसे कि मुँह एवं श्वास नली में जख्म, शारीरिक कमजोरी, लिम्फनोड (रक्षा प्रणाली का हिस्सा) की सूजन, पैरों में पानी भरना, दूध की मात्रा में कमी, गर्भपात, पशुओं में बांझपन मुख्यत: देखने को मिलता है। इस रोग के ज्यादातर मामलों में पशु 2 से 3 हफ्तों में ठीक हो जाता है, लेकिन दूध में कमी लम्बे समय तक बनी रहती है। अत्यधिक संक्रमण की स्थिति में पशुओं की मृत्यु भी संभव है, जो कि 1 से 5 प्रतिशत तक देखने को मिलती है।

एलएसडी को कई प्रकार के रोगों के साथ भ्रमित किया जा सकता है, जिसमें स्यूडो लंपी स्किन डिजीज (बोवाइन हर्पीसवायरस 2), बोवाइन पैपुलर स्टोमाडीकोसिस शामिल हैं | इसलिए इस रोग की पुष्टि प्रयोगशाला में उपलब्ध परीक्षणों के माध्यम से वायरस डीएनए या उसकी एंटीबॉडी का पता लगाकर करनी चाहिए।

पशुओं को इस रोग से बचाने के उपाय 

  • रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए, यदि फ़ार्म पर या नजदीक में किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए।
  • रोग के लक्षण दिखाने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए, मेला, मंडी एवं प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए।
  • फ़ार्म में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए, मुख्यत: मच्छर, मक्खी, पिस्सू एवं चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए।
  • रोगी पशुओं की जांच एवं इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए एवं फ़ालतू सामान को उचित प्रबंधन करके नष्ट कर देना चाहिए।
  • यदि अपने फ़ार्म पर या आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए।
  • एक फ़ार्म के श्रमिक को दुसरे फ़ार्म में नहीं जाना चाहिए, इसके साथ–साथ श्रमिक को अपने शरीर की साफ़–सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। संक्रमित पशुओं की देखभाल करने वाले श्रमिक, स्वस्थ पशुओं से दूरी बनाकर रहें या फिर नहाने के बाद साफ़ कपड़े पहनकर स्वस्थ पशुओं की देखभाल करें।
  • पूरे फ़ार्म की साफ़–सफाई का उचित प्रबंध होना चाहिए, फर्श एवं दीवारों को अच्छे से साफ़ करके एक दीवारों की साफ़–सफाई के लिए फिनोल (2 प्रतिशत) या आयोडीनयुक्त कीटनाशक घोल (1:33) का उपयोग करना चाहिए।
  • बर्तन एवं अन्य उपयोगी सामान को रसायन से कीटाणु रहित करना चाहिए। इसके लिए बर्तन साफ़ करने वाला डिटरजेंट पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइड, (2–3 प्रतिशत) या कुआटर्नरी अमोनियम साल्ट (0.5 प्रतिशत) का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • यदि कोई पशु लम्बे समय तक त्वचा रोग से ग्रस्त होने के बाद मर जाता है, तो उसे दूर ले जाकर गड्डे में दबा देना चाहिए।
  • जो सांड इस रोग से ठीक हो गए हों, उनकी खून एवं वीर्य की जांच प्रयोगशाला में करवानी चाहिए। यदि नतीजे ठीक आते हैं, उसके बाद ही उनके वीर्य का उपयोग करना चाहिए।

अभी तक इस रोग का टीका नहीं बना है, लेकिन फिर भी यह रोग बकरियों में होने वाले गोट पॉक्स की तरह के टीके से उपचारित किया जा सकता है। गाय–भैंसों को भी गोट पॉक्स का टिका लगाया जा सकता है एवं इसके परिणाम भी बहुत अच्छे मिलते हैं  इसके साथ ही दुसरे पशुओं को रोग से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधे एवं बुखार और लक्षण के हिसाब से उसका इलाज करवाना चाहिए।

इलाज के लिए इन बातों का रखें ध्यान

यह रोग विषाणु से फैलता है, जिसके कारण इस रोग का कोई विशिष्ट इलाज नहीं है। संक्रमण की स्थिति में अन्य रोग से बचाव के लिए पशुओं का इलाज करना चाहिए।

  • रोगी पशुओं का इलाज के दौरान अलग ही रखना चाहिए,
  • रोगी पशुओं के बचाव के लिए जरूरत अनुसार एंटीबायोटिक दवाइओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • दवाईयों का उपयोग डॉक्टर की सलाह अनुसार ही करना चाहिए।
  • यदि पशुओं को बुखार है, तो बुखार घटाने की दवाई दी जा सकती है।
  • यदि पशुओं के ऊपर जख्म हो, तो उसके अनुसार दवाई लगानी चाहिए।
  • पशुओं की खुराक में नरम चारा एवं आसानी से पचने वाले दाने का उपयोग करना चाहिए।

किसानों को मक्का एवं दलहन फसलों की खेती के लिए दिया जाएगा अनुदान

मक्का एवं दलहन फसलों की खेती पर अनुदान

धान की खेती से लगातार गिरते हुए भूमिगत जल स्तर को रोकने के लिए एवं दलहन क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार दलहन तिलहन एवं मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। जिसके तहत धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को अन्य फसल लगाने पर अनुदान दिया जाता है इस कड़ी में हरियाणा सरकार फसल विविधिकरण हेतु राज्य के किसानों को मक्का एवं दलहन की खेती करने वाले किसानों को अनुदान देने जा रही है। 

हरियाणा के मुख्य सचिव श्री संजीव कौशल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत राज्य स्तरीय अनुमोदन समिति की बैठक हुई । बैठक में 159 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की गई। परियोजना के तहत राज्य में जोखिम फ्री खेती, फसल विविधिकरण को बढ़ावा देने एवं भूमि को जलभराव से मुक्त कराने का लक्ष्य रखा गया है। 

मक्का एवं दलहन फसलों की खेती के लिए दिया जाएगी प्रोत्साहन राशि 

मुख्य सचिव ने प्रदेश में मक्का उगाने वाले किसानों को 2400 रुपए प्रति एकड़ तथा दलहन फसलों के लिए 3600 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि को मंजूरी दी है। इससे प्रदेश में तिलहनी और दलहनी फसलों को बढावा मिलेगा। इसके अलावा फसल विविधिकरण के लिए 38.50 करोड़ रुपए की स्वीकृति प्रदान की गई है ताकि किसान परम्परागत खेती के अलावा फसल विविधिकरण अपना कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकें।

फसल विविधिकरण के लिए प्रदेश के 10 जिलों में डेंचा, मक्का और दलहनी फसलों को बढावा देने के लिए 50 हजार एकड़ भूमि में फसल विविधिकरण की योजनाएं क्रियान्वित की जाएगी। फसल चक्र बदलने से भूजल के गम्भीर दोहन को रोकने में भी मदद मिलेगी और मिट्टी स्वास्थ्य में सुधार होगा। जल संरक्षण के कार्यों में भी वृद्धि की जाएगी ताकि भूमिगत जलस्तर में सुधार हो सके।

जोखिम फ्री खेती को दिया जाएगा बढ़ावा

मुख्य सचिव ने कहा कि प्रदेश के किसानों का जोखिम कम करने और कृषि व्यापार, उद्यमिता को बढावा देने के माध्यम से खेती को एक लाभकारी आर्थिक गतिविधि बनाने के लिए कारगर योजनाएं क्रियान्वित की जा रही है। इन योजनाओं के लिए प्रदेश की राज्य स्तरीय अनुमोदन समिति की बैठक में अनुमति प्रदान की गई है। इन योजनाओं के क्रियान्वयन से कृषि की उच्च तकनीक विकसित करने में मदद मिलेगी और किसानों की आय में बढौतरी होगी।

20 हजार एकड़ भूमि को जलभराव समस्या से किया जाएगा मुक्त

प्रदेश के किसानों को जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए पोर्टल बनाया गया है। किसान स्वेच्छा से पोर्टल पर अपलोड कर अपनी कृषि भूमि से जल निकासी करवा सकते है। इस वर्ष झज्जर, रोहतक, सोनीपत के किसानों की 20 हजार एकड़ भूमि को जलभराव समस्या से निजात दिलाने का लक्ष्य रखा गया है।

फसल राहत योजना के तहत किसानों को दी जाएगी 20,000 रुपए तक की सहायता राशि, किसान यहाँ करें आवेदन

फसल राहत योजना के तहत किसान सहायता एवं आवेदन 

इस वर्ष पूरे देश में अभी तक मानसून का वितरण असामान्य रहा है, कहीं सामान्य से अधिक बारिश तो कहीं सामान्य से बहुत ही कम बारिश हुई है। दोनों ही स्थितियों में किसानों की फसलों को काफी नुकसान हुआ है, कई जगह तो किसान अभी तक खरीफ फसलों की बुआई तक नहीं कर पाए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार एवं झारखंड जैसे राज्यों में तो सूखे की स्थिति बन गई है। इस परिस्थिति को देखते हुए झारखंड राज्य सरकार ने राज्य में फसल राहत योजना लागू कर दी है। योजना के तहत किसानों की फसलों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सहायता राशि दी जाएगी।

झारखंड में इस वर्ष अब तक 58 फ़ीसदी बारिश कम हुई है। 15 मई से 15 अगस्त के बीच बुवाई का मौसम होता है लेकिन बारिश कम होने से पूरे राज्य में 10% से भी कम बुवाई का काम हुआ है। यह बातें राज्य के कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के मंत्री श्री बादल ने झारखंड राज्य फसल राहत योजना के क्रियान्वयन के संदर्भ में सभी जिलों के उपायुक्तों, कृषि पदाधिकारियों के साथ हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए कही।

तैयार की जाएगी वैकल्पिक फसल लगाने के लिए योजना

झारखंड के कृषि मंत्री श्री बादल ने कहा कि इस वर्ष बारिश कम हुई है 10% से भी कम बुआई हुई है और 65 फ़ीसदी तक बिचड़ा डाला गया है। इसे देखते हुए सभी उपायुक्तों को निर्देश दिया गया है कि वैकल्पिक फसल की योजना तैयार रखें। सभी उपायुक्तों को जिला स्तरीय समन्वय समिति की बैठक 1 सप्ताह के अंदर सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं साथ ही जनता की जागरूकता के लिए प्रचार-प्रसार करने का भी निर्देश जारी किया गया है। जिन क्षेत्रों में सूखा का असर ज्यादा हो सकता है, उन क्षेत्रों के लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है जो क्षेत्रों का मुआयना करके अपनी रिपोर्ट देगी।

किसानों को दी जाएगी 20 हजार रुपए तक की सहायता

झारखंड राज्य फसल योजना के बारे में जानकारी देते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि गोष्ठियों के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रखंड एवं जिला स्तर पर समन्वय समिति का गठन किया गया है साथ ही राज्य में 20,000 कॉमन सर्विस सेंटर एवं प्रज्ञा केंद्रों में किसान अपना निबंधन करा सकते हैं। इसके अलावा आवेदन स्वयं भी किया जा सकता है। राहत योजना के तहत डीबीटी के माध्यम से किसानों को 20 हजार रूपये तक का सहयोग सरकार के द्वारा दिया जाएगा।

क्या हैं झारखंड राज्य फसल राहत योजना

फसल राहत योजना के तहत उन्हीं किसानों को लाभ दिया जाएगा जिनकी फसलों को प्राकृतिक आपदा के चलते क्षति पहुँची है। योजना का लाभ लेने के लिए किसानों को प्रत्येक फसल मौसम ( खरीफ एवं रबी) में अलग-अलग निबंधन एवं आवेदन करना होगा। जिसके लिए किसी भी प्रकार का प्रीमियम किसानों को नहीं देना होगा। प्राकृतिक आपदा से हुए फसल क्षति का आकलन एवं निर्धारण क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट के द्वारा किया जाएगा। योजना के प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:-

  • 30% से 50% तक फसल क्षति होने पर आवेदक को प्रति एकड़ 3000 रूपये की सहायता राशि दी जाएगी।
  • 50% से अधिक फसल क्षति होने पर आवेदक को प्रति एकड़ 4000 रूपये की सहायता राशि दी जाएगी।
  • अधिकतम 5 एकड़ तक फसल क्षति सहायता राशि दी जाएगी।

इन किसानों को मिलेगा योजना का लाभ

  • सभी रैयत एवं बटाईदार किसान जो झारखंड राज्य के निवासी हों, को योजना का लाभ दिया जाएगा।
  • आवेदक किसान की आयु 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
  • किसान के पास वैध आधार संख्या होनी चाहिए।
  • कृषि कार्य करने से संबंधित वैध भूमि दस्तावेज /भू स्वामित्व प्रमाण पत्र अथवा राजस्व रसीद/ राजस्व विभाग से निर्गत बंदोबस्ती /पट्टा बटाईदार किसानों द्वारा भूस्वामी से सहमति पत्र)
  • न्यूनतम 10 डिसमिल और अधिकतम 5 एकड़ हेतु निबंधन।
  • यह योजना सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है।
  • आवेदक किसानों को अपना संख्या बायोमेट्रिक प्रणाली द्वारा प्रमाणित करना होगा।

ऑनलाइन पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • आधार संख्या
  • मोबाइल संख्या 
  • आधार संबंध बैंक खाता विवरण
  • आयतन भू स्वामित्व प्रमाण पत्र अथवा राजस्व रसीद( 31 मार्च 2022 तक भुगतान किया हुआ)
  • वंशावली (मुखिया /ग्राम प्रधान/ राजस्व कर्मचारी /अंचल अधिकारी द्वारा निर्गत)
  • सरकारी भूमि पर खेती करने हेतु राजस्व विभाग से निर्गत बंदोबस्ती पट्टा (बटाईदार किसान द्वारा)
  • घोषणा पत्र (रैयत और बटाईदार किसान द्वारा)
  • सहमति पत्र (बटाईदार किसान द्वारा)
  • पंजीकृत किसानों के चयनित फसल एवं बुवाई के रखवा का पूर्ण विवरण।

किसान यहाँ करे आवेदन

झारखंड राज्य के किसान जो योजना तहत पात्रता रखते हैं ऐसे किसान योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। किसान यह आवेदन http://jrfry.jharkhand.gov.in पर स्वयं या कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से पंजीकरण कर किया जा सकता है।

सब्सिडी पर पैडी (राइस) ट्रांसप्लांटर लेने के लिए आवेदन करें

पैडी Rice ट्रांसप्लांटर अनुदान हेतु आवेदन

कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए सरकार द्वारा कृषि यंत्र अनुदान पर दिए जाते हैं, कृषि यंत्रों की मदद से किसान कम समय में अधिक कार्य कर सकते हैं जिससे उत्पादन में भी वृद्धि होती है। कृषि मजदूरों की कमी के समय कृषि यंत्र किसी वरदान से कम नहीं होते हैं। इसकी महत्ता को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों को धान की रोपाई के लिए पैडी (राइस) ट्रांसप्लांटर के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। राज्य के इच्छुक किसान इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।

मध्य प्रदेश कृषि अभियांत्रिकी संचनालय ने पैडी ट्रांस्प्लांटर यंत्र को माँग के अनुसार श्रेणी में रखा है। जिसमें प्राप्त आवेदनों हेतु लॉटरी नहीं निकाली जाएगी तथा उपलब्ध बजट के आधार पर संचालनालय स्तर से आवेदनों को अनुमोदित किया जायेगा। अनुमोदित होने पर कृषक का आवेदन पोर्टल पर चयनित कृषकों की सूची में प्रदर्शित किया जायेगा। अनुमोदन की सूचना कृषक को एस.एम.एस. के माध्यम से दी जायेगी।

पैडी (राइस) ट्रांसप्लांटर पर कितनी सब्सिडी दी जाएगी?

मध्यप्रदेश में किसानों को अलग-अलग योजनाओं के तहत कृषि यंत्रों पर किसान वर्ग एवं श्रेणी के अनुसार अलग-अलग सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है, जो 40 से 50 प्रतिशत तक है। किसान जो कृषि यंत्र लेना चाहते हैं वह किसान पोर्टल पर उपलब्ध सब्सिडी कैलकुलेटर पर कृषि यंत्र की लागत के अनुसार उनको मिलने वाली सब्सिडी की जानकारी देख सकते हैं।

पैडी ट्रांसप्लांटर यंत्र से धान रोपाई की विधि 

नर्सरी तैयार करने की विधि बहुत ही सरल है सबसे पहले मेट टाईप नर्सरी तैयार करना होता है। पोलीथिन के ऊपर फ्रेम की सहायता से गीली मिट्टी डालकर बराबर मात्रा में अंकुरित धान को छिड़का जाता है इसके लिए प्रति एकड़ लगभग 7 से 8 किलो ग्राम धान के बीज की आवश्यकता होती है। नर्सरी 15 से 18 दिन में मशीन से रोपाई हेतु तैयार हो जाती है। मशीन रोपाई हेतु खेत की उथली मताई रोपा के 4 से 5 दिन पहले करनी होती है, 1 एकड़ धान की मशीन से रोपाई हेतु मात्र 2 से 3 घंटे का समय लगता है एवं मजदुर मात्र 3 से 4 की आवष्यकता होती है। जबकि परंपरागत विधि से धान रोपाई में 15 से 20 मजदूर लगते हैं एवं लागत भी ज्यादा होती है।

किसानों को देना होगा 5 हजार रुपए का डिमांड ड्राफ्ट (डीडी)

कृषि यंत्रों के आवेदन में ऐसा देखा गया है कि किसान का सूची में नाम आ जाने के बावजूद भी कृषि यंत्र की खरीदी नहीं करते हैं | इसको देखते हुए किसान से 5000 रूपये का डिमांड ड्राफ्ट जिले के सहायक कृषि यंत्री के नाम से बनवाना होगा, आवेदन के समय उसकी स्कैन प्रति किसानों को ऑनलाइन अपलोड करनी होगी।

बैंक ड्राफ़्ट डीडी तैयार करने के लिए ज़िलेवार सहायक कृषि यंत्री की सूची देखने के लिए क्लिक करें 

अनुदान पर पैडी ट्रांसप्लांटर यंत्र लेने के लिए आवेदन कहाँ करें ? 

राज्य में किसानों को पहले माँग के अनुसार कृषि यंत्रों के लिए आवेदन ऑफ़लाइन करना होता था, परंतु अब प्रक्रिया में बदलाव कर दिया गया है। अब माँग के अनुसार श्रेणी के कृषि यंत्र के लिए भी किसानों ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदनों में डीलर चयन तथा आगे की समस्त प्रक्रियाएं तथा समयावधि, लॉटरी उपरांत चयनित कृषकों की प्रक्रिया के सामान ही रहेगी।

किसान भाई ऑनलाइन e-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर कर सकते हैं परन्तु सभी किसान भाइयों को यह बात ध्यान में रखना होगा की आवेदन के समय उनके पंजीकृत मोबाइल नम्बर पर OTP वन टाइम पासवर्ड प्राप्त होगा| इसलिए किसान अपना मोबाइल अपने पास रखें | किसान https://dbt.mpdage.org/ पर जाकर आवेदन कर सकते हैं।

पैडी (राइस) ट्रांसप्लांटर सब्सिडी पर लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन हेतु क्लिक करें

4 लाख किसानों को ड्रिप, 9 हजार किसानों को फार्म पौण्ड एवं 22 हजार किसानों को सोलर पम्प पर दिया जाएगा अनुदान

ड्रिप, फार्म पौण्ड एवं सोलर पम्प पर अनुदान

केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। योजना के तहत किसानों को आधुनिक कृषि के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा कृषि यंत्र एवं अन्य तकनीकों पर अनुदान दिया जाता है। अधिक से अधिक किसानों को योजना का लाभ मिल सके इसके लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं।  इस क्रम में 20 जुलाई को राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत कृषि बजट में की गई घोषणाओं के क्रियान्वयन के लिए अधिकारियों को निर्देश दिए।

श्री गहलोत मंगलवार शाम मुख्यमंत्री निवास पर राजस्थान राज्य कृषि बजट की समीक्षा बैठक का आयोजन किया। उन्होंने कहा कि राज्य में ऐसे कृषि प्रावधान किए जाने चाहिए जिससे कृषि संबंधित योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ लघु और सीमांत किसानों को मिल सकें। उन्होंने योजनाओं का प्रदेश में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाकर प्रक्रियात्मक पारदर्शिता में वृद्धि करने के भी निर्देश दिए।

4 लाख किसानों को किया जाएगा ड्रिप इरिगेशन से लाभांवित

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि ड्रिप इरिगेशन से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। राजस्थान जैसे मरूस्थलीय प्रदेश में ड्रिप इरिगेशन ही सिंचाई हेतु एक दीर्घकालिक समाधान है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बजट में 4 लाख किसानों को ड्रिप इरिगेशन से लाभांवित करने के लिए 1,705 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ड्रिप इरिगेशन के लिए राजस्थान सूक्ष्म सिंचाई मिशन के अंतर्गत 1.60 लाख कृषकों को सिंचाई संयंत्र उपलब्ध कराने के लिए स्वीकृति जारी कर दी गई है।

डिग्गी, फार्म पौण्ड एवं सोलर पम्प पर दिया जाएगा अनुदान

मुख्य मंत्री ने बताया कि इस वर्ष बजट में घोषित 825 करोड़ की सब्सिडी के अंतर्गत अब तक 9,738 फार्मपौण्ड व 1,892 डिग्गियों के निर्माण हेतु स्वीकृति जारी की जा चुकी है। वहीं, किसानों को सोलर पंप की स्थापना के लिए 22,807 कार्य आदेश जारी किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि इन सोलर पंपों पर सरकार द्वारा 61.58 करोड़ का अनुदान दिया जा रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई में पानी की बचत वाली स्कीमों पर लगभग 75 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है।

1000 हजार ड्रोन खरीदे जाएंगे

बैठक में बताया गया कि 40 करोड़ की लागत से 1000 ड्रोन ग्राम सेवा सहकारी समितियों तथा कृषक उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को उपलब्ध करवाए जाने का कार्य किया जा रहा है। इससे किसान प्रभावी एवं सुरक्षित तरीके से कम समय में कीटनाशकों का छिड़काव कर सकेंगे, जिससे फसल की रक्षा हो सकेगी एवं कम लागत से उनकी आय में भी बढ़ोतरी होगी।

ग्रीन हाउस, शेडनेट, लॉटनल, प्लास्टिक मल्चिंग के लिए भी दी जाएगी सब्सिडी

बैठक में बताया गया कि सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए राजस्थान संरक्षित खेती मिशन के तहत ग्रीन हाउस, शेडनेट, लॉटनल, प्लास्टिक मल्चिंग आदि तकनीकों के उपयोग के लिए किसानों को सब्सिडी दी जा रही है। 12,500 किसान इस योजना से लाभांवित हो चुके हैं। प्याज भंडारण केन्द्रों कर किसानों को प्याज, लहसुन आदि फसलों के लिए निःशुल्क भंडारण सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, ताकि उन्हें अपनी उपज कम दाम पर ना बेचनी पड़े। 

उन्होंने कहा कि राजस्थान फसल सुरक्षा योजना के अंतर्गत तारबंदी के लिए किसानों को 125 करोड़ रूपए के अनुदान दिया जा रहा है। योजना से लाभांवितों में आवश्यक रूप से 30 प्रतिशत लघु व सीमांत किसान होने का प्रावधान किया गया है। सभी योजनाओं में लघु व सीमांत किसानों का अतिरिक्त अनुदान दिया जा रहा है।

फलों व मसालों की खेती के लिए भी दिया जा रहा है अनुदान

मुख्यमंत्री ने कहा कि राजस्थान उद्यानिकी विकास मिशन के तहत फलों व मसालों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए 15000 हेक्टेयर क्षेत्र में फलों की खेती व 1500 हेक्टेयर क्षेत्र में मसालों की खेती का लक्ष्य निर्धारण कर कार्य किया जा रहा है। फल बगीचों की स्थापना के लिए अनुदान सीमा 50 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दी गई है। योजना अंतर्गत आवेदन प्राप्त कर स्वीकृति प्रदान करने का कार्य जारी है। साथ ही खजूर की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार द्वारा खजूर बगीचा स्थापित करने तथा टिश्यू कल्चर पौध आपूर्ति हेतु अनुदान दिया जा रहा है।

इस वर्ष इन मंडियों में की जाएगी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अरहर, उड़द और मूंग की खरीदी

अरहर, उड़द और मूंग की समर्थन मूल्य पर खरीदी

केंद्र सरकार ने इस वर्ष के लिए खरीफ सीजन की विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी कर दिए हैं। जिसके बाद अलग-अलग राज्य सरकारें राज्य में उत्पादन के अनुसार इन फसलों की खरीद की तैयारी के काम में लग गई है। इस वर्ष छत्तीसगढ़ सरकार भी राज्य में उत्पादित मूंग, उड़द तथा अरहर की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने जा रही है। सरकार ने इसके लिए विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। 

छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान है परंतु राज्य सरकार किसानों को राजीव गांधी न्याय योजना के तहत धान की खेती छोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। जिससे किसान दुसरे दलहनी तथा तिलहनी फसलों की खेती कर सके। सरकार के अनुसार राज्य में किसानों ने लगभग 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती छोड़ दी है। इसको देखते हुए राज्य सरकार ने राज्य में मूंग, उड़द तथा अरहर की खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने का फैसला किया है।

कब से शुरू की होगी अरहर, उड़द और मूंग की समर्थन मूल्य पर खरीदी

छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में खरीफ सीजन में उड़द, मूँग एवं अरहर की खरीदी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने तारीखों का ऐलान कर दिया है। जिसके अनुसार राज्य में उड़द एवं मूंग का उपार्जन 17 अक्टूबर 2022 से 16 दिसम्बर 2022 तक तथा अरहर का उपार्जन 13 मार्च 2023 से 12 मई 2023 तक की अवधि में किया जाएगा।

25 कृषि उपज मंडियों से खरीदी किया जाएगा 

राज्य सरकार ने गोदाम एवं भण्डारण की सुविधायुक्त 25 कृषि उपज मंडियों को अरहर, मूंग और उड़द की खरीदी के लिए उपार्जन केन्द्र के रूप में चिन्हांकित किया है। जिसके अनुसार इन फसलों की खरीद भाटापारा, गरियाबंद, महासमुन्द, बसना, दुर्ग, बेमेतरा, राजनांदगांव, खैरागढ़, डोंगरगढ़, गंडई, कवर्धा, पंडरिया, मुंगरेली, लोरमी, सक्ती, रायगढ़, अंबिकापुर, सूरजपुर, रामानुजगंज, जशपुर, कोंडागाँव, केशकाल, नारायणपुर, सम्बलपुर, पंखाजूर में किया जाना प्रस्तावित है। 

राज्य में अनुमानित उत्पादन 1.76 लाख मैट्रिक टन है 

राज्य में पहली बार मूंग, उड़द तथा अरहर का उपार्जन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने जा रहा है। राज्य में इस वर्ष किसान 3.54 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की फसल छोड़कर इन फसलों की खेती कर रहे हैं | इस वर्ष राज्य में 40 हजार हेक्टेयर में अरहर, 22 हजार हेक्टेयर में मूंग, एक लाख 75 हजार हेक्टेयर में उड़द की खेती का लक्ष्य है। इससे राज्य में 94,500 मैट्रिक टन अरहर, 12,100 मैट्रिक टन मूंग तथा 70,000 मैट्रिक टन उड़द का उत्पादन होने का अनुमान है।

किसानों को दी जाएगी प्रिंटेड रसीद

उपार्जन केन्द्रों में कृषकों की सामान्य जानकारी हेतु एफएक्यू उत्पाद का प्रदर्शन सुनिश्चित करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि एफएक्यू मानक का अरहर, उड़द एवं मूंग का समर्थन मूल्य से कम पर उपार्जन केन्द्र में विक्रय न हो। एफएक्यू गुणवत्ता की खरीदी की सघन मॉनिटरिंग की जाएगी। रेंडम सैम्पलिंग हेतु नाफेड के साथ राज्य स्तरीय संयुक्त टीम गठित की जाएगी, जो उपार्जन केन्द्र के खरीदी कार्य की तैयारी से लेकर संग्रहण तक का निरीक्षण करेंगे। किसान से क्रय की गई मात्रा की प्रिंटेड रसीद जिसमें देय राशि का उल्लेख हो, उपार्जन केन्द्र प्रभारी द्वारा हस्ताक्षर कर किसान को दी जाएगी।

क्या है मूंग, उड़द तथा अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य

केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ष की खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी कर दिया गया है। सरकार द्वारा जारी समर्थन मूल्य के अनुसार ही मूँग, उड़द एवं अरहर की खरीदी की जाएगी। अरहर, मूँग एवं उड़द के न्यूनतम  समर्थन मूल्य MSP इस प्रकार है:-

  • अरहर तथा उड़द – 6600 रूपये प्रति क्विंटल 
  • मूंग – 7755 रूपये प्रति क्विंटल

फसलों पर हुआ फड़का (ग्रासहोपर) कीट का हमला, किसान इस तरह बचाएँ अपनी फसल को

फड़का कीट का नियंत्रण

देश में अभी खरीफ फसलों का सीजन चल रहा है, जिसमें कई क्षेत्रों में किसानों के द्वारा मक्का, बाजरा एवं ज्वार आदि फसलें लगाई हैं। अभी के समय में इन फसलों पर फड़का (ग्रासहोपर) कीट का प्रकोप होने की जानकारी प्राप्त हो रही है। फड़का कीट बाजरा, ज्वार एवं मक्का फसल की पत्तियों को खाकर चट कर देता है। जिससे पौधों की बढ़वार सही तरह से नहीं हो पाती और सिट्टे/भुट्टे सही से नहीं निकल पाते जिससे उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। इसको देखते हुए राजस्थान कृषि विभाग ने किसानों के लिए परामर्श जारी किया है। 

फड़का (ग्रासहोपर) कीट के शिशु पत्तियों को किनारे से खाना आरंभ करते हैं जबकि प्रौढ़ कीट फसल को सीधा नुकसान पहुंचाते है इसलिए इसका शिशु अवस्था में ही नियंत्रण करना कारगर साबित होता है। किसान रासायनिक दवाओं के उपयोग से इस कीट पोर नियंत्रण पा सकते हैं। सरकार द्वारा इन कीटनाशकों की खरीद पर सब्सिडी भी दी जाती है।

किसान इस तरह करें फड़का कीट पर नियंत्रण

राजस्थान कृषि विभाग ने राज्य में खरीफ फसल को फड़का कीट से बचाने हेतु किसानों के लिए परामर्श जारी किया है। परामर्श में कहा गया है कि फसलों में ज्यादा आर्थिक क्षति होने पर या अधिक कीट होने पर रासायनिक कीट का प्रयोग किसान कर सकते हैं। कीटनाशक का प्रयोग सुबह या शाम के समय खड़ी फसल में करें। फड़का कीट की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत (चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, क्यूनालफास 25 प्रतिशत (ई.सी.) 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा मेलाथियान 5 प्रतिशत (चूर्ण) 25 किलो प्रति हेक्टेयर छिड़काव करने की सलाह दी जाती है | 

इसके अलावा किसान खेतों के किनारे कचरा, अलाव या पुराने टायर जलाकर भी फडके कीट का प्रकोप कम किया जा सकता है। कीट नियंत्रण के लिए एक लाईट ट्रेप प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में लगानी चाहिए।

कीटनाशक की खरीद पर सरकार देगी अनुदान

राजस्थान के कृषि आयुक्त श्री कानाराम ने निर्देश दिये कि फड़का (ग्रासहोपर) कीट व्याधि की सर्वेक्षण अथवा रेपिड रोविंग सर्वे रिपोर्ट पूरी कर अविलम्ब संयुक्त निदेशक कृषि (पौध संरक्षण) को भिजवायें ताकि किसानों को सरकारी अनुदान पर कीटनाशी रसायन उपलब्ध कराने के लिए भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों का आवंटन किया जा सके।

कृषि आयुक्त ने बताया कि अब किसान किसी भी अधिकृत डीलर से कीटनाशक खरीद सकते हैं, साथ ही अपनी इच्छा से डीलर से मोल भाव भी कर सकते हैं। कीट का समय पर नियंत्रण कर किसानों की फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।

पशुओं की नस्ल में सुधार कर दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए ब्राजील के सहयोग से स्थापित किया जाएगा उत्कृष्टता केंद्र

पशु नस्ल सुधार के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना

ब्राजील में वर्ष 1911 में भावनगर के राजा ने गिर नस्ल की गायों को दान के स्वरूप ब्राजील को दिया था और उसके बाद ब्राजील ने इन गायों की नस्ल सुधार में काम किया। ब्राजील में गिर गाय की नस्ल में सुधार कर गिरलैंडो नस्ल को तैयार किया गया है जो औसतन 15 लीटर दूध देती हैं जिसमें 99 प्रतिशत जेनेटिक्स हमारे देश की गिर गाय के पाए जाते हैं। यह जानकारी ब्राजील दौरे से लौटे हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण और पशुपालन मंत्री जे.पी.दलाल ने दी है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार गाय, भैंस तथा सूअर की नस्लों में सुधार करने के लिए ब्राज़ील की मदद से एक उत्कृष्ट केंद्र खोलने जा रही है। इसके अलावा पशुओं के आहार में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाने के लिए कनाडा की कंपनी से करार किया है।

ब्राजील की सहायता से खोला जाएगा उत्कृष्ट केंद्र

हरियाणा कृषि मंत्री ने कहा कि स्वदेशी नस्ल की गायों के विकास हेतु एम्ब्रापा, ब्राजील के सहयोग से हरियाणा में उत्कृष्ट केंद्र की स्थापना की जाएगी। ब्राजीलियन एसोसिएशन आँफ जेबू ब्रीडर्स (एबीसीजेड) से गिर जर्मप्लाज्म (वीर्य/भ्रूण) का आयात किया जाएगा। इसके अलावा, ब्राजील की एक जीनोमिक्स कम्पनी एल्टा जैनेटिक्स को गुणवत्ता वाले मुर्राह जर्म्पलाज्म के निर्यात की संभावनाएं तलाशी जाएगी | एम्ब्रापा ट्रांस्फर टेक्नोलोजी (ईटीटी) और इन-विटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) पर हरियाणा सरकार के मानव संसाधन का प्रशिक्षण भी होगा |

सूअर पालन के लिए भी की जाएगी उत्कृष्टता केंद्र

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कनाडा दौरे के संबंध में बताया कि राजकीय पशुधन फ़ार्म, हिसार में सार्वजनिक – निजी भागीदारी (पी.पी.पी.) से सूअर पालन (200 क्षमता प्रजनन फ़ार्म) के लिए उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना करना, राजकीय पशुधन फ़ार्म, हिसार में स्वच्छ दूध उत्पादन हेतु आधुनिक प्रबन्धन डेयरी फ़ार्म प्रथाओं सहित अत्यधिक डेयरी फ़ार्म स्थापित करना, स्वदेशी गायों और भैंसों के लिए हिसार में सैक्सड सोर्टिड सीमन संस्थान की स्थापना हेतु सीमेक्स प्रशिक्षण हेतु मानव संसाधन विनियम, जिसके लिए यह सहमती बनी है कि हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड (एच.एल.डी.बी.) द्वारा सास्काचेवान विश्वविध्यालय में प्रशिक्षण हेतु विभाग के 2 से 3 अधिकारीयों को नामंकित किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि हरियाणा राज्य के साथ मिलकर कनाडा में कृषि और संबंधित क्षेत्र में व्यवसाय के अवसरों का पता लगाना और पूरक सहयोग हेतु कृषि और संबंधित क्षेत्र की प्रौद्योगिकियों में हरियाणा राज्य में निवेश करने के लिए संयुक्त उद्यम समूहों की पहचान करना, कनाडा में पशु आहार निर्माण में अग्रणी उत्पादकों में से एक प्रोविटा द्वारा पशु चारा सामग्री निर्माण संयंत्रों की स्थापना शामिल हैं।

पशुओं में तेजी से फैल रही है यह बीमारी, किसान इस तरह करें अपने पशुओं का बचाव

पशुओं में फैल रही है लम्पी स्किन डिजीज LSD

बरसात के मौसम में पशुओं में कई तरह के संक्रामक रोग फैलते हैं, समय रहते इन रोगों का ईलाज करना आवश्यक है अन्यथा पशुओं की मौत भी हो सकती है। अभी देश के कई हिस्सों में पशुओं में एक जानलेवा बीमारी फैलने की जानकारी मिल रही है, जिसका इलाज समय पर किया जाना आवश्यक है। अभी देश के कई राज्यों के मवेशियों में लम्पी स्किन डिजीज के लक्षण दिखाई दिए हैं, जिसमें राजस्थान सहित तमिलनाडु, ओड़िशा, कर्नाटक, केरल, असम, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे कई राज्य शामिल है। 

तेज़ी से फैल रही इस बीमारी से बचाव के लिए राजस्थान के पशुपालन मंत्री श्री लालचन्द कटारिया ने सोमवार को पंत कृषि भवन में विभागीय उच्चाधिकारियों के साथ पश्चिमी राजस्थान में मवेशियों में फैल रही लम्पी स्किन डिजीज की स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को बीमारी की रोकथाम एवं उपचार के लिए आवश्यक दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और आपातकालीन परिस्थितियों में दवाइयां खरीदने के लिए बजट आंवटित करने के निर्देश दिए हैं।

राजस्थान के इन ज़िलों में फैली है लम्पी स्किन डिजीज

राजस्थान के पशुपालन मंत्री ने बताया कि कुछ दिनों से जैसलमेर, जालोर, बाड़मेर, पाली, जोधपुर एवं बीकानेर जिलों में यह संक्रामक रोग तेजी से गायों एवं भैंसों में फैल रहा है। उन्होंने बताया कि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य में आते-जाते रहते हैं, जिससे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल रही है। साथ ही इस रोग से संक्रमित पशुओं के अन्य स्वस्थ पशुओं के सम्पर्क में आने पर यह बीमारी फैल रही है।

क्या है लम्पी स्किन डिजीज के लक्षण

लम्पी स्किन डिजीज LSD या ढेलेदार त्वचा रोग एक वायरल रोग है, जो गाय भैंसों को संक्रमित करती है। इस रोग में शरीर पर गाठें बनने लगती है, ख़ासकर सिर, गर्दन और जाननागों के आसपास। धीरे धीरे ये गाँठें बड़ी होने लगती है एवं घाव बन जाते हैं, पशुओं को तेज बुख़ार आ जाता है और दुधारू पशु दूध देना कम कर देते हैं। इस रोग से मादा पशुओं में गर्भपात भी देखने को मिलता है एवं कई बार तो पशुओं की मौत भी हो जाती है।

किसान इस तरह अपने पशुओं को बचाएँ लम्पी स्किन बीमारी से 

पशुपालन मंत्री ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज से बचाव के लिए अभी तक कोई टीका नहीं बना है, ऐसे में पशु चिकित्सकों द्वारा लक्षण आधारित उपचार किया जा रहा है। उन्होंने पशुपालकों से आग्रह करते हुए कहा कि अन्य स्वस्थ पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार एवं गांठ आदि लक्षण दिखायी देने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर ईलाज कराएं।