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रविवार, अप्रैल 28, 2024
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चने की खेती करने वाले किसान जनवरी महीने में करें यह काम

चने की खेती करने वाले किसानों के लिए सलाह

जनवरी का महीना रबी फसलों की अधिक पैदावार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जनवरी के महीने में तापमान में तेज गिरावट होने से पाला, कोहरे एवं ओले की आशंका बनी रहती है। साथ ही मौसम में परिवर्तन के चलते इस समय कई कीट एवं रोगों की संभावना भी बनी रहती है। ऐसे में किसानों को खेत में लगी फसलों का लगातार निरीक्षण करने के साथ ही समय पर खाद एवं पानी देना चाहिये।

रबी सीजन में चना एक दलहन की मुख्य फसल है, देश के कई राज्यों में किसान चना की खेती प्रमुखता से करते हैं। जिससे किसानों की आमदनी चने की पैदावार पर भी निर्भर करती है। ऐसे में किसान चने की खेती से अधिक से अधिक लाभ ले सके इसके लिए किसानों को जनवरी के महीने में विभिन्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

चने की फसल में पानी कब दें?

पहली सिंचाई आवश्यकतानुसार बुआई के 45-60 दिनों बाद (फसल में फूल आने से पहले) तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय की जानी चाहिए। यदि जाड़े की वर्षा हो जाये, तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होगी। फूल आते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए अन्यथा लाभ की बजाय हानि हो सकती है। सिंचाई के लगभग एक सप्ताह बाद ओट आने पर हल्की गुड़ाई करना लाभदायक होता है। असिंचित या देरी से बुआई की दशा में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का फूल आने के समय छिड़काव करना लाभदायक रहता है।

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चने की फसल में दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय लगभग 70 से 80 दिनों बाद की जानी चाहिए। यदि ठंड में वर्षा हो जाये तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लंबे समय तक यदि वर्षा न हो तो अच्छी पैदावार लेने के लिए हल्की सिंचाई किसानों को करनी चाहिए। अनावश्यक रूप से सिंचाई करने से पौधों की वानस्पतिक वृद्धि हो जाती है। इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चने की फसल की भरपूर पैदावार हेतु जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा फसल के मरने का अंदेशा रहता है।

यूरिया घोल का करें छिड़काव

वैज्ञानिकों द्वारा किए गए नवीनतम शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि चने की फसल में यूरिया के घोल का छिड़काव करना लाभदायक रहता है। इसके लिए किसान 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का दो बार शाम के समय पर्णीय छिड़काव करें। यह छिड़काव किसान 10 दिनों के अंतराल पर करें यानि की पहले छिड़काव के 10 दिनों बाद। इससे उपज में निश्चित रूप से 15-20 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सकती है।

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फली बनते समय चने में लग सकता है यह कीट

यदि चने के खेत में चिड़िया बैठ रही हो, तो समझ लें की चने में फली छेदक कीट का प्रकोप होने वाला है। फली छेदक कीट की गिडारें हल्के हरे रंग की होती हैं। ये बाद में भूरे रंग की हो जाती हैं। ये फलियों को छेदकर अपने सिर को फलियों के अंदर डालकर दानों को खा जाती हैं। इनकी रोकथाम के लिए फली बनना प्रारंभ होते ही मोनोक्रोटोफॉस 36 EC की 750 ml या फेनवेलरेट 20 EC की 500 ml मात्रा 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। फसल में पहला छिड़काव 50 प्रतिशत फूल आने के बाद करना चाहिए। यदि छिड़काव के लिए रसायन उपलब्ध नहीं हो तो मिथाइल पाराथियान 2 प्रतिशत धूल की 25 किलोग्राम मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

चने के फली छेदक के लिए न्यूक्लियर पॉलीहेड्रोसिस वायरस (एनपीवी) 250 से 350 शिशु समतुल्य 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। चने में 5 प्रतिशत एन.एस.के.ई. या 3 प्रतिशत नीम के तेल तथा आवश्यकतानुसार कीटनाशी का प्रयोग किया जा सकता है। 

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