किसान भाई खरपतवार नियंत्रण कैसे कर सकते है जानने के लिए इसे पढ़े |
कास एवं मोथा का रसायनों द्वारा नियंत्रण
खेतों में कास तथा मोथा की उत्पत्ति से फसलों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है तथा पैदावार में भारी कमी हो जाती है | खरीफ की बुवाई में भी कठिनाई होती है | इस खरपतवार के नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट नामक रसायन बहुत प्रभावकारी सिद्ध हुआ है | इस तकनीक की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित हैं :-
(क) नियंत्रण की तकनीक
- वर्षा ऋतू के प्रारम्भ अर्थात जुलाई में खेत की गहराई जुताई कर देते हैं | इसके बाद डिस्क प्लाऊ द्वारा जुताई करते हैं | जिससे बड़े – बड़े टूट जाते है एवं कास के राइजोम (भूमिगत तने) ऊपर आ जाते हैं तथा कुछ हद तक टुकड़ों में कट जाते हैं |
- इस प्रकार उखड़े हुए भूमिगत तनों को निकाल कर इक्कठा कर जला दिया जाता है | जिससे उनका वानस्पातिक प्रसारण पुन: न हो सके |
- समय हो तो पता लगा लेना चाहिए तथा खेत को खाली छोड़ देना चाहिए
- उपरोक्त क्रिया के 35 – 40 दिन के बाद जब कास के नये पौधे तीव्र वृद्धि की अवस्था में (6 – 8 पत्तियों) अग्रसर हो तों ग्लाइफासेट 41 प्रतिशत एस.एल. की 3 – 4 ली./हे. मात्र 400 – 500 लीटर /है. पानी में घोलकर फ्लैट फैन नाजिल से पर्णीय छिड़काव मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक के खुले सूर्य के प्रकाश में करना चाहिए | यदि कास की गहनता भयंकर हो तो रसायन की मात्रा बढ़कर 4 ली./है कर देनी चाहिए | इससे अच्छा परिणाम मिलता है | इस रसायन के छिड़काव के बाद कास की पत्तियों का रंग बदलने लगता है तथा 15 -20 दिन में पौधे पूर्णत: सुख जाते हैं | यह रसायन कास के भूमिगत तनों तक पहुंचकर उसे समूल रूप से नष्ट कर देता है तथा पुन; नया पौधा भूमि से नहीं निकलता | किसी वजह से खेत के अन्दर कास के पौधे का जमाव हो जाय तो पुन: छिड़काव कर देना चाहिए |
(ख) फसलों की बुवाई
रसायन प्रयोग करने के एक माह बाद फसलों की बुवाई की जा सकती है |
(ग) सावधानियाँ :
- रसायन का प्रयोग कास की तीव्र वृद्धि की अवस्था 35 – 40 दिन पर करें |
- छिडकाव के बाद लगभग 6 – 8 घंटे खुली धूप एवं पर्याप्त वायु मण्डल की आद्रता आवश्यक है |
- छिड़काव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर है |
- छिडकाव का समय हवा तेज न हो तथा हाथों में दस्ताने पहन कर ही छिड़काव करें |
मोथा के रासयनिक नियंत्रण की तकनीक :
मोथा (साइप्रस रोटनडस) एक दृष्टि प्रकृतिक खरपतवार है | इसके भूमिगत टयूबर जमीन के अन्दर लगभग 30-45 से.मी. तक फैले होते हैं | इन्हीं टयूबर से इसका प्रसार तेजी से होता है | खुर्पी आदि से निराई के बाद यह पुन: निकल आते है मोथा का प्रकोप ऊपरहार वाली भूमि में की गई फसलों में ज्यादा भयंकर होता है |
इसके प्रयोग करने की तकनीकी निम्नलिखित हैं :-
- जिस खेत में मोथा की गहनता हो उस खेत को वर्षा प्रारम्भ होने के पशचात खली छोड़ दिया जाय |
- ग्लाइफोसेट 41 प्रतिशत की 4 ली./ हे. मात्र 400 – 500 लीटर पानी में घोल बनाकर मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक मोंथा की तीव्र वृद्धि की अवस्था पर छिड़काव किया जाय |
- छिड़काव के बाद सभी खरपतवार 10 – 15 दिन में सूख जाते हैं | अगर मोथा का जमाव दिखाई दे तो पुन: एक छिड़काव स्पट ट्रीटमेन्ट कर देना चाहिए |
- छिडकाव के बाद एक माह तक खली छोड़ दिया जाय, एक माह के अन्दर सभी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं तथा रसायन का भूमि में प्रभाव भी लगभग समाप्त हो जाता है | तत्पशचात इच्छानुसार अग्लो फसल तोरिया, आलू, गेंहू इत्यादि फसलें बोयी जाय |
- उपरोक्त क्रिया से अगली फसल में मोथा का जमाव लगभग 85 से 97 प्रतिशत तक कम हो जाता है |
- आवश्यकता महसूस होने पर पुन: छिड़काव (स्पाट ट्रीटमेन्ट) कर दिया जाय |
शोध कार्यों से यह भी साबित हुआ है की लगातार 3 – 4 साल तक मोथा की गहनता वाले खेतों में ढेंचा तथा टिल की खेती की जाय तो इनकी गहनता में लगभग 50 – 60 प्रतिशत तक कमी आ जाती है | मक्का, अरहर तथा गन्ने के बीच में लोबिया की सहफसली खेती करने से भी मोथा की गहनता में काफी कमी आ जाती है |
रसायन प्रयोग में सावधानियां
- छिड़काव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर हैं | इस समय मोठा तीव्र वृद्धि की अवस्था में होता है तथा उपयुक्त तापक्रम एवं वायुमंडल आद्रता भी प्राप्त होती है |
- छिड़काव खुली धूप में किया जाय तथा छिड़काव के बाद 6 – 8 घंटे धूप का मिलान आवश्यक हैं |
- छिड़काव खाड़ी फसल में न किया जाय अन्यथा फसल नष्ट हो जायेगी |
- छिड़काव के समय हवा तेज न हो तथा हाथों में दस्ताने पहन कर ही छिड़काव करें |