कास एवं मोथा खरपतवार नियंत्रण कैसे कर सकते है जानने के लिए इसे पढ़े |

किसान भाई खरपतवार नियंत्रण कैसे कर सकते है जानने के लिए इसे पढ़े |

कास एवं मोथा का रसायनों द्वारा नियंत्रण

खेतों में कास तथा मोथा की उत्पत्ति से फसलों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है तथा पैदावार में भारी कमी हो जाती है | खरीफ की बुवाई में भी कठिनाई होती है | इस खरपतवार के नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट नामक रसायन बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है | इस तकनीक की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित हैं :-

(क) नियंत्रण की तकनीक

  1. वर्षा ऋतू के प्रारम्भ अर्थात जुलाई में खेत की गहराई जुताई कर देते हैं | इसके बाद डिस्क प्लाऊ द्वारा जुताई करते हैं | जिससे बड़े – बड़े टूट जाते है एवं कास के राइजोम (भूमिगत तने) ऊपर आ जाते हैं तथा कुछ हद तक टुकड़ों में कट जाते हैं |
  2. इस प्रकार उखड़े हुए भूमिगत तनों को निकाल कर इक्कठा कर जला दिया जाता है | जिससे उनका वानस्पातिक प्रसारण पुन: न हो सके |
  3. समय हो तो पता लगा लेना चाहिए तथा खेत को खाली छोड़ देना चाहिए
  4. उपरोक्त क्रिया के 35 – 40 दिन के बाद जब कास के नये पौधे तीव्र वृद्धि की अवस्था में (6 – 8 पत्तियों) अग्रसर हो तों ग्लाइफासेट 41 प्रतिशत एस.एल. की 3 – 4 ली./हे. मात्र 400 – 500 लीटर /है. पानी में घोलकर फ्लैट फैन नाजिल से पर्णीय छिड़काव मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक के खुले सूर्य के प्रकाश में करना चाहिए | यदि कास की गहनता भयंकर हो तो रसायन की मात्रा बढ़कर 4 ली./है कर देनी चाहिए | इससे अच्छा परिणाम मिलता है | इस रसायन के छिड़काव के बाद कास की पत्तियों का रंग बदलने लगता है तथा 15 -20 दिन में पौधे पूर्णत: सुख जाते हैं | यह रसायन कास के भूमिगत तनों तक पहुंचकर उसे समूल रूप से नष्ट कर देता है तथा पुन; नया पौधा भूमि से नहीं निकलता | किसी वजह से खेत के अन्दर कास के पौधे का जमाव हो जाय तो पुन: छिड़काव कर देना चाहिए |

(ख) फसलों की बुवाई

रसायन प्रयोग करने के एक माह बाद फसलों की बुवाई की जा सकती है |

(ग) सावधानियाँ :

  1. रसायन का प्रयोग कास की तीव्र वृद्धि की अवस्था 35 – 40 दिन पर करें |
  2. छिडकाव के बाद लगभग 6 – 8 घंटे खुली धूप एवं पर्याप्त वायु मण्डल की आद्रता आवश्यक है |
  3. छिड़काव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर है |
  4. छिडकाव का समय हवा तेज न हो तथा हाथों में दस्ताने पहन कर ही छिड़काव करें |

मोथा के रासयनिक नियंत्रण की तकनीक :

मोथा (साइप्रस रोटनडस) एक दृष्टि प्रकृतिक खरपतवार है | इसके भूमिगत टयूबर जमीन के अन्दर लगभग 30-45 से.मी. तक फैले होते हैं | इन्हीं टयूबर से इसका प्रसार तेजी से होता है | खुर्पी आदि से निराई के बाद यह पुन: निकल आते है मोथा का प्रकोप ऊपरहार वाली भूमि में की गई फसलों में ज्यादा भयंकर होता है |

इसके प्रयोग करने की तकनीकी निम्नलिखित हैं :-

  1. जिस खेत में मोथा की गहनता  हो उस खेत को वर्षा प्रारम्भ होने के पशचात खली छोड़ दिया जाय |
  2. ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत की 4 ली./ हे. मात्र 400 – 500 लीटर पानी में घोल बनाकर मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक मोंथा की तीव्र वृद्धि की अवस्था पर छिड़काव किया जाय |
  3. छिड़काव के बाद सभी खरपतवार 10 – 15 दिन में सूख जाते हैं | अगर मोथा का जमाव दिखाई दे तो पुन: एक छिड़काव स्पट ट्रीटमेन्ट कर देना चाहिए |
  4. छिडकाव के बाद एक माह तक खली छोड़ दिया जाय, एक माह के अन्दर सभी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं तथा रसायन का भूमि में प्रभाव भी लगभग समाप्त हो जाता है | तत्पशचात इच्छानुसार अग्लो फसल तोरिया, आलू, गेंहू इत्यादि फसलें बोयी जाय |
  5. उपरोक्त क्रिया से अगली फसल में मोथा का जमाव लगभग 85 से 97 प्रतिशत तक कम हो जाता है |
  6. आवश्यकता महसूस होने पर पुन: छिड़काव (स्पाट ट्रीटमेन्ट) कर दिया जाय |

शोध कार्यों से यह भी साबित हुआ है की लगातार 3 – 4 साल तक मोथा की गहनता वाले खेतों में ढेंचा तथा टिल की खेती की जाय तो इनकी गहनता में लगभग 50 – 60 प्रतिशत तक कमी आ जाती है | मक्का, अरहर तथा गन्ने के बीच में लोबिया की सहफसली खेती करने से भी मोथा की गहनता में काफी कमी आ जाती है |

रसायन प्रयोग में सावधानियां 

  1. छिड़काव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर हैं | इस समय मोठा तीव्र वृद्धि की अवस्था में होता है तथा उपयुक्त तापक्रम एवं वायुमंडल आद्रता भी प्राप्त होती है |
  2. छिड़काव खुली धूप में किया जाय तथा छिड़काव के बाद 6 – 8 घंटे धूप का मिलान आवश्यक हैं |
  3. छिड़काव खाड़ी फसल में न किया जाय अन्यथा फसल नष्ट हो जायेगी |
  4. छिड़काव के समय हवा तेज न हो तथा हाथों में दस्ताने पहन कर ही छिड़काव करें |

कुछ घरेलू नुस्खे को अपनाकर कृषि में हजारों रुपये बचा सकते हैं |

कुछ घरेलु नुस्खे को अपनाकर कृषि में हजारों रूपये बचा सकते हैं |

कुछ नाशी जीव प्रबंधन सूत्र

बहुत से जैविक कृषि कर रहे किसान तथा गैर सरकारी संगठनों ने बड़ी संख्या में अग्रणी सूत्र विकसित किए है जो विभिन्न नाशी जीवों के प्रबंधन हेतु प्रयोग किए जाते हैं | यधपि इन सूत्रों की वैज्ञानिक रूप में वैधता नहीं है, फिर भी उनका किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाना उनकी उपयोगिता का घोतक है | किसान इन सूत्रों को प्रयोग करने का प्रयास कर सकते हैं क्योंकि ये बिना क्रय के उनके खेत पर ही तैयार किये जा सकते हैं | कुछ लोकप्रिय सूत्र निम्न प्रकार सूचीबध्द किए गए है :-

गौ – मूत्र :-

एक लीटर गौ– मूत्र 20 ली. पानी में मिलाकर पर्णीय छिड़काव करने से अनेक रोगाणुओं तथा कीटों के प्रबंधन के साथ – साथ फसल वृद्धि उत्प्रेरक का कार्य भी कर सकता है |

सडा हुआ छाछ पानी :-

मध्य भारत के कुछ भागों में सडा हुआ छाछ पानी, सफ़ेद मक्खी एफिड आदि के प्रबंधन हेतु भी प्रयोग किया जाता है |

दश पर्णी सत:-

20 कि. नीम पत्ती + 2 कि. निर्गुन्डी पत्ते + 2 कि. सर्पगंध पत्ते + 2 कि. गुडुची पत्ते + 2 कि. कस्टड एपिल (शरीफा) पत्ते + 2 कि. करंज पत्ते + 2 कि. एरंड पत्ते + 2 कि. कनेर पत्ते + 2 कि. आक पत्ते + 2 कि. हरी मिर्च लुगदी + 250 ग्राम लहसुन लुगदी + 5 ली. गौमूत्र + 3 कि. गाय गोबर को 200 लीटर पानी में कुचलें और एक माह तक सड़ने दें | दिन में दो बार हिलाते रहें | सत को कुचलने के बाद छ्नें | सत छ: माह हेतु भंडारित किया जा सकता है तथा एक एकड़ क्षेत्र में स्प्रे हेतु पर्याप्त है |

नीम गौमूत्र सत :-

5 कि. नीम पत्ती में कुचलें | इसमें 5 लिटर गौमूत्र तथा 2 कि. गाय का गोबर मिलायें | 24 घंटे तक सड़ने दें | थोड़े – थोड़े अंतराल से हिलायें | सत को निचोड़कर छाने  तथा 100 ली. पानी में पतला करें | एक एकड़ क्षेत्र में पर्णीय छिड़काव हेतु प्रयोग करें | इससे चूसने वाले कीटों तथा मिली बग का नियंत्रण किया जा सकता है |

मिश्रित पत्तों का सत :-

(1) तीन किलो नीम पत्ती 10 ली. गौमूत्र में कुचलें | (2) दो किलो कस्टर्ड एपिल पत्ते + 2 कि. पपीता पत्ती + 2 कि. आनर पत्ती + 2 कि. अरंडी पत्ती + 2 कि. अमरुद पत्ती को पानी में कुचलें | दोनों मिश्रण को मिलायें | थोड़ी – थोड़ी देर के अन्तराल में (5 बार) तब तक उबालें जब तक की यह घटकर आधा नहीं रह जाये | 24 घंटे रखने के बाद निचोड़कर छाने | यह बोतल में छ: माह तक भंडारित किया जा सकता है | 2 – 2 – 5 ली. सत में 100 ली. पानी मिलाकर यह घोल एक एकड़ हेतु पर्याप्त है | यह रस चूसने वाले तथा व फल छेदक कीटों के नियंत्रण में लाभकारी है |

मिर्च अदरक का सत :-

1 कि. बेशक पत्ती + 500 ग्राम हरी तीखी मिर्च + 500 ग्राम लहसुन + 500 ग्राम नीम पत्ती | सबको 10 ली. गौमूत्र में कुचलें | इसे तब तक उबालें जब तक की यह घटकर आधा न रह जाये | सभी को निचोड़कर छाने | यह एक एकड़ छिडकाव हेतु पर्याप्त है | यह अर्क पत्ती लपेट कीट, तना, फल तथा फली छेदक के नियंत्रण में लाभकारी है |

प्रभावी कीटनाशी सूत्र (1) :-

एक तांबे के पात्र में 3 किलो कुचली हुई ताजी नीम की पत्तियां एवं 1 किलो नीम की निबौली का चूर्ण (पाउडर) 10 लीटर गौ मूत्र में मिलायें | पात्र को अच्छी तरह से बंद करके 10 दिनों तक सड़ने के लिए रख दें | 10 दिनों बाद इस मिश्रण को तब तक उबालें जब तक की यह आधा न रह जाये | 500 ग्राम हरी मिर्च कुचलकर एक लीटर पानी में डालकर रात भर के लिए छोड़ दें | एक दुसरे पात्र में 250 ग्राम लहसुन को पानी में डालकर रात भर के लिए छोड़ दें |अगले दिन उबला हुआ मिश्रण, हरी मिर्च का सत और लहसुन का सत एक साथ मिला दें | अच्छी तरह मिलाकर इसे छन दें | यह व्यापक प्रभावी कीटनाशक बन गया है, इसका उपयोग सभी फसलों में विभिन्न प्रकार के कीटों की रोकथाम के लिए कर सकते हैं | इस कीटनाशक की 250 मि.ली. मात्रा को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें |

प्रभावी कीटनाशी सूत्र (2) :-

5 किलो नीम की निंबौली का चूर्ण (पाउडर) 1 किलो करंज के बीजों का चूर्ण,5 किलो बारीक़ कटी बेशरम/ बेहया की पत्तियां एवं 5 किलो नीम की बारीक़ कटी पत्तियां एक 200 लीटर क्षमता वाले ड्रम में डालें |इसमें 10 से 12 लीटर गौमूत्र डालकर ड्रम को 150 लीटर पानी से भर दें | ड्रम को ऊपर से अच्छी तरह बंद करके 8 से 10 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ दें | 8 दिनों बाद मिश्रण को अच्छी तरह मिला कर आसवित करें | यह आसवित अर्क अच्छी कीटनाशक होने के साथ – साथ एक अच्छी वृद्धि कारक भी है | 150 लीटर मिश्रण से प्राप्त अर्क एक एकड़ भूमि के लिए पर्याप्त है | इसे समुचित घोल बनाकर छिड़काव करें | कुछ महीनों तक इसे रखे रहने पर भी इसकी उपयोगिता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता |

लोबिया (दलहनी चारा) की खेती किस प्रकार करें किसान भाई 

लोबिया (दलहनी चारा)  

भारत में लोबिया की खेती हरे चारे, सब्जी तथा दाने इत्यादि के लिए की जाती है इस दलहनी फसल में प्रोटीन का प्रतिशत अधिक होने से हरे चारे तथा सब्जी में इसका विशेष महत्व हैं | लोबिया को ज्वार, बाजरा या मक्का आदि के साथ मिलाकर या अकेले भी बोया जा सकता है |

भूमि तथा खेत की तैयारी :-

लोबिया की खेती आमतौर पर अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है | लेकिन दोमट मिटटी पैदावार के हिसाब से सर्वोतम मानी गयी है |उन्नत किस्में :-

इगफ्री –450, रसियन जाइन्ट, टा.2, यू.बी.सी.5286, 5287, ई.सी. 4216, आई.जी.एफ.आर.आई.– 450, 395 प्रजातियाँ है |

उन्नत फसल चक्र :-

बरसीम + सरसों – संकर नेपियर – लोबिया |

बरसीम + सरसों – मक्का + लोबिया – एम.पी. चारी + लोबिया |

बरसीम + सरसों – एम.पी. चरी + लोबिया |

बीज की मात्र एवं बुवाई :-

प्रथम मानसून आने पर जून से लेकर जुलाई तक लोबिया बोना चाहिए | अगर अकेले लोबिया की फसल बोना है तो 40 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है और ज्वार या मक्का आदि के साथ बोना है तो 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है | बीज की बुवाई हल के पीछे कुडों में करना चाहिए | उपचारित बीज ही बोना चाहिए |

सिंचाई :-

अगर लोबिया वर्षा ऋतू में बोई गयी है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है और वर्षा न होने पर फूल आने पर एक सिंचाई पर्याप्त रहती हैं तथा ग्रीष्म कल में 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए |

खरपतवार नियंत्रण :-

बुवाई के 30 या 35 दिन के अंदर निराई गुडाई करके खरपतवार साफ कर देना चाहिए | शुद्ध उपचारित बीज ही बोना चाहिए |

चारे की पैदावार :-

जैसे ही फली बनना शुरू हो चारे की कटाई भी शुरू कर देना चाहिए | इस प्रकार 250 से 300 किवंटल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है |

बीज मिलने का पता :-

राष्ट्रीय बीज निगम, कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य बीज निगमों तथा स्थानीय बीज विक्रेताओं से भी खरीद जा सकती हैं |

सितम्बर माह में पशुधन सम्बन्धित कार्य

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सितम्बर माह में पशुधन सम्बन्धित कार्य

  • गाय व भैस को टो में आने के 12 से 18 घंटे के अन्दर गाभिन करवाने का उचित समय है |
  • दुधारू पशुओं में थैनेला रोग से बचाव के उपाय करें |
  • पशुओं को अन्त:परजीवी नाशक दवाई पशु – चिकित्सक की सलहा अनुसार नियमित दें |
  • बरसीम की पहली बिजाई इस माह के अन्तिम सप्ताह में शुरू करें |
  • बरसीम की पहली काट से अधिक चारा लेने के लिए सरसों की (चाइनीज कैबीज) किस्म या जई मिलाकर बिजाई करें |
  • बरसीम के साथ राई घास मिला कर बिजाई करने से हरे चारे की पौष्टिकता व ऊपज में वृद्धि होती है |
  • बरसीम फसल से अधिक उपज व लम्बी अवधि तक (मध्य जून) तक हरा चारा प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों BL- 10, BL- 22 व BL- 42 की बिजाई करें |
  • बरसीम की बिजाई नये खेत में करनी हो तो बीज को राईजोबियम कल्चर से उपचारित करने पर अधिक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है |
  • बैल बनाने के लिए छ: मास की आयु होने पर बछड़े को बधिया करवायें |

पशुओं में थनैला रोग एवं उसकी रोकथाम किस प्रकार करें किसान भाई

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पशुओं में थनैला रोग एवं उसकी रोकथाम

थनैला रोग का अर्थ दूध देने वाले पशु के अयन एवं थन की सूजन तथा दूध की मात्रा यें रासायनिक संघटन में अन्तर आना होता है | अयन में सूजन, अयन का गरम होना एवं अयन का रंग हल्का लाल होना इस रोग की प्रमुख पहचान हैं |

थनैला रोग विश्व के सभी भागों में पाया जाता है | इससे दुग्ध उत्पादन का ह्रास होता है | दुग्ध उधोग को भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ती है | थनैल रोग जीवाणुओं, विषाणुओं न प्रोटोजोआ आदि के संक्रमण से  है | संक्रमण के दौरान कई कर्क स्वत: ही दूध में आ जाते हैं , उक्त दूध को मनुष्यों द्वारा उपयोग करने पर कई बिमारियों हो सकती है |इस कारण यह रोग और महत्वपूर्ण हो जाता है | बीमारी पशु के दूध को यदि उसका बच्चा सेवन करता है, तो वह भी बीमारी का भागीदार हो सकता है |

सामन्यत: यह बीमारी छुआछूत किन्हीं होती हैं परन्तु कई जीवाणुओं एवं विषाणुओं से होने पर दुसरे पशुओं में भी फैल सकती है | कई बार थन पर छले पद जाते हैं , उस समय दूध निकालने पर थन पर घाव हो जाता है और स्थिति बिगडती जाती है |

उपचार एवं रोकथाम :-

  • बीमारी पशु के अयन एवं थन की सफाई रखना चाहिए |
  • बीमारी की जाँच शुरू के समय में ही करवाना चाहिए |
  • थन या अयन के ऊपर किसी भी प्रकार के गरम तेल , घी या पानी की मालिस नहीं करनी चाहिए |
  • दूध नीकालने से पहले एवं बाद में किसी एन्टीसेप्टिक लोशन से धुलाई करना चाहिए |
  • दुग्ध शाला में यदि अधिक पशु है तो समय – समय पर थनैल रोग के स्थलीय परीक्षण का कार्य निदेशालय स्थित थनैला रोग प्रयोगशाला से सम्पर्क करवाना चाहिए |
  • अधिक दूध देने वाले पशुओं को थनैला रोग का टीका भी लगवाना चाहिए |
  • दूध निकालते समय थन पर दूध की मालिस नहीं करना चाहिए | उसकी जगह घी आदि का प्रयोग करना चाहिए |
  • पशु में बीमारी होने पर तत्काल निकट के पशु चिकित्सालय से कर उचित सलाह लेना चाहिए |

थनैला रोग से मुक्त दुग्धशाला |

किसान होगा आर्थिक उन्नयन वाला ||

  1. दूध देने वाले पशु से सम्बन्धित सावधानियां |

  • दूध देने वाला पशु पूर्ण स्वस्थ होना चाहिए | टी.बी. थनैला इत्यादि बीमारियों नहीं होनी चाहिए | पशु की जाँच समय – समय पर पशु चिकित्सक से कृते रहना चाहिए |
  • दूध दुहने से पहले पशु के शरीर की अच्छी तरह सफाई कर देना चाहिए | दुहाई से पहले पशु के शरीर पर ख़ैर करके चिपका हां गोबर, धुल, कीचड़, घास आदि साफ कर लेना चाहिए | खास तौर से पशु शारीर के पीछे हिस्से, पेट, अयन, पूंछ व पेट के निचले हिस्से की विशेष सफाई करनी चाहिए |
  • दुहाई से पहले अयन की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए अयन एवं थनों को किसी जीवाणु नाशक के घोल से धोया जय तथा घोल के भीगे हुए कपडे से पोछ लिया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा |
  • यदि किसी थन में कोई बीमारी हो तो उससे दूध निकाल कर फेंक देना चाहिए |
  • दुहाई से पहले प्रत्येक थन की दो चार दूध धारे जमीन पर गिरा देना चाहिए या अलग बर्तन में इकट्ठा करनी चाहिए |
  1. दूध देने वाले पशु के बंधने के स्थान से सम्बन्धित सावधानियां :

  • पशु बांधने का व खड़े होने का स्थान पर्याप्त होना चाहिए |
  • फर्श यदि संभव हो तो पक्की होना चाहिए यदि पक्की नहीं है तो कछी फर्श समतल हो तो तथा उसमें गडढे इत्यादि न हो | मूत्र व पानी निकालने की व्यवस्था होनी चाहिए |
  • दूध दुहने से पहले पशु के चारों ओर सफाई कर देना चाहिए | गोबर मूत्र हटा देना चाहिए | यदि बिछावन बिछया गया है तो दुहाई से पहले उसे हटा देना चाहिए |
  • दूध निकालने वाली जगह की दीवारें, छत आदि साफ होनी चाहिए | उनकी चूने की पुताई करवा लेनी चाहिए तथा फर्श की फीनाइल से हलाई दो घंटे पहले कर लेना चाहिए |

दूध के बर्तन से सम्बंधित सावधानियां :

  • दूध धुनें का बर्तन साफ होना चाहिए | उसकी सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए | दूध के बर्तन को पहले ठंडे पानी से फिर सोडा या अन्य जीवाणु नाशक रसायन से मिले गर्म पानी से, फिर सादे खौलते हुए पानी से धोकर धुप में चूल्हें के ऊपर उलटी रख कर सुखा लेना चाहिए |
  • साफ किए हुए बर्तन पर मच्छर , मक्खियों को नहीं बैठने देना चाहिए तथा कुत्ता , बिल्ली उसे चाट न सके |
  • दूध दुहने का बर्तन का मुंह अचौड़ा व सीधा आसमान में खुलने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे मिटटी, धुल, गोबर आदि के कण व घास – फूस के तिनके , बाल आदि सीधे दुहाई के समय बर्तन में गिर जायेंगे | इसलिए बर्तन संकरे मुंह वाले हो तथा टेढ़ा होना चाहिए |
  • बर्तन पर जोड़ व कोने कम से कम होने चाहिए |

घरबाड़ी और छत पर सब्जी उत्पादन के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर

घरबाड़ी और छत पर सब्जी उत्पादन के लिए 50 प्रतिशत अनुदान पर मिलेगी वेजिटेबल किट

उद्यानिकी विभाग राजनांदगांव द्वारा नगर निगम क्षेत्र राजनांदगांव में वेजीटेबल ग्रेविंग किट्स फॉर सिटी अर्बन एरिया वर्ष 2017-18 प्रारंभ की गई है। सहायक संचालक उद्यानिकी विभाग राजनांदगांव ने बताया कि दैनिक ताजी एवं पौष्टिक साग-सब्जी की आवश्यकता की पूर्ति, रसोई का अपशिष्ट जल का उपयोग, घरों को को हरा-भरा रखते हुए पर्यावरण संतुलन के साथ सब्जी उगाने में शारीरिक श्रम एवं मानसिक संतुष्टि प्राप्ति हेतु शहरी क्षेत्र नगर निगम राजनांदगांव में यह योजना प्रारंभ की गई है।
इसके अंतर्गत शहर क्षेत्र के घर, मकान के आस-पास सीमित भूमि, छत पर सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बागवानी (वेजीटेबल ग्रोइंग किट) उपलब्ध कराकर शहर वासियों को दैनिक विषमुक्त ताजी सब्जियां उपलब्ध कराने हेतु 4500 रूपए के किट को 2250 रूपए अनुदान पर उद्यान विभाग द्वारा शासकीय उद्यान रोपणी पेण्ड्री से उपलब्ध कराया जाएगा। इस योजना का लाभ लेने हेतु इच्छुक नगर निगम क्षेत्र में निवासरत व्यक्ति नगर निगम की सूची अनुक्रमांक पर संबंधित वार्ड पार्षद से अनुशंसा प्रमाण पत्र, आधार कार्ड एवं बैंक पास बुक की छायाप्रति के साथ आवेदन प्रस्तुत कर सकते है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी कार्यालय सहायक संचालक उद्यान कलेक्टोरेट राजनांदगांव से प्राप्त की जा सकती है।

उत्तरप्रदेश निःशुल्क बोरिंग योजना से सम्बंधित सम्पुर्ण जानकारी

उत्तरप्रदेश निःशुल्क बोरिंग योजना से सम्बंधित सम्पुर्ण जानकारी

निःशुल्क बोरिंग योजना प्रदेश के लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिये वर्ष 1985 से संचालित है। यह विभाग की फ्लैगशिप योजना है। यह योजना अतिदोहित/क्रिटिकल विकास खण्डों को छोडकर प्रदेश के सभी जनपदों में लागू है।

सामान्य जाति के लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु अनुदान

इस योजना मे सामान्य श्रेणी के लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा क्रमशः रू 5000.00 व रू 7000.00 निर्धारित है। सामान्य लाभार्थियों के लिये जोत सीमा 0.2 हेक्टेयर निर्धारित है। सामान्य श्रेणी के कृषकों की बोरिंग पर पम्पसेट स्थापित करना अनिवार्य नहीं है, परन्तु पम्पसेट क्रय कर स्थापित करने पर लघु कृषकों को अधिकतम रू 4500.00 व सीमान्त कृषकों हेतु रू 6000.00 का अनुदान अनुमन्य है।

अनुसूचित जाति/जनजाति कृषकों हेतु अनुदान

अनुसूचित जाति/जनजाति के लाभार्थियों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा रू 10000.00 निर्धारित है। न्यून्तम जोत सीमा का प्रतिबंध तथा पम्पसेट स्थापित करने की बाध्यता नहीं है। रू 10000.00 की सीमा के अन्तर्गत बोरिंग से धनराशि शेष रहने पर रिफ्लेक्स वाल्व, डिलिवरी पाइप, बेंड आदि सामग्री उपलब्ध कराने की अतिरिक्त सुविधा भी उपलब्ध है। पम्पसेट स्थापित करने पर अधिकतम रू 9000.00 का अनुदान अनुमन्य है।

एच.डी.पी.ई.पाइप हेतु अनुदान

वर्ष 2012-13 से जल के अपव्यय को रोकने एवं सिंचाई दक्षता में अमिवृद्धि के दृष्टिकोण से कुल लक्ष्य के 25 प्रतिशत लाभार्थियों को 90mm साईज का न्यूनतम 30मी0 से अधिकतम 60 मी. HDPE Pipe स्थापित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम रू 3000.00 का अनुदान अनुमन्य कराये जाने का प्राविधान किया गया है। कृषकों की माँग के दृष्टिगत शासनादेश संख्या-955/62-2-2012 दिनांक 22 मार्च 2016 से 110 mm साईज के HDPE Pipe स्थापित करने हेतु भी अनुमन्यता प्रदान कर दी गयी है।

पम्पसेट क्रय हेतु अनुदान

निःशुल्क बोरिंग योजना के अन्तर्गत नाबार्ड द्वारा विभिन्न अश्वशक्ति के पम्पसेटों के लिए ऋण की सीमा निर्धारित है जिसके अधीन बैकों के माध्यम से पम्पसेट क्रय हेतु ऋण की सुविधा उपलब्ध है। जनपदवार रजिस्टर्ड पम्पसेट डीलरों से नगद पम्पसेट क्रय करने की भी व्यवस्था है। दोनों विकल्पो में से कोई भी प्रक्रिया अपनाकर ISI मार्क पम्पसेट क्रय करने पर अनुदान अनुमन्य है।

स्त्रोत: लघु सिंचाई विभाग, उत्तरप्रदेश

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पशुओं के लिए पोष्टिक एवं संतुलित है यूरिया सीरा तरल आहार (यू.एम.एल.डी.)

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पशुओं के लिए यूरिया सीरा तरल आहार (यू.एम.एल.डी.)

देश के कई भागों में बाढ़ और सुखा समय – समय पर आने वाली प्ररितिक आपदाएं हैं | इन से न केवल कृषि उत्पादन साथ ही पशुधन उत्पादन भी विशेषकर प्रभावित होता हैं  | इन विपदाओं के समय न्यूनतम लागत पर वैकल्पिक भरण नीतियों का उपयोग करके पशुधन को जीवित रखना प्रमुख उद्देश्य होता है |अनुपलब्धता और भरी सामग्री को इधर से उधर ले जाने में भारी कठिनाइयों के कारण परम्परागत तौर पर उपयोग किए जाने वाले पशु आहार / चारे की उपलब्धता अनिश्चित हो जाती है  |

सीरे में उर्जा और गंधक के साथ – साथ अधिक घनत्व भी होता है | इसे सुखा / अभाव की स्थितियों पशु आहार के रूप में शरीर के विभिन्न प्रक्रमों के लिए आवश्यक प्रोटीन, खनिज और विटामिन को डालकर उपयोगी बनाया जा सकता है | भारतीय पशुचिक्त्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर ने यूरिया सीर तरल आहार (यूएमएलडी) को बढ़ते गोपशु और भैसों के लिए लंबी अवधि के लिए आहार के रूप में मानकीकृत किया है |

आवश्यक सामग्री

100 कि.ग्रा. यू.एम.एल.डी. के लिए

  • सीरा  84 की.ग्रा.
  • प्रोटीन की गोलियां 10 की.ग्रा.
  • यूरिया 3 की.ग्रा.
  • खनिज मिश्रण 2 की.ग्रा.
  • फास्फोरस अम्ल 1 की.ग्रा.
  • विटामिन संपूरक (विटाबलेंड), 25 ग्राम /सौ की.ग्रा.

घटक

  • प्रोटीन की गोलियां (प्रतिशत शुष्क भारे के आधार पर)
  • तेल निकली सरसों की खली , 23
  • सरसों की खली , 11
  • कुटा हुआ ज्वार का दाना , 10
  • सीर, 10
  • ग्वार कोरम, 9
  • बिनोला मील, 8
  • मूंगफली की तेल निकाली खली, 7
  • चावल पालिश, 6
  • गेंहू की भूसी, 6 माल्ट स्पराउट, 3
  • मक्का ग्लूटेन, 3
  • धान की तेल निकाली भूसी, 2
  • संसाधन नमक, 2

तैयारी

यूएमएलडी बनाने के लिए यूरिया को सीरे में मिलाया जाता है  रात भर प्लास्टिक की नांद में रखा जाता है | अगली सुबह इसे अच्छी तरह हिलाकर अन्य सामग्री मिलायी जाती है |

लाभ

आपदाओं के समय विशेषकर बाढ़ / सूखा के समय इसे उत्तरजीवित राशन के रूप में उपयोग कर सकते हैं |

आर्थिकी 

उत्तरजीवित आहर है अत: यूएमएलडी कई लाख मूल्यवान पशुधन की जीवन रक्षा कर सकता है, यधपि इस आहार की लागत लगभग 250 रु./किवंटल आती है |

स्त्रोत: भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान, इज्ज़तनगर

जानें सब्जियों की कुछ उन्नत एवं संकर किस्में

जानें सब्जियों की कुछ उन्नत एवं संकर किस्में

सब्जी उत्पादन में सहीं किस्मों का चुनाव करके ही अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है, सब्जियों की सभी किस्में खरीफ, रबी या गर्मी में उगाने के लिए उपयुक्त नहीं होती अत: ऋतु के अनुसार किस्मों का चयन करना चाहिए, अन्यथा अधिक उपज प्राप्त नहीं होती साथ ही साथ दूसरी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। कुछ सब्जियों की उन्नत किस्में निम्न हैं –

सब्जियों की उन्नत किस्में

क्र.सब्जी का नामउन्नत किस्मेंसंकर किस्में
1.टमाटरपूसा रूबी, पूसा गौरव, हिसार अरूण, हिसार अनमोल, हिसार गौरव, एच. एस. 101, पंजाब छुहाराएन.एस-815, एन.एस. 2535, एन.एस-8014, स्वरक्षा, निधि, अविनाश-2, पूसा संकर-2, ए. आर.टी.एच.-3.
2.बैंगनपूसा परपल लांग, पूसा परपल राउण्ड, मुक्ता केशी, पंत सम्राट, पंत ऋतुराज, अर्का केशव, अर्का नवनीतपूसा हाइब्रिड-6, पूसा हाइब्रिड-9 इम्प्रूव्ड निशा, वी.एन.आर.-212
3.मिर्चपूसा सदाबहार, पूसा ज्वाला, जवाहर-218, पंत सी-1, जापानी लौंगी, इंदिरा मिर्च-1एन. एस-1701, एन.एस-1101, ज्योति, सुपरहॉट, अग्निरेखा, पंजाब हाइब्रिड, तेजस्विनी
4.शिमला मिर्चकैलिफोर्निया वण्डर, अर्कामोहिनी, अर्कागौरव, अर्काबसन्त, इन्द्राभारत, हीरा, ग्रीन गोल्ड इंद्रा, केलिफोर्निया वण्डर, अर्का गौरव, अर्का मोहिनी
5.फूलगोभीपूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी, अर्ली कुवांरी, पूसा शुभ्रा, पंत शुभ्रा, पंत गोभी-2, पंत गोभी-3, पूसा अगहनी, पूसा अर्लीसिंथेटिकएन.एस-60, एन.एस-66, एन.एस-75, बर्खा, श्वेता
6.पत्ता गोभीपूसा ड्रम हेड, गोल्डन एकरग्रीन चेलेन्जर, एन.एस-22, बहार, श्री गणेशगोल
7.प्याजएन-53, एग्री फाउण्ड डार्करेड, एग्रीफाउण्ड लाइट रेडअर्का निकेतन, रॉयल सलेक्शन

मल्चिंग विधि से मिर्च की खेती करने से होता है अधिक फायदा जानें कैसे 

मल्चिंग विधि से मिर्च की खेती करने से होता है अधिक फायदा जानें कैसे 

एक बीघा के लिए खेती की पूरी प्रक्रिया जाने |

बीज :-

  • एक बीघा में 10 ग्राम के पांच (50 ग्राम) पैकेट लगेगा |
  • एक पैकेट में 12000 बीज रहता है |
  • एक बीघा में लगभग 5500 से 6000 पौधें लगते हैं |

बीज का चुनाव :-

  1. शिमला मिर्च के लिए
  2. शिमला नोबेल
  3. नताशा  727
  4. सितारा

पौधें की उत्पति कैसे करें

  • एक बीघा के लिए 12 ट्रे ख़रीदे | एक ट्रे में 104 गुपी रहती  है |
  • पौधें की उत्पत्ति खेत में नहीं करें बल्कि नारियल के बुरादे में करें |
  • एक बीघा के लिए 10 किलोग्राम नारियल का बुरादा (कोकापिट) खरीदें

यह सभी सामग्री बीज की दुकान पर आसानी से उपलब्ध है |

एक घंटे के लिए नारियल का बुरादा (कोकापिट) पानी में डाने | एक घंटे के बाद  पानी से कोकापिट को बहार निकल दें  | उसके बाद ट्रेय के गुपी में आधा कोकापिट भर दें | अब मिर्च के बीज को प्रतेक गुपी में एक बीज डान दें | उसके बाद मिर्च के बीज के ऊपर से गुपी में कोकापिट भर दें | अब ट्रेय को  खुली हरे रंग के नेट में रख दें | ट्रेय को कभी भी घर में नहीं रखें | अब प्रतेक दिन उस गुपी में फुहारे से पानी दें | यह क्रम 40 दिनों तक चलने दें |

मिर्च के पौधे को लगाने के लिए वेड तैयार करें |

  • एक बीघा में आधा इंची के 300 मीटर ड्रिप लगेगा |
  • बाजार में 300 मीटर ड्रिप का कीमत 12000 रु. से 30000 रु. तक है |
  • एक बार ड्रिप खरीदने पर  6 साल तक उपयोग कर सकते है |
  • मल्चिंग एक बीघा में 1600 मीटर लगेगा | यह 2000 रु. प्रति 400 मीटर | एक बीघा में 8000 रु. लगेगा |

वेड जून महीने के पहले सप्ताह में तैयार करे |

कब क्या एवं किस प्रकार करें

  • वेड हाथ से तैयार कर सकते है | इसके लिए खेत को दो – तीन  बार अच्छी तरह जुताई कर लें | इसके बाद कुदाल से दोनों तरफ से मिटटी को एक तरफ करते जाए | वेड की ऊँचाई कमसे कम 6 इंच होना चाहिए | वेड की चौडाई  3 फिट रहना चाहिए तथा वेड से वेड की दूरी 3 से 4 फिट होना चाहिए |
  • वेड बन जाने के बाद वेड के ऊपर ड्रिप को रख दें ड्रिप दो धारी में रहेगा | इसके बाद ऊपर से मिल्न्चिंग लगादें | तथा मिल्चिन के दोनों छोरों को मिटटी से दबा दें जिससे हवा में उड़ ना सके |  पौधों की बुवाई करने के लिए मल्चिंग में छेड़ करने होगा | इसके लिए एक ग्लास लें तथा उसे गरम करके  मिल्चिंग पर 6 इंच पर रखते जाएँ जिससे मिल्चिंग में होल होता जायेगा | इसी होल में पौधे को बो सकते है  |
  • मिर्च के वेड बनाने के लिए एसे तो मशीन आती है | जिसमें एक ही साथ ड्रिप, मल्चिंग तथा मिटटी का बीएड बना देता है |
  • पहला कीटनाशक दवा 15 दिन पर दें  | किटा जिन कीटनाशक  ड्रिप के द्वारा पौधे के जड़ में देते है  | इसकी मात्र 25 ml 45 से 50 लीटर पानी में घोल कर देते है  | इसके साथ 0,52,34 खाद  ड्रिप  द्वारा पौधें में दे  |इसकी मात्रा एक बीघा में  2 किलोग्राम 50 लीटर पानी में घोलकर ड्रिप के द्वारा दें  | इस खाद की कीमत 2 किलोग्राम का 400 रु. है | यह क्रम प्रतेक  8 से 10 दिन पर यूरिया खाद ड्रीप से खाद दें |
  • कीटनाशक का छिडकाव  रोगर  बुवाई के 30 दिन बाद  2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर दें  | एक बीघा में 60 लीटर पानी में 120 ग्राम रोगर मिलाकर छिडकाव करें |
  • दूसरा छिडकाव पहले छिडकाव से 10 दिन बाद करें | दुसरे छिडकाव में इमीडा 20 ग्राम 60 लीटर पानी में छिडकाव करें | यह छिडकाव असल के अनुसार आगे भी देते रहें |
  •  रोपने के 50 दिन बाद पहली बार फसल को तोड़ें | प्रतेक 6 से 8 दिन बाद फसल को तोड़ें | यह फसल 6 महीने तक आप को फल देती रहेगी |
  •  अनुमानत: एक बीघा  2.5 लाख का शिमला मिर्च बेचा जा सकता है |