देश के कई राज्यों में जहां किसानों के पास सिंचाई की उपयुक्त सुविधा मौजूद है वहाँ किसान रबी फसलों की कटाई के बाद अपने खेतों में मूँग एवं उड़द फसलों की खेती कर सकते हैं। गर्मी के मौसम में इन फसलों की खेती से किसानों को जहां अतिरिक्त आमदनी प्राप्त होगी वहीं इससे देश को दलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद मिलेगी। ऐसे में जो किसान ग्रीष्मकालीन उड़द की खेती करना चाहते हैं उन्हें उपयुक्त किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि कम लागत में अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सके।
वैसे तो देश के अधिकांश क्षेत्रों में उड़द की बुआई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक ही है, पर किसान जल्द तैयार होने वाली किस्मों की बुआई इसके बाद तक भी कर कर सकते हैं। अच्छी पैदावार तथा गुणवत्ता युक्त उत्पादन लेने के लिए अच्छी प्रजाति का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है इसलिए जल के साधन, फसल चक्र व बाजार की माँग की स्थिति को ध्यान में रखकर ही किसानों को उपयुक्त प्रजाति का चयन करना चाहिए।
ग्रीष्मकालीन उड़द की किस्में कौन सी हैं?
देश में विभिन्न कृषि संस्थानों के द्वारा अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के लिए उड़द की अलग- अलग किस्में विकसित की गई है। किसान इन किस्मों में से अपने क्षेत्र के लिए अनुकूल किसी भी उन्नत किस्म के बीजों का चयन कर सकते हैं। इन किस्मों में पीडीयू 1 (बसंत बहार), के.यू.जी. 479, मूलुन्द्र उड़द 2 ( केपीयू 405), कोटा उड़द 4 (केपीयू 12-1735), कोटा उड़द 3 (केपीयू 524-65), इंदिरा उड़द प्रथम, हरियाणा उड़द-1 (यूएच उड़द 04-06), शेखर 1, उत्तरा, आजाद उड़द 1, शेखर 2, शेखर 3, पंत उड़द 31, पंत उड़द 40, आईपीयू -2-43, डब्ल्यू.बी.यू. 108, डब्ल्यू.बी.यू. 109 (सुलता), माश 1008, माश 479, माश 391 एवं सुजाता आदि शामिल हैं।
किसान बुआई के लिए बीज के आकार, खेत में नमी की स्थिति, बुआई का समय, पौधों की पैदावार तथा उत्पादन तकनीक के अनुसार प्रति हेक्टेयर बीज का उपयोग कर सकते हैं। सामान्यतः ग्रीष्मकालीन उड़द की बुआई के लिए 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। जायद में किसानों को उड़द की बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज की बुआई कुंडों में या सीड ड्रील से पंक्तियों में की जानी चाहिए तथा बीजों को 4-5 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए।
बुआई के समय कितना खाद डालें
उड़द की फसल में बुआई के समय 15 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर, 45 किलोग्राम फ़ास्फ़ोरस प्रति हेक्टेयर एवं गंधक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कुंडों में देना चाहिए। इसके अलावा नवीनतम शोधों के अनुसार यह सिद्ध हुआ है कि 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पत्तियों पर छिड़काव यदि फली बनने की अवस्था में किया जाए तो इससे उपज में अधिक वृद्धि होती है।