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मंगलवार, मार्च 19, 2024
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क्या अबकी बार किसानों को मिलेगी कर्ज माफी एवं फसलों का उचित दाम

लोकसभा चुनाव 2019 में किसानों के गायब होते मुद्दे

जब पिछले वर्ष के अंतिम समय में पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव चल रहे थे तो केवल एक ही मुद्दा छाया हुआ था किसान को कर्ज से निकाला जाए और खेती को लाभकारी बनाया जाये | किसनों की संख्या को देखते हुये पांचों राज्यों के चुनाव का एजेंडे में किसान केंद्र बिंदु था | जहाँ किसानों को लेकर तेलंगाना सरकार ने प्रदेश के किसानों को 8,000 रुपया प्रति एकड़ देने का फैसला किया तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने कृषिं लोन माफ़ी को मुख्य मुद्दा बनाया | यह सभी मुद्दा एका – एक राजनितिक पार्टियों के द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि लम्बे समय से किसानों के संघर्ष का परिणाम था | लम्बे समय से संघर्ष के बाबजूद जो कुछ मिल रहा था किसान ने उसे कबूल किया और इसके साथ ही तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत हुई | इसमें से मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों के बाद कांग्रेस को सत्ता लौटी थी |

2019 में पार्टियों का रुख 

चुनाव के बाद ऐसा लगने लगा था की किसानों के अच्छे दिन आ गए |ऐसे तो किसानों के लिए वादे वर्ष 2014 के चुनाव में किये गए थे लेकिन किसानों को उस वादे का कोई ठोस लाभ होता हुआ नहीं दिख रहा था | किसानो के लम्बे संघर्ष के बाद विधान सभा चुनाव में दिखा था | किसानों के वादे पर जब किसानों ने पार्टियों को साथ दिया तो किसानों ने यह महसूस किया की अब सभी पार्टियाँ उनकी समस्याओं को ध्यान में रखेंगी |

वर्ष 2019 में जब 17 वें लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई तो देश में एक चर्चा होने लगी की इस बार का आम चुनाव किसानों पर होगा | लेकिन जैसे – जैसे चुनाव नजदीक आते गए सभी पार्टियों के चरित्र उजागर होते गये और फिर वही हुआ जो सभी पार्टियाँ चुनाव के बाद करती है यानि किसानों को मुद्दे को छोड़ देना | इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है की चुनाव के समय किसान अपना वोट किसनों के मुद्दे पर नही देता है |

इस बार के चुनाव में ध्यान दें तो देश की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी तथा भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों के अहम् मुद्दे को जगह देना भी मुनासिब नहीं समझा है | इन दोनों पार्टियों ने किसानों के सबसे बड़ी मांग को इस तरह ख़ारिज किया है जैसे किसान देश में कोई मुद्दा ही नहीं है |

क्या थी किसानों की प्रमुख मांगे ?

देश के किसान पिछले 5 वर्षों से मुख्यत: तीन मुद्दों पर संघर्ष कर रहे थे |

  1. किसनों के कृषि ऋण माफ किये जाएँ
  2. कृषि लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर फसल उत्पादन का मूल्य तय हो | जिसमें भूमि का एक वर्ष का किराया भी जोड़ा जाए |
  3. एम.एस. स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागु किया जाए|

यह तीनों मुद्दे किसानों के लिए अति महत्वपूर्ण है | किसानों के लोन माफ़ी तो वह मांग है जिससे किसानों को आत्महत्या से बचाया जा सकता है | बाकि दो वह मांग है जो किसनों को कभी भी कर्ज में नहीं आने देगी | यह सभी मुद्दें किसानों के द्वारा अलग – अलग मंचों पर उठाया जाता रहा है लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकला है |

चुनाव में किसानों को मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए सभी पार्टी के उम्मीदवार सभी मुद्दे पर बात कर रहें हैं लेकिन किसानों के मुद्दे पर बात करने को तैयार नहीं है | जिससे पुरे चुनाव में किसानों के मुद्दे रैलियों तथा भाषणों से गायब है |

अब क्या होगा ?

किसानों के सामने सबसे बड़ी दुविधा यह है की वह किसे वोट करे कौन सी सरकार बनाये जो उनकी मांगों को मान लें | यदि किसान क्षेत्रीय पार्टियों को चुनता है तो क्या वह क्षेत्रीय पार्टियाँ स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करवा पाएंगी ? या फिर किसान एक बार फिर ठगा जायेगा  जो भी हो किसान को अपने मुद्दों के लिए लगता है स्वयं ही संघर्ष करते रहना होगा |

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