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इस तरह सभी किसानों को दिया जा सकता है न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP

गारंटीकृत एमएसपी: कैसे हो हल?

उद्योग और सेवाओं में काम कर रहे अन्य व्यक्तियों की तुलना में किसानों की औसत आय बहुत कम है। यह मंडी में “कम बिक्री मूल्य” और खाद्यान्न के “जरूरत से अधिक उत्पादन” के कारण है। सामान्य तौर पर, यह किसानों के बीच साल भर रहने वाला संकट है जिसके कारण किसान आत्‍महत्‍या और आंदोलन कर रहे हैं। यदि पूरा खाद्यान्न “न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बिक जाता है, तो किसान की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है।

कृषि इनपुट सब्सिडी उत्पादन लागत को कम करती है लेकिन इसका लाभ सही मायने में किसानों को नहीं मिलता बल्कि उपभोक्ताओं को दिया जाता है। “किसान सम्मान निधि” एक अंतरिम राहत तो हो सकती है लेकिन स्थायी समाधान नहीं। कृषि उपज का एक स्थायी बिक्री मूल्य सही विकल्प है। जिसके लिए उचित नीति के माध्यम से सभी किसानों को एमएसपी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सवाल यह है कि; क्या राजकोषीय बाधाओं को देखते हुए “गारंटीकृत एमएसपी” संभव है? यदि नहीं, तो इसका समाधान कैसे करें? खराब होने वाली कृषि-उत्पाद के लिए एक अलग नीति की आवश्यकता है जिसकी चर्चा यहां नहीं की गई है।

अभी क्या है देश में फसलों की MSP पर खरीद की स्थिति

वित्त वर्ष-2020 में, सरकार ने एमएसपी पर 23 पात्र फसलों की बमुश्किल 26% खरीद की थी। यह सभी फसलों का 15% से कम हिस्‍सा हो सकता है। खरीद के इतने निचले स्तर के साथ भी, एफसीआई के पास बिना बिका स्टॉक लगभग 32.0 मिलियन टन और राज्यों के पास 24.0 मिलियन टन है। एफसीआई का कर्ज भी 4.0 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जिस पर भारी ब्याज और भंडारण लागत है। इसलिए, सरकार के लिए वर्तमान तरीके से पूरे उत्पादन को खरीदना संभव नहीं है।

औद्योगिक उत्पाद के विपरीत, खाद्यान्न का उत्पादन चक्र लंबा होता है। इसका उत्पादन वर्ष में 1-3 बार किया जाता है और पूरे वर्ष में इसका उपभोग किया जाता है। इसलिए, इसे फसल आने के मौसम के दौरान संग्रहीत किया जाता है और लंबी अवधि में अंतिम उपभोक्ता को बेचा जाता है। फसल आने के मौसम में खरीद के बोझ को साझा करने के लिए भारत को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और व्यापार चैनल विकसित करना चाहिए। फसल की आवक के दौरान बाजार मूल्य कम होना तय है जिससे ऐसे निजी माध्‍यमों से खरीदारी करते समय किसानों का शोषण हो सकता है। केवल व्यापार चैनल पर एमएसपी का कानूनी बंधन, जैसा कि किसानों की मांग है, मेरे विचार से अधूरा समाधान है जब तक कि व्यापार चैनल की समस्याओं का भी समाधान नहीं किया जाता है।

जटिलता को ध्यान में रखते हुए, भारत को “लीक से हटकर सोचने” की आवश्यकता है। जिससे किसानों को एमएसपी मिलेगा और सरकार और एफसीआई पर वित्तीय और कर्ज का बोझ भी शुरुआती वर्षों को छोड़कर कम हो जाएगा।

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परीक्षण सुविधा कराई जाए उपलब्ध

एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) को नीलामी के माध्यम से इस तरह के बिक्री लेनदेन में किसानों की सहायता करनी चाहिए। न्‍यूनतम मूल्‍य एमएसपी का लगभग 93-95% रखा जाना चाहिए। एफसीआई को गुणवत्ता मानकों को तय करना चाहिए और गुणवत्ता के आधार पर खरीदार द्वारा किसी भी मनमानी कटौती से बचने के लिए परीक्षण सुविधा प्रदान करनी चाहिए।

जारी की जाए माल रसीद (जीआर)

बिना बिके स्टॉक को अनिवार्य रूप से एफसीआई द्वारा संग्रहित किया जाना चाहिए और मात्रा, गुणवत्ता और ऋण राशि का उल्लेख करते हुए किसान को एक “माल रसीद (जीआर)” जारी की जा सकती है। ऐसे जीआर की वैधता अवधि 5-6 महीने हो सकती है। एफसीआई को एमएसपी मूल्य पर स्टॉक मूल्य के 90% तक किसान को ऋण देना चाहिए। एसएलआर दर पर बैंकों द्वारा एफसीआई को पुनर्वित्त किया जा सकता है। इस तरह की स्टॉकिंग सुविधा के अभाव में, किसान व्यापार चैनल को अपनी उपज कौड़ी के भाव बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह प्रमुख सुझाव है।

  • जीआर खुले बाजार, ई-एनएएम और कमोडिटी एक्सचेंज में हस्तांतर करने योग्‍य और व्यापार योग्य होना चाहिए। जिसके लिए, एफसीआई को सहायता करनी चाहिए और बिक्री मूल्य का 0.5% का मामूली शुल्क लगाना चाहिए। ब्याज और भंडारण शुल्क स्टॉक मूल्य पर अधिकतम 9% प्रति वर्ष लगाया जा सकता है जो माल की डिलीवरी के दौरान अंतिम खरीदार से वसूल किया जा सकता है। शेष राशि किसानों को भेजी जा सकती है। इससे एफसीआई का ब्याज और भंडारण लागत समाप्‍त हो जाएगी।
  • आम तौर पर मंडियों में अगली फसल आने तक खाद्यान्न की कीमत बढ़ जाती है। इस प्रकार, किसानों को भंडारण के बाद बेहतर मूल्य मिलेगा, जैसा कि आमतौर पर व्यापार चैनल द्वारा किया जाता है। किसानों की पूर्व सहमति से, एफसीआई भी पीडीएस योजना की आवश्यकता के अनुसार एमएसपी पर स्टॉक खरीद सकता है। जिसके लिए एफसीआई को अलग बफर स्टॉक की जरूरत नहीं होगी, जैसा कि अभी किया जा रहा है। इतना ही नहीं, एफसीआई को तुरंत पीडीएस सब्सिडी की प्रतिपूर्ति की जानी चाहिए। इससे एफसीआई पर कर्ज का बोझ कम होगा।
  • यदि जीआर की वैधता अवधि के भीतर किसानों द्वारा स्टॉक नहीं बेचा जाता है, तो वे बिक्री अधिकार खो देंगे और इसे एमएसपी पर एफसीआई को बिक्री माना जाएगा। जीआर की वैधता की समाप्ति के तुरंत बाद, एफसीआई ऋण, ब्याज और भंडारण शुल्क को समायोजित करने के बाद शेष राशि भेज देगा।
  • उपरोक्त व्यवस्थाओं से, किसानों को औसतन एमएसपी का लगभग 95% प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार एमएसपी में 5-7 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। एक या दो वर्षों के बाद, किसानों को अधिक कीमत मिलने की प्रबल संभावना है। एफसीआई को भी इससे लाभ होगा; इसका कर्ज का बोझ और भंडारण लागत कम हो जाएगी। इसके अलावा, यह आने वाले वर्षों में सकल लाभ कमा सकता है।
  • देश भर के सभी किसान लाभ उठा सकें, इसके लिए भारतीय खाद्य निगम को मंडियों के नेटवर्क और भंडारण क्षमता को बढ़ाना चाहिए। इसे मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर भी तैयार करनी चाहिए। इसके अलावा, इसे किसानों को बाजार की जानकारी उपलब्‍ध करानी चाहिए।
  • बीच-बीच में, अधिक उत्पादन या बाजार की खराब मांग के कारण एफसीआई के पास स्टॉक बढ़ सकता है। ऐसे में एफसीआई को सीधे या व्यापार चैनलों के माध्यम से तुरंत निर्यात करना चाहिए। सरकार को निर्यात को प्रोत्साहित करना चाहिए और एफसीआई और व्यापार चैनल और प्रसंस्करण उद्योगों के नुकसान की भरपाई के लिए अनुमानित निर्यात प्रोत्साहन देने के लिए उदार होना चाहिए। इससे एफसीआई का कर्ज कम होगा और फसल की ताजा आवक के लिए भंडारण क्षमता उपलब्ध होगी। इसके अलावा, व्यापार चैनल भी भाग लेंगे।
  • इस तरह के निर्यात प्रोत्साहनों के कारण होने वाले वित्तीय बोझ को कृषि इनपुट सब्सिडी में कटौती करके धीरे-धीरे कम किया जा सकता है, जो वास्तव में किसानों के पास नहीं रहता है बल्कि उपभोक्ताओं को चला जाता है।
  • इसके साथ ही, भारत को एफसीआई गोदाम के पास खाद्यान्न प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। एफसीआई को निर्यात और आगे के मार्केटिंग के लिए प्रसंस्करण उद्योगों और व्यापार चैनल के साथ लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचे को साझा करना चाहिए। एफसीआई, सरकार, प्रसंस्करण उद्योग, व्यापारियों, निर्यातकों और किसानों के बीच एक टीम भावना निश्चित रूप से अपेक्षित परिणाम देगी। राज्यों को भी इस टीम में शामिल होना चाहिए।
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इसके साथ ही, भारत को एफसीआई गोदाम के पास खाद्यान्न प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए। एफसीआई को निर्यात और आगे के मार्केटिंग के लिए प्रसंस्करण उद्योगों और व्यापार चैनल के साथ लॉजिस्टिक बुनियादी ढांचे को साझा करना चाहिए। एफसीआई, सरकार, प्रसंस्करण उद्योग, व्यापारियों, निर्यातकों और किसानों के बीच एक टीम भावना निश्चित रूप से अपेक्षित परिणाम देगी। राज्यों को भी इस टीम में शामिल होना चाहिए।

वर्तमान में, भारत को किसानों को इस प्रकार की राहत देनी होगी और उन्हें लंबे समय तक कष्टों से बचाना होगा। धीरे-धीरे, उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी में निवेश के माध्यम से कृषि-उत्पाद की उत्पादन लागत को कम किया जाना चाहिए। किसान फसलों में विविधता को भी अपना सकते हैं; जिससे कृषि-आयात में कमी और आय में वृद्धि होगी। भारत को भी किसानों के उद्यमशीलता कौशल का विकास करना चाहिए। 5 वर्षों के लिए एक समग्र योजना निश्चित रूप से किसान संकट को हल करेगी और ग्रामीण समृद्धि लाएगी और शहरी प्रवास को कम करेगी। इस प्रकार यह सभी के लिए फायदे का सौदा होगा।

लेखक:- आरपी गुप्ता, टर्न अराउंड इंडिया, जन-आंदोलन, टर्नराउंडिया-2020
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