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यहाँ शुरू हुई बच की खेती, किसानों को प्रति एकड़ मिलेगा एक लाख रुपए तक का मुनाफा

औषधीय फसल बच की खेती

सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए परंपरागत फसलों की खेती को छोड़ अन्य फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ में किसानों ने अब बच की खेती शुरू की है। इसकी खेती छत्तीसगढ़ में आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड की पहल पर शुरू की गई है। बता दें की बच एक औषधीय पौधा है जिसे छत्तीसगढ़ी में घोड़बंध या भूतनाशक के नाम से भी जाना जाता है। जिसका उपयोग त्वचा रोग, न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर, पेट संबंधी बिमारी एवं हृदय रोग संबंधी दवाई बनाने में किया जाता है।

कई रोगों में उपयोगी होने के कारण इसकी बाजार में बहुत अधिक माँग है, जिससे उपज कम समय में आसानी से बिक जाती है और किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। अभी प्रयोग के तौर पर बच की खेती छत्तीसगढ़ में 108 एकड़ में शुरू की गई है। जिससे प्रति एकड़ 80 हजार रुपए से 1 लाख रुपए तक आय की प्राप्ति किसानों को होगी।

बैंगलोर के टूंकूर गाँव में होती थी खेती

पहले बच की खेती के लिए बैंगलोर का एक गांव टूंकूर देश में प्रथम स्थान पर था। वहां इस औषधीय पौधे की व्यावसायिक खेती 3 से 4 हजार एकड़ में विस्तृत रूप से की जाती थी। लेकिन यहां बच के कृषि में किसानों की मजदूरी दर ज्यादा होने के साथ ही पानी की समस्या एवं अन्य समस्याओं के कारण बच की खेती सिमट कर मात्र 106 एकड़ में आ गई है। जिसको देखते हुए इसकी खेती अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे पेण्ड्रा जिले के गांव तथा खटोला, अनवरपुर, तुपकबोरा, मुरली और तेन्दुपारा के किसानों ने शुरू की है।

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किसानों को दिया गया है प्रशिक्षण

राज्य में बच की खेती शुरू करने के लिए छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। जिससे इन किसानों ने बच की खेती की विधि सीख ली है। प्राप्त जानकारी के अनुसार महासमुंद जिले के बागबाहरा, तेन्दुकोना क्षेत्र के ओमकारबंध के किसानों ने भी बच के कृषिकरण का कार्य प्रारंभ कर दिया है। अब तक लगभग छत्तीसगढ़ के 108 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में बच की खेती की जा रही हैं।

मुख्य कार्यपालन अधिकारी छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड श्री जे..सी.एस.राव ने जानकारी देते हुए बताया कि किसानों द्वारा सकारात्मक रूप से बच को अपनाया जा रहा है, क्योंकि बहुत ही कम लागत में बच की खेती से अधिक लाभ की संभावना है।

कब एवं कैसे की जाती है बच की खेती

Vach ka paudha

बच को धान की फसल के समान ही वानिकी खेती के रूप में किया जाता है। इसकी खेती वर्ष में एक बार ही की जा सकती है। इसकी बुआई धान की फसल के समान ही जुलाई से सितंबर महीने तक की जाती है। एक एकड़ में रोपण हेतु 25 से 30 हजार पौधे की आवश्यकता होती है। इसकी फसल 8 से 9 महीने में तैयार हो जाती है। वहीं फसल की कटाई अप्रैल से जून माह के मध्य तक की जाती है। एक एकड़ से लगभग 1 से 3 टन तक उपज का उत्पादन किया जा सकता है।

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सरकार किसानों को मुफ्त में देती है पौधे

बच की खेती करने के लिए बच के पौधे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औषधि पादप बोर्ड के माध्यम से किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। प्रथम वर्ष में आवश्यकतानुसार 10 से 15 प्रतिशत पौधों को छोड़ दिया जाता है, जो कि 40 दिन में फिर से पौधा तैयार हो जाता है, जिसे रोपण सामग्री नर्सरी के रूप में अगले वर्ष रोपण के लिए उपयोग किया जाता है। शेष का संग्राहण कर लिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधों की उपलब्धता बनी रहती है।

बच की खेती से होने वाली आय एवं उसका प्रसंस्करण

Vach ki lakdi
बच से तैयार उत्पाद

बच के प्रसंस्करण के लिए इसके प्रकंद को 3 से 4 इंच के टुकड़ों में काटकर आंशिक छाया क्षेत्र में सूखा लिया जाता है। जिसके बाद मशीन से इसकी पॉलिशिंग कराई जाती है, जिसके बाद उत्पाद बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है। इसके लिए औषधि पादप बोर्ड द्वारा मार्केटिंग हेतु सुविधा भी किसानों को दी जा रही है, जिससे किसानों को 15 दिनों में ही उपज का पैसा प्राप्त हो जाता है।

बच की खेती से एक एकड़ से लगभग 1 से 3 टन तक उपज का उत्पादन होता है। बच की वर्तमान बाजार कीमत 50 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है। इस हिसाब से किसानों को एक एकड़ में 1 लाख से भी अधिक आय प्राप्त होती है।

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