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मंगलवार, जनवरी 14, 2025
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बजट 2021-22 में कृषि को उच्च प्राथमिकता से किसानों में बढ़ती आत्मनिर्भरता

बजट में कृषि को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल

देश के कृषि क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिये हमारी सरकार वर्ष 2015-16 से 2021-22 में लगातार कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय एवं कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग को उच्च प्राथिमिकता दे रही है । कृषि क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ाने के लिये विभिन्न योजनाओं के तहत महत्त्वपूर्ण बदलाव किये गए हैं। जैसे खाद्य सुरक्षा, दलहनों एवं तिलहनों में भविष्य स्वाबलंबी होने के लिये उन्नत बीजों, उर्वरकों,  बेहतर सिंचाई एवं कृषि को समय से निष्पादन के लिये फ़ार्म मशीनरी के लिये सरकार 30-50 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करा रही है । पोषण एवं रोजगार की द्रष्टिकोण से बागवानी, पशु-पालन और मछली-पालन इस क्षेत्र में पर भी कई विशेष योजनाओं को शुरू किया गया है। माननीय प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों 2022 तक अपनी आय दोगुनी करने का संकल्प किया । किसानों की आय दुगनी करने के लिये सरकार ने ढांचागत एवं अवसंरचनात्मक सुधार हेतु विभिन्न कृषि योजनाओं को लागू किया ।

श्रीमती सीतारमण वित्त मंत्री ने कहा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए बुनियादी ढाचें को मजबूत करने पर सरकार पूरी तरह प्रतीबद्ध  है। कृषि ऋण लक्ष्य 16.5 लाख करोड़ निर्धारित किया गया है तो सरकारी मंडियों को मजबूत करने लिए बजट का इंतजाम किया जाएगा। जिसके लिए पेट्रोल पर 2.5 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 4 रुपए प्रति लीटर का उपकर लगाया है। लेकिन सरकार ने इन पर पहले से लागू उत्पाद शुल्क और विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क घटा दिया है। वित्त मंत्री ने कहा कृषि अवसंरचना सेस से उपभोक्ताओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। कृषि एवं संबधित क्षत्रों के लिए वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट अनुमान 148.30 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान रखा है। वहीं पिछले  वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 142.76 हजार करोड़ से कम है, जबकि संसोधित बजट 145.35 हजार करोड़ रुपए था । हांलाकि वित्त वर्ष 2021-22 के लिए कृषि बजट में मामूली बढ़ोत्तरी की गयी जबकि कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल-भूत आधार है।

कृषि विकास  एवं कुल जीडीपी में हिस्सेदारी

आर्थिक सर्वे 2020 के आकड़ों के अनुसार कृषि  क्षेत्र न केवल  भारत की जीडीपी में लगभग 20 प्रतिशत का योगदान किया है जो पिछले 17 वर्षों में सबसे अधिक है, बल्कि भारत की लगभग 55% जनसंख्या रोज़गार के लिये कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर है एवं उद्योगों के लिये प्राथमिक उत्पाद भी उपलब्ध करता है । आर्थिक सर्वे के अनुसार वर्ष  2016-17 में 6.3 की दर से कृषि अर्थव्यवस्था में विकास हुआ था। वहीं वित्त वर्ष 2017-18 कृषि विकास दर घटकर पांच फीसदी पर रही जबकि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान कृषि विकास दर 3.00 फीसदी अनुमानित की गयी। लेकिन वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि की हिस्सेदारी घटकर 16.5 फीसदी पर आ गई है। हालांकि पिछले साल के 16.1 (%)  की तुलना में ये मामूली बढ़ोतरी भी है ।

कृषि में सकल मूल्य संवर्धन

देश के कृषि एवं संबध क्षेत्रो में जी वी ए का हिस्सा वर्ष 2015-16 में 17.7 प्रतिशत था जो वर्ष 2019-20 में मामूली बढ़कर 17.8 प्रतिशत हो गया जबकि फसलों की हिस्सेदारी में 10.6 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2018-19 में 9.4 रह गया जबकि पशु पालन की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि दर्ज की गयी । कृषि एवं संबध क्षेत्रो में जी.वी.ए. के विकास दर में उतार चड़ाव आता रहा है हालाँकि, वर्ष 2020-21 के दौरान कोविड -19 महामारी के कारण सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिये जी वी ए  -7.2 प्रतिशत की दर से सिकुड़ गया जबकि कृषि एवं संबध क्षेत्रो में जी.वी.ए. की विकास दर 3.4 प्रतिशत सकारात्मक रही । राष्ट्रीय आय से संबंधित आंकड़ों के आधार पर आर्थिक समीक्षा के अनुसार 2019-20 में देश के सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में कृषि और संबंधित गतिविधियों का योगदान 17.8 फीसदी रहा ।

वर्ष 2017-18 में समाप्त होने वाले पिछले छह वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र लगभग 5.6 फीसदी की औसत वार्षिक वृद्धि दर (एएजीआर) से बढ़ रहा है जबकि  वर्ष 2017-18 में 2011-12 के मूल्यों पर विनिर्माण तथा कृषि क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का सकल मूल्यवर्धन (जीवीए) क्रमश: 8.83 फीसदी और 10.66 फीसदी रहा । देश में लाखों ग्रामीण परिवारों के लिए पशु-धन आय का दूसरा महत्वपूर्ण साधन है और यह क्षेत्र किसानों की आय को दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने में अहम भूमिका निभा रहा है । पिछले पांच वर्षों में पशु-धन क्षेत्र में (7.9%) की क्रमागत वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) दर्ज की गई है। मछली-पालन खाद्य, पोषाहार, रोजगार और आय का महत्वपूर्ण साधन रहा है । 

कृषि  क्षेत्र के  बजट पर एक नजर

वित्तीय वर्ष 2020-21 कृषि  क्षेत्र का बजट सरकार 2022  तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिये वर्ष 2015-16 से कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण का बजट 17 हजार करोड़ से बढ़ाकर वर्ष 2016-17 में 36 हजार करोड़ किया जबकि वास्तविक व्यय 37 हजार करोड़ किया गया जो बर्ष 2019-20 में से बढ़ाकर 130.5 हजार करोड़  रूपये  का प्रावधान रखा जबकि वित्त मंत्रालय ने वर्ष 2020-21 बजट में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को 1,42.76 हजार करोड़ रुपए राशि का प्रावधान रखा है बढ़ाकर वर्तमान वित्तीय वर्ष  2021-22 में अनुमान 148.30 हजार  करोड़ रुपए का प्रावधान किया ( चित्र 1 देखें )। देश में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग बजट पी ए आर भी बजट में बढ़ोत्तरी की गयी जो वर्ष 2015-16 में लगभग 6000 करोड़ से बढ़ाकर वर्ष 2019-20 में 8000 करोड़ कर दिया गया जो बढ़ाकर वर्ष 2021-22 में 8.51 हजार करोड़ कृषि अनुसंधान क्षेत्र में नई तकनीकी विकसित करने एवं यंत्रीकरण के लिये विशेष अनुदान योजनाओं से किसानों की आय दुगनी में करने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी ।

सकल पूंजी निर्माण

इस क्षेत्र में जी.वी.ए. के सापेक्ष कृषि एवं संबध क्षेत्रो में सकल पूंजी निर्माण (जीसीफ) उतार चड़ाव पाया गया जो वर्ष 2014-15 में 17 प्रतिशत से घट कर वर्ष 2015-16 में 14.7 प्रतिशत रह गया एवं वर्ष 2018-19 में 16.4 प्रतिशत मामूली वृधि दर्ज की गयी । एनएसओ के मुताबिक, देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष (2020-21) में 7.7 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। इसके लिए कोविड-19 वैश्विक महामारी को मुख्य कारण बताया गया है।

एनएसओ के अनुसार वर्ष  2020-21 में स्थिर मूल्य (2011-12) पर वास्तविक जीडीपी या जीडीपी 134.40 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। जबकि 2019-20 में जीडीपी का शुरुआती अनुमान 145.66 लाख करोड़ रुपए रहा था । इस तरह 2020-21 में वास्तविक जीडीपी में अनुमानत: 7.7 प्रतिशत की गिरावट आएगी। एनएसओ की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के दौरान कृषि क्षेत्र का संकुचित रही । प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है। ऐसे में चालू वित्त वर्ष में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.5 फीसदी रहने का अनुमान है जबकि अन्य क्षेत्रों में  वृद्धि दर कोरोना विश्व व्यापी महामारी के कारण निचले स्तर पर संकुचित रही ।

कृषि ऋण में बढ़ोत्तरी

किसानों को कम अवधि के लिए आसानी से लोन (ऋण) उपलब्ध करवाने के लिए कृषि में बढ़ते लागत खर्च तथा वैज्ञानिक तरह से खेती करने के लिए पूंजी की जरुरत होती है । इसके लिए किसान के पास समय पर वित्तीय सुविधा मौजूद नहीं होती है जिससे किसान लोग समय पर बीज, उर्वरक कीटनाशक, तथा जुताई, श्रमिकों  के लिए धन उपलब्ध नहीं हो पाता है । इससे  फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।  जिससे किसान को ऋण साहूकार से लेना पड़ता है जो काफी अधिक ब्याज पर रहता है । अधिक ब्याज पर लोन को ध्यान में रखते हुये सस्ते लोन उपलब्ध करवाने के लिए केंद्र सरकार की एक योजना है किसान क्रेडिट कार्ड योजना ।  

इस योजना से किसान 4 प्रतिशत के ब्याज पर लोन प्राप्त कर सकते हैं । कृषि क्षेत्र में डिजिटल इंडिया महत्वपूर्ण योगदान इससे संस्थागत ऋण में वृद्धि हुई । वर्ष 2014-15 आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वर्ष 2019-20 में 13 लाख 50 हजार करोड़ रुपये का कृषि ऋण निर्धारित किया गया था, जबकि किसानों को 13,92.47 हजार करोड़ रुपये का ऋण प्रदान किया गया जो कि निर्धारित सीमा से काफी अधिक था। 2020-21 में 15 लाख करोड़ रुपये का ऋण प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था।  नवंबर, 2020 तक 9,73,517.80 करोड़ रुपये का ऋण किसानों को उपलब्ध कराया गया ।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना

किसानों को आसानी से ऋण मुहैया कराने के लिये सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड किसानों को जारी किये गए । वर्ष  2014-15 में 7.41 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स किसानों को जारी किये गए एवं उनके द्वारा 5.20 लाख करोड़ ऋण बकाया है जो बढ़कर वर्ष 2016-17 में किसानों को सबसे अधिक 17.66 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स जारी किये गए एवं किसानों का 6.86  लाख करोड़ ऋण बकाया है। जबकि वर्ष 2018-19 में किसानों को कम 15.05 करोड़ किसान क्रेडिट कार्ड्स जारी किये गए (चित्र 2 देखें) जबकि किसानों का 5.30  लाख करोड़ ऋण  बकाया रहा है। किसान समय से फसलों के लिये संसाधन (जैसे खाद, बीज, पानी, कीटनाशी एवं अन्य कृषि क्रियाओं के लिये ) समय से वित्त प्रबंध कर सके ।

kisan credit card loan distribution

प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर भारत पैकेज के हिस्से के रूप में डेढ़ करोड़ दुग्ध डेयरी उत्पादकों और दुग्ध निर्माता कंपनियों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। आंकड़ों के अनुसार मध्य जनवरी, 2021 तक कुल 44,673 किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) मछुआरों और मत्स्य पालकों को उपलब्ध कराए गए थे, जबकि इनके अतिरिक्त मछुआरों और मत्स्य पालकों के 4.04 लाख आवेदन बैंकों में कार्ड प्रदान करने की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में हैं।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है। खेती में  जोखिम की समस्या से किसानों को बचाने के लिए  सरकार की फसल बीमा योजना वर्ष 2015-16  के तहत सबसे अधिक राजस्थान में 293.20 लाख इसके बाद बिहार 106.35 लाख किसान एवं महाराष्ट्र में 25.47 किसानों को लाभ मिला जबकि पूरे देश में  511 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिला था । वर्ष 2018-19 में  तहत सबसे अधिक महाराष्ट्र में 155.08 लाख इसके बाद राजस्थान में 72.53 लाख एवं कर्णाटक में 32.96 लाख किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ मिला आर्थिक समीक्षा के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के अंतर्गत 12 जनवरी, 2021 तक 90 हजार करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया है। आधार की वजह से किसानों को तेजी से भुगतान हुआ है और दावे की राशि सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचाई गई है। मौजूदा कोविड-19 महामारी की वजह से लगाए गए लॉकडाउन के बावजूद 70 लाख किसानों को इस योजना का लाभ मिला है और लाभार्थियों के बैंक खातों में 8741.30 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान किया गया है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

PMFBY प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग इस योजना को लागू कर रहा है। वर्ष 2015-16 सिंचाई में निवेश के अभिसरण को प्राप्त करने के प्रमुख उद्देश्यों के साथ फील्ड लेवल, सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार किया । खेत में पानी के उपयोग में सुधार पानी की बर्बादी को कम करने के लिए दक्षता, सटीक सिंचाई और अन्य को अपनाना तथा जल बचत प्रौद्योगिकियां (प्रति बूंद अधिक फसल), सतत जल संरक्षण को बढ़ावा देना । जुलाई, 2016 के दौरान कैबिनेट ने मिशन मोड के लिए मंजूरी दे दी है ।

कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से कृषि में विस्तार होगा, उत्पादकता में वृद्धि होगी जिससे अर्थव्यवस्था का पूर्ण विकास होगा। इस योजना के तहत के केंद्र सरकार द्वारा 75 प्रतिशत का   अनुदान दिया जाएगा एवं  25% खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। इससे ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई योजना का फायदा भी किसानों को प्राप्त होगा । वर्ष 2015 में  ड्रिप एवं  स्प्रिंकलर सिंचाई योजना के तहत क्रमश: क्षेत्रफल 3387.09 हजार, 4388.22 हजार एवं कुल 7775.10 हजार हेक्टेयर्स क्षेत्रफल को अच्छादित किया गया जो वर्ष 2019 में बढ़कर  क्रमश:  5355.11 हजार, 6057.82 हजार एवं कुल  11412.92 हजार हेक्टेयर्स क्षेत्रफल को अच्छादित किया गया जो लगभग 4 वर्ष में 31.87 प्रतिशत सिंचित क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी हुई  ।

राजस्थान में स्प्रिंकलर सिंचाई को काफी बढ़ावा दिया गया, वहाँ वर्ष 2015 में सबसे अधिक क्षेत्रफल 1514.45 हेक्टेर्स जो बढ़कर वर्ष 2019 1645.43 हेक्टेर्स हो गया जबकि महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ड्रिप सिंचाई को अधिक महत्व दिया गया चूँकि दोनों राज्यों में बागवानी फसलें जैसे अनार, अंगूर, संतरे- मौसमी एवं केले की खेती अधिक की जाती है। नये उपकरणों की प्रणाली के इस्तेमाल से 40-50 प्रतिशत पानी की बचत हो पायेगी और उसके साथ ही 35-40 प्रतिशत कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी एवं उपज के गुणवत्ता में तेज़ी आएगी। वर्ष 2018 – 2019  के दौरान, केंद्र सरकार लगभग 2000 करोड़ खर्च करेगी, और अगले वित्तीय वर्ष 2019-20 में इस योजना पर अन्य 3000 करोड़ खर्च होंगे। बर्ष 2021-22 वित्त मंत्री ने माइग्रो इरीगेशन (सूक्ष्य सिंचाई) और ऑपरेशन ग्रीन क भी जिक्र किया। सूक्ष्य सिंचाई निधि योजना का बजट बढ़ाकर 5 हजार से 10 हजार करोड़ कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) – ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ के लिए आवंटन को वर्ष 2020-21 के लिए 2,563 करोड़ के संशोधित अनुमान से बढ़ाकर 4,000 करोड़  कर दिया गया है। राज्यों से प्राप्त सूचना के अनुसार, 2014-15 से 2020-21 की तीसरी तिमाही तक 7.09 लाख हैक्टेयर जल संचयन संरचनाओं का निर्माण/पुनर्निमाण किया गया और 15.17 लाख हैक्टेयर का अतिरिक्त क्षेत्र सुरक्षात्मक सिंचाई में शामिल किया गया।

किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये कृषि बजट महत्वपूर्ण  निर्णय

वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है। सुनिश्चित कीमत उपलब्ध कराने के लिए एमएसपी व्यवस्था में व्यापक बदलाव हुआ है, जो सभी कमोडिटीज के लिए लागत की तुलना में कम से कम डेढ़ गुना हो गया है। खरीद एक निश्चित गति से निरंतर बढ़ रही है। इसके परिणाम स्वरूप किसानों को भुगतान में भी बढ़ोतरी हुई है।

पीएम आशा योजना

प्रधानमंत्री अन्‍न्‍दाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना वर्ष 2020 के लिए आवंटन केंद्र सरकार एक तरफ तो किसानों को दलहन एवं तिलहन फसलें लगाने के लिए प्रोत्साहित करने की बात कर रही है वही इस वर्ष दलहन तिलहन खरीद से सम्बन्धित योजना (पीएम आशा योजना) के बजट में भारी कटौती की गई है | अभी हाल ही में 10 फरवरी को हुए संयुक्त राष्ट्र विश्व दलहन दिवस समारोह का नई दिल्ली में उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार का उद्देश्य भारत में दलहनों का आवश्यकता से अधिक उत्पादन करना है |

किसानों से दलहन, तिलहन तथा गरी (copra) की सरकारी खरीदी करने वाली योजना के लिए इस बार की बजट में भारी कटौती की गई है | पिछले वर्ष इस योजना के लिए 1500 करोड़ रुपये जारी किये गए थे वहीँ  इस वर्ष केन्द्रीय बजट पेश करते हुए केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1,000 करोड़ रूपये की कटौती करते हुए मात्र 500 करोड़ रूपये जारी किये हैं |

न्यूनतम समर्थन पर अनाज ,दलहन की खरीद में बढ़ोतरी

वर्ष 2019-20 में 62,802 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया और 2020-21 में इसमें और सुधार हुआ तथा किसानों को 75,060 करोड़ का भुगतान किया गया। इससे लाभान्वित होने वाले गेहूं किसानों की संख्या 2020-21 में बढ़कर 43.36 लाख हो गई जो 2019-20 में 35.57 लाख थी। धान के लिए, 2013-14 में `63,928 करोड़ का भुगतान किया गया। वर्ष 2019-20 में यह वृद्धि 1,41,930 करोड़ थी। वर्ष 2020-21 में यह और  बढ़कर 1,72,752 करोड़ रुपये हो गई। 

Support price cereals, purchase of pulses

इससे लाभान्वित होने वाले धान किसानों की संख्या 2020-21 में बढ़कर 1.54 करोड़ पर हो गई, जो संख्या 2019-20 में 1.24 करोड़ थी। बर्ष 2019-20 में यह धनराशि बढ़कर 8,285 करोड़  हो गई | इस समय 2020-21 में यह 10,530 करोड़ है (चित्र 5 देखें ) । इसी प्रकार, कपास के किसानों की प्राप्तियों में तेजी से बढ़ोतरी हुई, जो 2013-14 की 90 करोड़ रुपये से बढ़कर 25,974 करोड़  (27 जनवरी 2021) के स्तर पर पहुंच गई। 

स्वामित्व योजना

इस साल की शुरुआत में, माननीय प्रधानमंत्री ने स्वामित्व योजना की पेशकश की थी। इसके अंतर्गत, गांवों में संपत्ति के मालिकों को बड़ी संख्या में अधिकार दिए जा रहे हैं। अभी तक, 1,241 गांवों के लगभग 1.80 लाख संपत्ति मालिकों को कार्ड उपलब्ध करा दिए गए हैं और वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष 21-22 के दौरान इसके दायरे में सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को शामिल किए जाने का प्रस्ताव किया है।

ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष में बढोतरी

ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष के लिए आवंटन 30 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40 हजार करोड़ कर दिया गया है। नाबार्ड के अंतर्गत 5 हजार करोड़ के कोष के साथ बनाए सूक्ष्म सिंचाई कोष को दोगुना कर दिया जाएगा। कृषि और सहायक उत्पादों में मूल्य संवर्धन व उनके निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए की गई एक अहम घोषणा के तहत, अब ‘ऑपरेशन ग्रीन योजना’ के दायरे में अब 22 जल्दी सड़ने वाले उत्पाद शामिल हो जाएंगे। वर्तमान में यह योजना टमाटर, प्याज और आलू पर लागू है।

 कृषि बाजार मंडी सुधार

लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (एसएफएसी) भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत ई-नाम को लागू करने के लिए प्रमुख एजेंसी है। राष्ट्रीय कृषि बाजार (National Agriculture Market (ई-नाम) एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है  जो कृषि उत्पादों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार बनाने हेतु मौजूदा एपीएमसी मंडियों को ऑनलाइन नेटवर्क से जोड़ता  है । जिससे  देश के किसानों  को काफी फायदा होगा । देश के जो इच्छुक लाभार्थी अपनी फसल को ऑनलाइन बेचना चाहते है तो वह घर बैठे इंटरनेट के माध्यम से  e-nam पोर्टल पर जाकर ऑनलाइन बेच सकते है। अब अलग-अलग किसान ई-नाम  पोर्टल पर e-nam.gov.in पर किसान पंजीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। देश की  585 मंडियों को  ई-नाम योजना के तहत एकीकृत  करने की बात की गई है। विशेष योजनाओं को शुरू किया गया है। ई-नाम में लगभग 1.69 करोड़ किसान पंजीकृत हैं और इनके माध्यम से 1.14 लाख करोड़  का व्यापार हुआ है। पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखते हुए ई-नैम को कृषि बाजार में लाया गया है, ई-नैम के साथ 1,000 से ज्यादा मंडियों को जोड़ा जा चुका है। एपीएमसी को अपनी अवसंरचना सुविधाएं बढ़ाने के लिए कृषि अवसंरचना कोष उपलब्ध कराया जाएगा।

राष्ट्रीय कृषि बाजार का उद्देश्य

किसानो को फसलों को बेचने को लेकर समस्याएं होती है वह फसल का उत्पादन तो कर लेते हैं,  लेकिन उसको कहां पर बेचे यह उनके सामने एक सवाल होता था  हालांकि अभी तक किसानों की फसलें बिचौलियों को द्वारा खरीद कर बेची जाती थी । इस समस्या को निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) पोर्टल को शुरू किया है किसान अपने कृषि उत्पादों को बेहतर कीमत में बेच सकते है ।

राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई नाम) के लाभ

  • e nam ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से बेहतर कीमत की खोज प्रदान करते हुए कृषि वस्तुओं में अखिल भारतीय व्यापार की सुविधा प्रदान करेगा।
  • अब वे बिचौलियों और आढ़तियों पर निर्भर नहीं हैं ! सरकार ने अब तक देश की 585 मंडियों को ई-नाम के तहत जोड़ा है ।
  • सेब, आलू प्याज, हरा मटर, महूआ का फूल, अरहर साबूत, मूंग साबूत, मसूर साबूत (मसूर), उड़द साबूत, गेहूँ, मक्का, चना साबूत, बाजरा, जौ, ज्वार, धान, अरंडी का बीच, सरसों का बीज, सोया बीन, मूंगफली, कपास, जीरा, लाल मिर्च और हल्दी के प्रायोगिक व्यापार की शुरुआत 14 अप्रैल 2016 को 8 राज्यों के 21 मंडियों में की गई है।
  • हरियाणा की अन्य 02 मंडियों अंबाला और शाहबाद को 1 जून 2016 को ई-नाम पर डाला गया। इस आधार पर, 31 अक्टूबर 2017 तक देश की पहली 470 मंडियों को ई-नाम के साथ एकीकृत किया जाएगा।

प्रवासी कामगार और श्रमिक

सरकार ने एक राष्‍ट्र, एक राशन कार्ड योजना शुरू की है। उसके बाद में लाभार्थी देश में कहीं भी अपना राशन का दावा कर सकते हैं। एक राष्‍ट्र, एक राशन कार्ड योजना 32 राज्‍यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है और 69 करोड़ लाभार्थियों तक पहुंच रही है। यह संख्‍या इस योजना के तहत शामिल लाभार्थियों की कुल संख्‍या की 86 प्रतिशत है। बाकी चार राज्‍य और केंद्र शासित प्रदेश अगले कुछ महीनों में इससे जुड़ जाएंगे। सरकार ने चार श्रम कोड लागू करने से 20 साल पहले शुरू हुई प्रक्रिया को समाप्‍त करने का प्रस्‍ताव किया है। वैश्विक रूप से पहली बार सामाजिक सुरक्षा के लाभ वंचित और मंच कामगारों तक पहुंचेंगे। न्‍यूनतम वेतन सभी श्रेणी के कामगारों पर लागू होंगे और वह सभी कर्मचारी राज्‍य बीमा निगम के तहत आएंगे।

वित्‍तीय समावेश

कमजोर वर्गों के लिए किए गए उपायों के अनुपालन में वित्‍त मंत्री ने अनुसूचित जाति,जनजाति और महिलाओं के लिए स्‍टैंड अप इंडिया योजना के तहत नकदी प्रवाह सहायता को आगे बढ़ाने की घोषणा की है। वित्‍त मंत्री ने मार्जिन मनी की जरूरत 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने और कृषि से संबंधित गतिविधियों के लिए ऋणों को भी शामिल करने का प्रस्‍ताव किया गया।  इसके अलावा एमएसएमई क्षेत्र की सहायता के लिए अनेक उपाय किए गए हैं। सरकार ने इस बजट में इसे क्षेत्र के लिए 15,700 करोड़ उपलब्‍ध कराए हैं, जो इस वर्ष के बजट अनुमान से दोगुने से भी अधिक हैं।

किसानों को लाभ देने के लिए, वित्त मंत्री ने कपास पर सीमा-शुल्क को बढ़ाने की घोषणा की। उन्होंने डीनेचर्ड इथाइल अल्कोहल पर उद्दीष्ट उपयोग आधारित छूट को वापस लेने की घोषणा की। वित्त मंत्री ने छोटे सामानों पर कृषि बुनियादी ढांचे और विकास शुल्क का भी प्रस्ताव दिया। उन्होंने कहा कि उपकर को लागू करते समय, हमने अधिकांश मदों पर उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ ना डालने की तरफ भी विशेष रूप से ध्यान दिया गया है।

पशु पालन एवं मत्स्य

सरकार ने ने एक महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय पशु पालन एवं रोग नियंत्रण कार्यक्रम को मंजूरी दी है। इस योजना लक्ष्य सभी सभी प्रजातियों के पशुओं को पैरों एवं मुँह के रोगों (एफएमडी) एवं ब्रूसोलेसिस के बचाव के लिये उन्हें (एफएमडी) का टीका लगाना आवश्यक है । इस कार्यक्रम के सफल निष्पादन के लिये पांच वर्षों (2019-20 से  2023-24) के दौरान कुल 13,343 करोड़ खर्च किये जायेगे । पशु पालन उद्योग भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था का महत्तवपूर्ण उपक्षेत्र है , वर्ष 2014-15  से 2018-19 के दौरान 8.24 प्रतिशत की सीएजीर दर से विकास किया ।

Milk and egg production in the country

पशु पालन उद्योग ने वर्ष 2018-19 में कुल जीवीए में 4.2 प्रतिशत का योगदान दिया । देश में कुल दुग्ध उत्पादन 2014-15 में 146.3 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019-20  में 194.4 मिलियन टन हो गया, जबकि अण्डों का उत्पादन 78.48 मिलियन हजार से बढकर 114.42 मिलियन हजार हो गया इस दौरान वार्षिक विकार दर 6.25 प्रतिशत रही ( चित्र 6. देखें) ।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में 2021 का आम बजट पेश करते हुए पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन के लिए कई घोषणाएं की हैं। आधुनिक मात्स्यिकी बंदरगाहों और फिश लैंडिंग सेंटर के विकास में पर्याप्त निवेश के लिए प्रास्तव कर रहे हैं। शुरू-शुरू में पांच मत्स्य बंदरगाहों- कोच्चि, चेन्नई, विशाखापट्टनम, पारदीप और पेटुआघाट का आर्थिक क्रियाकलापों के हब्स के रूप में विकास किया जाएगा। हम नदियों और जलमार्गों के किनारे अंतर्देशीय मत्स्य बंदरगाहों और फिश लैंडिंग सेंटर का भी विकास करेंगे। “सीवीड फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने कहा, “सीवीड फार्मिंग एक ऐसे क्षेत्र के रूप में उभर रहा है जिसमें तटीय समुदायों के जीवन में परिवर्तन लाने की क्षमता है, इससे बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकेगा और अतिरिक्त आय पैदा की जा सकेगी। सीवीड उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तमिलानाडु में एक मल्टीपर्पज सीवीड पार्क की स्थापना किए जाने का मेरा प्रस्ताव है।”

देश के पांच राज्यों केरल, के कोच्चि, तमिलनाडु के चेन्नई, आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम, ओडिशा के पारादीप और पश्चिम बंगाल के पेटुआघाट को फिशिंग हार्बर के रूप मे विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही वित्तमंत्री ने अगले पांच सालों के लिए डीप सी मिशन की भी घोषणा की जिसके लिए 400 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और एक्वाकल्चर उत्पादन के साथ ही अंतर्देशीय मत्स्य पालन में भी दूसरे स्थान पर है। साल 2018-19 के दौरान देश का मछली उत्पादन 13.7 मिलियन  टन था, जबकि बर्ष  2019-20 में  14.16 मिलियन टन  दर्ज किया गया था। बर्ष  2019-20 में 12.9 लाख मीट्रिक टन समुद्री उत्पादों का निर्यात किया गया , जिसकी कीमत 46662 करोड़ थी। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी को बढ़ाबा देने के लिये अलग से मंत्रालय का गठन किया ।

वर्ष  2022  तक किसानों की आय दोगुनी करना

कृषि क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ाने के लिये भी महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गए हैं। पशु-पालन और मछली-पालन इस क्षेत्र में पर भी कई विशेष योजनाओं को शुरू किया गया है। सरकार मछली-पालन को बढ़ावा देने के लिए 3,427 सागर मित्र बनाएगी। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने  के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सामने एक लक्ष्य रखा है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी होनी चाहिए। 

प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कृषि मंत्रालय को यह काम 2022 तक अंजाम देना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये कृषि क्षेत्र में इसके लिए वार्षिक वृद्धि दर 10.4 प्रतिशत की आवश्यकता होगी । किसानों के आय दुगनी करने के लक्ष्य को हासिल करने के  लिए केंद्र सरकार ने विभिन्न  योजनायें लागू की एवं  कृषि में उपरोक्त विकास दर को हासिल करने के लिये ढ़ाचागत बदलाव किया गया । कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण पूरे मनोयोग और ईमानदारी के साथ प्रधानमंत्री के इस सपने को साकार करने में लगा हुआ है। देश के सभी जिलों में 16 अगस्त, 2017 से के.वी.के. के संयोजन में किसानों की आय दुगनी करने के लिए सम्मेलनों में बड़ी संख्या में किसान एवं अधिकारी संकल्प भी ले रहे हैं।

आभारोक्ति

लेखक इस अनुसंधान पत्र के लिखने में  निदेशक, आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान से प्राप्त समर्थन एवं संसाधन के लिए आभार प्रकट करता है। लेखक श्री प्रेम नारायण वर्तमान में मुख्य तकनीकी अधिकारी, पद पर आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र एवं नीति अनुसंधान संस्थान, डी.पी.एस. रोड, पूसा, नई दिल्ली -110012 में कार्यरत है ।

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