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बुधवार, मई 1, 2024
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बाजार में 100 रुपये किलो तक बिक रही है गेहूं की यह किस्म, सरकार खेती के लिए दे रही है प्रोत्साहन

जलवायु परिवर्तन के इस दौर में किसान कम लागत में गेहूं की अच्छी पैदावार ले सकें इसके लिए सरकार किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील किस्मों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इस कड़ी में बिहार कृषि विभाग द्वारा गेहूं की पारंपरिक किस्मों जैसे- सोना-मोती, वंशी तथा टिपुआ किस्मों की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

गेहूं की सोना मोती किस्म अत्यन्त प्राचीन है, गेहूं की इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं साथ ही यह किस्म लगभग शुगर फ्री होती है जिसके चलते किसानों को बाजार में इसके अच्छे भाव मिल जाते हैं। बिहार सरकार ने रबी सीजन 2023-24 में गेहूं के इन पारंपरिक प्रभेदों के संरक्षण एवं बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य के सभी जिलों में सोना मोती, वंशी तथा टीपुआ प्रभेद के गेहूं की खेती को प्रोत्साहित किया गया है। साथ ही दो बीज गुणन प्रक्षेत्रों जिनमें बेगुसराय जिला के कुंभी (8 हेक्टेयर) तथा जिला के खिरियामा (6 हेक्टेयर) प्रक्षेत्र में सोना मोती प्रभेद का बीज उत्पादन किया गया।

सोना मोती किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति है सहनशील

बिहार कृषि विभाग के सचिव अग्रवाल ने कहा कि सोना मोती किस्म के गेहूं एक पारंपरिक प्रभेद है और ऐसा माना जाता है कि यह प्रभेद हड़प्पा काल से उगाया जाता है। इस गेहूं की किस्म का दाना गोल, सुडौल तथा चमकीला होने की वजह से मोती की दानों जैसा दिखता है। उन्होंने कहा कि यह प्रभेद रोग प्रतिरोधकता के लिए अधिक प्राकृतिक होती है। गेहूं की यह किस्में प्राकृतिक रूप से पोषण और स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।

क्या है गेहूं की इन किस्मों की खासियत

गेहूं की यह पारंपरिक किस्में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत होती है। पारंपरिक किस्में कम समय में पकती हैं और उच्च उत्पादकता देती हैं। ये किस्में जलवायु परिवर्तनों के प्रति सहनशील भी होती हैं। पारंपरिक किस्में अच्छी तरह से जल और पोषक तत्वों को तथा एक सामान्य औसत तापमान और मिट्टी की आवश्यकताओं को अच्छी तरह से संतुलित करती हैं। ये किस्में समय के साथ अपने पर्यावरण में अनुकूल हो गई हैं। पारंपरिक किस्में उच्च उत्पादकता के साथ भी प्राकृतिक तरीके से अपने क्षेत्र में संतुलन बनाये रखती हैं। इन किस्मों के उत्पादन में किसानों को कम खर्च और मेहनत की आवश्यकता होती हैं।

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ये किस्में स्थानीय वाणिज्य और खाद्य संस्थानों को स्थानीय लोगों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति करने में मदद करती हैं। इन किस्मों की बढती मांग के कारण उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। ये किस्में बिमारियों और कीटों के प्रति प्रतिरोधशील होती हैं। पारंपरिक किस्में जीवाणु और जैविक उपचारों के बिना संरक्षित रूप से उगाई जा सकती हैं।

पारंपरिक प्रभेद स्वास्थ्य के लिए हैं लाभदायक

पारंपरिक गेहूँ के किस्म में ग्लूटेन और ग्लाइसिमिक सूचकांक कम होने के कारण यह डायबिटीज और हृदय रोग पीड़ितों के लिए काफी लाभकारी है। साथ ही, इसमें अन्य अनाजों की तुलना में कई गुना ज्यादा फोलिक एसिड नामक तत्व की मात्रा है जो रक्तचाप और हृदय रोगियों के लिए रामबाण साबित होता है। आज के इस दौर में खान–पान में गड़बड़ी और रासायनिक खाद, बीज के चलते मधुमेह और हृदय रोग से लोग ग्रसित हो रहे हैं।

किसानों को बीज सहित दी गई खेती की जानकारी

कृषि विभाग द्वारा जैविक विधि से विलुप्त होने के कगार पर पारंपरिक गेहूं की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए रबी मौसम वर्ष 2023–24 में प्रत्येक जिले में दो-दो गांवों में शुरुआत की गई। जिसमें किसानों को बीज सहित खेती के लिए आवश्यक अन्य सामग्री उपलब्ध कराई गई। सीतामढ़ी जिला में आत्मा योजना के माध्यम से प्रत्येक प्रखंड में सोना-मोती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक–एक किसान पाठशाला के माध्यम से किसानों को जानकारी दी गई। जिसमें किसानों को उपादान के रूप में बीज के अलावा एन.पी.के. क्नसोटियाँ, बोरान, माइक्रोन्यूट्रीयन्ट वर्मी कम्पोस्ट, ट्राईकोडर्मा इत्यादी उपलब्ध कराया गया।

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किसानों को बीजोपचार से लेकर बुआई की जीरो टिलेज तकनीक के महत्व तथा समय–समय पर पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन तथा समेकित कीट प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण पहलुओं पर तकनीकी जानकारी प्रसार कर्मियों के माध्यम से उपलब्ध कराई गई।

किसानों को मिली बंपर पैदावार

अभी जबकि राज्य में गेहूं की कटाई जोरों पर चल रही है, ऐसे में गेहूं कटाई के प्रयोग से देखा गया है कि किसानों को इसकी बंपर पैदावार मिली है। जिसमें फसल जांच कटनी प्रयोग में सीतामढ़ी जिला के बथनाहा प्रखंड अंतर्गत ग्राम सोनमा में 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ है। तो वहीं सोना मोती प्रभेद का औसत उपज फसल जांच कटनी प्रयोग में औसतन 29 क्विंटल से लेकर 34 क्विंटल तक प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ है। जिन किसानों ने सोना-मोती प्रभेद का उत्पादन किया है, वह इस उत्पादन से प्रोत्साहित है तथा गेहूं की इस पारम्परिक प्रभेद के क्षेत्र विस्तार में सहयोग के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की है।

100 रुपये प्रति किलो तक मिल रही है गेहूं की क़ीमत

बिहार कृषि विभाग के मुताबिक़ सोना मोती गेहूं की बाजार में काफी मांग बढ़ रही है। स्वास्थ्यवर्द्धक होने के चलते बाजार में इस किस्म की कीमत 50 रूपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा रही है। ऑनलाइन प्लेटफाँर्म्स पर भी इसकी काफी डिमांड बढ़ रही है तथा जो लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हैं, वह इसका आटा खाना पसंद कर रहे हैं। जिसको देखते हुए इन पारंपरिक किस्मों की खेती अगले सीजन में व्यापक पैमाने पर की जाएगी।

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