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किसान अधिक पैदावार के लिए लगाएँ गेहूं की नई बायोफोर्टिफाइड किस्म DBW 316

गेहूं की नई बायोफोर्टिफाइड किस्म DBW 316 (करण प्रेमा)

भारत विश्व स्तर पर गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश में सबसे अधिक गेहूं का उत्पादन उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार राज्य में होता है। ऐसे में गेहूं का उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाई जा सके इसके लिए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा गेहूं की नई-नई किस्में विकसित की जा रही है। डीबीडब्ल्यू 316 (करण प्रेमा) एक नई उच्च उपज वाली गेहूं की बायोफोर्टिफाइड किस्म है। इसे हाल ही में फसल मानक अधिसूचना पर केंद्रीय उप-समिति और कृषि फसलों के लिए किस्मों के विमोचन द्वारा अधिसूचित किया गया है।

डीबीडब्ल्यू 316 अधिक अनाज प्रोटीन 13.2 प्रतिशत और जिंक 38.2 पीपीएम से भरपूर दानों वाली किस्म हैं। पोषक तत्वों की अधिकता के आधार पर यह किस्म एक बायोफोर्टिफाइड किस्म है। इस किस्म में अन्य गुणवत्ता विशेषताएँ भी हैं जैसे उच्च ब्रेड लोफ वॉल्यूम और ब्रेड गुणवत्ता स्कोर, उच्च चपाती गुणवत्ता स्कोर, उच्च अवसादन मूल्य और अच्छा चमकदार दाना इत्यादि। इस किस्म की गर्मी सहनशीलता और सूखा सहिष्णुता अधिक है।

DBW 316 (करण प्रेमा) की मुख्य विशेषताएँ क्या है?

गेहूं की DBW 316 (करण प्रेमा) देर से बोई जाने वाली सिंचित स्थितियों के लिए विकसित की गई गेहूं की नई किस्म है। इसे देश के उत्तर-पूर्वी उत्तर मैदानी क्षेत्रों जिनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असोम और उत्तर पूर्व के मैदानी क्षेत्र शामिल है, के लिए विकसित किया गया है। उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र में देर से बोई गई परिस्थितियों में इस किस्म की औसत उपज 41 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है वहीं इसकी अधिकतम उपज क्षमता 68 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है।

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यह किस्म व्हीट ब्लास्ट रोग, पाउडरी मिल्ड्यू और पर्ण झुलसा रोग के लिये भी प्रतिरोधी है। इस किस्म में एक अज्ञात एलआर जीन की उपस्थिति भी पायी गई है जो भारत में भूरे रतुआ सहित पैथेटाइप प्रजातिओं के विरुद्ध प्रतिरोध प्रदान करने में सक्षम पाया गया है। यह किस्म पीला, भूरा और तना रतुआ के लिए प्रतिरोधी है। गेहूं की यह किस्म लगभग 114 दिनों में पककर तैयार हो जाती है वहीं इसमें लगभग 76 दिनों में बाली आ जाती है। इसके पौधों की ऊँचाई लगभग 90 सेमी तक होती है वहीं 1000 दानों का वजन 40 ग्राम तक होता है।

पोषक तत्वों से भरपूर है यह किस्म

जैसा कि बताया गया है यह किस्म एक बायोफोर्टिफाइड किस्म है। DBW 316 में अन्य किस्मों की तुलना में काफी अधिक प्रोटीन औसतन 13.2 प्रतिशत तक होता है। इसके दाने स्वर्णिम रंग के होते हैं। इसमें जिंक औसतन 38.2 पीपीएम और लौह तत्व औसतन 38.2 पीपीएम तक होता है, जो इस किस्म को बेहतर पोषण गुणवत्ता से युक्त बनाती है।

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इसके अलावा यह किस्म कई उत्पादों को तैयार करने के लिए उपयुक्त है जैसे उच्च ब्रेड लोफ वॉल्यूम 593 मिली, उच्च ब्रेड गुणवत्ता स्कोर 7.4, चपाती 7.7, वेट ग्लूटेन 26.6 प्रतिशत, ड्राई ग्लूटेन 8.8 प्रतिशत और सेंडीमेंटेशन वैल्यू 51 मिली इत्यादि।

DBW 316 (करण प्रेमा) की बुआई कब एवं कैसे करें?

गेहूं की यह किस्म भारत के उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र तथा देर से बुआई वाली सिंचित परिस्थिति के लिए उपयुक्त है। इसकी बुआई 5 से 25 दिसंबर के दौरान की जा सकती है। इसकी बुआई के लिए 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। किसान इसकी बुआई के दौरान पंक्तियों के बीच की दूरी 18 सेमी रखें।

देर से बुआई के अन्तर्गत 120:60:40 किलोग्राम NPK/हेक्टेयर खाद का उपयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बिजाई के समय तथा शेष प्रथम नोड अवस्था (45 से 50 दिनों के बाद) देनी चाहिए। इसके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए किसानों को इसमें 4-6 सिंचाइयाँ 20-25 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए।

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