बीमा कम्पनी फसल बीमा का निर्धारण कैसे करती है तथा किसान को प्रति हैक्टेयर रबी और खरीफ में कितना पैसा मिलेगा |

दावों का निर्धारण (व्यापक आपदाएँ)

किसान भाई आप लोग यह जानना चाहते होंगे की बीमा कम्पनी फसल बीमा की राशि कैसे निर्धारित करती है | आज आपको एक उदाहरण से यह बताते हैं की बीमा कंपनी बीमा का निर्धारण कैसे करती है | इस मध्यम से आप लोग अपने फसल की बीमा करवा सकते है |

पहले यह जानते है की बीमा राशि मिलता किसको है |

वास्तविक उपज विनिद्रिष्ट थ्रेशहोल्ड उपज के सापेक्ष कम पड़ती है तो परिभाषित क्षेत्र में उस फसल को उगाने वाले सभी बीमाकृत किसान उपज में उसी मात्रा की कमी से पीड़ित माने जाएँगे |

अब जानते हैं की किस प्रकार कम्पनी बीमा राशि की निर्धारण करती है |

( थ्रेशहोल्ड उपज – वास्तविक उपज ) ͟ ͟͟× बीमाकृत राशि

थ्रेशहोल्ड उपज                     

जंहा किसी अधिसूचित बीमा इकाई में फसल की थ्रेशहोल्ड उपज पिछले 7 वर्षों की औसत उपज (राज्य सरकार/केन्द्र शासित राज्य सरकार द्वारा यथा अधिसूचित अधिकतम 2 वर्षों को छोड़कर) एवं उस फसल के क्षतिपूर्ति स्तर से गुणा करने पर प्राप्त होगी |

उदाहरण :-

रबी 2014 – 15 फसल मौसम के लिए टीवाई से संबंधी एक्स संगणन बीमा इकाई क्षेत्र हेतु पिछले 7 वर्षों के लिए गेंहू की परिकल्पित उपज नीचे सरणी में दी गई है :-

वर्ष2008 – 092009 – 102010 – 112011 – 122012 – 132013 – 142014 – 15
उपज (कि.ग्रा./हे. )45003750200004250180043001750

 

वर्ष 2010 – 11, 2012 -13 और 2014 – 15 को प्राकृतिक आपदा वर्ष घोषित किया गया था |

सात वर्षों की कुल उपज प्रति हैक्टेयर 22,350 कि.ग्रा. है और दो सर्वाधिक खराब आपदा वर्षों की प्रति हैक्टेयर 35 50 कि.ग्रा. अर्थात (1800+1750) कि.ग्रा. है | इस प्रकार , की गई व्यवस्था के अनुसार अधिकतम दो आपदा वर्षों को छोड़कर पिछले 7 वर्षों की औसत उपज 22350 – 3550 = 18,800 / 5 अर्थात 3760 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है | इस प्रकार, क्षतिपूर्ति स्तर 90 प्रतिशत, 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत के लिए थ्रेशहोल्ड उपज क्रमश: 3384, 3008 और 2632 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर है |

नुकसान मूल्यांकन की समय सीमा और विवरण की प्रस्तुति

  1. सूचना प्राप्त होने की तारीख से 48 घंटों के भीतर नुकसान मूल्यांकन कर्ता की नियुकित |
  2. नुकसान मूल्यांकन कार्य को अगले 10 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा |
  3. किसान के दावों का निपटान / भुगतान का कार्य नुकसान मूल्यांकन विवरण की तारीख से अगले 15 दिनों के भीतर (बशर्ते प्रीमियम की प्राप्ति हो चुकी हो) के भीतर किया जाए |
  4. अधिसूचित बीमा इकाई में कुल बीमाकृत क्षेत्र का 25 प्रतिशत से अधिक होने पर अधिसूचित फसल के तहत प्रभावित क्षेत्र होने की स्थिति में सभी पात्र किसान (जिन्होंने अधिसूचित फसल के लिए बीमा लिया है और जो क्षतिग्रस्त हुआ है तथा विनिर्धारित समय के भीतर कृषिक्षेत्र में कोई आपदा के बारे में सूचना दी है) अधिसूचित बीमा इकाई में फसल कटाई उपरांत होने वाले नुकसान से ग्रस्त माने जाएँगे और उन्हें वित्तीय सहायता का पात्र मन जाएगा | नुकसान की प्रतिशतता बीमा कम्पनी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के नमूना सर्वेक्षण (यथा निर्धारित संयुक्त समिति द्वारा) की अपेक्षित प्रतिशतता द्वारा तय किया जाएगा |
  5. यदि क्षेत्र दृष्टिकोण आधारित (फसल कटाई प्रयोग पर आधारित) दावा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के दावों से अधिक है तो प्रभावित किसानों को विभिन्न दावों का अंतर देय होगा | यदि फसल कटाई के बाद का दावा अधिक है, तो प्रभावित किसानों से कोई भी वसूली आदि प्रक्रिया नहीं अपनाई जाएगी |

व्याख्या

  1. फसल के लिए बीमाकृत राशि = 50,000 रु.
  2. बीमा इकाई का प्रभावित क्षेत्र = 80 प्रतिशत (नमूना सर्वेक्षण का पात्र)
  3. बीमाकृत जोखिम के संचालन के कारण प्रभावित क्षेत्र / फील्डों में मूल्यांकन कृत नुकसान = 50 प्रतिशत
  4. फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान के तहत देय दावे = 50,000 रु. × 50 प्रतिशत = 25,000 रु.
  5. मौसम के अंत तक विवरण कृत उपज में कमी = 60 प्रतिशत
  6. बीमा इकाई स्तर पर क्षेत्र दृष्टिकोण पपर आधरित अनुमानित दावा = 50,000 रु. × 60 प्रतिशत = 30,000 रु.
  7. मौसम के अंत में भुगतान योग्य शेष राशि = 30,000 रु. – 25,000 = 5,000 रु.

  नुकसान / दावों की विवरण का समय और पद्धति

  1. किसान सीधे बीमा कंपनी, संबंधित बैंक, स्थानीय कृषि विभाग, सरकारी / जिला पदाधिकारी अथवा नि:शुल्क दूरभाष संख्या वाले फोन के अनुसार बीमाकृत किसान द्वारा किसी को भी तत्काल रूप से सूचित किया जाए (48 घंटो के भीतर) |
  2. दी गई सूचना में सर्वेक्षणवार बीमाकृत फसल और प्रभावित रकबा का विवरण अवश्य होना चाहिए |
  3. किसान / बैंक द्वारा अगले 48 घंटों के भीतर प्रीमियम भुगतान सत्यापन की विवरण की जाए |

दावों का मूल्यांकन करने के लिए अपेक्षित दस्तावेज साक्ष्य

सभी दस्तावेज साक्ष्यों सहित विविधवत भरे गये दावों के भुगतान के प्रयोजनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा | तथापि, यदि सभी कालमों से संबंधित सूचना सुलभ रूप से उपलब्ध नहीं है, तो अर्ध रूप में भरा गया प्रपत्र बीमा कम्पनी को भेज दिया जाएगा और बाद में नुकसान होने के 7 दिनों के भीतर पूर्णत: भरा हुआ प्रपत्र भेजा जा सकता है |

  • मोबाईल अनुप्रयोग यदि कोई है, के द्वारा तस्वीरें लेकर फसल नुकसान का साक्ष्य प्रस्तुत करना |
  • नुकसान और नुकसान की गहनता संबंधी घटना, यदि कोई है, को संपुष्ट करने के प्रयोजनार्थ स्थानीय अख़बार की खबर की प्रति और कोई अन्य उपलब्ध साक्ष्य प्रस्तुत किया जाएगा |

खरीब फसल के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा करवाने  की आखरी तारीख 31 जुलाई तक ही हैI

स्त्रोत: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, भारत सरकार

कपास की फसल को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए किसान भाई करें यह उपाय

कपास की फसल को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए किसान भाई करें यह उपाय

 कपास की फसल में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग कैसे करे और कितनी मात्रा में करे?

खाद एवं उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करनी चाहिए यदि मृदा में कर्वानिक पदार्थो की कमी हो तो खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए इसके साथ साथ 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 30 किलो ग्राम फास्फोरस तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए तथा पोटाश की संस्तुत नहीं की गई है नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई पर करना चाहिए शेष नाइट्रोजन की मात्र का प्रयोग फूल प्रारम्भ होने पर व आधिक फूल आने पर जुलाई माह में दो बार में प्रयोग करना चाहिएI l

कपास की फसल में निराई गुड़ाई कब करे हमारे किसान भी और खरपतवारो पर किस प्रकार नियंत्रण करे?

पहली सूखी निराई गुड़ाई पहली सिचाई अर्थात 30 से 35 दिन से पहले करनी चाहिए इसके पश्चात फसल बढ़वार के समय कल्टीवेटर द्वारा तीन चार बार आड़े बेड़े गुड़ाई करनी चाहिए फूल व गूलर बनने पर कल्टीवेटर से गुड़ाई नहीं करनी चाहिए इन अवस्थाओ में खुर्पी द्वारा खरपतवार गुड़ाई करते हुए निकलना चाहिए जिससे की फूलो व गुलारो को गिरने से बचाया जा सकेIl

कपास की छटाई (प्रुनिग) कब और कैसे करनी चाहिए?

अत्यधिक व असामयिक वर्षा के कारण सामान्यता पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो 1.5 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पौधों की ऊपर वाली सभी शाखाओ की छटाई, सिकेटियर या  (कैची) के द्वारा कर देना चाहिए इस छटाई से कीटनाशको के छिडकाव में आसानी रहती है l

कपास की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हम किस प्रकार करे ?

कपास में शाकाणु झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट) तथा फफूंदी जनित रोग लगते है, इनके बचाव के लिए खड़ी फसल में वर्षा प्रारम्भ होने पर 1.25 ग्राम  कापरआक्सीक्लोराईड 50% घुलनशील चूर्ण व् 50 ग्राम एग्रीमाईसीन या 7.5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन प्रति हेक्टर  की दर से 600 -800 लीटर पानी में घोलकर दो छिडकाव 20 से 25 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए साथ ही उपचारित बीजो का ही बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिएI

खरपतवार नियंत्रण के लिए आधुनिक यंत्र

खरपतवार नियंत्रण के लिए आधुनिक यंत्र

खरपतवारों की रोकथाम से न केवल फसलों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि उसमें निहित प्रोटीन व अन्य लाभकारी तत्व एवं फसलों की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। प्राय: निंदाई करके इन्हें निकाल दिया जाता है। फसलों की निंदाई के लिए प्रयुक्त होने वाले कुछ यांत्रिक उपकरणों का विवरण दिया गया है-

स्वचालित रोटरी पावर वीडर

वीडर एक डीजल इंजन चालित यंत्र है। इंजन की पावर वी बेल्टदृपुली के द्वारा ग्राउंड व्हील को प्रेषित की जाती है। गहराई बनाए रखने के लिए इस यंत्र में पीछे एक पहिया लगाया गया है। रोटरी वीडींग अटेचमेंट द्वारा खरपतवार नष्ट करने की प्रक्रिया की जाती है।

रोटरी वीडर की विभिन्न पंक्तियों में प्रत्येक डिस्क पर एक-दूसरे की विपरीत दिशा में घुमावदार ब्लेड लगे होते हैं। इन ब्लेड के घूमने से मिट्टी एवं घास आदि कटकर मिश्रित हो जाते हैं। रोटरी टिलर की 400 मि.मी. चौड़ाई में कार्य करने की क्षमता होती है तथा फसल क्षेत्र में मिट्टी एवं घास आदि को काटकर मिश्रित करने अथवा खरपतवार नष्ट करने हेतु गहराई आवश्यकतानुसार निर्धारित की जा सकती है।

इस यंत्र का प्रयोग गन्ना, मक्का, कपास, टमाटर, बैंगन और दलहन जैसी फसलें जिनमें पंक्तियों की बीच की दूरी 450 मि.मी. से ज्यादा है, में खरपतवार नियंत्रण हेतु किया जाता है। स्वीप ब्लेड, रिजर एवं ट्रॉली जैसे अटेचमेंट भी इस यंत्र के साथ लगाए जा सकते है। कार्य क्षमता 0.1-0.12 हे. प्रति घंटा है एवं इसकी कीमत रु. 60000 से रु. 80000 के बीच है।

कोनो वीडर

इस यंत्र में दो रोटर, फ्लोट, फ्रेम और हैंडल लगे होते है। रोटर त्रिशंकु आकार के होते हैं एवं इसकी सतह पर लंबाई मे चौरस दाँतेदार स्ट्रिप्स जुड़ी होती है। रोटर विपरीत अनुकूलनिय आगे-पीछे क्रम में लगे होते है। फ्लोट, रोटर और हैंडल फ्रेम के साथ जुड़े होते हैं।

फ्लोट कार्य की गहराई को नियंत्रित करते हैं तथा रोटर असेंबली को पोखर मिट्टी में धसने नहीं देते। कोनो वीडर दबाव प्रक्रिया से चालित किया जाता है। रोटर के अभिविन्यास मिट्टी के शीर्ष 3 से.मी. मे आगे पीछे संचालन करते है जिससे खरपतवार को जड़ से उखाडऩे मे मदद मिलती है। कोनो वीडर का प्रयोग पंक्तियुक्त धान की फसल में कुशलतापूर्वक खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है। यह आसानी से चलाया जा सकता है तथा यह पोखर मिट्टी मे नहीं धँसता। इस यंत्र की कार्य क्षमता लगभग 0.18 हेक्टेयर प्रतिदिन है।

ड्राईलैंड पेग वीडर

ड्राईलैंड वीडर (हुक टाईप) एक ऐसा हस्तचालित यंत्र है जो फसल की पंक्तियों के बीच खरपतवार को नष्ट करता है। इसमें एक रोलर होता है जिसमें लोहे की रॉड द्वारा फिट की गई दो डिस्क लगी होती है। रॉड पर छोटे समचतुर्भुज आकार के हुक कंपित (स्टेगर्ड) प्रकार से जुडे होते हंै। पूरी रोलर असेम्बली नरम लोहे से निर्मित होती है। रोलर असेम्बली के पीछे हैंडल के रॉड (भुजाएँ) पर ‘वीÓ आकारीय ब्लेड लगे होते है। कार्य की गहराई के अनुसार ब्लेड की ऊंचाई व्यवस्थित की जा सकती है। मशीन की भुजाएँ हैंडल के साथ जुड़ी होती है, जो पतले मजबूत पाईप से बनी होती है।

हैंडल की ऊंचाई भी चालक की आवश्यकतानुसार व्यवस्थित की जा सकती है। इस यंत्र को खरपतवार हटाने के लिए फसलों की पंक्तियों मे खड़ी हुई स्थिति में बार-बार धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित किया जाता है। समचतुर्भुजी आकारी हुक मिट्टी में गड़ाकर घुुमाव प्रक्रिया द्वारा मिट्टी को बारीक करते है। दबाने की स्थिति मे ब्लेड जमीन में घुसकर खरपतवार की जड़ों को काट देते हैं। इसका प्रयोग सब्जी, फलों के बागों मे तथा अंगूर उद्यानों मे खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है। यह भूमि की सख्त मिट्टी की परत को तोड़कर उसे उपजाऊ बनाने में भी सहायक है। इसकी कार्य क्षमता लगभग 0.05 हेक्टेयर प्रतिदिन होती है।

व्हील हैंड हो

‘व्हील हैंड हो’ एक व्यापक रूप में स्वीकार किया गया खरपतवार नियंत्रण का यंत्र है जो फसल की पंक्तियों के मध्य खरपतवार नियंत्रण हेतु उपयोग किया जाता है। यह एक लंबे हैंडल का यंत्र है जो आगे-पीछे धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित होता है। पहियों की संख्या एक या दो हो सकती है और पहियों का व्यास इसके डिजाईन के अनुसार होता है। इस यंत्र के फ्रेम में विभिन्न प्रकार की मिट्टी मे कार्य करने वाले पुर्जे जैसे: सीधे ब्लेड, प्रतिवर्ती ब्लेड, स्वीप, भी-ब्लेड, टाईन कल्टीवेटर, आयामी कुदाल, लघु आकारीय फरोअर, स्पाईक हैरो (रेक) आदि लगाने हेतु प्रावधान होता है।

यह यंत्र अकेले व्यक्ति द्वारा चालित होता है। इस औजार के सभी मिट्टी में कार्य करने वाले पुर्जे मध्यम कार्बन स्टील के बने होते हैं जो 40-45 एच.आर.सी. तक कठोर किए होते है।

मशीन के संचालन एवं कार्य की गहराई के लिए हैंडल की ऊंचाई को व्यवस्थित किया जाता है और व्हील को बार बार धकेलने एवं खींचने की प्रक्रिया द्वारा चालित किया जाता है जिससे मिट्टी में कार्य करने वाले पुर्जे फसलों की पंक्तियों की जमीन में धँसकर खरपतवार को कांटते या जड़ से उखाड़ते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा घास भी कटकर मिट्टी में दब जाती है। इसका प्रयोग पंक्तियुक्त सब्जी फसलों में तथा अन्य फसलों में निराई एवं खरपतवार हटाने के लिए किया जाता है।

यदि आप एलोवेरा की कृषि करने का सोच रहें है तो पहले जानें यें महत्वपूर्ण बातें

एलोवेरा की कृषि के लिए महत्वपूर्ण बातें

वैसे तो एलोवेरा की खेती करना लाभकारी है बहुत से किसान एलोवेरा की खेती करके बहुत लाभ भी कमा रहें हैं, इसके बावजूद भी बहुत से किसान ऐसे हैं जो ऐलोवेरा की कृषि तो करना चाहते हैं पर कर नहीं पा रहें हैं क्योंकि भारत में एलोवेरा के विक्रय हेतु खुला बाजार उपलब्ध नहीं हैं | अनेक किसान फोन और मैसेज से एलोवेरा की कृषि एवं उसका विक्रय कंहा करे यह जानकारी मांगते हैं |

पिछले कुछ वर्षों में एलोवेरा के प्रोडक्ट की संख्या तेजी से बढ़ी है। कॉस्मेटिक, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने के हर्बल प्रोडक्ट और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी इसकी मांग बढ़ी है। यह तो सच हैं मांग तो बढ़ी है पर अभी तक किसानों को अच्छे से नहीं पता उसे बेचना किस प्रकार है और कैसे है |

तो आज हम आपको इस सम्बन्ध में कुछ जानकारी उपलब्ध कराते हैं |

किसान भाई एलोवेरा को दो प्रकार से बेच सकते हैं

  1. पत्तियां बेचकर
  2. पल्प बेचकर

अधिकांश किसान जो एलोवेरा की कृषि कर रहें है उन्होंने पहले से ही किसी कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट कर लिया होता है उसके अनुसार उनकी उपज तैयार होने के बाद वो कंपनियां उनसे एलोवेरा की पत्तियां खरीद लेती हैं I कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगा ली है और वे स्वयं ही एलोवेरा का पल्प निकाल कर कंपनियों को कच्चे माल के रूप में बेच रहे हैं I

 जानें वो कोन सी कंपनियां हैं जिन्हें एलोवेरा की आवश्यकता होती है

  1. पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ, रिलायंस कई बड़ी कंपनियां हैं जिन्हें बड़ी मात्रा में एलोवेरा की जरुरत होती है एवं बहुत सी ऐसी छोटी कंपनियां है जो एलोवेरा की पत्ती से पल्प निकालकर अन्य बड़ी कंपनियों को बेचती है |
  2. आजकल हर्बल दवा बनाने वाली कंपनियों में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है |
  3. हेल्थकेयर, कॉस्मेटिक और टेक्सटाइल में भी एलोवेरा का इस्तेमाल किया जाता है |

शुरुआत में किसानों के लिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर खेती करना अधिक फायदेमंद होता है, कंपनियां किसानों से सीधे पल्प या पत्तियां दोनों में से किसी को भी खरीद सकती हैं यह किसान और कम्पनी के मध्य हुए कॉन्ट्रैक्ट पर निर्भर करता है |

वैसे यदि किसान भाई चाहें तो वे स्वयं ही पल्प निकालने या सीधे प्रोडक्ट बनाने का काम कर सकतें हैं I पल्प निकालकर बेचने पर 4 से 5 गुना ज्यादा मुनाफा होता है | एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान भी ट्रेनिंग देता है | एवं सम्बंधित राज्यों की विभिन्न एजेंसीयां भी समय समय पर ट्रेनिंग देती रहती हैं |

अनुमानित आय एवं व्यय

  • एक एकड़ में प्रथम वर्ष में 80 हजार से लेकर 1 लाख की अनुमानित लागत आती है
  • 4 से 7 रुपए किलो तक एलोवेरी की पत्तियां बिकती हैं यह दर किसान एवं कंपनी के मध्य हुए समझोते पर निर्भर करता है जबकि 3-4 रुपए प्रति पौधा मिलता है नर्सरी में एवं पल्प की अनुमानित कीमत 20-30 रुपए प्रति किलो है I
  • यदि खेती पूर्णतया वैज्ञानिक तरीके से की जाती है तो विशेषज्ञों के अनुसार एक एकड़ में करीब 15  हजार से 16 हज़ार तक पौधे लगते हैं।

 

मक्का की अधिक उपज के लिए किसान भाई करें यह उपाय

मक्का में किस उर्वरक की आवश्यकता होती है और किस तरह उसका प्रयोग किया जाये?

मात्रा:

मक्का की भरपूर उपज लेने के लिय संतुलित उर्वरकों क प्रयोग आवश्यक है। अतः कृषकों को मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहियें। यदि किसी कारणवंश मृदा परीक्षण न हुआ हो तो देर से पकने वाली संकर एवं संकुल प्रजातियां के लिये क्रमशः १२०: ६०:३०:३० नेत्रजन फास्फोरस एवं पोटाश  प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहियें। गोबर की खाद १० टन प्रति हे. प्रयोग करने पर २५% नत्रजन की मात्रा कम कर देनी चाहिये।

विधि:

बुवाई के एक तिहाई नत्रजन, पूर्ण फास्फोरस तथा पोटाश कूड़ों  में बीज के नीचे डालना चाहिये। अवशेष नत्रजन  दो बार मे बराबर-२ मात्रा में टापड्रेसिंग के रूप में करें। पहली टापड्रेसिंग बोने के २५-३० दिन बाद (निराई के तुरन्त बाद) एवं दूसरी नर मंजरी निकलते समय करें। यह अवस्था संकर मक्का मे बुवाई के ५०-६० दिन बाद एवं संकुल में ४५-५० दिन बाद आती है।

खरपतवार नियंत्रण

मक्का की खेती में निराई गुडाई का अधिक महत्व है। निराई-गुडाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है। जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ का एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के १५ दिन बाद कर देना चाहिये। और दूसरी नियंत्रण ३५-४० दिन बाद करनी चाहियें।

मक्का में खरपतवारों को नष्ट करने के लिये एट्रजीन (५०%- डब्लू.पी. १.५-२.० किग्रा.प्रति हें घुलनशील चूर्ण का ७००-८०० लीटर पानी में घोलकर बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन अंकुरण से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हे। एलाक्लोर ५० ई.सी. ४ से ५ लीटर बुवाई के तुरन्त बाद जमाव के पूर्व ७००-८०० लीटर पानी में मिलाकर भी प्रयोग किया जा सकता है। यदि मक्का के बाद की खेती करनी हो तो एट्राजीन का प्रयोग न करे।

मक्का में साधारणतया कोन से रोग लगते हैं, उनकी पहचान किस प्रकार करें एवं रोग का उपचार किस प्रकार करें?

तुलासिता रोग:

पहचान:

इस रोग में पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती है। पत्तियों के नीचे की सतह पर सफेद रूई के समान फफूंदी दिखाई देती है। ये ध्ब्बे बाद में गहरे अथवा लाल भूरे पड़ जाते है। रोगी पौधो में भुट्‌टे कम बनते है। या बनते ही नही है।

उपचार:

इनकी रोकथाम हेतु जिंक मैग्नीज कार्बमेट या जीरम ८० प्रतिशत २ किलोग्राम अथवा जीरम २७ प्रतिशत के ३ ली०/हे० की दर से द्दिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोलकर करना चाहिये।

पत्तियों का झुलसा रोग:

पहचान

इस रोग में पत्तियों पर बड़े लम्बे अथवा कुद्द अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। रोग के उग्र होने पर पत्तियों झुलस कर सूख जाती है।

उपचार:

इसकी रोकथाम हेतु जिनेब या जिंक मैगनीज कार्बमेट २ किलोग्राम अथवा जीरम ८० प्रतिशत २ ली० अथवा जीरम २७ प्रतिशत ३ लीटर/हे० की दर से  छिड़काव करना चाहिये।

सूत्र कृमियों की रोकथाम के लिये गर्मी की गहरी जुताई करें एवं बुवाई के एम सप्ताह पूर्व खेत में १० किग्रा० फोरट १० जी. फैलाकर मिला दें।

तना सडन

पहचान

यह रोग अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में लगता है। इसमें तने की पोरियों पर जलीय धब्बे दिखाई देते है। जो शीघ्र ही सड़ने लगते है। और उससे दुर्गन्ध आती है। पत्तियों पीली पड़कर सूख जाती है।

उपचार

रोग दिखाई देने पर १५ ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन अथवा ६० ग्राम एग्रोमाइसीन प्रति हे० की दर से छिड़काव  करने से अधिक लाभ होता है।

मक्का में लगने वाले कीट कोन-कोन से हैं एवं उनपर नियंत्रण किस प्रकार किया जाये ?

 तना छेद्क:

पहचान

इस कीट की सुड़ियाँ  तनों में द्देद करके अन्दर ही खाती रहती है। जिससे मृतभोग बनता है। और हवा चलने पर बीच से टूट जाता है।

उपचार

  • १. इसकी रोकथाम हेतु बुवाई के २० से २५ दिन बाद लिन्डेल ६ प्रतिशत गे्रन्यूल २० किलोग्राम अथवा कार्बोयूरान ३ प्रतिशत ग्रेन्यूल २० किलोग्राम अथवा (लिन्डेल + कार्बराइल) (सेवीडाल ४.४ जी.) २५.०० किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिये।
  • २. बुवाई के १५-२०  दिन  के बाद निम्न में से किसी एक रसायन का छिड़काव  करना चाहियें ।
  1. इमिडाक्लोप्रिड ६ मिली./किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें ।
  2. कार्बेरिल ५०% घुलनशील चूर्ण १.५ किग्रा./ हे. ।
  3. फेनिट्रोथियांन ५० ई .सी. ५००-७०० मिली./हे. ।
  4. क्यूनालफास २५ ई.सी. २ लीटर/हे.।
  5. इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.५ लीटर/हे.।
  6. ट्रइकोग्रामा परजीवी ५०००० प्रति हे. की दर से खेत मे अंकुरण के ८ दिन बाद ५-६ दिन के अंतर पर दुहरायें, खेत में द्दोड़ना चाहिये।

पत्ती लपेटक कीट

पहचान:

इस कीट की सुड़ियाँ  पत्ती के दोनो किनारों को रेशम जैसे सूत से लपेटकर अंदर से खाती है।

उपचार:

उपयुक्त कीटनाशक रसायनों में  से किसी एक का प्रयोग करना करें ।

  1. इमिडाक्लोप्रिड ६ मिली./किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें ।
  2. कार्बेरिल ५०% घुलनशील चूर्ण १.५ किग्रा./ हे. ।
  3. फेनिट्रोथियांन ५० ई .सी. ५००-७०० मिली./हे. ।
  4. क्यूनालफास २५ ई.सी. २ लीटर/हे.।

टिड्‌डा :

पहचान:

इस कीट के शिशु तथा प्रौढ दोनो ही पत्तियों को खाकर हानि पहुंचाते है।

उपचारः

इसकी रोकथाम हेतु मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत २०-२५ किलोग्राम का बुरकाव प्रति हेक्टर करना चाहियें।

 भुड़ली (कमला कीट):

पहचान:

इस कीट की गिडारे पत्तियों को बहुत तेजी से खाती है। और फसल को काफी हानि पहुचाती है। इसके शरीर पर रोये होते है।

उपचार:

इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक रसायन का बुरकाव या छिड़काव  प्रति हेक्टर करना चाहियें।

  1. मिथाइल पैराथियान २ प्रतिशत चूर्ण २० किलोग्राम।
  2. इन्डोसल्फान ४ प्रतिशत धूल २० किलोग्राम।
  3. क्यूनालफास १.५ प्रतिशत धूल २० किलोग्राम।
  4. इन्डोसल्फान ३५ ई.सी. १.२५ लीटर।
  5. डाइक्लोरवास ७० ई.सी. ६५० मि. लीटर।
  6. क्लोरपायरीफास २० ई.सी. १.० लीटर

डेयरी उद्योग को आमदनी का जरिया बनायें

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डेयरी उद्योग को आमदनी का जरिया बनायें

परिचय

डेयरी उद्योग को आमदनी का जरिया बनायें खेती में लगातार हो रही हानि को कम करने एवं रोजाना कुछ आमदनी करने के लिए डेयरी एक सही विकल्प के रूप में सामने आया है |

पशुपालन हमारे देश में ग्रामीणों के लिए आरम्भ से ही आमदनी का जरिया रहा है, लेकिन जानकारी के अभाव में अकसर लोग पशुपालन का पूरा फायदा नहीं उठा पाते| इस काम से संबंधित थोड़ा-सा ज्ञान और सही दिशा में की गयी योजना आपको बेहतरीन मुनाफा कमाने का रास्ता दिखा सकती है|

डेयरी उद्योग में दुधारू पशुओं को पाला जाता है| इस उद्योग के तहत भारत में गाय और भैंस  पालन को ज्यादा महत्व दिया जाता है, क्योंकि इनकी अपेक्षा बकरी कम दूध देती है| इस उद्योग में मुनाफे की संभावना को बढ़ाने के लिए पाली जानेवाली गायों और भैंसों की नस्ल, उनकी देखभाल व रख-रखाव की बारीकियों को समझना पड़ता है|

फायदेमंद प्रजातियां

भारत में अनेक तरह की गायें पायी जाती हैं| गायों की प्रजातियों को तीन रूप में जाना जाता है, ड्रोड ब्रीड, डेयरी ब्रीड और ड्यूअल ब्रीड| इनमें से डेयरी ब्रीड को ही इस उद्योग के लिए चुना जाता है| दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से भारत में तीन तरह की भैंसें मिलती हैं, जिनमें मुर्रा, मेहसाणा और सुरती प्रमुख हैं| मुर्रा भैंसों की प्रमुख ब्रीड मानी जाती है| यह ज्यादातर हरियाणा और पंजाब में पायी जाती है| मेहसाणा मिक्सब्रीड है| यह गुजरात और महाराष्ट्र में पायी जाती है| इस नस्ल की भैंस एक महीने में 1,200 से 3,500 लीटर दूध देती हैं| सुरती छोटी नस्ल की भैंस होती है, जो गुजरात में पायी जाती है| यह एक महीने में 1,600 से 1,800 लीटर दूध देती है|

अकसर डेयरी उद्योग चलानेवाले इन नस्लों की उचित जानकारी न होने के चलते व्यापार में भरपूर मुनाफा नहीं कमा पाते| डेयरी उद्योग की शुरुआत पांच से 10 गायों या भैंसों के साथ की जा सकती है| मुनाफा कमाने के बाद पशुओं की संख्या बढ़ायी जा सकती है|

अच्छी देखभाल करना है जरुरी

पाली गयी गायों व भैंसों से उचित मात्र में दुग्ध का उत्पादन करने के लिए उनके स्वास्थ संबंधी हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखना जरूरी होता है| पशु जितने स्वस्थ होते हैं, उनसे उतने ही दूध की प्राप्ति होती है और कारोबार अच्छा चलता है| जानवरों को रखने के लिए एक खास जगह तैयार करनी होती है| जहां हवा के आवागमन की उचित व्यवस्था हो| साथ ही, सर्दी के मौसम में जानवर ठंड से बचे रहें| रख-रखाव के बाद बारी आती है पशुओं के आहार की| इसके लिए गायों या भैंसों को निर्धारित समय पर भोजन देना जरूरी होता है| इन्हें रोजाना दो वक्त खली में चारा मिला कर दिया जाता है|

इसके अलावा बरसीम, ज्वार व बाजरे का चारा दिया जाता है| दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए भोजन में बिनौले का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है| डेयरी मालिक के लिए इस बात का ख्याल रखना भी जरूरी होता है कि पशुओं को दिया जानेवाला आहार बारीक, साफ-सुथरा हो, ताकि जानवर भरपूर मात्र में भोजन करें| वहीं चारे के साथ पानी की मात्र पर ध्यान देना भी जरूरी है| गाय व भैंस एक दिन में 30 लीटर पानी पी सकती हैं| इसके अलावा डेयरी मालिक को पशुओं की बीमारियों व कुछ दवाओं की समझ भी होनी चाहिए|

सरकार द्वारा दी जा रही मदद

सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाएं डेयरी उद्योग के लिए 10 लाख रुपये तक की लोन सुविधा उपलब्ध कराती हैं| इसके लिए डेयरी मालिक को तमाम कागज जैसे एनओसी, एसडीएम का प्रमाणपत्र, बिजली का बिल, आधार कार्ड, डेयरी का नवीनतम फोटो आदि जमा करना होता है|

वेरीफिकेशन के बाद अगर संबंधित प्राधिकरण संतुष्ट हो जाता है, तो डेयरी मालिक को डेरी और पशुओं की संख्या के हिसाब से पांच से 10 लाख रुपये तक की राशि मुहैया करायी जाती है| डेयरी मालिक को यह राशि किस्तों में जमा करनी होती है| निश्चित समय पर किस्तों का भुगतान करने पर कुछ किस्तें माफ भी कर दी जाती हैं|

 धान की भरपूर उपज के लिए करें यह उपाय और रखें अपनी उपज को स्वस्थ

 धान की भरपूर उपज के लिए करें यह उपाय और रखें अपनी उपज को स्वस्थ रखने के लिए उसमें कीट रोग एवं खरपतवार का प्रवंधन सही होना चाहिए | धान की फसल में कीट की रोकथाम एवं रोगों पर नियंत्रण किसान भाई किस प्रकार करें आइये जानते हैं |

उर्वरक आवश्यकता तथा प्रयोग

उर्वरक की संस्तुत मात्रा मृदा परीक्षण के आघार पर प्रयोग की जानी चाहिये। अधिक लाभ के लिए संकर धान को सामान्य धान से अधिक समन्वित पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए १५० किलोग्राम नत्रजन ७५ किलोग्राम फास्फोरस तथा ६० किलोग्राम पोटाश एवं आवश्यकतानुसार २५ किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हे० की आवश्यकता होती है। रोपाई के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डाली जाय। शेष नत्रजन की मात्रा दो बराबर भागों में कल्ले निकलते है। समय तथा रेणते या गोभ बनते (बूटिंग) समय आप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार करें ?

धान की खरपतवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पैडीवीडर का प्रयोग करे। यह कार्य खरपतवार विनाशक रसायनों द्वारा भी किया जा सकता है। रोपाई वाले धान में घास जाति एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु  ब्युटाक्लोर ५ प्रतिशत  ग्रेन्यूल३०-४० किग्रा. प्रति हे. अथवा बेन्थियोकार्ब १० प्रतिशत गे्रन्यूल १५ किग्रा० या बेन्थियोकार्ब ५० ई.सी. ३ ली. या पेण्डी मैथालीन (३० ई.सी.) ३.३ ली. या एनीलोफास ३० ई.सी. १.६५ लीटर प्रति हे.  ३.४ दिन के अन्दर अच्छी नमी की स्थिति में ही करना उचित होगा। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु २-४ डी सोडियम साल्ट कार ६२५ ग्राम प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग किया जा सकता है। इसका प्रयोग धान की रोपाई के एक सप्ताह बाद और सीधी बुवाई के २० दिन बाद करना चाहियें।

रसायनों द्वारा खरपतवार की रोकथाम के लिए यह अति आवश्यक है कि दानेदार रसायनों का प्रयोग करते समय खेत मे ४-५ सेमी० पानी भरा होना चाहिये। फ्यूक्लोरोलिन का प्रयोग २.० ली./हे. रोपाई के पूर्व करना चाहियें।


रोग, पहचान एवं उनका निराकरण

जीवाणु झुलसा:

 पहचान:

इसमें पत्तियों नोक अथवा किनारे से एकदम सूखने लगती है। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढे मेढे होते है।

उपचार:

१. बोने से पूर्व बीजोपचार उपयुक्त विधि से करे।

२. रोग के लक्षण दिखाई देते ही यथा सम्भव खेत का पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्राप्टोसाइक्लीन व कॉपर आक्सीक्लोराइड के ५०० ग्राम अथवा १.०० किग्रा. ट्राइकोडार्म विरिडा सम्भव खेत में पानी निकालकर १५ ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन के आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हे. २ से ३ छिड़काव करें।

३. रोग लक्षण दिखाई देने पर नत्रजन की टापड्रेसिंग आदि बाकी है तो उसे रोक देना चाहियें।

झोंका रोग:
पहचान:

पत्तियों पर आँख  के आकृति के धब्बे बनते है। जो बीज में राख के रंग तथा किनारों पर गहरे कत्थाई रंग के होते है। इनके अतिरिक्त बालियॉ डठलों पुष्पशाखाओं एवं गांठो  पर काले भूरे धब्बे बनते है।

उपचार:

१. बोने से पूर्व बीजो २.३ ग्राम थीरम या १.२ ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करे।

२. खड़ी फसल पर निम्न मे से किसी एक रसायन का द्दिडकाव करना चाहियें।

३. कार्बेडाजिम १ किग्रा. प्रति हे. की दर से २-३ छिड़काव १०-१२ दिन के अंतराल पर करें।

खैर रोग:
पहचान:

यह रोग जस्ते की कमी के कारण होता है। इसमें पत्तियॉ पीली पड़ जाती है। जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते है।

उपचार:

फसल पर ५ किग्रा. जिंक सल्फेट को २० किग्रा. यूरिया अथवा २.५ किग्रा. बुझे चूने के ८०० लीटर पानी के साथ मिलाकर प्रति हे. छिड़काव  करना चाहिये।

मिथ्या कण्डुआ रोग:

बाली निकलते समय कार्बेन्डाजिम ०.१ प्रतिशतघोल ७ दिन के अन्तराल पर दो  बार छिड़क दिया जाता है। कर मिथ्या कंडुआ तथा बंट और कुरखुलेरिया जैसे रोगजनक से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रकोप को कम किया जा सकता है।

संकर धान में लगने वाले कीट और उनकी रोकथाम
फुदके:

यदि तनों के फुदको की औसत संख्या प्रति पौध ८-१० या इससे अधिक हो तथी कीटनाशी  का प्रयोग कीजिए। यदि फसल कल्ला निकलने की अवस्था मे हो तो ३ प्रतिशत दानेदार कार्बोयूरान २०-२५ किलोग्राम प्रति हे.या   कारटाप ४ जी. १८.५ किग्रा. की दर से प्रयोग कीजिए। यदि बालियॉ निकल आई हो और हापरबर्न  होता हुआ दिखाई दे तो बी.पी.एम.सी. और डी.टी.वी.पी. (एक मिली+एक मिली.) अथवा  इथोफेनप्राक्स २० ई.सी. के एक मिली. को एक ली. पानी के हिसाब से घोल तेयार करके घोल आवश्यक मात्रा का प्रयोग करे। घोल की मात्रा खेत के आकार और मशीन पर निर्भर करता है। दवा को हापरर्वन की जगह पर पहले बाहर की ओर से छिड़काव करे। फिर अंदर बढिये। इसके बाद किसी भी कीटनाशी धूल का प्रयोग किया जा सकता है। प्रभावी कीट नियंत्रण के लिए छिड़काव या बुरकाव पौधो के तनों की ओर करना चाहिये।

गन्धी कीट:

गन्धी कीट के नियंत्रण के लिए खेत और उसके आस पास के खरपतवारों को समय समय से नष्ट करते रहना चाहियें। इस कीट का प्रकोप शुरू होने पर ५ प्रतिशत मैनाथियान चूर्ण २०-२५ किलोग्राम प्रति हे. की दर से बुरकना चाहिये। बुरकाव प्रातः अथवा सांय हवा बन्द होने पर करे।

तना छेदक:

तना द्देदक का प्रकोप कल्ले निकलने की अवस्था में ५ प्रतिशत हो तब ३ प्रतिशत फ्यूराडान २०-२५ किलोग्राम या ४ प्रतिशत कारटाप १७-१८ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें। अगर प्रकोप समाप्त न हो तों बालियों के निकलने से पहले उपयोक्त कीटनाशी का एक बुरकाव फिर कीजिये।

राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (एनएससी) के द्वारा उत्पादित उन्नत प्रमाणित बीज कहाँ से प्राप्त करें

राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (एनएससी) के द्वारा उत्पादित उन्नत प्रमाणित बीज कहाँ से प्राप्त करें

राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (एनएससी) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में भारत सरकार के पूर्ण स्वा्मित्व के अंतर्गत अनुसूची ‘बी’ की एक मिनीरत्नक श्रेणी-I कंपनी है। एनएससी की स्थातपना आधारीय तथा प्रमाणित बीजों की उत्पाकदन के लिए वर्ष 1963 में की गई ।

वर्तमान में यह अपने पंजीकृत बीज उत्पाथदकों के माध्यउम से लगभग 60 फसलों की 600 किस्मों के प्रमाणित बीजों का उत्पाथदन कर रही है। देश भर में इसके लगभग 8000 पंजीकृत बीज उत्पा्दक है, जो विभिन्नत कृषि जलवायु परिस्थितियों में बीज उत्पालदन का कार्य कर रहे हैं।

प्रचालन का प्रक्षेत्र

पार्टी का नाम

अहमदाबाद

राजकोटमैसर्स आदर्श एग्रो सीड्स, राजकोट

भोपाल

उज्जैन, शाजापुर, देवास (मध्य प्रदेश)मैसर्स मालवा एग्रीटेक, शाजापुर
रतलाम,  मंदसौर,  नीमच (मध्य प्रदेश)मैसर्स रवि सीड्स एण्ड रिसर्च,अलोटी
भोपाल,सिहोर,विदीसा,रायसेन,राजगढ़ (मध्य प्रदेश)मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
जबलपुर, कटनी,,बालाघाट(मध्य प्रदेश)मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
सियोनी,छिन्दवाड़ा,नरसिंगपुर

(मध्य प्रदेश)

मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
इंदौर, (मध्य प्रदेश)मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
खरगांव,खांडवा,बुरसानपुर (मध्य प्रदेश)मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
ग्वालियर, दतिया,मुरैना,(मध्य प्रदेश), भिंड,मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
रायपुर,महासमुद्र,धमतरि, दुर्ग, राजनंदगांव, कबीरधाम,(छतीसगढ़मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
धारमैसर्स सहकारी शीतग्रह संस्था मर्यादित, इंदौर
सहदोल, अमरिया, अनुपपुर,दिनधोड़ीमैसर्स सुहानी बीज भंडार, कटनी
जबुआ, अलीराजपुर, वर्दवानीमैसर्स ओकारलाल, जमनालाल एण्ड कंपनी, सॉवर
सागर, दमोहमैसर्स ओकारलाल, जमनालाल एण्ड कंपनी,  सॉवर
होशंगाबाद,मैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
छत्तरपुर,टीकमगढ़, पन्नामैसर्स खंडेलवाल मार्किटिग, इन्दौर
बैतुल, हरदामैसर्स बायोबिलिस बीज उत्पादक स्वायक, बैतुल
लुधियानामैसर्स दुर्गा बीज भंडार, जागरण जिला लुधियाना
गुरदासपुर, नवाणसर,मैसर्स वालिया खेती स्टोर,कुदियान जिला गुरदास पुर
कैथल/ कुरूक्षेत्रमैसर्स श्रीगणेश पैस्टीसाइडस, माल गोदाम कैथल
हिसारमैसर्स जगदीश स्टोर, हिसार
रोहतक, झझरमैसर्स राजबीज कंपनी, रोहतक
पालघाट, त्रिसुर, कालीकट, मलापुरम, कानुर, वायअनड, कैसर गौड़े (प्रक्षेत्र कार्यालय )पालघाटमैसर्स केरला एग्रो सर्विस
कुडालुर, वैलौर,बिलुपुरम,थिरूबनामतल, तनजावर, नागापट्टनम, थ्रिरूवरूर, पुडुकोटल, (प्रक्षेत्र कार्यालय चैन्नई)मैसर्स. एग्रो इनपुट मार्किटिग
चैन्नई, कांजीपुरम,  थ्रिरूवलुरमैसर्स. जयप्रकाश एजेंसी
थ्रिरूनिलवेल, टुटुकोरिन, कन्याकुमारी, विरूद्धनगर, मदुरई, डिंडिगुल, शिवागगांल, थेनी,रामानदमैसर्स. के. सनमुगम

जयपुर

अजमेर, सिरोही, नागौर, भिलवाड़ामैसर्स शिव सीड्स कारपोरेशन,भिलवाड़ा, राजस्थान
जयपुर, दऊसा,  धोलपुर, करौली, टोंक, सिकर, अलवर, भरतपुर, चूरू,माधोपुर, झुनझुनुमैसर्स खंडेलवाल खाद बीज भंडार, दऊसा, राजस्थान
जोधपुर, पाली, बारमेर, जेसलमेर, जालोरमैसर्स किसान कृषि सेवा केन्द्र, जोधपुर, राजस्थान
कोटा, बुंदी, झालवर, बारनमैसर्स राम नारायण जगन्नाथ गोयल, कोटा, राजस्थान
श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेरमैसर्स गोयल एग्रीकल्चर स्टोर, भाद्रा, हनुमानगढ़, राजस्थान
बाशंवाड़ा, राजसमंद  ,प्रतापगढ़, डुंगरपूर  उदयपुर, चित्तौड़गढ़मैसर्स जैन कैमिकल्स एंड सीड्स सफ्लाइयर, उदयपुर, राजस्थान
खुर्द, पुरी, गंजम, गजपति, फुलवानीमैसर्स संसार एग्रोपोल प्रा.लि. उड़ीसा
बारगढ़मैसर्स संसार एग्रोपोल प्रा.लि. उड़ीसा
जगतसिंहपुर, जाजपुर,कौन्झार, बालाशोर, मयूरभंजमैसर्स मोहनंदा सीड्स, कटक, उड़ीसा
संभलपुरमैसर्स सजुंकता सीड, उड़ीसा
गंगटोक (सिक्किम)मैसर्स जे.पी.इन्टरप्राइज
नादिया (पश्चिम बंगाल)मैसर्स एन.सी. दास.के.नगर
मुर्शिदाबादमैसर्स पी.एस.नंदी, बेहरामपुर
गुवाहाटी, असममैसर्स ईर्स्टन ऐग्रों मार्केटिंग, ऐजेसी, गुवाहाटी
इम्फाल, मणिपुरमैसर्स ईर्स्टन ऐग्रों मार्केटिंग, ऐजेसी, गुवाहाटी
दीमापुर, नागालैंडमैसर्स ईर्स्टन ऐग्रों मार्केटिंग, ऐजेसी, गुवाहाटी
आइजोल, मिजोरममैसर्स ईर्स्टन ऐग्रों मार्केटिंग, ऐजेसी, गुवाहाटी

लखनऊ

लखनऊ पूर्वमैसर्स दुर्गा ऐग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
उनाव/रायबरेलीमैसर्स दुर्गा ऐग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
सुलतानपुर/बाराबांकीमैसर्स दुर्गा ऐग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
फैजाबादमैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
लखनऊ (लखनऊ पश्चिम) परिवर्तित क्षेत्र के साथमैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
मेरठमैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
मैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
आगरा, फिरोजाबाद, महामायानगरमैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
गौंडा,  बलरामपुरमैसर्स दुर्गा एग्रो सीड फार्म, फैजाबाद रोड, डालगंज, लखनऊ
बेहराइच, सरावतीमैसर्स प्रसाद सीड कारपोरेशन, शाहजहांपुर
सीतापुर, लखीमपुर-खीरीमैसर्स प्रसाद सीड कारपोरेशन, शाहजहांपुर
शाहजंहापुर, हरदौईमैसर्स एग्रो पंतनगर सीड्स एवं कैमिकल्स प्रा. लि. मालखाना रोड शाहजहापुर
आजमगढ़मैसर्स स्वातिक ट्रेडर्स, सी-27, एफ-3, कालीगढ़ मार्केट, जगतगंज, वाराणसी
मिर्जापुरमैसर्स प्रभात एग्रो ट्रेडिंग कंपनी. सी-26/31 रामकटोरा, जगतगंज, वाराणसी
जौनपुर, संत रविदासनगरमैसर्स प्रभात एग्रो ट्रेडिंग कंपनी. सी-26/31 रामकटोरा, जगतगंज, वाराणसी
बलिया, मऊमैसर्स शिवम सर्विस स्टेशन, बलिया
रामपुर, मुरादाबादमैसर्स जीत राम एंड सन्स, शिव बाग, मंडी विलासपुर
बरैली, बदांयुमैसर्स बी.एम.ट्रेडर्स, 365, गंगापुर, बरेली
इलाहबाद, प्रतापगढ़मैसर्स स्वास्तिक ट्रेडर्स, सी‑27, एफ‑3,कालिगढ़ मार्किट, जगतगंज,वाराणसी
कानपुर नगरमैसर्स अवस्थी सीड्स प्राइवेट लिमिटेड, 108, बी,पोखरपुर, कानपुर
महाराजगंजमैसर्स साहू ब्रदर्स, जगतगंज, वाराणसी
बस्ती, संत कबीरनगरमैसर्स सुपर सीड्स डिस्टीब्यूटर, पादरी बाजार, गोरखपुर
सिद्धार्थनगरमैसर्स सुपर सीड्स डिस्टीब्यूटर, पादरी बाजार, गोरखपुर
अंबडेकरनगरमैसर्स स्वास्तिक ट्रेडर्स, सी‑27, एफ‑3,कालिगढ़ मार्किट, जगतगंज,वाराणसी

पटना

मोतीहारी (पूर्वी चंपारन)मैसर्स तरूण खाद बीज भंडार, स्टेशन रोड, मोतीहारी पूर्व. चम्पारन
भागलपुरमैसर्स श्याम ट्रेडिंग, स्टेशन रोड,        नौगाचिया, भागलपुर
बेगुसरायमैसर्स शिव कृषि निकेतन, मीरा भवन, अम्बेडकर चौक के पास, बेगुसराय
दरभंगामैसर्स श्री महाबीर जी राइस एंव आयॅल मिल, डॉनर रोड, दरभंगा
सिवानमैसर्स सरण बीज कंपनी, श्रदानंद मार्किट , सिवान
गोपलगंजमैसर्स किशुन शाह रामानंद प्रसाद, पोस्ट निचुआ, जलालपुर, गोपलगंज
वैशाली (हाजीपुर)मैसर्स आदित्य इन्टरप्राइजेस,    बालगोंविद भवन, सिनेमा रोड, हाजीपुर  (वैशाली)
पटनामैसर्स आदित्य इन्टरप्राइजेस,    बालगोंविद भवन, सिनेमा रोड, हाजीपुर  (वैशाली)
बक्सरमैसर्स रत्नागिरी सीड्स एंड फार्म, एमआईजी-77, हनुमान नगर, कंकड़  बाग, पटना
गयामैसर्स भारतीय उर्वरक केन्द्र दिग्गी तालाब गया
रोहताश (सासाराम)मैसर्स एग्रीकल्चर सेंटर रोहताश सासाराम
नालन्दा बिहार शरीफमैसर्स न्यू मेहता सीड्स स्टोर, बाजार समिति गेट के सामने, रामचन्द्र पुर बिहार शरीफ, थाना लहरी, जिला नालंदा
आरा भोजपुरमैसर्स जय प्रकाश नारायण, मिल रोड, नावदा आरा भोजपुर
मुजफरपुरमैसर्स हरियाली ट्रेडर्स र्मिचिया चौक, राजेन्द्र रोड, बरौनी , जिला बेगुसराय
मधुबनीमैसर्स हरगोविद सीड कंपनी कोर्ट कम्पाउंड मधुबनी
सीतामढ़ीमैसर्स प्रसाद एंव ब्रदर्स मथुरा हाई स्कूल रोड रिंगबंद , सीतामढ़ी
सारन छापरामैसर्स वर्मा खाद बीज भंडार, जगतपुरा बहारिया, सिवान
कटिहारमैसर्स हरियाली ट्रेडर्स र्मिचिया चौक, राजेन्द्र रोड, बरौनी , जिला बेगुसराय
पूर्णियामैसर्स गणपति ऐजेंसी, एनएच-31, बल्ब बाग पूर्णिया
अररियामैसर्स गणपति ऐजेंसी, एनएच-31, गुलाब बाग पूर्णिया
समस्तीपुर दक्षिणमैसर्स कुशवाह सीड्स कारपोरेशन, गोला रोड, समस्तीपुर
समस्तीपुर उत्तरमैसर्स गांधी ऐग्री क्लिनिक एंव एग्री बिजिनस सेंटर बाजार समिति, प्रागंण, समस्तीपुर मथुरापुर

पूने

प्रभाणीमैसर्स स्वाति ऐग्रो सर्विस सेंटर, मौनधा     रोड , जिन्नटूर जिला,
औंरगाबादमैसर्स विजय बीज एंड मशीनरी स्टोर, मेंन रोड , सिलोड जिला औरंगाबाद
जालनामैसर्स संतोष बीज भंडार, जालना
लातूरमैसर्स कृषि सेवा केन्द्र,  लातूर
हिंगोलीमैसर्स श्री सिरतकी भंडार, प्रियदर्शनी, इन्दरा बाजार, कलमनूरी , जिला प्रभाणी
आकोलामैसर्स स्नेह सागर इन्टरप्राइजिज, माणिक टॉकीज के सामने, तिलक रोड, अकोला
नासिकमैसर्स नंदा सीड्स, 16, न्यू मूनसिपल मार्किट, यूला‑423 104, जिला नासिक
जलगांवमैसर्स खचाडु लाल चम्पा लाल बोरा, मेन रोड,जामनेर, जिला जलगांव
नंदूबारमैसर्स महावीर कृषि सेवा केन्द्र, महेशवार्ड शाहादा जिला, मंदूबार
यवातमलमैसर्स सुदर्शन कृषि केन्द्र, मेन रोड, अमी जिला यवतमल
यवातमलमैसर्स श्रीदत्ता कृषि केन्द्र, दुत्ता चौक, यवतमल
अमरावतीमैसर्स रवि एग्रो सीड्स कारपो., अमरावती
वर्धामैसर्स रामदेव ट्रेड, 12, महेश्वरी मार्किट, मेन रोड,  वर्धा
नागपुरमैसर्स चौधरी बद्रर्स, श्रीदेवी काम्प्लेक्स, सुभाष रोड, नागपुर
अहमदनगरमैसर्स श्रमिक कृषि उद्योग, श्रमिक प्रतिष्ठान, जिला संगमनेर, अहमदनगर‑422605
उस्मानाबादमैसर्स कृषि वस्तु भंडार, शोलापुर रोड,  उस्मानाबाद
नादेंड़मैसर्स मोदी एग्री जनेटिक प्राइवेट लि., 1-11-334, आर.बी. मोदी हाऊस,न्यू मोन्दह, नादेंड़
धूलियामैसर्स शांतिलाल लालचंद, 1730आगरा रोड, पी.बी नं. 34, धूलिया
चन्द्ररपुरश्री गुरूदेव कृषि सेवा केन्द्रम 2 कोपरेटिव बैंक मार्केट कम्पलैक्स बरोडा जिला चन्द्ररपुर-444 001
वासिममहा लक्ष्मी सीड्स एंड प्रोसेसिंग प्लांट , राजुकर कम्पाउंड, बंबई लोज के पीछे , तिलक रोड, अकोला-444 001
बंद्रामैसर्स सेतकारी कृषि सेवा  केन्द्र, लखुनंदर जिला, बंद्रा
पुणेमैसर्स पारेख ट्रेडर्स 18, माधवर्ती भवन,   सेतकारी निवास, मार्केट यार्ड पूने-411 037
पुणेमैसर्स सेठी उद्योग भंडार, 501, गोरपड़े पेठ , शिवाजी रोड, स्वरगेट पूने-411 042
सोलापुरमैसर्स आदित्य इंटरप्राईजेस, स्वामी विवेकानंद नगर, कुमठा रोड, एयर पोर्ट मसारेवादी, सोलापुर-413 224
कोल्हापुरमैसर्स याराना कृषि उद्योग, सनमित्रा चौक, कुरेन्दबाद, सिरोही जिला, कोल्हापुर
सतारामैसर्स संदीप  कृषि सेवा केन्द्र, विनय वाणिज्यिक कम्पलैक्स, शॉप नं- बी-5, दक्कन चौक लक्ष्मी नगर, पालतन जिला, सतारा
कुडापा जिलामैसर्स भारत सीड ऐजेन्सी
अदिलाबादमैसर्स श्री अरूणा ऐग्रो ऐजेन्सी
अंनतपुरमैसर्स रब्बानी सीड्स
पूर्व  गोदावरी, पश्चिम गोदावरी,श्रीकाकुलम, विजयनगरमं, विशाखापट्टनममैसर्स कृषक रत्ना, ऐग्रो केमिकल्स
कृष्णा एवं गुन्टूरमैसर्स  अरूणा ऐग्रो ऐजेन्सी
महबूबनगरमैसर्स रब्बानी सीड्स
नालगोडा जिला एवं महबूबनगर जिले के हिस्से (साधनगर, जडछारिया , कालावक्रोती, अचमपेट मंडल)मैसर्स रब्बानी सीड्स
करनुल का हिस्सा (अधोनी, डोनी, जुपाडू, बुगल्लो कुडूमूर, करनूल, मंत्रालयम, नन्दीकोटकुर, मिदतूर, ओरावकलम, पीपट्टीकोडा, पल्लाई , श्री सल्लम, मंडलम)मैसर्स रब्बानी सीड्स
करनूल का हिस्सा (उपरोक्त को छोड़कर )मैसर्स रब्बानी सीड्स
प्रकाशम एंव नैल्लौरमैसर्स शुभानी सीड्स
वारगंल (जिला)मैसर्स सुमनजाल सीड्स एंड फार्म
रंगा रेड्डीमैसर्स विक्टरी सीड्स, करनूल
स्त्रोत : राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड, भारत सरकार

जीएसटी लागू होने के बाद रासायनिक उर्वरकों के मूल्य में कमी

मध्यप्रदेश में जीएसटी लागू होने के बाद रासायनिक उर्वरकों के मूल्य में कमी

मध्यप्रदेश में एक जुलाई, 2017 से वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) लागू होने के बाद रासायनिक उर्वरकों के मूल्यों में कमी आई है।

रासायनिक उर्वरक डीएपी 10 रूपये 75 पैसे, यूरिया 6 रूपये, एनपीके 12:32:16 रूपये 20, एनपीके 10:26:26 पाँच रूपये, एमओपी 5 रूपये 38 पैसे और सिंगल बोरी फास्फेट के प्रति बोरी मूल्य पर 5 रूपये 14 पैसे की कमी आई है। सहकारी समिति और विपणन संघ को जीएसटी लागू होने के बाद रासायनिक उर्वरकों में कम हुई दरों पर किसानों को बिक्री किये जाने के निर्देश दिये गये हैं।

इन कृषि मशीनों से कृषि को बनाये आसान और करें कृषि की लागत को कम

इन कृषि मशीनों से कृषि को बनाये आसान और करें कृषि की लागत को कम

कृषि मशीनों के प्रयोग से उत्पादकता को बढाया जा सकता है | भारत वर्ष में कुल जोत का लगभग 63% क्षेत्रफल वर्षा पर आधारित है जिससे 42 – 44 % खाधान्न उत्पादन की प्राप्ति होती है और लगभग 500 मिलियन (35 % आबादी) लोगों का पेट भरता है बारानी क्षेत्रों में येसी फसलें लेते है जो कम वर्ष या सिंचाई की स्थिति में उग सकें |

खेती की समस्याएं :

अपर्याप्त, अनिश्चित वर्षा तथा इसका असामान्य वितरण, वर्षा का देर से आना व जल्दी ख़त्म होना, फसल के दौरान लम्बी सूखा अवधि, मृदा में कम जलधारण क्षमता, कम मृदाउर्वरा, शक्ति, उन्नत तकनीक की कमी, पशुओं का कम उत्पादन व चारे की कमी, संसाधनों की कमी आदि |

धान, मक्का, कोंदों, राई, सरसों, मूंगफली एवं दलहनी फसलें उत्तर प्रदेश के बारानी क्षेत्रों में उगाते हैं | इन क्षेत्रों में पैदावार भी कम होती है | अधिक पैदावार लेने के लिए नमी संरक्षण, समय पर उर्वरक प्रयोग, समय से बुवाई, खरपतवार नियंत्रण, उचित भूमि उपयोग, जलागम प्रबंधन तथा बारानी खेत के अन्य तरीके अपनाना आवश्यक है | इसके अतिरिक्त आजकल अनेक उन्नत कृषि यंत्र शोध संस्थनों द्वारा विकसित किये गये हैं जिनके प्रयोग से किसानों को लाभ होता है तथा 12 – 34 % तक उत्पादन में वृधि होती है |

कृषि मशीनीकरण : मुख्य तकनिकी

फर्टीसीडड्रिल

फर्टीसीडड्रिल के प्रयोग से 20% तक बीज तथा 15 – 20 % तक उर्वरक की बचत होती है | फसल सघनता में 5 – 20% तक वृधि होती है | किसान की कुल आय में 30 – 50% तक बढ़ोत्तरी होती है | भूमि विकास, जुताई एवं खेती की तैयारी हेतु निम्नलिखित यंत्रों का उपयोग होता है |

जीरो टिलेज मशीन

जीरो टिलेज मशीनसे बगैर जुताई किए गेंहू व अन्य फसलों की बुवाई करते हैं | इस मशीन के प्रयोग से लगभग रु. 2000 – 3000 प्रति हेक्टेयर तक लागत में कमी आती है |

पशु चालित पटेला हैरो

पशु चालित पटेला हैरो ढेले तोड़ने, ठूंठ या घासपात इक्टठा करने, खेत को समतल करने हेतु बुवाई से पूर्व प्रयोग किया जाता है | इससे 58% खेत की तैयारी वाले खर्चे में कमी आती है, 20% श्रम की बचत होती है तथा 3 – 4% तक पैदावार में वृधि देशी हल से जुताई करने की तुलना में होती है |

ट्रैक्टर चालित डिस्क हैरो

ट्रैक्टर चालित डिस्क हैरो का उपयोग बगीचों, पेड़ों के बीच अच्छा होता है | इससे 40 % तक श्रम तथा 54% खेत की तैयारी की लागत कम आती है | पैदावार में 2% तक वृधि पुराने तरीके की तुलना में प्राप्त होती है |

डक – रुक कल्टीवेटर

डक – रुक कल्टीवेटर काली मिटटी कड़ी परत वाली भूमि में कम गहराई की जुताई करने में अच्छा कार्य करता है | इससे 30% श्रम की बचत, 35% परिचालन कीमत में कमी तथा 30% तक पैदावार में वृधि पशुचालित कल्टीवेटर की तुलना में होती है |

रोटावेटर

रोटावेटर से सीडबैड शुष्क व नमीयुक्त भूमि तैयार किया जाता है | इससे हरी खाद वाली फसलों एवं खेत में पड़े भूसा आदि को मिटटी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है | इससे मिटटी भुरभुरी हो जाती है | इससे 60% श्रम की बचत होती है तथा ट्रैक्टर चालित हल की तुलना में 2% पैदावार बढ़ती है |

ट्रैक्टर चालित सबस्वायलर

ट्रैक्टर चालित सबस्वायलर भूमि की कड़ी परत को तोड़ने, मिटटी का ढीली करने तथा पानी को नीचे रिसने में मदद करता है | इससे छोटी – छोटी नाली भी बनाई जा सकती है जो की पानी के निकास के लिए प्रयोग हो सकती है | इसके उपयोग से 30% तक पैदावार में वृधि हो सकती है क्योंकि गहरी जुताई से जल धारण क्षमता बढ़ जाती है |

धान – ड्रम सीडर

से धान के पहले से जमे हुए बीजों को सीधे रूप से लेवा खेत में बोया जाता है | इससे 20% तक बीज की बचत होती है तथा हाथ से खरपतवार निकालने में पंक्तियों में बुवाई के कारण मदद मिलती है |

पशुचालित प्लान्टर, ट्रैक्टर चालित फर्टीसीडड्रिल, ट्रैक्टर चालित धान बुवाई यंत्र, बहुफसली सीडड्रिल एवं प्लान्टर, मूंगफली खुदाई यंत्र, मूंगफली थ्रैसर, मूंगफली दाना निकालने का यंत्र, मक्का छिलाई यंत्र, सूरजमुखी थ्रैसर, कम्बाइनड हार्वेस्टर आदि नविन यंत्र विकसित किये गये है जिन्हें प्रयोग कर कृषि उत्पादन में वृधि की जा सकती है |