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बुधवार, मई 21, 2025
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इस तकनीक से गन्ने की खेती करके किसान कर सकते हैं लाखों रुपये की कमाई

गन्ना की खेती से मुनाफा

देश में किसानों कि आमदनी बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा खेती की नई-नई तकनीकें विकसित की जा रही है। जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इस कड़ी में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा गन्ने के टिश्यु कल्चर के पौधे तैयार किए गए हैं जो किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा देते हैं। ऐसे में किसानों को गन्ने की टिश्यु कल्चर तकनीक से अवगत कराने के लिए छत्तीसगढ़ कृषि विभाग द्वारा रायपुर स्थित गन्ना टिश्यु कल्चर लैब का भ्रमण कराया गया।

5 फरवरी के दिन बालोद जिले के 29 गन्ना किसानों को रायपुर स्थित टिश्यु कल्चर लैब का भ्रमण कराया गया। इस अवसर पर वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को गन्ने के खेतों का अवलोकन के साथ ही टिशु कल्चर की तकनीक की जानकारी दी गई। इसके साथ ही कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किसानों को फिल्ड में लगे गन्ना किस्म सीओजे 085, वीएसआई 8005 तथा सीओ 86032 के पौधों का प्रत्यक्ष अवलोकन भी कराया गया।

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किसान गन्ना टिश्यु कल्चर से कर सकते हैं लाखों रुपये की कमाई

किसानों के भ्रमण कार्यक्रम के दौरान वैज्ञानिकों ने बताया कि टिश्यू कल्चर पौध तैयार करने में लागत प्रति पौध 2.50 रूपये आती है। प्रति हेक्टेयर 7000 पौधे की आवश्यक होती है, जिसकी लागत 17,500 रूपये होती है। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1000 क्विंटल आता है। इसे एमआरपी की दर से बेचने पर आय 03 लाख 55 हजार रूपये प्राप्त होगी। अगर आदान सामग्री लागत 01 लाख रूपये घटा दिया जाए तो भी किसानों को 02 लाख रूपये तक शुद्ध मुनाफा हो सकता है।

गन्ने की टिश्यु कल्चर से खेती करने से ना केवल किसानों की आमदनी दोगुनी होगी वहीं गन्ने की खेती के क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी। इसके साथ ही अन्य किसान भी गन्ना शेड से बोने की तकनीक को छोड़कर गन्ना टिश्यू कल्चर पौध बोने लगेंगे।

किसानों को दी गई खेती की जानकारी

टिश्यु कल्चर लैब के भ्रमण पर आये किसानों को वैज्ञानिकों द्वारा इसकी खेती की जानकारी दी गई। वैज्ञानिकों ने बताया कि गन्ना टिश्यू कल्चर तैयार करने के लिए गन्ना का पौध स्वस्थ एवं निरोग होना चाहिए। टिश्यू कल्चर के लिए एक आँख को जार में मदर कल्चर के साथ मिलाकर बंद कर दिया जाता है। जिससे 30 से 40 कंसे निकलते है। प्रत्येक कंसे को अलग-अलग कर पॉली ट्रे में रखा जाता है। इसके उपरांत उसे ग्रीन नेट में रखते हैं। प्रथम स्क्रीनिंग 21 दिन के बाद उसे हॉट नेट में ले जाया जाता है। द्वितीय स्क्रीनिंग 20 दिन के बाद पॉली वेग में ट्रांसफर किया जाता है। इसके पश्चात किसानों को बोनी करने हेतु प्रदाय किया जाता है।

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