राजस्थान में किसानों के लिए सहकारिता विभाग द्वारा चलाई जा रही ऋण योजनायें

राजस्थान में किसानों के लिए सहकारिता विभाग द्वारा चलाई जा रही ऋण योजनायें

क्रमांकयोजनाएंविवरण
1.ज्ञान सागर योजना

 

राजस्थान स्टेट कोऑपरेटिव बैंक की केन्द्रीय सहकारी बैंकों के माध्यम से संचालित होने वाली ज्ञान सागर योजना में दूर ढ़ाणी में बैठे काश्तकार के बेटे-बेटियों से लेकर शहरों में निवास करने वाले उच्च अध्ययन के इच्छुक युवा ऋण सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।देश व प्रदेश में उच्च एवं तकनीकी अध्ययन के लिए तीन लाख रुपये और विदेश में अध्ययन के लिए पांच लाख रुपये तक का ऋण दिया जा सकेगा। ज्ञान सागर योजना में छात्र-छात्राओं के साथ ही वेतन भोगी एवं व्यवसायी भी उच्च शिक्षा के लिए ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
ज्ञान सागर योजना में तकनीकी] व्यावसायिक] इन्जीनियरिंग आई टी आई , मेडिकल होटल मैनेजमेन्ट एम बी ए कम्प्यूटर आदि विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए ऋण प्राप्त किया जा सकता है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आधा प्रतिशत कम ब्याज लेने का निर्णय किया गया है। दो लाख रुपये तक के ऋण पर साढ़े ग्यारह प्रतिशत और अधिक के ऋण पर बारह प्रतिशत की दर से ब्याज लिया जायेगा। योजना का उद्धेश्य आर्थिक अभाव से शिक्षा से वंचित लोगों को शिक्षा के पूरे अवसर उपलब्ध कराना है।
2.सहकारी किसान कार्डकिसानों को आसानी से सहकारी कर्जें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से समूचे देश में सबसे पहले सहकारी क्षेत्र में राजस्थान में 29.1.1999 को सहकारी किसान कार्ड योजना लागू की गई । इसी क्रम में ग्राम सेवा सहकारी समितियों के समस्त ऋणी सदस्यों को सहकारी किसान कार्ड“सुविधा से जोडा जा चुकाहै। राज्य सरकार के इस निर्णय से अब ग्राम सेवा सहकारी समिति के सदस्य किसान सीधे बैंक से चैक प्रस्तुत कर अपनी कृषि संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इच्छानुसार ऋण प्राप्त कर सकते हैं । इसी तरह से समिति में खाद बीज, डीजल आदि उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में क्षेत्र की क्रय विक्रय सहकारी समिति से खाद बीज आदि भी प्राप्त कर सकते हैं । राज्य सरकार की बजट घोषणा के क्रम में वर्ष 2010-11 में पांच लाख नए सदस्यों को सहकारी ऋण वितरण व्यवस्था से जोड़ा जा रहा है। इसमें नए काश्तकारों को सहकारी किसान क्रेडिट कार्ड भी उपलब्ध कराए जा रहे है
.कृषक मित्र योजनाराज्य में नकदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और छोटे बड़े सभी काश्तकारों को सहकारी दायरे में लाने के उद्देश्य से अगस्त 1997 से कृषक मित्र सहकारी ऋण योजना शुरू की गई है । योजना को सफल बनाते हुए अब चार एकड़ से अधिक सिंचित कृषि योग्य भूमि वाले काश्तकारों को उनकी स्वीकृत साख सीमा  के अनुसार दो लाख रूपये तक के फसली कर्जें वितरित किये जा सकते हैं । हाल ही में सामान्य क्षेत्र में साढ़े तीन लाख रुपए एवं नहरी क्षेत्रों के किसानों को अधिकतम चार लाख तक के ऋण उपलब्ध कराने का निर्णय लिया गया है इस योजना के लागू होने से छोटे बड़े सभी काश्तकार सहकारी छाते में बनाकर एक ही स्थान से ऋण जरूरतों की पूर्ति कर सकते हैं। इस योजना में एक जुलाई से 31 जून तक की अवधि के लिए साख सीमा स्वीकृत की जाती है और सहकारी किसान कार्ड से स्वीकृत साख सीमा तक ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। तीन लाख रुपए तक के ऋण सात प्रतिशत ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जा रहा है।
4.सहकार प्रभा योजनाकृषि, अकृषि एवं फसली सहकारी ऋणों के लिए एक बारीय साख सीमा का निर्धारण कर ऋण स्वीकृति व वितरण में विलम्ब को समाप्त करने के उद्देश्य से सहकारी भूमि विकास बैंकों द्वारा सहकार प्रभा योजना की शुरूआत की गई है । दो एकड कृषि योग्य भूमि वाले] अवधिपार सहकारी ऋणों के दोषी नहीं होने वाले कृषक इस योजना का लाभ उठा सकते है । इस योजना में फसली कार्यों के लिए एक वर्ष के लिए व अन्य ऋण अधिकतम 15 वर्ष की अवधि के लिए दिये जा सकेंगे
5.नकद ऋण वितरण व्यवस्थादीर्घकालीन सहकारी ऋण वितरण व्यवस्था से बिचौलियों को हटाने के उद्देश्य से नकद ऋण वितरण व्यवस्था शुरू की गई है । योजना के अनुसार ट्रेक्टर व लघुपथ परिवहनों को छोड़कर शेष कृषि यंत्रों] पम्पसैट] स्प्रिन्कलर] अन्य मशीनरी उपकरणों व संयत्रों की खरीद के लिए भूमि विकास बैंकों द्वारा अब सीधे किसानों को चैक किया जाता है । किसान स्वयं अपनी पसंद के मेक व फर्म से तत्संबंधी यंत्र खरीद कर 15 दिवस में खरीद प्रस्तुत कर ऋण से खरीदी गई वस्तु का भौतिक सत्यापन कर सकता है ।इस योजना का  प्रदेश के सभी 36 प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों से ऋण प्राप्त करने वाले ग्रामीण लाभ उठा सकते हैं
6.विफल कूप क्षतिपूर्ति योजनाप्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंकों से ऋण प्राप्त कर कुंए खुदवाने पर उनके उद्देश्यों में विफल होने की स्थिति में काश्तकारों को राहत देने के उद्देश्य से विफल कूप क्षतिपूर्ति योजना चलाई जा रही है । योजना के अन्तर्गत ऋणी सदस्यों को उनकी और बकाया राशि के मूलधन की पचास प्रतिशत राशि की क्षतिपूर्ति की जाती है । शेष पचास प्रतिशत राशि की ब्याज का वहन ऋणी सदस्य को करना होता है ।

उत्तरप्रदेश मध्यम गहरे नलकूप की योजना

उत्तरप्रदेश मध्यम गहरे नलकूप की योजना

उत्तर प्रदेश में काफी ऐसा क्षेत्र भी है, जहॉ बोरिंग की गहराई 31 मी0 से 60 मीटर तक होती है। ऐसे क्षेत्रों में प्रदेश के किसानों के लिए विभाग द्वारा मई 2004 से प्रदेश के समस्त एल्युवियल क्षेत्रों (पठारी क्षेत्रों/अतिदोहित एंव क्रिटिकल विकास खण्डों को छोड़कर) में मध्यम गहराई के नलकूपों की योजना प्रारम्भ की गई है। योजना में सभी जाति/श्रेणी के कृषक पात्र है। मध्यम गहरे नलकूप से न्यूनतम 6 हेक्टेयर शुद्ध व 10 हेक्टेयर सकल भूमिं सिंचित होना आवश्यक है। बोंरिग कार्य छोटी/हल्की रिग मशीनों द्वारा कराया जाता है। योजनान्तर्गत् 150मि0मी0, 150मि0मी0, 180मि0मी0, 150मि0मी0, एंव 200मि0मी0, 150मि0मी0 आकार की वेल असेम्बली के प्रयोग करने की अनुमति आवश्यकतानुसार उपलब्ध है।

मध्यम गहरे नलकूप का निर्माण कराये जाने पर नलकूप लागत का 50 प्रतिशत अथवा अधिकमतम रू० 75000.00 का अनुदान अनुमन्य है। नलकूप की लागत में ड्रिलिंग,पाइप, एंव अन्य सामग्री पर व्यय,पम्प हाऊस एंव डिलिवरी टैंक का निर्माण, सबमर्सिबल पम्प तथा जनरेटर सेट के क्रय की सुविधा सम्मिलित है।

विद्युतीकरण हेतु पृथक से रू० 68000.00 का अनुदान अनुमन्य है। इसके अतिरिक्त जल वितरण प्रणाली हेतु अधिकतम रू०10000.00 का अनुदान अनुमन्य है।

बोंरिग असफल होने की दशा में बोंरिग पर हुये व्यय का 10 प्रतिशत अधिकतम रू० 1000.00 जो भी कम हो, को कृषक की जमा धनराशि से काटकर शेष धन कृषक को वापस कर दिया जायेगा।

कृषक द्वारा डीजल पम्पसेट/विद्युत पम्पसेट, सबमर्सिबुल पम्प/जनरेटर,विद्युत कनेक्शन, नाली आदि का निर्माण कराने के पश्चात सत्यापन के उपरान्त अनुदान की अवशेष धनराशि कृषक को उपलब्ध कराई जाती है।

इफको की किसानों के लिए एक नई पहल  “नीम लगाओ, पैसे कमाओ”

इफको की किसानों के लिए एक नई पहल नीम लगाओ, पैसे कमाओ”

इफको ने किसानों के लिए एक नई पहल ‘नीम लगाओ, पैसे कमाओ’ की शुरूआत की है। देश के हर हिस्से में इफको ने ‘निमोरी केंद्र’ की शुरूआत की है जहां किसान जा कर अपने नीम के पौधे बेच सकते हैं और रुपये पंद्रह प्रति किलो कमा सकते हैं। इफको इसका इस्तेमाल इलाहाबाद के अपने संयंत्र में तेल निकालने के लिए करेगी। प्रति दिन 22 टन नीम के पौधों से दो टन नीम का तेल निकाला जाएगा। इन पौधों का इस्तेमाल यूरिया के उत्पादन के लिए भी किया जाएगा।

जाने किस तरह 

नीम के पौधे लगाकर किसान अतिरिक्त आमदनी जुटा सकते हैं। किसान नीम का पौधा लगाकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। एक साधारण किसान नीम के पौधे लगाकर एक वर्ष में तीस से चालीस हजार रुपये कमा सकता है। इफको द्वारा वितरित किये जा रहे नीम के उन्नतशील पौधे पांच वर्ष में पेड़ बन जाएंगे। इनसे मिलने वाली नीम कौड़ी को इफको ही खरीदेगा और उससे नीम कोटेड यूरिया बनाएगा। नीम का पेड़ आर्थिक लाभ के साथ- साथ औषधि व पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

NPK का दाम घटाने के बाद फ़र्टिलाइज़र की सबसे बड़ी सहकारी कंपनी इफको , किसानों के लिए इस साल फिर एक बड़ी ख़ुशख़बरी लाई है। दरअसल इफ्को ने इस साल इलाहाबाद में नीम आधारित कारखाना लगाने की शुरुआत की है। इस कारखाने में नीम के  निमोरियों  से तेल निकाला जाएगा। इसमें रोज़ाना २२ टन निमोरियों  से २ टन नीम का तेल निकाला जायेगा। इसके अतिरिक्त इन निमौलियों का उपयोग यूरिया उत्पादन में भी होगा। इफ्को ने नीम कारखाने में उपयोग में लाये जाने वाले  निमोरियों  को किसानों से ही खरीदने का फैसला किया है। इसके लिए इफ्को पूरे देश में कई स्थानों पर ‘निमोरी सेन्टर’ खोलेगी, जहाँ पर किसान १५ रुपये / किग्रा के दाम पर

किस तरह करें ताजे पानी में मोती का उत्पादन

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किस तरह करें ताजे पानी में मोती का उत्पादन

मोती उत्पादन क्या है?

मोती एक प्राकृतिक रत्‍न है जो सीप से पैदा होता है। भारत समेत हर जगह हालांकि मोतियों की माँग बढ़ती जा रही है, लेकिन दोहन और प्रदूषण से इनकी संख्‍या घटती जा रही है। अपनी घरेलू माँग को पूरा करने के लिए भारत अंतरराष्‍ट्रीय बाजार से हर साल मोतियों का बड़ी मात्रा में आयात करता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्‍वाकल्‍चर, भुवनेश्‍वर ने ताजा पानी के सीप से ताजा पानी का मोती बनाने की तकनीक विकसित कर ली है जो देशभर में बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं।

तराशे हुए मोती

प्राकृतिक रूप से एक मोती का निर्माण तब होता है जब कोई बाहरी कण जैसे रेत, कीट आदि किसी सीप के भीतर प्रवेश कर जाते हैं और सीप उन्‍हें बाहर नहीं निकाल पाता, बजाय उसके ऊपर चमकदार परतें जमा होती जाती हैं। इसी आसान तरीके को मोती उत्‍पादन में इस्‍तेमाल किया जाता है।

मोती सीप की भीतरी सतह के समान होता है जिसे मोती की सतह का स्रोत कहा जाता है और यह कैल्शियम कार्बोनेट, जैपिक पदार्थों व पानी से बना होता है। बाजार में मिलने वाले मोती नकली, प्राकृतिक या फिर उपजाए हुए हो सकते हैं। नकली मोती, मोती नहीं होता बल्कि उसके जैसी एक करीबी चीज होती है जिसका आधार गोल होता है और बाहर मोती जैसी परत होती है। प्राकृतिक मोतियों का केंद्र बहुत सूक्ष्‍म होता है जबकि बाहरी सतह मोटी होती है। यह आकार में छोटा होता और इसकी आकृति बराबर नहीं होती। पैदा किया हुआ मोती भी प्राकृतिक मोती की ही तरह होता है, बस अंतर इतना होता है कि उसमें मानवीय प्रयास शामिल होता है जिसमें इच्छित आकार, आकृति और रंग का इस्‍तेमाल किया जाता है। भारत में आमतौर पर सीपों की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं- लैमेलिडेन्‍स मार्जिनालिस, एल.कोरियानस और पैरेसिया कोरुगाटा जिनसे अच्‍छी गुणवत्‍ता वाले मोती पैदा किए जा सकते हैं।

उत्‍पादन का तरीका

इसमें छह प्रमुख चरण होते हैं- सीपों को इकट्ठा करना, इस्‍तेमाल से पहले उन्‍हें अनुकूल बनाना, सर्जरी, देखभाल, तालाब में उपजाना और मोतियों का उत्‍पादन।

  1. सीपों को इकट्ठा करना: तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा किया जाता है और पानी के बरतन या बाल्टियों में रखा जाता है। इसका आदर्श आकार 8 सेंटी मीटर से ज्‍यादा होता है।
  2. इस्‍तेमाल से पहले उन्‍हें अनुकूल बनाना: इन्‍हें इस्‍तेमाल से पहले दो-तीन दिनों तक पुराने पानी में रखा जाता है जिससे इसकी माँसपेशियाँ ढीली पड़ जाएं और सर्जरी में आसानी हो।
  3. सर्जरी: सर्जरी के स्‍थान के हिसाब से यह तीन तरह की होती है- सतह का केंद्र, सतह की कोशिका और प्रजनन अंगों की सर्जरी। इसमें इस्‍तेमाल में आनेवाली प्रमुख चीजों में बीड या न्‍यूक्लियाई होते हैं, जो सीप के खोल या अन्‍य कैल्शियम युक्‍त सामग्री से बनाए जाते हैं।

सतह के केंद्र की सर्जरी

इस प्रक्रिया में 4 से 6 मिली मीटर व्‍यास वाले डिजायनदार बीड जैसे गणेश, बुद्ध आदि के आकार वाले सीप के भीतर उसके दोनों खोलों को अलग कर डाला जाता है। इसमें सर्जिकल उपकरणों से सतह को अलग किया जाता है। कोशिश यह की जाती है कि डिजायन वाला हिस्‍सा सतह की ओर रहे। वहाँ रखने के बाद थोड़ी सी जगह छोड़कर सीप को बंद कर दिया जाता है।

सतह कोशिका की सर्जरी

यहाँ सीप को दो हिस्‍सों- दाता और प्राप्तकर्त्ता कौड़ी में बाँटा जाता है। इस प्रक्रिया के पहले कदम में उसके कलम (ढके कोशिका के छोटे-छोटे हिस्‍से) बनाने की तैयारी है। इसके लिए सीप के किनारों पर सतह की एक पट्टी बनाई जाती है जो दाता हिस्‍से की होती है। इसे 2/2 मिली मीटर के दो छोटे टुकड़ों में काटा जाता है जिसे प्राप्‍त करने वाले सीप के भीतर डिजायन डाले जाते हैं। यह दो किस्‍म का होता है- न्‍यूक्‍लीयस और बिना न्‍यूक्‍लीयस वाला। पहले में सिर्फ कटे हुए हिस्‍सों यानी ग्राफ्ट को डाला जाता है जबकि न्‍यूक्‍लीयस वाले में एक ग्राफ्ट हिस्‍सा और साथ ही दो मिली मीटर का एक छोटा न्‍यूक्‍लीयस भी डाला जाता है। इसमें ध्‍यान रखा जाता है कि कहीं ग्राफ्ट या न्‍यूक्‍लीयस बाहर न निकल आएँ।

प्रजनन अंगों की सर्जरी

इसमें भी कलम बनाने की उपर्युक्‍त प्रक्रिया अपनाई जाती है। सबसे पहले सीप के प्रजनन क्षेत्र के किनारे एक कट लगाया जाता है जिसके बाद एक कलम और 2-4 मिली मीटर का न्‍यूक्‍लीयस का इस तरह प्रवेश कराया जाता है कि न्‍यूक्‍लीयस और कलम दोनों आपस में जुड़े रह सकें। ध्‍यान रखा जाता है कि न्‍यूक्‍लीयस कलम के बाहरी हिस्‍से से स्‍पर्श करता रहे और सर्जरी के दौरान आँत को काटने की जरूरत न पड़े।

देखभाल

इन सीपों को नायलॉन बैग में 10 दिनों तक एंटी-बायोटिक और प्राकृतिक चारे पर रखा जाता है। रोजाना इनका निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों और न्‍यूक्‍लीयस बाहर कर देने वाले सीपों को हटा लिया जाता है।

तालाब में पालन

ताजा पानी में सीपों का पालन देखभाल के चरण के बाद इन सीपों को तालाबों में डाल दिया जाता है। इसके लिए इन्‍हें नायलॉन बैगों में रखकर (दो सीप प्रति बैग) बाँस या पीवीसी की पाइप से लटका दिया जाता है और तालाब में एक मीटर की गहराई पर छोड़ दिया जाता है। इनका पालन प्रति हेक्‍टेयर 20 हजार से 30 हजार सीप के मुताबिक किया जाता है। उत्‍पादकता बढ़ाने के लिए तालाबों में जैविक और अजैविक खाद डाली जाती है। समय-समय पर सीपों का निरीक्षण किया जाता है और मृत सीपों को अलग कर लिया जाता है। 12 से 18 माह की अवधि में इन बैगों को साफ करने की जरूरत पड़ती है।

मोती का उत्‍पादन

गोल मोतियों का संग्रहणपालन अवधि खत्‍म हो जाने के बाद सीपों को निकाल लिया जाता है। कोशिका या प्रजनन अंग से मोती निकाले जा सकते हैं, लेकिन यदि सतह वाला सर्जरी का तरीका अपनाया गया हो, तो सीपों को मारना पड़ता है। विभिन्‍न विधियों से प्राप्‍त मोती खोल से जुड़े होते हैं और आधे होते हैं; कोशिका वाली विधि में ये जुड़े नहीं होते और गोल होते हैं तथा आखिरी विधि से प्राप्‍त सीप काफी बड़े आकार के होते हैं।

ताजे पानी में मोती उत्‍पादन का खर्च

ध्‍यान रखें –

  • ये सभी अनुमान सीआईएफए में प्राप्‍त प्रायोगिक परिणामों पर आधारित हैं।
  • डिजायनदार या किसी आकृति वाला मोती अब बहुत पुराना हो चुका है, हालांकि सीआईएफए में पैदा किए जाने वाले डिजायनदार मोतियों का पर्याप्‍त बाजार मूल्‍य है क्‍योंकि घरेलू बाजार में बड़े पैमाने पर चीन से अर्द्ध-प्रसंस्‍कृत मोती का आयात किया जाता है। इस गणना में परामर्श और विपणन जैसे खर्चे नहीं जोड़े जाते।
  • कामकाजी विवरण
  • क्षेत्र : 0.4 हेक्‍टेयर
  • उत्‍पाद : डिजायनदार मोती
  • भंडारण की क्षमता : 25 हजार सीप प्रति 0.4 हेक्‍टेयर
  • पैदावार अवधि : डेढ़ साल
क्रम संख्‍यासामग्रीराशि(लाख रुपये में)
I.व्‍यय
क .स्‍थायी पूँजी
1.परिचालन छप्‍पर (12 मीटर x 5 मीटर)1.00
2.सीपों के टैंक (20 फेरो सीमेंट/एफआरपी टैंक 200 लीटर की क्षमता वाले प्रति डेढ़ हजार रुपये)0.30
3.उत्‍पादन इकाई (पीवीसी पाइप और फ्लोट)1.50
4.सर्जिकल सेट्स (प्रति सेट 5000 रुपये के हिसाब से 4 सेट)0.20
5.सर्जिकल सुविधाओं के लिए फर्नीचर (4 सेट)0.10
कुल योग3.10
ख .परिचालन लागत
1.तालाब को पट्टे पर लेने का मूल्‍य (डेढ़ साल के फसल के लिए)0.15
2.सीप (25,000 प्रति 50 पैसे के हिसाब से)0.125
3.डिजायनदार मोती का खाँचा (50,000 प्रति 4 रुपये के हिसाब से)2.00
4.कुशल मजदूर (3 महीने के लिए तीन व्‍यक्ति 6000 प्रति व्‍यक्ति के हिसाब से)0.54
5.मजदूर (डेढ़ साल के लिए प्रबंधन और देखभाल के लिए दो व्‍यक्ति प्रति व्‍यक्ति 3000 रुपये प्रति महीने के हिसाब से1.08
6.उर्वरक, चूना और अन्‍य विविध लागत0.30
7.मोतियों का फसलोपरांत प्रसंस्‍करण (प्रति मोती 5 रुपये के हिसाब से 9000 रुपये)0.45
कुल योग4.645
.कुल लागत
1.कुल परिवर्तनीय लागत4.645
2.परिवर्तनीय लागत पर छह महीने के लिए 15 फीसदी के हिसाब से ब्‍याज0.348
3.स्‍थायी पूँजी पर गिरावट लागत (प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए)0.465
4.स्‍थायी पूँजी पर ब्‍याज (प्रतिवर्ष 15 फीसदी के हिसाब से डेढ़ वर्ष के लिए0.465
कुल योग5.923
II.कुल आय
1.मोतियों की बिक्री पर रिटर्न (15,000 सीपों से निकले 30,000 मोती यह मानते हुए कि उनमें से 60 फीसदी बचे रहेंगे)
डिजायन मोती (ग्रेड ए) (कुल का 10 फीसदी) प्रति मो‍ती 150 रुपये के हिसाब से 3000

 

4.50
डिजायन मोती (ग्रेड बी) (कुल का 20 फीसदी) प्रति मो‍ती 60 रुपये के हिसाब से 6000

 

3.60
कुल रिटर्न8.10
III.शुद्ध आय (कुल आय- कुल लागत)2.177
स्त्रोत:सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्‍वाकल्‍चर, भुवनेश्‍वर, उड़ीसा

जानें क्या है आर्गेनिक जैविक खाद बनाने का घरेलु तरीका

जानें क्या है आर्गेनिक जैविक खाद बनाने का घरेलु तरीका

एक एकड़ भूमि के लिए कीट नियंत्रक बनाने के लिए हमें चाहिए 20 लीटर देसी गाय का गौ मूत्र 3 से 5 किलोग्राम ताजा हरा नीम कि पत्ती या निमोली , 2.500 किलो ग्राम ताजा हरा आंकड़ा के पत्ते , 2500 किलोग्राम भेल के पत्ते ताजा हरा , 2.500 ताजा हरा आडू के पत्ते इन सब पत्तो को कूट कर बारीक़ किलोग्राम पीसकर चटनी बनाकर उबाले और उसमे 20 गुना पानी मिलाकर किट नाशक या नियंत्रक तैयार करे इसको खड़ी फसल पर पम्प द्वारा तर बतर कर छिड़काव करे इससे जो भी कीड़े फसल को हानी पहुचाते है वह तो ख़त्म हो जायेंगे परन्तु फसल को किसी भी तरह का हानी नहीं होगा।

कीट नियंत्रण

  1. देशी गाय का मट्ठा 5 लीटर लें । इसमें 3 किलो नीम की पत्ती या 2 किलो नीम खली डालकर 40 दिन तक सड़ायें फिर 5 लीटर मात्रा को 150 से 200 लिटर पानी में मिलाकर छिड़कने से एक एकड़ फसल पर इल्ली /रस चूसने वाले कीड़े नियंत्रित होंगे।
  2. लहसुन 500 ग्राम, हरी मिर्च तीखी चिटपिटी 500 ग्राम लेकर बारीक पीसकर 150 लीटर पानी में घोलकर कीट नियंत्रण हेतु छिड़कें ।
  3. 10 लीटर गौ मूत्र में 2 किलो अकौआ के पत्ते डालकर 10 से 15 दिन सड़ाकर, इस मूत्र को आधा शेष बचने तक उबालें फिर इसके 1 लीटर मिश्रण को 150 लीटर पानी में मिलाकर रसचूसक कीट /इल्ली नियंत्रण हेतु छिड़कें।

इन दवाओं का असर केवल 5 से 7 दिन तक रहता है । अत: एक बार और छिड़कें जिससे कीटों की दूसरी पीढ़ी भी नष्ट हो सके।

बेशरम के पत्ते 3 किलो एवं  धतूरे के तीन फल फोड़कर 3 लिटर पानी में उबालें । आधा पानी शेष बचने पर इसे छान लें । इस छने काढ़े में 500 ग्राम चने डालकर उबालें। ये चने चूहों के बिलों के पास शाम के समय डाल दें। इससे चूहों से निजात मिल सकेगी।

जानें फूल गोभी की उन्नत किस्में एवं उनके आय व्यय की जानकारी

जानें फूल गोभी की उन्नत किस्में एवं उनके आय व्यय की जानकारी

समर किंग

लगाने का समयफरवरी-मार्च
उपयुक्त भूमिनिचली जमीन
उपयुक्त मिटटीमटियार दोमट
औसत उपज100 क्वीं./हे.
संभव उपज280 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणफूल क्रीमी सफेद तथा गुम्बदाकार होता है।
अवधि55 दिन
सिंचाई की आवश्यकता7 दिनों के अन्तराल पर।
विशिष्ट गुणकम अवधि के प्रभेद।
लागतरू 60000/-प्रति हे.
शुद्ध आमदनीरू 70000/-प्रति हे.

 

हिमरानी

लगाने का समयमध्य अगस्त-सितंबर
उपयुक्त भूमिमध्यम एवं निचली जमीन
उपयुक्त मिटटीअच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो ।
औसत उपज250 क्विंटल/हे0
संभव उपज600 क्विंटल/हे0
वानस्पतिक गुणपौधा- आकर्षक सीधे खडे. पौधे ,

पत्तियॉं- नीलापन युक्त हरा,

फुल- गुम्बदाकार बर्फ सदृश   सफेद रंग

अवधि80-85 दिनों तक
सिंचाई की आवश्यकता10 दिनों के अन्तराल पर
विशिष्ट गुणखेत मे ठहरने की उत्तम क्षमता ।

 

पुष्पा

लगाने का समयमध्य अगस्त-सितंबर
उपयुक्त भूमिमध्यम एवं निचली जमीन
उपयुक्त मिटटीदोमट या बलुई दोमट, जल निकास की समुचित व्यवस्था, भरपुर जीवांश हों।
औसत उपज250 क्विंटल/हे0
संभव उपज450 क्विंटल/हे0
वानस्पतिक गुणपत्तियॉं- नीलापन युक्त हरा,

फूल- गुम्बदाकार, अत्यधिक ठोस रंग-सफेद, वजन-एक से डेढ. किलो ग्राम ।

अवधि85-95 दिन
सिंचाई की आवश्यकताग्रीष्मऋतु- 5-7 दिनों के अन्तराल पर।

सितम्बर के बादः 10-15 दिनों के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार ।

विशिष्ट गुणखेत में ठहरने की उत्तम क्षमता है ।

 

स्नोबाल 16 (पिछात)

लगाने का समयअक्टूबर-नवंबर(पौधशाला में), नवंबर-दिसंबर(खेत में)
उपयुक्त भूमिउपरी एवं मध्यम भूमि
उपयुक्त मिटटीबलुई दोमट से दोमट
औसत उपज220 क्वीं./हे.
संभव उपज250 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणबाहरी पत्तियॉं सीधी खड़ी होती है। फूल पुष्ट और सफेद होता है।
अवधि90-95 दिन
सिंचाई की आवश्यकता10-15 दिनों पर
विशिष्ट गुणफूल का आकार बड़ा होता है।
लागतरू. 80000/-प्रति हे.
शुद्ध आमदनीरू 90000/-प्रति हे.

 

पूसा शुभ्रा (मध्य)

लगाने का समयअगस्त-सितंबर(पौधशाला में), सितंबर-अक्टूबर(खेत में)
उपयुक्त भूमिउपरी एवं मध्यम जमीन
उपयुक्त मिटटीबलुई दोमट से दोमट
औसत उपज200 क्वीं./हे.
संभव उपज250 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणपौधा सीधा तथा तना लंबा, पत्तियॉं नीली-हरी तथा मोम आवरण से युक्त, फूल पुष्ट तथा सफेद होता है।
अवधि90-95 दिन
सिंचाई की आवश्यकताआवश्यकतानुसार
विशिष्ट गुणफूल का वजन 700-800 ग्राम होता है।
लागतरु.70000/-प्रति हे.
शुद्ध आमदनीरू 80000/-प्रति हे.

 

पूसा हिम ज्योति (मध्य)

लगाने का समयअगस्त-सितंबर(पौधशाला में), सितंबर-अक्टूबर(खेत में)
उपयुक्त भूमिउपरी एवं मध्यम भूमि
उपयुक्त मिटटीबलुई दोमट से दोमट
औसत उपज160 क्वीं./हे.
संभव उपज180 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणपौधा सीधा, पत्तियॉं नीली-हरी तथा मोम आवरण से युक्त एवं सफेद होता है।
अवधि60-75 दिन
सिंचाई की आवश्यकताआवश्यकतानुसार
विशिष्ट गुणफूल का वजन 500-600 ग्राम होता है।
लागतरू 65000/-प्रति हे.
शुद्ध आमदनीरु. 75000/-प्रति हे.

 

पूसा कतकी (मध्य) 

लगाने का समयअगस्त-सितंबर(पौधशाला में), सितंबर-अक्टूबर(खेत में)
उपयुक्त भूमिउपरी एवं मध्यम जमीन
उपयुक्त मिटटीबलुई दोमट से दोमट
औसत उपज120 क्वीं./हे.
संभव उपज150 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणपौधा मध्यम आकार का, पत्तियॉं नीली-हरी तथा किनारा लहरदार होता है। फूल का रंग क्रीमी सफेद होता है।
अवधि60-70 दिन
सिंचाई की आवश्यकताआवश्यकतानुसार
विशिष्ट गुणअक्टूबर के अंत तक फूल उपलब्ध होने से मूल्य अधिक मिलता है।
लागतरू 65000/-प्रति हे.
शुद्ध आमदनीरू 75000/-प्रति हे.

 

पूसा अर्ली सिंथेटिक (आगत)

लगाने का समयजायद (फरवरी-मार्च), खरीफ (जुन-जुलाई)
उपयुक्त भूमिगरमा(मध्यम एवं निचली जमीन) खरीफ (ऊपरी जमीन)
उपयुक्त मिटटीजायद (मटियार दोमट), खरीफ (बलुई दोमट)
औसत उपज120 क्वीं./हे.
संभव उपज150 क्वीं./हे.
वानस्पतिक गुणपौधा सीधा, पत्तियॉं नीली-हरी, फूल क्रीमी सफेद तथा पुष्ट होता है।
अवधि70-75 दिन
सिंचाई की आवश्यकतागरमा(7 दिनों पर), खरीफ (आवश्यकतानुसार)
विशिष्ट गुणफूल छोटा तथा मध्यम आकार का होता है।
लागतजायद रू 70000/-प्रति हे., खरीफ- रू 65000/- प्रति हे.
शुद्ध आमदनीजायद रू 75000/-प्रति हे., खरीफ- रू 70000/- प्रति हे.
 स्त्रोत : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची 

फफूँदनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

फफूँदनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

रासायनिक नामकुछ व्यापारिक नाम

कार्बेन्डाजिम

बाविस्टिन-50 डब्ल्यू.पी., डेरोसाल, सुबीज, काबेस्टीन 50, प्राइमोस्टिन,

फंगीगार्ड,टेगोस्टिन, धानुस्टीन, आरिस्टीन, अनुस्टीन, देवीस्टीन एग्रोजीम,

मिकफन, अरेस्ट50 डब्ल्यू.पी., डेलजिम, कास्टीन, केमिस्टीन, कारजिम,

जेन 5, अग्नि

ताम्रयुक्त दवा

फाइटोलान, क्युप्रामार, ब्लाइटाक्स-50, ब्लीमिक्स 4%, कॉपर फोरेक्स,

भरत कॉपरऑक्सीक्लोराइड, धानुकाप,

आरीकाप, ब्लू कॉपर, अनुकाप देवी कॉपर, ब्लूविट अमृतकॉपर,

कोपसिन, हार्इ कॉपर, कोसाइड, कॉपरियेन्ट 50, कापरेक्स,

टेगकोप, हिलकॉपर

क्लोरोथेनिलकवच, ब्रेवो, क्लोरटोसीप
थायोफिनेट मिथाइलटॉपसिन एम.
हेक्साकोनाजोलकन्टाफ, एनविल
ट्राइसायक्लाजोलबीम, बाण, सिविक
कार्बोक्सिनवीटावेक्स

मेनेब, मेन्कोजेब

डायथेन एम-45, डायथेन एम-22, मेनेजेट, एण्डोफिल एम-45, डिफेण्ड,

प्राइमोजेब,एम गार्ड, धानुका एम-45,

सेडोजेब, एबीकेएम-45, जेबटेन, एग्रोमेन्को, देवीदयालएम-45,

मेंकोसिन एम-45, शील्ड-75, हिन्दुस्तान एम-45,

रेज एम-45, लू जेम-45,रसायन एम-45, केम-75, यूथेन एम-45,

कोहीनूर, जिन्थेन एम-45

प्रोपीकोनाजोलटिल्ट
ऑक्सी-कार्बाक्सीनप्लान्टवैक्स

जानें क्या है सब्जियों हेतु नर्सरी डालने का सही समय

जानें क्या है सब्जियों हेतु नर्सरी डालने का सही समय

सफलतापूर्वक फसल उगाने एवं अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उचित समय पर नर्सरी डालना चाहिए तथा पौधों का रोपण करना बहुत आवश्यक है। विभिन्न फसलों के लिये नर्सरी डालने का समय नीचे दर्शाया गया है

खरीफ में विभिन्न फसलों के लिये नर्सरी डालने का समय

क्र.सब्जी का नामनर्सरी डालने का समयरोपण के लिये पौधे की आयु (सप्ताह में)
1.टमाटरमर्इ-जून5-6
2.बैंगनमर्इ-जून5-6
3.मिर्चमर्इ-जून6-7
4.फूलगोभीमध्य मर्इ से जून (अगेती) जुलार्इ (पछेती)4-6
5.पत्ता गोभीजुलार्इ-अगस्त4-6
6.प्याजजून6-7

 रवी में विभिन्न फसलों के लिये नर्सरी डालने का समय

क्र.सब्जी का नामनर्सरी डालने का समयरोपण के लिये पौधे की आयु (सप्ताह में)
1.टमाटरअक्टूबर6-7
2.बैंगनअक्टूबर6-7
3.मिर्चअक्टूबर6-7
4.प्याजअक्टूबर-नवम्बर6-7
5.शिमला मिर्चअक्टूबर-नवम्बर5-6

कीटनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

कीटनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

किसान भाई अक्सर कीटनाशक दवाओं के नाम जानना चाहते हैं जिसे आसानी से वह बाजार से खरीद सकें, नीचे कुछ कीटनाशक दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम दिए गए हैं | किसानों को यह जानना जरुरी है की कौनसा कीटनाशक किस फसल के लिए उपयुक्त है तथा उस कीटनाशक से पौधों पर क्या असर पड़ेगा | किस कीटनाशक का उपयोग कितनी मात्रा में करना चाहिए | यह सभी जानने के बाद ही दवाओं का प्रयोग करें |

कीटनाशक दवाओं के नाम 

क्र.
  रासायनिक  नाम
कुछ व्यापारिक नाम
1प्रोपेनफास + साइपरमेथ्रिन 44 ई.सी.पॉलीट्रिन सी. 44, राकेट 44
2मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी.मेटासिस्टॉक्स 25 ई.सी., पैरासिस्टॉक्स 25 ई.सी.
3डाइमिथोएट 30 ई.सी.रोगर 30 ई.सी., नोवागेर 30 ई.सी.
4डाइक्लोरवास 76 ई.सी.नुवान 76 ई.सी., वेपोना 76 ई.सी.
5डायकोफाल 13.5 ई.सी.डायकोफास 13.5 ई.सी.
6मेलाथियान 50 ई.सी.मेलाटाफ 50 ई.सी., कोरोथियान 50 ई.सी.
7क्लोरपायरीफास 20 ई.सी.डर्सवान 20 ई.सी. राडार
8कार्बोफ्यूरान 3 जी.फ्यूराडान 3 जी., डायफ्यूरान 3 जी.
9फोरेट 10 जी.थिमेट 10 जी., पेरीटाक्स 10 जी
10कार्टाप हाइड्रोक्लोराइट 4 जी.50% एस.पी.पडान, केलडान
11इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल.कान्फीडोर
12कार्बारिल 50% घुलनषील चूर्णसेविन, धानुबिन
13मिथाइल पैराथियान 50 ई.सी.2% चूर्णमेटासिड, फालीडाल
14फिपरोनिल 5 एस.सी. 0.3% जीरीजेन्ट
15कोरेजन 18.5 एस.सी.रायनेक्सीपायर
16क्लोरेन ट्रेनीलीप्रोल (0.4 ग्रेन्यूल)फरटेरा

कीटनाशक दवाओं पर EC (ई.सी.) और SC (एस.सी.) का मतलब जानने के लिए क्लिक करें 

यह कीटनाशक हैं प्रतिबंधित

खरपतवारनाशी दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

खरपतवारनाशी दवाओं के रासायनिक एवं कुछ व्यापारिक नाम

रासायनिक का नामकुछ व्यापारिक नाम
1. 2,4-डीवीडमारवीडकिलनॉकवीडताफासाइडएर्बीटॉक्सकॉम्बीएग्रडोन-48
2. एलाक्लोरलासो
3. एनीलोफासएनीलोगार्डएरोजिनएनीलोधन
4. अट्राजीनअट्राटाफधनुजाइनसोलारो सूर्या
5. अजीमसल्फ्युरानसेगमेन्ट
6. बिसबाइरीबैक सोडियमनॉमिनी गोल्ड
7. ब्यूटाक्लोरमचेतीधनुक्लोरतीरडॉनमिक्स (र्इ.डब्ल्यू.), टॉपक्लोर
8. बेनसल्फ्यूरॉन + प्रेटिलाक्लोरलोन्डैक्स पावनइरेज स्ट्राँग
9. कारफेन्ट्राजोनएफीनिटी
10. क्लोरिमुरोनक्लोबेनट्रन्जक्यूरिन
11. क्लोरिमुरोन + मेटासल्फ़ुयूरोनआलमिक्स
12. क्लोडिनाफॉपटोपिकझटकापाइन्ट
13. क्लोमाजोनकमान्ड
14. साइहेलोफाप ब्यूटाइलक्लिन्चररैपअप
15. डालापानडालापानडोपान
16. डाइफॉप मिथाइलआइलोक्सान
17. डायोरानकार्मेक्सक्लासएग्रोमेक्सट्रू
18. इथॉक्सी सल्फ्यूरानसनराइस
19. फेनोक्साप्रॉपव्हिप सुपरडेल पावर
20. पायरेजोसल्फ्यूरान +प्रेटिलाक्लोर (दानेदार)इरोज़
21. ग्लूफोसिनेट अमोनियमबस्ता
22. ग्लाइफोसेटराउण्डअपग्लासिलग्लाइटॉपनोवीडवीडोफग्लोबस एस.एल.
23. हेलोक्सीफॉप मिथाइलफोकसगैलेन्टवरडिक्ट
24. इमेजथेपायरपरसुइटलगाम
25. आइसोप्रोट्यूरानअलोनअरेलॉनहिलप्रोट्यूरॉनतोलकॉनआइसोगार्डनोसिलॉन

धार, धनुलॉनडेलरॉनट्रिटीलॉनएग्रीलॉनआइसोलॉनवण्डर

मिलरॉन, षिवरॉनग्रेनिरॉनतौरसराहषकरनककनकसोनारॉन

फुलॉनतोतालॉनकेयरलॉनमार्कलॉनपेस्टोलॉनएग्रॉनमोनोलॉन,

 जयप्रोट्यूरानग्रेमिनॉनप्रोआइसोटॉक्सआइसोहिटसिलूरॉन

आइसोसिनआइसोप्टोट्यूरॉननारलॉन

26. लिनुरॉनएफालॉन
27. मेथाबेन्जथियाजुरॉनट्रिबुनिलएम्बोनिलयील्डपर्च
28. मेटोलाक्लोरड्यूल
29. मेट्रिब्युजीनसेन्कोरलेक्सोनबैरियरटाटा मेट्री
30. मेटसल्फ्यूरॉनमेथिलएलग्रिपडॉटहुक या मैट्सी
31. ऑक्साडायर्जिलरफ्टटॉपस्टार
32. ऑक्साडायजॉनरोनस्टान
33. ऑक्सीफ्लुरफेनगोलजारगॉनऑक्सीगोल्ड
34. पैराक्वेटगारमेक्सोनओजोन
35. पेन्डीमेथीलीनस्टाम्पधनुटॉपपनीडादोस्तपेन्डीस्टारक्रास
36. फिनाक्साडेनएक्सिल
37. प्रेटीलाक्लोररिफिटक्रेजइरेज
38. प्रेटीलाक्लोर + सेफनेरसॉफिट
39. पाइराजोसल्फ्यूरॉनसाथी
40. क्विजालोफॉपइथिलटर्गा सुपर
41. सल्फोसल्फ्यूरॉनलीडरसफलफतेहएस.एफ.-10
42. थायोबेनकार्बसैटर्न
43. ट्रयाईफ़्ल्यूरेलिनट्रेफ्लान, त्रिनेत्र एवं तूफान