टमाटर की गिरती कीमतों की भरपाई के लिए सरकार ने लिया बड़ा फैसला, भंडारण और परिवहन का खर्च देगी सरकार

किसानों की टमाटर की फसल तैयार होती ही उसकी कीमतों में भारी गिरावट आई है, जिससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। जिसको देखते हुए केंद्र सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना (MIS) के तहत परिवहन घटक को लागू करने का निर्णय लिया है। जिसका लाभ मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों के किसानों को मिलेगा क्योंकि इन राज्यों में टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट आई है।

इस योजना के तहत जहां उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के बीच टॉप फसलों (टमाटर, प्याज और आलू) की कीमत में अंतर है, उत्पादक राज्यों के किसानों के हित में, उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली परिचालन लागत की प्रतिपूर्ति नैफेड (NAFED) और एनसीसीएफ NCCF) जैसी केंद्रीय नोडल एजेंसियों को की जाएगी।

मध्य प्रदेश से होगा परिवहन का काम शुरू

टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एनसीसीएफ के माध्यम से मध्य प्रदेश में टमाटर के लिए एमआईएस के परिवहन घटक के कार्यान्वयन को मंजूरी दे दी है। एनसीसीएफ जल्द ही मध्य प्रदेश से परिवहन कार्य शुरू करने की तैयारी कर रहा है। बता दें कि इससे पहले मध्य प्रदेश से दिल्ली तक 1000 मीट्रिक टन तक खरीफ टमाटर के परिवहन के लिए लागत की प्रतिपूर्ति के लिए एनसीसीएफ को मंजूरी दे दी गई थी।

किसान इस तरह मोबाइल से चेक करें प्रमाणित बीज से जुड़ी सभी जानकारी

देश में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा किसानों को उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा किसानों तक यह बीज पहुंचाए जा सके इसके लिए सरकार द्वारा बीज उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है साथ ही किसानों को भी उनके द्वारा खरीदे गए बीज के संबंध में पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। किसान प्रमाणित बीजों की पूरी जानकारी जैसे उसका उत्पादन कहाँ और किसने किया है, किस्म, पैकिंग साइज, अंकुरण आदि जानकारी भी मोबाइल पर उपलब्ध कराई जा रही है।

मध्य प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री एदल सिंह कंषाना ने जानकारी देते हुए बताया कि बीजों के प्रमाणीकरण को लेकर बीज प्रमाणीकरण संस्था का गठन भारत सरकार द्वारा अधिसूचित बीज अधिनियम 1966 की धारा 8 के अन्तर्गत किया गया है। संस्था का मुख्य कार्य निर्धारित मानक के अनुरूप गुणवत्ता के बीजों का प्रमाणीकरण करना है। प्रमाणित बीजों से फसलों की उत्पादकता बढ़ाई जा रही है।

किसान इस तरह देखें प्रमाणित बीज की सभी जानकारी

किसानों को प्रमाणित बीजों से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए बीज प्रमाणीकरण संस्था के टैग पर 2डी क्यूआर कोड लगाया जाता है। किसान इस टैग को अपने किसी भी एन्ड्रॉयड फोन से स्कैन कर सकते हैं। स्कैन करने पर प्रमाणित बीज लॉट के लिए जारी प्रमाण-पत्र खुल जायेगा। इसमें बीज लॉट की समस्त जानकारी उपलब्ध रहती है। इसमें किसान फसल, किस्म लॉट क्रमांक, टैगों की सीरीज, कुल कितने टैग जारी किये गये, पैकिंग साइज, पैकिंग मात्रा, बीज परीक्षण परिणाम, अंकुरण, भौतिक शुद्धता, अन्य फसलों, अन्य पहचान योग्य बीज, खरपतवार, नमी, किस कृषक एवं संस्था द्वारा बीज का उत्पादन किया गया है और किस सहायक बीज प्रमाणीकरण अधिकारी द्वारा पैकिंग एवं टैगिंग की गई, समस्त जानकारी स्कैन के माध्यम से देख सकते हैं।

इसके अलावा किसान केंद्र सरकार द्वारा तैयार किये गये साथी पोर्टल पर बीजोत्पादन कार्यक्रम और बीज का ट्रेसेबिलिटी ऑथेन्टिकेशन की जानकारी ली जा सकती है। किसान यह जानकारी साथी पोर्टल की वेबसाइट seedtrace.gov.in पर देख सकते हैं।

सरकार ने इस योजना में किए कई बड़े परिवर्तन, अब किसानों को प्रमाणित बीजों पर मिलेगी ज्यादा सब्सिडी

फसल उत्पादन में अच्छे बीजों का होना बहुत ही आवश्यक है, जिसके चलते सरकार द्वारा किसानों को अनुदान पर उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज अनुदान पर दिए जाते हैं। इसके लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं भी चलाई जा रही है। इस कड़ी में केंद्र सरकार ने किसानों के हित में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एवं पोषण मिशन के दिशा-निर्देशों में बड़े बदलाव करने की स्वीकृति प्रदान की है। यह स्वीकृति केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण शिवराज सिंह चौहान ने 11 फरवरी के दिन कृषि विभाग की एक महत्वपूर्ण बैठक में दी।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के घटकों में किसानों के हित में कई परिवर्तन किए गए हैं। मिशन के दिशा-निर्देशों में संशोधन करते हुए किसानों और बीज उत्पादकों के लिए सब्सिडी बढ़ाई गई है। मिशन के तहत, पारंपरिक-देशी बीज किस्मों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रावधान किया गया है, वहीं, पंचायत स्तर पर बीज प्रसंस्करण व भंडारण इकाई स्थापित करने की भी मंजूरी दी गई है। कृषि मंत्री ने समीक्षा बैठक में अफसरों को निर्देश दिए कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए ताकि किसानों का भला हो।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन का उद्देश्य

सरकार के द्वारा योजना में किए गए परिवर्तन के बाद अब बीज और रोपण सामग्री उप मिशन सहित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और पोषण मिशन (NFSNM) अब कृषि संवर्धन योजना का एक घटक होगा। इस मिशन के निम्न उद्देश हैं:-

  • इस मिशन का उद्देश्य देश के चिन्हित जिलों में सतत् तरीके से क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से चावल, गेहूं, दलहन, मोटे अनाज (मक्का व जौ) व पोषक अनाज (श्री अन्न) का उत्पादन बढ़ाना है।
  • व्यक्तिगत खेत स्तर पर मिट्टी की उर्वरता व उत्पादकता बहाल करना।
  • किसानों में विश्वास बहाल करने के लिए कृषि स्तरीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाना तथा कुशल बाजार संपर्कों के माध्यम से किसानों को बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिए खेत पर फसलोपरांत मूल्य संवर्धन को बढ़ाना और बीज प्रतिस्थापन दर और किस्म प्रतिस्थापन दर को बढ़ाना एवं देश के बीज क्षेत्र के लिए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर ढांचे में सुधार करना।

बीजों पर सब्सिडी बढ़ाने को दी गई मंजूरी

समीक्षा बैठक में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई प्रजातियों के प्रदर्शन, प्रमाणित बीज उत्पादन एवं प्रमाणित बीज वितरण के घटकों में किसानों के लिए सब्सिडी बढ़ाने की मंजूरी दी है। इसके साथ ही  जलवायु अनुकूल, बायो-फोर्टिफाइड और उच्च उपज देने वाली किस्मों के उत्पादन को प्राथमिकता दी जाएगी। मिशन के सभी प्रावधानों पर डिजिटली मानीटरिंग की जाएगी। कृषि मैपर और साथी पोर्टल की सहायता भी इसमें ली जाएगी। कृषि मंत्री ने कहा कि स्कीम का फायदा किसानों को पूरी तरह से मिलना सुनिश्चित किया जाएं व स्कीम के केंद्र में किसान ही हों।

पारंपरिक किस्मों के उत्पादन को भी दिया जाएगा बढ़ावा

मिशन में नई उन्नत किस्मों से साथ ही पारंपरिक किस्मों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भी प्रावधान किए गए हैं। कृषि मंत्री ने कहा कि क्योंकि ये पारंपरिक किस्में फसल विकास, स्थानीय अनुकूलन, पोषण मूल्य व अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में रणनीतिक महत्व रखती हैं। पारंपरिक किस्मों की पहचान, सूचीकरण, उनके उत्पादन के मुख्य क्षेत्रों की पहचान, जियो टैगिंग, उनके उत्पादन में वृद्धि, उनके उत्पादों को लोकप्रिय बनाने और उनकी विपणन क्षमता बढ़ाने जैसे समग्र दृष्टिकोण के साथ पारंपरिक किस्मों को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। इसलिए, इस घटक में उनके बीज वितरण, उत्पादन, विभिन्न पहलुओं में क्षमता निर्माण व पीपीवीएफआरए व राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत ऐसी किस्मों के बीज बैंक के निर्माण/विकास पर सहायता/प्रोत्साहन का प्रावधान है।

ग्राम पंचायत स्तर पर किया जाएगा भंडारण

योजना के तहत किए गए संशोधन दिशा-निर्देशों में ग्राम पंचायत स्तर पर बीज प्रसंस्करण एवं भंडारण इकाई का प्रावधान भी किया गया है। इसके तहत ग्राम पंचायत स्तर पर बीज प्रसंस्करण एवं भंडारण इकाई को पुनर्जीवित करने की स्वीकृति भी दी गई है। ताकि देशभर के किसानों के आसपास के क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर बीज प्रसंस्करण, सफाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग व भंडारण कार्य किया जा सके।

गैर पारंपरिक तरीके से आलू बीज उत्पादन के लिए नए घटक के निर्देशों को भी केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने मंजूरी प्रदान की है, वहीं बीज उत्पादन, विधायन, प्रमाणीकरण एवं टेस्टिंग से जुड़ी विभिन्न सरकारी एजेंसियों को दी जाने वाली सहायता में भी वृद्धि की गई है, ताकि वे सशक्त होकर बेहतर कार्य कर सकें।

प्याज भंडारण के लिए गोदाम बनाने के लिए सरकार दे रही है इतना अनुदान

जब किसानों की प्याज की फसल खेतों से निकलकर बाजार में आती है तब प्याज के दामों में गिरावट आ जाती है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है। कई बार तो किसानों की फसलों की लागत भी नहीं निकल पाती है। ऐसे में किसानों को नुकसान से बचाने के लिए सरकार प्याज भंडारण के लिए छोटे गोदाम बनाने के लिए अनुदान दे रही है। जिसका लाभ लेकर किसान प्याज भंडारण बनाकर उसे उचित मूल्य मिलने पर बेच सकते हैं।

इस संबंध में लोकसभा में प्याज भंडारण के लिए गोदाम बनाने के लिए किसानों को दी जाने वाली सहायता को लेकर सवाल किया गया। जिसका जवाब देते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि सरकार द्वारा किसानों को प्याज भंडारगृह बनाने के लिए 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता है।

प्याज भंडारण के लिए गोदाम पर कितना अनुदान मिलता है

कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग देश में बागवानी के समग्र विकास के लिए समेकित बागवानी विकास मिशन (MIDH) का क्रियान्वयन किया जा रहा है। इस स्कीम के तहत किसानों को 25 मीट्रिक टन क्षमता वाले कम लागत वाले प्याज भंडारण स्ट्रक्चर के लिए प्रति इकाई लागत 1.75 लाख रुपये पर 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाता था। लेकिन महँगाई बढ़ने के साथ अब सरकार ने इकाई लागत की राशि को बढ़ा दिया है जिससे किसानों को अब अनुदान भी अधिक मिलता है।

पिछले 10 सालों के दौरान प्याज भंडारण बनाने के लिए आवश्यक विभिन्न घटकों की इनपुट लागत में वृद्धि को देखते हुए MIDH दिशा निर्देशों के साथ-साथ लागत मानदंडों को भी संशोधित किया गया है। जिसके तहत कम लागत वाले प्याज भंडारण की लागत को 25 मीट्रिक टन की अधिकतम क्षमता के लिए 10,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक बढ़ा दिया गया है। जिसमें पात्र परियोजना लागत के 50 प्रतिशत की दर से सब्सिडी प्रदान की जाती है। इसके अलावा देश में प्याज भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए उच्च क्षमता अर्थात 1,000 मीट्रिक टन की अधिकतम क्षमता के साथ कम लागत वाले प्याज भंडारण को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक प्रावधान किए गए हैं।

अन्य फसलों को नुकसान से बचाने के लिए भी चलाई जा रही है योजनाएँ

केंद्रीय कृषि मंत्री ने अपने जवाब में बताया कि MIDH स्कीम के अंतर्गत सभी जल्दी खराब होने वाली बागवानी फसलों को शामिल किया गया है। इसके अलावा उद्योग मंत्रालय प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के एक घटक के रूप में समेकित शीत शृंखला, मूल्य संवर्धन और संरक्षण अवसंरचना स्कीम को भी कार्यान्वित कर रहा है, जिसका उद्देश्य बागवानी और गैर-बागवानी उत्पादों के फसलोपरांत नुकसान को कम करना और किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य प्रदान करना है।

इसके अलावा बागवानी सहित शीघ्र खराब होने वाली फसलों के विकास के लिए गतिविधियां, अन्य विभिन्न स्कीमों जैसे राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) आदि के तहत की जा सकती है।

खुशखबरी: इस बार किसानों के लिए 2600 रुपये प्रति क्विंटल होगा गेहूं का MSP, मुख्यमंत्री ने की घोषणा

गेहूं की खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा करते हुए कहा कि इस बार गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि की MSP 2600 रूपए प्रति क्विंटल होगा और अगले बार इसे बढ़ाकर 2700 रुपये प्रति क्विंटल किया जाएगा। यह बात मुख्यमंत्री ने 10 फरवरी के दिन किसानों को मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत एक कार्यक्रम में कहीं।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने राज्य के 81 लाख किसानों के बैंक खातों में 1624 करोड़ रुपए की राशि सिंगल क्लिक से अंतरित की। किसानों को यह राशि मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अंतर्गत जारी की गई है। इस योजना के तहत किसानों को अब तक 11 किस्तें दी जा चुकी है।

क्या है गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य

इस वर्ष 2025-26 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूँ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2425 रुपए निर्धारित किया है, जो पिछले साल से 150 रुपये अधिक है। मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद यह साफ़ नहीं है कि इस वर्ष एमपी के किसानों को गेहूँ की खरीद पर बोनस दिया जाएगा या अगले साल के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल किया जाएगा। यदि मध्य प्रदेश सरकार इस वर्ष किसानों से 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर गेहूं की खरीद करती है तो इसके लिए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि की MSP पर 175 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बोनस देना होगा। जिससे किसानों को काफी फायदा मिलेगा।

बता दें की अभी मध्य प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी के लिए पंजीयन का कार्य किया जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 6 फरवरी तक राज्य के 62 हजार 77 किसानों ने एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए पंजीयन करवाया है। यदि सरकार इस सीजन में गेहूं की ख़रीदी 2600 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से करती है तो उन किसानों को ही इसका लाभ मिलेगा जो एमएसपी पर गेहूं बेचने के लिए पंजीकृत होंगे।

सिंचाई के लिए हर खेत में पहुँचाया जाएगा पानी

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि हमारी सरकार किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी और बिजली उपलब्ध करा रही है। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी बाजपेयी ने 20 वर्ष पहले जो नदी जोड़ो का सपना देखा था आज वह प्रदेश में पूरा हो रहा है। प्रधानमंत्री ने हमें केन-बेतवा लिंक योजना के लिए 1 लाख करोड़ रुपए दिए हैं। इस योजना से पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र की तस्वीर बदल जाएगी। एक अन्य 70 हजार करोड़ रुपए की पार्वती-कालीसिंध-चंबल योजना पर भी कार्य शुरू हुआ है। प्रदेश के प्रत्येक गांव, एक-एक खेत तक पानी पहुंचाया जाएगा। इस बार किसानों के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य होगा 2600 रूपए होगा। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार का उद्देश्य हर हाथ को काम और हर खेत को पानी देना है।

सभी किसानों को दिए जाएंगे सॉइल हेल्थ कार्ड, सरकार ने शुरू किया हर खेत-स्वस्थ खेत अभियान

किसान उनके खेत की मिट्टी की सेहत को जानकर उसके अनुसार विभिन्न फसलों की खेती कर उन्हें सही मात्रा में पोषक तत्व प्रदान कर उत्पादन बढ़ा सकें इसके लिए मिट्टी की जांच की जाती है। जिसके बाद किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड दिया जाता है। इस कड़ी में हरियाणा सरकार आने वाले सालों में सभी किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड देने जा रही है। इस संबंध में राज्य के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने कहा कि हर खेत-स्वस्थ खेत अभियान के अन्तर्गत आगामी तीन-चार वर्षों में राज्य के प्रत्येक एकड़ के मृदा नमूने एकत्रित करके सभी किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड दिए जाएंगे।

86 लाख सॉइल हेल्थ कार्ड किए जा चुके हैं वितरित

कृषि मंत्री ने जानकारी देते हुए बताया कि हर खेत-स्वस्थ खेत अभियान के तहत अब तक लगभग 70 लाख मृदा नमूने एकत्रित किए जा चुके हैं तथा 55 लाख नमूनों का विश्लेषण करने बाद सॉइल हैल्थ कार्ड वितरित किए चुके हैं, शेष नमूनों का कार्य प्रगति पर है। उन्होंने जानकारी दी कि वर्ष 2022 में सॉयल हैल्थ कार्ड प्रोजेक्ट के लिए स्कॉच ग्रुप द्वारा विभाग को स्वर्ण पदक भी मिल चुका है। सॉयल हैल्थ कार्ड योजना के तहत 86.65 लाख सॉयल हैल्थ कार्ड वितरित किए गए हैं।

राज्य में स्थापित की जा रही है नई प्रयोगशालाएं

कृषि मंत्री ने बताया कि राज्य में 17 नई स्थायी मृदा एवं जल परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। विभिन्न मंडियों में 54 नई लघु मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं भी खोली जा चुकी हैं। इसके अलावा, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों तथा राजकीय महाविद्यालयों में 240 लघु मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की जा चुकी हैं। इनमें विज्ञान संकाय के विद्यार्थियों द्वारा मिट्टी के नमूने एकत्रित कर उनका परीक्षण किया जाता है। इस योजना के तहत मृदा जांच हेतु विभाग द्वारा 26 मई, 2022 को ‘हर खेत-स्वस्थ खेत’ का पोर्टल लॉन्च किया गया है।

उन्होंने बताया कि कि फलों, सब्जियों, मिट्टी और पानी में कीटनाशक अवशेषों की निगरानी के लिए सिरसा और करनाल में प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। वर्ष 2023-24 मे कुल 3640 नमूनों के विश्लेषण किए गए हैं। राज्य सरकार का प्रयास है कि किसानों की भूमि का परीक्षण करके उनको खेती के लिए सही मार्गदर्शन किया जाए।

ज्यादा से ज्यादा किसानों को दिया जाए कृषि विभाग की योजनाओं का लाभ: शासन सचिव

देश में किसानों के हित में केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही है, इनके लिए बजट में घोषणा की जाती है। जिसका लाभ किसानों को वित्त वर्ष ख़त्म होने से पहले किसानों तक पहुंचाना जरूरी रहता है ताकि लक्ष्यों को पूरा किया जा सके। इस कड़ी में राजस्थान के शासन सचिव कृषि एवं उद्यानिकी राजन विशाल ने विभागीय योजनाओं की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को निर्देशित किया कि कृषि विभाग की योजनाओं का समय पर प्रत्येक किसान को लाभ पहुंचाया जाये।

शासन सचिव ने कृषि विभाग की योजनाओं की समीक्षा करते हुए कहा कि बजट घोषणाओं को ध्यान में रखते हुए अधिकारी फरवरी के अन्तिम सप्ताह तक योजनाओं को शत-प्रतिशत पूरा करें। अधिकारी फिल्ड में रहकर ज्यादा से ज्यादा किसानों को योजनाओं की जानकारी दें, जिससे ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक किसान को राज्य सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।

कस्टम हायरिंग सेन्टरों को किया जाये ऑनलाइन

बैठक में शासन सचिव ने अधिकारियों कस्टम हायरिंग सेन्टरों का लगातार निरीक्षण करने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि निरीक्षण के दौरान सुनिश्चित करे कि इन सेन्टरों से कृषि यंत्र सभी जरूरतमंद किसानों को समय पर और मार्केट रेट से कम दरो पर दिये जा रहे है। उन्होंने सभी कस्टम हायरिंग सेन्टरों को शत-प्रतिशत राज किसान पोर्टल पर ऑन-लाईन करने के निर्देश दिये। जिससे किसान अपनी बुआई के लिए कृषि यंत्रों की इस ऐप पर ऑन-लाईन बुकिंग कर सकें।

योजनाओं में आ रही समस्याओं का किया जाए निस्तारण

शासन सचिव ने बैठक में फार्म पौण्ड, डिग्गी, सिंचाई पाइप लाइन, कृषि यंत्र, तारबंदी, गोवर्धन जैविक उर्वरक योजना, वर्मी कम्पोस्ट इकाई, कस्टम हायरिंग सेन्टर सहित विभिन्न गतिविधियों की प्रगति की समीक्षा की। उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित किया कि योजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं का निस्तारण कर उन्हें समय पर पूरा करें। समीक्षा बैठक में कृषि विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।

किसानों को अब कम दामों पर नहीं बेचना पड़ेगा टमाटर, आलू और प्याज; सरकार ने उठाया यह कदम

सरकार ने किसानों के हित में बड़ा फैसला लेते हुए बाजार हस्तक्षेप योजना यानि की एमआईएस योजना में संशोधन किया है। बाजार हस्तक्षेप योजना, पीएम-आशा योजना का एक घटक है जिसके तहत राज्य सरकार के अनुरोध पर विभिन्न जल्दी खराब होने वाली फसलों जैसे आलू, प्याज और टमाटर आदि फसलों की खरीद के लिए लागू किया गया है। इन फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि की एमएसपी लागू नहीं होता है। यह योजना तब लागू की जाएगी जब इन फसलों के दाम पिछले वर्ष की तुलना में 10 प्रतिशत से कम हो ताकि किसानों को अपनी उपज को मजबूरी में बेचने के लिए बाध्य न होना पड़े।

बाजार हस्तक्षेप योजन के क्रियान्वयन के लिए अधिक राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने एमआईएस के दिशानिर्दशों को निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधित किया है।

  • एमआईएस योजना को अब पीएम-आशा की व्यापक योजना का एक घटक बनाया गया है।
  • पिछले सामान्य वर्ष की तुलना में प्रचलित बाजार मूल्य में न्यूनतम 10 प्रतिशत की कमी होने पर ही एमआईएस लागू की जाएगी।
  • फसलों की उत्पादन मात्रा की खरीद/कवरेज सीमा को मौजूदा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • योजना में अब राज्य के पास भौतिक खरीद के स्थान पर सीधे किसानों के बैंक खाते में बाजार हस्तक्षेप मूल्य (एमआईपी) और बिक्री मूल्य के बीच अंतर भुगतान करने का विकल्प भी दिया गया है।

फसलों के परिवहन में आने वाले खर्च का वहन करेगी सरकार

इसके अलावा जहां उत्पादन और उपभोक्ता के बीच टॉप फसलों जैसे टमाटर, आलू और प्याज की कीमत में अंतर होगा वहां किसानों के हित में NAFED और NCCF जैसी केंद्रीय नोडल एजेंसियों (CNA) द्वारा उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली परिचालन लागत की प्रतिपूर्ति की जाएगी। इसमें मध्य प्रदेश से दिल्ली तक 1000 मीट्रिक टन तक खरीफ टमाटर के परिवहन के लिए लागत की प्रतिपूर्ति के लिए एनसीसीएफ को मंजूरी दे दी गई है।

एमआईएस के तहत शीर्ष फसलों की ख़रीद करने और कार्यान्वयन करने वाले राज्य के साथ समन्वय में, उत्पादक राज्य और उपभोक्ता राज्य के बीच मूल्य अंतर की स्थिति में उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक भंडारण और परिवहन की व्यवस्था करने के लिए NAFED और एनसीसीएफ के अलावा, किसानों उत्पादक संगठनों (FPO), किसान उत्पादक कंपनियों (FPC), राज्य द्वारा नामित एजेंसियों और अन्य केंद्रीय नोडल एजेंसियों को शामिल करने का प्रस्ताव किया जा रहा है।

81 लाख किसानों को जारी की गई 1624 करोड़ रुपये की राशि

देश में किसानों को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों के द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही है। इसमें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना प्रमुख है। पीएम किसान योजना के तहत भूमि धारक किसानों को सालाना 6 हजार रुपये की राशि दी जाती है। ठीक इसी तर्ज पर कई राज्य सरकारों के द्वारा भी किसानों के बैंक खाते में सीधे राशि दी जा रही है। इसमें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के किसानों को “मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 6000 हजार रुपये की राशि भी तीन किस्तों में दी जाती है। इस तरह एमपी के किसानों को सालाना 6 किस्तों में 12 हजार रुपये की राशि मिलती है।

इस कड़ी में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने देवास जिले के सोनकच्छ तहसील के ग्राम पीपलरावां से आज यानि 10 फ़रवरी के दिन लाड़ली बहना योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना और किसान कल्याण योजना के हितग्राही किसानों के बैंक खातों में राशि जारी कर दी है।

किसानों को जारी की गई 1624 करोड़ रुपये की राशि

मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में 1 करोड़ 27 लाख लाड़ली बहनों के खाते में 1553 करोड़ रूपए, 56 लाख सामाजिक सुरक्षा पेंशन हितग्राहियों के खाते में 337 करोड़ रूपए और 81 लाख किसानों के खाते में 1624 करोड़ रुपए सिंगल क्लिक से अंतरित किये। उन्होंने कार्यक्रम में 144.84 करोड़ रुपए लागत के 53 कार्यों का भूमि-पूजन एवं लोकार्पण भी किया।

क्या है मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना

मध्यप्रदेश सरकार मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना के तहत राज्य के पीएम किसान योजना के लाभार्थी किसानों को तीन समान किश्तों में 6 हजार रुपये की राशि सालाना देती है। जिससे राज्य के किसानों को सालाना कुल 12,000 हज़ार रुपये की राशि किसान कल्याण योजना और पीएम किसान योजना को मिलाकर प्राप्त होती है। वर्ष 2024-25 में योजना के लिए 4 हजार 900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। योजना के तहत आज किसानों को 11वीं किस्त जारी की गई है। जिससे योजना की शुरुआत से अब तक किसानों को लगभग 15,878 रुपए की राशि प्राप्त हुई है।

किसान फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए इस तरह आसानी से बनाये जीवामृत खाद, इस तरह करें छिड़काव

प्राकृतिक खेती फसलों के उत्पादन की एक प्राचीन पद्धति है। यह मिट्टी के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है। इसमें प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्वों और जीवाणुओं का उपयोग किया जाता है। यह पद्धति पर्यावरण के अनुकूल होती है तथा फसलों की लागत कम करने में भी कारगर है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक खादों जैसे यूरिया, डीएपी और एनपीके जैसे उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता, इसमें इनकी जगह जीवामृत (जीव अमृत), घनजीवामृत एवं बीजामृत का उपयोग पौधों को पोषक तत्व देने के लिए किया जाता है। इनका उपयोग किसान फसलों पर घोल के छिड़काव अथवा सिंचाई के पानी के साथ कर सकते हैं।

जीवामृत क्या होता है?

इसमें जीवामृत एक प्राकृतिक खेती में उपयोग की जाने वाली प्रभावशाली खाद है। इसे गोबर के साथ पानी में कई पदार्थों जैसे गौमूत्र, गुड़, दाल का आटा आदि से मिलाकर तैयार किया जाता है। जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ मृदा की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है। यह पौधों की विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षा का काम भी करता है। पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है। इससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल की बहुत ही अच्छी पैदावार भी मिलती है।

जीवामृत मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ावा देकर बायोस्टिमुलेंट के रूप में काम करता है और जब इसका स्प्रे किया जाता है तो फ़ाइलोस्फोरिक सूक्ष्मजीवों की गतिविधि भी होती है। यह माइक्रोबियल गतिविधि के लिए प्राइमर की तरह काम करता है और देसी केंचुओं की आबादी को भी बढ़ाता है।

दरअसल जीवामृत एक सूक्ष्म जीवाणुओं का विशाल भंडारण है और ये सारे सूक्ष्म जीवाणु जो पोषक तत्व प्रयोग में लाने योग्य नहीं होते उनको प्रयोग में लाने योग्य बना देते हैं। दूसरे शब्दों में ये सूक्ष्म जीवाणु भोजन बनाने का कार्य करते हैं इसलिए हम इन्हें पेड़-पौधों का भोजन निर्माणकर्ता भी कह सकते हैं। देसी गाय के एक ग्राम गोबर में असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। जब जीवामृत तैयार करते हैं तो हम लगभग लाखों करोड़ों जीवाणु उसमें डाल देते हैं। ये जीवाणु धीरे-धीरे अपनी संख्या को दोगुनी कर लेते हैं और 72 घंटे के बाद इनकी संख्या असंख्य हो जाती है। इस जीवामृत को जब हम पानी के साथ मिट्टी में डालते हैं तो यह पेड़ पौधों को भोजन देने, पकाने एवं तैयार करने में जुट जाता है।

तरल जीवामृत बनाने के लिए सामग्री

  • प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर)
  • 180 से 200 लीटर पानी,
  • 10 किलोग्राम देसी गाय का गोबर,
  • 10 लीटर पुराना गौमूत्र,
  • एक किलोग्राम गुड़ या 4 लीटर गन्ने का रस (जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिए),
  • एक किलोग्राम बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी,
  • एक किलोग्राम दाल का आटा,
  • एक ढकने का कपड़ा।

किसान कैसे बनाएं तरल जीवामृत

तरल जीवामृत बनाने के लिए किसान पहले एक प्लास्टिक के ड्रम को छाया में रख दें। इसके बाद इसमें 10 किलोग्राम देसी गाय के ताजे गोबर, 10 लीटर पुराना गौमूत्र, एक किलोग्राम किसी भी दाल का आटा (अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि), एक किलोग्राम बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी तथा एक किलोग्राम पुराने सड़े हुए गुड़ को 180 से 200 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाए। अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से ढक दें। किसान इस बात का ध्यान रखें की घोल पर सीधी धूप ना पड़े। अगले दिन भी इस घोल को फिर से लकड़ी की सहायता से दिन में दो तीन बार हिलाएँ। इस क्रिया को लगभग 5-6 दिन तक प्रतिदिन करें। लगभग 6 -7 दिनों के बाद जब घोल में बुलबुले उठना कम हो जाए तब समझ लेना जीवामृत तैयार हो गया है।

जीवामृत तैयार होने में लगने वाला समय बाहरी तापमान पर निर्भर करात है। जहाँ सर्दियों में जीवामृत तैयार होने में समय ज्यादा लगता है वहीं गर्मी के दिनों में यह 2 दिन पहले ही तैयार हो जाता है। यह 200 लीटर जीवामृत एक एकड़ भूमि के लिए सिंचाई के साथ देने के लिए पर्याप्त है।

जीवामृत का उपयोग फसलों में कैसे करें?

ड्रम में तैयार किए गए इस जीवामृत का उपयोग किसानों को प्रत्येक पखवाड़े में करना चाहिए। किसान इसे या तो सीधे फसलों पर छिड़काव कर सकते हैं या सिंचाई के पानी में मिलाकर पौधों को दे सकते हैं। फलदार पौधों के मामले में इसे अलग-अलग पौधों पर लगाया जाना चाहिए। किसान जीवामृत को 15 दिनों तक भंडारित करके रख सकते हैं।

फसल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग किसान प्रति एकड़ की दर से कर सकते हैं। अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर टपक या छिड़काव सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग किया जा सकता है। 10 से 20 लाइट तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर इसका छिड़काव फसलों पर करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।