एमू पालन किस तरह करें

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एमू पालन किस तरह करें

एमू नहीं उड़ सकने वाले पक्षियों (रेटाइट) के समूह के सदस्य हैं, जिसके मांस, अंडे, तेल, त्वचा तथा पंखों की अच्छी कीमत मिलती है। ये पक्षी कई तरह की मौसमी दशाओं के लिए अनुकूलित होते हैं। भले ही एमू और शतुरमुर्ग भारत के लिए नए हैं, पर एमू पालन को यहां महत्व मिल रहा है।

रेटाइट पक्षियों के पंख कम विकसित होते हैं, जैसे एमू, शतुरमुर्ग, रीया, कैसोवरी और कीवी इस समूह में शामिल है। एमू तथा शतुरमुर्ग का पालन व्यावसायिक रूप से दुनिया के कई भागों में किया जाता और उनसे मांस, तेल, त्वचा तथा पंख प्राप्त किए जाते हैं, जो कीमती होते हैं। इन पक्षियों की शारीरिक संरचना और दैहिक गुण तापीय तथा उष्ण कटिबंधीय मौसमी दशाओं के अनुकूल होते हैं। ये पक्षी गहन और अर्ध-गहन पालन विधि से उच्च रेशेदार खाने के साथ पाले जाते हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा चीन एमू के प्रमुख पालक देश हैं। एमू पक्षी भारतीय मौसम के प्रति अच्छी तरह से अनुकूलित हैं।

एमू के गुण

इसकी की गरदन लंबी होती है, उसका सिर अपेक्षाकृत छोटा होता है, तीन अंगुलियां होती हैं और शरीर पंखों से ढंका रहता है। पक्षी के शरीर पर शुरुआत में (0-3 महीने) लंबी धारियां होती हैं, जो बाद में (4-12 महीने) धीरे-धीरे भूरी हो जाती है। वयस्क एमू में नीली गरदन तथा शरीर पर चित्तीदार पंख होते हैं।

एक वयस्क एमू 6 फीट ऊंचा होता है, जिसका वजन 45-60 किलोग्राम होता है। पैर लंबे होते हैं, जिन पर कड़ी और सूखी जमीन पर चलने के लिए अनुकूल शल्की त्वचा होती है।एमू के प्राकृतिक भोजन में शामिल हैं, कीट, पौधों के कोमल पत्ते तथा चारे। ये विभिन्न प्रकार की सब्जियां तथा फल खाते हैं, जैसे गाजर, खीरा और पपीता इत्यादि।

मादा एमू नर से कुछ ऊंची होती है, खास कर प्रजनन काल में जब नर भूखा भी रह सकता है। मादा एमू नर से अधिक प्रभावी होती है। एमू 30 सालों तक जीवित रहता है। यह 16 से अधिक सालों तक अंडे देता है। इन पक्षियों को जोड़े में या झुडों में पाला जा सकता है।

चूजों का प्रबंधन

चूजों का वजन 370 से 450 ग्राम (अंडे के वजन का 67% ) होता है, जो उनके आकार पर निर्भर करता है। पहले 48-72 घंटे चूजों को इंक्यूबेटर में रखा जाता है, ताकि पीतक का शीघ्र वशोषण तथा शुष्कन हो सके। 25-40 चूजों के लिए एक पालन गृह बनाएं, जिसमें प्रत्येक चूजे के लिए पहले 3 हफ्तों के लिए 4 वर्गफीट की जगह दें। पालन के लिए पहले 10 दिनों के लिए 90 डिग्री फॉरेनहाइट का तापमान दें और 3 से 4 हफ्तों के लिए 85 डिग्री फ़ॉरेनहाइट तापमान दें।

सही तापमान से चूजे सही तरह से बनते हैं। पालन गृह में पर्याप्त पानी और चारा रखें। 2.5 फीट ऊंचा चिक गार्ड लगाएं ताकि चूजे बाड़े से बाहर न निकल सकें। पालन गृह में प्रत्येक 100 वर्गफीट के क्षेत्र में 40 वाट का बल्ब लगाएं। 3 हफ्ते के बाद चूजों के घेरे को बढ़ाकर पालन क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है, और बाद में इसे 6 हफ्तों के समय तक हटा दिया जाता है। चूजों के 10 किलो ग्राम वजन होने तक या 14 हफ्ते तक शुरुआत में दी जानी वाली सानी खिलाएं।

पक्षियों के स्थान में पर्याप्त जगह होनी चाहिए, क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए इन्हें दौड़ने-भागने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए 30 फीट स्थान की जरूरत होती है। अतः बाहरी स्थान के लिए 40 चूजों के लिए जमीन का क्षेत्रफल 40 * 30 फीट होना चाहिए। जमीन आसानी से पानी द्वारा साफ होने वाली होनी चाहिए यानि उसमें सीलन न लगे।

ऐसा करें

  • बाड़े में अधिक पक्षी न रखें।
  • पहले कुछ समय के लिए स्वच्छ जल और एंटी-स्ट्रेस एजेंट दें।
  • पानी रोज साफ करें, नहीं तो स्वत: आने वाले जल की व्यस्था करें।
  • पक्षियों के आराम, भोजन, जल अंतर्गग्रहण, कचरे की स्थिति इत्यादि की नियमित निगरानी करें, ताकि कुछ सुधार करने की जरूरत हो तो आप जल्द उसे अमल में ला सकते हैं।
  • चूजे के स्वस्थ विकास और टांगों के टेढ़ेपन से बचने के लिए सही खनिज मात्रा तथा विटामिन दें।
  • बेहतर जैवसुरक्षा बहाल करने के लिए पालन के सभी प्रचनलों को व्यवहार में लाएं।

ऐसा न करें

  • गर्म समय के दौरान उन्हें कभी न उठाएं।
  • ये पक्षी आसानी से उत्तेजित हो जाते हैं। अतः बाड़े का माहौल शांत होना चाहिए।
  • ये पक्षी किसी भी वस्तु को आसानी से पकड़ सकते हैं, इसलिए कुछ चीजें जैसे, कील, छोटे पत्थरों को उनकी पहुंच से दूर रखें।
  • बाड़े में अनधिकृत व्यक्तियों तथा सामग्रियों को प्रवेश न करने दें। सही जैव-सुरक्षा अति महत्वपूर्ण है।
  • पक्षियों को कभी चिकनी सतह पर न रखें, बल्कि वहां धान की भूसी बिछा दें, क्योंकि चूजे आसानी से उत्तेजित हो जाते हैं और दौड़ने-भागने लगते हैं, जिससे उनकी टांगें टूट सकती है।

पालन प्रबंधन

एमू के चूजे जब बड़े होते हैं तो उन्हें बड़े आकार के पानी-चारा वाले वाले बरतनों और अधिक क्षेत्रफल वाले स्थान की जरूरत होती है। उनके लिगों को पहचानें और उन्हें अलग-अलग पालें। यदि जरूरी हो तो बाड़े में धान की पर्याप्त भूसी रखें, ताकि कचरों को सूखी स्थिति में रखा जा सके।

चूजे तब तक 25 किलो ग्राम के या 34 हफ्ते तक के न हो जाएं, उन्हें वृद्धि बढ़ाने वाली सानी दें। उन्हें आहार के 10% हरे, खास कर पत्तियों के चारे भी दें ताकि उन्हें रेशेदार आहार खाने की आदत पड़ जाए। हर समय उन्हें स्वच्छ जल दें और जब भी उन्हें चारे की आवश्यकता हो, उपलब्ध कराएं। वृद्धि के चरण में हमेशा कचरों को सूखा रखें। यदि जरूरत हो तो बाड़े में धान की अधिक भूसी डालें। यदि बाहरी जगह की जरूरत हो तो, 40 पक्षियों के लिए 40ft x 100 ft क्षेत्रफल का स्थान बनाएं।

चारे आसानी से साफ हो सकें ताकि बाड़े में सीलन न रहे। छोटे पक्षियों को हाथों से दोनों तरफ से कस कर पकड़ें ताकि वे सुरक्षित रहें। कम वयस्क और वयस्क पक्षियों को दोनों तरफ से पंखों से पकड़ा जा सकता है। पक्षी को कभी टांगें मारने का मौका न दें। ये बगल की तरफ और आगे की ओर टांग मार सकते हैं। इसलिए बेहतर सुरक्षा और मजबूत पकड़ पक्षी और व्यक्ति दोनों को नुकसान से बचाता है।

ऐसा करें

  • पक्षियों की निगरानी, उनके आहार और पानी की व्यवस्था को देखने के लिए दिन में कम से कम एक बार उन्हें जरूर देख लें।
  • उनके पैरों में आने वाली समस्या और ड्रॉपिंग पर ध्यान रखें। बीमार पक्षी की पहचान कर उन्हें स्वस्थ पक्षी से अलग रखें।
  • उनके पालन में सभी प्रचलनों का प्रयोग करें। वयस्क पक्षियों से निकटता न बनाएं।

ऐसा न करें

  • तेज और नुकीली चीजों को पक्षियों के समीप न रखें। ये पक्षी शरारती किस्म के होते हैं और अपने आस-पास की किसी भी वस्तु को उठा सकते हैं।
  • गर्म मौसम में उन्हें टीका देने या अन्य कार्यों के लिए कभी न उठाएं।
  • पूरा दिन उन्हें ठंडा और साफ पानी उपलब्ध कराएं।

प्रजनन प्रबंधन

पक्षी यौन रूप से 18-24 महीने में परिपक्व हो जाते हैं। नर और मादा की संख्या का अनुपात 1:1 रखें। बाड़े में जोड़ा खाने की स्थिति में उनकी जोड़ी उनकी अनुकूलता को ध्यान में रख कर बनानी चाहिए। ‘जोड़ा खाने’ के दौरान स्थान का क्षेत्रफल 2500 sft (100 x 25) प्रति जोड़ा होना चाहिए। एकांत देने के लिए वृक्ष और पौधे दिए जा सकते हैं ताकि उनके बीच यौन संपर्क हो सके। प्रजनन आहार को प्रजनन कार्यक्रम से 3-4 हफ्ते पहले ही उन्हें दें, साथ ही उन्हें अच्छी उर्वरता और अंडे की सफलता के लिए खनिज और विटामिनों की भी मात्रा दें। सामान्यतः वयस्क एमू प्रति दिन 1 किलोग्राम चारा खाता है। पर प्रजनन काल में भोजन की मात्रा कम हो जाती है। इसलिए पोषण तत्त्वों की मात्रा सुनिश्चित करें।

यह अपना पहला अंडा ढाई वर्ष की आयु में देता है। अंडे अक्टूबर से फरवरी के बीच, खास कर ठंडे समय में दिए जाते हैं, जो शाम 5.30 बजे से 7 बजे के बीच दिए जाते हैं। सामान्यतः एक मादा एमू पहले वर्ष लगभग 15 अंडे दे सकती है। बाद के वर्षों में यह बढ़ कर 30-40 तक हो जाते हैं। औसतन एक वर्ष में 25 अंडे प्राप्त होते हैं, जिनका वजन 475-65 ग्राम के करीब होता है। एमू के अंडे हरे होते हैं और ये मार्बल की तरह दिखते हैं। रंग गहरे, मध्यम या गहरे हरे तक हो सकते हैं। अंडे की सतह खुरदरे या चिकने हो सकते हैं। अधिकतर अंडे (42%) मध्यम हरे और खुरदरी सतह वाले होते हैं।

एमू के अंडे

अंडे के उचित और मजबूत कैल्शिकरण के लिए सामान्य चारे और प्रजनन चारे में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम (2.7%) की आवश्यकता होती है। पर अंडे देने से पहले के समय में अधिक मात्रा में कैल्शियम खिलाने से अंडे के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है और इससे नर उर्वरता भी घटती है। अतिरिक्त कैल्शियम को ग्रिट और कैल्साइट पाउडर के रूप में, अलग से दिया जाना चाहिए। बाड़े से अंडों को नियमित एकत्र करना चाहिए। यदि अंडे मिट्टी में दिए जाते हैं तो उन्हें सैंड पेपर से रगड़ कर रूई से साफ कर लें। अंडों को 60 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान वाले कमरे में रखें। अंडों से सही तरह चूजे निकलने के लिए उन्हें 10 दिन से अधिक भंडारित न करें। अंडों से सही तरह चूजे निकलने के लिए कमरे के तापमान को प्रत्येक 3 से 4 दिनों पर सेट करना चाहिए।

इंक्यूबेशन और अंडों से चूजे का बाहर आना (हैचिंग)

उर्वर अंडों को कमरे के तापमान पर सेट करें। उन्हें क्षैतिज या हल्के ढाल वाले ट्रे में रखें, जिनमें पंक्तियां बनी हों। अंडों के इंक्यूबेटर को अच्छी तरह से साफ कर उसे संक्रमण मुक्त कर लें। मशीन को चालू कर उसे सही तापमान पर सेट कर लें, यानि शुष्क बल्ब तापमान 96-97 डिग्री फॉरेन्हाइट तथा नम बल्ब तापमान 78-80 (लगभग 30 से 40 डिग्री RH) डिग्री तापमान।

अंडे के ट्रे को सावधानीपूर्वक सेटर में रखें। इंक्यूबेटर के सेट किए तापमान तथा सही आर्द्रता के साथ तैयार हो जाने के बाद, यदि जरूरत हो तो, आइडेंटिफिकेशन स्लिप को तिथि तथा पेडिग्री सेट करने के लिए रखें। इंक्यूबेटर को 20 ग्राम पोटाशियम परमैंगनेट और 40 मिली. फॉर्मलीन के साथ धूम्रीकृत करें। यह प्रति 100 वर्ग फीट के स्थान में किया जाना चाहिए। 48 दिनों तक अंडों को उलटते-पलटते रहें। 49वें दिन के बाद से ऐसा करना बंद कर दें और पिपिंग के लिए देखते रहें। 52वें दिन इंक्यूबेशन अवधि खत्म हो जाती हैं। चूजों को सूखने की जरूरत होती है। उन्हें कम से कम 24 से 72 घंटे तक हैचर कंपार्टमेंट में रखें। सामान्यतः अंडे की फूटने की सफलता 70% या उससे भी अधिक होती है। इसकी कम सफलता के कई कारण होते हैं। सही प्रजनन कारक आहार से स्वस्थ चूजे निकलते हैं।

आहार

अपने सही विकास और उत्पादन के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। किताबों के अनुसार कुछ पोषण आवश्कता को तालिका 1 और 3 में दिखाया गया है। आहार को सामान्य पॉल्ट्री आहार की तरह ही तैयार किया जा सकता है (तालिका 2)। एमू के पालन में 60 से 70% खर्च आहार पर ही होता है, अतः कम कीमत वाले आहार से यह खर्च कुछ घटाया जा सकता है। व्यावसायिक फार्मों में, प्रति एमू उपयोग किए जाने वाले आहार की मात्रा 394-632 प्रति वर्ष होती है, जो औसतन 527 किलो ग्राम होती है। आहार की कीमत प्रति किग्रा, क्रमशः (गैर-प्रजनन और प्रजनन काल में) 6.50 से 7.50 रु होती है

विभिन्न आयु समूह वाले एमू के लिए सुझाई गई आहार मात्रा

पारामीटरस्टार्टर 10-14 हफ्ते की आयु या 10 किग्रा शरीर का भारवृद्धि कारक (ग्रोअर)

15-34 हफ्ते की आयु या 10-25किग्रा शरीर का भार

प्रजननकारी (ब्रीडर)
कच्चा प्रोटीन %201820
लायसीन%1.00.80.9
मीथियोनीन%0.450.40.40
ट्रिप्टोफैन %0.170.150.18
थ्रेओनीन %0.500.480.60
कैल्शियम % मिनी1.51.52.50
कुल फॉस्फोरस %0.800.70.6
सोडियम क्लोराइड%0.400.30.4
कच्चा रेशा  (अधिकतम) %91010
विटामिन A(IU/kg)15000880015000
विटामिन D 3 (ICU/kg)450033004500
विटामिन E (IU/kg)10044100
विटामिन B 12 (µ g/kg)452245
विटामिन (mg/kg)220022002200
विटामिन (mg/kg)303330
जिंक (mg/kg)110110110
मैंगनीज (mg/kg)150154150
आयोडीन(mg/kg)1.11.11.1

 

एमू के आहार (kg/100kg)

घटकस्टार्टरवृद्धि कारक (ग्रोअर)समापन कारक (फिनिशर)प्रजनन कारक (ब्रीडर)रखरखाव

(मेंटेनेस)

मक्का5045605040
सोयाबीन आहार3025202525
DORB1016.2516.1515.5016.30
सूर्यमुखी6.15100015
डाइ-कैल्शियम फॉस्फेट1.51.51.51.51.5
कैल्साइट पाउडर1.51.51.51.51.5
शेल ग्रिट00060
नमक0.30.30.30.30.3
सूक्ष्म खनिज तत्त्व0.10.10.10.10.1
विटामिन0.10.10.10.10.1
कोकियोडायोस्टैट0.050.050.0500
मेथियोनाइन0.250.150.250.250.15
कोलाइन क्लोराइड0.050.050.050.050.05

 

स्वास्थ्य तथा प्रबंधन

रेटाइट पक्षी सामान्यतः मजबूत होते हैं तथा लंबे समय तक जीवित (80 % जीवन क्षमता) रहते हैं। मृत्यु और स्वास्थ्य की समस्या मुख्यतः चूजों तथा छोटे एमू में होती। इन समस्याओं में भूखा रहना, कुपोषण, आंत की समस्या, पैरों की विकृति, कोलाई संक्रमण तथा क्लोस्ट्राइडियल संक्रमण शामिल हैं। इन समस्याओं का मुख्य कारण है अनुपयुक्त पालन बाड़ा या पोषण, दवाब, अनुपयुक्त संचालन और आनुवंशिक रोग। अन्य रोगों में शामिल हैं- रिनाइटिस, कैंडिडायसिस, साल्मोनेला, अस्पर्जिलोसिस, कोकिडिओसिस, लाइस और ऐस्केरिड संक्रमण। आंतरिक तथा बाह्य कीड़ों को मारने के लिए आइवरमेक्टिन की खुराक दी जा सकती है।

यह 1 महीने की शुरुआत पर 1-1 महीने के अंतराल पर दिया जा सकता है। एमू में एंट्राइटिस तथा वायरल इस्टर्न एक्विन एन्सेफालोमाइलाइटिस (EEE) का रोग भी देखा जाता है। भारत में अब तक रानीखेत बीमारी के कुछ मामले देखे गए हैं, पर उनकी संपूर्ण पुष्टि नहीं हुई है। हालांकि पक्षियों को R.D के लिए लसोटा टीके 1 हफ्ते की उम्र में, 4 साल की उम्र में (लसोटा बूस्टर); 8,15 और 40 हफ्तों में मुक्तेस्वर स्ट्रेन से बेहतर प्रतिरक्षी क्षमता बनती है।

एमू के उत्पाद

भारत में एमू तथा शतुरमुर्ग का मांस उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है, जिसमें कम चर्बी, कम कॉलेस्ट्रॉल होते हैं, और ये अच्छे स्वाद वाला होता है। जांघ और निचले पैर की बड़ी मांसपेशी अच्छी मानी जाती है। एमू की खाल उम्दा और मजबूत प्रकार की होती है। पैर की त्वचा विशेष पैटर्न की होती है, इसलिए कीमती होती है। एमू की चर्बी से तेल का उत्पादन किया जाता है, जिसमें आहारीय तथा औषधीय (जलन भगाने वाले गुण) तथा कॉस्मेटिक गुण होते हैं।

आय व्यय

एमू फार्म के आर्थिक सर्वेक्षण से यह साबित होता है कि ब्रीडिंग़ स्टॉक के लिए खरीद पर आने वाला खर्च महंगा होता है (68%)। शेष खर्च फार्म (13%) तथा हैचरी (19%) में होता है। प्रति ब्रीडिंग प्रति वर्ष आहार पर 3600 रुपए का खर्चा आता है। अंडे के हैचिंग और एक दिन के चूजे के उत्पादन में क्रमशः 793 तथा 1232 रु. का खर्च आता है। प्रति जोड़े प्रति वर्ष दिए जाने वाले आहार पर (524 किग्रा) 3578 रु का खर्च आता है। बिक्री योग्य चूजों पर 2500-3000 रु. की लागत आती है। अंडे की अच्छी सफलता (80%), आहार में खर्च कम कर और मृत्युदर को घटाकर (10% से कम) अच्छा लाभ कमाया जा सकता है।

जैव उत्पाद ‘डिकम्पोजर’ एवं जैविक खेती’ : विशेषज्ञों ने किसानों को दी जानकारी

डिकम्पोजर :-सभी प्रकार की फसलों में पोषक तत्व बढ़ाने एवं कीट व्याधि नियंत्रण के लिए उपयोगी होता है। यह उत्पाद देशी गाय के गोबर से बनाया जाता है। छत्तीसगढ़ कृषि प्रबंधन एवं विस्तार प्रशिक्षण संस्थान के सभाकक्ष में ‘कृषि अपशिष्ट अपघटक एवं जैविक खेती’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय परिचर्चा सह कार्यशाला में विशेषज्ञों ने किसानों के लिए यह उपयोगी जानकारी दी।

राष्ट्रीय जैविक कृषि केंद्र गाजियाबाद के निदेशक डॉ. कृष्णचंद्र ने आधुनिक खेती में फसल अपशिष्ट के प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वेस्ट डिकम्पोजर के उपयोग एवं महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि किसानांे द्वारा धान पैरा को खेतों में ही जला दिया जाता है। इससे मिट्टी के सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचता है।

पैरा को सड़ाकर 

पैरा को सड़ाने के लिए डिकम्पोजर का उपयोग करना बेहद लाभदायक होता है। डिकम्पोजर को हल्की सिंचाई किए जैसे पैरा में छिड़कना चाहिए। इससे 40-45 दिन के अंदर पैरा सड़ जाता है और बाद में उत्तम किस्म का खाद बन जाता है। उन्होंने बताया कि डिकम्पोजर के एक शीशी मात्रा को 200 लीटर पानी एवं दो किलोग्राम गुड़ में मिलाकर इसे अधिक मात्रा में तैयार किया जा सकता है। एक शीशी डिकम्पोजर की कीमत मात्र 20 रूपए हैं। डॉ. कृष्णचंद्र ने परम्परागत कृषि विकास योजना तथा पी.जी.एस. जैविक प्रमाणीकरण पद्धति के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।

 जैविक खेती में डिकम्पोजर

जैविक खेती में डिकम्पोजर के उपयोग को बढ़ावा देने की मंशा जाहिर करते हुए वहां उपस्थित कृषि विभाग के मैदानी अधिकारियों को इसके लिए भरपूर सहयोग करने का आग्रह किया। अपर संचालक कृषि डॉ. एस.आर. रात्रे ने जैविक खेती में फसल अपशिष्ट प्रबंधन पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में फसल कटाई के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ गया है। इससे फसल के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं, जिसे किसान बाद में जला देते हैं। इन अवशेषों को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्व नष्ट हो जाते हैं। डि कम्पोजर के माध्यम से इन अवशेषों को सड़ाकर खाद बनाने से किसानों को बहुत फायदा होगा। कार्यशाला में उद्यानिकी,  बीज प्रमाणिकरण संस्थान तथा कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भागीदारी की।

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) योजना

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) योजना

क्या है राष्ट्रीय बाजार योजना :-

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स ट्रेडिंग पोर्टल है जिससे मौजूदा कृषि उपज विपणन समितियों (एपीऍमसी) और अन्य कृषि मंडियों के नेटवर्क से जोड़कर एक विशाल बाज़ार का निर्माण किया है I राष्ट्रीय कृषि बाज़ार कहने को तो वर्चुअल बाजार है, लेकिन यह किसी भी किसान/व्यापारी को देश की किसी भी कृषि मंडी में समान खरीदने व बेचने की सहूलियत देता है I

कृषि बाजार को राज्यों द्वारा उनके कृषि-व्यवसाय विनिमय द्वारा संचालित किया जाता है, जिसके अंतर्गत, राज्य को विभिन्न बाजार क्षेत्रों में बांटा जाता है, जिसमें से प्रत्येक का संचालन अलग-अलग कृषि उपज बाजार समिति (ए.पी.एम.सी), जो इसके अपने व्यवसाय विनिमय (शुल्क के साथ) को लागू करता है, के द्वारा किया जाता है। बाजारों का यह विखंडन, यहां तक कि राज्य के भीतर, एक बाजार से दूसरे बाजार में कृषि उपजो के आवागमन तथा कृषि-उत्पाद के अलग-अलग तरह से निपटान में बाधा पहुंचाता है और मंडी शुल्कों के अलग-अलग स्तर किसानों के अनुरूप लाभ के बिना उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ते जाती है।

ऑनलाइन व्यापार मंच

ई-नाम राज्य एवं राष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर ऑनलाइन व्यापार मंच का निर्माण करके इन चुनौतियों को ध्यान दिलाता है, संपूर्ण एकीकृत बाजारों की प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने के लिए एकरूपता को प्रोत्साहित करता है, खरीददारों और विक्रेताओं के बीच की विषम जानकारी को हटाता है तथा वास्तविक मांग एवं आपूर्ति पर आधारित वास्तविक समय मूल्य की खोज को बढ़ावा देता है, नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है और अपनी उपज की गुणवत्ता वाले अनुरूप मूल्यों एवं ऑनलाइन भुगतान तथा बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद की उपलब्धता के जरिए किसान को राष्ट्रव्यापी बाजार की पहुँच प्राप्त करवाना और उपभोक्ता को अधिक उचित मूल्य पर उत्पाद उपलब्ध करवाना है।

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार और मौजूदा मंडी व्यवस्था में अंतर :-

यह कोई दूसरा वैकल्पिक बाजार नहीं है बल्कि मौजूदा मंडियों को ही एक नेटवर्क में जोड़कर किसानों और कृषि व्यापारियों को आमने सामने कर देता है I यह तकनीकी के जरिये खरीदारों को देश की विभिन्न मंडियों से जोड़ता है जिससे खरीदार किसी दुसरे राज्य में बैठकर भी किसी अन्य राज्य की मंडी से समान का भाव पता कर सकता है और माल खरीद सकता है

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार कैसे काम करता है ?

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय कृषि बाज़ार का विकास किया जा रहा है I इसके लिए इन्टरनेट आधारित व्यापर पोर्टल विकसित किया गया है जो देश की सभी इछुक मंडियों को उपलब्ध कराया जा रहा है I इसके साथ कृषि उपज मंडी के कर्मचारियों व व्यापारियों के प्रशिक्षण आधारभूत सरंचना आदि के लिए वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराई जा रही है जिससे कृषि उपज मंडी इस व्यवस्था को प्रवाभशाली रूप से चला पाने में सक्षम हों I

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार योजना से क्या लाभ है ?

राष्ट्रीय कृषि बाज़ार को ऐसी व्यवस्था के रूप में विकसित किया गया जिससे की इससे जुड़े हर वर्ग को लाभ मिल सके किसान को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के माध्यम से कृषि उत्पाद विक्रय में अधिक दाम मिलने की सम्भावना है I स्थानीय व्यापारियों को अपने ही प्रदेश के अन्य भागों में तथा अन्य राज्यों में कृषि उत्पाद खरीदने व बेचने का मौका मिलेगा I थोक व्यापारियों एवं मिल संचालकों को सीधे राष्ट्रीय कृषि बाज़ार के माध्यम से दूर स्थित मंडियों से कृषि उत्पाद खरीदने का मौका मिलेगा ग्राहकों को कृषि उपज आसानी से उपलब्ध होगी एवं मूल्य स्थिर रहेगा I बड़े पैमाने पर खरीद होने से गुणवत्ता सुनिश्चित होगी तथा बिक्री न होने के कारण उपज ख़राब नहीं होगी I

  1. शुरुआत में 24 उपजों जिनमें सेब,आलू,प्याज,हरी मटर, महुआ के फूल. साबुत अरहर, साबुत मूंग, साबुत मसूर, साबुत उड़द, गेंहू, मक्का, चना, बाजरा, जो, ज्वार, धान, अरंडी के बीज, सरसों, सोयाबीन, मूंगफली, कपास, जीरा, लाल मिर्च, और हल्दी शामिल है I
  2. 14 अप्रैल 2016 को यह नेटवर्क 8 राज्यों की 21 मंडियों में लागू हुआ और अब  तक 250 मंदिय्या इससे जुड़ चुकी है I हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश एवं झारखण्ड को राष्ट्रीय कृषि बाज़ार से जुड़ने की मंजूरी दे दी है I

ई-नाम के उद्देश्य

  • विनियमित बाजार में पारदर्शी विक्रय सुविधा और मूल्य खोज के लिए राष्ट्रीय ई-बाजार मंच प्रारंभ से ही है। अपनी राज्य कृषि विपणन बोर्ड/ए.पी.एम.सी के द्वारा ई-व्यापार के विज्ञापन के लिए इच्छुक राज्य अपनी ए.पी.एम.सी अधिनियम में तदनुसार उपयुक्त प्रावधानों को पूरा करते हैं।
  • बाजार यार्ड में भौतिक उपस्थिति या दुकान / परिसर के कब्जे के किसी पूर्व शर्त के बिना राज्य के अधिकारियों द्वारा व्यापारियों / खरीदारों और कमीशन एजेंटों की लिबरल लाइसेंस।
  • व्यापारी का एक लाइसेंस राज्य भर के सभी बाजारों में मान्य रहेगा।
  • कृषि उपज की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप और खरीददारों द्वारा सूचित बोली सक्षम करने के लिए प्रत्येक बाजार में परख करने की क्रिया के लिए (गुणवत्ता परीक्षण) मूलभूत सुविधाओ का प्रावधान। सामान्य व्यापार के लिए गुणवतियो को अब तक 25 उपजो के लिए विकसित किया गया है।
  • बाजार शुल्क एकत्र करने के एक स्तर, अर्थात् किसान के पहले थोक खरीद पर।
  • किसानों का दौरा सुविधा के लिए मंडी में ही इस सुविधा का उपयोग करने के लिए चयनित मंडी में/ या नजदीक मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं का प्रावधान। सुश्री नागार्जुन फर्टलाइजर्स और केमिकल्स लिमिटेड रणनीतिक साथी (एस.पी) है, जो विकास, परिचालन और प्लेटफॉर्म का रखरखान करने के लिए जिम्मेदार है। रणनीतिक साथी की मुख्य भूमिका बहुत ही व्यापक है और इसमें सॉफ्टवेयर बनाना, ई-नाम के साथ एकीकृत होने के इच्छुक राज्यों में मंडियों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसे अनुकूल बनाना और मंच पर चलाना शामिल है।

 

जानें क्या थी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें

किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने और अन्न की आपूर्ति को भरोसेमंद बनाने के लिए जानें क्या थी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें | स्वामीनाथन आयोग की महत्वपूर्ण बातें क्या थी जो किसान अभी तक उसे लागू करने पर समय समय पर आन्दोलन करते रहते हैं

स्वामीनाथन आयोग क्यों बना था ?

एमएस स्वामिनाथन की अध्यक्षता में किसानों के राष्ट्रीय आयोग ने दिसंबर 2004 – अक्टूबर 2006 के दौरान पांच रिपोर्ट जमा की। प्रथम चार से, अंतिम रिपोर्ट में किसान आत्महत्याओं में वृद्धि के कारणों पर ध्यान केंद्रित किया, और संबोधित करने की सिफारिश की उन्हें किसानों के लिए एक समग्र राष्ट्रीय नीति के माध्यम से निष्कर्ष और सिफारिशें संसाधनों और सामाजिक सुरक्षा अधिकारों तक पहुंच के मुद्दों को शामिल करती हैं। यह सारांश भूमि सुधार, सिंचाई, ऋण और बीमा, खाद्य सुरक्षा, रोजगार, कृषि और किसान प्रतिस्पर्धात्मकता की उत्पादकता के तहत महत्वपूर्ण निष्कर्षों और नीति सिफारिशों पर प्रकाश डालने का एक त्वरित संदर्भ बिंदु है।

किसानों पर राष्ट्रीय आयोग (एनसीएफ) 18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर एमएस के अध्यक्षता में गठित किया गया था। स्वामीनाथन संदर्भ की शर्तें सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम में सूचीबद्ध प्राथमिकताओं को दर्शाती हैं। एनसीएफ ने दिसंबर 2004, अगस्त 2005, दिसंबर 2005 और अप्रैल 2006 में चार रिपोर्ट प्रस्तुत की। पांचवीं और अंतिम रिपोर्ट 4 अक्टूबर, 2006 को प्रस्तुत की गई थी। रिपोर्ट में “तेज और अधिक समावेशी विकास” के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सुझाव शामिल हैं, जैसा कि 11 वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण में माना गया है।

आयोग को किन मुद्दों पर काम किया

एनसीएफ को ऐसे मुद्दों पर सुझाव देने के लिए अनिवार्य है जैसे कि:

  • समय के साथ सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा के लक्ष्य की दिशा में कदम रखने के लिए देश में भोजन और पोषण सुरक्षा के लिए एक मध्यम अवधि की रणनीति;
  • देश की प्रमुख खेती प्रणालियों की उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता को बढ़ाने;
  • नीति सुधारों के लिए सभी किसानों को ग्रामीण ऋण का प्रवाह बढ़ाने के लिए;
  • शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में किसानों के लिए सूखी भूमि खेती के लिए विशेष कार्यक्रम, साथ ही पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में किसानों के लिए विशेष कार्यक्रम;
  • कृषि वस्तुओं की गुणवत्ता और लागत प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए ताकि उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना सकें;
  • आयात से किसानों की रक्षा करते हुए अंतरराष्ट्रीय कीमतें तेजी से गिरती हैं;
  • स्थायी कृषि के लिए पारिस्थितिक नींवों को प्रभावी रूप से संरक्षित और बेहतर बनाने के लिए निर्वाचित स्थानीय निकायों को सशक्त बनाना;

प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें

किसानों के लिए संकट का कारण हाल के वर्षों में कृषि संकट ने किसानों को आत्महत्या करने का नेतृत्व किया है। कृषि संकट के प्रमुख कारण हैं: भूमि सुधार, मात्रा और पानी की गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी थकान, पहुंच, पर्याप्तता और संस्थागत ऋण की समयावधि, और आश्वासन दिया और लाभकारी विपणन के अवसरों में अधूरा कार्यसूची। प्रतिकूल मौसम संबंधी कारक इन समस्याओं को जोड़ते हैं

किसानों को बुनियादी संसाधनों पर आश्वासन और नियंत्रण की आवश्यकता है, जिसमें जमीन, जल, जैव संसाधन, क्रेडिट और बीमा, प्रौद्योगिकी और ज्ञान प्रबंधन और बाजार शामिल हैं। एनसीएफ अनुशंसा करता है कि “कृषि” संविधान की समवर्ती सूची में डाली जाए।

भूमि सुधार

फसलों और पशुओं दोनों के लिए भूमि तक पहुंच के मूलभूत मुद्दे को हल करने के लिए भूमि सुधारों की आवश्यकता है। भूमि स्वामित्व में भूमि की असमानता परिलक्षित होता है 1991-92 में, कुल भूमि स्वामित्व में ग्रामीण परिवारों के निचले आधे हिस्से का हिस्सा केवल 3% था और शीर्ष 10% 54% के बराबर था।

मुख्य सिफारिशों में से कुछ में शामिल हैं:

  • छत-अधिशेष और अपशिष्ट जल का वितरण;
  • गैर कृषि उद्देश्यों के लिए प्रधानमंत्री कृषि भूमि और वन से कॉर्पोरेट क्षेत्र के मोड़ को रोकें
  • चराई के अधिकार और आदिवासियों और चरवाहों के लिए जंगलों तक मौसमी पहुंच और सामान्य संपत्ति संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
  • एक राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाहकार सेवा की स्थापना करें, जिसमें स्थान और मौसम संबंधी आधार पर पारिस्थितिक मौसम संबंधी और विपणन कारकों के साथ भूमि उपयोग निर्णयों को जोड़ने की क्षमता होगी।
  • भूमि की मात्रा, प्रस्तावित उपयोग की प्रकृति और खरीदार की श्रेणी के आधार पर कृषि भूमि की बिक्री को विनियमित करने के लिए एक तंत्र स्थापित करें।

सिंचाई

1 9 2 मिलियन हेक्टेयर के सकूल बोया क्षेत्र से, वर्षायुक्त कृषि कुल फसले क्षेत्र का 60 प्रतिशत और कुल कृषि उत्पादन का 45 प्रतिशत योगदान देता है। रिपोर्ट की सिफारिश की गई है:

किसानों को पानी के लिए निरंतर और न्यायसंगत पहुंच प्रदान करने में सक्षम बनाने के लिए सुधारों का एक व्यापक सेट।

वर्षा जल संचयन के माध्यम से पानी की आपूर्ति बढ़ाएं और जलभृत का रिचार्ज अनिवार्य हो जाना चाहिए। “लाख वेल्स रिचार्ज” कार्यक्रम, विशेष रूप से निजी कुओं में लक्षित किया जाना चाहिए।

बड़ी सतह जल प्रणालियों के बीच विभाजित 11 वीं पंचवर्षीय योजना के तहत सिंचाई क्षेत्र में निवेश में पर्याप्त वृद्धि; भूजल पुनर्भरण के लिए छोटी सी सिंचाई और नई योजनाएं

कृषि की उत्पादकता

होल्डिंग के आकार के अलावा, उत्पादकता के स्तर मुख्य रूप से किसानों की आय का निर्धारण करते हैं। हालांकि, भारतीय कृषि की प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादकता अन्य प्रमुख फसल उत्पादक देशों की तुलना में बहुत कम है।

कृषि में उत्पादकता में उच्च वृद्धि हासिल करने के लिए, एनसीएफ सिफारिश करती है:

  1. कृषि संबंधी बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश में पर्याप्त वृद्धि, विशेषकर सिंचाई, जल निकासी, भूमि विकास, जल संरक्षण, अनुसंधान विकास और सड़क संपर्क आदि।
  2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का पता लगाने के लिए सुविधाओं के साथ उन्नत मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क।
  3. संरक्षण खेती का संवर्धन, जो कृषि परिवारों को मिट्टी के स्वास्थ्य, पानी की मात्रा और गुणवत्ता और जैव विविधता के संरक्षण और सुधार में मदद करेगा।

क्रेडिट और बीमा

ऋण की समय पर और पर्याप्त आपूर्ति छोटे खेत परिवारों की एक बुनियादी आवश्यकता है।

एनसीएफ सुझाव देता है:

  1. वास्तव में गरीबों और जरूरतमंदों तक पहुंचने के लिए औपचारिक ऋण प्रणाली का विस्तार करें।
  2. सरकारी सहायता के साथ, फसल ऋण के लिए ब्याज दर 4 प्रतिशत तक कम करें।
  3. गैर-संस्थागत स्रोतों से ऋण सहित ऋण वसूली पर रोक, और संकट के दौरान और आपदाओं के दौरान ऋण पर ब्याज की छूट, जब तक क्षमता बहाल नहीं हो जाती।
  4. लगातार प्राकृतिक आपदाओं के बाद किसानों को राहत प्रदान करने के लिए एक कृषि जोखिम फंड की स्थापना करें।
  5. महिलाओं के किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड जारी करें, संयुक्त पट्टा को संपार्श्विक के रूप में दें।
  6. एकीकृत क्रेडिट-कम-फसल-पशुधन-मानव स्वास्थ्य बीमा पैकेज का विकास करना।
  7. ग्रामीण बीमा के प्रसार के लिए विकास कार्य को पूरा करने के लिए पूरे प्रीमियम प्रीमियम को कम करने के साथ संपूर्ण देश और सभी फसलों को कवर करने के लिए फसल बीमा का विस्तार करें और ग्रामीण बीमा विकास कोष बनाएं।
  • वित्तीय सेवाओं
  • बुनियादी ढांचे
  • मानव विकास, कृषि और व्यावसायिक विकास सेवाओं (उत्पादकता में वृद्धि, स्थानीय मूल्य में वृद्धि और वैकल्पिक बाज़ार संबंधों सहित) में निवेश और
  • संस्थागत विकास में सुधार के द्वारा गरीबों के लिए स्थायी आजीविका को बढ़ावा देना। सेवाएं (उत्पादक संगठनों को बनाने और मजबूत करने जैसे स्व-सहायता समूह और जल उपयोगकर्ता संगठन)

खाद्य सुरक्षा

10 वीं योजना के मध्यावधि मूल्यांकन से पता चला है कि भारत 2015 तक भूख से हज़ारों में मिलेनियम विकास लक्ष्यों को हासिल करने में पीछे है। इसलिए, प्रति व्यक्ति अन्न की उपलब्धता और इसके असमान वितरण में गिरावट ग्रामीण और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के गंभीर प्रभाव है। शहरी क्षेत्र।

गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों का अनुपात 2004-05 में लगभग 28% था (लगभग 300 मिलियन व्यक्ति)। हालांकि, 1 999 -2000 में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2400 किलोग्राम (गरीबी रेखा से नीचे की परिभाषा को रेखांकित) से कम जनसंख्या उपभोग आहार का प्रतिशत ग्रामीण आबादी का लगभग 77% था कई अध्ययनों से पता चला है कि गरीबी केंद्रित है और सीमित संसाधनों वाले मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में भोजन का अभाव तीव्र है जैसे बारिश से खिलाया कृषि क्षेत्रों।

रिपोर्ट की सिफारिश की गई है:

  • एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करें एनसीएफ ने बताया कि इसके लिए आवश्यक कुल सब्सिडी सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत होगी।
  • पंचायतों और स्थानीय निकायों की भागीदारी के साथ जीवन चक्र आधार पर पोषण सहायता कार्यक्रमों के वितरण का पुनर्गठन करें।
  • एक एकीकृत भोजन सह फोर्टिफिकेशन दृष्टिकोण के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी से प्रेरित छिपी भूख को हटा दें
  • सिद्धांत ‘स्टोर ग्रेन एंड वॉटर हर जगह’ के आधार पर महिला स्व-सहायता समूह (एसएचजी) द्वारा संचालित सामुदायिक खाद्य और जल बैंकों की स्थापना को बढ़ावा देना।
  • छोटे और सीमांत किसानों को कृषि उद्यमों की उत्पादकता, गुणवत्ता और लाभप्रदता में सुधार लाने और ग्रामीण गैर-कृषि जीवन-स्तर की पहल को व्यवस्थित करने में सहायता करें।
  • राष्ट्रीय खाद्य गारंटी अधिनियम तैयार करना, कार्य और रोजगार गारंटी कार्यक्रमों के लिए खाद्य की उपयोगी विशेषताओं को जारी रखना। गरीबों की खपत में बढ़ोतरी के कारण खाद्यान्न की मांग बढ़ रही है, और आगे कृषि की प्रगति के लिए आवश्यक आर्थिक स्थिति बन सकती है।

किसानों की आत्महत्याओं की रोकथाम

पिछले कुछ सालों में, बड़ी संख्या में किसानों ने आत्महत्या कर ली है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। एनसीएफ ने प्राथमिकता के आधार पर किसान की आत्महत्या की समस्या को हल करने की जरूरत को रेखांकित किया है।

सुझाव दिए गए कुछ उपायों में शामिल हैं:

  • सस्ती स्वास्थ्य बीमा प्रदान करें और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पुनर्जीवित करें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को प्राथमिकता के आधार पर आत्महत्या संबंधी हॉटस्पॉट स्थानों पर बढ़ाया जाना चाहिए।
  • किसानों की समस्याओं पर गतिशील सरकार की प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए किसानों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य स्तर के किसान आयोग को स्थापित करें।
  • जीवन बीमा के रूप में सेवा करने के लिए माइक्रोफाइनांस पॉलिसी का पुनर्गठन करें, अर्थात् प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और बाजार के क्षेत्रों में समर्थन सेवाओं के साथ क्रेडिट।
  • गांव के साथ फसल बीमा द्वारा सभी फसलों को कवर करें और आकलन के लिए इकाई के रूप में ब्लॉक न करें।
  • बुजुर्ग सहायता और स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान के साथ एक सामाजिक सुरक्षा नेट के लिए प्रदान करें।
  • जलभृत रिचार्ज और वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा देना। जल प्रयोग योजना को विकेंद्रीकृत करना और हर गांव को जलधारा को लक्ष्य करना चाहिए ताकि ग्राम सभाओं को पंचायत के रूप में कार्य कर सकें।
  • गुणवत्ता वाले बीज और अन्य निविष्टियों की सस्ती कीमत पर और सही समय और स्थान पर उपलब्धता सुनिश्चित करें।

अन्य सुझाव 

  • कम जोखिम और कम लागत वाली तकनीकों की सिफारिश करें जो किसानों को अधिक से अधिक आय प्रदान करने में मदद कर सकती हैं क्योंकि वे फसल की विफलता के सदमे से सामना नहीं कर सकते हैं, खासकर बीटी कपास जैसी उच्च लागत वाली तकनीक से जुड़ी हैं।
  • शुष्क क्षेत्रों में जीरा जैसे जीवन-बचत वाले फसलों के मामले में केंद्रित बाजार हस्तक्षेप योजनाओं (एमआईएस) की आवश्यकता है। मूल्य में उतार-चढ़ाव से किसानों की रक्षा के लिए एक मूल्य स्थिरीकरण कोष रखें।
  • किसानों को अंतर्राष्ट्रीय मूल्य से बचाने के लिए आयात शुल्क पर तेजी से कार्रवाई की आवश्यकता है
  • किसानों के संकट के आकर्षण केंद्र में गांव ज्ञान केंद्र (वीकेसी) या ज्ञान चौपाल स्थापित करें। ये कृषि और गैर-कृषि आजीविका के सभी पहलुओं पर गतिशील और मांग संचालित जानकारी प्रदान कर सकते हैं और मार्गदर्शन केंद्र के रूप में भी काम कर सकते हैं।
  • लोगों को आत्मघाती व्यवहार के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने के लिए जन जागरूकता अभियान।

किसानों की प्रतिस्पर्धात्मकता

छोटी भूमि की होल्डिंग के साथ किसानों की कृषि प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए जरूरी है। मार्केबल अधिशेष को बढ़ाने के लिए उत्पादकता में सुधार को आश्वस्त और लाभकारी मार्केटिंग अवसरों से जोड़ा जाना चाहिए।

एनसीएफ द्वारा सुझाए गए उपायों में शामिल हैं

  • संस्थागत सहायता का लाभ उठाने और प्रत्यक्ष किसान-उपभोक्ता संबंध को सुगम बनाने के लिए फसल प्रबंधन, मूल्यवर्धन और विपणन जैसे केंद्रीकृत सेवाओं के साथ विकेंद्रीकृत उत्पादन को एकजुट करने के लिए कमोडिटी आधारित किसानों की संस्थाओं को प्रोत्साहित करना।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के कार्यान्वयन में सुधार धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों के लिए एमएसपी के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही, पीडीएस में बाजरा और अन्य पौष्टिक अनाज को स्थायी रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
  • एमएसपी उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिए।
  • मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीडी) और एनसीडीईएक्स और एपीएमसी इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क के माध्यम से वस्तुएं और भविष्य की कीमतों के बारे में डेटा की उपलब्धता, 93 वस्तुएं 6000 टर्मिनलों और 430 कस्बों और शहरों के माध्यम से कवर करती हैं।
  • कृषि उत्पाद के विपणन, भंडारण और प्रसंस्करण से संबंधित राज्य कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम [एपीएमसी अधिनियम] को घरेलू उत्पाद के लिए ग्रेडिंग, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के विकास को बढ़ावा देने और एक एकल भारतीय बाजार की दिशा में कदम रखने की जरूरत है।

रोजगार

कार्यबल में संरचनात्मक परिवर्तन भारत में धीरे-धीरे यद्यपि हो रहा है। 1 9 61 में, कृषि में कर्मचारियों की संख्या का प्रतिशत 75.9% था। जबकि 1 999 -2000 में यह संख्या 59.9% हो गई। लेकिन कृषि अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार प्रदान करती है।

भारत में समग्र रोजगार की रणनीति दो चीजों को प्राप्त करना चाहती है। सबसे पहले, उत्पादक रोजगार के अवसर बनाएं और कई क्षेत्रों में रोज़गार की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए दूसरे जैसे कि वास्तविक मजदूरी में सुधार उत्पादकता के माध्यम से बढ़ोतरी ऐसा करने के उपायों में शामिल हैं:

अर्थव्यवस्था के विकास की दर में तेजी लाने;

अपेक्षाकृत अधिक श्रम केंद्रित क्षेत्रों पर जोर देते हुए और इन क्षेत्रों के तेजी से विकास को प्रेरित करना; तथा

श्रम बाजारों के ऐसे संशोधनों के माध्यम से कार्य करना बेहतर बनाना जैसे कि कोर श्रमिक मानकों को नष्ट किए बिना आवश्यक हो।

  • व्यापार,
  • रेस्तरां और होटल,
  • परिवहन,
  • निर्माण,
  • विशिष्ट क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों में जहां उत्पाद या सेवाओं की मांग बढ़ रही है, के विकास के द्वारा गैर-कृषि रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहित करें। मरम्मत और
  • कुछ सेवाएं किसानों की “शुद्ध घर की आय” की तुलना सिविल सेवकों की तुलना में होनी चाहिए।

जैव संसाधन

  • भारत में ग्रामीण लोग अपने पोषण और आजीविका सुरक्षा के लिए एक व्यापक श्रेणी के जैव संसाधनों पर निर्भर करते हैं। रिपोर्ट की सिफारिश की गई है:
  • जैव विविधता तक पहुंच के पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित करना, जिसमें औषधीय पौधों, मसूड़ों और रेजिन, तेल उपज वाले पौधों और लाभकारी सूक्ष्म जीवों सहित गैर-लकड़ी के वन उत्पादों तक पहुंच शामिल है;
  • प्रजनन के माध्यम से फसलों और खेतों के साथ-साथ मछली के सामानों के संरक्षण, सुधार और सुधार;
  • समुदाय आधारित नस्ल संरक्षण को प्रोत्साहित करना (यानी उपयोग के माध्यम से संरक्षण);
  • स्वदेशी नस्लों के निर्यात और उपयुक्त नस्लों का आयात करने के लिए अनुमति देने के लिए पौराणिक जानवरों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए।

 

धान की उपज बढ़ाने की मेडागास्कर जैविक पद्धति

धान की उपज बढ़ाने की मेडागास्कर जैविक पद्धति

धान की खेती मेडागास्कर पद्धति से धान की पैदावार बढ़ाने की नई पद्धति है जिसमें कम पानी, कम बीज और बिना रासायनिक खाद के दोगुना से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस नई पद्धति में धान के खेत में पानी भरकर रखने की जरूरत नहीं है। क्योंकि खेत में पानी भरे रखने से पौधे का सम्पूर्ण विकास नहीं होता। अगर खेत में पानी भरा हो तो पौधे की अधिकांश जड़े बालियाँ निकलने से पहले ही सड़ जाती है और उसकी बढ़वार कमजोर होती है। इसलिये उत्पादन भी कम होता है।

दूसरी तरफ मेडागास्कर पद्धति में खेत में पानी भरकर नहीं रखने से पौधे की जड़ों का समुचित विकास होता है। मिट्टी में पौधे की जड़े फैलती है। गोबर व कम्पोस्ट खाद से मिट्टी में समाहित जीवांश को जीवाणुओं द्वारा पचाकर पौधों को पोषण उपलब्ध कराते हैं। इससे ज्यादा कंसा आते हैं और ज्यादा उत्पादन होता है।

बीज का चुनाव

  1. इस पद्धति में सिर्फ एक एकड़ में 2 किलो ही बीज चाहिए।
    2. आप अपने क्षेत्र और मिट्टी के हिसाब से उपलब्ध देशी बीज का चुनाव कर सकते हैं।
    3. अगर बारिश के पानी के भरोसे खेती करना है तो जल्दी पकने वाली (हरूना) धान लगाएँ यानी 100 से 125 दिन की अवधि वाली किस्म लगाएँ।
    4. अगर सिंचाई की सुविधा है तो देर से पकने वाली (मई धान 130-150 दिन) किस्म लगा सकते हैं।

बीज का उपचार

1.बीज को नमक पानी में उपचारित कर हल्का बीज हटा दें।
2. उपचारित बीज को दिन भर ताजा पानी में भिगो दें।
3. भीगे हुए बीज को बोरी में बाँधकर एक-दो दिन तक अंकुरण के लिये रखे।
4. अंकुर फूटते ही नर्सरी में बोएँ।

नर्सरी तैयार करने का तरीका

  1. समतल जगह में गोबर खाद आदि डालकर अच्छे से तैयार कर लें।
    2. ढाई फीट चौड़ी और 10 फीट लम्बी क्यारियाँ बना लें।
    3. क्यारी जमीन से 3-4 इंच ऊँची होनी चाहिए।
    4. क्यारियों के बीच में पानी निकासी के लिये नाली होनी चाहिए।
    5. क्यारियों को समतल कर अंकुरित बीज को बोएँ।
    6. बीज ज्यादा घना न डालें, दूर-दूर रहें (एक डिस्मिल में 2 किलो बीज)
    7. गोबर खाद की हल्की परत से ढक दें।
    8. नमी कम होने पर हाथ से पानी सींचें।

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रोपाई

  1. रोपाई के लिये 10-12 दिन का ही थरहा होना चाहिए।
    2. पहले गोबर खाद डालकर खेत को तैयार कर लें।
    3. रोपाई के दो रोज पहले मताई करें और समतल करें।
    4. एक या दो दिन बाद ही निशान लगाने के लिये पानी निकाले।
    5. दतारी जैसे औजार से निशान खींचें।
    6. रोपाई के निशान 10-10 इंच के अन्तर से डालें।
    7. 8-10 कतार के बाद पानी निकासी के लिये नाली छोड़ दें।
    8. थरहा से पौधों को सावधानी से मिट्टी के साथ निकालें और खेत में ले जाएँ।
    9. लगाते समय एक-एक पौधे को अलग-अलग करें।
    10. पौधा अलग करते समय जड़ों के साथ बीज और मिट्टी भी लगी रहे।
    11. दतारी से बने चौकोर निशान पर एक-एक पौधा रोपें।

खाद की व्यवस्था

  1. इसमें गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद आदि का ही प्रयोग करें।
    2. रासायनिक खाद बिल्कुल भी डालने की जरूरत नहीं है।
    3. प्रति एकड़ पका हुआ 6-8 ट्रैक्टर ट्राली गोबर खाद डाल सकते हैं।
    4. हरी खाद के रूप में सनई या कुलथी (हिरवा) बोकर एक-डेढ़ माह बाद रोपाई के पहले सड़ा सकते हैं।

पानी का नियोजन

  1. खेत में पानी भर जाने पर निकासी करें।
    2. सिर्फ औजार से निराई के समय ही 2-3 दिन के लिये पानी में खेत में भरकर रखें।
    3. बाली निकलने से दाना भरने तक खेत में अंगुल भर पानी भरकर रख सकते हैं।
    4.. पानी निकासी के लिये नाली बनाना जरूरी है।
    5. पानी निकालकर बाजू के खेत या डबरी में रख सकते हैं जिससे जरूरत पड़ने पर सिंचाई की जा सके।

खरपतवार नियंत्रण

  1. खेत में पानी भराव न होने से खरपतवार जल्द उग आते हैं
    2. रोपाई के बाद 10-11 दिन में कतार के बीच में वीडर (औजार) चलाएँ।
    3. रोपाई के 25-30 रोज के बीच में दूसरी बार वीडर चलाएँ।
    4. वीडर चलाने के लिये खेत में पानी का भराव जरूरी है इसलिये दो रोज पहले से पानी रोकें।
    5. वीडर चलाने के बाद एक-दो दिन में पानी निकासी करें।
    6. पौधे की बढ़वार कम होने पर तीसरी बार वीडर चलाएँ।
    7. आखिरी बार बचे हुए खरपतवार की हाथ से निराई करें।

    सीधा बीज बोकर भी मेडागास्कर पद्धति से धान की खेती कर सकते हैं

    1. वर्षा आधारित और कम उपजाऊ खेत में सीधा बीज बोना ज्यादा उचित रहेगा।
    2. अच्छी बारिश होने पर 2-3 बार गोबर जोतकर खाद मिट्टी में मिला लें।
    3. मिट्टी को भुरभुरी कर समतल बना लें।
    4. 10-10 इंच दूरी में खाद डालकर निशान बना लें।
    5. उपचारित बीज भिगोकर 2-2 बीज निशान में बोएँ।
    6. बीज आधा इंच गहराई पर बोएँ।
    7. 8-10 कतार के बाद पानी निकासी के लिये नाली की जगह छोड़े।
    8. 10-15 दिन में बीज उगने के साथ-साथ खरपतनार खुरपी से निकाल दें।
    9. बारिश की कमी है तो दोबारा इसी तरह निराई करें।
    10. पानी भरा होने पर वीडर चलाकर निराई-गुड़ाई करें।
    11. दो-तीन दिन से ज्यादा पानी भरा रहने पर निकासी करें।
    12. कम अवधि और सूखारोधी किस्मों का ही प्रयोग करें।

क्या है बीज शोधन व प्रक्रिया

बीज शोधन किसानों के लिए रामबाण है, इससे किसानों को आर्थिक लाभ के साथ-साथ फसल के उपज को बढ़ाया जा सकता है।किसान धान, मक्का, अरहर व मूंगफली के बीज को शोधन कर कीट व रोग से होने वाले नुकसान से निजात पा सकते हैं। ऐसा करने से फसल में अस्सी फीसदी रोग लगने की संभावना कम हो जाती है। आइये देखते हैं क्या है बीज शोधन व उसकी प्रक्रिया :-

बीज शोधन व प्रक्रिया

किसानों को बीज शोधन के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। बीज शोधन की प्रक्रिया को अपनाने में किसानों को मामूली धनराशि खर्च करनी होती है। एक अनुमान के अनुसार किसानों को एक हेक्टेयर धान की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में महज 25 रुपये खर्च करने होते हैं।

खरीफ सीजन में धान, मक्का, मूंगफली, अरहर इत्यादि फसलों के बुआई से पूर्व बीज शोधन किसानों के लिए रामबाण साबित होता है। ढाई ग्राम थीरम या दो ग्राम कार्बनडाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपी प्रति किलोग्राम धान बीज के हिसाब से प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अरहर और मूगफली में ढाई ग्राम थीरम या एक ग्राम कार्बनडाजिम प्रति किग्रा हेक्टेयर बीज की दर से प्रयोग करना चाहिए।

वहीं मक्का के बीज को ढाई ग्राम थीरम या दो ग्राम कार्बनडाजिम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करना होता है। विभाग की ओर से जैविक विधि द्वारा सभी फसलों के लिए बीज शोधन के लिए चार ग्राम ट्राइकोडरमा एक ग्राम बावस्टिन प्रति किग्रा से शोधित कर बुआई करनी चाहिए। धान में जीवाणु झुलसा के लिए किसानों को ढाई किग्रा. बीज को 4 ग्राम स्टेउप्टोसाइक्लीन के घोल में रात भर भिगों दें और उसे छाया में सुखाकर नर्सरी डालें। इससे फसल को काफी मजबूती मिलेगी।

पशुओं को दें संतुलित पशु आहार और बढ़ाये दूध उत्पादन

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पशुओं को दें संतुलित पशु आहार और बढ़ाये दूध उत्पादन

संतुलित पशु आहार

ऐेसा आहार जिसमें सभी आवश्यक पोषक तत्व एक उचित अनुपात उचित मात्रा में मिलाये जाते हैं।
संतुलित पशु आहार बनाने के लिये उच्च गुणवत्ता के अनाज ग्वारमील, अनाज भूसी, शीरा, नमक, खनिज लवण तथा विटामिनों का प्रयोग किया जाता है। इसे पशु बड़े चाव से खाते हैं और यह महंगा भी नहीं होता है।

  •  ऊर्जा प्रोटीन, खनिज व विटामिन से भरपूर पशु आहार से जानवर स्वस्थ रहते हैं, उनका विकास भी अच्छा होता है और जानवर समय पर हीट पर (गर्भित होने के लिये समय पर तैयार हो जाते हैं) आ जाते हैं।

प्रोटीन के स्त्रोत

जैसे सरसों खली, मूंगफली खली, कपास खली, सूर्यमुखी खली, ग्वारमील आदि।

ऊर्जा स्त्रोत

  • गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार आदि। द्य गर्भ में पल रहे बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिये संतुलित पशु आहार देना लाभप्रद  होता है।
  • यह पशुओं के प्रजनन शक्ति, दुग्ध उत्पादन और फैट उत्पादन में भी वृद्धि करता है।
  • बछड़े/बछियों को 1 से 1.5 किलो, प्रतिदिन संतुलित पशु आहार उनकी वृद्धि और स्वास्थ्य हेतु दें।
  • ब्याने वाला गाय/भैंसों को 1 किलो पशु आहार और 1 किलो अच्छी गुणवत्ता की खली गर्भावस्था के अंतिम 2 महिने में अतिरिक्त देना चाहिए।
  • दुधारू पशुओं को स्वस्थ रखने हेतु 2 किलो संतुलित पशु आहार और प्रति लीटर उत्पादित दूध के लिये गाय को 400 ग्राम तथा भैंस को 500 ग्राम संतुलित पशु   आहार दें।
  • ऐसी गाय जो 6 लीटर दूध प्रतिदिन देती है, उनको 2.5 किलो ग्राम दूध हेतु और स्वस्थ रहने हेतु 2 किलो, इस प्रकार कुल 4.5 किलो ग्राम पशु आहार प्रतिदिन दें।
  • गर्भावस्था के अंतिम दो माह में 3 किलो प्रतिदिन संतुलित पशु आहार के अतिरिक्त 1 किलो अच्छी गुणवत्ता वाली खली की आवश्यकता होती है।

सामान्यत: धान और गेहूं के भूसे में पाचक प्रोटीन की मात्रा लगभग शून्य होती है। भूसे का यूरिया से उपचार करने से उसकी पौष्टिकता बढ़कर 4-5 प्रतिशत हो जाती है।

भूसे में कुल पाचक पोषक  तत्व की मात्रा लगभग 38-40 प्रतिशत होती है लेकिन जब भूसे की यूरिया से उपचारित किया जाता है तो इसकी मात्रा बढ़कर लगभग 48-50 प्रतिशत तक हो जाती है। पशुओं को सुचारू रूप से उपचारित चारा खिलाने पर उसको नियमित दिए जाने वाले पशु आहार में 30 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है।

 

खेती को लाभकारी बनाने के लिए करें यह उपाय

खेती को लाभकारी बनाने के लिए किसान भाई यह उपाएँ करें जिससे खेती में लगने वाली लगत को कम किया जा सके एवं उत्पादन बढाया जा सके |

  • अरहर की एक पंक्ति के बाद मक्का की एक पंक्ति बोकर मक्का की अतिरिक्त उपज पायें |
  • अरहर की दो पंक्तियों के बीच मूंगफली की दो पंक्तियाँ बोई जाये और आमदनी बढायें |
  • मक्का की दो पंक्तियों के बीच मूंग / मूंगफली की दो पंक्तियाँ बोकर भूमि को उपजाऊ बनायें |
  • अरहर की दो पंक्तियों के बीच में तिल की दो पंक्तियों बोकर अधिक लाभ उठायें |
  • मूंगफली की तिन पंक्तियों के बाद बाजरे की एक पंक्ति बोकर कृषि को आर्थिक बनायें |
  • अपने खेत की मिटटी की जाँच कराकर सन्तुलित उर्वरक का प्रयोग करें, जिससे भूमि की उर्वरक शक्ति का ह्रास न हो |
  • जैविक कृषि को अधिक से अधिक अपना कर रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को घटायें तथा इसके प्रतिकूल प्रभाव से बचें |
  • फौव्वारा (स्प्रिंकलर) सिंचाई पद्धति अपनाने और पानी को बचायें भरपूर उत्पादन पायें |
  • टपक (ड्रिप) सिंचाई पद्धति अपनाएं एवं सिंचन क्षमता बढ़ाये |
  • एकीकृत कीटनाशी प्रबंधन अपनायें एवं मिटटी की उर्वरा शक्ति बढायें |
  • धरती माता कहें पुकार, जैव खाद है इसका श्रृंगार |
  • जैविक खाद अपनायें मिटटी को बाँझ होने से बचायें |

स्ट्रिप कापिंग  :

फसल सुरक्षा की दृष्टि से स्ट्रिप कापिंग का बहुत महत्व है | इस प्रकार की खेती से मुख्य फसल की सुरक्षा सुनिशिचत हो जाती है | किसान प्राचीन काल से मक्का, गन्ना, ज्वार आदि फसलों के चारों ओर आठ – दस पंक्तियों की पट्टी सनई, पटसन एवं ढैंचा बोते रहे हैं | इनकी पट्टी होने से जानवरों से फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाती है |

जिंक सल्फेट / जिप्सम का महत्व :

धान– गेंहु की फसली चक्र अपनाने से अधिकतम क्षेत्र में जिंक की कमी भी परिलक्षित हो रही है |इसके लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करके फसलों में जिंक की कमी पूर्ण हो जाती है | जिससे फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है |

इसी प्रकार जिप्सम का प्रयोग ऊसरीली भूमि को सुधारने के कम आता है | साथ ही तिलहनी फसलों में जिप्सम एक रामबाण दवा है, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, क्योंकि इसमें गंधक प्रचुर मात्र में पाया जाता है |

पर्णीय छिड़काव :

आच्छादित फसलों में कीट/रोग सी ग्रसित फसलों में छिड़काव हेतु संस्तुति रसायनों को उपयुक्त पानी में घोलकर लो वालूम फुट स्प्रेयर में डबुल एक्सन नाजिल द्वारा छिड़काव किया जाय | फल पौधों में हाइवालूम पवार स्प्रेयर द्वारा डबल एक्सन नाजिल द्वारा लगे कीट/रोगों के नियंत्रण हेतु संस्तुति रसायनों को उपयुक्त पानी में घोलकर छिड़काव किया जाय |

खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिए फूट स्प्रेयर द्वारा सिंगल एक्सन नाजिल (फलेट फैन नाजिल) लगाकर संस्तुति किये गये खरपतवार नाशक रसायनों को उपयुक्त पानी में घोलकर छिड़काव किया जाये |

किसान बीज, कीटनाशक और उर्वरक खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान

बीज, उर्वरक एवं कीटनाशक इन तीनों पर किसान की फसल निर्भर करती है परन्तु आज के समय यह तीनों कई बार किसान भाई गलत खरीद लेते हैं या दुकानदार उन्हें फर्जी कंपनी के दे देते हैं | जिससे किसान की फसल की उत्पादकता कम हो जाती है | फसलों में कितनी और कौन की उर्वरक डालनी है या फिर कीड़े और रोग लगने पर कौन सा कीटनाशक डालना है, इसके लिए खुद की मर्जी या फिर स्थानीय दुकानदारों की सलाह लेते हैं। लेकिन ये कई बार उन्हें ना सिर्फ काफी नुकसान पहुंचाता है बल्कि पैसे खर्च करने के बावजूद फसल को फायदा नहीं होता। जानकारों की माने तो किसानों को चाहिए कि वो कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर ही इनका इस्तेमाल करें।

किसानों को लाइसेंस वाली दुकान से ही खाद, बीज और कीटनाशक लेनी चाहिए और इससे पहले जानकारों की राय जरुर लें। ब्लॉक में काम कर रहे कृषि पर्यवेक्षकों से भी सही जानकारी मिल जाती है कि कब और कैसे उर्वरक या फिर कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। अगर कोई जानकार नहीं मिलता है कृषि विभाग में फोन से जानकारी ले सकते हैं।

सहकारी समिति अथवा लाइसेंस वाली दुकान से क्रय करते समय इन बातों का रखें ध्यान

  1. रासायनिक बैग, बीज के बैग या कीटनाशक की बोतल सीलबंद है, यह चेक करके ही खरीदें, यह भी जांच लें कि वस्तु की अवधि समाप्त तो नहीं हुई है।
  2. खरीद की वस्तु का पक्का बिल लें, बिल में लाइसेन्स नंबर, पूरा नाम, पता और हस्ताक्षर होने चाहिए। बिल मे उत्पाद का नाम, लॉट नंबर, बेन्च नंबर, और दिनांक दर्शाया गया हो उससे वस्तु के साथ मिला के देखें
  3. किसानों के द्वारा  कीटनाशनक के दुरुप्रयोग पर फसल चौपट होने के बावजूद कोई मुआवजा नहीं मिल पाता क्योंकि किसान के पास उक्त कंपनी या दुकान से सामान खरीदने की पक्की रसीद नहीं होती है।
  4. उर्वरक बैग पर फर्टिलाईजर, बायोफर्टीलाईजर, ओर्गेनिक फर्टीलाईजर या नॉन-एडीबल, डी-ओइल्ड केक फर्टीलाइजर जैसे शब्द लिखे होते हैं, अगर यह शब्द न लिखे हों तो ऐसी बैग न खरीदे।
  5. वृद्धी कारक (ग्रोथ हार्मोंस) समेत जंतुनाशक दवाई पर सेन्ट्रल इन्सेक्टीसाइड बोर्ड के द्वारा दिए गये सीबीआई रजिस्ट्रेशन नंबर और उत्पादन लाइसेन्स पर 45 अंश के कोने मे हीरे (डायमंड) के आकार मे बने वर्गों के दो त्रिकोण में लाल, पीला, नीला या हरे रंग में उसके जहरीलेपन की निशानी की चेतावनी लिखी होती है। अगर बोतल,पाउच, पैकेट या बैग पर यह न दर्शाया हो तो उसको कभी न खरीदें।
  6. अगर, बीज, कीटनाशक या उर्वरक की गुणवत्ता मे कोई संदेह हो तो नजदीकी ग्राम सेवक, विस्तरण अधिकारी (कृषि), कृषि अधिकारी का या कृषि नियामक (विस्तरण) के कार्यालय से संपर्क करें।

सरकारी / प्रमाणित बीज कहाँ से एवं कैसे प्राप्त करें |

सरकारी / प्रमाणित बीज कहाँ से एवं कैसे प्राप्त करें |

प्रमाणित बीज के उपयोग से किसान अपनी फसल की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं साथ ही लगत भी कम कर सकते हैं | खरीफ फसल की बुवाई शुरू हो गयी है इस वर्ष मौसम वैज्ञानिक के अनुसार वर्षा अच्छी रहने की उम्मीद है, इस कारण आप लोग भी खरीफ फसल की बुवाई अधिक से अधिक करना चाह रहे होंगे | किसी भी फसल के बोने के पहले किसान भाई बीज के बारे में सबसे जायदा सोचतें हैं |

किसान भाई आज आप को बताएँगे की सरकारी बीज कैसे प्राप्त करें ? किसान भाई आप लोग एक बात को ध्यान में रखें की अलग – अलग राज्यों में अलग – अलग विभागों में सरकारी बीज मिलता है | बिहार में किसी भी जिले के ब्लाक में मिलेगा जिसमे बिहार के प्रतेक ब्लाक में एक किसान सल्ह्कार नियुक्त है, उनसे संपर्क करके आप बीज प्राप्त कर सकते है |

इसके लिए आप को एक फॉर्म भरना परेगा और उसके बाद बीज की कीमत भी आप को देनी होगी | साथ में फार्म के साथ एक बैंक खता , खसरा नंबर का फोटोकॉपी लगाना पड़ेगा | किसान भाई एक बात का ध्यान रखें कि आप के द्वारा जो पैसा लिया जायेगा उस पैसे को बाद में आप के द्वारा दिए हुए बैंक खाते में लौटा दिया जायेगा |

मध्यप्रदेश में 

मध्य प्रदेश में किसान भाई आप को ब्लाक या तहसील जाने की जरुरत नहीं है | आप के गांव का एक ग्राम सेवक होगा, उसके पास ही आप के गांव के लिए बीज उपलब्ध रहता है | आप उस ग्रामसेवक के पास जाकर एक फार्म भरें तथा ग्राम सेवक के द्वारा माँगा गया बीज की कीमत आप को देना होगा | किसान भाई एक बात को ध्यान दें की आप को बिहार की तरह पैसा वापस नहीं किया जायेगा | लेकिन आप को जो बीज दिया जायेगा वह बाजार से कम कीमत और अच्छी बीज मिलेगा |

एक बात और ध्यान देने की है की ग्राम सेवक के पास जितना बीज आ जाता है वह लौट कर नहीं जाता है | इस लिए ग्रामसेवक कम बीज लाता है | क्यों की किसानों के द्वारा बीज नहीं लेनें पर ग्राम सेवक को नुकसान होता है | आप से अनुरोध है की आप लोग ग्रामसेवक के पास जाकर अपना नाम दर्ज करवाए की आप को कितना बीज की आवश्यकता है | क्यों की जितना आप को बीज की जरुरत है उतना ही ग्रामसेवक बीज लेकर आयेगा | सरकार के द्वारा किसानों के लिए बीज भेज दिया गया है | आप लोग सरकारी / प्रमाणित को प्राप्त कर सकते हैं |