इस वर्ष देश में 8 सितम्बर 2023 तक 125 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई की गई है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि से 1.48 फीसदी कम है। ऐसे में किसान किस तरह अपने खेतों में लगाई गई कपास की फसल की उचित देखभाल करें ताकि कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त की जा सके। इसे लेकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कपास की फसल में खाद, कीट एवं रोगों के प्रबंधन के लिए सलाह जारी की है।
जारी सलाह में वैज्ञानिकों ने बताया है कि सितम्बर महीना कपास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस समय फसल में बहुत फूल, बोकी व टिंडे आ जाते हैं। रेतेली मिट्टी वाले इलाकों में पोषक तत्वों की सर्वाधिक कमी अभी महसूस की जाएगी इसलिए जो फसल 100 दिन से कम की है या उसके आसपास है वहां जिंक व यूरिया 100 लीटर पानी में, दो ढाई किलो यूरिया व तीन सौ ग्राम जिंक (33 प्रतिशत वाला), उसका घोल बनाकर स्प्रे करना चाहिए। वहीं जिन किसानों ने ड्रिप लगाई हुई है वे किसान ड्रिप द्वारा पोषक तत्व दें।
कपास को गुलाबी सुंडी से बचाने के लिए क्या करें?
सितम्बर के महीने में गुलाबी सुंडी का प्रकोप नरमा की फसल में पाया जाता है, अतः किसान इस महीने अपनी फसल में गुलाबी सुंडी के प्रकोप की निगरानी करते रहें। इसके लिए सप्ताह में दो बार नरमा फसल में 100 फूलों का निरक्षण करें। इसके अलावा सप्ताह में एक बार अपनी फसल से 20 टिंडे (1 टिंडा एक पौधे से, जो 10-15 दिनों पुराना हो) खेत में अलग अलग जगह से तोड़कर उनको फाड़कर अच्छे से देखें।
इसमें से यदि 5-10 फूल गुलाबी सुंडी से ग्रसित मिलते हैं या 20 टिंडों को फाड़कर देखने पर 1-2 टिंडों में जीवित गुलाबी सुंडी मिलती हैं तो कीटनाशक के छिड़काव की आवश्यकता हैं। इसके अलावा गुलाबी सुंडी की निगरानी के लिए 2 फेरोमोन ट्रेप प्रति एकड़ लगाए तथा इनमें फसने वाली गुलाबी सुंडी के पतंगों को 3 दिनों के अंतराल पर गिनती करें। मध्य अगस्त से अक्टूबर तक यदि इनमें कुल 24 पतंगे प्रति ट्रेप तीन रातों में आते है तो कीटनाशक के छिड़काव की आवश्यकता हैं।
गुलाबी सुंडी नियंत्रण के लिए इस दवा का करें प्रयोग
90 से 120 दिनों की फसल में गुलाबी सुंडी का प्रकोप फलीय भागों पर 5 -10 प्रतिशत होने पर एक छिड़काव प्रोफेनोफोस (क्यूराक्रोन/ सेल्क्रोन / कैरिना) 50 ई.सी. की 800 मिलीलीटर मात्रा 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से करें। इसके बाद अगला छिड़काव जरूरत पड़ने पर क्यूनालफास 25 (एकालक्स) ई.सी. की 800–900 मिलीलीटर या थिओड़िकार्ब 75 डब्लू.पी. की 250–300 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से 10-12 दिनों बाद करें। वहीं किसानों को एक ही कीटनाशक का प्रयोग बार–बार नहीं करना चाहिए।
120 दिनों से ऊपर की फसल में 80 से 100 मिलीमीटर साइपरमेथ्रिन 25 ई.सी. अथवा 160 से 200 मिलीलीटर डेकामेथरीन 2.8 ई.सी. अथवा 125 मिलीलीटर फेनवलरेट 20 ई.सी. को 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से 7-10 दिनों के अन्तराल पर करें। वहीं किसानों को एक ही कीटनाशक का प्रयोग बार–बार नहीं करना चाहिए।
कपास में सफेद मक्खी एवं हरे तेला का नियंत्रण कैसे करें
सितम्बर माह में नरमा की फसल में सफ़ेद मक्खी व हरे तेला का भी प्रकोप होता हैं इसलिए इनकी निगरानी सप्ताह में दो बार किसानों को करनी चाहिए। इसके लिए एक एकड़ से 20 पौधों की तीन पत्तियों (एक ऊपर, एक बीच एवं एक नीचे की) पर सफ़ेद मक्खी के वयस्क एवं हरे तेला के शिशु की गिनती करके प्रति औसत निकाल लें।
सफ़ेद मक्खी यदि 6-8 प्रौढ प्रति पत्ता एवं हरा तेला 2 शिशु प्रति पत्ता मिलते हैं तो फ़्लानिकामिड (उलाला ) 50 डब्लू.जी. की 60 ग्राम मात्रा या एफिडोपाईरोपेन (सैफिना ) 50 जी/एल की 400 मिली मात्रा को प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से एक छिड़काव करें।
सफ़ेद मक्खी का ज्यादा प्रकोप होने पर इसके प्रबंधन के लिए पाईरीप्रोक्सिफेन (डायटा) 10 ई.सी. की 400 मिलीलीटर मात्रा प्रति 200 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर दूसरा छिड़काव 10–12 दिनों के बाद स्पिरोमेसिफेन (ओबेरान) 240 एस.सी. की 240 मिलीमीटर मात्रा प्रति 200 लीटर पानी प्रति एकड़ की दर से करें।
इस बात का रखें ध्यान
बरसात के मौसम में स्प्रे के घोल में चिपचिपा पदार्थ जैसे सेण्डवित, सेलवेट् 99 या टीपोल की 60-80 मिलीलीटर या ग्राम मात्रा प्रति 200 लीटर घोल मिलाएं। नरमा की फसल में ज्यादा जहरीले कीटनाशकों या कीटनाशकों के मिश्रण का प्रयोग ना करें ऐसा करने से मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है तथा रस चूसने वाले कीड़ों की समस्या बढ़ने लगती है।
किसान इस तरह करें कपास में लगने वाले रोगों का नियंत्रण
इस समय कपास की फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना रहती हैं। इनमें पत्ती मरोड़, टिंडा गलन रोग, जीवाणु अंगमारी, पैराविल्ट, जड़ गलन एवं तिड़क रोग प्रमुख है। किसान इस तरह इन कीटों का नियंत्रण कर सकते हैं:-
- पत्ती मरोड़ रोग के कारण नसे मोटी, पत्तियों का ऊपर की ओर मुड़ना व पौधे छोटे रह जाते हैं। यह रोग विषाणु द्वारा फैलता है। सफ़ेद मक्खी इस रोग को फैलाने में सहायक है इसलिए सफ़ेद मक्खी का पूर्ण रूप से नियंत्रण करना आवश्यक है।
- टिंडा गलन रोग पर नियंत्रण के लिए सुंडी नियंत्रण वाली सिफारिश की गयी दवाई के साथ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या बाविस्टिन-2 ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें।
- जीवाणु अंगमारी रोग के लिए किसान भाई 6 से 8 ग्राम स्ट्रेप्टोसाक्लीन और 600 से 800 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ 15 से 20 दिन के अंतराल पर दो से तीन छिड़काव किसानों को करना चाहिए।
- पैराविल्ट के लिए किसान भाई लक्षण दिखाई देते ही 24 से 48 घंटों के अंदर 2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड 200 लीटर पानी में घोल बनाकर 24 से 48 घंटे में खेत में छिड़काव करें परंतु पौधे सूख जाने पर दवा का असर नहीं होगा।
कपास में जड़ गलन रोग के नियंत्रण के लिए क्या करें?
जड़ गलन बीमारी से सूखे हुए पौधों को खेत में से उखाड़ कर जमीन में दबा दें, ताकि बिमारियों को आगे बढ़ने से रोका जा सके। इस रोग से प्रभावित पौधों के आसपास स्वस्थ पौधों में 1 मीटर तक कार्बेडाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 100-200 मिलीलीटर प्रति पौधा जड़ों में डालें। जड़ गलन रोग के लिए दवाई डालते समय किसान भाई पीठ वाले स्प्रे पंप का प्रयोग करते समय मोटे फव्वारे का प्रयोग करके जड़ों के पास इस फफूंदनाशक घोल को डालें।
कपास के तिड़क रोग से टिंडे ठीक तरह से नहीं खुलते हैं, यह रोग हरियाणा के पश्चिमी इलाकों में कभी–कभी लगने लगता है। रेतीली जमीनों में नाइट्रोजन की कमी के कारण कपास के पत्तों का रंग लाल पड़ जाता है एवं बढ़वार रुक जाती है। फूल तथा टिंडे लगने के समय आवश्यकतानुसार खाद डालने व पानी देने से जमीन के तापमान में कमी आती है और इस रोग की रोकथाम में आसानी होती है।