जेट्रोफा (रतनजोत) की खेती

जटरोफा (रतनजोत)का उत्पादन

जेट्रोफा की खेती जैव ईंधन, औषधि,जैविक खाद, रंग बनाने में, भूमि सूधार, भूमि कटाव को रोकने में, खेत की मेड़ों पर बाड़ के रूप में, एवं रोजगार की संभावनाओं को बढ़ानें में उपयोगी साबित हुआ है। यह उच्चकोटि के बायो-डीजल का स्रोत है जिसमें गैर विषाक्त, कम धुएँ वाला एवं पेट्रो-डीजल सी समरूपता है।

सामान्य नामः

जंगली अरंड, व्याध्र अरंड, रतनजोत, चन्द्रजोत एवं जमालगोटा आदि।

वानस्पतिक नामः

जैट्रोफा करकस (Jatropha Curcas)

जलवायु एवं मिट्टीः

यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में होता है। दोमट भूमि में इसकी खेती अच्छी होती है। जल जमाव वाले क्षेत्र उपयुक्त नहीं हैं।

बीज दरः

5 किलो प्रति हेक्टेयर

बीजोपचारः

जड़ सड़न तथा तना बिगलन के रोकथाम हेतु बीज उपचार 2 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के अनुसार थाइरेम, बेबिस्टीन तथा वाइटावेक्स के (1:1:1) मिश्रण को बीज में मिलाकर बोयें।

बोआई एवं रोपणः

बीज अथवा कलम द्वारा पौधे तैयार किए जाते हैं। मार्च-अप्रैल माह में नर्सरी लगाई जाती है तथा रोपण का कार्य जुलाई से सितम्बर तक किया जा सकता है। बीज द्वारा सीधे गड्डों मे बुवाई की जाती है।

पौधे से पौधे की दूरीः

असिंचित क्षेत्रों में 2×2 मीटर और सिंचित क्षेत्रों में 3×3 मीटर की दूरी रखी जाती है। गड्ढे का आकार 45×45 x45 (लम्बाई x चौडाई x गहराई) से.मी. होता है। रतनजोत के पौधों को बाड़ के रूप में लगाने पर दूरी 0.50 x 0.50 मी.(दो लाइन) रखी जाती है।

पौधशाला

  • (1) समतल क्यारीः 15 x15 से.मी. दूरी पर बीज बोयें। बोने के पूर्व बीज को 12 घंटो तक भिगोयें। तीन माह बाद स्वस्थ पौधों को रोपें।
  • (2) पॉली बैंगः बालू मिट्टी तथा कम्पोस्ट खाद (1:1:1) के मिश्रण को पॉली बैग (16″x12″) में भरें। 2-3 बीज बोयें, सिंचाई करें तथा स्वस्थ पौधों की 3 माह बाद रोपाई करें।

रोपण की विधिः

गड्डे में रेत, मिट्टी तथा कम्पोस्ट की खाद का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में भरें। नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई जुलाई माह से शुरू करें। कलम द्वारा तैयार करने हेतु लम्बाई 30-50 सेंटी मीटर व्यास, स्वस्थ, सुडौल चमकदार कई आँखों वाली निचली टहनियाँ चुनें।

परीक्षण में लगाई गई उन्नत किस्मे :

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में देश के विभिन्न भागों से निम्न 12 किस्मों का परीक्षण चल रहा है।

GIE – नागपुर, PKVJ-DHW,PKVJ – MKV,TFRI -1,TFRI -2, RJ- 117, पंत जी – सेल 1, पंत जी – सेल 2, कल्याणपुर, मानकेश्वर, चाण्डक, बामुण्डा

RJ- 117, GIE- नागपुर बरमुण्डा अच्छी पाई गई। सरदार कृषि विश्वविद्यालय, बनासकान्ठा से विकसित SDAUJI किस्म भी अच्छी है।

खाद एवं उर्वरकः

रोपण से पूर्व गड्ढे में मिट्टी (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें। दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर (50 ग्राम ) प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधा रोपण करें।

सिंचाई एवं गुड़ाईः

शुष्क मौसम (मार्च से मई) में दो सिंचाई उत्तम रहती है। प्रत्येक तीन माह के अन्तराल पर खाद का प्रयोग तथा गुड़ाई करें।

खरपतवार नियंत्रणः

नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखें तथा रोपा फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा दें। वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करें।

रोग नियंत्रणः

कोमल पौधों में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग मुख्य है। नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल को सप्ताह में दो बार छिड़काव करें।

कीट नियंत्रणः

कोमल पौधों में कटूवा (सूंडी) तने को काट सकता है। इसके लिए Lindane या Follidol धूल का सूखा पाउडर भूरकाव से नियंत्रण किया जा सकता है। माइट के प्रकोप से बचाव के लिए 1 मिली लीटर मेटासिस्टॉक्स दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

कटाई-छँटाईः

पौधों को गोल छाते का आकार देने के लिए दो वर्ष तक कटाई-छँटाई आवश्यक है। प्रथम कटाई में रोपण के 7-8 महीने पश्चात पौधों को भूमि से 30-45 से.मी. छोड़कर शेष ऊपरी हिस्सा काट देना चाहिए। दूसरी छँटाई पुनः 12 महीने बाद सभी टहनियों में 1/3 भाग छोड़कर शेष हिस्सा काट देना चाहिए। प्रत्येक छँटाई के पश्चात 1 ग्राम बेविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अप्रैल और मई महीनों में छँटाई का कार्य करते हैं।

उपजः

बरसात के समय में पौधे में फूल आना प्रारंभ हो जाता है तथा दिसंबर-जनवरी माह में हरे रंग के फल काले पड़ने लगते हैं। जब फल का ऊपरी भाग काला पड़ने लगे तब तोड़ा जा सकता है।

प्रथम वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं

द्वितीय वर्षः कोई बीज उत्पाद नहीं

तृतीय वर्षः 500 ग्राम/ पेड़ (12.5 क्विंटल/हेक्टेयर)

चतुर्थ वर्षः 1 किलो ग्राम/ पेड़ (25 क्विंटल/हेक्टेयर)

पंचम वर्षः 2 किलो ग्राम/ पेड़ (50 क्विंटल/हेक्टेयर)

छठे वर्षः 4 किलो ग्राम/ पेड़ (100 क्विंटल/हेक्टेयर) एवं आगे।

आय साधारणतया 6रुपये प्रति किलो ग्राम बीज की विक्रय दर से गणना करें।
source:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय