मुख्यमंत्री ने की अपील, किसान 15 जुलाई तक कराएँ अपनी फसलों का बीमा

फसल बीमा योजना के तहत पंजीयन

देश में खरीफ फसलों की बुआई के साथ ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए पंजीयन चल रहे हैं। जहां कई राज्यों में फसल बीमा योजना के तहत पंजीयन कराने की अंतिम तिथि 31 जुलाई है वहीं कुछ राज्यों में फसल बीमा योजना के तहत लास्ट डेट 15 जुलाई है, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य शामिल है। फसल बीमा की अंतिम तिथि नजदीक होने के चलते राज्य के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने प्रदेश के सभी किसान भाईयों से अपनी खरीफ और उद्यानिकी फसलों का बीमा कराने की अपील की है। 

मुख्यमंत्री ने किसान भाइयों के नाम जारी अपनी अपील में कहा है, कि मौसम की अनिश्चितता और स्थानीय प्राकृतिक आपदा की स्थिति में भी किसानों की आय बनी रहे, इसलिए फसलों को बीमित कराना जरूरी है। शासन द्वारा किसान भाईयों को फसल बीमा की सुविधा नाममात्र प्रीमियम राशि पर उपलब्ध कराई जा रही है।

किसानों को फसल बीमा के लिए कितना प्रीमियम देना होगा ?

देश भर में चलाई जा रही फसल बीमा योजना के तहत किसानों को खरीफ फसलों के बीमा के लिए प्रीमियम राशि का मात्र 2 प्रतिशत और उद्यानिकी फसलों के बीमा के लिए प्रीमियम राशि का मात्र 5 प्रतिशत अंशदान के रूप में देना होता है। शेष राशि का भुगतान राज्य एवं केंद्र सरकार द्वारा फसल बीमा कम्पनियों को किया जाता है।

किसान इन फसलों का करा सकते हैं बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य के किसान धान सिंचित एवं असिंचित, अरहर, मूंग, उड़द, मक्का एवं उद्यानिकी फसलों के तहत टमाटर, बैंगन, अमरूद, केला, पपीता, मिर्च, अदरक का बीमा 15 जुलाई तक करा सकेंगे। कृषक अंश के रूप में ऋणी एवं अऋणी दोनों प्रकार के किसानों को यह प्रीमियम देना होगा। 

मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसान भाईयों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और मौसम आधारित उद्यानिकी फसल बीमा योजना अंतर्गत दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाना चाहिए और जोखिम से बचने के लिए फसलों का अनिवार्य रूप से बीमा कराना चाहिए।

किसानों को वर्ष 2021-22 के फसल दावा राशि का किया गया भुगतान

मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, जिसने अपने किसानों को सबसे पहले रबी सीजन 2021-22 की फसल बीमा दावा राशि का भुगतान किया है। खरीफ सीजन शुरू होने से पहले ही हमने डेढ़ लाख से ज्यादा किसानों को उनके द्वारा दी गई प्रीमियम राशि मात्र 15 करोड़ 96 लाख रुपए के एवज में 304 करोड़ 38 लाख रुपए के क्लेम राशि का भुगतान किया है। खरीफ सीजन 2021 में राज्य के 4 लाख से अधिक किसानों द्वारा दी गयी किसान प्रीमियम राशि 157 करोड़ 65 लाख रुपए के एवज में 758 करोड़ 43 लाख रुपए का भुगतान किया गया है।

फसल बीमा पंजीयन के लिए आवश्यक दस्तावेज 

राज्य के अऋणी किसान फसल लगाने का प्रमाण पत्र, नक्शा, खसरा, आधार कार्ड अपने बैक पासबुक की छायाप्रति जिसमें आईएफएससी कोड, शाखा, खाता क्रमांक इत्यादि का स्पष्ट उल्लेख हो, जमा कर बीमा करा सकते हैं। किसान बीमा कराने हेतु च्वाईस सेंटर, बीमा कंपनी के प्रतिनिधि, लोक सेवा केन्द्र, बैंक शाखा एवं सहकारी समिति से सम्पर्क कर सकते हैं।

किसान यहाँ से करें फसल बीमा योजना के लिए आवेदन

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजनांतर्गत ऋणी एवं अऋणी कृषक जो भू-धारक व बटाईदार हो सम्मिलित हो सकते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत खरीफ फसलों के लिये 2 प्रतिशत कृषक प्रीमियम राशि निर्धारित है। अतः इच्छुक किसान जो फसलों का बीमा करना चाहते हैं वह सम्बंधित बैंक में या प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी, कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) / ग्राम स्तरीय उद्यमियों (वीएलई), कृषि विभाग के कार्यालय, बीमा कंपनी के प्रतिनिधि या सीधे राष्ट्रीय फसल योजना एनसीआईपी के पोर्टल www.pmfby.gov.in और फसल बीमा ऐप (https://play.google.com/store/apps/details?id=in.farmguide.farmerapp.central) के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन करे सकते हैं।

किसानों को दी गई सहकारी चीनी मिलों की हिस्सेदारी, किसानों को होगा यह लाभ

किसानों को दिए गए चीनी मिलों के अंश प्रमाण-पत्र

किसान को चीनी मिलों को गन्ना बेचने के लिए कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, यहाँ तक कि किसानों को अपने द्वारा चीनी मिलों को बेचे गए गन्ने के लिए राशि का भुगतान भी सही समय पर नहीं हो पाता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के गन्ना किसानों के लिए एक अलग प्रकार की योजना शुरू की है। किसान अब गन्ना उत्पादक के साथ–साथ चीनी मिल के हिस्सेदार भी होंगे। राज्य सरकार ने किसानों को अधिक लाभ पहुँचाने के लिए उत्पादक के साथ–साथ मुनाफे में भागीदार भी बनाया है।

इसके साथ ही गन्ना बेचने के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी खत्म करने का प्रयास सरकार ने किया है। अब किसानों को गन्ना बेचने के लिए इंतजार तथा दुसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। राज्य सरकार ने राज्य के 50 लाख 10 हजार किसानों को अंश प्रमाण पत्र सौंपा है।

किसानों को दिया जाएगा बोनस

प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने लोकभवन में प्रदेश की सहकारी गन्ना विकास समितियों एवं सहकारी चीनी मिल समितियों के 50 लाख 10 हजार अंश धारक किसान सदस्यों को अंश प्रमाण पत्र कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसमें उन्होंने कहा कि यह आयोजन किसान को उस व्यवस्था में अधिकार देने के लिए है जिससे वह जुड़ा हुआ है। समिति का अंश-धारक बनने के बाद चीनी मिल को लाभ होने की स्थिति में किसानों को बोनस दिया जाएगा। जिससे किसानों को लगेगा की यह चीनी मिल उसकी है।

आधुनिक तकनीक के प्रयोग से समिति की बैलेन्स शीट अंश धारक के मोबाइल पर उपलब्ध होगी। जिससे चीनी मिलों के लाभ होने पर समिति के अंश धारक किसानों को भी बोनस मिलेगा। आवश्यकता पड़ने पर गन्ना किसान इन प्रमाण पत्रों की डिजिटल कॉपी भी स्मार्ट गन्ना किसान ऐप से प्राप्त कर सकते हैं।

बिचौलियों से मिलेगा छुटकारा 

किसानों को चीनी मिल में गन्ना बेचने के लिए बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता था। जिससे गन्ना उत्पादक किसान को कम मूल्य पर गन्ना बेचना पड़ता था। लेकिन किसानों को अंश प्रमाण पत्र मिलने के बाद बिचौलियों के शेयर पर अपना गन्ना नहीं बेचना पड़ेगा। किसानों के पास एक प्रमाण पत्र रहेगा। जिसमें किसान कितनी भूमि में गन्ना की खेती कर रहे हैं सब दर्ज रहेगा। गन्ना उत्पादन पर उस किसान को पहले ही पर्ची मिल जाएगा ।

किसानों को किया गया 1 लाख 77 हजार करोड़ रुपए का भुगतान

राज्य के मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य में गन्ना किसानों का चीनी मिल पर जो बकाया था उसका सबसे ज़्यादा भुगतान उत्तर प्रदेश की सरकार ने किया है | राज्य के किसानों को 1.77 लाख करोड़ रूपये का भुगतान पिछले 5 वर्षों में किया गया है। यह भुगतान कुल बकाया का 82 प्रतिशत है। उन्होंने निर्देश दिए की नए सत्र से पहले सम्पूर्ण बकाया गन्ना मूल्य भुगतान किसानों को कराया जाए। 

अब किसान किसी भी अधिकृत डीलर से अनुदान पर खरीद सकेंगे कृषि आदान

कृषि आदान अनुदान

किसानों को कृषि कार्यों के लिए खाद, बीज एवं कीटनाशक आदि सामग्रियों की आवश्यकता होती है। अभी तक किसान इन सामग्रियों पर अनुदान प्राप्त करने के लिए क्रय-विक्रय सहकारी समितियों तथा ग्राम सेवा सहकारी समितियों से ही खरीद सकते थे। राजस्थान सरकार ने राज्य के किसानों के लिए अब यह अनिवार्यता ख़त्म कर दी है। राज्य के किसान अब अपनी इच्छानुसार किसी भी वैद्य अनुज्ञा पत्र-धारी विक्रेताओं से अनुदान पर किसी भी निर्माता कम्पनी का कृषि आदान खरीद सकते है। साथ ही किसान अब वैद्य डीलरों से स्वतंत्र रूप से स्वयं मोल-भाव भी कर सकते हैं।

राजस्थान कृषि विभाग के आयुक्त श्री कानाराम ने बताया कि किसानों की सुविधा के लिए यह नई प्रक्रिया अपनाई गई है। इससे पूर्व किसान केवल क्रय-विक्रय सहकारी समितियों तथा ग्राम सेवा सहकारी समितियों से ही पौध संरक्षण रसायन, बायो एजेन्ट्स, बायो फर्टिलाइजर्स तथा सूक्ष्म पोषक तत्व खरीद सकते थे। इसके अतिरिक्त कृषि आदानों के रेट भी विभाग द्वारा ही तय किए जाते थे। अब किसी भी वैद्य अनुज्ञा पत्र-धारी डीलर से किसान अपने गांव में ही तथा मोल-भाव करके सही कीमत पर कृषि आदानों की खरीद कर सकते हैं ।

किसानों को कृषि आदान पर दिया जाने वाला अनुदान

सरकार द्वारा किसानों को कृषि आदानों पर अनुदान दिया जाता है, जिसमें पौध संरक्षण रसायन, बायो एजेन्ट्स तथा सूक्ष्म पोषक तत्व आदि शामिल है। पौध संरक्षण रसायन, बायो एजेन्ट्स तथा सूक्ष्म पोषक तत्व पर लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 500 रूपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जाता है। वहीं बायो फर्टिलाइजर्स पर अनुदान रसायन की लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 300 रूपये प्रति हेक्टेयर किसानों को दिया जाएगा। जिसमें एक किसान को अधिकतम 2 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए ही अनुदान दिया जाएगा।

किसान कृषि आदान पर अनुदान हेतु यहाँ करें आवेदन

राजस्थान राज्य के जो भी किसान पौध संरक्षण रसायन, बायो एजेन्ट्स, तथा सूक्ष्म पोषक तत्व की खरीद पर अनुदान लेना चाहते हैं तो उन किसानों को कृषि पर्यवेक्षक अथवा सहायक कृषि अधिकारी को आवेदन करना होगा। किसानों को अनुदान की राशि का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में किया जाएगा। कृषि आयुक्त ने बताया कि यह सम्पूर्ण प्रक्रिया राज किसान साथी पोर्टल पर ऑनलाइन की जाती है।

सूखे की स्थिति को देखते हुए सरकार किसानों को देगी डीजल पर अनुदान

फसल सिंचाई के लिए डीजल अनुदान

इस वर्ष देश के विभिन्न राज्यों में मानसून का वितरण असामान्य रहने के कारण इसका सीधा असर खरीफ फसलों की बुआई पर पड़ा है। देश के दो बड़े राज्य बिहार तथा उत्तर प्रदेश में किसान सूखे का सामना कर रहे है। ख़ासकर बिहार राज्य में मानसूनी वर्षा नहीं होने के कारण धान, जूट तथा अन्य खरीफ फसलों की बुवाई पर सीधा असर पड़ा है। राज्य में सूखे के कारण किसान एक तरफ फसल की बुवाई नहीं कर पा रहें हैं तो दूसरी तरफ बोई हुई फसलों को पानी भी नहीं दे पा रहे हैं। इस परिस्थिति को देखते हुए बिहार राज्य सरकार किसानों को सिंचाई के लिए डीजल पर अनुदान देने जा रही है।

बिहार कृषि मंत्री श्री अमरेन्द्र प्रताप सिंह ने बिहार में अनियमित मानसून की स्थिति में सम्भावित सूखे की संभावना से निपटने के लिए समीक्षा बैठक की। बैठक में बताया गया कि 11 जुलाई 2022 तक राज्य में सामान्य से 33% कम वर्षा हुई है, जिससे बिहार में सूखे की स्थिति बन गयी है। किसानों को सूखे की स्थिति से बचाने के लिए उन्होंने निर्वाध बिजली, किसानों को सिंचाई के लिए डीजल अनुदान एवं अन्य वैकल्पिक फसलों के बीज शत प्रतिशत अनुदान पर देने के लिए प्रक्रिया प्रारम्भ करने को कहा है। 

किसानों को डीजल पर कितना अनुदान दिया जाएगा

राज्य के किसान सूखे की स्थिति में अपनी फसलों की सिंचाई कर सके इसके लिए बिहार सरकार ने डीजल की खरीद पर अनुदान देने का फैसला लिया है। इसके लिए सरकार ने किसानों को धान का बिचड़ा एवं जुट की दो सिंचाई के लिए 60 रु. प्रति लीटर की दर से अनुमानित 10 लीटर डीजल खरीद के लिए 600 रुपए प्रति सिंचाई अर्थात दो सिंचाई के लिए 1200 रुपए तथा धान, मक्का, अन्य खरीफ फसलों के अन्तर्गत दलहनी, तेलहनी, मौसमी सब्जी, औषधीय एवं सुगंधित पौधों की 3 सिंचाई के लिए 600 रु. प्रति सिंचाई की दर से 1800 रुपए अनुदान दिया जाएगा। जिसके लिए डीजल अनुदान योजना स्वीकृति की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई है।

किसानों को बीज पर दिया जाएगा अनुदान

बिहार सरकार ने राज्य में सूखे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए किसानों को अन्य कम पानी वाली फसलों की बुआई करने की सलाह दी है। राज्य में संभावित सूखे की स्थिति को देखते हुए आकस्मिक फसल योजना हेतु 30 करोड़ रुपए की योजना स्वीकृत की जा रही है। जिसके अंतर्गत राज्य सरकार किसानों को बिहार राज्य बीज निगम के माध्यम से अल्पावधि वाले धान के प्रभेदों, प्रमाणित धान, संकर मक्का, अरहर, उड़द, तोरिया, अगात सरसों, अगात मटर, भिंडी, मूली, कुल्थी, ज्वार, बरसीम आदि वैकल्पिक फसलों के बीज शत-प्रतिशत अनुदान पर देने के लिए विचार कर रही है।

इस समय सोयाबीन की फसल में किसान इस तरह करें कीट एवं खरपतवारों का नियंत्रण

सोयाबीन की फसल में कीट एवं खरपतवार का नियंत्रण

देश में कई राज्यों में खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती की जाती है। सोयाबीन की बुवाई शुरू करने का समय अब लगभग समाप्त हो चुका है परंतु कई किसान अभी तक वर्षा की कमी के चलते सोयाबीन की बुआई नहीं कर पाए हैं। अभी की परिस्थिति को देखते हुए इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान केंद्र ने किसानों के लिए विशेष सलाह जारी की है। 

सोयाबीन अनुसंधान केंद्र द्वारा जारी की गई सलाह में बताया गया है कि सोयाबीन की बुआई हेतु जुलाई माह के प्रथम सप्ताह तक का समय सबसे उपयुक्त होता है। अतः जो किसान अभी तक बोनी नहीं कर पाए हैं वह किसान अपने क्षेत्र के अनुकूल कोई अन्य फसल का चयन कर लगाएँ।

इस वर्ष सोयाबीन की खेती किये जाने वाले क्षेत्रों में बोवनी की तिथियों में काफी अंतर है। कुछ क्षेत्रों में जहां सोयाबीन की फसल 20–25 दिन की एवं कुछ क्षेत्रों में 10–15 दिन की हो गई है वहीं कुछेक क्षेत्रों में इसकी बोनी पिछले सप्ताह ही हुई है| अत: उक्त परिस्थितियों में सोयाबीन कृषकों के लिए निम्न कृषि कार्य अपनाने की सलाह है |

किसान इस तरह करें सोयाबीन में खरपतवार का नियंत्रण

  • सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिए वरीयता अनुसार हाथ से निंदाई/डोरा/कुलपा/ खड़ी फसल में उपयोगी रासयनिक खरपतवारनाशक में से किसी एक विधि का प्रयोग करें। 
  • जिन कृषकों ने बोवनी पूर्व या बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशक का छिड़काव किया है, वे 20–30 दिन की फसल होने पर डोरा / कुलपा चलायें।

सोयाबीन फसल में उपयुक्त खरपतवारनाशी दवाओं के नाम जानने के लिए क्लिक करें

इन दवाओं से करें सोयाबीन में कीटों का नियंत्रण

  • बोनी की तिथियों में भिन्नता होने से कीटों का प्रकोप भी अधिक समय तक रहने की आशंका हैं। अत: सुरक्षात्मक रूप से कीटनाशकों का छिड़काव करें | सलाह हैं कि पत्ती खाने वाले कीटों से सुरक्षा हेतु फूल आने से पहले ही सोयाबीन फसल में क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली./हे.) का छिड़काव करें | इससे अगले 30 दिनों तक पर्णभक्षी कीटों से सुरक्षा मिलेगी |
  • जिन्होंने बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशकों का अभी तक प्रयोग नहीं किया हैं, सलाह हैं कि अनुशंसित कीटनाशकों के साथ संगतता पाए जाने वाले निम्न खरपतवारनाशकों एवं कीटनाशकों में से किसी एक को मिलाकर छिडकाव करें।
  • कीटनाशक :- क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली/हे.) या किव्नाल्फोस 25 ई.सी. (1 ली. / हे.) या इंडोक्साकर्ब 15.8 एस.सी (333 मि.ली./हे.)
  • खरपतवारनाशक :- इमाजेथापायर 10 एस.एल. (1 ली./हे.) या किव्जालोफोप इथाइल 5 ई.सी. (1 ली./हे.)
  • कुछ क्षेत्रों में सोयाबीन फसल में तना मक्खी का प्रकोप होने के लक्षण देखे गए हैं। इसके नियंत्रण हेतु सलाह हैं कि पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम 12.60% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 09.50% जेड.सी. (125 मिली./हे.) छिड़काव करें |

किसान इस तरह करें कपास में गुलाबी इल्ली (सुंडी) कीट की पहचान एवं उसका नियंत्रण

गुलाबी इल्ली (सुंडी) कीट की पहचान एवं उसका नियंत्रण

भारत के कई क्षेत्रों में कपास पर गुलाबी इल्ली (सुंडी) एक प्रमुख कीट के रूप में उभर कर आई है। अभी के समय में कपास के सबसे बड़े दुश्मन पिंक बॉल वार्म (Pink Boll worm) यानी गुलाबी सुंडी कीट के आक्रमण का खतरा सबसे अधिक होता है। यह इल्ली कपास के बीजों को खाकर आर्थिक हानि पहुँचाती है। गुलाबी इल्ली का प्रकोप फसल के मध्य तथा देर की अवस्था में होता है। गुलाबी सुंडी की लटें फलीय भागों के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करती हैं जिसके कारण इस कीट से होने वाले नुकसान की पहचान करना कठिन होता है, और फसल को अधिक नुकसान होता है।

किसान इस तरह करें गुलाबी सुंडी की पहचान

यह एक प्रौढ़ गहरे स्लेटी चमकीले रंग का 8 से 9 मि.मी. आकार वाला फुर्तीला कीट है। अंडे हल्के गुलाबी व बैंगनी रंग की झलक लिए होते हैं, जो कि प्रायः नई विकसित पत्तियों व कलियों पर पाए जाते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में लटों का रंग सफ़ेद होता है, जो कि बाद में गुलाबी हो जाते हैं। पूर्ण विकसित लटों की लम्बाई 10 से 12 मि.मी. होती है।

कीट से नुकसान की पहचान व सक्रिय काल

गुलाबी सुंडी के नुकसान की पहचान अपेक्षाकृत कठिन होती है, क्योंकि लटें फलीय भागों के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करती हैं। फिर भी अगर कलियाँ फूल एवं टिंडों को काटकर देखें तो छोटी अवस्था की लटें प्रायः फलीय भागों के ऊपरी हिस्सों (एपीकल पार्ट) में मिलती है। फसल के लट युक्त फूल, गुलाब के फूल जैसे दिखाई देते हैं। कीट ग्रस्त ऐसे फूलों की पंखुड़ियों से चिपकी होने के बावजूद भी अलग-अलग होने का प्रयास करती हुई देखी जा सकती है। लम्बे जीवनकाल वाली लटें टिंडो में प्रवेश कर दो बीजों के आपस में जोड़कर व उन्हें अंदर से खाकर नुकसान पहुँचाती है। कीट का सक्रिय काल मध्य जुलाई से मध्य अक्टूबर है।

किसान इस तरह पता करें आर्थिक हानि स्तर

आर्थिक हानि स्तर फसल के फलीय भागों में 10 प्रतिशत नुकसान दिखाई देने पर या 20 पौधों पर औसतन 20 लटें दिखाई देने पर या फसल की अवस्था में 5 से 8 नर पतंगे प्रति फेरोमेन ट्रैप के अंदर सप्ताह के अंदर में 3 से 4 दिखाई देने पर किया जा सकता है।

फसल के अंदर पौधों का निरीक्षण इस तरह करें कि खेत के प्रत्येक कोने, हिस्से तथा बीच में से देखे गए पौधें, इनमें शामिल हों। प्रत्येक पौधे के ऊपर एवं उससे नीचे गिर हुए फलीय भागों (कलियाँ, फूल एवं टिंडे) का निरीक्षण कर प्रतिशत नुकसान का पता लगाया जा सकता है। इन्हीं 20 पौधों पर कुल मौजूद लटों की संख्या से प्रति पौधा औसतन लट संख्या से प्रति पौधा औसतन लट संख्या मालूम की जा सकती है। 

किसान इस तरह करें कीट का नियंत्रण

15 अप्रैल से 15 मई के मध्य बुआई की गई फसल में सुंडी का प्रकोप प्रायः कम देखा गया है। किसान नर पतंगों को नष्ट करने हेतु लिंग आकर्षण जाल (फेरोमोन ट्रैप) 5 प्रति हेक्टेयर लगाएँ। ऐसे सभी फूल जिनकी पंखुडियाँ ऊपर से चिपकी हो उन्हें हाथ से तोड़कर उनके अंदर मौजूद गुलाबी सूँड़ियों को नष्ट किया जा सकता है। यह प्रक्रिया सप्ताह में कम से कम एक बार अवश्य करें। 

किसान फसल की बुआई के 60 दिनों के बाद नीम के बीजों का अर्क 5% + नीम का तेल ( 5 मिली॰/ली) को मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। 

इन में से किसी एक कीटनाशक दवा का करें प्रयोग

किसान कपास में गुलाबी सुंडी को ख़त्म करने के लिए रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए किसान नीचे दिए गए कीटनाशकों में से किसी एक का प्रयोग करें:-

  • साइपरमेथ्रिन 10 प्रतिशत ई.सी.- 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी
  • मेलिथियान 50 प्रतिशत  ई.सी. – 2.0 मिली. प्रति लीटर पानी
  • साइपरमेथ्रिन 25 प्रतिशत ई.सी.- 0.4 मिली. प्रति लीटर पानी
  • डेल्टामेथ्रिन 2.8 प्रतिशत ई.सी. – 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी

पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए शुरू किया गया रोक-छेका अभियान, पशुओं को उपलब्ध कराई जाएँगी स्वास्थ्य सुविधाएँ

पशुओं से फसल बचाने के लिए रोका-छेका अभियान

आवारा पशुओं के कारण किसानों की फसलों को काफी नुकसान होता है, जिसके कारण किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। फसलों को होने वाले इस नुकसान से किसानों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने रोका-छेका अभियान की शुरुआत की है। चालू खरीफ सीजन के दौरान 10 जुलाई से 20 जुलाई तक यह अभियान चलाया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने इसकी सफलता के लिए सभी किसानों एवं पशुपालकों से सहयोग की अपील की है।

मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि रोका-छेका हमारी पुरानी परंपरा है। इसके माध्यम से हम अपने पशुओं को खुले में चराई के लिए नहीं छोड़ने का संकल्प लेते हैं, ताकि हमारी फसलों को नुकसान ना पहुंचे। पशुओं को अपने घरों, बाड़ों और गौठानों में रखा जाता है और उनके चारे-पानी का प्रबंध करना होता है। पशुओं का रोका छेका का काम, अब गांव में गौठानों के बनने से आसान हो गया है। गौठानों में पशुओं की देखभाल और उनके चारे-पानी के प्रबंध की चिंता भी अब आपकों करने की जरूरत नहीं है। गौठान समितियां इस काम में लगी हैं।

पशुओं के स्वास्थ्य की होगी जाँच

खरीफ फसलों की सुरक्षा के लिए इस वर्ष भी 10 जुलाई से प्रदेशव्यापी रोका-छेका का अभियान शुरू किया जा रहा है। इस दौरान फसल को चराई से बचाने के लिए पशुओं को नियमित रूप से गौठान में लाने हेतु रोका-छेका अभियान के अंतर्गत मुनादी कराई जाएगी। गौठानों में पशु चिकित्सा शिविर लगाकर पशुओं के स्वास्थ्य की जांच, पशु नस्ल सुधार हेतु बधियाकरण, कृत्रिम गर्भधान एवं टीकाकरण किया जाएगा।

पशुओं को लगाया जाएगा टीका

बरसात के दिनों में ही पशुओं में गलघोटू और एकटंगिया की बीमारी होती है। पशुओं को इन दोनों बीमारियों से बचाने के लिए उनकी देखभाल इस मौसम में ज्यादा जरूरी है। रोका-छेका का अभियान भी इसमें मददगार होगा। गलघोटू और एकटंगिया बीमारी से बचाव के लिए पशुधन विकास विभाग द्वारा पशुओं को टीका लगाया जा रहा है। किसान गोठानों में लगने वाले इस शिविर में अपने पशुओं की जाँच करा कर टीकाकरण भी करा सकते हैं।

पशुओं के लिए की जाएगी चारे की व्यवस्था

मुख्यमंत्री श्री बघेल ने कहा कि राज्य में पशुधन की बेहतर देखभाल हो, इस उद्देश्य से गांव में गौठान बनाए जा रहे हैं। अब तक हमनें 10,624 गौठानों के निर्माण की स्वीकृति दी है, जिसमें से 8408 गौठान बनकर तैयार हो गए हैं। गोठानों में आने वाले पशुओं को सूखा चारा के साथ-साथ हरा चारा उपलब्ध हो, इसके लिए सभी गोठानों में चारागाह का विकास तेजी से किया जा रहा है। राज्य के 1200 से अधिक गौठानों में हरे चारे का उत्पादन भी पशुओं के लिए किया जा रहा है।

किसान अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें रागी की खेती

रागी की खेती

मोटे अनाजों में रागी (मंडुआ) का विशेष स्थान है, इसे फिंगर मिलेट भी कहा जाता है| देश में रागी की खेती लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण बाजार में इसकी माँग लगातार बढ़ी है, जिससे भविष्य में किसानों को इसके और अच्छे भाव मिलने की संभावना है। इसकी खेती मुख्यतः दाने प्राप्त करने एवं पशुओं के लिए हरा चारा प्राप्त करने के लिए की जाती है। इसके दाने का प्रयोग भोजन के साथ औधोगिक कार्यों में किया जाता है। इसे उबालकर चावल की तरह खाया जाता है साथ ही इसके आटे से रोटियाँ भी बनाई जाती है।

देश में सबसे ज्यादा रागी की खेती कर्नाटक राज्य में की जाती है इसके बाद उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश का नम्बर आता है। किसान किस तरह कम लागत में रागी की आधुनिक खेती कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकें इसकी जानकारी नीचे दी गई है। जिसमें अलग-अलग राज्यों के लिए अनुशंसित क़िस्में भी शामिल हैं। 

रागी के उपयोग एवं फायदे

दक्षिण भारत में रागी को केक पुडिंग व मिठाइयाँ बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अंकुरित बीजों से मॉल्ट (एक मूल्यवर्धित उत्पाद) बनाते हैं, जो शिशु आहार तैयार करने में काम आता है। रागी मधुमेह रोगियों के लिए उत्तम आहार है। इसमें पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। रागी में 9.2 प्रतिशत प्रोटीन, 76.32 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट वही वसा मात्र 1.3 प्रतिशत होता है, साथ ही रागी कैल्शियम, आयरन एवं प्रोटीन का बढ़िया स्त्रोत है। 

जलवायु एवं मृदा

रागी की अच्छी उपज के लिए गरम और नर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा का फसल पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। उन सभी स्थानों पर जहाँ वर्षा 50 से 90 से.मी. के बीच होती है, वहाँ पर रागी को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

इसकी अच्छी पैदावार के लिए हल्की दोमट मृदा सर्वोत्तम रहती है, काली मृदा में उपज अच्छी नहीं मिलती। पहाड़ी स्थानों पर पायी जाने वाली कंकरीली, पथरीली, ढालू मृदा में अन्य फसलों की अपेक्षा रागी की अच्छी उपज प्राप्त होती है। अधिक उत्पादन लेने के लिए गहरी और मध्यम उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है। मृदा में जल धारण करने की अच्छी क्षमता होनी चाहिए।

रागी की उन्नत एवं विकसित क़िस्में

.सी.4840 :- यह प्रजाति बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए बहुत उपयुक्त प्रजाति है | इस प्रजाति के दाने भूरे रंगे के होते हैं। फसल लगभग 108 दिनों में पक जाती है | प्रति हैक्टेयर लगभग 18–19 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है। यह किस्म गर्मी में बुआई के लिए उपयुक्त है।

निर्मल :- यह उत्तर प्रदेश के रागी उगाने वाले सभी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है इससे लगभग प्रति हैक्टेयर 16–18 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है।

पंत रागी-3 (विक्रम) :- पहाड़ी क्षेत्रों के लिए यह 95–100 दिनों में तैयार होने वाली फसल है। पौधे की ऊँचाई 80–85 सें.मी. होती है | यह प्रजाति ब्लास्टरोधक है, इसकी बालियां मुड़ी हुई और दाने हल्के भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म गेहूं फसल चक्र के लिए भी उपयुक्त है।

रागी की राज्यवार अन्य विकसित क़िस्में 
राज्य
विकसित किस्में

कर्नाटक 

जीपीयू 28, जीपीयू 45, जीपीयू 48, पीआर 202, एमआर 6, जीपीयू 66, जीपीयू 67, केएमआर 204, केएमआर 301, केएमआर 340, एमएल 365,

तमिलनाडु 

जीपीयू 28, सीओ 13, टीएनएयू 946, सीओ 9, सीओ 12, सीओ 15 

आंध्र प्रदेश 

वीआर 847, पीआर 202, वीआर 708, वीआर 762, वीआर 900, वीआर 936 

झारखंड 

ए 404, बीएम 2 

ओड़िसा 

ओइबी 10, ओयूएटी 2, बीएम 9 – 1, ओइबी 526, ओइबी 532

उत्तराखंड 

पीआरएम 2, वीएल 315, वीएल 324, वीएल 352, वीएल 149, वीएल 348, वीएल 376, पीईएस 400 

छत्तीसगढ़ 

छत्तीसगढ़ – 2, बी-आर 7, जीपीयू 28, पीआर 202, वीआर 708, वीएल 149, वीएल 315, वीएल 324, वीएल 352, वीएल 376 

महाराष्ट्र 

दापोली 1, फूले नाचनी, के ओपीएन 235 

गुजरात 

जी एन 4, जी एन 5 

बिहार 

आरएयू 8, वीआर – 708, वीएल – 352, आरएयू -3, जीपीयू-45, वीएल – 348, जीपीयू 28, जीपीयू 67, जीपीयू 85

बीज दर बुआई की विधि

अप्रैल या मई महीने में एक गहरी जुताई करें तथा फिर से 2-3 बार हैरो से जुताई कर पाटा करें। रागी की बुआई के लिए 10–12 किलोग्राम बीज/प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। रोपनी से पहले कैप्टन, थीरम या बाविस्टीन द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें। खरीफ फसल के लिए बुआई का उपयुक्त समय जून-जुलाई है। रागी की बुआई में पंक्ति से पंक्ति की दुरी 20 से 25 से.मी. तथा पौधों की दुरी 10 से.मी. रखनी चाहिए | बीज को सिर्फ 2 से.मी. गहराई पर ही बोना चाहिए। रागी दो विधियों से बोई जा सकती है:-

  • पंक्तियों में बुआई 
  • रोपाई विधि 

खाद एवं उर्वरक 

रागी के लिए 40 से 45 किलोग्राम नाईट्रोजन एवं 30 – 40 किलोग्राम फ़ास्फोरस तथा 20 – 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है | सभी उर्वरकों को अच्छी तरह से मिलाकर बोते समय ही बीज के पास 4–5 सें.मी. की दुरी पर एक दूसरा कूंड बनाकर डालना चाहिए। बुआई से पूर्व 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद देना लाभदायक है। जैविक विधि से उगाई गई रागी की फसल ज्यादा लाभकारी होती है |

खरपतवार प्रबंधन 

खरपतवार नियंत्रण के लिए एक निंदाई तथा 2,4–डी (500 ग्राम सक्रिय तत्व) को 600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 20 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।

सिंचाई 

खरीफ ऋतू की फसल अधिकतर वर्षा के आधार पर ली जाती है। अत: इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। रोपाई द्वारा फसल बोने पर में सिंचाई करनी आवश्यक है। रोपाई में फिर 8–10 दिनों बाद सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए। बीज बोने के 15 दिनों बाद एक बार निंदाई-गुड़ाई कर देना चाहिए। 

फसल चक्र एवं अंतरवर्ती फसल 

अंतरवर्ती फसल के रूप में रागी सोयाबीन के साथ उगाई जा सकती है| रागी के बाद रबी में आलू, गेहूं, चना, सरसों, जौ, आदि फसलें किसान ले सकते हैं।

रागी की फसल में कीट एवं रोग

 रागी की फसल में निम्नलिखित कीट पतंगे आक्रमण करते हैं, जिनका नियंत्रण निम्न प्रकार से किया जा सकता है |

बालदार रोयेंदार सूंडी 

यह पत्तियों को हानि पहुँचाती है। कभी–कभी तने पर भी आक्रमण करती है। इसे मैलाथियोन 10 प्रतिशत के 25 से 30 किलोग्राम पाउडर / हैक्टेयर की दर से भुरकाव करके नियंत्रण किया जा सकता है |

सफेद ग्रब 

25 किलोग्राम इमेडाक्लोरोप्रिड 10 प्रतिशत को गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बराबर बिखेर दें, जिससे सफेद ग्रब का नियंत्रण किया जा सकता है |

झुलसा रोग रागी में होने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण रोग है, जो पौधे के हर चरण को प्रभावित करता है। इसकी रोकथाम हेतु नाइट्रोजन युक्त खाद का अत्याधिक उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि नाइट्रोजन की उच्च मात्रा और झुलसा रोग में सकारात्मक सम्बंध पाया गया है। किसान इसकी रोकथाम के लिए बीज उपचार करके बुआई करें। एडिफेनफोस (हिनोसान) 500 मि.ली. अथवा कार्बेंडाजिम 500 ग्राम अथवा आइप्रोबेनफोस (किताजिन) 500 मिली/हेक्टेयर से छिड़काव करें। 

फसल कटाई एवं गहाई

बाली को दानों के साथ काटा जाता है और पौधों को जमीन के करीब से काट दिया जाता है। बालियों का ढेर बनाकर 3–4 दिनों तक सुखाया जाना चाहिए| इसके अच्छे से सूखने के बाद गहाई की जाती है | परंपरागत रूप से रागी की गहाई और दानों की सफ़ाई हाथों से की जाती रही है, जिसमें ज़्यादा समय, कम उत्पादन और अधिक परिश्रम जैसी मुश्किलें आती हैं। इस समस्या को दूर करने के लिए एक 2 एच.पी. मोटर संचालित फिंगर मिलेट-कम-पियरलर का उपयोग कर सकते हैं, जिसकी गहाई एवं प्रसंस्करण क्षमता हाथ की अपेक्षा अधिक होती है।   

उत्पादन 

शीघ्र पकने वाली किस्में 15–20 क्विंटल/ हेक्टेयर तक उत्पादन देती है, जबकि मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों की उत्पादन क्षमता 20–25 क्विंटल/ हेक्टेयर तक होती है। बीजों को धूप में सूखने से पहले साफ किया जाना चाहिए। ग्रेडिंग से पहले बीजों में 12 प्रतिशत नमी की मात्रा तक सुखाया जाना चाहिए। जिसके बाद जूट के बोरों में भरकर इसका भंडारण किया जा सकता है। 

10 हजार किसानों के खेतों में लगाए जाएँगे सोलर पम्प

सोलर पम्प योजना

देश में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसका लाभ किसानों को मिल सके इसके लिए देश भर में कुसुम योजना चलाई जा रही है। कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सोलर पम्प की स्थापना पर अनुदान दिया जाता है। अभी उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के किसानों को अनुदान पर सोलर पम्प देने के लिए आवेदन माँगे गए हैं। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही ने लोक भवन में शुक्रवार को योजना की प्रगति की जानकारी दी।

कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों की लागत घटाकर उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार तेज़ी से प्रयास कर रही है। प्रधान मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाअभियान यानी पीएम कुसुम योजना के तहत 10 हजार किसानों का चयन किया गया है। चयनित किसानों को कृषक अंश की धन राशि बैंक में जमा कराए जाने के बाद उनके खेतों में सोलर सिंचाई पम्प लगाए जाएँगे। उन्होंने बताया कि सरकार ने पाँच साल में 26,407 सोलर पम्प लगाए हैं।

किसानों को 60 प्रतिशत की सब्सिडी पर दिए जा रहे हैं सोलर पम्प

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य में किसानों को सोलर पम्प पर अनुदान देने के लिए 1 जुलाई 2022 से आवेदन आमंत्रित किए हैं। राज्य के इच्छुक किसान कृषि विभाग के पोर्टल upagriculture.com से ऑनलाइन बुकिंग कर सकते हैं। सरकार द्वारा चयनित किसानों को सोलर पम्प की खरीद पर 60 फ़ीसदी सब्सिडी दी जाएगी। शेष राशि किसानों को देनी होगी। योजना के तहत किसान 2hp से लेकर 10hp तक के सोलर पम्प के लिए आवेदन कर सकते हैं।

योजना की विस्तृत जानकारी के लिए क्लिक करें

प्राकृतिक खेती के लिए दी जाएगी साहीवाल गाय

कृषि मंत्री ने प्रेस वार्ता में बताया कि मिशन प्राकृतिक खेती के तहत बुंदेलखंड के 47 विकास खंडों के हर ब्लॉक में 50 हेक्टेयर के 10 क्लस्टर कार्ययोजना तैयार की गई है। इसके लिए 202 अधिकारी व विज्ञानियों को मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। सभी 133 राजकीय कृषि प्रक्षेत्रों में 10 से 20 हेक्टेयर क्षेत्रफल में क्रमशः एक व दो हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती की जाएगी। उन्होंने बताया कि सूबे के सभी 89 कृषि विज्ञान केंद्रों को साहीवाल गाय उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है, ताकि वहाँ खरीफ से ही एक-एक एकड़ क्षेत्र में प्राकृतिक खेती का प्रदर्शन किया जा सके। 

12 जुलाई तक जारी की जाएगी तारबंदी, पाइप लाइन एवं फर्म पौण्ड योजना के लिए स्वीकृति

तारबंदी, पाइप लाइन एवं फर्म पौण्ड के लिए स्वीकृति

देश में किसान कल्याण के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही है, जिनका लाभ किसानों को देने के लिए समय-समय पर सरकार द्वारा आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं। किसानों के द्वारा किए गए इन आवेदनों को योजना के तहत तय की गई पात्रता के अनुसार किसानों का चयन किया जाता है। जिसके बाद चयनित किसानों को योजना का लाभ दिया जाता है। इस कड़ी में पिछले दिनों राजस्थान सरकार द्वारा राज्य में चलाई जा रही कई योजनाओं का लाभ किसानों के देने के लिए आवेदन माँगे गए थे। अब सरकार द्वारा प्राप्त आवेदनों में से चयनित किसानों को स्वीकृति प्रदान की जानी है।

राजस्थान सरकार ने बीते दिनों किसानों से अलग-अलग योजना जैसे फार्म पौण्ड, पाईप लाईन, तारबंदी एवं कृषि यंत्रों के लिए आवेदन माँगे थे जिसके लिए जल्द स्वीकृति प्रदान करने के लिए कृषि विभाग के आयुक्त श्री कानाराम ने निर्देश जारी कर दिए हैं।

फार्म पौण्ड, पाईप लाईन व तारबंदी के लिए 12 जुलाई तक जारी की जाएगी स्वीकृति

कृषि विभाग के आयुक्त श्री कानाराम ने निर्देश दिये कि फार्म पौण्ड, पाईप लाईन व तारबंदी की अब तक प्री-वेरिफिकेशन हो चुकी पत्रावलियों की प्रशासनिक स्वीकृतियां 12 जुलाई तक जारी हो जानी चाहिए। साथ ही बचे हुए आवेदनों को प्री-वेरिफिकेशन कर उनकी भी 15 जुलाई तक प्रशासनिक स्वीकृतियां जारी किया जाना सुनिश्चित की जाए। 

उन्होंने निर्देश दिये कि पोर्टल पर प्राप्त कृषि यन्त्रों के आवेदनों का डॉक्यूमेन्ट स्क्रूटनी प्री-वेरिफिकेशन का कार्य 10 जुलाई तक किया जाना सुनिश्चित करें। बैठक में बीज उत्पादन कार्यक्रम की प्रगति की समीक्षा के दौरान उन्होंने कहा कि किसानों एवं कृषक समूहों का चयन कर बीज निगम की सम्बन्धित इकाई से सम्पर्क करके लक्ष्यों के अनुरूप बीज उपलब्ध कराया जाये। उन्होंने सूक्ष्म तत्व, बायो पेस्टिसाइड़ किट एवं कम्पोस्ट पिट की आपूर्ति 12 जुलाई तक पूर्ण करना निश्चित करें।

किसानों को दी जाए योजना की जानकारी

राज्य में अधिक से अधिक किसानों को योजना का लाभ दिया जा सके इसके लिए सरकार द्वारा ब्लॉक स्तर पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। जिसको लेकर कृषि आयुक्त ने निर्देश दिये कि कृषि बजट 2022-23 के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु शेष बची हुई ब्लॉकस्तरीय कृषि बजट आमुखीकरण कार्यशाला का आयोजन किया जाये ताकि दूर-दराज के किसानों को भी किसान कल्याण के लिए चलाई जा रही सरकार की योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके।