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शुक्रवार, अप्रैल 26, 2024
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किसान इस तरह करें गेहूं की फसल में पीला रतुआ या पट्टी रोली या पीली रोली रोग का नियंत्रण

गेहूं में पीली रोली या पीला रतुआ रोग का नियंत्रण

गेहूं की फसल में बुआई से लेकर कटाई तक कई तरह कीट एवं रोग लगते हैं, जिससे किसानों की फसलों को नुकसान होता है और उत्पादन में गिरावट आती है। ऐसे में किसानों को होने वाली इस आर्थिक हानि को कम किया जा सके इसके लिए कृषि विभाग द्वारा समय-समय पर कीट-रोगों के नियंत्रण के लिए सलाह जारी की जाती है। इस कड़ी में अभी गेहूं की फसल में पीला रतुआ या पीली पट्टी या पीली रोली रोग लगने की संभावना को देखते हुए राजस्थान कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए सलाह जारी की गई है।

कृषि विभाग श्री गंगानगर की ओर से जारी सलाह में बताया गया है कि गेंहू में इस समय पीली रोली रोग का प्रकोप होने की सम्भावना रहती है। इस रोग का प्रकोप अधिक होने से उपज में भारी गिरावट होती है। अतः इसके बचाव हेतु किसान भाई गेंहू फसल का नियमित रूप से निरीक्षण कर इस रोग के लक्षणों की पहचान कर इसका उपचार करें ताकि फसल का उत्पादन प्रभावित न हो।  

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गेहूं की फसल में पीला रतुआ या पीली रोली रोग की पहचान कैसे करें?

पीला रतुआ उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र और उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्र का मुख्य रोग है। रोग का प्रकोप होने पर पत्तियों का रंग फीका पड़ जाता है व उन पर बहुत छोटे पीले बिन्दु नुमा फफोले उभरते है पूरी पत्ती रंग के पाउडरनुमा बिंदुओं से ढक जाती है। पत्तियों पर पीले से नारंगी रंग की धारियों आमतौर पर नसों के बीच के रूप में दिखाई देती है। संक्रमित पत्तियों का छूने पर उँगलियों और कपड़ों पर पीला पाउडर या धूल लग जाती है। पहले यह रोग खेत में 10-15 पौधे पर एक गोल दायरे के रूप में हो कर बाद में पूरे खेत में फैलता है। ठंडा और आद्र मौसम परिस्थिति, जैसे 6 डिग्री से 18 डिग्री सेल्सीयस तापमान, वर्षा, उच्च आद्रता, ओस, कोहरा आदि होने से यह रोग फसल में तेजी से फैलता है।

इस तरह करें पीला रतुआ या पीली रोली रोग का नियंत्रण

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. जीआर मटोरिया ने बताया कि खेत मे जल जमाव न होने पर नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के अधिक प्रयोग से बचने एवं विभागीय सिफारिश के अनुसार ही उर्वरक एवं कीटनाशक की मात्रा का उपयोग करने की सलाह दी है। किसान फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें एवं किसी भी लक्षण के संदेह में आने पर कृषि विभाग/कृषि विज्ञान केन्द्र/ कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क कर रोग कर पुष्टि करायें क्योंकि कभी-कभी पत्तियों का पीलापन रोग के अन्य कारण भी हो सकते है।

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रोग की पुष्टि होने पर रोग से ग्रसित पौधों के समूह को एकत्र करके नष्ट करें एवं बिना देरी किए संक्रमित क्षेत्र में विभागीय सिफारिश के अनुसार कवकनाशी दवाओं का छिड़काव करें। इन दवाओं का छिड़काव मौसम साफ रहने पर ही करें। किसान इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रभावित फसल में प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या टेबुकोनाजोल 25.9 ई.सी. का 1 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 200 लीटर घोल का प्रति एकड़ छिड़काव करें एवं आवश्यकता अनुसार 15 दिन के अन्तराल पर दुसरा छिड़काव करें।

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