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गुरूवार, मई 16, 2024
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क्या सरकार सच में किसानों को देने जा रही है फसल लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा

 फसल लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा देने के सरकार के दावे में कितनी सच्चाई  

जब 2 अक्तूबर गाँधी जयंती के दिन पर किसान आंदोलन दिल्ली पहुंचा तो ऐसा लगा की सत्य अहिंसा पर रहने वाले व्यक्ति के जन्मदिन पर किसानों को हिंसा का सामना करना पढ़ेगा, परन्तु थोड़ी हिंसा के बाद  किसान आंदोलन बिना किसी नतीजे पर स्वत: ही समाप्त हो गया | इसके कारणों का तो पाता नहीं चला की जो किसान दो दिन से दिल्ली में जमे हुये थे वे सभी लोग केवल किसान घाट पर जाकर ही क्यों रूक गए | क्या किसानों को किसान घाट पर जाना ही आज कृषि की समस्या है | अगर यही समस्या है तो फिर किसानों को रोज दिल्ली में किसान घाट जाना चाहिए | एसे तो किसानों की सभी मांग वही थी जो और किसान संगठन या किसान उठा रहे थे |

किसानों की मांग

उसमें से एक मांग तो यह थी की किसानों की फसल का मूल्य उसके लागत में 50 प्रतिशत अतरिक्त जोड़कर दिया जाए | ऐसे तो केंद्र सरकार की तरफ से वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने वर्ष 2018 – 19 के बजट पेश करते हुये यह दावा किया था की किसानों को रबी फसल का उसके लागत का 50 प्रतिशत अतरिक्त जोड़कर दिया जा रहा है | लेकिन किसानों के तरफ से उसी समय उस दावे को ख़ारिज कर दिया गया, जिसमें श्री अरुण जेटली ने दावा किया था | सरकार को भी यह बात समझते देर नहीं हुआ की किसानों को दी जाने वाली फसल मूल्य प्रधान मंत्री के द्वारा चुनावी सभा में किया गया वादा से कम है अर्थात स्वामीनाथन आयो  रिपोर्ट के अनुसर | इसे लेकर देश भर में किसानों के द्वारा लगातार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया जा रहा है |

अब सरकार के पास एक बड़ी मुश्किल यह है की किसानों को किस तरह बिना लागत का 50 प्रतिशत अतरिक्त दिए समझाया जा सके | इन बातों को ध्यान में रखते हुये देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की आमदनी दुगनी करने का नया जुमला रचा बसा गया | यह जुमला उसी तरह था जिस तरह किसानों के लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा देने का वादा, क्योंकि सरकार ने वर्ष 2022 तक जो आमदनी दुगना करने का वादा किया था उसका कोई रोड मैप (योजना) नहीं दिया गया है | सबसे हैरानी की बात यह है कि सरकार का कोई मंत्री या प्रवक्ता यह बताने को तैयार नहीं है की किसानों की मूजुदा औसत आमदनी कितनी है जो 2022 तक दोगुनी हो जायेगी | जब अभी की आमदनी ही नहीं पाता तो फिर कैसे कहा जा सकता है की वर्ष 2022 में किसानों की आमदनी दुगना होकर कितना हो जायेगा |

2 अक्टूबर को किसानों ने दिल्ली का घेराव किया तो एक साथ राज्य तथा केंद्र सरकार हरकत में आया | और किसानों को आश्वस्त किया की किसानों की मांग वाजिब है तथा सरकार इस मुद्दे का ध्यान में रखते हुये फसलों का मूल्य तय करेगी |

सरकार द्वारा 3 अक्टूबर को की गई प्रेस वार्ता

किसानों के आंदोलन के बाद 3 अक्टूबर को केंद्र सरकार के कैबनेट में कृषि पर लिए गए फैसले को लेकर कृषि मंत्री श्री राधा मोहन सिंह तथा कानून मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद मिडिया के सामने उपस्थित हुये | उस प्रेस कांफ्रेंस में सरकार के तरफ से यह बताने की कोशिश हो रही थी की सरकार ने किसानों की बात को मानते हुये उसके रबी फसल का मूल्य लागत से 50 प्रतिशत से कहीं ज्यादा मुनाफा दिया गया |

प्रेस को संबोधित करते हुये राधा मोहन सिंह ने बताना शुरू किया की किसानों को वर्ष 2018 – 19 के लिए रबी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य में कितना वृद्धि किया गया है तथा यह भी बताया जाने लगा की किसानों को उसकी लागत का कितना प्रतिशत अधिक दिया गया है | उसके बाद देश के कानून मंत्री तथा सरकार के तरफ से प्रत्येक मुद्दे पर मिडिया के सामने आने वाले मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा की जो बात राधा मोहन सिंह ने कहा है उसे वह विस्तार से रखेंगे | उन्होंने विस्तार से बताया की किसानों की विभिन्न फसलों की लागत कितनी है एवं सरकार ने किस तरह उसका मूल्य तय किया है और किस तरह सरकार द्वारा किसानों की मांग जो की लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा अधिक है किसानों को दिया जा रहा है रविशंकर प्रसाद बार – बार यह कह रहे थे की मोदी सरकार ने एक ऐतेहासिक  फैसला लिया है |

केंद्र सरकार के दावों पर नजर डालें तो बात कुछ और ही निकाल कर आ रही है | पहले तो यह समझना होगा की केंद्र सरकार से जो फसलों का मूल्य तय करती है उसकी प्रक्रिया क्या है और जो किसान मांग रहे है उसमें कितना अन्तर है | उसी प्रेस वार्ता में एक पत्रकार के सवाल के जवाब में राधा मोहन सिंह ने बताया की केंद्र सरकार ने किसानों के फसल का मूल्य इन सभी बातों को ध्यान में रखकर तय किया है |

इसमें अदा की गई समस्त लागत शामिल हैं जैसे कि मजदूरों पर खर्च की गई धनराशि, बैल/मशीन पर खर्च की गई रकम, पट्टे पर ली गई भूमि के लिए अदा की गई मालगुजारी, कच्चे माल जैसे बीजों, उर्वरकों, खाद पर खर्च की गई धनराशि, सिंचाई शुल्क, उपकरणों एवं कृषि भंडार का मूल्यह्रास, कार्यशील पूंजी पर दिया गया ब्याज, पम्पसेट इत्यादि चलाने के लिए डीजल/बिजली पर खर्च की गई राशि, विविध व्यय और पारिवारिक श्रम का निर्धारित मूल्य।“

तो बात आती है की किसानों की मांग क्या है एवं सरकार ने उन्हें क्या दिया यह जानने के लिए हमें  केंद्र सरकार की बेबसाइट commission for agricultural cost and prices (CACP) कृषि लागत एवं मूल्य आयोग जो फसलों का मूल्य निर्धारित करता है , पर देखा तो यह मालूम चला की केंद्र सरकार प्रेस वार्ता में गलत तथ्य रख कर किसानों को गुमराह कर रही है | क्योंकि जो फसलों की लागत बताई जा रही है वह CACP से नहीं मिलती |

रविशंकर प्रसाद यह दावा कर रहे थे की रबी फसल का मूल्य वर्ष 2018 – 19 के लिए –
  • गेहूं, जौ, चना, मसूर, रेपसीड एवं सरसों और कुसुम के लिए सरकार द्वारा तय की गई एमएसपी उत्पादन लागत के मुकाबले काफी अधिक है।
  • गेहूं की उत्पादन लागत 866 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 1840 रुपये प्रति क्विंटल है, जो उत्पादन लागत की तुलना में 112.5 प्रतिशत का रिटर्न देती है।
  • जौ की उत्पादन लागत 860 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 1440 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 67.4 प्रतिशत का रिटर्न देती है।
  • चने की उत्पादन लागत 2637 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 4620 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 75.2 प्रतिशत का रिटर्न सुनिश्चित करती है।
  • मसूर की उत्पादन लागत 2532 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 4475 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 76.7 प्रतिशत का रिटर्न देती है।
  • रेपसीड एवं सरसों की उत्पादन लागत 2212 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 4200 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 89.9 प्रतिशत का रिटर्न सुनिश्चित करती है।
  • कुसुम की उत्पादन लागत 3294 रुपये प्रति क्विंटल और एमएसपी 4945 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 50.1 प्रतिशत का रिटर्न देती है।

तय किया है | जब की CACP पर उसके द्वारा दिया गया मूल्य किसानों के लागत का 10 प्रतिशत भी नहीं है |

सरकारी दावों तथा CACP में कितना अंतर है –

फसल
उत्पादन लागत (रु./किव.)
सरकार के द्वारा दिया गया लागत तथा विपणन (रु./किव.)
A-2
A-2+FL
C-2
C-2+50%
C-2
विपणन
सरकार द्वारा दिया गया मुनाफा % में
 गेंहू642817125618848661840112
जौ522845119017858660144067
चना19772461352652892637462075.2
मसूर1845236637275590.52532447576.7
तोरियाँ/सरसों13542123308646292212420089.9
कुसुम2216312539795968.53294494550.1

 

इस चार्ट के माध्यम से साफ समझा जा सकता है की जो कृषि मंत्री वर्ष 2018 -19 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की घोषणा कर रहे थे तथा जिसे कानून मंत्री एतिहासिक कदम बता रहे थे वे झूठ ही नहीं बल्कि किसानों को अँधेरे में रखा जा रहा है | यहाँ पर इस बात पर विशेष जोर देने की बात है की सरकार द्वारा दिया गया लागत मूल्य कृषि लागत तथा मूल्य आयोग के द्वारा निर्धारित मूल्य से बहुत कम है | यानि वर्ष 2018 -19 में लागत मूल्य में भूमि का मूल्य नहीं जोड़ा गया है | इस बात का ध्यान देना भी जरुरी है की सरकार मानव श्रम, मशीनरी श्रम, उर्वरक, बीज कीटनाशक का मूल्य वर्ष 2010 – 11 के आधार पर जोड़ा गया है |

यहाँ इस बात को समझना जरुरी है की प्रत्येक वर्ष देश के सभी राज्य केंद्र सरकार को अपने राज्य के तरफ से सभी फसलों का एक मूल्य तय करके भेजते है | जो उस राज्य के लागत मूल्य को ध्यान में रखकर बनाया जाता है | सभी राज्य यह प्रस्ताव इस लिए भेजते हैं की केंद्र सरकार उसके द्वारा भेजे गये मूल्य को ध्यान में रखकर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करेगी | आप को यह जानकर हैरानी होगी की वर्ष 2018 – 19 में रबी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य देश के द्वारा भेजे गय मूल्य से बहुत कम है | जितना मूल्य केंद्र सरकार ने तय किया है उसमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्होंने किसी राज्य का प्रस्ताव नहीं माना है |

राज्यों द्वारा केंद्र सरकार को भेजे गए प्रस्ताव

वर्ष 2018 – 19 में विपणन के लिए 2017 – 18 की रबी फसलों के लिए राज्य सरकारों द्वारा सुझाए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य

राज्य
गेंहू
जौ
चना
मसूर
तोरियाँ/सरसों
कुसुम (सूर्यमुखी)
आंध्र प्रदेश65735583
असम2050450044804400
बिहार2292475544655570
झारखण्ड17004500440040004000
ओड़िसा17904400434540704070
पंजाब2180181341933960
राजस्थान1750165044003800
तमिलनाडु4400
तेलंगाना4867697454885398
पशिचिम बंगाल28005120

 

इस आकड़ें से समझ में आता है की केंद्र सरकार फसल का मूल्य तय करते समय राज्यों के प्रस्ताव को ध्यान में नहीं रखती है और नहीं इस बात का कोई फ़िक्र है की किसानों की आर्थिक स्थिति राज्यों में क्या चल रही है | इसके बाबजूद भी देश के दो कैबनेट मंत्री मिडिया के सामने झूठ को एतिहासिक निर्णय बता रहे हैं |

इस बात का भी ध्यान रखना होगा की सरकार के तरफ से दिया हुआ न्यनतम समर्थन मूल्य पर सभी राज्यों में खरीदी नहीं होती है और जिस राज्य में होती है उस राज्य में भी पूरी तरह से नहीं खरीदी जाती है | बिहार तथा उड़ीसा जैसे राज्य तो न्यनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी करती ही नहीं है | इसके बाबजूद भी केंद्र सरकार के पास मूल्य बढ़ाने का प्रस्ताव भेजती है | इसका क्या कारण है किसी को भी नहीं मालूम है |

पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल और सरकार का जबाब

राधामोहन सिंह ने कहा की 9 राज्यों से दलहन खरीदी का प्रस्ताव आया है जिसे मंजूरी दे दिया गया है | इसकी शुरुआत कर्नाटक से होगी | इसका मतलब यह हुआ की देश के केवल 9 राज्यों से ही दलहन की खरीदी होगा | बाकि राज्य भगवान भरोसे छोड़ दिया है | एक पत्रकार ने सवाल पूछा की अगर किसी राज्य में किसान की रबी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं हो रही है तो वह किसान कहाँ शिकायत करेगा | इसके जवाब में श्री राधामोहन सिंह ने बड़े चतुराई से सवाल का जवाब न देकर कुछ और बताने लगे |

एक और सवाल के जवाब में यह पूछा गया की देश के किसान का कृषि कर्ज माफ़ किया जायेगा | इस सवाल के जवाब में राधामोहन सिंह ने यह कहा की किसानों को स-शक्तिकरण  करने के लिए योजनाओं पर खर्च करता है | इस लिए कृषि कर्ज माफ़ नहीं होगा | इन सभी सवालों के जवाब से यह साबित होता है की किसानों के द्वारा उठाये गय मुद्दे तथा मांग को सरकार ने दफना दिया है |

यह दोनों मंत्री बिहार से आते हैं तथा बिहार में ही किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रबी की खरीदी नहीं होती है | जब राधामोहन सिंह अपने लोकसभा के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिला सकते हैं तो दुसरे किसानों को कहाँ से दिला पाएंगे |

अंततः यह कहा जा सकता है कि किसानों को फसल लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा तो नहीं दिया जायेगा परन्तु पहले की आपेक्षा किसानों को फसलों के कुछ अधिक दाम तो मिलेगा पर यह लाभ कितने किसानों को मिलता है यह अभी भी संदेहास्पद है |

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