चना किस्म जीएनजी 2144
किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही है, जिनके तहत किसानों को अनुदान पर उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके अलावा दिये गये बीजों की खेती के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों की मदद से किसानों को तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है, जिससे किसान कम लागत में अधिक आमदनी प्राप्त कर सकें। इस कड़ी में राजस्थान के बूंदी कृषि विज्ञान केंद्र ने चने की किस्म जी.एन.जी. 2144 पर कलस्टर प्रथम पंक्ति प्रदर्शन लगाए गए हैं। जिसकी जानकारी अन्य किसानों तक पहुँचाने के लिए प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया।
यह प्रदर्शन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन दलहन योजना के तहत कृषि विज्ञान केन्द्र के तत्वाधान में गांव ऊँचियों का झोपड़ा तहसील हिण्डोली में लगाया गया है। प्रदर्शनों में चने की किस्म जी.एन.जी. 2144 को एकीकृत फसल प्रबन्धन विधि के द्वारा किसानों के खेत पर होने वाली पैदावार के परिणामों एवं किसानों के स्वयं के अनुभवों को गांव के अन्य कृषकों को जानकारी देने के लिए चना प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया। जिसमें गांव के 35 किसानों एवं महिला किसानों ने भाग लिया।
चना किस्म जी.एन.जी. 2144 किस्म की खासियत क्या है?
इस अवसर पर केन्द्र की उद्यान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी (प्रदर्शन) इंदिरा यादव ने बताया कि उत्पादित चने को आगामी बुवाई के लिए बीज के रूप में रखकर काम में लिया जा सकता है। जी.एन.जी. 2144 किस्म की विशेषताओं के बारे में बताते हुए कहा कि यह चने की देशी किस्म है। जिसमें दोहरे फूल एवं फलियाँ आती है और इसकी बुवाई दिसम्बर के पहले सप्ताह तक की जा सकती है।
इसका दाना पीलापन लिये हुए भूरे रंग का होता है, जिसके 100 दानों का वजन लगभग 16 ग्राम होता है। यह किस्म 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है और इसकी उपज 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 21 प्रतिशत होती है और यह उखटा, जड़ गलन एवं एस्कोकाईटा झुलसा रोग के प्रति सहनशील है।