जीरो बजट प्राकृतिक कृषि के यह फायदे बताये कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने
जीरो बजट प्राकृतिक कृषि हर प्रकार की भूमि व मिट्टी में की जा सकती है। किसानों की आमदनी दोगुना करने व साथ ही अनाज का उत्पादन भी वर्तमान की तुलना में दोगुना करने के प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित लक्ष्य खेती की इसी विधि से हासिल किए जा सकते हैं यह कहना है प्राकृतिक कृषि आंदोलन के पुरोधा व पदमश्री से सम्मानित कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर का।पालेकर हरियाणा ग्रंथ अकादमी द्वारा आयोजित कृषि संवाद कार्यक्रम में प्रदेश भर से आए कृषि विशेषज्ञों व अग्रणी किसानों को संबोधित कर रहे थे।
यह कहा पदमश्री से सम्मानित कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने
कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर ने कहा कि आधुनिक कृषि विशेषज्ञों के शोध से खेती को लाभ कम और हानि कहीं अधिक हुई है। उन्होंने दावा किया है कि वैज्ञानिकों द्वारा पिछले कुछ वर्षों में जो पद्धतियां विकसित कर किसानों को थमाई गई हैं, उन पर चलकर न किसान खुशहाल हो सकता है न देश के अन्न भंडार भर सकते हैं।
प्राकृतिक व आध्यात्मिक कृषि के पैरोकार सुभाष पालेकर ने कहा कि जैविक खेती के नाम पर जो प्रणाली प्रचलित व प्रचारित की जा रही है, वह भी रासायनिक खेती की तरह ही किसान और जमीन दोनों के लिए घातक है। उन्होंने जैविक खेती को विदेशी प्रणाली करार दिया और उसका तिरस्कार कर गौ आधारित स्वदेशी प्राकृतिक कृषि प्रणाली को अपनाने की वकालत की। पालेकर ने जीरो बजट आध्यात्मिक कृषि के क्षेत्र में आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा किए गए निर्णयों व कार्यों की सराहना की।
हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष प्रो. वीरेन्द्र सिंह चौहान ने कहा कि कृषि ऋषि सुभाष पालेकर द्वारा दिखाया गया रास्ता देश के 40 लाख से अधिक किसान अपना चुके हैं। केन्द्र सरकार व भारत के नीति आयोग ने भी इस विधि के महत्व को समझा है। इसीलिए बीते सप्ताह निति आयोग द्वारा बुलाई गई एक उच्च स्तरीय बैठक में सभी राज्यों से प्राकृतिक व जीरो बजट कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया गया। प्रो. चौहान ने बताया कि अधिकांश राज्यों में परंपरागत कृषि योजना व राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि की विधि को शामिल करने पर सहमति जताई है।
उर्दू अकादमी के निदेशक डॉ. नरेन्द्र ‘उपमन्यु’ ने भी प्राकृतिक कृषि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे।
कृषि ऋषि सुभाष पालेकर ने कहा कि किसान अगर गौ आधारित प्राकृतिक कृषि को अपना ले तो एक भी गाय बेसहारा नहीं रहेगी। बकौल पालेकर एक देसी गाय के गोबर का कायदे से उपयोग कर 30 एकड़ में बगैर रासायनिक खाद व कीटनाशक की खेती की जा सकती है। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार इस विधि को प्रदेश के किसानों तक पहुंचाए।