सरसों की नई उन्नत किस्में
देश में सरसों रबी सीजन की मुख्य तिलहन फसल है, सरसों की खेती कम लागत और कम पानी में भी अन्य फसलों की तुलना में अधिक उपज प्रदान करती है। बारानी क्षेत्रों में सरसों की बुआई 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक एवं सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक की जा सकती है। किसान अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उनके क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्मों का उपयोग कर कम लागत में अच्छी पैदावार ले सकते हैं।
विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अलग–अलग जलवायु क्षेत्रों के लिए अलग–अलग किस्में विकसित की गई हैं। जो कम लागत में अधिक पैदावार देती हैं। यह क़िस्में कई रोगों के प्रति रोधी होती हैं जिससे उत्पादन अच्छा मिलता है। ऐसी ही कुछ किस्में इस प्रकार है। पूसा सरसों 32, लक्ष्मी (आर.एच. 8812), आर.एच. 406, आर.एच. 749, आर.आर.एन. 573, आर.बी.-50, एन.आर.सी.डी.आर.-601, एन.पी.जे.- 112, गिरिराज, पूसा सरसों-26, पूसा डबल जीरो-31, सुरेखा, बेयर सरसों, जे.के. समृद्धि गोल्ड (JKMS-2) आदि।
सरसों की किस्में और उनकी विशेषताएँ
लक्ष्मी (आर.एच.- 8812)
सरसों की यह किस्म सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। इसके दाने मोटे होते हैं। यह किस्म 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 22 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
बायो 902 (पूसा जय किसान)
सरसों की यह किस्म तुलासिता, सफ़ेद रोली और मुरझान रोग के प्रति रोधक है। यह किस्म 130 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 30 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
रोहिणी
सरसों की यह किस्म समय पर बुआई के लिए उपयुक्त है। इस किस्म में तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत तक होती है साथ ही यह किस्म पाला प्रतिरोधी है। यह किस्म 140 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 22 से 28 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
आर.एच.-749
यह किस्म सरसों में लगने वाले कई प्रमुख रोगों के प्रति रोधी है, यह किस्म 125 से 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 26 से 28 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
पूसा बोल्ड
सरसों की यह किस्म सिंचित एवं बारानी क्षेत्रों में बुआई के लिए उपयुक्त है। सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक होती है। साथ ही यह किस्म 130-135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 18 से 20 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
गिरिराज
यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में समय पर बुआई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 125 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 22 से 28 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
एन.आर.सी.डी.आर. 601
सरसों की यह किस्म लवणीय भूमि में बुआई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 135 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 18 से 26 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
पूसा सरसों– 32
सरसों की इस किस्म में इरुसिक एसिड की मात्रा बहुत कम होती है। यह किस्म 142 से 147 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 25 से 28 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
पूसा डबल जीरो 31
यह सरसों की एक बायो फ़ोर्टिफ़ाइड प्रजाति है जिसमें इरुसिक एसिड 2 प्रतिशत से कम एवं ग्लूसाइनोलेट्स 30 पीपीएम से भी कम होता है। यह किस्म लगभग 140-145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 23 से 24 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
सुरेखा (के.एम.आर. 16-02)
सरसों की यह नई किस्म समय से बुआई एवं सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह किस्म लगभग 125-130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 25 से 28 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
बेयर सरसों 6460
यह एक संकर किस्म है, सरसों की इस किस्म में तेल की मात्रा अधिक होती है। यह किस्म लगभग 130-135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 28 से 30 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
जे.के. समृद्धि गोल्ड (JKMS-2)
यह सरसों की एक संकर किस्म है जो सफेद रस्ट एवं डाउनी मिल्ड्यू रोग के लिए सहिष्णु है। यह किस्म लगभग 125 से 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। सरसों की इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 20 से 30 क्विंटल तक की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।