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शनिवार, अप्रैल 27, 2024
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विदेशी तकनीक से खेती कर भूमि को उपजाऊ बनाये और फसलों की बढ़बार बढ़ाएं

खरपतवार नियंत्रण की एक लाभदायक अरसायानिक तकनीक

भारत में अभी गर्मी का मौसम प्रारंभ हो गया है जहाँ पानी की कमी के चलते किसान अपने खेतों की सिंचाई नहीं कर सकते तो वह अभी कोई फसल उत्पादन नहीं कर सकते | जिसके कारण अब 3 महीने किसानों के खेत खाली रहेंगे | ऐसे में किसान विदेश की यह तकनीक अपनाकर लाभ ले सकते हैं और आने वाली फसलों की बढ़बार ले सकते हैं तो आइये जानते हैं किसान क्या कर सकते हैं :-

क्या है तकनीक 

जार्डन घाटी के किसानों तथा प्रसार कार्यकर्ताओं ने अनुभव किया कि पालीथीन की परत बिछाने (पालीथीन मल्च) से भूमि के तापमान में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है | इसके पश्चात् 19वीं , शताब्दी के अन्त में इजराइल के वैज्ञानिकों की यह हानिकारक सूक्ष्म जीवों के नियंत्रण के लिए मृदा सूर्यीकरण तकनीक कारगर साबित होगी |

मृदा सुर्यीकरण तकनीक में पारदर्शी पालीथीन (प्लास्टिक मल्चिंग) से वर्ष के अधिक तापमान वाले महीनों (मई – जून) में सिंचाई उपरान्त खाली पड़े खेत को ढक देते है और पालीथीन के किनारों को मिटटी से अच्छी तरह दबा देते है ताकि मृदा में अवशोषित एवं संचयित ताप बाहर न निकल सकें | जिसके फलस्वरूप खेत की स्थल पर तापमान में लगभग 8 – 12 डिग्री सेंटीग्रेट की वृद्धि हो जाती है | जो कि मृदा को उसमें पाये जाने वाले हानिकारक सूक्ष्म जीवाणुओं एवं खरपतवारों के बीजों के संक्रामकता दोष से शुद्धि करता है |

मृदा सुर्यीकरण का प्रभाव :-

  1. खरपतवारों पर प्रभाव :-

खरपतवार विज्ञान अनुसंधान निदेशालय, महाराजपुर, जबलपुर (म.प्र.)(https://www.dwr.org.in)  में मुख्यत: खरपतवारों पर अध्ययन / शोध किया जाता है | हमारे अपने शोध कार्य तथा अन्य प्रयोग केन्द्रों पर किये गये अध्ययनों में पाया गया कि 4 – 6 सप्ताह के मृदा सुर्यीकरण से बहुतायत खरपतवार जैसे नागर मोठा, दुबा घास या कांस जिनका प्रजनन कन्द या तने के गांठों से होती है पर मृदा सूर्यीकरण का कम प्रभाव पड़ता है क्योंकि जमीन के अन्दर कंद या गाठे प्राय: अधिक गहराइयों में होते है साथ ही साथ कुछ खरपतवार जैसे सेंजी (मिलीलोटस इंडिका या अल्वा), हिरन खुरी (केनवालवुलस अर्वेनिसस ) जिसके बीज का आवरण काफी सख्त होता है पर भी सूर्यीकरण का प्रभाव कम पड़ता है |

  1. फसल बढवार एवं उत्पादन पर प्रभाव :-

चूंकि मृदा सुर्यीकरण से मिट्टी  में पाये जाने वाले परजीवी कवकों जीवाणुओं सूत्रकृमि व खरपतवारों पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | अत: इनकी निष्क्रियता से फसलों को सीधा लाभ होता है | लाभकारी सूक्ष्म जोवों की सक्रियता, पोषक तत्वों की घुलनशीलता तथा उपलब्धता में वृद्धि एवं प्रभावकारी खरपतवार नियंत्रण आदि सभी कारकों के सम्मिलित प्रभाव से फसलों की बढवार तथा अनंत: पैदावार में प्रशंसनीय वृद्धि हो जाती है | मृदा सूर्यीकरण तकनीक से जहाँ एक ओर परजीवी कवकों , जीवाणुओं एवं सूत्रकृमि की संक्रात्मकता से दोषमुक्त देखा गया वहीं दूसरी ओर प्रभावी खरपतवार नियंत्रण से प्याज की पैदावार में 100 से 125 प्रतिशत, मूंगफली में 52 प्रतिशत एवं तिल में 72 प्रतिशत की वृद्धि भी रिकार्ड किया गया है |

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मृदा में रासायनिक परिवर्तन :-

मृदा सूर्यीकरण से मिट्टी में घुलनशील पोषक तत्वों की मात्रा एवं इनकी उपलब्धता बढ़ जाती है | मृदा में कार्बनिक पदार्थ, अमोनियम नत्रजन, नाईट्रेट नत्रजन, कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा मिट्टी की विधुत चालकता में प्रशसनीय वृद्धि पायी जाती है  हांलाकि सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में सराहनीय वृद्धि नहीं दर्ज की गयी है |

कठिनाइयां एवं सीमायें :-

वैसे तो मृदा सूर्यीकरण तकनीक काफी जांची एवं परखी तकनीक हैं तथा किसानों के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं लाभकारी है | फिर भी इस तकनीक की निम्न लिखित सीमायें है |

  1. पालीथीन शीट की अधिक होने से यह तकनीक खर्चीली है | फिर भी इस तकनीक का प्रयोग नगदी फसलों या ऊँची कीमत वाली फसलों, पुष्पोत्पादन और विभिन्न नर्सरियों में करने पर आर्थिक दृष्टि से काफी लाभदायक होगा | पतली पालीथीन (50 माइक्रोमिटर या कम) जो कि ज्यादा प्रभावशाली है और दुबारा दुसरे खेत में प्रयोग करने से भी आर्थिक लागत में कमी आयेगी | इस तकनीक की आर्थिक लागत यदि भूमि की तैयारी पर की खर्च की बचत, प्रतिवर्ष शाकनाशी , सूत्रकृमिनाशक एवं कवकनाशी रसायनों पर आने वाला खर्च में बचत फसलों को हानि पहुँचाने वाले विभिन्न कारकों का नियंत्रण, भूमि में पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि 2 से 3 फसलों तक प्रभावी असर एवं उत्पादन में वृद्धि इत्यादि को ध्यान में रखकर गणना की जाये तो यह तकनीक काफी सस्ती एवं लाभकारी होगी |
  2. इस तकनीक का प्रयोग केवल उन्ही क्षेत्रों में संभव है , जहां पर कम से कम 6 से 8 हफ्तों तक आसमान साफ एवं वातावरण का तापमान 40 डिग्री से.ग्रे. से अधिक रहता हो |
  3. निचली भूमि जहां पर वर्ष ऋतू में भराव होता हो वहां पर यह तकनीक कारगार सिद्ध नहीं होगी |
मृदा सूर्यीकरण की प्रायोगिक उपयोगिता :-
  1. यह प्रयोगकर्ता के लिए पूर्णत: सुरक्षित है, इसमें किसी प्रकार का खतरा नहीं होता है |
  2. विभिन्न प्रकार के खरपतवारों कवकों, जीवाणुओं तथा सूत्रकृमि पर प्रभावकारी है |
  3. प्राय: इसका प्रभाव 2 – 3 फसलों तक रहता है |
  4. फसलों की बढवार को उत्प्रेरित करता है | तम्बाकू एवं कुछ सब्जियों में ओरोबैंकी नामक परजीवी खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रभावकारी है | जहाँ पर दूसरी विधियाँ कारगार साबित नहीं होती है |
  5. मृदा सूर्यीकरण के उपरांत खेत की तैयारी मुख्यत: जुताई पर आने वाला खर्च समाप्त हो जाता है |
  6. पर्यावरण का मित्र है |
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मृदा सूर्यीकरण द्वारा प्रभावी नियंत्रण हेतु महत्वपूर्ण कारक :-
  1. सौर ऊर्जा का अवशोषण एवं संचयन अधिक हो सके इसके लिए पतली (0.05 मिमी. या 20 – 25 माँइक्रो मीटर) एवं पारदर्शी पालीथीन सिट, जो कि मोटे एवं कलि पालीथीन सिट की तुलना में अधिक प्रभावशाली होती है, काप्रयोग करना चाहिए |
  2. सोलर ऊष्मा के अधिकतम शोषण तथा मृदा के तापमान में अधिकतम वृद्धि के लिए पालीथीन को इस तरह से बिछाना चाहिए कि जमीन से बिलकुल चिपकी रहे एवं उसके नीचे कम से कम हवा रहे | जिससे सौर ऊष्मा का अधिक शोषण एवं मृदा के तापमान में अधिक वृद्धि हो सके | इसके लिए खेतों को अच्छी तरह से समतल होना आवश्यक है |
  3. मृदा में नमी की मात्र इस तकनीक की सफलता का एक मुख्य कारक है | इसलिए पालीथीन बिछाने से पहले खेत की हल्की सिंचाई (50 मिमी.) कर देना अति आवश्यक है | इससे मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवाणु पर सौर ऊष्मा का प्रभाव बढ़ जाता है तथा साथ ही साथ ऊष्मा का संचालन अधिक गहराई तक होता है |

और क्या लाभ हैं ?

  1. तीव्र गर्मी वाले महीनों में , जब खेत में कोई फसल नहीं हो, सूर्यीकरण करना तथा अधिक से अधिक समय तक पालीथीन बिछाकर रखने से , इस तकनीक की सफलता में वृद्धि होती है | शोध अध्ययनों के आधार पर पाया गयाहै कि दक्षिण भाग में अप्रैल से मई तथा उत्तरी भाग में मई से जून माह के दौरान मृदा सूर्यीकरण करना अति उत्तम होगा क्योंकि उन महीनों में वायुमण्डलीय तापमान अधिक और आसमान साफ रहता है |
  2. मृदा सुर्यीकरण का प्रभाव मुख्यत: भूमि के उपरी सतह (0 – 10 से.मी.) तक रहता है | इसके प्रभाव को ज्यादा गहराई तक पहुँचाने के लिए सुर्यीकरण की अवधि 8 – 10 सप्ताह का होना चाहिए | जिससे कन्द व गांठों से उगाने वाले खरपतवारों भी नष्ट हो जायें |
  3. सुर्यीकरण के उपरान्त खेत में जुताई कार्य वर्जित है अन्यथा इसका असर कम हो जाता है अत; बुवाई में डिबलर या अन्य यंत्र जो केवल  कुंड बनाने का कार्य करे, जैसे सीड ड्रिल आदि का ही प्रयोग करना चाहिए | जिससे मृदा की स्थ में कोई अव्यवस्था न हो | अत: इस तकनीक का पुर्न लाभ लेने के लिए किसान भाईयों को इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए |

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