इस तकनीक से कपास की खेती करने पर किसानों को मिलेगा 30 फीसदी अधिक उत्पादन

देश में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा खेती की नई-नई तकनीकों का विकास किया जा रहा है। इन तकनीकों का लाभ किसानों तक पहुँचाने के लिए कृषि विभाग द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस कड़ी में गुरुवार के दिन खंडवा जिले में आगामी खरीफ सीजन को देखते हुए कपास उत्पादन बढ़ाने को लेकर उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक एवं विपणन पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में जिले के कलेक्टर अनूप कुमार सिंह, प्रगतिशील किसान, जिनिंग मिल व्यवसायी, एफ़पीओ, एनजीओ स्वयं सहायता समूह के प्रतिनिधि एवं कृषि विस्तार अधिकारी मौजूद रहे। कार्यशाला में उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक से कपास की खेती करने पर होने वाले लाभों के बारे में बताया गया। इसके अलावा किसानों जैविक कपास की खेती करने पर सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता के बारे में भी जानकारी दी गई।

कपास उत्पादन में होती है 30 प्रतिशत तक की वृद्धि

कार्यशाला में कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी.के.श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए बताया कि परम्परागत रूप से की जा रही खेती में कपास फसल को कतार से कतार की दूरी 90 से 100 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 से.मी. रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या 10 हजार से 20370 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है। जबकि उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक में कतार से कतार की दूरी 90 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 से.मी. रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या लगभग 75,925 से 1,12,962 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है, जिसमें परम्परागत रूप से की जाने वाली खेती की तुलना में उच्च घनत्व पौध रोपण तकनीक से 25 से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

जैविक तरीके से कपास की खेती करने पर दी जायेगी सहायता

इस अवसर पर किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग के संयुक्त संचालक जी. एस. चौहान ने किसानों को बताया कि जैविक तरीक़े से कपास की खेती करने वाले किसानों को जैविक प्रमाणीकरण के लिए लगने वाले शुल्क में 80 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इसके अलावा जो भी किसान लगातार 3 वर्षों तक जैविक पद्धति से कपास की खेती करेगा उन किसानों को प्रति हेक्टेयर 2,000 रुपये हर साल दिए जाएँगे।

कार्यशाला में उपस्थित किसानों एवं अन्य सदस्यों के द्वारा कपास उत्पादन की उच्च घनत्व तकनीक से संबंधित पूछे गये सवालों का जबाब कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी.के. श्रीवास्तव के द्वारा दिया गया। बैठक में कलेक्टर ने कपास उत्पादन में वृद्धि हेतु आवश्यक कदम उठाये जाने एवं जैविक उत्पाद का विभागीय अमले द्वारा कृषकों में प्रचार-प्रसार कराये जाने के निर्देश उप संचालक कृषि को दिए।

किसान इस तरह करें सफेद लट कीट का नियंत्रण

देश में हर साल विभिन्न कीटों के द्वारा रबी एवं खरीफ सीजन की फसलों को भारी नुकसान पहुँचाया जाता है। जिसका सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ता है। इन कीटों में सफेद लट भी शामिल है। सफेद लट मुख्य रूप से मूंगफली, अरहर, ज्वार, कपास, अमरूद, तम्बाकू, धान, बाजरा, नीम, बेर, शीशम, शहतूत, बबूल, आलू एवं नारियल आदि फसलों को नुकसान पहुंचाती है।

इस कीट के ग्रब और व्यस्क दोनों ही फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। वयस्क कीट विभिन्न पौधों एवं झाड़ियों को खाते हैं तथा ग्रब फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। कीट के ग्रब फसलों की जड़ों को काटकर उसे क्षति पहुंचाते हैं जिससे पौधे मुरझाने के बाद सुख जाते हैं। इसकी ग्रब व शंखी अवस्था मृदा के अंदर पाई जाती है। किसान गर्मी में ख़ाली पड़े खेतों में इसके नियंत्रण के लिए उपाय कर सकते हैं।

सफेद लट का जीवन चक्र

इस कीट की मुख्य प्रजातियों में व्हाइट ग्रब, सफ़ेद गिडार, गोजा लट एवं सफ़ेद सुंडी, गोबर कीट, गोबरिया कीट शामिल हैं। वहीं इस कीट के जीवन चक्र की बात की जाये तो इसके अंडे 6 से 12 दिनों तक रहते हैं जिनका रंग सफेद और आकार गोलाकार होता है। इसके लार्वा का जीवन काल 54 से 76 दिनों की तथा युवा ग्रब मांसल, पारदर्शी, सफ़ेद, पीले रंग के और अक्सर ‘C’ आकर के होते हैं। प्यूपा का जीवनकाल 12–15 दिनों का होता है। इस कीट का वयस्क गहरे भूरे रंग का तथा लंबाई 15–20 मि.मी. और चौडाई 6–8 मि.मी. होती है।

यह कीट मुख्यतः रात्रिचर प्रकृति के होते हैं जो पहली वर्षा के बाद शाम 7 बजे के बाद मिट्टी से निकलकर सुबह 5 बजे तक बाहर दीखता है। इस दौरान ही यह कीट फसलों को अधिक क्षति पहुँचाते हैं। मानसून या इससे पहले की भारी वर्षा एवं कुछ क्षेत्रों में खेतों में पानी लगने पर ज़मीन से भृंगों का निकलना शुरू हो जाता है। भृंग रात के समय जमीन से निकलकर परपोषी वृक्षों जैसे खेजड़ी, बेर, नीम, अमरूद एवं आम आदि पर बैठते हैं। भृंग निकलने के तीन दिन बाद अंडे देना शुरू कर देते हैं इसलिए इनका जल्द नियंत्रण करना चाहिए।

कैसे करें सफेद लट के ग्रब का नियंत्रण

किसानों को सफेद लट के ग्रब के नियंत्रण के लिए खेतों की गर्मी में गहरी जुताई करनी चाहिए साथ ही गोबर की सड़ी हुई खाद का उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा खेत में जब भी खाद डालें उसमें नीम की खली का प्रयोग अवश्य करें। वहीं इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए क्लोरोपायरीफाँस 20 ई.सी. की 1–2 मि.ली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर ग्रसित पौधों के तने के क्षेत्र के आसपास 15–20 से.मी. के दायरे की मिट्टी में छिड़काव करना चाहिए। खेत में ब्युबेरिया बेसियाना और मेटेरिजियम एनिसोपाली 2.5 से 3 किलोग्राम को 50 किलोग्राम गोबर में मिलाकर 7 दिनों के लिए किसी छायादार स्थान पर सुखाने के बाद खेत में छिड़काव करना चाहिए।

सफेद लट के व्यस्क का नियंत्रण

किसान सफेद लट के वयस्क के नियंत्रण के लिए पौधों और खेतों के आसपास की भूमि को साफ़ रखें। मानसून की पहली बारिश आते ही खेतों पर शाम 6:30 से रात 10:30 बजे के बीच लाइट ट्रैप लगायें। कीटों को अपने खेत से बाहर रखने का एक बहुत ही प्रभावी तरीका यह है कि कच्ची खाद का खेत के बाहर ढेर लगा कर रखें। इसके अलावा अरंडी के पौधों का खेत के चारों ओर ट्रैप फसल के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। व्यस्क कीटों के लिए खेत के आसपास के पेड़ों पर कीटनाशकों का छिड़काव करें साथ ही जिन पेड़ों पर यह कीट बैठते हैं उनकी छटाई करें। किसान सफेद लट को आश्रय देने वाले वृक्षों पर भी कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें।

सफेद लट के पौढ़ के नियंत्रण के लिए किसान पहली, दूसरी या तीसरी वर्षा होने के बाद (उसी दिन या एक दिन बाद) खेतों में लगे प्रभावित पौधों पर 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफ़ॉस 36 एस.एल. या 0.05 प्रतिशत क्विनलफ़ॉस ई.सी.का छिड़काव करें।

मौसम चेतावनी: 13 से 15 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

Weather Update: 13 से 15 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

बीते कुछ दिनों से मध्य भारत के कई हिस्सों में बारिश एवं ओला वृष्टि का दौर जारी है। इस बीच नये पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय हो जाने से देश के कई हिस्सों में आगामी दिनों के दौरान बारिश एवं ओला वृष्टि का एक नया दौर शुरू होने वाला है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार देश में एक नया पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने जा रहा है, साथ ही कुछ अन्य चक्रवाती परिसंचरण भी अलग-अलग क्षेत्रों में बने हुए हैं। जिसके प्रभाव से उत्तर भारत के कई राज्यों में बारिश एवं ओलावृष्टि होने की संभावना है।

मौसम विभाग के मौजूदा सिस्टम से 13 से 15 अप्रैल के दौरान जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में तेज हवाओं (30 से 60 किलोमीटर/घंटे) एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान कई क्षेत्रों में ओलावृष्टि की भी संभावना है।

मध्यप्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओला वृष्टि

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान राज्य के भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, इंदौर, देवास, शाजापुर, आगर–मालवा, नीमच, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, श्योंपुर कला, सिंगरौली, सीधी, रीवा, मऊगंज, सतना, अनुपपुर, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बालाघाट, दमोह, सागर, छत्तरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, मैहर एवं पांडुरना जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ इलाकों में ओले गिरने की भी संभावना है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान अजमेर, अलवर, बारां, भरतपुर, भीलवाड़ा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, जयपुर, झालावाड़, झुंझुनू, करौली, कोटा, राजसमंद, सवाई–माधोपुर, सीकर, सिरोही, उदयपुर, टोंक, बाड़मेर, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़, जैसलमेर, जालौर, जोधपुर, नागौर, पाली एवं श्रीगंगानगर जिलों में कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ वर्षा होने की संभावना है। वहीं इस दौरान कई स्थानों पर ओला वृष्टि की भी प्रबल संभावना है।

छत्तीसगढ़ के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के रायपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 13 अप्रैल के दौरान सरगुजा, जशपुर, कोरिया, पेंड्रा रोड, बिलासपुर, रायगढ़, मूंगेली, कोरबा, जाँजगीर, रायपुर, बलोदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, दुर्ग, बालोद, बेमतारा, कबीरधाम, राजनंदगाँव, कांकेर, बीजापुर एवं नारायणपुर जिलों में गरज–चमक एवं तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है।

हरियाणा एवं पंजाब के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

भारतीय मौसम विभाग के चंडीगढ़ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 15 अप्रैल के दौरान पंजाब राज्य के पठानकोट, गुरुदासपुर, अमृतसर, तरण-तारण, होशियारपुर, नवाँशहर, कपूरथला, जालंधर, फिरोजपुर, फाजिल्का, फरीदकोट, मुक्तसर, मोगा, भटिंडा, लुधियाना, बरनाला, मनसा, संगरूर, मलेरकोटला, फतेहगढ़ साहिब, रूपनगर, पटियाला एवं सास नगर जिलों में अधिकांश स्थानों पर तेज तेज हवाओं एवं गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

वहीं हरियाणा राज्य में 12 से 15 अप्रैल के दौरान चंडीगढ़, पंचकुला, अम्बाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, महेंद्र गढ़, रेवारी, झज्जर, गुरुग्राम, मेवात, पलवल, फरीदाबाद, रोहतक, सोनीपत, पानीपत, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार, जिंद, भिवानी, चरखी दादरी जिलों में अनेक स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश एवं ओला वृष्टि होने की सम्भावना है।

बिहार के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के पटना केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 एवं 13 अप्रैल के दौरान सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली, शिवहर, समस्तीपुर, सुपौल अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, रोहतास, भभुआ एवं औरंगाबाद जिलों में कुछ स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश होने की संभावना है वहीं 14 अप्रैल के दिन सुपौल अररिया, किशनगंज, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार जिलों में बारिश हो सकती है।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

भारतीय मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी पूर्वानुमान के अनुसार 13 से 15 अप्रैल के दौरान आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद, अलीगढ़, एटा, हाथरस, कासगंज, अयोध्या, सुल्तानपुर, अमेठी, बरेली, बंदायू, पीलभीत, शाहजहांपुर, चित्रकूट, बाँदा, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, जालौन, ललितपुर, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, कन्नौज, फ़र्रुखाबाद, लखनऊ, लखीमपुर खीरी, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, मेरठ, बागपत, बुलंदशहर, गौतम बुद्ध नगर, ग़ाज़ियाबाद, हापुड़, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, अमरोहा, संभल, प्रयागराज, फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, सहारनपुर, मुज्जफरनगर, शामली, वाराणसी, गाज़ीपुर, जौनपुर एवं चंदौली ज़िलों में अनेक स्थानों पर तेज हवा आंधी के साथ वर्षा हो सकती है वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि होने की संभावना है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 12 से 14 अप्रैल के दौरान राज्य के जलगाँव, अहमदनगर, सांगली, शोलापुर, औरंगाबाद, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, अकोला, अमरावती, भंडारा, बुलढाना, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा, वॉशिम एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान विदर्भ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ओले गिरने की भी संभावना है।

किसानों के लिए सलाह

बारिश एवं ओला वृष्टि को देखते हुए मौसम विभाग द्वारा किसानों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है जिसमें किसानों को कृषि मंडियों में एवं खेतों में रखे खुले अनाज व जिंसों को सुरक्षित स्थान पर भंडारण करने को कहा गया है। वहीं किसान खुले आसमान में पक कर तैयार फसलों को भी ढककर अथवा सुरक्षित स्थानों पर भंडार करके रखें।

इसके अलावा किसान फसलों की सिंचाई तथा किसी भी प्रकार का रासायनिक छिड़काव बारिश की गतिविधियों को ध्यान में रखकर करें यदि जिले में बारिश की संभावना हो तो फसलों में दवाओं का छिड़काव न करें। जानवरों को खुले पानी, तालाब या नदी से दूर रखें। रात में पशुओं को शेड में ही रखें। इसके अलावा दोपहर के समय पशुओं को खेत में खुली चराई की अनुमति ना दें।

ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करने वाले किसान अधिक पैदावार के लिए अप्रैल महीने में करें यह काम 

जो भी किसान गर्मियों में मूंग की खेती करना चाहते हैं वे किसान 15 अप्रैल तक ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नत किस्मों की बुआई कर दें। किसानों को समय और पैसों की बचत के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई हैप्पी सीडर या सुपर सीडर कृषि यंत्र की मदद से बिना गेहूं की पराली जलाये करनी चाहिए। बीज की बुआई सीड ड्रिल या कुंडों से पंक्तियों में करनी चाहिए तथा बीजों को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए।

ऐसे किसान जिन्होंने पिछले महीने मूंग की बुआई कर दी है वे किसान 25 से 30 दिन की फसल हो जाने पर पहली सिंचाई करें। वहीं जो किसान अभी बुआई करना चाहते हैं वे किसान प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचार करने के बाद राइजोबियम या फाँस्फेट घुलनशील बैक्टरिया (पीएसबी) कल्चर/टीका एक पैकेट 10 किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करके बुआई करें।

किसान गर्मी में लगा सकते हैं मूंग की यह किस्में

ग्रीष्मकालीन मूंग की अच्छी पैदावार के लिए अच्छी प्रजाति का चयन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की उन्नत किस्मों जैसे – पूसा विशाल, पूसा 1431, पूसा 1371, पूसा 9531, पूसा रत्ना, पूसा 0672, फूले मोरना (केडीजी 123), आईपीएम 410–3 (शिखा), आईपीएम 205–7 (विराट), आईपीएम 512–1 (सूर्या), एसएमएल 1115, एमएच 318, एमएच 421, एमएसजे 118 (केशवानन्द मूंग 2), जीएएम 5, गुजरात मूंग–7 (जीएम-7) आदि का चयन कर सकते हैं। यह सभी किस्में 65–80 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं।

मूंग की फसल में कितना खाद डालें?

किसानों को खाद-उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। सामान्यतः मूंग की फसल के लिए 15–20 किलोग्राम नाईट्रोजन, 40–50 किलोग्राम फाँस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय कुंडों में डालना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में जिंक की कमी की अवस्था में 15- 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए।

इसके साथ ही 5 टन/ हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। इस समय मूंग की फसल लगभग दो से ढाई महीने में तैयार हो जाती है। इस कारण से सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है। सही मायने में ग्रीष्मकालीन मूंग एक बोनस फसल की तरह काम करती है।

मूंग में कितनी सिंचाई करें?

मूंग की फसल में पानी की कम आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकालीन मूंग फसल की अच्छी वृद्धि व विकास के लिए 3 से 4 सिंचाई की आवश्यकता है। अनावश्यक रूप से सिंचाई करने पर पौधे की वानस्पतिक वृद्धि ज्यादा हो जाती है, जिसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: सिंचाई आवश्यकतानुसार व हल्की करें। ऐसे किसान जिन्होंने पिछले महीने मूंग की बुआई कर दी है वे किसान 25 से 30 दिन की फसल हो जाने पर पहली सिंचाई करें।

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें?

बुआई के प्रारंभिक 4-5 सप्ताह तक खरपतवार की समस्या अधिक रहती है। पहली सिंचाई के बाद निराई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ–साथ मिट्टी में वायु का संचार भी होता है। यह मूल ग्रंथियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन एकत्रित करने में सहायक होता है। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु 2.5–3.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2 से 3 दिनों के अंदर अंकुरण के पूर्व छिड़काव करने से 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं।

चौड़ी पत्ती तथा घास वाले खरपतवार को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिए एलाक्लोर की 4 लीटर या फ्लुक्लोरालिन (45 ईसी) नामक रसायन की 2.22 लीटर मात्रा का 800 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरंत बाद या अंकुरण से पहले छिड़काव कर देना चाहिए। अत: बुआई के 15–20 दिनों के अंदर कसोले से निराई–गुडाई कर खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए।

गर्मी में बाजरे की खेती के लिए यह हैं उन्नत किस्में, किसान इस तरह करें बुआई

किसान गर्मी के सीजन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर कई फसलों की खेती कर सकते हैं इसमें ग्रीष्मकालीन बाजरा भी शामिल है। कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा जायद सीजन में अधिक पैदावार देने वाली बाजरे की किस्में विकसित की गई है, जिसकी खेती किसान कर सकते हैं। बाजरे की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। भलीभाँति समतल व जीवांश वाली मृदा में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

बाजरे की खेती के लिए अच्छे जल निकास की व्यवस्था होना चाहिए क्योंकि बाजरे की फसल अधिक पानी सहन नहीं कर सकती है। किसान बाजरे की बुआई मार्च की शुरुआत से लेकर अप्रैल महीने के प्रथम पखवाड़े तक कर सकते हैं। बाजरे की फसल एक परपरागित फसल है और इसके परागकण 46 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी जीवित रह सकते हैं।

यह है ग्रीष्मकालीन बाजरे की उन्नत किस्में

किसान गर्मी के मौसम में बाजरे की संकर प्रजातियाँ जैसे जी.एच.बी 558, जी.एच.बी 86, एम- 52, डी.एच- 86, आईसीजीएस-44, आईसीजीएस-1, आर-9251, टीजी-37, आर-8808, जी.एच.बी.-526, पी.बी. 180 लगा सकते हैं। वहीं संकुल किस्मों में पूसा कंपोजिट- 383, आईसीटीपी 8203, राज. 171 व आई.सी.एम.वी. 221 क़िस्मों का चयन कर सकते हैं।

वहीं बाजरे की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 4 से 5 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। बुआई के समय पंक्तियों की आपसी दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बाजरे के बीजों को 2 सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई पर नहीं बोना चाहिए।

ग्रीष्मकालीन बाजरे में कितना खाद डालें

किसानों को अपने खेतों में मिट्टी परीक्षण के अनुसार ही खाद-उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। सामान्यतः बाजरे की संकर किस्मों में किसान 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं संकुल किस्मों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

ग्रीष्मकालीन बाजरे की फसल में 4 से 5 सिंचाइयाँ पर्याप्त होती है। किसान यह सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल पर कर सकते हैं। किसान बाजरे की फसल में कल्ले निकलते समय एवं फूल आते समय खेतों में पर्याप्त नमी बनाकर रखें।

चने की आवक बढ़ने से आई कीमतों में कमी, सरकार करेगी समर्थन मूल्य पर खरीद

मंडियों में रबी फसलों की खरीदी का काम शुरू हो गया है, व्यापारियों और केंद्र सरकार की एजेंसियों के द्वारा किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP पर चने की खरीद का काम शुरू हो गया है। लेकिन बीते कुछ दिनों से चने की कीमतों में नरमी आई है जिसको देखते हुए सरकार ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी पर चने की खरीद में तेज़ी लाने का फैसला लिया है। हालांकि चने की कीमतें अभी भी समर्थन मूल्य के आसपास बनी हुई है।

केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि उसने क़ीमतों पर नियंत्रण रखने तथा कल्याणकारी योजनाओं के तहत वितरण करने की मंशा रखने वाले राज्यों की माँग को पूरा करने के मकसद से बफर स्टॉक बनाने को किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चना खरीदना शुरू कर दिया है। उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने कहा कि फिलहाल चने के उत्पादन को लेकर कोई चिंता नहीं है।

इस बीच राज्यों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिये गये हैं कि व्यापारियों, आयातकों एवं मिल मालिकों को जमाखोरी और मूल्यवृद्धि को रोकने के लिए 15 अप्रैल से प्रभावी नियम के तहत दालों के अपने स्टॉक के बारे में सरकार को जानकारी देने को कहा है।

16 राज्यों में होगी MSP पर चने की खरीद

सरकार की और से बताया गया है कि पहले कल्याणकारी योजनाओं के तहत 3 से 4 राज्य ही चने का बफ़र स्टॉक रखते है, जिससे चने की एमएसपी पर कम खरीद होती थी। लेकिन अब 16 राज्य ऐसे हैं जो पोषण सुरक्षा को पूरा करने के लिए चने का बफर स्टॉक रख रहें हैं। जिसमें अभी भी अरुणाचल प्रदेश, सिक्कम, कर्नाटक राज्यों के द्वारा चने की खरीदी का अनुरोध केंद्र सरकार को भेजा गया है। सरकार के पास पहले से 10 लाख टन का बफर स्टाक मौजूद है।

चने की पैदावार में नहीं आई है कमी

कृषि विभाग के सचिव ने बताया कि देश में चने की उत्पादन में पिछले वर्ष के मुकाबले मामूली कमी आई है। वर्ष 2023–24 (जुलाई-जून) में चने का उत्पादन 121 लाख टन से थोड़ा कम होने की उम्मीद है। जबकि पिछले वर्ष चने का उत्पादन लगभग 122 लाख टन हुआ था। कृषि सचिव ने जानकारी देते हुए कहा कि गुजरात में हाल ही में किए गए फसल कटाई के प्रयोगों से संकेत मिलता है कि चने की पैदावार बरकरार है उसमें कमी नहीं आई है। मंडियों में आवक बढ़ रही है जिससे कीमतें कम होकर समर्थन मूल्य MSP के आसपास आ गई है।

आवक बढ़ने से दामों में आई कमी

उपभोक्ता मामलों की सचिव ने कहा कि चने की फसल की आवक बढ़ने से मंडी की कीमतों में कमी आई है और एमएसपी स्तर तक पहुँच गई है। हमने अभी खरीद अभियान शुरू किया है। सहकारी संस्थाएँ नेफेड और एनसीसीएफ मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए बाजार में जारी किए जाने वाली स्टॉक को बनाये रखने के लिए मूल्य स्थरीकरण निधि योजना के हिस्से के रूप में चने की खरीद का काम कर रही है। बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा घोषित इस वर्ष चने का न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP 5440 रुपये प्रति क्विंटल है।

जानिए इस साल मानसून में कैसी रहेगी बारिश, स्काईमेट ने जारी किया मानसून का पूर्वानुमान

Monsoon Update: वर्ष 2024 के लिए मानसून का पूर्वानुमान

देश के किसानों के लिए राहत भरी खबर सामने आई है, मौसम से जुड़े अनुमान बताने वाली प्राइवेट एजेंसी स्काईमेट ने इस वर्ष देश में सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की है। स्काईमेट के अनुसार वर्ष 2024 में मानसून सीजन के दौरान सामान्य बारिश रहने की संभावना है। जो किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं, क्योंकि पिछले साल अलनीनो के चलते सामान्य से कम बारिश हुई थी। इसके चलते देश के कई हिस्सों में किसानों को सूखे का सामना करना पड़ा था।

स्काईमेट के मुताबिक 2024 का मानसून लंबे समय तक 102 प्रतिशत बारिश होगी यानि की मानसून सामान्य रहेगा। जून से सितंबर तक चार महीने की लंबी अवधि के लिए औसत (एलपीए) 868.6 मिमी है। सामान्य प्रसार एलपीए का 96-104% है। 12 जनवरी 2024 को जारी अपने पहले पूर्वानुमान में स्काईमेट ने मानसून 2024 को सामान्य माना था, जिसे अब आगे भी बरकरार रखा है।

इन राज्यों में होगी अच्छी बारिश

स्काईमेट के अनुसार इस वर्ष दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में काफी अच्छी बारिश होने की संभावना है। वहीं, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मानसून बारिश आधारित मुख्य क्षेत्रों में भी पर्याप्त वर्षा होगी। बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्यों में जुलाई और अगस्त महीनों के दौरान कम वर्षा होने का खतरा होगा। वहीं पूर्वोत्तर भारत में सीज़न के पहले दो महीनों के दौरान सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।

स्काईमेट के प्रबंध निदेशक जतिन सिंह के अनुसार अल नीनो तेजी से ला नीना में तब्दील हो रहा है। ला नीना साल के दौरान मानसून परिसंचरण मजबूत हो जाता है। इसके अलावा सुपर एल नीनो का मजबूत ला नीना में बदलना ऐतिहासिक रूप से एक अच्छा मानसून पैदा करने वाला रहा है।

किसानों को होगा फायदा

आज भी देश के अधिकांश क्षेत्रों में वर्षा आधारित खेती की जाती है ख़ासकर खरीफ सीजन में। अभी भी चावल, मक्का, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी फसलों की खेती करने वाले अधिकांश किसान सिंचाई के लिए मॉनसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि सामान्य मॉनसून रहने पर कृषि उत्पादकता में सुधार होगा। साथ ही समय पर सिंचाई होने से फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी। मानसून अच्छा रहने से किसानों को रबी सीजन में भी सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा।

किसान इस तरह करें ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती, यह हैं नई उन्नत किस्में

हमारे देश में मूंगफली के दानों के साथ ही इसका तेल पसंद करने वाले बहुत ज्यादा लोग हैं, जिससे इसकी मांग बाजार में वर्ष भर रहती है। देश के कई राज्यों में किसान मूंगफली की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसकी खेती में केवल 4 महीनों का समय ही लगता है। किसान मूंगफली की खेती में वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल कर कम लागत में अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

किसान गर्मी के दिनों में खाली पड़े खेतों में ग्रीष्मकालीन फसलों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है। किसान गर्मी के सीजन में मूंग, उड़द, सूरजमुखी के साथ ही मूंगफली की खेती भी कर सकते हैं। मूंगफली की खेती के लिए दोमट बलुई या हल्की दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुआई आलू, मटर तथा राई की कटाई के बाद खाली खेतों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।

ग्रीष्मकालीन मूंगफली की उन्नत क़िस्में कौन सी हैं?

किसान गर्मियों में मूंगफली की खेती करने के लिए ग्रीष्मकालीन मूंगफली की उन्नत किस्में जैसे अवतार (आईसीजीवी 93468), टीजी-26, टीजी-37, डी.एच. 86, टीपीजी-1, सजी-99, टाइप-64, टाईप-28, चंद्रा, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा, कौशल एवं प्रकाश आदि का चयन कर सकते हैं। ग्रीष्मकालीन मूंगफली की एसजी-84, और एम-522 किस्मों की बुआई सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक गेहूं की कटाई के तुरंत बाद तक की जा सकती हैं। यह किस्में अगस्त से सितंबर के दौरान कटाई के लिए तैयार भी हो जाती हैं।

कीट-रोगों से बचाने के लिए इस तरह करें बीजोपचार

बुआई से पहले किसान मूंगफली के बीज को थीरम 2.0 ग्राम और 1.0 ग्राम कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत धूल के मिश्रण को 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा थायोफिनेट मिथाइल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम + 1 ग्राम कॉर्बोकसिन प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करना चाहिए।

इस शोधन के 5-6 घंटे बाद बोने से पहले बीज को मूंगफली के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए। एक पैकेट 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। कल्चर को बीज में मिलाने के लिए आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ घोल लें। फिर इस घोल में 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर, जिससे बीज के ऊपर हल्की सी परत बन जाए। इस बीज को छाया में 2-3 घंटे सुखाकर बुआई करें। बुआई सुबह या शाम को 4 बजे के बाद ही करें क्योंकि तेज धूप में कल्चर के जीवाणु मरने की आशंका रहती है।

मूंगफली में कितनी खाद डालें 

किसानों को मूंगफली की फसल में खाद-उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। यदि राई एवं मटर की खेती के बाद ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती की जा रही है तो बुआई से पहले 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डालनी चाहिए। आलू तथा सब्जी मटर की फसलों में यदि गोबर की खाद प्रयोग की गई है तो गोबर की खाद डालने की आवश्यकता नहीं है। राई तथा मटर की खेती के बाद उगाई जा रही मूंगफली में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश तथा 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करनी चाहिए।

ग्रीष्मकालीन मूँगफली में नाइट्रोजन की अधिक मात्रा का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक नाइट्रोजन के प्रयोग से फसल देरी से पकती है। नाइट्रोजन, फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा कुंडों में बुआई के समय बीज से लगभग 2-3 से.मी. गहरी डालनी चाहिए। जिप्सम की शेष आधी मात्रा मूंगफली में फूल निकलते तथा खूंटी बनते समय टॉप ड्रेसिंग करके प्रयोग करनी चाहिए।

मौसम चेतावनी: 10 से 12 अप्रैल के दौरान इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

Weather Update: 10 से 12 अप्रैल के लिए वर्षा का पूर्वानुमान

देश के कई राज्यों में बीते कुछ दिनों से भीषण गर्मी का सिलसिला जारी है वहीं कुछ राज्यों में बारिश एवं ओला वृष्टि भी दर्ज की गई है। इस बीच भारतीय मौसम विज्ञान विभाग IMD ने आगामी दिनों में देश के कई राज्यों में बारिश एवं ओला वृष्टि के लिए चेतावनी जारी की है। मौसम विभाग के मुताबिक एक चक्रवाती परिसंचरण दक्षिण-पूर्व राजस्थान पर स्थित है और दक्षिण-पूर्व से एक ट्रफ लाइन राजस्थान से तटीय कर्नाटक के उत्तरी भागों तक और एक अन्य ट्रफ रेखा दक्षिण-पूर्व राजस्थान से उत्तर-पूर्व तक बनी हुई है। जिसके प्रभाव से मध्य भारत के कई हिस्सों में बारिश एवं ओलावृष्टि हो सकती है।

मौसम विभाग की मानें तो 10 से 12 अप्रैल के दौरान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, विदर्भ, मराठवाड़ा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार एवं झारखंड में अनेक स्थानों पर तेज हवाओं के साथ गरज-चमक एवं बारिश हो सकती है। वहीं इस दौरान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और विदर्भ में अनेक स्थानों पर ओला वृष्टि होने की भी संभावना है।

मध्य प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 10 से 12 अप्रैल के दौरान राज्य के भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, नर्मदापुरम, बैतूल, हरदा, बुरहानपुर, खंडवा, खरगोन, बड़वानी, झबुआ, धार, इंदौर, रतलाम, उज्जैन, देवास, शाजापुर, आगर–मालवा, मंदसौर, नीमच, गुना, अशोक नगर, शिवपुरी, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, श्योंपुर कला, अनुपपुर, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला, बालाघाट, दमोह, सागर, छत्तरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, मैहर एवं पांडुरना जिलों में अलग–अलग दिनों के दौरान तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ इलाकों में ओले गिरने की भी संभावना है।

छत्तीसगढ़ के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के रायपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 10 से 12 अप्रैल के दौरान सरगुजा, जशपुर, कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर, पेंड्रा रोड, बिलासपुर, रायगढ़, मूंगेली, कोरबा, जाँजगीर, रायपुर, बलोदाबाजार, गरियाबंद, धमतरी, महासमुंद, दुर्ग, बालोद, बेमतारा, कबीरधाम, राजनंदगाँव, बस्तर, कोंडागाँव, दंतेवाड़ा, कांकेर, बीजापुर एवं नारायणपुर जिलों में गरज–चमक एवं तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है। वहीं कुछ स्थानों पर ओला वृष्टि की भी संभावना है।

महाराष्ट्र के इन जिलों में हो सकती है बारिश एवं ओलावृष्टि

मौसम विभाग के मुंबई केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 10 से 12 अप्रैल के दौरान राज्य के धुले, नन्दुरबार, जलगाँव, नासिक, अहमदनगर, पुणे, कोल्हापुर, सतारा, सांगली, शोलापुर, औरंगाबाद, जालना, परभणी, बीड, हिंगोली, नांदेड, लातुर, उस्मानाबाद, अकोला, अमरावती, भंडारा, बुलढाना, चन्द्रपुर, गढ़चिरौली, गोंदिया, नागपुर, वर्धा, वॉशिम एवं यवतमाल जिलों में तेज हवाओं एवं गरज–चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं विदर्भ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में ओले गिरने की भी संभावना है।

बिहार के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के पटना केंद्र के द्वारा जारी चेतवानी के अनुसार 10 अप्रैल के दिन बिहार के पूर्वी चम्पारण, सीतामढ़ी, शिवहर जिलों में कुछ स्थानों पर गरज चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं 10 एवं 11 अप्रैल के दौरान रोहतास, भभुआ औरंगाबाद, गया, नवादा, जमुई एवं बाँका जिलों में कई स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है। वहीं 12 अप्रैल के दिन अररिया, किशनगंज, पूर्णिया एवं सुपौल जिलों में कुछ स्थानों पर गरज-चमक के साथ बारिश हो सकती है।

राजस्थान के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के जयपुर केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 10 से 12 अप्रैल के दौरान अजमेर, अलवर, बारां, भरतपुर, भीलवाड़ा, बूँदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, जयपुर, झालावाड़, झुंझुनू, करौली, कोटा, प्रतापगढ़, राजसमंद, सवाई–माधोपुर, सीकर, टोंक,  बाड़मेर, बीकानेर, चूरु, हनुमानगढ़ एवं श्रीगंगानगर जिलों में कई स्थानों पर तेज हवाओं एवं गरज चमक के साथ वर्षा होने की संभावना है। वहीं इस दौरान राज्य में आंशिक बादल छाये रहेंगे।

उत्तर प्रदेश के इन जिलों में हो सकती है बारिश

मौसम विभाग के लखनऊ केंद्र के द्वारा जारी चेतावनी के अनुसार 10 से 12 अप्रैल के दौरान राज्य के आगरा, मथुरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, हाथरस, चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, महोबा, झाँसी, जालौन, ललितपुर, कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया, रायबरेली, मेरठ, बागपत, मिर्जापुर, भदोही, सोनभद्र, मुरादाबाद, बिजनौर, रामपुर, प्रयागराज, फतेहपुर, कौशांबी, प्रतापगढ़, सराहनपुर, मुज्ज़फ़रपुर, शामली, वाराणसी, गाजीपुर, जौनपुर एवं चंदौली जिलों में अलग–अलग दिनों के दौरान कुछ स्थानों पर तेज हवाओं के साथ गरज चमक एवं बारिश हो सकती है।

किसान अभी सब्जियों की इन उन्नत किस्मों की कर सकते हैं बुआई, पूसा संस्थान ने जारी की सलाह

देश में किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार किसान हित में सलाह जारी की जाती है। इस कड़ी में आईसीएआर के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) की ओर से दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र के किसानों के लिए मौसम आधारित सलाह जारी की गई है। अपनी सलाह में संस्थान ने किसानों को ग्रीष्मकालीन मूंग के साथ ही सब्जियों की विभिन्न किस्में लगाने की बात कही है। साथ ही किसानों को अनाज के भंडारण से लेकर अभी फसलों में लगने वाले कीट-रोगों ओर उनके नियंत्रण के लिए सलाह दी है।

किसान इस तरह करें अनाज का भंडारण

पूसा संस्थान ने किसानों को अनाज के भण्डारण में रखने से पहले भंडार घर की अच्छी तरह सफाई करने तथा अनाज को अच्छी तरह से सुखा लेने एवं कूड़े-कचरे को जला या दबा कर नष्ट करने की सलाह दी है। इसके अलावा किसानों को भंडार घर की छ्त, दीवारों और फर्श पर एक भाग मेलाथियान 50 ई.सी.को 100 भाग पानी में मिला कर छिड़काव करने की बात कही है। साथ ही यदि किसान पुरानी बोरियां प्रयोग करते हैं तो उन बोरियों को मेलाथियान व 100 भाग पानी के घोल में 10 मिनट तक भिगो कर छाया में सुखा कर उपयोग करने की सलाह दी है।

संस्थान की ओर से कहा गया है कि किसान इस मौसम में तैयार गेहूँ की फसल की कटाई कर लें। उसके बाद कटी हुई फसलों को बाँधकर रखे। गहाई के बाद भंडारण से पूर्व दानों को अच्छी तरह से सुखाने के बाद ही भंडारण के लिए रखें।

किसान मूंग की इन किस्मों की करें बुआई

जो किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करना चाहते हैं वे किसान मूंग की उन्नत किस्मों की बुआई इस समय कर सकते हैं। इसके लिए किसान मूंग की उन्नत किस्में जैसे पूसा विशाल, पूसा रत्ना, पूसा- 5931, पूसा बैसाखी, पी.डी एम-11, एस.एम.एल.- 32, एस.एम.एल- 668, सम्राट का उपयोग कर सकते हैं। संस्थान ने किसानों को बुवाई से पहले बीजों को फसल विशेष राईजोबीयम तथा फास्फोरस सोलूबलाईजिंग बेक्टीरिया से उपचारित करने की सलाह दी है। साथ ही किसान बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी हो यह भी सुनिश्चित कर लें।

किसान अभी लगाएं सब्जियों की यह उन्नत किस्में

किसान इस मौसम में विभिन्न सब्जियाँ अपने खेतों में लगा सकते हैं। इसमें किसान फ्रेंच बीन (पूसा पार्वती, कोंटेनडर), सब्जी लोबिया (पूसा कोमल, पूसा सुकोमल), चौलाई (पूसा किरण, पूसा लाल चौलाई), भिंण्डी (ए-4, परबनी क्रांति, अर्का अनामिका आदि), लौकी (पूसा नवीन, पूसा संदेश), खीरा (पूसा उदय), तुरई (पूसा स्नेह) तथा गर्मी के मौसम वाली मूली (पूसा चेतकी) की सीधी बुवाई कर सकते हैं। इस तापमान में मक्का (अफरीकन टाल) चारे के लिए तथा लोबिया की बुवाई की जा सकती है। बेबी कार्न की एच.एम.-4 की भी बुवाई कर सकते हैं।

संस्थान के मुताबिक इन सब्जियों की बुआई के लिए मौसम अनुकूल है, साथ ही बीजों के अंकुरण के लिए भी यह तापमान अनुकूल है। किसान उन्नत किस्मों के बीजों को किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। किसान बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी हो यह भी सुनिश्चित कर लें।

सब्जियों में अभी लग सकते हैं यह कीट एवं रोग

जारी सलाह में संस्थान ने बताया है कि किसान टमाटर, मटर, बैंगन व चना फसलों में फलों/ फल्लियों को फल छेदक/फली छेदक कीट से बचाव के लिए खेत में पक्षी बसेरा लगाए। वे कीट से नष्ट फलों को इकट्ठा कर जमीन में दबा दें। साथ ही फल छेदक कीट की निगरानी हेतु फिरोमोन प्रपंश, 2-3 प्रपंश प्रति एकड़ की दर से लगाएं। यदि कीट की संख्या अधिक हो तो बी.टी. 1.0 ग्राम/लीटर पानी की दर से छिड़काव आसमान साफ़ होने पर ही करें। फिर भी प्रकोप अधिक हो तो 15 दिन बाद स्पिनोसैड कीटनाशी 48 ई.सी. 1 मि.ली./4 लीटर पानी की दर से छिड़काव आसमान साफ़ होने पर करें।

इस मौसम में बेलवाली सब्जियों और पछेती मटर में चूर्णिल आसिता रोग के प्रकोप की संभावना रहती है। यदि रोग के लक्षण दिखाई दे तो कार्बेन्डाज़िम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव आसमान साफ़ होने पर करें। बेलवाली सब्जियां जो 20 से 25 दिन की हो गई हो तो उनमें 10-15 ग्राम यूरिया प्रति पौध डालकर गुड़ाई करें।

किसान इस मौसम में समय से बोयी गई बीज वाली प्याज की फसल में थ्रिप्स के आक्रमण की निरंतर निगरानी करते रहें। बीज फसल में परपल ब्लोस रोग की निगरानी करते रहें। रोग के लक्षण अधिक पाये जाने पर आवश्यकतानुसार डाईथेन एम-45 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से किसी चिपचिपा पदार्थ (स्टीकाल, टीपाल आदि) के साथ मिलाकर छिड़काव आसमान साफ़ होने पर करें।