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शुक्रवार, मई 3, 2024
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विकसित की गई सुगंधित धान की पाँच उन्नत किस्में, उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार करेगी मदद

सुगंधित धान की उन्नत म्यूटेंट किस्में 

किसानों की आय बढ़ाने और धान का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार नई उन्नत किस्मों का विकास किया जा रहा है। अभी हाल ही में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भाभा अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई के सहयोग से सुगंधित धान की नवीन म्यूटेन्ट किस्में विकसित की गई हैं। इन किस्मों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने किसानों को इन किस्मों के बीज वितरित किए। साथ ही किसानों से आव्हान किया गया कि वे सुगंधित धान के उत्पादन के लिए आगे आएं, राज्य सरकार सुगंधित धान के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हरसंभव मदद करेगी।

यह हैं सुगंधित धान की नई विकसित उन्नत म्यूटेंट क़िस्में

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भाभा अटामिक रिसर्च सेन्टर, ट्राम्बे-मुम्बई के सहयोग से पाँच म्यूटेंट सुगंधित धान की किस्मों का विकास किया गया है। यह क़िस्में इस प्रकार हैं:- 

  1. ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेन्ट-1, 
  2. विक्रम टी.सी.आर., 
  3. छत्तीसगढ़ जवांफूल म्यूटेन्ट, 
  4. ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेन्ट, 
  5. ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी।

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सुगंधित धान की पांच नवीन म्यूटेन्ट किस्मों का वितरण प्रगतिशील किसानों को किया। कृषि उत्पादन आयुक्त ने किसानों से आव्हान किया कि वे सुगंधित धान के उत्पादन के लिए आगे आएं, राज्य सरकार सुगंधित धान के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हरसंभव मदद करेगी। उन्होंने छत्तीसगढ़ की परंपरागत सुगंधित धान की प्रजातियों की म्यूटेशन ब्रीडिंग के द्वारा नवीन उन्नत म्यूटेन्ट किस्में विकसित करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी।

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इन किस्मों के भी तैयार किए गए हैं म्यूटेंट बीज

परमाणु विकरण तकनीक के द्वारा प्रदेश की परंपरागत किस्मों- दुबराज, सफरी-17, विष्णुभोग, जवांफूल और सोनागाठी की नवीन म्यूटेन्ट किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जिनकी अवधि और ऊंचाई में उल्लेखनीय कमी तथा उपज में आशातीत वृद्धि दर्ज की गई है। जल्द ही धान की अन्य परंपरागत किस्मों के म्यूटेन्ट विकसित कर लिये जाएंगे। डॉ. चंदेल ने कहा कि अनुसंधान स्तर पर इन प्रजातियों के ट्रायल पूरे कर लिए गए हैं और अब इनके लोकव्यापीकरण हेतु किसानों के खेतों पर उत्पादन किया जा रहा है। परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ की 300 परंपरागत किस्मों पर म्यूटेशन ब्रीडिंग का कार्य चल रहा है।

इसलिए तैयार किए जा रहे हैं म्यूटेंट बीज

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में धान की हजारों परंपरागत किस्में पाई जाती है जो अपनी सुगंध, औषधीय गुणों तथा अन्य विशिष्ट गुणों के लिए मशहूर हैं। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा धान की ऐसी 23 हजार 250 परंपरागत किस्मों के जनन द्रव्य का संग्रहण किया गया है। 

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धान की परंपरागत सुगंधित किस्मों की दीर्घ अवधि, अधिक ऊंचाई तथा कम उपज की वजह से धीरे-धीरे किसानों ने इनकी खेती करना कम कर दिया है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय द्वारा भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के सहयोग से म्यूटेशन ब्रीडिंग के द्वारा सुगंधित धान की परंपरागत किस्मों की अवधि और ऊंचाई कम करने तथा उपज बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीछले 7 वर्षों से संचालित इस परियोजना के तहत उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं। 

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