अनुदान पर शेडनेट हाउस में पान की खेती
जब पान की बात हो तो उसमें दो पान की चर्चा जरुर होती है एक बनारसी पान दूसरा मगही पान | बनारसी पान का सम्बंध उत्तर प्रदेश के बनारस से होती है तो मगही पान बिहार के मगध से सम्बन्धित है | मगध का संबन्ध मौर्य वंश से है | पान लोगों के लिए शौक के साथ ही औषधी है , इसके अलावा पूजा में भी उपयोग किया जाता है |
पान की मांग देश के अलावा विदेशों में होने के कारण राज्य सरकार किसानों को पान की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है | इसी के तहत बिहार सरकार मगही पान को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सब्सिडी दे रही है | इस वर्ष मगही पान को जी.आई.टैग भी मिल गया है | जी.आई.टैग का मतलब यह होता है कि किसी खास वस्तु को किसी खास जगह से जुड़ाव होना तथा यह दुसरे जगह नहीं मिलेगा |
इसका मतलब यह हुआ कि मगही पान केवल बिहार में ही उत्पादन होता है | इस बार पान कि खेती के लिए शेड नेट उपलब्ध कराया जा रहा है | शेड नेट पर राज्य सरकार सब्सिडी दे रही है | सरकार के द्वारा किसानों को शेड नेट हाउस में पान की खेती पर सब्सिडी देकर प्रोत्साहित किया जा रहा है , इसकी पूरी जानकारी किसान समाधान लेकर आया है |
योजना किस राज्य तथा जिलों के लिए है ?
जैसा कि नाम से मालूम है मगही पान बिहार से सम्बन्धित है अर्थात यह योजना बिहार राज्य सरकार के द्वारा चलायी जा रही है | योजना के अनुसार बिहार के वैशली, खगड़िया, दरभंगा, भागलपुर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चम्पारण, औरंगाबाद शेखपुरा, बेगुसराय, सारण, सिवान एवं मुंगेर जहाँ पान कि खेती होती है |
किसानों को कितना सब्सिडी तथा सहायता दिया जा रहा है ?
योजना के अनुसार 100 किसानों के लिए लक्ष्य रखा गया है | प्रत्येक किसान को 500 वर्गमीटर के लिए लाभ दिया जायेगा | सभी किसान को शेडनेट में पान की खेती के लिए योजना का लाभ दिया जायेगा | 500 वर्गमीटर शेडनेट में पान कि खेती पर 4.25 लाख रूपये खर्च दिया जायेगा | इस लागत का 75 प्रतिशत सब्सिडी राज्य सरकार दे रही है | इस वर्ष केवल शेड नेट तैयार की जायेगा तथा अगले वर्ष से उस शेड नेट में पान कि खेती की जाएगी | इस योजना पर इन दो वित्तीय वर्षों में कुल 339.66 लाख रुपये व्यय की जायेगी, जिनमें वित्तीय वर्ष 2019–20 में 286.46 लाख रुपया एवं वित्तीय वर्ष 2020 – 21 में 53.2 लाख रुपये व्यय किया जायेगा |
शेड नेट में पान की खेती
बिहार में जलवायु अधिक गर्म होने के कारण इसकी खेती खुले खेतों में नहीं की जा सकती है | इसलिए इसे कृत्रिम मंडप के अंदर उगाया जाता है, जिसे बरेजा/ बरेठ कहते हैं | स्थानीय तौर पर बरेजा का निर्माण बाँस, पुआल, कांस, सुटली इत्यादी के उपयोग कर बनाया जाता है, जो प्राकृतिक आपदा से आसानी से बर्बाद हो जाता है | साथ ही, लोटी विधि से पटवन भी काफी खर्चीला एवं परिश्रम होता है | फलस्वरूप कृषकों को बेवजह अतिरिक्त व्यय एवं परिश्रम करना पड़ता है |
इतना ही नहीं परम्परागत बरेजा में पान उपज हेतु संतुलित वातावरण (तापमान, आद्रता) नहीं पाये जाने के कारण रोग तथा कीट – व्याधि प्रकोप बढ़ जाता है | फलस्वरूप किसानों को बेवजह खेती में अधिक व्यय करना पड़ता है |कृषि विभाग द्वारा इस समस्या का समाधान एवं कृषक हित में संरक्षित कृषि के अन्तर्गत शेड नेट में पान की खेती का प्रत्यक्षण कार्यक्रम तैयार किया गया है |
अन्य दी जाने वाली सहायतायें ?
इस योजना के तहत पान कि खेती के लिए ड्रिप तथा स्प्रिंक्ल की सहायता दी जाएगी जिससे पान की गुणवक्ता के साथ उत्पादन में वृद्धि होता है |