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मंगलवार, मार्च 19, 2024
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तो आखिर इसलिए नहीं मिल रहा है किसानों और पशुपालकों को सरकार की योजनाओं का लाभ

पशुपालन योजनाओं के नाम पर खानापूर्ति

बढती जनसंख्या को पोषक आहार उपलब्ध करना एक चुनौती पूर्ण कार्य है | उसमें भी सभी को पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध करवाना और भी मुश्किल है | भले ही भारत विश्व में दूध उत्पादन में पहले स्थान पर है लेकिन सभी को पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध नहीं हो पा रहा है | देश में दूध देने वाली गाय तथा भैंस की संख्या भी अन्य देशों से काफी अधिक है |

इसके दो कारण है, एक तो यह कि भारत की आबादी अन्य देशों से ज्यादा है तथा यहाँ की गाय और भैंस के दूध उत्पादन ओर देशों से बहुत कम है | समय के साथ भारत में भी दूध देने वाली गाय तथा भैंस की उन्नत (संकर) नस्ल पर ज्यादा ध्यान दे रहें हैं | एक तरफ संकर नस्ल के पशुओं की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ देशी नस्ल के गोपशुओं की संख्या में गिरावट आ रही है |

भारत में गोपशुओं की कुल आबादी

20वीं पशुधन गणना 2019 के अनुसार देशी गोपशुओं की आबादी जो वर्ष 2012 में 151.7 मिलियन थी जो घटकर वर्ष 2019 में 142.1 मिलियन (1 मिलियन बराबर 10 लाख) हो गयी है | दूसरी तरफ संकर नस्ल के पशुओं की संख्या जहाँ वर्ष 2012 में 89.22 मिलियन थी, वह बढ़ कर वर्ष 2019 में 98.17 मिलियन हो गयी है |

इसमें विदेशी नस्ल के मादा गोपशुओं की आबादी जो वर्ष 2012 में 33.76 मिलियन थी वर्ष 2019 में बढ़कर 46.95 मिलियन हो गई है | दूध के क्षेत्र में वृद्धि भी लगातार हो रही है | भारत में वर्ष 2018 – 19 में दूध का उत्पादन 187 मिलियन टन तक पहुँच गया है | इसके लिए सरकार के तरफ से काफी कदम उठायें जा रहें हैं |

केन्द्रीय बजट में तथा योजनाओं के द्वारा लगातार पशुधन को बढ़ाने के साथ ही दूध उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है लेकिन बजट का खर्च को ध्यान दिया जाये तो ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की सभी योजना जो पशुपालन से जुडी है वह केवल खाना पूर्ति के लिए है | बजट में जितना आवंटन किया जाता है उतना खर्च भी नहीं किया जाता है |

सरकार द्वारा मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी पर किया गया खर्च

लोकसभा में सांसद श्री उदय प्रताप सिंह के द्वारा पूछे गये एक सवाल के जवाब देते हुए मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डां. संजीव कुमार बालियान ने केंद्र सरकार के द्वारा सभी योजनाओं में बजट और खर्च का ब्यौरा दिया है |

जो इस प्रकार है :-
योजना का नाम
बजट और खर्च
वर्ष 2018 – 19
(रुपया लाख में)
2019 – 20 अक्तूबर 2019 तक (रुपया लाख में)

राष्ट्रीय गोकुल मिशन (आरजीएम)

जारी निधि

2852.32

2155.86

उपयोग की गई निधि

989.32

0.00

राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी)

जारी निधि

2085.27

1503.33

उपयोग की गई निधि

1229.22

0.00

राष्ट्रीय डेयरी योजना -1 (एनडीपी – 1)

जारी निधि

188.00

9.00

उपयोग की गई निधि

367.00

58.00

डेयरी उद्यमशीलता विकास योजना (डीईडीएस)

जारी निधि

1826.00

2939.02

उपयोग की गई निधि

1032.06

186.45

राष्ट्रीय पशुधन मिशन (एनएलएम)

जारी निधि

1247.04

0.00

उपयोग की गई निधि

874.72

0.00

पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण (एलएच एंड डीसी)

जारी निधि

2944.55

180.00

उपयोग की गई निधि

2842.31

0.00

पशुधन संगणना और एकीकृत नमूना सर्वेक्षण (एलसी एंड आईएसएस)

जारी निधि

402.17

322.22

उपयोग की गई निधि

236.45

141.5

राज्य मंत्री के द्वारा दी गई जानकारी में साफ दिख रहा है कि केंद्र सरकार के द्वारा जो बजट जारी किया जाता है उतना खर्च भी नहीं कर रही है | कुछ योजनाओं में तो 30 प्रतिशत तक ही खर्च हुआ है तो कुछ योजना में बिलकुल भी बजट का उपयोग नहीं किया गया है |

क्या इस कारण पशुपालकों को नहीं मिलता योजना का लाभ

एक तरफ तो घोषणा करते हुए यह बताया जाता है की किसानों को पशुधन के लिए बजट को बढ़ाकर जारी किया गया है तो दूसरी तरफ उसका 30 प्रतिशत हिस्सा भी खर्च नहीं किया गया या इसे यह कहा जा सकता है की किसानों के लिए पशुधन से सम्बन्धित योजनाओं का संचालन किया जाता है उसके बजट को आवंटन ही नहीं किया जाता है | अगर यह हाल रहा तो किसानों का न तो आर्थिक स्थिति सुधरेगी और नहीं देश में दूध की उत्पादन में बढ़ोतरी हो पायेगा |

एक अन्य सवाल जिसमें पशुपालन और डेयरी के लिए आवंटित और उपयोग की गई धनराशी के बारे में जानकारी मांगी गई है |

योजनाओं के नाम पर की जा रही है खानापूर्ति

इस सवाल का जवाब को ध्यान से देखा जाये तो ऐसा लगता है कि इतने पैसे में पशुपालन तो छोडिये पशुओं के लिए आवास भी नहीं बन पायेगा | इस योजना के लिए वर्ष 2018–19 में 1826.00 लाख रुपये जारी किये गए थे लेकिन इसमें से खर्च केवल 1032.06 लाख रुपये ही किये गए | जो आवंटन का लगभग 60 प्रतिशत खर्च होता है | इसी योजना के लिए वर्ष 2019–20 के लिए बजट से 2939.02 लाख रुपये जारी किये गए थे जिसका अक्टूबर तक सिर्फ 186.45 लाख रुपया खर्च किया गया है |

अगर इस योजना को प्रति राज्य तथा प्रति लाभार्थी देखने पर यह मालुम होता है कि इस योजना के नाम पर खानापूर्ति ही की जा रही है |

राज्यवार औसतन पशुपालन के लिए दी गई राशि

वर्ष 2018–19 में देश के 23 राज्यों (दिल्ली, अंडमान निक्कोबार तथा जम्मू कश्मीर को लेकर) में कुल 37,305 लाभार्थियों को डीईडीएस योजना का लाभ मिला है | इन सभी के बीच इस वर्ष में कुल 21974.20 लाख रुपये का आवंटन किया गया | अगर इस पैसे को प्रति लाभार्थी किया जाय तो यह औसतन 58 हजार 9 सौ 41 रुपया होता है | इतने पैसे में सरकार किसानों को डेयरी उद्यमी बनाने का सपना बेच रही है |

अगर राज्यवार देखा जाए तो मध्य प्रदेश में वर्ष 2018–19 में 2,214 लाभार्थियों को 1032.06 लाख रुपये दिए गए हैं | जो औसतन प्रति लाभार्थी 46 हजार 6 सौ 15 रुपये होते हैं | जो 23 राज्यों के औसतन आवंटन से लगभग 12 हजार रुपया कम है |

महाराष्ट्र में जहाँ किसानों की आत्महत्या सबसे ज्यादा दर्ज की जा रही है | वहां पर वर्ष 2018–19 में 3,826 लाभार्थियों को 1804.84 लाख रुपये आवंटन किया गया है | जो प्रति लाभार्थी आवंटन का औसत 47 हजार 1 सौ 73 रुपया होता है | यह भी राष्ट्रीय औसत से कम है |

गुजरात एक ऐसा राज्य है जहाँ पर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दिया गया है लेकिन यहाँ पर भी जो राशि दी  गई है उसमें किसी भी तरह का पशुपालन करना संभव नहीं है | गुजरात में वर्ष 2018–19 में इसी योजना के लिए 1200 लाभार्थियों को 1890.75 लाख रुपये दिया गया है जो प्रति लाभार्थी औसत 1.57 लाख रुपया है |

यही हाल पूर्वोतर के राज्यों का भी है | पूर्वोतर के 8 राज्य (जिसमें सिक्किम भी शामिल है) में वर्ष 2018–19 में कुल 1442 लाभार्थी को 996.03 लाख रुपया दिया गया है , जो औसतन 69 हजार 72 रुपया होता है |

यही हाल कमोबेश इस वर्ष भी देखने को मिल रहा है | वर्ष 2019–20 में देश के कुल 23 राज्य (जिसमें अंडमान निकोबार, दिल्ली, तथा जम्मू कश्मीर को जोड़कर और पूर्वोतर के राज्यों को छोड़कर ) के 6180 लाभार्थियों को 4660.90 लाख रुपया आवंटन किया गया है | अगर इसे प्रति लाभार्थी औसतन करते हैं तो यह 75 हजार 4 सौ 19 रुपया होता है | सभी योजनायें इसी तरह चलायें जा रहे हैं | जिसमें लगता तो एसा है कि यह किसनों की भलाई के लिए हैं लेकिन रहता नहीं है |

“इससे साफ मालूम चलता है कि सरकार की सभी योजना किसानों को भ्रमित करने के लिए ज्यादा और लाभ पहुँचाने के लिए कम है | जिससे किसान यह समझे कि सरकार जिसे वह चुना है उसके लिए ही काम कर रही है  क्योंकि जब किसनों के लिए चल रही योजनाओं के लिए राशि ही खर्च नहीं की जाएगी तो वह किसानों को मिलेगी कैसे |”

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