देश में विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें इसके लिए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को कपास का उत्पादन बढ़ाने, उन्नत किस्म के बीजों एवं तकनीकी जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए।
प्रशिक्षण शिविर में अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा ने किसानों को बताया कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप खेतों में रखी हुई लकड़ियों छटियों (बन सठियों) के अवशेष पड़े रहने के कारण फैलता है। इसलिए फसल कटाई के बाद उनका प्रबंधन किया जाना जरुरी है। सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सह-निदेशक प्रशिक्षण डॉ. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं।
किसान इस तरह बढ़ायें कपास का उत्पादन
प्रशिक्षण शिविर में कपास अनुभाग के प्रभारी डॉ. करमल सिंह ने प्रदेश में कपास उत्पादन के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि बीटी नरमा के लिए शुद्ध नाइट्रोजन, शुद्ध फास्फोरस, शुद्ध पोटाश एवं जिंक सल्फेट क्रमशः 70:24:24:10 किलोग्राम प्रति एकड़ डालने की सिफारिश की जाती है। उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जाँच के आधार पर तय की जानी चाहिए। इसके अलावा पाँच से छः साल में एक बार 5 से 7 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए।
कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सोमवीर ने कपास की मुख्य विशेषताओं एवं किस्मों के बारे में किसानों को अवगत कराया। कीट वैज्ञानिक डॉ. अनिल जाखड़ ने कपास में लगने वाले कीट व उनके प्रबंधन के लिए किसानों को जानकारी दी। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण शिविर में किसानों को विश्वविद्यालय की तरफ से उत्पादक सामग्री भी प्रदान की गई।